सूरह अल जिन्न मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 28 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मेरे पास वही आई है कि जिन्नों की एक जमात ने मेरी तिलावत को ग़ौर से सुना. फिर अपनी क़ौम के पास जाकर कहने लगे कि बेशक हमने एक अजीब क़ुरआन सुना है,
2. जो नेकी का रास्ता दिखाता है, इसलिए हम उस पर ईमान ले आए और हम अपने परवरदिगार के साथ किसी को शरीक नहीं ठहराएंगे.
3. और यह कि हमारे परवरदिगार की शान बहुत बुलंद है. उसने न किसी को बीवी बनाया है और न कोई औलाद.
4. और यह कि हममें से कुछ अहमक़ ही अल्लाह के बारे में ऐसी बातें कहते थे, जो हक़ीक़त से बहुत दूर हैं.
5. और हमारा यह गुमान था कि इंसान और जिन्न अल्लाह के बारे में झूठ नहीं बोलते.
6. और यह कि इंसानों में से कुछ लोग जिन्नों में से बाज़ अफ़राद की पनाह लेते हैं, जिससे जिन्नों की सरकशी और बढ़ गई.
7. और यह कि तुम्हारी तरह उनका भी यही गुमान था कि अल्लाह किसी को दोबारा ज़िन्दा नहीं करेगा.
8. और ये कि हमने आसमान को छुआ, तो उसे सख़्त पहरेदारों और अंगारों की तरह दहकने और चमकने वाले सितारों से भरा हुआ पाया.
9. और यह कि पहले हम आसमानी ख़बरें सुनने के लिए कई मक़ामात में बैठा करते थे, लेकिन अब कोई सुनना चाहे, तो वह अपने लिए आग के शोले तैयार पाएगा.
10. और यह कि हम नहीं जानते कि हमारी बंदिश ज़मीन में रहने वाले लोगों के हक़ में बुराई है या उनके परवरदिगार ने उनकी भलाई का इरादा किया है.
11. और यह कि बेशक हममें से कुछ लोग नेक हैं और हम में से कुछ उसके सिवा बुरे भी हैं. हम मुख़्तलिफ़ तरीक़ों पर चल रहे हैं.
12. और यह कि हमें यक़ीन हो गया है कि हम न ज़मीन में रहकर अल्लाह को आजिज़ कर सकते और न ज़मीन से भागकर उसे आजिज़ कर सकते हैं.
13. और यह कि जब हमने यह हिदायत सुनी, तो हम उस पर ईमान ले लाए. फिर जो शख़्स अपने परवरदिगार पर ईमान लाता है, तो उसे न नुक़सान का ख़ौफ़ होता है और न ज़ुल्म का.
14. और यह कि हम में से कुछ मुसलमान यानी फ़रमाबरदार हैं और हम में से कुछ नाफ़रमान हैं. फिर जो लोग फ़रमाबरदार हो गए, तो वे भलाई के रास्ते पर चले.
15. और जो लोग नाफ़रमान हैं, तो वे जहन्नुम का ईंधन बनेंगे.
16. और ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मेरे पास यह वही भी आई है कि अगर वे लोग सीधे रास्ते पर क़ायम रहें, तो हम उन्हें बहुत से पानी से ज़रूर सेराब करेंगे.
17. ताकि हम उस नेअमत में उनकी आज़माइश करें. और जो शख़्स अपने परवरदिगार के ज़िक्र से मुंह फेरेगा, तो हम उसे सख़्त अज़ाब में मुब्तिला कर देंगे.
18. और यह कि मस्जिदें तो अल्लाह के लिए हैं, इसलिए अल्लाह के साथ किसी को मत पुकारो.
19. और यह कि जब अल्लाह के बन्दे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसकी इबादत के लिए खड़े हुए, तो क़रीब था कि वे हुजूम दर हुजूम उनके पास जमा हो गए.
20. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं सिर्फ़ अपने परवरदिगार की इबादत करता हूं और किसी को उसका शरीक नहीं बनाता.
21. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं तुम्हारे लिए न बुराई का इख़्तियार रखता हूं और न भलाई का.
22. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि न मुझे हरगिज़ अल्लाह के अज़ाब से कोई पनाह दे सकता है और न मैं उसके सिवा कोई पनाह की जगह पाता हूं.
23. लेकिन अल्लाह की तरफ़ से उसके अहकाम और उसके पैग़ाम पहुंचाना मेरी ज़िम्मेदारी है. और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नाफ़रमानी करेगा, तो बेशक उसके लिए जहन्नुम की आग है, जिसमें वह हमेशा रहेगा.
24. यहां तक कि जब वे लोग उस अज़ाब को देख लेंगे, जिनका उनसे वादा किया जाता है, तो उस वक़्त उन्हें मालूम हो जाएगा कि कौन मददगार के ऐतबार से कमज़ोर और तादाद में कमतर है.
25. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं नहीं जानता कि जिस क़यामत का तुमसे वादा किया जाता है, वह क़रीब है या मेरे परवरदिगार ने उसकी मुद्दत तवील कर दी है.
26. अल्लाह ही ग़ैब का जानने वाला है. फिर वह अपने ग़ैब की बातें किसी पर ज़ाहिर नहीं करता.
27. सिवाय अपने उस रसूल के, जिससे वह राज़ी हो. फिर बेशक वह उसके आगे और पीछे निगेहबान फ़रिश्ते मुक़र्रर कर देता है.
