Saturday, July 31, 2021

54 सूरह अल क़मर

सूरह अल क़मर मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 55 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. क़यामत क़रीब आ गई और चांद दो टुकड़े हो गया.
2. और अगर काफ़िर कोई निशानी देखते हैं, तो मुंह फेर लेते हैं, और कहते हैं कि यह जादू है, जो पहले से चला आ रहा है.
3. और उन्होंने झुठलाया और अपनी ख़्वाहिशों की पैरवी की. और लेकिन हर काम का एक वक़्त मुक़र्रर है.
4. और बेशक उनके पास ऐसी ख़बरें आ चुकी हैं, जिनमें इबरत है. 
5. यह क़ुरआन कामिल दानाई और हिकमत है, फिर भी ख़बरदार करने वाले उन्हें कोई फ़ायदा नहीं देते. 
6. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम भी उनसे मुंह फेर लो. जिस दिन बुलाने वाला इस्राफ़ील उन्हें नागवार चीज़ की तरफ़ बुलाएगा.
7. लोग नज़रें झुकाये हुए क़ब्रों से निकल पड़ेंगे, गोया वे फैली हुई टिड्डियां हैं.
8. वे लोग बुलाने वाले इस्राफ़ील की तरफ़ दौड़ते हुए जाएंगे. काफ़िर कहेंगे कि यह बड़ा सख़्त दिन है.
9. इनसे पहले नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम ने भी झुठलाया था. फिर उन्होंने हमारे ख़ास बन्दे नूह अलैहिस्सलाम को झुठलाया और कहने लगे कि यह दीवाना है और उन्हें ख़ूब झिड़का. 
10. फिर उन्होंने अपने परवरदिगार से दुआ मांगी कि मैं मग़लूब हूं. फिर तू मेरा इंतक़ाम ले.
11. फिर हमने मूसलाधार बारिश के साथ आसमान के दरवाज़े खोल दिए.
12. और हमने ज़मीन से चश्मे जारी कर दिए. फिर ज़मीन और आसमान का पानी एक ही काम के लिए जमा हो गया, जो उनकी तबाही के लिए पहले से मुक़र्रर हो चुका था.
13. और हमने नूह अलैहिस्सलाम को एक कश्ती पर सवार किया, जो तख़्तों और मेख़ों से तैयार की गई थी.
14. वह हमारी निगरानी में चल रही थी. ये सबकुछ उस एक शख़्स यानी नूह अलैहिस्सलाम का इंतक़ाम लेने के लिए किया गया, जिनसे कुफ़्र किया गया था.
15. और बेशक हमने उस तूफ़ान को एक निशानी बना दिया. फिर कोई है, जो इबरत हासिल करे.
16. फिर जान लो कि हमारा अज़ाब और ख़बरदार करना कैसा था ? 
17. और बेशक हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान कर दिया है. फिर कोई है, जो इबरत हासिल करे.
18. हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद ने भी अपने पैग़म्बरों को झुठलाया था. फिर उन पर हमारा अज़ाब और ख़बरदार करना कैसा था ?
19. बेशक हमने एक नहूसत के दिन उन पर मुसलसल तेज़ आंधी चलाई.  
20. जो लोगों को इस तरह उखाड़ फेंकती थी, गोया वे खजूर के उखड़े हुए तने हैं.
21. फिर हमारा अज़ाब और ख़बरदार करना कैसा था ?
22. और बेशक हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान कर दिया है. फिर कोई है, जो इबरत हासिल करे.
23. सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद ने भी पैग़म्बरों को झुठलाया था.
24. फिर वे कहने लगे कि क्या हम एक ऐसे बशर की पैरवी करें, जो हम ही में से है. अगर हम उसकी पैरवी करेंगे, तो हम गुमराही और दीवानगी में मुब्तिला हो जाएंगे.
25. क्या हम सब में से उसी पर नसीहत यानी वही नाज़िल हुई है. बल्कि वह झूठा शेख़ीबाज़ है.
26. वे अनक़रीब क़यामत के दिन जान लेंगे कि कौन झूठा शेख़ीबाज़ है.
27. ऐ सालेह अलैहिस्सलाम ! बेशक हम उनकी आज़माइश के लिए ऊंटनी भेजने वाले हैं. फिर तुम उनके अंजाम का इंतज़ार करो और और सब्र करते रहो.
28. और उन्हें आगाह कर दो कि उनके और ऊंटनी के दरम्यान पानी तक़सीम कर दिया गया है. हर किसी को अपनी बारी पर हाज़िर होना है.
29. फिर उन लोगों ने अपने साथी को बुलाया. फिर उसने ऊंटनी पर तलवार से वार किया और उसकी कूचें काट दीं.
30. फिर हमारा अज़ाब और ख़बरदार करना कैसा था?
31. बेशक हमने उन पर एक निहायत ख़ौफ़नाक आवाज़ भेजी. फिर वे बाड़ लगाने वाले की रौंदी हुई घास की तरह हो गए.
32. और बेशक हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान कर दिया है. फिर कोई है, जो इबरत हासिल करे.
33. लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम ने भी पैग़म्बरों को झुठलाया था.
34. बेशक हमने उन लोगों पर कंकड़-पत्थर बरसाने वाली आंधी भेजी. लेकिन हमने लूत अलैहिस्सलाम के घरवालों को सहर से पहले ही बचा लिया था.
35. यह हमारी नेअमत थी. हम इसी तरह शुक्र अदा करने वालों को जज़ा देते हैं.
36. और बेशक लूत अलैहिस्सलाम ने उन्हें हमारे अज़ाब से ख़बरदार किया था. फिर भी उन लोगों ने शक में मुब्तिला होकर झुठला दिया.
37. और बेशक उन लोगों ने लूत अलैहिस्सलाम के मेहमान फ़रिश्तों के बारे में नाजायज़ ख़्वाहिश की, तो हमने उनकी आंखों की रौशनी ख़त्म कर दी. फिर उनसे कहा कि हमारे अज़ाब और ख़बरदार करने का मज़ा चखो.
38. और बेशक उन पर सुबह सवेरे ही मुस्तक़िल अज़ाब आ गया.
39. फिर उनसे कहा गया कि हमारे अज़ाब और ख़बरदार करने का मज़ा चखो.
40. और बेशक हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान कर दिया है. फिर कोई है, जो इबरत हासिल करे.
41. और बेशक फ़िरऔन की आल के पास भी ख़बरदार करने वाले पैग़म्बर आए.
42. उन्होंने हमारी सब निशानियों को झुठला दिया. फिर हमने उन्हें बड़े ग़ालिब और साहिबे क़ुदरत की शान के मुताबिक़ गिरफ़्त में ले लिया.
43. ऐ अहले मक्का ! क्या तुम्हारे काफ़िर पहले के उन लोगों से अच्छे हैं या ज़ुबूर और आसमानी किताबों में तुम्हारे लिए मुआफ़ी लिखी हुई है.
44. या वे काफ़िर कहते हैं कि हम ग़ालिब रहने वाली मज़बूत जमात हैं?
45. अनक़रीब ही यह जमात शिकस्त खाएगी और ये लोग पीठ फेर कर भाग जाएंगे.
46. बल्कि उनके वादे का वक़्त क़यामत है. और क़यामत बड़ी सख़्त और तल्ख़ है.
47. बेशक गुनाहगार लोग गुमराही और दीवानगी में मुब्तिला हैं.
48. जिस दिन वे लोग मुंह के बल दोज़ख़ की आग में घसीटे जाएंगे. तब उनसे कहा जाएगा कि अब आग में जलने का मज़ा चखो.
49. बेशक हमने हर चीज़ एक मुक़र्रर अंदाज़े से पैदा की है.
50. और हमारा हुक्म तो सिर्फ़ एक बार में ही पूरा हो जाता है, जैसे आंख का झपकना.
51. और बेशक हम तुम्हारे जैसे कितने ही गिरोहों को हलाक कर चुके हैं. फिर कोई है, जो इबरत हासिल करे.
52. और उन्होंने जो कुछ किया, सब आमालनामों में दर्ज है.
53. और हर छोटा और बड़ा अमल उसमें लिख दिया गया है.
54. बेशक परहेज़गार लोग जन्नत के बाग़ों और चश्मों में रहेंगे.
55. वे लोग हक़ की मजलिस में तमाम क़ुदरत के मालिक के क़रीब होंगे.

Friday, July 30, 2021

55 सूरह अर रहमान

सूरह अर रहमान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 78 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अल्लाह बड़ा मेहरबान है.
2. उसी ने रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़ुरआन की तालीम दी.
3. उसी ने इंसान को पैदा किया.
4. उसी ने बयान करना सिखाया.
5. सूरज और चांद उसी के मुक़र्रर हिसाब से चल रहे हैं.
6. और बेलें और शजर उसी को सजदा करते हैं.
7. और उसी ने आसमान को बुलंद किया और इंसाफ़ के लिए तराज़ू रखा,
8. ताकि तुम लोग तराज़ू से तौलने में हद से तजावुज़ न करो.
9. और इंसाफ़ के साथ वज़न को क़ायम करो और वज़न कम न करो.
10. और उसी ने मख़लूक़ के लिए ज़मीन बिछाई.
11. उसमें फल व मेवे और खजूर के दरख़्त हैं, जिनके ख़ोशे ग़िलाफ़ में लिपटे हुए हैं.
12. और उसमें भूसे वाला अनाज और ख़ुशबूदार फल व फूल भी हैं.
13. ऐ इंसानों और जिन्नो ! फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
14. उसी ने इंसान को ठीकरे की तरह खनखनाती हुई मिट्टी से बनाया,
15. और उसी ने जिन्नों को आग के शोलों से पैदा किया.
16. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
17. वही दोनों मशरिक़ों का परवरदिगार है और वही दोनों मग़रिबों का परवरदिगार है.
18. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन सी नेअमतों को झुठलाओगे.
19. उसी ने दो समन्दर रवां किए, जो आपस में मिल जाते हैं.
20. उन दोनों के दरम्यान एक आड़ है और वे अपनी-अपनी हदों से तजावुज़ नहीं करते.
21. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
22. उन दोनों समन्दरों में से मोती और मरजान निकलते हैं.
23. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
24. और पहाड़ों की तरह बुलंद जहाज़ भी उसी के इख़्तियार में हैं, जो समन्दर में चलते फिरते हैं.
25. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे. 
26. ज़मीन की हर शय फ़ानी है.
27. और तुम्हारे परवरदिगार की ज़ात ही बाक़ी रहेगी, जो साहिबे जलाल और बड़ा करम करने वाला है.
28. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
29. आसमानों और ज़मीन की हर मख़लूक़ उसी से मांगती है. वह हर रोज़ नई शान में होता है.
30. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
31. ऐ इंसानो और जिन्नो के गिरोह ! हम अनक़रीब ही तुम्हारी तरफ़ मुतावज्जे होंगे.
32. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
33. ऐ इंसानो और जिन्नो के गिरोह ! अगर तुममें क़ुदरत है कि आसमानों और ज़मीन के किनारों से कहीं निकल सको तो निकल जाओ, लेकिन तुम भाग नहीं सकते, क्योंकि तुम जहां भी जाओगे, वहां भी उसी की सल्तनत होगी.  
34. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
35 तुम दोनों पर आग के शोले और स्याह धुआं छोड़ दिया जाएगा, लेकिन तुम उससे बच नहीं सकोगे.
36. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
37. जब आसमान शिगाफ़्ता हो जाएंगे और जले हुए तेल की तरह गुलाबी हो जाएंगे.
38. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
39. फिर उस दिन न किसी इंसान से उसके गुनाहों के बारे में पूछा जाएगा और न किसी जिन्न से.
40. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
41. गुनाहगार लोग अपने चेहरों की स्याही से पहचान लिए जाएंगे. फिर उन्हें पेशानी के बालों और पैरों से पकड़कर खींचा जाएगा.
42. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे. 
43. उनसे कहा जाएगा कि यही वह जहन्नुम है, जिसे गुनाहगार झुठलाया करते थे.
44. वे उस जहन्नुम और खौलते हुए पानी के दरम्यान घूमते फिरेंगे.
45. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
46. और जो शख़्स अपने परवरदिगार के हुज़ूर में खड़ा होने से डरता रहा, उसके लिए जन्नत के दो बाग़ हैं.
47. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
48. दोनों बाग़ हरीभरी शाख़ों वाले हैं. यानी क़िस्म-क़िस्म के फलों और मेवों से लदे दरख़्तों वाले हैं. 
49. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
50. उन दोनों बाग़ों में दो चश्मे बह रहे हैं.
51. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे. 
52. उन दोनों बाग़ों में हर फल और मेवे की दो-दो क़िस्में हैं.
53. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
54. अहले जन्नत ऐसे बिछौनों पर तकिया लगाए बैठे होंगे, जिनके अस्तर गाढ़े रेशम के होंगे. और दोनों बाग़ों के फल उनके बहुत क़रीब होंगे. 
55. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे. 
56. उनमें निगाहें नीची रखने वाली हूरें होंगी, जिन्हें पहले न किसी इंसान ने छुआ होगा और न किसी जिन्न ने.
57. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे. 
58. गोया वे याक़ूत और मरजान हैं.
59. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
60. अहसान की जज़ा अहसान के सिवा कुछ नहीं है. 
61. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे. 
62. और इनके अलावा जन्नत के दो बाग़ और भी हैं.
63. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे. 
64. वे दोनों बाग़ गहरे सब्ज़ हैं.
65. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
66. उन दोनों बाग़ों में भी दो चश्मे हैं, जो जोश मार रहे हैं.
67. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
68. उन दोनों बाग़ों में भी फल और खजूर और अनार हैं.
69. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
70. उनमें भी ख़ूब सीरत और ख़ूबसूरत हूरें हैं.
71. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
72. ख़ेमों में पर्दानशीं हूरें होंगी.
73. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
74. उन्हें पहले न किसी इंसान ने छुआ होगा और न किसी जिन्न ने.
75. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
76. वे सब्ज़ क़ालीनों और नफ़ीस बिछौनों पर तकिये लगाए बैठे होंगे.
77. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
78. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम्हारे परवरदिगार का नाम बड़ी बरकत वाला है, जो बड़ा साहिबे जलाल और बड़ा करम करने वाला है.

