Friday, August 27, 2021

27 सूरह अन नम्ल

सूरह अन नम्ल मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 93 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ता सीन. ये क़ुरआन और रौशन किताब की आयतें हैं.
2. जो उन ईमान वालों के लिए सरापा हिदायत और ख़ुशख़बरी है.
3. जो लोग पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हैं और ज़कात देते हैं. और यही वे लोग हैं, जो आख़िरत पर भी यक़ीन रखते हैं.
4. बेशक जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते, हमने उनके बुरे आमाल उनकी नज़र में आरास्ता कर दिए हैं. फिर वे लोग भटकते फिरते हैं.
5. यही वे लोग हैं जिनके लिए बड़ा अज़ाब है और यही लोग आख़िरत में सबसे ज़्यादा नुक़सान उठाने वाले हैं.
6. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक तुम्हें यह क़ुरआन बडे़ हकीम और बड़े इल्म वाले अल्लाह की बारगाह से अता किया जा रहा है.
7. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वाक़िया याद करो कि जब मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी बीवी से कहा कि मैंने आग देखी है. अनक़रीब मैं वहां से कोई ख़बर या एक सुलगता हुआ अंगारा ले आऊंगा, ताकि तुम कुछ गर्मी महसूस कर सको.
8. फिर जब मूसा अलैहिस्सलाम उस आग के पास पहुंचे, तो उन्हें आवाज़ आई कि बाबरकत है वह, जो आग में नुमाया है और वह भी, जो इसके क़रीब है और अल्लाह की ज़ात पाक है, जो तमाम आलमों का परवरदिगार है.
9. ऐ मूसा अलैहिस्सलाम ! बेशक मैं ही अल्लाह हूं, जो ग़ालिब और हिकमत वाला है.
10. ऐ मूसा अलैहिस्सलाम ! और अपना असा ज़मीन पर डाल दो. फिर जब मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे देखा कि वह अज़दहे की तरह लहरा रहा है, तो वे पीठ फेरकर तेज़ी से चल दिए और पीछे मुड़कर भी नहीं देखा. हमने कहा कि ऐ मूसा अलैहिस्सलाम ! ख़ौफ़ज़दा न हो. हमारी बारगाह में रसूल ख़ौफ़ज़दा नहीं होते.
11. लेकिन जिसने ज़ुल्म किया. फिर उसने बुराई के बाद उसे अच्छाई से बदल दिया, तो बेशक हम बड़े बख़्शने वाले बड़े मेहरबान हैं. 
12. और अपना हाथ अपने गिरेबान में डालो, तो वह बग़ैर किसी ऐब के सफ़ेद होकर निकलेगा. ये अल्लाह की निशानियों में से हैं. इन्हें लेकर तुम फ़िरऔन और उसकी क़ौम के पास जाओ. बेशक वह नाफ़रमान क़ौम है.
13. फिर जब मूसा अलैहिस्सलाम उनके पास हमारी वाज़ेह निशानियां लेकर आए, तो वे लोग कहने लगे कि यह सरीह जादू है.
14. और उन्होंने तकब्बुर की वजह से इनकार कर दिया. और उनके दिल इन निशानियों पर यक़ीन कर चुके थे. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! देखो कि मुफ़सिदों का क्या अंजाम हुआ. 
15. और बेशक हमने दाऊद अलैहिस्सलाम और सुलेमान अलैहिस्सलाम को इल्म अता किया. और दोनों ने ख़ुश होकर कहा कि अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं, जिसने हमें अपने बहुत से मोमिन बन्दों पर फ़ज़ीलत बख़्शी है.
16. और सुलेमान अलैहिस्सलाम, दाऊद अलैहिस्स्मा के वारिस बने और उन्होंने कहा कि ऐ लोगो ! हमें परिन्दों की बोली भी सिखाई गई है और हमें हर चीज़ अता की गई है, बेशक यह अल्लाह का वाज़ेह फ़ज़ल है. 
17. और सुलेमान अलैहिस्सलाम के लिए उनके लश्कर जिन्न और इंसान और परिन्दे सब जमा किए गए थे. फिर वे सब उनकी ख़िदमत में रहते थे. 
18. यहां तक कि जब वे लश्कर एक दिन चींटियों के मैदान में आ गए, तो एक चींटी कहने लगी कि ऐ चींटियो ! अपने घरों में चली जाओ, कहीं ऐसा न हो कि सुलेमान अलैहिस्सलाम और उनके लश्कर तुम्हें कुचल डालें और उन्हें इसका शऊर भी न हो.
19. फिर सुलेमान अलैहिस्सलाम चींटी की बात सुनकर मुस्कुराये और हंसने लगे. और अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझे तौफ़ीक़ अता फ़रमा कि जो नेअमतें तूने मुझे और मेरे वालिदैन को इनायत की हैं, मैं उनका शुक्रगुज़ार रहूं और मैं ऐसे नेक काम करूं, जिसे तू पसंद करे. और मुझे तू अपनी रहमत से अपने स्वालिहीन बन्दों में शामिल कर ले. 
