Thursday, July 29, 2021

56 सूरह अल वाक़िआ

सूरह अल वाक़िआ मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 96 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. जब होनी होकर रहेगी यानी क़यामत बरपा होगी.
2. उसके होने में कोई झूठ नहीं है. 
3 वह क़यामत किसी को पस्त करने वाली और किसी को बुलंद करने वाली है. 
4. जब ज़मीन ज़ोर से हिलाई जाएगी, तो वह लरज़ने लगेगी.
5. और पहाड़ टूटकर बिल्कुल रेज़ा-रेज़ा हो जाएंगे. 
6. फिर वे गर्द ग़ुबार बनकर उड़ने लगेंगे.
7. और तुम लोग तीन क़िस्म की जमात में तक़सीम हो जाओगे.
8. फिर पहले दाहिनी तरफ़ वाले. दाहिनी तरफ़ वालों का क्या कहना. यानी वे सुकून से होंगे.
9. और दूसरे बायीं तरफ़ वाले. क्या बायीं तरफ़ वाले. यानी वे बदहाल होंगे. 
10. और तीसरे आगे बढ़ जाने वाले हैं. वे आगे ही बढ़ने वाले हैं. 
11. वे लोग अल्लाह का क़ुर्ब हासिल करने वाले हैं.
12. वे जन्नत के नेअमतों वाले बाग़ों में रहेंगे.
13. एक बड़ी जमात अगले लोगों यानी मुक़र्रिबों में से होगी.
14. और कुछ लोग पिछले यानी दाहिनी तरफ़ वालों में से होंगे. 
15. और वे मुक़र्रिब लोग ज़रनिगार तख़्तों पर बैठे होंगे.
16. वे एक दूसरे के सामने तकिये लगाए बैठे होंगे.
17. हमेशा जवान रहने वाले लड़के उनकी ख़िदमत में इर्द गिर्द घूम रहे होंगे.
18. वे ख़ूबसूरत साग़र और शफ़्फ़ाफ़ शर्बत के जाम लिए हुए उनकी ख़िदमत में हाज़िर रहेंगे.
19. इसे पीने से न उन्हें सरदर्द होगा और न वे बहकेंगे.
20. और जिस क़िस्म के फल और मेवे वे पसंद करेंगे,
21. और जिस परिन्दे का गोश्त वे खाना चाहेंगे, उनके लिए सब मौजूद होगा.
22. और वहां बड़ी आंखों वाली हूरें होंगी,
23. गोया संभाल कर रखे हुए मोती हों.
24. यह उनके नेक आमाल की जज़ा होगी, जो वे किया करते थे.
25. उसमें वे बेहूदा और गुनाह की कोई बात नहीं सुनेंगे.
26. सिर्फ़ उनका कलाम सलाम ही सलाम होगा.
27. और दाहिनी तरफ़ वाले. दाहिनी तरफ़ वालों का क्या कहना.
28. वे वहां होंगे, जहां बिना कांटे की बेरी
29. और गुच्छेदार केले
30. और दूर-दूर तक फैली छांव
31. और बहते पानी के चश्मे
32. और बहुत से फल और मेवे होंगे. 
33. जो न कभी ख़त्म होंगे और न उनके लेने पर कोई रोक टोक ही होगी.
34. और वहां ऊंचे और नरम बिछौने होंगे.
35. बेशक हमने उन हूरों को बहुत ख़ूबसूरत बनाया है.
36. हमने उन्हें कुंआरियां बनाया. 
37. उन्हें मुहब्बत करने वाली और हमउम्र बनाया. 
38. ये सब दायीं तरफ़ वालों के लिए है.
39. उनमें एक बड़ी जमात अगले यानी मुक़र्रिबों में से होगी.  
40. और उनमें एक बड़ी पिछले यानी दायीं तरफ़ वाले लोगों में से भी होगी.
41. और दूसरे बायीं तरफ़ वाले. क्या बायीं तरफ़ वाले. यानी वे बदहाल होंगे.
42. वे दोज़ख़ की आंच और खौलते हुए पानी में
43. और स्याह धुएं के साये में होंगे,
44. जो न ठंडा होगा और न ख़ुशनुमा होगा.
45. बेशक वे लोग इससे पहले दुनिया में ख़ूब एशो आराम में थे.
46. और वे बड़े गुनाह करने पर आमादा रहते थे.
47. और वे कहते थे कि जब हम मर जाएंगे और मिट्टी और हड्डियां हो जाएंगे, तो क्या हम फिर से ज़िन्दा करके उठाए जाएंगे.
48. और क्या हमारे बाप दादा भी दोबारा ज़िन्दा किए जाएंगे?
49. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक अगले और पिछले
50. सब एक मुअय्यन दिन मुक़र्रर वक़्त पर जमा किए जाएंगे.