Thursday, July 29, 2021

56 सूरह अल वाक़िआ

सूरह अल वाक़िआ मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 96 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. जब होनी होकर रहेगी यानी क़यामत बरपा होगी.
2. उसके होने में कोई झूठ नहीं है. 
3 वह क़यामत किसी को पस्त करने वाली और किसी को बुलंद करने वाली है. 
4. जब ज़मीन ज़ोर से हिलाई जाएगी, तो वह लरज़ने लगेगी.
5. और पहाड़ टूटकर बिल्कुल रेज़ा-रेज़ा हो जाएंगे. 
6. फिर वे गर्द ग़ुबार बनकर उड़ने लगेंगे.
7. और तुम लोग तीन क़िस्म की जमात में तक़सीम हो जाओगे.
8. फिर पहले दाहिनी तरफ़ वाले. दाहिनी तरफ़ वालों का क्या कहना. यानी वे सुकून से होंगे.
9. और दूसरे बायीं तरफ़ वाले. क्या बायीं तरफ़ वाले. यानी वे बदहाल होंगे. 
10. और तीसरे आगे बढ़ जाने वाले हैं. वे आगे ही बढ़ने वाले हैं. 
11. वे लोग अल्लाह का क़ुर्ब हासिल करने वाले हैं.
12. वे जन्नत के नेअमतों वाले बाग़ों में रहेंगे.
13. एक बड़ी जमात अगले लोगों यानी मुक़र्रिबों में से होगी.
14. और कुछ लोग पिछले यानी दाहिनी तरफ़ वालों में से होंगे. 
15. और वे मुक़र्रिब लोग ज़रनिगार तख़्तों पर बैठे होंगे.
16. वे एक दूसरे के सामने तकिये लगाए बैठे होंगे.
17. हमेशा जवान रहने वाले लड़के उनकी ख़िदमत में इर्द गिर्द घूम रहे होंगे.
18. वे ख़ूबसूरत साग़र और शफ़्फ़ाफ़ शर्बत के जाम लिए हुए उनकी ख़िदमत में हाज़िर रहेंगे.
19. इसे पीने से न उन्हें सरदर्द होगा और न वे बहकेंगे.
20. और जिस क़िस्म के फल और मेवे वे पसंद करेंगे,
21. और जिस परिन्दे का गोश्त वे खाना चाहेंगे, उनके लिए सब मौजूद होगा.
22. और वहां बड़ी आंखों वाली हूरें होंगी,
23. गोया संभाल कर रखे हुए मोती हों.
24. यह उनके नेक आमाल की जज़ा होगी, जो वे किया करते थे.
25. उसमें वे बेहूदा और गुनाह की कोई बात नहीं सुनेंगे.
26. सिर्फ़ उनका कलाम सलाम ही सलाम होगा.
27. और दाहिनी तरफ़ वाले. दाहिनी तरफ़ वालों का क्या कहना.
28. वे वहां होंगे, जहां बिना कांटे की बेरी
29. और गुच्छेदार केले
30. और दूर-दूर तक फैली छांव
31. और बहते पानी के चश्मे
32. और बहुत से फल और मेवे होंगे. 
33. जो न कभी ख़त्म होंगे और न उनके लेने पर कोई रोक टोक ही होगी.
34. और वहां ऊंचे और नरम बिछौने होंगे.
35. बेशक हमने उन हूरों को बहुत ख़ूबसूरत बनाया है.
36. हमने उन्हें कुंआरियां बनाया. 
37. उन्हें मुहब्बत करने वाली और हमउम्र बनाया. 
38. ये सब दायीं तरफ़ वालों के लिए है.
39. उनमें एक बड़ी जमात अगले यानी मुक़र्रिबों में से होगी.  
40. और उनमें एक बड़ी पिछले यानी दायीं तरफ़ वाले लोगों में से भी होगी.
41. और दूसरे बायीं तरफ़ वाले. क्या बायीं तरफ़ वाले. यानी वे बदहाल होंगे.
42. वे दोज़ख़ की आंच और खौलते हुए पानी में
43. और स्याह धुएं के साये में होंगे,
44. जो न ठंडा होगा और न ख़ुशनुमा होगा.
45. बेशक वे लोग इससे पहले दुनिया में ख़ूब एशो आराम में थे.
46. और वे बड़े गुनाह करने पर आमादा रहते थे.
47. और वे कहते थे कि जब हम मर जाएंगे और मिट्टी और हड्डियां हो जाएंगे, तो क्या हम फिर से ज़िन्दा करके उठाए जाएंगे.
48. और क्या हमारे बाप दादा भी दोबारा ज़िन्दा किए जाएंगे?
49. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक अगले और पिछले
50. सब एक मुअय्यन दिन मुक़र्रर वक़्त पर जमा किए जाएंगे.
51. फिर बेशक तुम, ऐ गुमराहों और झुठलाने वालो !
52. तुम्हें ज़क़्क़ूम के दरख़्तों में से खाना होगा.
53. फिर उसी से पेट भरना होगा.
54. फिर खौलता हुआ पानी पीना होगा.
55. फिर इस तरह पानी पिओगे, जैसे बहुत प्यासे ऊंट पीते हैं.
56. यह क़यामत के दिन उन लोगों की मेहमानी होगी.
57. हमने तुम्हें पहली बार पैदा किया था. फिर तुम दोबारा ज़िन्दा किए जाने की तसदीक़ क्यों नहीं करते? 
58. क्या तुमने नहीं देखा कि जिस नुत्फे़ को तुम टपकाते हो,
59. क्या तुम उससे इंसान पैदा करते हो या हम पैदा करते हैं? 
60. हमने तुम्हारी मौत मुक़र्रर कर दी है और हम तुम्हें दोबारा ज़िन्दा करने से भी आजिज़ नहीं हैं.
61. कि हम तुम्हारे जैसों को बदल दें और तुम्हें ऐसी सूरत में पैदा कर दें, जिसे तुम जानते भी न हो.
62. और बेशक तुम पहली पैदाइश को जान चुके हो. क्या फिर भी तुम ग़ौर व फ़िक्र नहीं करते?
63. क्या तुमने देखा, जो कुछ तुम बोते हो.
64. क्या उससे तुम फ़सल उगाते हो या हम उगाते हैं.
65. अगर हम चाहें, तो उसे रेज़ा-रेज़ा कर दें. फिर तुम बातें ही बनाते रह जाओ,
66. वे कहने लगे कि बेशक हम पर तावान पड़ गया. 
67. बल्कि हम महरूम हो गए.
68. क्या फिर भी तुम नहीं देखते कि जो पानी तुम पीते हो.
69. क्या तुम उसे बादलों से बरसाते हो या हम बरसाते हैं.
70. अगर हम चाहें, तो उसे खारा बना दें. फिर तुम शुक्र अदा क्यों नहीं करते.
71. क्या तुम नहीं देखते कि लकड़ी से जो आग तुम सुलगाते हो.
72. क्या उसके शजर को तुमने पैदा किया या हम पैदा करते हैं?
73. हमने आग को याद दहानी का ज़रिया और मुसाफ़िरों के लिए फ़ायदे की चीज़ बनाया.
74. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम अपने अज़ीम परवरदिगार के नाम की तस्बीह किया करो.
75. फिर क़सम है, उन जगहों की, जहां तारे डूबते हैं.
76. और अगर तुम समझो, तो बेशक यह बहुत बड़ी क़सम है. 
77. बेशक यह मुअज़्ज़िज़ क़ुरआन है,
78. जो लौहे महफ़ूज़ में लिखा हुआ है.
79. इसे पाक लोगों के सिवा कोई नहीं छू सकता.
80. यह तमाम आलमों के परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल किया गया है.
81. क्या तुम इस हदीस की तहक़ीर करते हो? 
82. और तुमने अपना रिज़्क़ इसी बात को बना रखा है कि तुम इसे झुठलाते रहो.
83. फिर तुम रूह को वापस क्यों नहीं लौटा लेते, जब वह हलक़ तक पहुंचती है.
84. और तुम उस वक़्त देखते ही रह जाते हो, 
85. और हम उस मरने वाले से तुम्हारी निस्बत ज़्यादा क़रीब होते हैं, लेकिन तुम्हें नज़र नहीं आते.
86. फिर तुम ऐसा क्यों नहीं कर सकते. अगर तुम किसी के इख़्तियार में नहीं हो.
87. तुम रूह को वापस क्यों नहीं फेर लेते. अगर तुम सच्चे हो.
88. फिर अगर वह मरने वाला मक़र्रिबों में से था,
89. तो उसके लिए राहत है और रूहानी रिज़्क़ और नेअमतों से लबरेज़ जन्नत है.
90. और अगर वह दाहिनी तरफ़ वालों में से था,
91. तो उससे कहा जाएगा कि तुम पर दाहिनी तरफ़ वालों की जानिब से सलाम हो.
92. और अगर वह झुठलाने वालों और गुमराहों में से था,
93. तो उसकी मेहमानी खौलते हुए पानी से होगी.
94. और उसे जहन्नुम में डाला जाएगा.
95. बेशक यह क़तई तौर पर हक़्क़ुल यक़ीन है. 
96. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम अपने अज़ीम परवरदिगार के नाम की तस्बीह किया करो.

Wednesday, July 28, 2021

57 सूरह अल हदीद

सूरह अल हदीद मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 29 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. हर वह शय, जो आसमानों में है और जो ज़मीन में है, अल्लाह की तस्बीह करती है. और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
2. आसमानों और ज़मीन की बादशाहत उसी की है, वही ज़िन्दगी बख़्शता है और वही मौत देता है. और वह हर चीज़ पर क़ादिर है.
3. अल्लाह ही अव्वल है और अल्लाह ही आख़िर है. और अल्लाह ही ज़ाहिर है और अल्लाह ही पोशीदा है. और वह हर चीज़ का जानने वाला है. 
4. वह अल्लाह ही है, जिसने आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ छह दिन में की. फिर उसने अर्श पर अपना इख़्तेदार क़ायम किया. वह जानता है जो कुछ ज़मीन में दाख़िल होता है और जो उससे निकलता है. जो कुछ आसमान से नाज़िल होता है और जो उसकी तरफ़ चढ़ता है. वह तुम्हारे साथ है. तुम चाहे जहां भी रहो. और अल्लाह उन आमाल को देख रहा है, जो तुम किया करते हो. 
5. आसमानों और ज़मीन की बादशाहत उसी की है. और सब काम उसी की तरफ़ रुजू होते हैं. 
6. अल्लाह ही रात को दिन में दाख़िल करता है और दिन को रात में दाख़िल करता है. और वह दिलों में पोशीदा राज़ों से भी ख़ूब वाक़िफ़ है.
7. ऐ ईमान वालो ! अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान लाओ. और जो माल व दौलत उसने तुम्हें दिया है, उसमें से कुछ अल्लाह की राह में ख़र्च करो. फिर तुममें से जो लोग ईमान लाए और अल्लाह की राह में ख़र्च करते रहे, उनके लिए बहुत बड़ा अज्र है.
8. और तुम्हें क्या हुआ है कि तुम अल्लाह पर ईमान नहीं लाते. हालांकि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम्हें बुला रहे हैं कि तुम अपने परवरदिगार पर ईमान लाओ. और बेशक अल्लाह तुमसे पुख़्ता अहद ले चुका है, अगर तुम ईमान वाले हो.
9. अल्लाह ही है, जो अपने बरगुज़ीदा बन्दे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर वाज़ेह आयतें नाज़िल करता है, ताकि तुम्हें कुफ़्र की तारीकियों से निकाल कर ईमान के नूर की तरफ़ ले आए. और बेशक अल्लाह बड़ा शफ़क़त वाला बड़ा मेहरबान है. 
10. और तुम्हें क्या हुआ है कि तुम अपना माल अल्लाह की राह में ख़र्च नहीं करते. हालांकि आसमानों और ज़मीन की सारी मिल्कियत अल्लाह की है. तुममें से जिन लोगों ने मक्का फ़तह से पहले अल्लाह की राह में अपना माल ख़र्च किया और जंग की और जिसने बाद में ख़र्च किया, वे दोनों बराबर नहीं हो सकते. उनका दर्जा उन लोगों से बुलंद है, जिन्होंने मक्का फ़तह के बाद माल ख़र्च किया और जंग की. हालांकि अल्लाह ने सबसे हुस्ने आख़िरत का वादा है. और अल्लाह उन आमाल से ख़ूब बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.
11. कौन है, जो अल्लाह को क़र्ज़े हसना दे, जिसे अल्लाह कई गुना बढ़ा दे. और उसके लिए बहुत मुअज़्ज़िज़ अज्र है. 
12. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जिस दिन तुम मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों को देखोगे कि उनका नूर उनके आगे और उनकी दाहिनी तरफ़ चल रहा होगा और उनसे कहा जाएगा- तुम्हें बशारत हो कि आज तुम्हारे लिए जन्नत के वे बाग़ है, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. तुम हमेशा उनमें रहोगे. यह बहुत बड़ी कामयाबी है.
13. उस दिन मुनाफ़िक़ मर्द और मुनाफ़िक़ औरतें ईमान वालों से कहेंगे- शफ़क़त की एक निगाह हमारी तरफ़ भी करो कि हम भी तुम्हारे नूर से कुछ रौशनी हासिल कर लें. इस पर उनसे कहा जाएगा कि तुम अपने पीछे दुनिया में लौट जाओ और वहीं जाकर नूर तलाश करो, जहां तुम इस नूर से इनकार करते थे. फिर उनके दरम्यान एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी, जिसमें एक दरवाज़ा होगा. उसके अंदर की तरफ़ रहमत होगी और बाहर की तरफ़ अज़ाब होगा. 
14. वे मुनाफ़िक़ उन मोमिनों से पुकारते हुए कहेंगे- क्या हम दुनिया में तुम्हारे साथ नहीं थे. इस पर मोमिन कहेंगे कि ज़रूर थे, लेकिन तुमने ख़ुद को मुनाफ़िक़त के फ़ितने में मुब्तिला कर लिया और हमारी बर्बादी का इंतज़ार करते रहे और तुम रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नबुवत और उनके दीन पर शक करते थे. तुम्हारी तमन्नाओं ने तुम्हें धोखे में डाल दिया, यहां तक कि अल्लाह की तरफ़ से तुम्हारी मौत का हुक्म आ पहुंचा और दग़ाबाज़ शैतान ने अल्लाह के बारे में तुम्हें धोखे में रखा. 
15. ऐ मुनाफ़िक़ो ! फिर आज तुमसे कोई फ़िदिया यानी मुआवज़ा क़ुबूल नहीं किया जाएगा और न कुफ़्र करने वाले उन लोगों से लिया जाएगा, जिनका ठिकाना सिर्फ़ दोज़ख़ है और यही तुम्हारा मौला है यानी साथी है और वह बहुत बुरी जगह है.
16. क्या ईमान वालों के लिए अभी वह वक़्त नहीं आया कि उनके दिल अल्लाह के ज़िक्र और उसकी तरफ़ से नाज़िल होने वाले हक़ के लिए नरम हो जाएं. और वे उन लोगों की तरह न हो जाएं, जिन्हें उनसे पहले किताबें दी गई थीं. फिर उन पर एक तवील अरसा बीत गया, तो उनके दिल सख़्त हो गए और उनमें से बहुत से लोग नाफ़रमान हैं.  
17. जान लो कि अल्लाह ही ज़मीन को उसके मुर्दा होने के बाद ज़िन्दा करता है यानी ज़मीन को उसके बंजर होने के बाद शादाब करता है. बेशक हमने तुम्हारे लिए अपनी क़ुदरत की निशानियां वाज़ेह कर दी हैं, ताकि तुम समझ सको. 
18. बेशक सदक़ा देने वाले मर्द और सदक़ा देने वाली औरतें और जिन्होंने अल्लाह को क़र्ज़े हसना दिया, उनके लिए सदक़े के अज्र को कई गुना बढ़ा दिया जाएगा. और उनके लिए बहुत मुअज़्ज़िज़ अज्र है.
19. और जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाए, वे अपने परवरदिगार के नज़दीक सिद्दीक़ और शहीद हैं. उनके लिए सिद्दीक़ों और शहीदों का अज्र है और उन्हीं का नूर भी है. और जिन्होंने कुफ़्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वे असहाबे जहन्नुम हैं.
20. जान लो कि दुनियावी ज़िन्दगी महज़ खेल और तमाशा है और ज़ाहिरी आज़माइश है और तुम्हारा आपस में एक दूसरे पर फ़ख़्र करना, माल और औलाद में एक दूसरे से ज़्यादा की तलब है. दुनियावी ज़िन्दगी की मिसाल तो बारिश की मानिन्द है कि किसानों की लहलहाती फ़सल उन्हें ख़ुश कर देती है. फिर वह पक जाती है. फिर तुम उसे देखते हो कि वह ज़र्द हो गई है. फिर वह रेज़ा-रेज़ा हो जाती है. और आख़िरत में नाफ़रमानों के लिए सख़्त अज़ाब है और फ़रमाबरदारों के लिए अल्लाह की तरफ़ से मग़फ़िरत और ख़ुशनूदी है. दुनियावी ज़िन्दगी तो सिर्फ़ फ़रेब का साजो सामान है.
21. ऐ बन्दों ! तुम अपने परवरदिगार की मग़फ़िरत और जन्नत की तरफ़ तेज़ी से बढ़ो, जिसकी चौड़ाई आसमान और ज़मीन के बराबर है. यह जन्नत उन लोगों के लिए तैयार की गई है, जो अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाए हैं. यह अल्लाह का फ़ज़ल है कि वह जिसे चाहता है, उसे नवाज़ता है. अल्लाह बड़ा फ़ज़ल वाला बड़ा अज़ीम है. 
22. जो भी मुसीबतें ज़मीन पर और तुम लोगों पर आती हैं, वे सब पहले से मौजूद लौहे महफ़ूज़ में लिखी हुई हैं. बेशक यह अल्लाह के लिए बहुत आसान है. 
23. ताकि तुम उस चीज़ के लिए अफ़सोस न करो, जो तुमसे ले ली गई हो और उस पर न इतराओ, जो तुम्हें दी गई हो. और अल्लाह इतराने वाले शेख़ीबाज़ को पसंद नहीं करता.
24. जो लोग ख़ुद भी बुख़्ल करते हैं और दूसरों को भी बुख़्ल करना सिखाते हैं. और जो अल्लाह के अहकाम से मुंह फेरते हैं, तो बेशक अल्लाह भी बेनियाज़ और सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं.
25. बेशक हमने अपने रसूलों को वाज़ेह निशानियां देकर भेजा और उनके साथ किताब और तराज़ू नाज़िल किया, ताकि लोग इंसाफ़ पर क़ायम रहें. हमने ही लोहे को नाज़िल किया, जिसमें सख़्त क़ूवत और लोगों के लिए बहुत से फ़ायदे हैं. और यह इसलिए किया, ताकि अल्लाह ज़ाहिर कर दे कि कौन अल्लाह और उसके रसूलों की बिन देखे मदद करता है. बेशक अल्लाह बड़ा क़ूवत वाला बड़ा ग़ालिब है.
26. और बेशक हमने नूह अलैहिस्सलाम और इब्राहीम अलैहिस्सलाम को भेजा और उन दोनों की औलाद में नबुवत और किताब का सिलसिला जारी किया. फिर उनमें से कुछ लोग हिदायत याफ़्ता हैं और उनमें से बहुत से नाफ़रमान हैं.
27. फिर हमने उन रसूलों के नक़्शे क़दम पर और रसूल भेजे. और हमने उनके पीछे मरयम अलैहिस्सलाम के बेटे ईसा अलैहिस्सलाम को भेजा और हमने उन्हें इंजील अता की. और जिन लोगों ने उनकी पैरवी की, हमने उनके दिलों में शफ़क़त और रहमत पैदा कर दी. और उन्होंने ख़ुद अपने लिए रहबानियत को ईजाद कर लिया था. हमने उन्हें इसका हुक्म नहीं दिया था. लेकिन उन लोगों ने अल्लाह की ख़ुशनूदी हासिल करने की ग़रज़ से दुनिया और उसकी लज़्ज़तों से किनाराकशी की बिदअत शुरू कर ली. फिर वे उस रिआयत पर क़ायम नहीं रह सके, जैसा उसके रिआयत का हक़ था. फिर उनमें से जो लोग ईमान लाए, हमने उन्हें उनका अज्र दे दिया. और उनमें से बहुत से लोग नाफ़रमान हैं.
28. ऐ ईमान वालो ! अल्लाह से डरो यानी परहेज़गारी इख़्तियार करो और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान लाओ. अल्लाह तुम्हें अपनी रहमत से कई गुना अज्र देगा और तुम्हें ऐसा नूर इनायत करेगा, जिसकी रौशनी में तुम दुनिया और आख़िरत में चलोगे. वह तुम्हें बख़्श देगा. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
29. ताकि अहले किताब जान लें कि वे अल्लाह के फ़ज़ल पर कुछ भी क़ुदरत नहीं रखते. और यह फ़ज़ल अल्लाह ही के हाथ में है. वह जिसे चाहता है, उसे नवाज़ता है. और अल्लाह बड़ा फ़ज़ल वाला बड़ा अज़ीम है.