20. और सुलेमान अलैहिस्सलाम ने परिन्दों के लश्कर का जायज़ा लिया, तो कहने लगे कि क्या बात है कि मैं हुदहुद को नहीं देखता. क्या वाक़ई वह ग़ायब है.
21. अगर ऐसा है, तो मैं उसे सख़्त सज़ा दूंगा या उसे ज़िबह ही करवा दूंगा. या वह अपने बेक़सूर होने की कोई वाज़ेह दलील पेश करे.
22. फिर थोड़ी ही देर बाद हुदहुद हाज़िर हुआ और उसने सुलेमान अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया कि मुझे एक ऐसी बात मालूम हुई है, जो शायद अब तक आपको मालूम नहीं है. और मैं आपके पास मुल्क सबा से एक यक़ीनी ख़बर लेकर आया हूं.
23. बेशक मैंने एक औरत बिलक़ीस को देखा है, जो वहां के बाशिन्दों पर हुकूमत करती है और उसे हर चीज़ अता की गई है और उसके पास एक बहुत बड़ा तख़्त है.
24. मैंने मलिका बिलक़ीस और उसकी क़ौम को अल्लाह के सिवा सूरज को सजदा करते हुए पाया है. और शैतान ने उनके बुरे आमाल उनकी नज़र में आरास्ता कर दिए हैं और उन्हें तौहीद के रास्ते से रोक दिया है, इसलिए वे लोग हिदायत नहीं पाते. 
25. क्योंकि वे लोग अल्लाह को सजदा नहीं करते, जो आसमानों और ज़मीन की पोशीदा बातों को ज़ाहिर कर देता है. और वह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है, जो कुछ तुम पोशीदा रखते हो और जो कुछ ज़ाहिर करते हो.
26. अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं. वही अर्शे अज़ीम का मालिक है.
27. सुलेमान अलैहिस्सलाम ने हुदहुद से कहा कि हम अभी देखते हैं कि क्या तू सच कह रहा है या तू झूठ बोलने वालों में से है.
28. सुलेमान अलैहिस्सलाम ने हुदहुद से कहा कि मेरा यह ख़त लेकर जा और इसे उन लोगों के सामने डाल दे. फिर उनके पास से जाना हट जाना. फिर देखते रहना कि वे लोग क्या जवाब देते हैं.
29. मलिका बिलक़ीस कहने लगी कि ऐ मेरे दरबारियो ! बेशक मेरे पास एक करीम ख़त डाला गया है.
30. बेशक वह ख़त सुलेमान अलैहिस्सलाम की तरफ़ से है. बेशक वह अल्लाह के नाम से शुरू किया गया, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है.
31. और मज़मून यह है कि तुम लोग मेरे सामने सरकशी न करो और मुसलमान यानी फ़रमाबरदार बनकर मेरे पास आओ. 
32. मलिका बिलक़ीस कहने लगी कि ऐ मेरे दरबारियो ! तुम मुझे इस मामले में मशवरा दो. मैं तब तक कोई फ़ैसला नहीं करती, जब तक तुम मेरे पास हाज़िर होकर माक़ूल मशवरा न दो.
33. उन दरबारियों ने कहा कि हम बड़े क़ूवत वाले और सख़्त जंगजू हैं. और हर काम का हुक्म आपके इख़्तियार में है. आप ख़ुद ही ग़ौर कर लें कि आपको क्या हुक्म देना है. 
34. मलिका बिलक़ीस ने कहा कि बेशक बादशाह जब किसी बस्ती में दाख़िल हो जाते हैं, तो उसे तबाह व बर्बाद कर देते हैं और वहां के मुअज़्ज़िज़ बाशिन्दों को ज़लील व ख़्वार करते हैं. और वे लोग भी ऐसा ही करेंगे.
35. और बेशक मैं उनके पास कुछ तोहफ़े भेजकर देखती हूं कि क़ासिद क्या जवाब लेकर वापस लौटते हैं. 
36. फिर जब क़ासिद सुलेमान अलैहिस्सलाम के पास आया, तो उन्होंने कहा कि क्या तुम लोग माल व दौलत से मेरी मदद करना चाहते हो. फिर अल्लाह ने जो कुछ मुझे अता किया है, वह उस दौलत से कहीं बेहतर है, जो उसने तुम्हें बख़्शी है. बल्कि तुम लोग ही अपने तोहफ़े से ख़ुश होते हो.
37. तुम उन्हीं लोगों के पास लौट जाओ. हम यक़ीनन ऐसे लश्करों के साथ उन पर हमला करने के लिए आएंगे, जिनसे मुक़ाबला करने की उनकी ताक़त नहीं होगी. और हम ज़रूर उन्हें वहां से ज़लील व ख़्वार करके निकाल देंगे.