51. फिर बेशक तुम, ऐ गुमराहों और झुठलाने वालो !
52. तुम्हें ज़क़्क़ूम के दरख़्तों में से खाना होगा.
53. फिर उसी से पेट भरना होगा.
54. फिर खौलता हुआ पानी पीना होगा.
55. फिर इस तरह पानी पिओगे, जैसे बहुत प्यासे ऊंट पीते हैं.
56. यह क़यामत के दिन उन लोगों की मेहमानी होगी.
57. हमने तुम्हें पहली बार पैदा किया था. फिर तुम दोबारा ज़िन्दा किए जाने की तसदीक़ क्यों नहीं करते? 
58. क्या तुमने नहीं देखा कि जिस नुत्फे़ को तुम टपकाते हो,
59. क्या तुम उससे इंसान पैदा करते हो या हम पैदा करते हैं? 
60. हमने तुम्हारी मौत मुक़र्रर कर दी है और हम तुम्हें दोबारा ज़िन्दा करने से भी आजिज़ नहीं हैं.
61. कि हम तुम्हारे जैसों को बदल दें और तुम्हें ऐसी सूरत में पैदा कर दें, जिसे तुम जानते भी न हो.
62. और बेशक तुम पहली पैदाइश को जान चुके हो. क्या फिर भी तुम ग़ौर व फ़िक्र नहीं करते?
63. क्या तुमने देखा, जो कुछ तुम बोते हो.
64. क्या उससे तुम फ़सल उगाते हो या हम उगाते हैं.
65. अगर हम चाहें, तो उसे रेज़ा-रेज़ा कर दें. फिर तुम बातें ही बनाते रह जाओ,
66. वे कहने लगे कि बेशक हम पर तावान पड़ गया. 
67. बल्कि हम महरूम हो गए.
68. क्या फिर भी तुम नहीं देखते कि जो पानी तुम पीते हो.
69. क्या तुम उसे बादलों से बरसाते हो या हम बरसाते हैं.
70. अगर हम चाहें, तो उसे खारा बना दें. फिर तुम शुक्र अदा क्यों नहीं करते.
71. क्या तुम नहीं देखते कि लकड़ी से जो आग तुम सुलगाते हो.
72. क्या उसके शजर को तुमने पैदा किया या हम पैदा करते हैं?
73. हमने आग को याद दहानी का ज़रिया और मुसाफ़िरों के लिए फ़ायदे की चीज़ बनाया.
74. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम अपने अज़ीम परवरदिगार के नाम की तस्बीह किया करो.
75. फिर क़सम है, उन जगहों की, जहां तारे डूबते हैं.
76. और अगर तुम समझो, तो बेशक यह बहुत बड़ी क़सम है. 
77. बेशक यह मुअज़्ज़िज़ क़ुरआन है,
78. जो लौहे महफ़ूज़ में लिखा हुआ है.
79. इसे पाक लोगों के सिवा कोई नहीं छू सकता.
80. यह तमाम आलमों के परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल किया गया है.
81. क्या तुम इस हदीस की तहक़ीर करते हो? 
82. और तुमने अपना रिज़्क़ इसी बात को बना रखा है कि तुम इसे झुठलाते रहो.
83. फिर तुम रूह को वापस क्यों नहीं लौटा लेते, जब वह हलक़ तक पहुंचती है.
84. और तुम उस वक़्त देखते ही रह जाते हो, 
85. और हम उस मरने वाले से तुम्हारी निस्बत ज़्यादा क़रीब होते हैं, लेकिन तुम्हें नज़र नहीं आते.
86. फिर तुम ऐसा क्यों नहीं कर सकते. अगर तुम किसी के इख़्तियार में नहीं हो.
87. तुम रूह को वापस क्यों नहीं फेर लेते. अगर तुम सच्चे हो.
88. फिर अगर वह मरने वाला मक़र्रिबों में से था,
89. तो उसके लिए राहत है और रूहानी रिज़्क़ और नेअमतों से लबरेज़ जन्नत है.
90. और अगर वह दाहिनी तरफ़ वालों में से था,
91. तो उससे कहा जाएगा कि तुम पर दाहिनी तरफ़ वालों की जानिब से सलाम हो.
92. और अगर वह झुठलाने वालों और गुमराहों में से था,
93. तो उसकी मेहमानी खौलते हुए पानी से होगी.
94. और उसे जहन्नुम में डाला जाएगा.
95. बेशक यह क़तई तौर पर हक़्क़ुल यक़ीन है. 
96. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम अपने अज़ीम परवरदिगार के नाम की तस्बीह किया करो.

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