Tuesday, July 27, 2021

58 सूरह अल मुजादिला

सूरह अल मुजादिला मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 22 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक अल्लाह ने उस औरत की बात सुन ली है, जो तुमसे अपने शौहर के बारे में तकरार कर रही थी और अल्लाह से फ़रियाद कर रही थी. और अल्लाह तुम दोनों की गुफ़्तगू सुन रहा था. बेशक अल्लाह ख़ूब सुनने वाला ख़ूब देखने वाला है.
2. तुममें से जो लोग अपनी बीवियों के साथ ज़हार करते हैं, यानी बीवी को मां कह देते हैं, इससे वे उनकी मांयें नहीं हो जातीं. उनकी मांयें तो सिर्फ़ वही हैं, जिन्होंने उन्हें जन्म दिया है और बेशक वे लोग बुरी और झूठी बात कहते हैं. बेशक अल्लाह बड़ा मुआफ़ करने वाला बड़ा बख़्शने वाला है.
3. जो लोग अपनी बीवियों से ज़हार कर बैठें, फिर अपनी बात वापस लें, तो उनके लिए कफ़्फ़ारे में एक गर्दन यानी एक ग़ुलाम को आज़ाद करना लाज़िम है, इससे पहले कि वे एक दूसरे को छुयें. तुम्हें इस बात की नसीहत की जाती है. और अल्लाह उन आमाल से ख़ूब बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.
4. फिर जिसे ग़ुलाम न मिले, तो वे दो महीने तक मुसलसल रोज़े रखें, इससे पहले कि वे एक दूसरे को छुयें. फिर जो ऐसा न कर सकें, तो वे साठ मिस्कीनों को खाना खिलाएं. ये हुक्म इसलिए है, ताकि तुम अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान रखो. और ये अल्लाह की मुक़र्रर की हुई हदें हैं. और काफ़िरों के लिए दर्दनाक अज़ाब है.
5. बेशक जो लोग अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त करते हैं, वे उसी तरह ज़लील किए जाएंगे जिस तरह उनसे पहले के लोग ज़लील किए गए हैं. और बेशक हमने वाज़ेह आयतें नाज़िल की हैं. और काफ़िरों के लिए ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब है.
6. जिस दिन अल्लाह उन सब लोगों को दोबारा ज़िन्दा करके उठाएगा, तो वह उन्हें उनके आमाल से आगाह कर देगा. अल्लाह ने उनके हर अमल को शुमार कर रखा है. हालांकि वे लोग उसे भूल चुके हैं. और अल्लाह हर चीज़ का गवाह है.
7. क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह उन सब चीज़ों को जानता है, जो आसमानों में हैं और जो ज़मीन में है. कहीं भी तीन आदमियों में कोई सरगोशी ऐसी नहीं होती, जिनमें अल्लाह चौथा न हो. और न पांच आदमियों में कोई सरगोशी ऐसी होती है, जिनमें वह छठा न हो. और आदमी चाहे इससे कम हों या ज़्यादा और चाहे जहां कहीं भी हों, वह हमेशा उनके साथ होता है. फिर क़यामत के दिन वह उन्हें उन आमाल से आगाह कर देगा, जो वे लोग किया करते थे. बेशक अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है.
8. क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें सरगोशियों से मना किया गया था. फिर भी वे वही काम करते रहे, जिससे उन्हें रोका गया था. और वे लोग गुनाह और सरकशी और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नाफ़रमानी से मुताल्लिक़ सरगोशियां करते हैं. और जब तुम्हारे सामने हाज़िर होते हैं, तो तुम्हें उस कलमात के साथ सलाम करते हैं, जिनसे अल्लाह ने तुम्हें सलाम नहीं किया. और वे लोग दिल ही दिल में कहते हैं कि अगर वाक़ई ये रसूल सच्चे हैं, तो अल्लाह हमें उन बातों पर अज़ाब क्यों नहीं देता, जो हम कहते हैं? उनके लिए जहन्नुम ही काफ़ी है, जिसमें वे डाले जाएंगे. और वह बहुत बुरी जगह है.
9. ऐ ईमान वालो ! जब तुम आपस में सरगोशी करो, तो गुनाह और सरकशी और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नाफ़रमानी की सरगोशी न किया करो, बल्कि नेकी और परहेज़गारी की सरगोशी करो. और अल्लाह से डरते रहो, जिसके सामने तुम सब जमा किए जाओगे.
10. बेशक बुरी सरगोशियां तो शैतानी हरकतें हैं, जो ईमान वालों को तकलीफ़ पहुंचाने के लिए की जाती हैं. हालांकि वह उन्हें कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकता, जब तक अल्लाह का हुक्म न हो. और ईमान वालों को अल्लाह पर ही भरोसा करना चाहिए.
11. ऐ ईमान वालो ! जब तुमसे कहा जाए कि मजलिसों में दूसरों को बैठने के लिए जगह दो, तो उन्हें जगह दे दिया करो. अल्लाह तुम्हें कुशादगी अता करेगा. जब तुमसे कहा जाए कि उठ जाओ, तो उठ जाया करो. अल्लाह उनके दर्जात बुलंद करेगा, तुममें से जो लोग ईमान लाए और जिन्हें इल्म से नवाज़ा गया है. और अल्लाह उन आमाल से ख़ूब बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.
12. ऐ ईमान वालो ! जब तुम रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से तन्हाई में कोई राज़ की बात करना चाहो, तो उससे पहले कुछ सदक़ा दे दिया करो. ये तुम्हारे लिए बेहतर और पाकीज़ा अमल है. अगर तुम्हारे पास सदक़ा देने के लिए कुछ नहीं है, तो बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला  बड़ा मेहरबान है.
13. क्या तुम रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से तन्हाई में कोई राज़ की कहने से पहले सदक़ा देने की बात से घबरा गए ? फिर जब तुम इतना भी न कर सके और अल्लाह ने तुम्हें मुआफ़ कर दिया, तो तुम पाबंदी से नमाज़ पढ़ो और ज़कात देते रहो. अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो. और अल्लाह उन आमाल से ख़ूब बाख़बर है, जो तुम करते हो.
14. क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जो उस क़ौम से दोस्ती रखते हैं, जिस पर अल्लाह ने ग़ज़ब ढाया है. वे अब न तुम में से हैं और न उनमें से हैं. वे लोग झूठी क़समें खाते हैं. हालांकि वे जानते हैं.
15. अल्लाह ने उन लोगों के लिए सख़्त अज़ाब तैयार कर रखा है. बेशक वह बहुत बुरा काम है, जो वे लोग कर रहे हैं.
16. उन लोगों ने अपनी क़समों को ढाल बना लिया है. फिर वे दूसरों को अल्लाह के रास्ते से रोकते हैं. फिर उनके लिए ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब है.
17. अल्लाह के अज़ाब से न उनका माल उन्हें बचा सकेगा और न उनकी औलाद ही उन्हें बचा पाएगी. वे असहाबे  दोज़ख़ हैं. वे उसमें हमेशा रहेंगे.
18. जिस दिन अल्लाह उन सब लोगों को दोबारा ज़िन्दा करके उठाएगा, तो वे उसके हुज़ूर में भी उसी तरह क़समें खाएंगे, जिस तरह तुम्हारे सामने क़समें खाते हैं. और यह गुमान करते हैं कि वे किसी अच्छी शय यानी रविश पर हैं. तुम उनसे होशियार रहो, बेशक वे लोग झूठे हैं.
19. उन लोगों पर शैतान ने क़ाबू पा लिया है और उन्हें अल्लाह का ज़िक्र भुला दिया है. वे लोग शैतान के गिरोह में शामिल हैं. जान लो कि बेशक शैतान का गिरोह नुक़सान उठाने वाला है.
20. बेशक जो लोग अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त करते हैं, वे ज़लील लोगों में से हैं.
21. अल्लाह ने लिख दिया है कि अल्लाह और उसके रसूल ग़ालिब रहेंगे. बेशक अल्लाह बड़ा क़ूवत वाला बड़ा ग़ालिब है.
22. जो क़ौम अल्लाह और रोज़े आख़िरत पर ईमान रखती है, तुम उसके लोगों को अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त करने वाले लोगों से दोस्ती रखते हुए नहीं देखोगे, अगरचे वे उनके वालिद या उनके बेटे या उनके भाई या उनके क़रीबी रिश्तेदार हों. यही वे लोग हैं, जिनके दिलों में अल्लाह ने ईमान को नक़्श कर दिया है और अपनी रूह से उनकी ताईद की है. और उन्हें जन्नत के उन सदाबहार बाग़ों में दाख़िल किया जाएगा, जिनके नीचे नहरें बहती हैं और वे हमेशा उसमें रहेंगे. अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वे अल्लाह से राज़ी हुए. जान लो कि बेशक यह अल्लाह वालों की जमात है. और अल्लाह वालों की जमात ही कामयाब होने वाली है. 

Monday, July 26, 2021

59 सूरह अल हश्र

सूरह अल हश्र मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 24 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. हर वह शय, जो आसमानों में है और जो ज़मीन में है, अल्लाह की तस्बीह करती है. और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है. 
2. वह अल्लाह ही है, जिसने अहले किताब में से काफ़िरों यानी बनू नज़ीर को पहली जिलावतनी में घरों से जमा करके मदीने से शाम की तरफ़ निकाल दिया. तुम्हें यह गुमान भी न था कि वे निकल जाएंगे और उन्हें यह गुमान था कि उनके मज़बूत क़िले उन्हें अल्लाह की गिरफ़्त से बचा लेंगे. फिर अल्लाह के अज़ाब ने उन्हें वहां से घेरा, जहां से उन्हें गुमान भी न था. अल्लाह ने उनके दिलों में रौब डाल दिया कि वे अपने घरों को ख़ुद अपने हाथों और मोमिनों के हाथों उजाड़ने लगे. फिर ऐ बसीरत वालो ! इससे इबरत हासिल करो.
3. और अगर अल्लाह ने उनके लिए जिलावतन होना नहीं लिखा होता, तो वह उन्हें दुनिया में बहुत सख़्त अज़ाब देता और उनके लिए आख़िरत में भी दोज़ख़ का अज़ाब है.
4. यह इसलिए है कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त की. और जो अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त करेगा, तो बेशक अल्लाह उसे सख़्त अज़ाब देगा.
5. ऐ ईमान वालो ! यहूद और बनू नज़ीर के घेराव के दौरान तुमने खजूर के जो दरख़्त काटे या उन्हें उनकी जड़ों पर खड़ा रहने दिया, तो यह सब अल्लाह ही के हुक्म से था, ताकि वह नाफ़रमानों को रुसवा करे.
6. और उनका जो माल अल्लाह ने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दिलवाया है, उसमें तुम्हारा हक़ नहीं है, क्योंकि तुमने उसके लिए न घोड़े दौड़ाए और न ऊंट. लेकिन अल्लाह अपने रसूलों को जिस पर चाहता है ग़ालिब कर देता है. और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
7. जो माल अल्लाह ने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बस्ती वालों से दिलवाया है, वह ख़ास अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों और मुसाफ़िरों के लिए है, ताकि यह सारा माल सिर्फ़ तुम्हारे अमीरों के दरम्यान ही न रहे, बल्कि तमाम ज़रूरतमंदों तक पहुंचे. और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जो कुछ तुम्हें दें, तो उसे ले लिया करो और जिससे तुम्हें मना करें, तो उससे बाज़ आओ. और अल्लाह से डरते रहो. बेशक अल्लाह सख़्त अज़ाब देने वाला है.
8. इस माल में उन मुफ़लिस मुहाजिरों का भी हिस्सा है, जो अपने घरों और अपने मालों से ख़ारिज किए गए और वे अल्लाह का फ़ज़ल और उसकी ख़ुशनूदी चाहते हैं. और वे अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मदद करते हैं. यही लोग सच्चे मोमिन हैं. 
9. और इस माल में उन लोगों का भी हिस्सा है, जिन्होंने मुहाजिरों से पहले ही मदीना शहर को अपना घर बना लिया और ईमान ले आए. ये लोग उनसे मुहब्बत करते हैं, जो हिजरत करके उनके पास आते हैं. और उनके दिलों में उस माल की निस्बत कोई ख्व़ाहिश और ख़लिश नहीं है, जो मुहाजिरों को दिया जाता है. और अपनी जानों पर उन्हें तरजीह देते हैं, अगरचे वे ख़ुद कितने ही ज़रूरतमंद हों. और जो लोग अपनी नफ़्स के बुख़्ल से बचे रहे, वही कामयाब हैं.
10. और इस माल में उन लोगों का भी हिस्सा है, जो उन मुहाजिरों के बाद आए और अर्ज़ करते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें बख़्श दे और हमारे उन भाइयों को भी, जो हमसे पहले ईमान लाए. और हमारे दिलों में ईमान लाने वालों के लिए किसी भी तरह का कीना और बुग़्ज़ बाक़ी न रखना. ऐ हमारे परवरदिगार ! बेशक तू बड़ा शफ़क़त करने वाला बड़ा मेहरबान है.
11. क्या तुमने उन मुनाफ़िक़ों को नहीं देखा, जो अहले किताब में से काफ़िर हुए अपने भाइयों से कहते हैं कि अगर तुम यहां से निकाले गए, तो हम भी ज़रूर तुम्हारे साथ चल पड़ेंगे. और हम तुम्हारे मामले में कभी किसी का कहना नहीं मानेंगे. और अगर तुमसे जंग की गई, तो हम ज़रूर तुम्हारी मदद करेंगे. और अल्लाह गवाही देता है कि बेशक वे लोग झूठे हैं.
12. अगर काफ़िर मदीना से निकाले गए, तो ये मुनाफ़िक़ उनके साथ नहीं निकलेंगे. और अगर उनसे जंग की गई, तो ये उनकी मदद भी नहीं करेंगे. और अगर उन्होंने उनकी मदद भी की, तो ज़रूर पीठ फेर कर भाग जाएंगे. फिर उन्हें कहीं से मदद भी नहीं मिलेगी.
13. ऐ ईमान वालो ! बेशक उनके दिलों में अल्लाह से ज़्यादा तुम्हारा रौब है. यह इसलिए है कि वह क़ौम समझ नहीं रखती.
14. वे सब मिलकर भी तुमसे जंग नहीं कर सकते, लेकिन क़िलाबंद बस्तियों या दीवारों के पीछे हों, तो अलग बात है. उनकी आपस में सख़्त लड़ाई है. तुम गुमान करते हो कि ये सब एकजुट हैं, लेकिन उनके दिल एक दूसरे से जुदा हैं. यह इसलिए है कि वह क़ौम अक़्ल से काम नहीं लेती.
15. उनका हाल उन लोगों जैसा है, जो उनसे कुछ अरसे पहले ही अपने काम के वबाल का ज़ायक़ा चख चुके हैं और उनके लिए आख़िरत में भी दर्दनाक अज़ाब है.
16. मुनाफ़िक़ों की मिसाल शैतान जैसी है, जब वह इंसान से कहता है कि तू कुफ़्र कर, फिर जब वह कुफ़्र करता है, तो शैतान उससे कहता है कि मैं तुझसे बेज़ार हूं, बेशक मैं अल्लाह से ख़ौफ़ज़दा हूं, जो तमाम आलमों का परवरदिगार है.
17. फिर उन दोनों का अंजाम यह होगा कि दोनों दोज़ख़ में डाले जाएंगे और हमेशा उसमें रहेंगे. और ज़ालिमों की यही सज़ा है.
18. ऐ ईमान वालो ! तुम अल्लाह से डरते रहो. हर किसी को ग़ौर करना चाहिए कि उसने क़यामत के लिए आगे क्या भेजा है. और तुम अल्लाह से डरते रहो. और अल्लाह उन आमाल से ख़ूब बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.
19. और तुम उन लोगों जैसे न हो जाना, जो अल्लाह को भुला बैठे, तो अल्लाह ने उन्हें ऐसा कर दिया कि वे ख़ुद को भूल गए. वही लोग नाफ़रमान हैं.
20. अहले दोज़ख़ और अहले जन्नत किसी भी तरह बराबर नहीं हो सकते. अहले जन्नत ही कामयाब हैं.
21. अगर हम इस क़ुरआन को किसी पहाड़ पर नाज़िल करते, तो तुम देखते कि वह अल्लाह के ख़ौफ़ से झुक जाता और शिगाफ़्ता होकर टुकड़े-टुकड़े हो जाता है. और ये मिसालें हम लोगों के लिए बयान कर रहे हैं, ताकि वे ग़ौर व फ़िक्र करें.
22. वह अल्लाह ही है, जिसके सिवा कोई माबूद नहीं. वह ग़ैब और ज़ाहिर को जानने वाला है. वह बड़ा मेहरबान निहायत रहम करने वाला है.
23. अल्लाह ही है, जिसके सिवा कोई माबूद नहीं. वह हक़ीक़ी बादशाह, पाक ज़ात, सलामत रखने वाला, अमन देने वाला, निगेहबान, ग़ालिब, ज़बरदस्त बड़ाई वाला है. अल्लाह हर उस चीज़ से पाक है, जिसे वे लोग उसका शरीक ठहराते हैं.
24. अल्लाह ही है, जो तमाम मख़लूक़ात को पैदा करने वाला, वजूद बख़्शने वाला, सूरतें बनाने वाला, सब अच्छे नाम उसी के हैं. आसमानों और ज़मीन की हर शय उसी की तस्बीह करती है. और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.

