Saturday, July 17, 2021

68 सूरह अल क़लम

सूरह अल क़लम मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 52 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. नून. क़सम है क़लम की और क़सम है उस मज़मून की, जो फ़रिश्ते लिखते हैं.
2. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम अपने परवरदिगार के फ़ज़ल से दीवाने नहीं हो.
3. और बेशक तुम्हारे लिए ऐसा अज्र है, जो कभी ख़त्म नहीं होगा.
4. और बेशक तुम्हारे अख़लाक़ बड़े अज़ीम हैं.
5. फिर अनक़रीब तुम देखोगे और वे भी देख लेंगे,
6. कि तुम में से कौन दीवाना है?
7. बेशक तुम्हारा परवरदिगार उस शख़्स को भी ख़ूब जानता है, जो उसकी राह से भटक गया है और वह उन्हें भी ख़ूब जानता है, जो हिदायत याफ़्ता हैं.
8. फिर तुम झुठलाने वालों का कहना मत मानना.
9. वे लोग चाहते हैं कि तुम नरमी इख़्तियार कर लो, तो वे भी नरम पड़ जाएं. 
10. और तुम किसी ऐसे शख़्स के कहने में मत आना, जो बहुत क़समें खाने वाला ज़लील हो,
11. जो तंज़ करने वाला, ऐब लगाने वाला और चुग़लख़ोर हो,
12. जो भलाई के काम से रोकने वाला बख़ील, हद से बढ़ने वाला सरकश और गुनाहगार हो,
13. जो बदमिज़ाज और बदज़ात हो,
14. उसे सिर्फ़ इसलिए तवज्जो न दें कि वह माल और औलाद वाला है.
15. जब उसे हमारी आयतें पढ़कर सुनाई जाती हैं, तो वह कहता है कि ये पहले के लोगों के अफ़साने हैं.
16. हम अनक़रीब उसकी नाक पर दाग़ लगाएंगे.
17. बेशक हम उन मक्का वालों को भी उसी तरह आज़माएंगे, जिस तरह हमने यमन के उन बाग़ वालों को आज़माया था जब उन्होंने क़सम खाकर कहा था कि हम सुबह होते ही यक़ीनन उसके फल तोड़ लेंगे.
18. और उन्होंने इंशा अल्लाह नहीं कहा.
19. फिर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से रात में बाग़ पर गर्दिश का एक झोंका आया और वे लोग सोते ही रहे.
20. फिर फलों से भरा हुआ बाग़ कटी हुई खेती की तरह हो गया.
21. फिर सुबह होते ही उन्होंने एक दूसरे को आवाज़ें दीं.
22. कि अपने बाग़ में सुबह सवेरे चलो, अगर तुम फल तोड़ना चाहते हो.
23. फिर वे लोग चल पड़े और आपस में चुपके-चुपके कहने लगे-
24. कि आज इस बाग़ में कोई मिस्कीन यानी ग़रीब और मोहताज न आने पाए.
25. और वे सुबह सवेरे ही बाग़ में जा पहुंचे, गोया वे क़ादिर हों. 
26. फिर जब उन्होंने तबाह हुए बाग़ को देखा, तो कहने लगे कि यक़ीनन हम रास्ता भटक गए हैं. यानी यह हमारा बाग़ नहीं है.
27. जब बाग़ को ग़ौर से देखा, तो कहने लगे कि नहीं, बल्कि हम महरूम हो गए.
28. उनमें से एक इंसाफ़ पसंद शख़्स कहने लगा कि क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि तुम अल्लाह का ज़िक्र और उसकी तस्बीह क्यों नहीं करते?  
29. तब वे कहने लगे कि हमारा परवरदिगार पाक है. बेशक हम ही ज़ालिम थे.
30. फिर वे एक दूसरे की तरफ़ मुतावज्जे होकर आपस में मलामत करने लगे. 
31. वे कहने लगे कि हमारी शामत ! बेशक हम ख़ुद ही सरकश थे.
32. उम्मीद है कि हमारा परवरदिगार हमें इसके बदले इससे बेहतर देगा. हम अपने परवरदिगार की तरफ़ राग़िब होते हैं.
33. अज़ाब ऐसा ही होता है और आख़िरत का अज़ाब तो इससे भी बड़ा होगा. काश ! वे लोग जानते.
34. बेशक परहेज़गारों के लिए उनके परवरदिगार के पास जन्नत के नेअमतों वाले बाग़ हैं.
35. क्या हम मुसलमानों यानी फ़रमाबरदारों को गुनाहगारों की तरह महरूम कर देंगे?
36. तुम्हें क्या हुआ है, तुम कैसा फ़ैसला करते हो.
37. क्या तुम्हारे पास कोई किताब है, जिसमें तुम यह सब पढ़ते हो,
38. बेशक तुम्हारे लिए उसमें वह सबकुछ है, जो तुम चाहते हो.
39. या तुमने हमसे क़समें ले रखी हैं, जो क़यामत तक चलेंगी कि बेशक तुम्हें वह सब मिलेगा, जो तुम चाहोगे.
40. उनसे दरयाफ़्त करो कि उनमें से कौन इसकी ज़िम्मेदारी लेता है. 
41. या उनके कुछ और शरीक भी हैं. फिर उन्हें चाहिए कि वे अपने शरीकों को लाएं, अगर वे सच्चे हैं.
42. जिस दिन साक़ खोल दी जाएगी यानी क़यामत से पर्दा उठा दिया जाएगा और नाफ़रमान लोग सजदे के लिए बुलाए जाएंगे, तो वे सजदा नहीं कर सकेंगे.
43. उनकी आंखें झुकी हुई होंगी और उन पर ज़िल्लत छाई होगी. हालांकि उन्हें दुनिया में भी सजदे के लिए बुलाया जाता था, जब वे सही सलामत थे. यानी फिर भी वे लोग सजदा नहीं करते थे.
44. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम हमें और उस शख़्स को छोड़ दो, जो इस हदीस को झुठलाता है. हम उन्हें आहिस्ता-आहिस्ता इस तरह तबाही की तरफ़ ले जाएंगे कि वे जान भी नहीं पाएंगे.
45. और हम उन्हें मोहलत दे रहे हैं. बेशक हमारी तदबीर बहुत मज़बूत है.
46. क्या तुम उनसे कोई अज्र मांग रहे हो कि वे तावान के बोझ से दबे जा रहे हैं.
47. या उनके पास ग़ैब का इल्म है कि वे अपने फ़ैसले लिख लेते हैं.
48. फिर तुम अपने परवरदिगार के हुक्म के इंतज़ार में सब्र करो और मछली का लुक़मा होने वाले यूनुस अलैहिस्सलाम की तरह मत हो जाना, उन्होंने अल्लाह को तब पुकारा था, जब वे ग़मज़दा थे. 
49. अगर उनके परवरदिगार की नेअमत न होती, तो वह ज़रूर खुले मैदान में डाल दिए जाते और उनका बुरा हाल होता.  
50. फिर उनके परवरदिगार ने उन्हें मुंतख़िब कर लिया और उन्हें अपने स्वालिहीन बन्दों में शामिल कर लिया.
51. और बेशक कुफ़्र करने वाले लोग जब क़ुरआन को सुनते हैं, तो ऐसा लगता है कि वे तुम्हें अपनी निगाहों से नुक़सान पहुंचाना चाहते हैं और कहते हैं कि ये तो दीवाना है.  
52. और यह क़ुरआन तमाम आलमों के लिए ज़िक्र यानी नसीहत है. 

0 comments:

Post a Comment