28. ताकि अल्लाह यह ज़ाहिर कर दे कि बेशक उन रसूलों ने अपने परवरदिगार के पैग़ाम पहुंचा दिए और जो कुछ उनके पास है, अल्लाह ने उनका अहाता किया हुआ है और उसने हर चीज़ को गिन रखा है.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मेरे पास वही आई है कि जिन्नों की एक जमात ने मेरी तिलावत को ग़ौर से सुना. फिर अपनी क़ौम के पास जाकर कहने लगे कि बेशक हमने एक अजीब क़ुरआन सुना है,
2. जो नेकी का रास्ता दिखाता है, इसलिए हम उस पर ईमान ले आए और हम अपने परवरदिगार के साथ किसी को शरीक नहीं ठहराएंगे.
3. और यह कि हमारे परवरदिगार की शान बहुत बुलंद है. उसने न किसी को बीवी बनाया है और न कोई औलाद.
4. और यह कि हममें से कुछ अहमक़ ही अल्लाह के बारे में ऐसी बातें कहते थे, जो हक़ीक़त से बहुत दूर हैं.
5. और हमारा यह गुमान था कि इंसान और जिन्न अल्लाह के बारे में झूठ नहीं बोलते.
6. और यह कि इंसानों में से कुछ लोग जिन्नों में से बाज़ अफ़राद की पनाह लेते हैं, जिससे जिन्नों की सरकशी और बढ़ गई.
7. और यह कि तुम्हारी तरह उनका भी यही गुमान था कि अल्लाह किसी को दोबारा ज़िन्दा नहीं करेगा.
8. और ये कि हमने आसमान को छुआ, तो उसे सख़्त पहरेदारों और अंगारों की तरह दहकने और चमकने वाले सितारों से भरा हुआ पाया.
9. और यह कि पहले हम आसमानी ख़बरें सुनने के लिए कई मक़ामात में बैठा करते थे, लेकिन अब कोई सुनना चाहे, तो वह अपने लिए आग के शोले तैयार पाएगा.
10. और यह कि हम नहीं जानते कि हमारी बंदिश ज़मीन में रहने वाले लोगों के हक़ में बुराई है या उनके परवरदिगार ने उनकी भलाई का इरादा किया है.
11. और यह कि बेशक हममें से कुछ लोग नेक हैं और हम में से कुछ उसके सिवा बुरे भी हैं. हम मुख़्तलिफ़ तरीक़ों पर चल रहे हैं.
12. और यह कि हमें यक़ीन हो गया है कि हम न ज़मीन में रहकर अल्लाह को आजिज़ कर सकते और न ज़मीन से भागकर उसे आजिज़ कर सकते हैं.
13. और यह कि जब हमने यह हिदायत सुनी, तो हम उस पर ईमान ले लाए. फिर जो शख़्स अपने परवरदिगार पर ईमान लाता है, तो उसे न नुक़सान का ख़ौफ़ होता है और न ज़ुल्म का.
14. और यह कि हम में से कुछ मुसलमान यानी फ़रमाबरदार हैं और हम में से कुछ नाफ़रमान हैं. फिर जो लोग फ़रमाबरदार हो गए, तो वे भलाई के रास्ते पर चले.
15. और जो लोग नाफ़रमान हैं, तो वे जहन्नुम का ईंधन बनेंगे.
16. और ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मेरे पास यह वही भी आई है कि अगर वे लोग सीधे रास्ते पर क़ायम रहें, तो हम उन्हें बहुत से पानी से ज़रूर सेराब करेंगे.
17. ताकि हम उस नेअमत में उनकी आज़माइश करें. और जो शख़्स अपने परवरदिगार के ज़िक्र से मुंह फेरेगा, तो हम उसे सख़्त अज़ाब में मुब्तिला कर देंगे.
18. और यह कि मस्जिदें तो अल्लाह के लिए हैं, इसलिए अल्लाह के साथ किसी को मत पुकारो.
19. और यह कि जब अल्लाह के बन्दे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसकी इबादत के लिए खड़े हुए, तो क़रीब था कि वे हुजूम दर हुजूम उनके पास जमा हो गए.
20. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं सिर्फ़ अपने परवरदिगार की इबादत करता हूं और किसी को उसका शरीक नहीं बनाता.
21. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं तुम्हारे लिए न बुराई का इख़्तियार रखता हूं और न भलाई का.
22. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि न मुझे हरगिज़ अल्लाह के अज़ाब से कोई पनाह दे सकता है और न मैं उसके सिवा कोई पनाह की जगह पाता हूं.
23. लेकिन अल्लाह की तरफ़ से उसके अहकाम और उसके पैग़ाम पहुंचाना मेरी ज़िम्मेदारी है. और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नाफ़रमानी करेगा, तो बेशक उसके लिए जहन्नुम की आग है, जिसमें वह हमेशा रहेगा.
24. यहां तक कि जब वे लोग उस अज़ाब को देख लेंगे, जिनका उनसे वादा किया जाता है, तो उस वक़्त उन्हें मालूम हो जाएगा कि कौन मददगार के ऐतबार से कमज़ोर और तादाद में कमतर है.
25. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं नहीं जानता कि जिस क़यामत का तुमसे वादा किया जाता है, वह क़रीब है या मेरे परवरदिगार ने उसकी मुद्दत तवील कर दी है.
26. अल्लाह ही ग़ैब का जानने वाला है. फिर वह अपने ग़ैब की बातें किसी पर ज़ाहिर नहीं करता.
27. सिवाय अपने उस रसूल के, जिससे वह राज़ी हो. फिर बेशक वह उसके आगे और पीछे निगेहबान फ़रिश्ते मुक़र्रर कर देता है.
28. ताकि अल्लाह यह ज़ाहिर कर दे कि बेशक उन रसूलों ने अपने परवरदिगार के पैग़ाम पहुंचा दिए और जो कुछ उनके पास है, अल्लाह ने उनका अहाता किया हुआ है और उसने हर चीज़ को गिन रखा है.
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