Sunday, July 25, 2021

60 सूरह अल मुम्तहीना

सूरह अल मुम्तहीना मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 13 आयतें हैं. अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है. 1. ऐ ईमान वालो ! तुम हमारे और अपने दुश्मनों को दोस्त मत बनाओ. तुम अपनी दोस्ती की वजह से उन्हें पैग़ाम भेजते हो. हालांकि वे लोग उस दीने हक़ से इनकार करते हैं, जो तुम्हारे पास आया है. वे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को और तुम्हें इस वजह से तुम्हारे वतन से निकालना चाहते हैं कि तुम अल्लाह पर ईमान ले आए हो, जो तुम्हारा परवरदिगार है. अगर तुम हमारी राह में जिहाद करने और हमारी ख़ुशनूदी हासिल करने के लिए निकले हो, तो फिर उनसे दोस्ती मत रखो. तुम उनके पास दोस्ती के ख़ुफ़िया पैग़ाम भेजते हो. हम उससे ख़ूब वाक़िफ़ हैं, जो कुछ तुम पोशीदा रखते हो और जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो. और तुममें से जो कोई ऐसा करेगा, तो वह सीधे रास्ते से भटक गया है. 2. अगर वे लोग तुम पर क़ाबू पा लें, तो देखना कि वे तुम्हारे सरीह दुश्मन हो जाएंगे. वे बुराई के साथ तुम्हारी तरफ़ हाथ भी बढ़ाएंगे और अपनी ज़बानें भी चलाएंगे. और वे चाहते हैं कि तुम भी काफ़िर हो जाओ. 3. क़यामत के दिन न तुम्हारे काफ़िरों व मुशरिकों से रिश्ते नाते कुछ नफ़ा देंगे और न तुम्हारी काफ़िर व मुशरिक औलाद ही कुछ काम आएगी. और क़यामत के दिन अल्लाह तुम्हारे दरम्यान फ़ैसला कर देगा. और अल्लाह तुम्हारे आमाल ख़ूब देख रहा है. 4. बेशक तुम्हारे लिए इब्राहिम अलैहिस्सलाम और उनके साथियों की बेहतरीन मिसाल मौजूद है. जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि हम तुमसे और उन बुतों से जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, बेज़ार हैं. हम तुम सबसे सरीह इनकार करते हैं. हमारे और तुम्हारे दरम्यान उस वक़्त तक ऐलानिया अदावत और दुश्मनी रहेगी, जब तक तुम एक अल्लाह पर ईमान नहीं आते. लेकिन इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने मुंह बोले वालिद यानी अपनी परवरिश करने वाले अपने चाचा आज़र से यह ज़रूर कहा कि मैं आपके लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगूंगा और अल्लाह के सामने मैं आपके लिए कुछ भी इख़्तियार नहीं रखता. ऐ हमारे परवरदिगार ! हमने तुझ पर ही भरोसा किया है और हमने तेरी तरफ़ ही रुजू किया है. और सबको तेरी तरफ़ ही लौटना है. 5. ऐ हमारे परवरदिगार ! तू कुफ़्र करने वाले लोगों के हाथों हमें आज़माइश में मत डालना और तू हमें बख़्श दे. ऐ हमारे परवरदिगार ! बेशक तू बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है. 6. बेशक तुम्हारे लिए उन लोगों की बेहतरीन मिसालें हैं, जो अल्लाह की बारगाह में पेश होने और रोज़े आख़िरत की उम्मीद रखते हैं. और जो मुंह फेरे, तो बेशक अल्लाह भी बेनियाज़ और सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं. 7. मुमकिन है कि अल्लाह तुम्हारे और उन लोगों के दरम्यान दोस्ती पैदा कर दे, जिन्हें तुम अपना दुश्मन समझते हो. और अल्लाह बड़ा क़ादिर है. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है. 8. अल्लाह तुम्हें उनसे दोस्ती करने से मना नहीं करता कि जिन लोगों ने तुमसे तुम्हारे दीन के बारे में जंग नहीं की और न तुम्हें तुम्हारे घरों यानी तुम्हारे वतन से निकाला है. तुम उनके साथ भलाई और इंसाफ़ का सुलूक करो. बेशक अल्लाह इंसाफ़ करने वालों को पसंद करता है. 9. बेशक अल्लाह तुम्हें सिर्फ़ उन्हीं लोगों के साथ दोस्ती करने से मना करता है, जिन्होंने तुमसे दीन के बारे में जंग की और तुम्हें तुम्हारे घरों से निकाला, और तुम्हें निकालने में तुम्हारे दुश्मनों की मदद की. और जो ऐसे लोगों से दोस्ती करेंगे, तो वही लोग ज़ालिम हैं. 10. ऐ ईमान वालो ! जब तुम्हारे पास मोमिन औरतें हिजरत करके आएं तो तुम उन्हें अच्छी तरह आज़मा लो. अल्लाह उनके ईमान को ख़ूब जानता है. फिर अगर तुम्हें उनके मोमिन होने का यक़ीन हो जाए, तो उन्हें काफ़िरों के पास वापस मत भेजो. क्योंकि न ये मोमिन औरतें काफ़िरों के लिए हलाल हैं और न काफ़िर उनके लिए हलाल हैं. और उन काफ़िरों ने जो माल मेहर के तौर पर उन औरतों पर ख़र्च किया हो, वह उन्हें अदा कर दो. और तुम पर कोई गुनाह नहीं है कि तुम उनसे निकाह कर लो, जबकि तुमने उनका मेहर उन्हें अदा कर दिया हो. और तुम भी काफ़िर औरतों को अपने क़ब्ज़े में न रखो और तुम काफ़िरों से वह माल मांग लो, जो तुमने उन औरतों पर ख़र्च किया हो. और वे काफ़िर भी तुमसे वह माल मांग लें, जो उन्होंने उन औरतों पर ख़र्च किया हो. यही अल्लाह का हुक्म है. और वह तुम्हारे दरम्यान फ़ैसला करता है. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है. 11. और अगर तुम्हारी बीवियों में से कोई तुमसे छूटकर काफ़िरों की तरफ़ चली जाए, तो तुम उन्हें सज़ा दो. यानी उनसे जंग करो. जब तुम जंग में ग़ालिब आ जाओ और तुम्हें जो माले ग़नीमत मिले, तो जिनकी बीवियां चली गई हैं, उन्हें उसमें से उतना दे दो, जितना वे लोग मेहर के तौर पर ख़र्च कर चुके हैं. और उस अल्लाह से डरते रहो, जिस पर तुम ईमान लाए हो. 12. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जब तुम्हारे पास मोमिन औरतें इस बात पर बैअत करने के लिए आएं कि वे अल्लाह के साथ न किसी को शरीक करेंगी, और न चोरी करेंगी, न बदकारी करेंगी, न अपनी औलाद को क़त्ल करेंगी और न अपने हाथ व पांव के सामने गढ़कर कोई बोहतान लाएंगी और न किसी नेक काम में तुम्हारी नाफ़रमानी करेंगी, तो तुम उनसे बैअत कर लिया करो. और अल्लाह से उनके लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगो. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
13. ऐ ईमान वालो ! तुम ऐसी क़ौम से दोस्ती मत रखो, जिस पर अल्लाह ग़ज़बनाक हुआ है. बेशक वे आख़िरत से उसी तरह मायूस हैं, जिस तरह काफ़िरों को मुर्दों के दोबारा ज़िन्दा होने की उम्मीद नहीं है.

Saturday, July 24, 2021

61 सूरह अल सफ़

सूरह अल सफ़ मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 14 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. हर शय, जो आसमानों में है और जो ज़मीन में है, अल्लाह की तस्बीह करती है और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
2. ऐ ईमान वालो ! तुम ऐसी बातें क्यों कहते हो, जो तुम ख़ुद नहीं करते.
3. अल्लाह के नज़दीक यह बहुत नापसंदीदा बात है कि तुम ऐसी बात कहो, जो ख़ुद नहीं करते.
4. बेशक अल्लाह उन लोगों को पसंद करता है, जो उसकी राह में इस तरह सफ़ बांध कर लड़ते हैं, गोया वे सीसा पिलाई हुई दीवार हों.
5. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वक़्त याद करो, जब मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम से कहा कि ऐ मेरी क़ौम ! तुम मुझे क्यों अज़ीयत देते हो. हालांकि तुम ख़ूब जानते हो कि मैं तुम्हारी तरफ़ अल्लाह का भेजा हुआ रसूल हूं. फिर जब वे लोग टेढ़े हो गए, तो अल्लाह ने भी उनके दिलों को फेर दिया. और अल्लाह नाफ़रमान क़ौम को हिदायत नहीं देता.  
6. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो, जब मरयम अलैहिस्सलाम के बेटे ईसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ बनी इस्राईल ! मैं तुम्हारी तरफ़ अल्लाह का भेजा हुआ रसूल हूं और मुझसे पहले आई तौरात की तसदीक़ करता हूं और अपने बाद आने वाले रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बशारत देता हूं, जिनका नाम आसमानों पर अहमद है. फिर जब वे उनके पास वाज़ेह निशानियों के साथ आए, तो वे लोग कहने लगे कि यह सरीह जादू है. 
7. और उस शख़्स से बढ़कर ज़ालिम कौन हो सकता है, जो अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधे, जबकि उसे इस्लाम की तरफ़ बुलाया जा रहा है. और अल्लाह ज़ालिमों की क़ौम को हिदायत नहीं देता. 
8. वे लोग चाहते हैं कि अल्लाह के नूर को अपनी फूंक से बुझा दें. हालांकि अल्लाह अपने नूर को मुकम्मल करने वाला है. अगरचे काफ़िरों को कितना ही बुरा लगे.
9. वह अल्लाह ही है, जिसने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हिदायत और दीने हक़ देकर भेजा, ताकि उसे तमाम दीनों पर ग़ालिब कर दे. अगरचे मुशरिकों को कितना ही बुरा लगे.
10. ऐ ईमान वालो ! क्या हम तुम्हें ऐसी तिजारत बताएं, जो तुम्हें आख़िरत के दर्दनाक अज़ाब से बचा ले. 
11. तुम अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कामिल ईमान लाओ और अल्लाह की राह में अपने माल और जान से जिहाद करो. यह तुम्हारे लिए बेहतर है. अगर तुम जानते हो. 
12. अल्लाह तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा और तुम्हें जन्नत के उन बाग़ों में दाख़िल करेगा, जिनके नीचे नहरें बहती हैं और तुम्हें ऐसे पाक़ीज़ा घरों में रखेगा, जो हमेशा रहने वाली जन्नत में हैं. यह बहुत बड़ी कामयाबी है.
13. और वह तुम्हें ऐसी नेमत भी अता करेगा, जिसे तुम बहुत चाहते हो. और तुम्हें अनक़रीब अल्लाह की तरफ़ से मदद और फ़तह हासिल होगी. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम मोमिनों को यह बशारत दे दो. क़ाबिले ग़ौर है कि यह ख़ुशख़बरी मक्का और फ़ारस और रोम की फ़तह की शक्ल में ज़ाहिर हुई.
14. ऐ ईमान वालो ! अल्लाह के मददगार बन जाओ, जिस तरह मरयम अलैहिस्सलाम के बेटे ईसा अलैहिस्सलाम ने हवारियों यानी अपने साथियों से कहा था कि अल्लाह के रास्ते की तरफ़ बुलाने में मेरे मददगार कौन हैं, तो उन्होंने कहा कि हम अल्लाह के मददगार हैं. फिर बनी इस्राईल में से एक तबक़ा ईमान ले आया और एक तबक़ा काफ़िर हो गया. हमने ईमान लाने वाले लोगों की उनके दुश्मनों के मुक़ाबले में मदद की, तो वे ग़ालिब हो गए.

Friday, July 23, 2021

62 सूरह अल जुमा

सूरह अल जुमा मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 11 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. हर शय, जो आसमानों में है और जो ज़मीन में है, अल्लाह की तस्बीह करती है, जो हक़ीक़ी बादशाह है, पाक है. वह बड़ा ग़ालिब  बड़ा हिकमत वाला है.
2. वह अल्लाह ही है, जिसने अनपढ़ लोगों में से एक मुअज़्ज़िज़ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भेजा, जो उन्हें आयतें पढ़कर सुनाते हैं और उन्हें पाक करते हैं और उन्हें किताब और हिकमत की तालीम देते हैं. बेशक इससे पहले वे लोग सरीह गुमराही में मुब्तिला थे.
3. और अल्लाह ने उनमें से दूसरे लोगों की तरफ़ भी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भेजा, जो अभी उन लोगों से नहीं मिले यानी जो लोग उनके बाद वाले ज़मानों में क़यामत तक दुनिया में आते रहेंगे. और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
4. यह अल्लाह का फ़ज़ल है. वह जिसे चाहता है, उसे नवाज़ता है. और अल्लाह बड़ा फ़ज़ल वाला बड़ा अज़ीम है. 
5. जिन लोगों पर तौरात का बोझ डाला गया. फिर उन्होंने उसे नहीं उठाया. उनकी मिसाल गधे जैसी है, जिस पर बड़ी-बड़ी किताबें लदी हुई हों. उस क़ौम की मिसाल कितनी बुरी है, जिसने अल्लाह की आयतों को झुठलाया और अल्लाह ज़ालिमों की क़ौम को हिदायत नहीं देता.
6. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ऐ यहूदियो ! अगर तुम यह गुमान करते हो कि सब लोगों को छोड़कर सिर्फ़ तुम ही अल्लाह के दोस्त हो, तो तुम मौत की तमन्ना करो. अगर तुम सच्चे हो.
7. और वे लोग मौत की तमन्ना कभी नहीं करेंगे, क्योंकि वे अपने हाथों बहुत कुछ आगे भेज चुके हैं. और अल्लाह ज़ालिमों से ख़ूब वाक़िफ़  है.
8. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि जिस मौत से तुम लोग भागते हो, वह तुम्हें ज़रूर मिलेगी. फिर तुम ग़ैब और ज़ाहिर को जानने वाले अल्लाह की तरफ़ लौटा दिए जाओगे. वह तुम्हें उन आमाल से आगाह कर देगा, जो तुम किया करते थे. 
9. ऐ ईमान वालो ! जब जुमे के दिन नमाज़ के लिए अज़ान दी जाए, तो फ़ौरन अल्लाह के ज़िक्र यानी नमाज़ और ख़ुत्बे की तरफ़ चल पड़ो और ख़रीद-फ़रोख़्त यानी कारोबार छोड़ दो. यह तुम्हारे लिए बेहतर है. अगर तुम जानते हो.
10. फिर जब नमाज़ मुकम्मल हो जाए, तो ज़मीन में जहां चाहे जाओ और अल्लाह का फ़ज़ल यानी रिज़्क़ तलाश करो और कसरत से अल्लाह का ज़िक्र करते रहो, ताकि तुम कामयाबी पाओ.
11. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब उन लोगों ने कोई तिजारत या खेल तमाशा देखा, तो उसकी तरफ़ दौड़ पड़े और तुम्हें ख़ुत्बे में खड़ा हुआ छोड़ दिया. तुम कह दो कि जो कुछ अल्लाह के पास है, वह खेल तमाशे और तिजारत से कहीं बेहतर है. और अल्लाह बेहतरीन रिज़्क़ देने वाला है.

Thursday, July 22, 2021

63 सूरह अल मुनाफ़िक़ून

सूरह अल मुनाफ़िक़ून मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 11 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जब मुनाफ़िक़ तुम्हारे पास आकर कहते हैं कि हम गवाही देते हैं कि बेशक आप अल्लाह के रसूल हैं. और अल्लाह भी जानता है कि बेशक तुम उसके रसूल हो. और अल्लाह गवाह है कि बेशक मुनाफ़िक़ झूठे हैं. 
2. उन्होंने अपनी क़समों को ढाल बना रखा है. फिर वे लोगों को अल्लाह के रास्ते से रोकते हैं. बेशक वह बहुत ही बुरा है, जो कुछ वे लोग कर रहे हैं.  
3. यह इसलिए है कि वे लोग ज़बान से ईमान लाए, फिर दिल से काफ़िर ही रहे, तो उनके दिलों पर मुहर लगा दी गई. फिर वे कुछ नहीं समझते.
4. फिर जब तुम उन्हें देखोगे, तो जिस्म की वजह से तुम्हें बहुत अच्छे लगेंगे और गुफ़्तगू ऐसी करेंगे कि तुम ग़ौर से सुनते रह जाओ. लेकिन यह ऐसा है, जैसे दीवार के सहारे खड़ी हुई लकड़ियां. वे हर बुलंद आवाज़ पर गुमान करते हैं कि उन पर कोई मुसीबत आ गई है. वे मुनाफ़िक़ तुम्हारे दुश्मन हैं. फिर तुम उनसे बचे रहो. अल्लाह उन्हें क़त्ल करे. वे कहां भटक रहे हैं.
5. और जब उनसे कहा जाता है कि आओ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम्हारे लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगें, तो वे अपने सर झटक देते हैं. और तुम उन्हें देखोगे कि वे तकब्बुर करते हुए मुंह फेर लेते हैं.
6. उनके हक़ में बराबर है कि तुम उनके लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगो या न मांगो. क्योंकि अल्लाह उन्हें हरगिज़ नहीं बख़्शेगा. बेशक अल्लाह नाफ़रमान क़ौम को हिदायत नहीं देता.
7. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यही वे लोग हैं, जो कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास रहने वाले लोगों पर ख़र्च न करो, यहां तक कि वे सब उन्हें छोड़कर चले जाएं. हालांकि आसमानों और ज़मीन के तमाम ख़ज़ाने अल्लाह ही के हैं, लेकिन मुनाफ़िक़ यह नहीं समझते.
8. वे लोग कहते हैं कि अगर हम लौट कर मदीने पहुंचे, तो इज़्ज़त वाले लोग वहां से ज़लील लोगों यानी मुसलमानों को निकाल देंगे. हालांकि इज़्ज़त तो सिर्फ़ अल्लाह के लिए और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए और मोमिनों के लिए है, लेकिन मुनाफ़िक़ यह नहीं जानते. 
9. ऐ ईमान वालो ! तुम्हारा माल और तुम्हारी औलाद कहीं तुम्हें अल्लाह के ज़िक्र से ग़ाफ़िल न कर दें. जो लोग ऐसा करेंगे, तो वही नुक़सान उठाने वाले हैं.
10. और उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करो, जो रिज़्क़ हमने तुम्हें दिया है, इससे पहले कि तुम में से किसी को मौत आ जाए. फिर वह कहने लगे कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तूने मुझे थोड़ी सी मोहलत और क्यों नहीं दी, ताकि मैं सदक़ा करता और नेक लोगों में शामिल हो जाता. 
11. और अल्लाह किसी को मोहलत नहीं देता, जब उसकी मौत का वक़्त आ जाता है. और अल्लाह उन आमाल से ख़ूब बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.

Wednesday, July 21, 2021

64 सूरह अत ताग़ाबुन

सूरह अत ताग़ाबून मक्का या मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 18 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. हर शय, जो आसमानों में है और जो ज़मीन में है, अल्लाह की तस्बीह करती है. उसी की बादशाहत है और वही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें उसी के लिए हैं. और वह हर चीज़ पर क़ादिर है.
2. वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें पैदा किया है. फिर तुममें से कोई काफ़िर है और कोई मोमिन है. और अल्लाह तुम्हारे आमाल को देख रहा है.
3. उसी ने आसमानों और ज़मीन की हक़ के साथ तख़लीक़ की है. और उसी ने तुम्हारी सूरतें बनाईं, तो बहुत अच्छी सूरतें बनाईं. और सबको उसकी तरफ़ ही लौटना है. 
4. जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, वह जानता है. और उसे उसका भी इल्म है, जो कुछ तुम पोशीदा रखते हो या जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो. और अल्लाह दिलों में पोशीदा राज़ों से भी ख़ूब वाक़िफ़ है.
5. क्या तुम्हें उन लोगों की ख़बर नहीं मिली, जिन्होंने तुमसे पहले कुफ़्र किया था. उन्होंने दुनिया में अपने काम का वबाल चख लिया और आख़िरत में भी उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है.
6. यह इसलिए है कि उनके पास उनके रसूल वाज़ेह निशानियां लेकर आते थे, तो वे लोग कहते थे कि क्या हमारे जैसे बशर ही हमें हिदायत देंगे. फिर उन्होंने कुफ़्र किया और मुंह फेर लिया. और अल्लाह ने भी उनकी परवाह नहीं की. और अल्लाह बेनियाज़ और सज़ावारे हम्द और सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं.
7. कुफ़्र करने वाले लोगों को गुमान है कि वे दोबारा ज़िन्दा करके उठाए नहीं जाएंगे. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्यों नहीं, मेरे परवरदिगार की क़सम. तुम ज़रूर ज़िन्दा करके उठाए जाओगे. फिर तुम्हें उन आमाल से आगाह कर दिया जाएगा, जो तुम किया करते थे. और यह अल्लाह के लिए बहुत आसान है.  
8. फिर तुम अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उस नूर पर ईमान लाओ, जिसे हमने नाज़िल किया है. और अल्लाह उन आमाल से ख़ूब बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.
9. जिस दिन वह जमा होने वाले दिन तुम सबको मैदाने हश्र में जमा करेगा, तो वह दिन नुक़सान का होगा. जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो अल्लाह उनके आमालनामों से उनके गुनाह मिटा देगा और उन्हें जन्नत के उन बाग़ों में दाख़िल करेगा, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. वे उनमें हमेशा रहेंगे. यह बहुत बड़ी कामयाबी है.
10. और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही दोज़ख़ वाले हैं और हमेशा उसमें रहेंगे. और वह बहुत बुरी जगह है.
11. अल्लाह के हुक्म के बिना किसी पर कोई मुसीबत नहीं आती. जो अल्लाह पर ईमान लाता है, तो अल्लाह उसके दिल को हिदायत देता है. और अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है.
12. और तुम अल्लाह की इताअत करो और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो. फिर अगर तुमने नाफ़रमानी की, तो बेशक हमारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़िम्मे सिर्फ़ वाज़ेह तौर पर अहकाम पहुंचा देना है.
13. अल्लाह ही है, जिसके सिवा कोई माबूद नहीं और मोमिनों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए.
14. ऐ ईमान वालो ! बेशक तुम्हारी बीवियों और तुम्हारी औलादों में से कुछ तुम्हारे दुश्मन हैं. फिर तुम उनसे होशियार रहो. और अगर तुम उन्हें मुआफ़ कर दो और दरगुज़र करो और बख़्श दो, तो बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला और बड़ा मेहरबान है.
15. बेशक तुम्हारा माल और तुम्हारी औलादें महज़ आज़माइश ही हैं और अल्लाह की बारगाह में बहुत बड़ा अज्र है.
16. फिर तुम अल्लाह से डरते रहो, जितना तुमसे हो सके. और उसके अहकाम सुनो और उसकी इताअत करो. और उसकी राह में ख़र्च करो. यह तुम्हारे लिए बेहतर है. और जो लोग अपने नफ़्स के बुख़्ल से महफ़ूज़ रहे, तो वही बड़ी कामयाबी पाने वाले हैं.
17. अगर तुम अल्लाह को क़र्ज़े हसना दोगे यानी उसकी राह में ख़र्च करोगे और उसकी मख़लूक़ से हुस्ने सुलूक करोगे, तो वह उसे कई गुना बढ़ा देगा और तुम्हें बख़्श देगा. और अल्लाह बड़ा शुक्र क़ुबूल करने वाला, बड़ा हलीम है.
18. अल्लाह ग़ैब और ज़ाहिर का जानने वाला, बड़ा ग़ालिब व बड़ा हकीम है.

Tuesday, July 20, 2021

65 सूरह अत तलाक़

सूरह अत तलाक़ मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 12 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मुसलमानों से कह दो कि जब तुम अपनी बीवियों को तलाक़ दो, तो उनकी पाकी के वक़्त तलाक़ दो और इद्दत का शुमार रखो और अल्लाह से डरो, जो तुम्हारा परवरदिगार है. उन्हें उनके घरों से न निकालो और न वे ख़ुद घर से निकलें, सिवाय इसके कि वे कोई सरीह बेहयाई करें. ये अल्लाह की मुक़र्रर की हुई हदें हैं और जो अल्लाह की हदों से तजावुज़ करेगा, तो बेशक वह अपनी जान पर ज़ुल्म करेगा. तुम नहीं जानते कि शायद अल्लाह इसके बाद बेहतरी की कोई सूरत पैदा कर दे.
2. फिर जब वे औरतें अपनी मुक़र्रर मियाद के ख़त्म होने के क़रीब पहुंचें, तो तुम उन्हें भलाई के साथ अपनी ज़ौजियत में रोक लो या उन्हें भलाई के साथ जुदा कर दो. और तलाक़ के वक़्त तुम अपने लोगों में से दो आदिल मर्दों को गवाह बना लो और गवाही अल्लाह के लिए क़ायम किया करो. इन बातों के ज़रिये उस शख़्स को नसीहत की जाती है, जो अल्लाह और आख़िरत पर ईमान रखता है. और जो अल्लाह से डरता है, तो वह उसके लिए निजात की राह पैदा कर देगा.
3. और अल्लाह उसे ऐसी जगह से रिज़्क़ देता है, जहां से उसे गुमान भी नहीं होता. और जो शख़्स अल्लाह पर भरोसा करता है, तो उसके लिए अल्लाह ही काफ़ी है. बेशक अल्लाह अपना काम मुकम्मल करने वाला है. बेशक अल्लाह ने हर चीज़ का एक अंदाज़ा मुक़र्रर कर रखा है.
4. और तुम्हारी जो मुतल्लिक़ा औरतें हैज़ से मायूस हो चुकी हैं, अगर तुम्हें उनकी इद्दत में शक हो, तो उनकी इद्दत तीन महीने है और वे औरतें जिन्हें हैज़ नहीं आया, तो उनकी भी यही इद्दत है. और हामिला औरतों की इद्दत उनके बच्चे की पैदाइश है. और जो शख़्स अल्लाह से डरता है, तो वह उसके काम में आसानी पैदा कर देता है.
5. यह अल्लाह का हुक्म है, जो उसने तुम पर नाज़िल किया है. और जो शख़्स अल्लाह से डरता है, तो वह उसके गुनाहों को उसके आमालनामे से मिटा देता है और उसके अज्र को बढ़ा देता है.
6. तुम उन मुतल्लिक़ा औरतों को अपनी गुंजाइश के मुताबिक़ वहीं रखो, जहां तुम ख़ुद रहते हो और उन्हें कोई तकलीफ़ मत पहुंचाओ कि वे तंगी में मुब्तिला हो जाएं. अगर वे हामिला हों, तो बच्चे की पैदाइश तक उनका ख़र्च देते रहो. फिर अगर वे तुम्हारे कहने से बच्चे को दूध पिलाएं, तो उन्हें उनकी उजरत दो और आपस में एक दूसरे के साथ भलाई का मशवरा कर लिया करो. और अगर कोई इख़्तिलाफ़ हो, तो उसे कोई दूसरी औरत दूध पिला देगी.
7. साहिबे वुसअत को अपनी वुसअत यानी गुंजाइश के मुताबिक़ ख़र्च करना चाहिए और जिस पर उसका रिज़्क़ तंग कर दिया गया हो, तो वह उसी में से ख़र्च करे, जो उसे अल्लाह ने दिया है. अल्लाह किसी शख़्स को सिर्फ़ उतनी ही तकलीफ़ देता है, जितनी उसे बर्दाश्त की क़ूवत दी है. अल्लाह अनक़रीब मुश्किल के बाद आसानी अता करेगा.
8. और बहुत सी बस्तियां ऐसी थीं, जिनके बाशिन्दों ने अपने परवरदिगार के हुक्म और उसके रसूलों से सरकशी की, तो हमने उनसे बड़ा सख़्त हिसाब लिया और उन्हें बुरे अज़ाब में मुब्तिला कर दिया.
9. फिर उन्होंने अपने कामों का वबाल चख लिया और उनके काम का अंजाम नुक़सान ही था. 
10. अल्लाह ने उनके लिए आख़िरत में भी सख़्त अज़ाब तैयार कर रखा है. फिर अल्लाह से डरते रहो, ऐ अक़्ल वालो ! जो ईमान लाए हो. बेशक अल्लाह ने तुम्हारी तरफ़ ज़िक्र यानी क़ुरआन नाज़िल किया है. 
11. अल्लाह ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भी भेजा है, जो तुम्हें अल्लाह की वाज़ेह आयतें पढ़कर सुनाते हैं, ताकि जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, उन्हें कुफ़्र के अंधेरे से निकाल कर ईमान के नूर की तरफ़ ले आएं. और जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो अल्लाह उन्हें जन्नत के उन बाग़ों में दाख़िल करेगा, जिनके नीचे नहरें बहती हैं और वे उनमें हमेशा आबाद रहेंगे. बेशक अल्लाह ने उनके लिए बहुत अच्छा रिज़्क़ तैयार कर रखा है.
12. अल्लाह ही है, जिसने तबक़ दर तबक़ सात आसमान बनाए और उसी तरह ज़मीन बनाई. उनके दरम्यान अल्लाह का हुक्म नाज़िल होता रहता है, ताकि तुम जान लो कि बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है. और बेशक अल्लाह अपने इल्म से हर चीज़ का अहाता किए हुए है.

Monday, July 19, 2021

66 सूरह अत तहरीम

सूरह अत तहरीम मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 12 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम ख़ुद पर वह चीज़ क्यों हराम करते हो, जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए हलाल की है. तुम अपनी बीवियों की ख़ुशी चाहते हो. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
2. ऐ ईमान वालो ! बेशक अल्लाह ने तुम्हारे लिए क़समों को तोड़ देने का कफ़्फ़ारा फ़र्ज़ कर दिया है और अल्लाह ही तुम्हारा मौला है. और वह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
3. और जब नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी एक बीवी से राज़ की कोई बात कही. फिर जब वे दूसरी से उसका ज़िक्र कर बैठीं और अल्लाह ने उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ज़ाहिर कर दिया. फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी बीवी को कुछ बात बताई और कुछ नहीं बताई. फिर जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें राज़फ़ाश करने से आगाह किया, तो वे कहने लगीं कि आपको किसने बताया? नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा कि मुझे उसने बताया, जो बड़ा साहिबे इल्म बड़ा बाख़बर है.
4. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवियो ! अगर तुम दोनों अल्लाह की बारगाह में तौबा कर लो, तो तुम्हारे लिए बेहतर है. क्योंकि तुम्हारे दिल माइल हो गए हैं. अगर तुम दोनों इस बात पर एक दूसरे की मदद करोगी, तो बेशक अल्लाह ही उनका मौला है. और जिब्रईल अलैहिस्सलाम और नेक मोमिन और इसके बाद तमाम फ़रिश्ते भी उनके मददगार हैं.
5. अगर वे तुम्हें तलाक़ दे दें, तो अजब नहीं कि उनका परवरदिगार उन्हें तुम्हारे बदले तुमसे अच्छी बीवियां अता करे, जो मुसलमान, मोमिन, फ़रमाबरदार, तौबा करने वाली, इबादत गुज़ार, रोज़ा रखने वाली, शौहर वाली और कुंवारियां हों.
6. ऐ ईमान वालो ! तुम ख़ुद को और अपने घरवालों को दोज़ख़ की आग से बचाओ, जिसका ईंधन इंसान और पत्थर हैं. उस पर बेहद सख़्त मिज़ाज ताक़तवर फ़रिश्ते मुक़र्रर हैं, जो अल्लाह के किसी भी हुक्म की नाफ़रमानी नहीं करते. और वही करते हैं, जिसका उन्हें हुक्म दिया जाता है.  
7. ऐ कुफ़्र करने वाले लोगो ! आज कोई माज़ेरत मत करो. बेशक तुम्हें उसका बदला दिया जाएगा, जो कुछ तुम किया करते थे.
8. ऐ ईमान वालो ! तुम अल्लाह से सच्चे दिल से तौबा करो. उम्मीद है कि तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारे आमालनामे से तुम्हारे गुनाह मिटा दे और तुम्हें जन्नत के उन बाग़ों में दाख़िल करे, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. उस दिन अल्लाह अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके साथ ईमान लाने वाले लोगों को रुस्वा नहीं करेगा. उनका नूर उनके आगे और दाहिनी तरफ़ रौशनी करता हुआ चल रहा होगा. और वे लोग अल्लाह से अर्ज़ करेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमारे लिए हमारा नूर मुकम्मल कर और हमें बख़्श दे. बेशक तू हर चीज़ पर क़ादिर है.
9. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद करो और उन पर सख़्ती करो. उनका ठिकाना जहन्नुम है और वह बहुत बुरी जगह है. 
10. अल्लाह ने उन कुफ़्र करने वाले लोगों के लिए नूह अलैहिस्सलाम की बीवी वाहेला और लूत अलैहिस्सलाम की बीवी वाएला की मिसाल बयान की है. वे दोनों हमारे बन्दों में से दो नेक बन्दों के निकाह में थीं. फिर दोनों ने उनसे ख़यानत की, तो उनके शौहर अल्लाह के मुक़ाबिल उनके कुछ काम नहीं आए. और उनसे कहा गया कि दोज़ख़ में जाने वालों के साथ तुम भी उसमें चली जाओ.
11. और अल्लाह ने ईमान वाले लोगों के लिए फ़िरऔन की बीवी आसिया की मिसाल बयान की है. जब उन्होंने अल्लाह से अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तू मेरे लिए जन्नत में अपने पास एक घर बना दे और मुझे फ़िरऔन और उसके बुरे आमाल से निजात दे और मुझे ज़ालिमों की क़ौम से भी निजात दे.
12. और दूसरी मिसाल इमरान की बेटी मरयम अलैहिस्सलाम की है, जिन्होंने अपनी अस्मत की हिफ़ाज़त की, तो हमने उनमें अपनी रूह फूंक दी. और उन्होंने अपने परवरदिगार के कलाम और उसकी किताबों की तसदीक़ की. और वे फ़रमाबरदारों में से थीं. 

Sunday, July 18, 2021

67 सूरह अल मुल्क

सूरह अल मुल्क मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 30 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अल्लाह बड़ा बारकत है, जिसके हाथ में तमाम आलमों की बादशाहत है और वह हर चीज़ पर क़ादिर है.
2. जिसने मौत और ज़िन्दगी को पैदा किया, ताकि तुम्हें आज़माये कि तुममें से कौन अच्छे अमल करता है. और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा बख़्शने वाला है. 
3. जिसने तबक़ दर तबक़ सात आसमान बनाए. तुम मेहरबान अल्लाह की तख़लीक़ में कोई फ़र्क़ नहीं देखोगे. तुम निगाह उठाकर देखो कि क्या तुम्हें उसकी तख़लीक़ में कोई शिगाफ़ नज़र आती है.
4. फिर तुम उसकी तख़लीक़ को निगाह उठाकर देखो, तो हर बार निगाह कोई भी नुक़्स तलाश करने में नाकाम होकर और थक कर तुम्हारी तरफ़ लौट आएगी.
5. और बेशक हमने दुनिया के आसमान को चांद, सूरज और सितारों से सजाया. और हमने उन्हें शैतानों को मारने का ज़रिया बनाया और उनके लिए दहकती हुई आग का अज़ाब तैयार कर रखा है. 
6. और जिन लोगों ने अपने परवरदिगार को मानने से इनकार किया, उनके लिए जहन्नुम का अज़ाब है और वह बहुत बुरी जगह है. 
7. जब वे लोग जहन्नुम में डाले जाएंगे, तो उसकी बड़ी ख़ौफ़नाक आवाज़ सुनेंगे और वह आग जोश मार रही होगी.
8. गोया वह शिद्दते ग़ज़ब से शिगाफ़्ता हो जाएगी यानी फट जाएगी. जब उसमें कोई फ़ौज डाली जाएगी, तो उसके दरोग़ा उनसे पूछेंगे- क्या तुम्हारे पास कोई ख़बरदार करने वाला नहीं आया था?
9. वे लोग कहेंगे- क्यों नहीं, बेशक हमारे पास ख़बरदार करने वाला आया था, लेकिन हमने उसे झुठला दिया और हमने कहा कि अल्लाह ने कोई चीज़ नाज़िल नहीं की, लेकिन तुम बड़ी गुमराही में मुब्तिला हो.
10. और वे लोग कहेंगे कि अगर हम उनकी बात सुनते और समझते, तो आज दोज़ख़ वालों में शामिल नहीं होते.
11. फिर वे लोग अपने गुनाहों का ऐतराफ़ कर लेंगे. दोज़ख़ वाले लोग अल्लाह की रहमत से दूर रहेंगे.
12. बेशक जो लोग ग़ायबाना अपने परवरदिगार से ख़ौफ़ रखते हैं, उनके लिए मग़फ़िरत और बड़ा अज्र है.
13. और तुम लोग अपनी बातें पोशीदा रखो या उन्हें ज़ाहिर करो, बेशक वह दिलों में पोशीदा राज़ों से भी ख़ूब वाक़िफ़ है.
14. क्या वह नहीं जानता, जिसने पैदा किया है? और वह बड़ा लतीफ़ बड़ा बाख़बर है.
15. वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को नरम कर दिया. फिर तुम उसके रास्तों पर चलो फिरो और उसका दिया हुआ रिज़्क़ खाओ व पियो. और तुम्हें उसकी तरफ़ ही लौटना है.
16. क्या तुम आसमान वाले अल्लाह से बेख़ौफ़ हो गए कि वह तुम्हें ज़मीन में इस तरह दबा दे कि वह अचानक लरज़ने लगे.
17. क्या तुम आसमान वाले अल्लाह से बेख़ौफ़ हो गए कि वह तुम पर पत्थरों वाली आंधी चलाए. फिर तुम अनक़रीब जान लोगे कि हमारा ख़बरदार करना कैसा है.
18. और बेशक उन लोगों ने भी झुठलाया था, जो उनसे पहले थे. फिर जान लो कि हमारा अज़ाब कैसा था?
19. क्या उन्होंने अपने ऊपर उड़ते परिन्दों को नहीं देखा, जो परों को फैलाते और समेटते हैं. मेहरबान अल्लाह के सिवा इन्हें कोई थाम नहीं सकता. बेशक वह हर चीज़ को ख़ूब देखने वाला है.
20. क्या कोई ऐसा है, जो तुम्हारा लश्कर बनकर मेहरबान अल्लाह के मुक़ाबिल तुम्हारी मदद करे. काफ़िर तो सिर्फ़ तकब्बुर में मुब्तिला हैं. 
21. या कोई ऐसा है, जो तुम्हें रिज़्क़ दे सके. अगर अल्लाह तुमसे अपना रिज़्क़ रोक ले, बल्कि वे लोग सरकशी और नफ़रत में मुब्तिला हैं.
22. कौन सीधे रास्ते पर है, वह शख़्स जो चलता हुआ मुंह के बल गिर पड़ता है या वह जो सीधे रास्ते पर मुसलसल चल रहा है?
23. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें पैदा किया है और तुम्हारे लिए कान, आंखें और दिल बनाए, लेकिन तुम बहुत कम शुक्र अदा करते हो.
24. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें ज़मीन में फैलाया और क़यामत के दिन तुम उसकी तरफ़ ही जमा किए जाओगे.
25. और वे लोग कहते हैं कि क़यामत का वादा कब पूरा होगा? अगर तुम सच्चे हो. 
26. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक इसका इल्म तो अल्लाह ही को है और बेशक मैं तो सिर्फ़ ऐलानिया अज़ाब से ख़बरदार करने वाला हूं.
27. फिर जब क़यामत को क़रीब देख लेंगे, तो कुफ़्र करने वाले लोगों के चेहरे बिगड़ जाएंगे और उनसे कहा जाएगा कि यही वह क़यामत है, जिसके तुम तलबगार थे. 
28. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि भला यह बताओ कि अगर अल्लाह मुझे और मेरे साथियों को हलाक कर दे या हम पर रहम फ़रमाए, तो ऐसे में कौन है, जो काफ़िरों को दर्दनाक अज़ाब से पनाह देगा?   
29. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मेहरबान अल्लाह ही है, जिस पर हम ईमान लाए हैं और हमने उसी पर भरोसा किया है. फिर तुम अनक़रीब जान लोगे कि कौन सरीह गुमराही में मुब्तिला है.
30. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि भला बताओ कि अगर तुम्हारा पानी ज़मीन में बहुत नीचे उतर जाए, तो कौन है जो तुम्हारे लिए ज़मीन पर पानी के चश्मे बहाएगा?

Saturday, July 17, 2021

68 सूरह अल क़लम

सूरह अल क़लम मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 52 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. नून. क़सम है क़लम की और क़सम है उस मज़मून की, जो फ़रिश्ते लिखते हैं.
2. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम अपने परवरदिगार के फ़ज़ल से दीवाने नहीं हो.
3. और बेशक तुम्हारे लिए ऐसा अज्र है, जो कभी ख़त्म नहीं होगा.
4. और बेशक तुम्हारे अख़लाक़ बड़े अज़ीम हैं.
5. फिर अनक़रीब तुम देखोगे और वे भी देख लेंगे,
6. कि तुम में से कौन दीवाना है?
7. बेशक तुम्हारा परवरदिगार उस शख़्स को भी ख़ूब जानता है, जो उसकी राह से भटक गया है और वह उन्हें भी ख़ूब जानता है, जो हिदायत याफ़्ता हैं.
8. फिर तुम झुठलाने वालों का कहना मत मानना.
9. वे लोग चाहते हैं कि तुम नरमी इख़्तियार कर लो, तो वे भी नरम पड़ जाएं. 
10. और तुम किसी ऐसे शख़्स के कहने में मत आना, जो बहुत क़समें खाने वाला ज़लील हो,
11. जो तंज़ करने वाला, ऐब लगाने वाला और चुग़लख़ोर हो,
12. जो भलाई के काम से रोकने वाला बख़ील, हद से बढ़ने वाला सरकश और गुनाहगार हो,
13. जो बदमिज़ाज और बदज़ात हो,
14. उसे सिर्फ़ इसलिए तवज्जो न दें कि वह माल और औलाद वाला है.
15. जब उसे हमारी आयतें पढ़कर सुनाई जाती हैं, तो वह कहता है कि ये पहले के लोगों के अफ़साने हैं.
16. हम अनक़रीब उसकी नाक पर दाग़ लगाएंगे.
17. बेशक हम उन मक्का वालों को भी उसी तरह आज़माएंगे, जिस तरह हमने यमन के उन बाग़ वालों को आज़माया था जब उन्होंने क़सम खाकर कहा था कि हम सुबह होते ही यक़ीनन उसके फल तोड़ लेंगे.
18. और उन्होंने इंशा अल्लाह नहीं कहा.
19. फिर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से रात में बाग़ पर गर्दिश का एक झोंका आया और वे लोग सोते ही रहे.
20. फिर फलों से भरा हुआ बाग़ कटी हुई खेती की तरह हो गया.
21. फिर सुबह होते ही उन्होंने एक दूसरे को आवाज़ें दीं.
22. कि अपने बाग़ में सुबह सवेरे चलो, अगर तुम फल तोड़ना चाहते हो.
23. फिर वे लोग चल पड़े और आपस में चुपके-चुपके कहने लगे-
24. कि आज इस बाग़ में कोई मिस्कीन यानी ग़रीब और मोहताज न आने पाए.
25. और वे सुबह सवेरे ही बाग़ में जा पहुंचे, गोया वे क़ादिर हों. 
26. फिर जब उन्होंने तबाह हुए बाग़ को देखा, तो कहने लगे कि यक़ीनन हम रास्ता भटक गए हैं. यानी यह हमारा बाग़ नहीं है.
27. जब बाग़ को ग़ौर से देखा, तो कहने लगे कि नहीं, बल्कि हम महरूम हो गए.
28. उनमें से एक इंसाफ़ पसंद शख़्स कहने लगा कि क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि तुम अल्लाह का ज़िक्र और उसकी तस्बीह क्यों नहीं करते?  
29. तब वे कहने लगे कि हमारा परवरदिगार पाक है. बेशक हम ही ज़ालिम थे.
30. फिर वे एक दूसरे की तरफ़ मुतावज्जे होकर आपस में मलामत करने लगे. 
31. वे कहने लगे कि हमारी शामत ! बेशक हम ख़ुद ही सरकश थे.
32. उम्मीद है कि हमारा परवरदिगार हमें इसके बदले इससे बेहतर देगा. हम अपने परवरदिगार की तरफ़ राग़िब होते हैं.
33. अज़ाब ऐसा ही होता है और आख़िरत का अज़ाब तो इससे भी बड़ा होगा. काश ! वे लोग जानते.
34. बेशक परहेज़गारों के लिए उनके परवरदिगार के पास जन्नत के नेअमतों वाले बाग़ हैं.
35. क्या हम मुसलमानों यानी फ़रमाबरदारों को गुनाहगारों की तरह महरूम कर देंगे?
36. तुम्हें क्या हुआ है, तुम कैसा फ़ैसला करते हो.
37. क्या तुम्हारे पास कोई किताब है, जिसमें तुम यह सब पढ़ते हो,
38. बेशक तुम्हारे लिए उसमें वह सबकुछ है, जो तुम चाहते हो.
39. या तुमने हमसे क़समें ले रखी हैं, जो क़यामत तक चलेंगी कि बेशक तुम्हें वह सब मिलेगा, जो तुम चाहोगे.
40. उनसे दरयाफ़्त करो कि उनमें से कौन इसकी ज़िम्मेदारी लेता है. 
41. या उनके कुछ और शरीक भी हैं. फिर उन्हें चाहिए कि वे अपने शरीकों को लाएं, अगर वे सच्चे हैं.
42. जिस दिन साक़ खोल दी जाएगी यानी क़यामत से पर्दा उठा दिया जाएगा और नाफ़रमान लोग सजदे के लिए बुलाए जाएंगे, तो वे सजदा नहीं कर सकेंगे.
43. उनकी आंखें झुकी हुई होंगी और उन पर ज़िल्लत छाई होगी. हालांकि उन्हें दुनिया में भी सजदे के लिए बुलाया जाता था, जब वे सही सलामत थे. यानी फिर भी वे लोग सजदा नहीं करते थे.
44. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम हमें और उस शख़्स को छोड़ दो, जो इस हदीस को झुठलाता है. हम उन्हें आहिस्ता-आहिस्ता इस तरह तबाही की तरफ़ ले जाएंगे कि वे जान भी नहीं पाएंगे.
45. और हम उन्हें मोहलत दे रहे हैं. बेशक हमारी तदबीर बहुत मज़बूत है.
46. क्या तुम उनसे कोई अज्र मांग रहे हो कि वे तावान के बोझ से दबे जा रहे हैं.
47. या उनके पास ग़ैब का इल्म है कि वे अपने फ़ैसले लिख लेते हैं.
48. फिर तुम अपने परवरदिगार के हुक्म के इंतज़ार में सब्र करो और मछली का लुक़मा होने वाले यूनुस अलैहिस्सलाम की तरह मत हो जाना, उन्होंने अल्लाह को तब पुकारा था, जब वे ग़मज़दा थे. 
49. अगर उनके परवरदिगार की नेअमत न होती, तो वह ज़रूर खुले मैदान में डाल दिए जाते और उनका बुरा हाल होता.  
50. फिर उनके परवरदिगार ने उन्हें मुंतख़िब कर लिया और उन्हें अपने स्वालिहीन बन्दों में शामिल कर लिया.
51. और बेशक कुफ़्र करने वाले लोग जब क़ुरआन को सुनते हैं, तो ऐसा लगता है कि वे तुम्हें अपनी निगाहों से नुक़सान पहुंचाना चाहते हैं और कहते हैं कि ये तो दीवाना है.  
52. और यह क़ुरआन तमाम आलमों के लिए ज़िक्र यानी नसीहत है. 

Friday, July 16, 2021

69 सूरह अल हाक़का

सूरह अल हाक़का मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 52 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. यक़ीनन वाक़े होने वाली, 
2. यक़ीनन वाक़े होने वाली चीज़ क्या है?
3. और क्या तुम जानते हो कि यक़ीनन वाक़े होने वाली चीज़ क्या है?
4. सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद और हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद ने जिस गरजने वाली ख़ौफ़नाक क़यामत को झुठलाया था.
5. फिर क़ौमे समूद के लोग गरजने वाली ख़ौफ़नाक आवाज़ से हलाक कर दिए गए.
6. और जो क़ौमे आद के लोग थे, वे भी ऐसी बहुत तेज़ आंधी से हलाक कर दिए गए, जो इन्तिहाई सर्द और गरजदार थी.
7. अल्लाह ने उस आंधी को उन पर सात रातें और आठ दिन मुसलसल चलाए रखा, तो उस के लोग ऐसे पड़े हुए दिखाई दिए, जैसे खजूर के दरख़्तों के खोखले तने हों.
8. फिर क्या तुम उनमें से किसी को भी बाक़ी देखते हो?
9. और फ़िरऔन और उससे पहले लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम की उलटने वाली बस्तियों में रहने वाले लोगों ने भी बड़ी ख़तायें की थीं.  
10. फिर उन्होंने भी अपने भी परवरदिगार के रसूल की नाफ़रमानी की, तो अल्लाह ने उन्हें बड़ी सख़्त गिरफ़्त में ले लिया.
11. बेशक जब पानी हद से गुज़रने लगा, तो हमने तुम्हें कश्ती में सवार किया,
12. ताकि हम उस वाक़िये को तुम्हारे लिए यादगार नसीहत बना दें और उसे याद रखने वाले कान सुनकर याद रखें. 
13. फिर जब एक बार सूर फूंका जाएगा.
14. और ज़मीन और पहाड़ उठा लिए जाएंगे और फिर एक ही बार में तोड़कर रेज़ा-रेज़ा कर दिए जाएंगे.
15. तो उस वक़्त वाक़े हो जाएगी, वाक़े होने वाली क़यामत. 
16. और उस दिन आसमान शिगाफ़्ता होकर कमज़ोर हो जाएंगे. 
17. और फ़रिश्ते उसके किनारे पर खड़े हुए होंगे और तुम्हारे परवरदिगार के अर्श को उस दिन आठ फ़रिश्ते उठाए हुए होंगे.
18. उस दिन तुम हिसाब के लिए पेश किए जाओगे और तुम्हारी कोई पोशीदा बात छुपी नहीं रहेगी.
19. फिर जिसकी किताब यानी आमालनामा उसके दाहिने हाथ में दिया जाएगा, तो वह शख़्स ख़ुशी से कहेगा कि आओ, मेरा आमालनामा पढ़ो.
20. मुझे यक़ीन था कि मुझे मेरा हिसाब ज़रूर मिलेगा.
21. फिर वह मनचाहे ऐश में रहेगा.
22. जन्नत के आला बाग़ में,
23. जिसमें फलों के गुच्छे झुके होंगे.
24. उनसे कहा जाएगा कि ख़ूब मज़े से खाओ और पियो, उन आमाल के बदले, जो तुमने गुज़श्ता दुनियावी ज़िन्दगी में किए थे. 
25. और जिसकी किताब यानी आमालनामा उसके बायें हाथ में दिया जाएगा, तो वह कहेगा कि काश ! मुझे मेरा आमालनामा न दिया जाता.
26. और मैं नहीं जानता कि मेरा हिसाब क्या है.
27. काश ! मौत ने मुझे हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया होता.
28. आज मेरा माल मेरे कुछ भी काम नहीं आया.
29. मेरी सल्तनत हलाक हो गई यानी ख़ाक में मिल गई.  
30. हुक्म होगा कि उसे गिरफ़्तार करो और उसे तौक़ पहना दो.
31. फिर इसे जहन्नुम में डाल दो.
32. फिर एक जंज़ीर में उसे ख़ूब जकड़ दो, जो सत्तर गज़ लम्बी है.
33. बेशक यह बड़ी अज़मत वाले अल्लाह पर ईमान नहीं रखता था. 
34. और न मिस्कीन यानी ग़रीब और मोहताज को खाना खिलाता था.
35. इसलिए आज यहां इसका कोई सरपरस्त नहीं है.
36. और न पीप के सिवा उसके लिए कोई खाना है,
37. जिसे ख़तावारों के सिवा कोई नहीं खाएगा.
38. फिर क़सम है उन चीज़ों की, जो तुम्हें दिखाई देती हैं,
39. और उन चीज़ों की भी, जो तुम्हें दिखाई नहीं देतीं.
40. बेशक यह क़ुरआन अज़मत वाले रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कलाम है.
41. और यह किसी शायर का कलाम नहीं है. तुम लोग बहुत कम यक़ीन रखते हो.
42. और यह किसी काहिन का कलाम नहीं है. तुम लोग बहुत कम ग़ौर व फ़िक्र करते हो.
43. यह तमाम आलमों के परवरदिगार का नाज़िल किया हुआ कलाम है.
44. और अगर वे हमारे बारे में एक बात भी गढ़ कर कह देते,
45. तो यक़ीनन हम उन्हें दाहिने हाथ से पकड़ लेते.
46. फिर हम ज़रूर उनकी शह रग काट देते.
47. फिर तुम में से कोई भी हमें इससे रोकने वाला नहीं होता.
48. और बेशक यह क़ुरआन परहेज़गारों के लिए नसीहत है.
49. और बेशक हम जानते हैं कि तुम में से कुछ लोग इसे झुठलाने वाले हैं.
50. और बेशक यह काफ़िरों के लिए हसरत का सबब है. 
51. और बेशक यह बरहक़ और क़ाबिले यक़ीन है. 
52. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम अपने अज़ीम परवरदिगार के नाम की तस्बीह करते रहो. 

Thursday, July 15, 2021

70 सूरह अल मारिज

सूरह अल मारिज मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 44 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. एक साइल ने ऐसा अज़ाब मांगा, जो वाक़े होकर रहेगा. 
2. काफ़िरों के लिए, जिसे कोई दफ़ा नहीं कर सकता.
3. वह अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल होगा, जो आसमानी बुलंदियों का मालिक है.
4. उसके अर्श की तरफ़ फ़रिश्ते और रूहुल अमीन यानी जिब्रईल अलैहिस्सलाम चढ़ते हैं एक दिन में, जिसकी मिक़दार पचास हज़ार साल है.
5. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम सब्र करो. सब्र करना अच्छा है.
6. बेशक उन लोगों की नज़र में क़यामत बहुत दूर है,
7. और हमारी नज़र में क़यामत क़रीब है.
8. उस दिन आसमान पिघले हुए तांबे की तरह हो जाएगा.
9. और पहाड़ धुनी हुई रंग बिरंगी ऊन की तरह हो जाएंगे.
10. और कोई दोस्त किसी दोस्त को नहीं पूछेगा.
11. हालांकि वे लोग एक दूसरे को देख रहे होंगे. गुनाहगार चाहेगा कि काश ! उस दिन के अज़ाब से रिहाई के बदले अपने बेटे दे दे.
12. और अपनी बीवी और अपने भाई दे दे.
13. और अपना कुनबा दे दे, जिसमें वह रहता था.
14. और जितने लोग भी ज़मीन में हैं, उन सबको दे दे और ख़ुद को अज़ाब से बचा ले.
15. ऐसा हरगिज़ नहीं होगा. बेशक वह भड़कती हुई आग है,
16. जो जिस्म की खाल उतारने वाली है.
17. वह उसे बुला रही है, जिसने हक़ से पीठ फेरी और मुंह मोड़ा.
18. और जिसने माल जमा किया. फिर उसे तक़सीम न करके समेट कर रखा.  
19. बेशक इंसान बेसब्रा और लालची बनाया गया है.
20. जब उसे कोई तकलीफ़ पहुंचती है, तो घबरा जाता है.
21. और जब उसे कोई भलाई पहुंचती है, तो बुख़्ल करने लगता है. 
22. लेकिन जो नमाज़ी हैं,
23. जो लोग पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हैं, 
24. और वे लोग जिनके माल में हिस्सा मुक़र्रर है.
25. मांगने वाले के लिए और न मांगने वाले मोहताज के लिए
26. और जो लोग जज़ा और सज़ा के दिन की तसदीक़ करते हैं.
27. और वे लोग, जो अपने परवरदिगार के अज़ाब से ख़ौफ़ रखते हैं,
28. बेशक उनके परवरदिगार का अज़ाब बेख़ौफ़ होने की चीज़ नहीं है.
29. और वे लोग, जो अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करते हैं.
30. सिवाय अपनी बीवियों और अपनी कनीज़ों के. बेशक उनके पास जाने पर कोई मलामत नहीं.
31. फिर जिसने इसके अलावा कुछ और चाहा, तो ऐसे ही लोग हद से गुज़रने वाले हैं.
32. और वे लोग, जो अपनी अमानतों और अपने अहद की हिफ़ाज़त करने वाले हैं,
33. और वे लोग, जो अपनी गवाहियों पर क़ायम रहते हैं.
34. और वे लोग, जो अपनी नमाज़ों की हिफ़ाज़त करते हैं. 
35. यही वे लोग हैं, जो जन्नत के बाग़ों में इज़्ज़त व इकराम से होंगे.
36. फिर कुफ़्र करने वाले लोगों को क्या हुआ है कि तुम्हारी तरफ़ दौड़े चले आते हैं.
37. दायें और बायें से हुजूम दर हुजूम आ रहे हैं.
38. क्या इनमें से हर शख़्स को यह उम्मीद है कि वह ईमान और अमल के बग़ैर नेअमतों से लबरेज़ जन्नत में दाख़िल किया जाएगा?
39. हरगिज़ नहीं. बेशक हमने उन्हें उस चीज़ से पैदा किया, जिसे वे लोग भी जानते हैं
40. फिर क़सम है मशरिक़ और मग़रिब के परवरदिगार की कि बेशक हम क़ुदरत रखते हैं.
41. हम इस पर क़ादिर हैं कि उनके बदले उनसे अच्छे लोग ले आएं और हम आजिज़ नहीं हैं.
42. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम उन्हें छोड़ दो कि वे अपनी बेहूदा बातों और खेल तमाशे में पड़े रहें, यहां तक कि वे अपने उस दिन से मिल लें, जिसका उनसे वादा किया जाता है.
43. उस दिन वे लोग क़ब्रों से निकल कर इस तरह दौड़ेंगे, जैसे वे अपने बुतख़ानों की तरफ़ दौड़े जा रहे हैं.
44. उनकी आंखें झुकी हुई होंगी और उन पर ज़िल्लत छाई होगी, यही वह दिन है, जिसका उनसे वादा किया जाता था. 

Wednesday, July 14, 2021

71 सूरह नूह

सूरह नूह मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 28 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. बेशक हमने नूह अलैहिस्सलाम को उनकी क़ौम की तरफ़ भेजा कि तुम अपनी क़ौम को ख़बरदार करो, इससे पहले कि उन पर कोई दर्दनाक अज़ाब आए.
2. उन्होंने कहा कि ऐ मेरी क़ौम!  बेशक मैं तुम्हें ऐलानिया ख़बरदार करता हूं.
3. तुम अल्लाह की इबादत करो और उससे डरो और मेरी इताअत करो.
4. अल्लाह तुम्हारे गुनाहों को बख़्श देगा और तुम्हें मुक़र्रर वक़्त तक मोहलत देगा. बेशक जब अल्लाह का मुक़र्रर किया हुआ वक़्त आ जाता है, तो उसे टाला नहीं जा सकता. काश ! तुम जानते.
5. नूह अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मैं अपनी क़ौम को रात दिन हक़ की तरफ़ बुलाता रहा,
6. लेकिन मेरे बुलाने से वे लोग और ज़्यादा गुरेज़ करते रहे.
7. और मैंने जब उन्हें ईमान की तरफ़ बुलाया, ताकि तू उन्हें बख़्श दे, तो उन्होंने अपने कानों में उंगलियां दे लीं और ख़ुद को कपड़ों से ढक लिया और अपनी ज़िद पर अड़ गए और तकब्बुर किया.
8. फिर मैंने उन्हें ऐलान करके बुलाया.
9. फिर मैंने उन्हें ज़ाहिरी और पोशीदा तौर पर हर तरह से समझाया.
10. फिर मैंने कहा कि तुम अपने परवरदिगार से मग़फ़िरत की दुआ मांगो. बेशक वह बड़ा बख़्शने वाला है.
11. वह तुम पर आसमान से मूसलाधार बारिश बरसाएगा.
12. और माल और औलाद से तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे लिए बाग़ उगाएगा और तुम्हारे लिए नहरें जारी कर देगा.
13. तुम्हें क्या हुआ है कि तुम अल्लाह की अज़मत पर अक़ीदा नहीं रखते.
14. और उसने तुम्हें तरह-तरह की हालतों में पैदा किया यानी मुख़्तलिफ़ मरहलों से गुज़ारकर पैदा किया है.
15. क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ने किस तरह तबक़ दर तबक़ सात आसमान बनाए.
16. और उसने चांद को नूर बनाया और सूरज को रौशन चिराग़ बनाया.
17. और अल्लाह ने तुम्हें ज़मीन से सब्ज़े की मानिन्द उगाया. 
18. फिर तुम्हें उसी ज़मीन में वापस ले जाएगा और क़यामत के दिन उसी में से बाहर निकाल भी लेगा.
19. और अल्लाह ने तुम्हारे लिए ज़मीन को फ़र्श बनाया है,
20. ताकि तुम उसके कुशादा रास्तों पर चलो फिरो.
21. नूह अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! इन लोगों ने मेरी नाफ़रमानी की और उसके ताबेदार हो गए, जिसके माल व दौलत और औलाद ने सिवाय नुक़सान के कुछ नहीं बढ़ाया.
22. और वे लोग बड़ी मक्कारियां करते रहे,
23. और वे लोग कहने लगे कि तुम अपने सरपरस्तों को कभी मत छोड़ना, न वद्द को और न सुआ को और न यग़ूस को और न यऊक़ को और न नस्र को छोड़ना. 
24. और वाक़ई उन्होंने बहुत लोगों को गुमराह किया और तू उन ज़ालिमों को सिवाय गुमराही के किसी और चीज़ में न बढ़ा.
25. वे लोग अपनी ख़ताओं की वजह से पहले ग़र्क़ किए गए, फिर आग में डाले गए. फिर उन्होंने अल्लाह के मुक़ाबिल किसी को अपना मददगार नहीं पाया.
26. और नूह अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! ज़मीन में बसने वाले काफ़िरों में से किसी को नहीं छोड़ना,
27. बेशक अगर तू उन्हें छोड़ देगा, तो वे तेरे बन्दों को गुमराह करते रहेंगे और उनकी औलाद भी बदकार और काफ़िरों के सिवा किसी को जन्म नहीं देगी.
28. ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझे बख़्श दे और मेरे वालिदैन को और मेरे घर में दाख़िल होने वाले हर मोमिन को, और तमाम मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों को. और ज़ालिमों को सिवाय तबाही के किसी और चीज़ में न बढ़ा.

Tuesday, July 13, 2021

72 सूरह अल जिन्न

सूरह अल जिन्न मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 28 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मेरे पास वही आई है कि जिन्नों की एक जमात ने मेरी तिलावत को ग़ौर से सुना. फिर अपनी क़ौम के पास जाकर कहने लगे कि बेशक हमने एक अजीब क़ुरआन सुना है,
2. जो नेकी का रास्ता दिखाता है, इसलिए हम उस पर ईमान ले आए और हम अपने परवरदिगार के साथ किसी को शरीक नहीं ठहराएंगे.
3. और यह कि हमारे परवरदिगार की शान बहुत बुलंद है. उसने न किसी को बीवी बनाया है और न कोई औलाद.
4. और यह कि हममें से कुछ अहमक़ ही अल्लाह के बारे में ऐसी बातें कहते थे, जो हक़ीक़त से बहुत दूर हैं.
5. और हमारा यह गुमान था कि इंसान और जिन्न अल्लाह के बारे में झूठ नहीं बोलते.
6. और यह कि इंसानों में से कुछ लोग जिन्नों में से बाज़ अफ़राद की पनाह लेते हैं, जिससे जिन्नों की सरकशी और बढ़ गई.
7. और यह कि तुम्हारी तरह उनका भी यही गुमान था कि अल्लाह किसी को दोबारा ज़िन्दा नहीं करेगा.
8. और ये कि हमने आसमान को छुआ, तो उसे सख़्त पहरेदारों और अंगारों की तरह दहकने और चमकने वाले सितारों से भरा हुआ पाया.
9. और यह कि पहले हम आसमानी ख़बरें सुनने के लिए कई मक़ामात में बैठा करते थे, लेकिन अब कोई सुनना चाहे, तो वह अपने लिए आग के शोले तैयार पाएगा. 
10. और यह कि हम नहीं जानते कि हमारी बंदिश ज़मीन में रहने वाले लोगों के हक़ में बुराई है या उनके परवरदिगार ने उनकी भलाई का इरादा किया है. 
11. और यह कि बेशक हममें से कुछ लोग नेक हैं और हम में से कुछ उसके सिवा बुरे भी हैं. हम मुख़्तलिफ़ तरीक़ों पर चल रहे हैं.
12. और यह कि हमें यक़ीन हो गया है कि हम न ज़मीन में रहकर अल्लाह को आजिज़ कर सकते और न ज़मीन से भागकर उसे आजिज़ कर सकते हैं. 
13. और यह कि जब हमने यह हिदायत सुनी, तो हम उस पर ईमान ले लाए. फिर जो शख़्स अपने परवरदिगार पर ईमान लाता है, तो उसे न नुक़सान का ख़ौफ़ होता है और न ज़ुल्म का. 
14. और यह कि हम में से कुछ मुसलमान यानी फ़रमाबरदार हैं और हम में से कुछ नाफ़रमान हैं. फिर जो लोग फ़रमाबरदार हो गए, तो वे भलाई के रास्ते पर चले.
15. और जो लोग नाफ़रमान हैं, तो वे जहन्नुम का ईंधन बनेंगे.
16. और ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मेरे पास यह वही भी आई है कि अगर वे लोग सीधे रास्ते पर क़ायम रहें, तो हम उन्हें बहुत से पानी से ज़रूर सेराब करेंगे.
17. ताकि हम उस नेअमत में उनकी आज़माइश करें. और जो शख़्स अपने परवरदिगार के ज़िक्र से मुंह फेरेगा, तो हम उसे सख़्त अज़ाब में मुब्तिला कर देंगे.
18. और यह कि मस्जिदें तो अल्लाह के लिए हैं, इसलिए अल्लाह के साथ किसी को मत पुकारो.  
19. और यह कि जब अल्लाह के बन्दे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसकी इबादत के लिए खड़े हुए, तो क़रीब था कि वे हुजूम दर हुजूम उनके पास जमा हो गए.
20. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं सिर्फ़ अपने परवरदिगार की इबादत करता हूं और किसी को उसका शरीक नहीं बनाता.
21. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं तुम्हारे लिए न बुराई का इख़्तियार रखता हूं और न भलाई का. 
22. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि न मुझे हरगिज़ अल्लाह के अज़ाब से कोई पनाह दे सकता है और न मैं उसके सिवा कोई पनाह की जगह पाता हूं.
23. लेकिन अल्लाह की तरफ़ से उसके अहकाम और उसके पैग़ाम पहुंचाना मेरी ज़िम्मेदारी है. और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नाफ़रमानी करेगा, तो बेशक उसके लिए जहन्नुम की आग है, जिसमें वह हमेशा रहेगा.
24. यहां तक कि जब वे लोग उस अज़ाब को देख लेंगे, जिनका उनसे वादा किया जाता है, तो उस वक़्त उन्हें मालूम हो जाएगा कि कौन मददगार के ऐतबार से कमज़ोर और तादाद में कमतर है.
25. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं नहीं जानता कि जिस क़यामत का तुमसे वादा किया जाता है, वह क़रीब है या मेरे परवरदिगार ने उसकी मुद्दत तवील कर दी है.
26. अल्लाह ही ग़ैब का जानने वाला है. फिर वह अपने ग़ैब की बातें किसी पर ज़ाहिर नहीं करता.
27. सिवाय अपने उस रसूल के, जिससे वह राज़ी हो. फिर बेशक वह उसके आगे और पीछे निगेहबान फ़रिश्ते मुक़र्रर कर देता है. 
28. ताकि अल्लाह यह ज़ाहिर कर दे कि बेशक उन रसूलों ने अपने परवरदिगार के पैग़ाम पहुंचा दिए और जो कुछ उनके पास है, अल्लाह ने उनका अहाता किया हुआ है और उसने हर चीज़ को गिन रखा है.

Monday, July 12, 2021

73 सूरह अल मुज़म्मिल

सूरह अल मुज़म्मिल मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 20 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ चादर ओढ़ने वाले मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम !
2. तुम रात में उठो और कुछ देर इबादत करो.
3. आधी रात या इससे कुछ कम कर दो.
4. या उसे कुछ ज़्यादा कर दो और क़ुरआन को ख़ूब ठहर-ठहर कर पढ़ा करो.
5. हम अनक़रीब तुम पर एक बड़ा फ़रमान नाज़िल करेंगे. 
6. बेशक रात को उठना नफ़्स को सख़्त पामाल करता है और उस वक़्त ज़िक्र भी ख़ूब दुरुस्त होता है.
7. बेशक तुम्हारे लिए दिन में बहुत से तवील काम होते हैं.
8. और तुम अपने परवरदिगार के नाम का ज़िक्र करते रहो और सबसे टूटकर उसी के हो जाओ.
9. अल्लाह ही मशरिक़ और मग़रिब का परवरदिगार है, उसके सिवा कोई माबूद नहीं. तुम उसी को अपना कारसाज़ बनाओ.
10. और तुम उन बातों पर सब्र करो, जो कुछ वे काफ़िर कहते हैं. और ख़ूबसूरती के साथ उनसे किनारा कर लो.
11. और तुम हमें और झुठलाने वाले मालदारों को छोड़ दो और उन्हें थोड़ी सी मोहलत दो, ताकि उनके बुरे आमाल उन्हें इन्तिहा तक ले जाएं.
12. बेशक हमारे पास ज़ंजीरें और दोज़ख़ की भड़कती हुई आग है.
13. और गले में फंसने वाला खाना और दर्दनाक अज़ाब है.
14. जिस दिन ज़मीन और पहाड़ लरज़ने लगेंगे और पहाड़ रेत का ढेर होकर बिखर जाएंगे.
15. ऐ मक्का वालो ! बेशक हमने तुम्हारी तरफ़ एक रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तुम पर गवाह बनाकर भेजा है, जैसे फ़िरऔन की तरफ़ मूसा अलैहिस्सलाम को भेजा था. 
16. फिर फ़िरऔन ने उन रसूल की नाफ़रमानी की, तो हमने उसे बहुत सख़्त गिरफ़्त में ले लिया.
17. फिर तुम कुफ़्र करते रहोगे, तो अज़ाब के उस दिन से कैसे बचोगे, जो बच्चों को बूढ़ा कर देगा. 
18. जिस दिन आसमान शिगाफ़्ता हो जाएगा, उसका वादा पूरा होकर रहेगा.
19. बेशक यह क़ुरआन नसीहत है, फिर जो चाहे अपने परवरदिगार की राह इख़्तियार कर ले.
20. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! बेशक तुम्हारा परवरदिगार जानता है कि तुम कभी दो तिहाई रात के क़रीब और कभी आधी रात और कभी एक तिहाई रात में नमाज़ के लिए खड़े होते हो. और उन लोगों की एक जमात भी, जो तुम्हारे साथ क़याम में शरीक होती है. और अल्लाह ही रात और दिन के घटने और बढ़ने का सही का अंदाज़ा रखता है. वह जानता है कि तुम वक़्त का सही शुमार नहीं कर सकते, इसलिए उसने तुम पर इनायत की. जितना आसानी से हो सके, उतना क़ुरआन पढ़ लिया करो. वह जानता है कि तुममें से कुछ लोग बीमार भी होते हैं और कुछ अल्लाह के फ़ज़ल यानी रोज़ी की तलाश में सफ़र भी करते हैं और कुछ अल्लाह की राह में जंग करते हैं, तो जितना आसानी से हो सके तुम पढ़ लिया करो और नमाज़ पाबंदी से पढ़ो और ज़कात देते रहो. और अल्लाह को क़र्ज़े हसना दिया करो यानी अल्लाह की राह में ख़र्च किया करो और उसकी मख़लूक़ से हुस्ने सुलूक करो. और तुम जो नेक आमाल आगे भेजोगे, तो अल्लाह के हुज़ूर में उसका बड़ा अज्र पाओगे. और अल्लाह से मग़फ़िरत की दुआ मांगते रहो. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है. 

Sunday, July 11, 2021

74 सूरह अल मुदस्सिर

सूरह अल मुदस्सिर मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 56 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ चादर ओढ़ने वाले महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम !
2. उठो और लोगों को अज़ाब से ख़बरदार करो.
3. और अपने परवरदिगार की बड़ाई बयान करो.
4. और अपने लिबास को पाक रखो.
5. और नापाकी से दूर रहो. 
6. और इस नीयत से अहसान न करो कि तुम्हें उससे ज़्यादा की चाह हो.
7. और अपने परवरदिगार के लिए सब्र किया करो.
8. और जब दोबारा सूर फूंका जाएगा.
9. तो वह दिन बहुत सख़्त होगा,
10. काफ़िरों के लिए आसान नहीं होगा.
11. तुम हमें और उसे छोड़ दो, जिसे हमने अकेला पैदा किया,
12. और हमने उसे बहुत सा माल दिया.
13. और उसके सामने हाज़िर रहने वाले बेटे दिए,
14. और हमने उसे ऐशो इशरत में ख़ूब कुशादगी दी. 
15. फिर भी वह चाहता है कि हम उसे और ज़्यादा दें.
16. ऐसा हरगिज़ नहीं होगा. बेशक वह हमारी आयतों का दुश्मन रहा है.
17. हम उसे सऊद पर चढ़ाएंगे. यानी सख़्त अज़ाब देंगे.
18. बेशक उसने सोचा और तजवीज़ की,
19. फिर उस पर अल्लाह की मार. उसने कैसी तजवीज़ की.
20. फिर उस पर अल्लाह मार. उसने कैसी तजवीज़ की. 
21. फिर उसने देखा.
22. फिर उसने त्योरी चढ़ाई और मुंह बना लिया.
23. फिर उसने हक़ से पीठ फेर ली और तकब्बुर किया.
24. फिर वह कहने लगा कि यह क़ुरआन जादू के सिवा कुछ नहीं है, जो पहले के जादूगरों से नक़ल होता चला आ रहा है.
25. यह क़ुरआन बशर के कलाम के सिवा और कुछ नहीं है.
26. हम अनक़रीब उसे सक़र में डाल देंगे.
27. और क्या तुम जानते हो कि सक़र क्या है?
28. वह ऐसी आग है, जो न बाक़ी रखती है और न छोड़ती है. 
29. और जिस्म की खाल को जलाकर स्याह कर देती है.
30. उस पर उन्नीस फ़रिश्ते मुक़र्रर हैं.
31. और हमने दोज़ख़ का निगेहबान फ़रिश्तों को बनाया है और उनका यह शुमार भी कुफ़्र करने वालों की आज़माइश के लिए है, ताकि अहले किताब यक़ीन कर लें कि क़ुरआन और नबुवते मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हक़ है, क्योंकि उनकी किताब में भी दोज़ख़ के फ़रिश्तों की तादाद उन्नीस ही बयान की गई है. और ईमान वालों का ईमान मज़ीद बढ़ जाए. अहले किताब और मोमिन किसी तरह का शक न करें. जिन लोगों के दिल में निफ़ाक़ का मर्ज़ है, वे और काफ़िर ये कहें कि इनकी तादाद की मिसाल से अल्लाह की क्या मुराद है? इसी तरह अल्लाह जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है हिदायत देता है. और तुम्हारे परवरदिगार के लश्करों को उसके सिवा कोई नहीं जानता. और दोज़ख़ का यह बयान बशर की नसीहत के लिए ही है.
32. हां, क़सम है चांद की, जिसका घटना बढ़ना और ग़ायब हो जाना गवाह है. 
33. और क़सम है रात की, जब वह रुख़सत होने लगे.
34. और क़सम है सुबह की, जब वह रौशन हो जाए.
35. बेशक यह दोज़ख़ बहुत बड़ी आफ़तों में से एक है.
36. यह लोगों को डराने वाली है.
37. उसके लिए जो तुममें से नेकी में आगे बढ़ना चाहे या गुनाहों में मुब्तिला होकर पीछे रहना चाहे.
38. हर शख़्स उन आमाल के बदले में गिरवी है, जो उसने कमा रखे हैं.
39. सिवाय दायीं तरफ़ वालों के,
40. वे जन्नत के बाग़ों में होंगे और आपस में पूछ रहे होंगे.
41. गुनाहगारों के बारे में 
42. और कहेंगे कि तुम्हें क्या चीज़ दोज़ख़ में ले आई?
43. वे जवाब देंगे कि हम नमाज़ पढ़ने वालों में से नहीं थे,
44. और हम मिस्कीनों यानी ग़रीबों और मोहताजों को खाना नहीं खिलाते थे,
45. और हम बेहूदा मशग़ले करने वालों के साथ मिलकर बेहूदा मशग़लों में मुब्तिला रहते थे,
46. और हम जज़ा और सज़ा के दिन को झुठलाया करते थे,
47. यहां तक कि हम पर जिस का आना यक़ीनी था वह मौत आ गई.
48. फिर उस वक़्त शफ़ाअत करने वालों की शफ़ाअत भी उन्हें कोई नफ़ा नहीं देगी.
49. फिर उन्हें क्या हुआ है कि वे नसीहत से मुंह फेरे हुए हैं.
50. गोया वे बिदके हुए वहशी गधे हैं,
51. जो शेर से डरकर भागते हैं.
52. बल्कि उनमें से हर शख़्स यह चाहता है कि उसे खुले हुए आसमानी सहीफ़ें दिए जाएं.
53. ऐसा हरगिज़ नहीं होगा. हक़ीक़त यह है कि उन्हें आख़िरत का ख़ौफ़ ही नहीं है.
54. जान लो कि बेशक यह क़ुरआन नसीहत है.
55. फिर जो चाहे इसे याद रखे.
56. और ये लोग उसे तब तक याद नहीं रख सकते, जब तक अल्लाह न चाहे. अल्लाह ही तक़वे का मुस्तहक़ है और वही मग़फ़िरत का मालिक है. 

Saturday, July 10, 2021

75 सूरह अल क़आमह

सूरह अल क़आमह मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 40 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. क़सम है क़यामत के दिन की.
2. और क़सम है बुराइयों पर मलामत करने वाली नफ़्स की.
3. क्या इंसान यह गुमान करता है कि हम उसकी हड्डियों को जमा नहीं करेंगे, जो उसके मरने के बाद रेज़ा-रेज़ा हो जाएंगी.
4. बेशक हम इस पर क़ादिर हैं कि उसकी उंगलियों के पोर-पोर को दुरुस्त कर दें.
5. लेकिन इंसान चाहता है कि वह अपनी आगे की ज़िन्दगी में भी गुनाह करता रहे.
6. वह पूछता है कि क़यामत का दिन कब आएगा?
7. फिर जब आंखें चौंधिया जाएंगी,
8. और चांद अपनी रौशनी खो देगा.
9. और सूरज और चांद बेनूर करके जमा किए जाएंगे.
10. उस दिन इंसान कहेगा कि भागकर कहां जाऊं.
11. जान लो कि अब कहीं पनाह नहीं है.
12. उस दिन तुम्हारे परवरदिगार के पास ही पनाह है.
13. उस दिन इंसान को उन आमाल से आगाह कर दिया जाएगा, जो उसने आगे भेजे थे और पीछे छोड़े थे.
14. बल्कि इंसान ख़ुद अपने आमाल को देखने वाला है.
15. और चाहे वह ख़ुद कितनी ही माज़रत करे.
16. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम क़ुरआन को याद करने की जल्दी में अपनी ज़बान को हरकत न दिया करो.
17. बेशक उसे तुम्हारे दिल में जमा करना और तुम्हारी ज़बान से पढ़वाना हमारे ज़िम्मे है.
18. फिर जब हम उसे जिब्रईल अलैहिस्सलाम की ज़बानी पढ़ें, तो तुम क़ुरआन की पैरवी किया करो. 
19. फिर बेशक उसकी वज़ाहत करना भी हमारे ही ज़िम्मे है.
20. ऐ काफ़िरो ! जान लो कि हक़ीक़त में तुम जल्दी मिलने वाली दुनिया से मुहब्बत करते हो,
21. और तुम आख़िरत को छोड़े बैठे हो.
22. उस दिन बहुत से चेहरे शादाब होंगे.
23. उन्हें अपने परवरदिगार का दीदार होगा.
24. और उस दिन बहुत से चेहरों पर मायूसी होगी.
25. वे गुमान कर रहे होंगे कि उन पर मुसीबत आने वाली है, जो उनकी कमर तोड़ देगी.
26. जान लो कि जब जान गले तक पहुंच जाएगी,
27. और कहा जाएगा कि अब झाड़ फूंक करने वाला कौन है.
28. और मरने वाला गुमान करेगा कि अब जुदाई का वक़्त है,
29. और दर्द की वजह से पिंडली से पिंडली लिपट जाएगी.
30. उस दिन तुम्हें अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटना है.
31. फिर उसने न अल्लाह के कलाम की तसदीक़ की और न नमाज़ पढ़ी.
32. और उसने हक़ को झुठलाया और नाफ़रमानी की.
33. फिर वह अपने घरवालों के पास इतराता हुआ चल दिया.
34. तुम्हारे लिए मौत के वक़्त तबाही है. फिर क़ब्र में भी तबाही है.
35. फिर तुम्हारे लिए क़यामत के दिन तबाही है. फिर दोज़ख़ में भी तबाही है.
36. क्या इंसान यह गुमान करता है कि उसे बिना हिसाब किताब के यूं ही छोड़ दिया जाएगा.
37. क्या वह अपनी इब्तिदा में एक नुत्फ़ा नहीं था, जिसे टपकाया जाता है.
38. फिर वह वजूद में आया, फिर वह पैदा हुआ. फिर उसे दुरुस्त किया.  
39. फिर उसी नुत्फ़े के ज़रिये उसकी दो क़िस्में मर्द और औरत बनाईं.
40. तो क्या अल्लाह इस पर क़ादिर नहीं कि वह मुर्दों को दोबारा ज़िन्दा कर दे.

Friday, July 9, 2021

76 सूरह अद दहर या अल इंसान

सूरह अद दहर मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 31 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
1. बेशक इंसान पर ज़माने का एक ऐसा वक़्त भी गुज़रा है, जब वह कोई क़ाबिले ज़िक्र चीज़ ही नहीं था.
2. बेशक हमने इंसान को मख़लूत नुत्फ़े से पैदा किया, ताकि उसकी आज़माइश लें. फिर हमने उसे सुनने और देखने वाला बनाया है.
3. बेशक हमने उसे हक़ और बातिल में फ़र्क़ करने की समझ के साथ राह दिखा दी. अब चाहे वह शुक्रगुज़ार हो जाए या कुफ़्र करके नाशुक्रा बन जाए.
4. बेशक हमने काफ़िरों के लिए ज़ंजीरें, तौक़ और दोज़ख़ की दहकती हुई आग तैयार कर रखी है.
5. बेशक नेक लोग पाकीज़ा शर्बत के ऐसे जाम पिएंगे, जिसमें काफ़ूर मिली हुई होगी.
6. काफ़ूर जन्नत का एक चश्मा है, जिससे अल्लाह के मक़र्रिब बन्दे पिएंगे और इसे जहां चाहेंगे, बहा ले जाएंगे.
7. यही वे लोग हैं, जो अपनी नज़रें यानी मन्नतें पूरी करते हैं और सख़्ती वाले दिन से ख़ौफ़ज़दा रहते हैं, जिसका क़हर ख़ूब बरपा होने वाला है.
8. और वे अल्लाह की मुहब्बत में अपना खाना मिस्कीनों, यतीमों और क़ैदियों को खिला देते हैं.
9. बेशक वे लोग कहते हैं कि हम तो सिर्फ़ अल्लाह की ख़ुशनूदी के लिए तुम्हें खाना खिला रहे हैं. हम तुमसे न बदला चाहते हैं और न शुक्रगुज़ारी के तलबगार हैं.
10. बेशक हमें अपने परवरदिगार से उस दिन का ख़ौफ़ रहता है, जब चेहरे बुरी तरह बिगड़ जाएंगे.
11. फिर अल्लाह उन्हें उस दिन के शर से बचा लेगा और उन्हें ताज़गी और ख़ुशी अता करेगा.
12. और उनके सब्र के बदले उन्हें जन्नत के बाग़ और रेशमी लिबास अता करेगा.
13. वे लोग उसमें तख़्तों पर तकिये लगाए बैठे होंगे, वहां न सूरज की तपिश होगी और न शिद्दत की ठंड.
14. और उन पर घने दरख़्तों के साये होंगे और मेवों के गुच्छे उनके क़रीब लट रहे होंगे.
15. और ख़ादिम उनके गिर्द चांदी के साग़र और शीशे के प्याले लिए फिरते होंगे.
16. और शीशे भी चांदी के होंगे, जिन्हें उन ख़ादिमों ने हर एक की तलब के मुताबिक़ ठीक अंदाज़े से भरा होगा. 
17 और उन्हें वहां पाकीज़ा शर्बत के ऐसे जाम पिलाए जाएंगे, जिनमें ज़ंजबील का पानी मिला होगा.
18. ज़ंजबील जन्नत में एक चश्मा है, जिसका नाम सलसबील रखा गया है.
19. और उनके अतराफ़ हमेशा नौजवान रहने वाले लड़के चक्कर लगाते होंगे. जब तुम उन्हें देखोगे, तो गुमान करोगे कि वे बिखरे हुए मोती हैं.
20. और जब तुम निगाह उठाओगे, तो तुम्हें वहां बेशुमार नेअमतें और बड़ी अज़ीमुश्शान सल्तनत नज़र आएगी. 
21. वे लोग बारीक और गाढ़े रेशम का सब्ज़ लिबास पहने हुए होंगे और उन्हें चांदी के कंगन पहनाए जाएंगे और उनका परवरदिगार उन्हें शराबे तहूरा यानी पाकीज़ा शर्बत पिलाएगा.
22. बेशक यह तुम्हारे उन आमाल की जज़ा होगी, जिन्हें अल्लाह ने क़ुबूल किया. 
23. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक हमने तुम पर क़ुरआन को थोड़ा-थोड़ा करके नाज़िल किया है.
24. फिर तुम अपने परवरदिगार के हुक्म की ख़ातिर सब्र करते रहो और उनमें से किसी गुनाहगार और नाशुक्रे का कहना नहीं मानना.
25. और तुम सुबह और शाम अपने परवरदिगार के नाम का ज़िक्र करते रहो.
26. और रात में कुछ वक़्त उसकी बारगाह में सजदा करो और रात के बाक़ी तवील हिस्से में उसकी तस्बीह किया करो.
27. बेशक दुनिया के तलबगार लोग जल्दी मिलने वाले फ़ायदे को पसंद करते हैं और एक सख़्त दिन की याद को अपने पीछे छोड़ देते हैं. 
28. हमने उन्हें पैदा किया और उनके जोड़-जोड़ मज़बूत बनाए और हम जब चाहें उनके बदले उन जैसे ही लोग ले आएं.
29. बेशक यह क़ुरआन नसीहत है, इसलिए जो चाहे अपने परवरदिगार तक पहुंचने की राह इख़्तियार कर ले.
30. और तुम कुछ भी नहीं चाह सकते, सिवाय उसके जो अल्लाह चाहे. बेशक अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म और बड़ा हिकमत वाला है.
31. वह जिसे चाहता है, अपनी रहमत में दाख़िल कर लेता है. और उसने ज़ालिमों के लिए दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है.

Thursday, July 8, 2021

77 सूरह अल मुरसलात

सूरह अल मुरसलात मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 50 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. क़सम है उन ख़ुशगवार हवाओं की, जो पहले हौले-हौले चलती हैं,
2. फिर क़सम है उन हवाओं की, जो तेज़ झोंकों से चलती हैं,
3. और क़सम है उन हवाओं की, जो बादलों को उड़ाये-उड़ाये फिरती हैं,
4. और क़सम है उन हवाओं की, जो उन्हें जुदा-जुदा कर देती हैं. 
5. फिर क़सम है, उन फ़रिश्तों की, जो वही लाते हैं,
6. जो वही पैग़ाम देने या ख़बरदार करने के लिए होती है.
7. बेशक जिसका तुमसे वादा किया जाता है, वह क़यामत वाक़े होकर रहेगी.
8. फिर जब सितारे बुझा दिए जाएंगे.
9. और जब आसमान शिगाफ़्ता हो जाएंगे.
10. और जब पहाड़ रेज़ा-रेज़ा करके उड़ाए जाएंगे.
11. और जब सब रसूल मुक़र्रर वक़्त पर अपनी-अपनी उम्मतों की गवाही के लिए जमा होंगे. 
12. भला किस दिन के लिए इसे टाला गया.
13. फ़ैसले के दिन के लिए.
14. और क्या तुम जानते हो कि फ़ैसले का दिन क्या है?
15. उस दिन झुठलाने वाले लोगों के लिए तबाही है.
16. क्या हमने पहले के झुठलाने वाले लोगों को हलाक नहीं कर दिया था?
17. फिर हम उनके बाद के लोगों को भी उनके पीछे भेज देंगे.
18. हम गुनाहगारों के साथ ऐसा ही सुलूक किया करते हैं.
19. उस दिन झुठलाने वाले लोगों के लिए तबाही है.
20. क्या हमने तुम्हें हक़ीर पानी से पैदा नहीं किया.
21. फिर हमने उसे एक महफ़ूज़ जगह रखा.
22. एक मुक़र्रर वक़्त तक.
23. फिर हमने उसका एक अंदाज़ा मुक़र्रर किया. फिर हम क्या ख़ूब अंदाज़ा मुक़र्रर करने वाले हैं.
24. उस दिन झुठलाने वाले लोगों के लिए तबाही है.
25. क्या हमने ज़मीन को समेट लेने वाली नहीं बनाया,
26. ज़िन्दा को और मुर्दों को समेटने वाली. 
27. और हमने उसमें बुलंद और मज़बूत पहाड़ रख दिए और हमने तुम्हें चश्मों के ज़रिये ठंडा व मीठा पानी पिलाया.
28. उस दिन झुठलाने वाले लोगों के लिए तबाही है.
29. अब तुम उस अज़ाब की तरफ़ चलो, जिसे तुम झुठलाया करते थे.
30. तुम दोज़ख़ के धुयें के साये की तरफ़ चलो, जिसके तीन हिस्से हैं,
31. जो न ठंडा साया है और न आग की तपिश से बचाने वाला है.
32. बेशक वह दोज़ख़ बुलंद महलों की तरह आग के बड़े-बड़े शोले और चिंगारियां उड़ाती है.
33. गोया वे शोले ज़र्द रंग के ऊंट हैं.
34. उस दिन झुठलाने वाले लोगों के लिए तबाही है.
35. उस दिन लोग होंठ तक नहीं हिला सकेंगे.
36. और न उन्हें इजाज़त दी जाएगी कि वे माज़रत कर सकें.
37. उस दिन झुठलाने वाले लोगों के लिए तबाही है.
38. ये फ़ैसले का दिन है, जिसमें हम तुम्हें और तुमसे पहले के लोगों को जमा करेंगे.
39. फिर अगर तुम्हारे पास अज़ाब से बचने की कोई चाल है, तो चल लो.
40. उस दिन झुठलाने वाले लोगों के लिए तबाही है.
41. बेशक परहेज़गार ठंडी छांव और चश्मों में सुकून से होंगे.
42. और फल और मेवे जिसकी वे ख़्वाहिश करेंगे, उनके लिए मौजूद होंगे.
43. उनसे कहा जाएगा कि तुम ख़ूब मज़े से खाओ और पियो. उन आमाल के बदले जो तुम किया करते थे.
44. बेशक हम नेक लोगों को ऐसा ही सिला दिया करते हैं. 
45. उस दिन झुठलाने वाले लोगों के लिए तबाही है.
46. ऐ मुनकिरो ! तुम कुछ वक़्त खा लो और फ़ायदा उठा लो. बेशक तुम गुनाहगार हो.
47. उस दिन झुठलाने वाले लोगों के लिए तबाही है. 
48. और जब उनसे कहा जाता है कि तुम अल्लाह की बारगाह में झुको, तो वे नहीं झुकते.
49. उस दिन झुठलाने वाले लोगों के लिए तबाही है.
50. फिर वे लोग इस क़ुरआन के बाद अब किस हदीस पर ईमान लाएंगे? यानी किस बात पर ईमान लाएंगे.