38. सुलेमान अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ मेरे दरबारियो ! तुममें से कौन ऐसा है, जो मलिका का तख़्त मेरे पास लेकर आए, इससे पहले कि वे लोग मुसलमान यानी फ़रमाबरदार बनकर मेरे पास आएं.
39. एक ताक़तवर जिन्न ने कहा कि आप अपनी जगह से उठें, इससे पहले ही मैं तख़्त आपके पास ले आऊंगा. और बेशक मैं क़ूवत वाला और अमानतदार हूं.
40. फिर आसमानी किताब के इल्म वाले एक शख़्स आसिफ़ बिन बरख़िया ने कहा कि मैं पलक झपकने से पहले ही तख़्त को आपके सामने हाज़िर कर सकता हूं. फिर जब सुलेमान अलैहिस्सलाम ने उसे अपने पास रखा हुआ देखा, तो कहने लगे कि यह मेरे परवरदिगार का फ़ज़ल है, ताकि मुझे आज़माये कि मैं उसका शुक्र करता हूं या नाशुक्री करता हूं. और जो अल्लाह का शुक्र अदा करता है, तो वह अपनी ही भलाई के लिए शुक्र अदा करता है और जो नाशुक्री करता है, तो बेशक मेरा परवरदिगार बेनियाज़ और बड़ा करम करने वाला है.
41. सुलेमान अलैहिस्सलाम ने कहा कि मलिका बिलक़ीस के इम्तिहान के लिए उसके तख़्त में कुछ तबदीली कर दो, ताकि हम देखें कि वह समझ जाती है या उन लोगों में से है जो राह नहीं पाते. 
42. फिर जब मलिका बिलक़ीस, सुलेमान अलैहिस्सलाम के पास आई, तो उससे दरयाफ़्त किया गया कि तुम्हारा तख़्त भी ऐसा ही है. वह कहने लगी कि गोया यह वही है और हमें इससे पहले ही आपकी नबुवत का इल्म हो गया था. और हम आपके मुसलमान यानी फ़रमाबरदार हो चुके हैं.
43. और उसने मलिका बिलक़ीस को ईमान लाने से रोक दिया था, जिसे वह अल्लाह के सिवा पुकारती थी. बेशक वह काफ़िरों की क़ौम में से थी.
44. मलिका बिलक़ीस से कहा गया कि तुम महल में दाख़िल हो जाओ. उसने महल में शीशे के फ़र्श को देखा, तो उसे गहरा पानी समझा और उसने अपने पायचें उठाकर अपनी दोनों पिंडलियां खोल दीं. सुलेमान अलैहिस्सलाम ने कहा कि यह शीशे जड़ा हुआ महल है. मलिका ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! बेशक मैंने अपनी जान पर ज़ुल्म किया और अब मैं सुलेमान अलैहिस्सलाम के हाथ पर अल्लाह की मुसलमान यानी फ़रमाबरदार हो गई हूं, जो तमाम आलमों का परवरदिगार है.
45. और बेशक हमने क़ौमे समूद के पास उनके क़ौमी भाई सालेह अलैहिस्सलाम को पैग़म्बर बनाकर भेजा कि तुम लोग अल्लाह की इबादत करो, तो उस वक़्त वे लोग दो फ़रीक़ बनकर आपस में झगड़ने लगे.
46. सालेह अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ मेरी क़ौम ! तुम लोग अच्छाई से पहले बुराई में क्यों जल्दी क्यों कर रहे हो. तुम अल्लाह से बख़्शीश तलब क्यों नहीं करते, ताकि तुम पर रहम किया जाए.
47. वे लोग कहने लगे कि हमें तुमसे भी नहूसत पहुंची है और तुम्हारे साथियों से भी बदशगुनी ही पाई है. सालेह अलैहिस्सलाम ने कहा कि तुम्हारी नहूसत का सबब अल्लाह के पास है, बल्कि तुम फ़ितने में मुब्तिला क़ौम हो. 
48. और शहर में नौ सरदार थे, जो ज़मीन में फसाद फैलाते रहते थे. और अपनी इस्लाह नहीं करते थे. 
49. वे सरदार कहने लगे कि तुम आपस में अल्लाह की क़सम खाकर अहद करो कि हम ज़रूर रात को सालेह अलैहिस्सलाम और उनके घरवालों पर क़ातिलाना हमला करेंगे. फिर उनके वारिसों से कह देंगे कि हम उनकी हलाकत के मौक़े पर मौजूद नहीं थे. और बेशक हम सच्चे हैं. 
50. और उन लोगों ने मकर किया और हमने भी एक ख़ुफ़िया तदबीर की और उन्हें इसका शऊर भी नहीं था.
51. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम देखो कि उनके मकर का क्या अंजाम हुआ. बेशक हमने उन्हें और उनकी सारी क़ौम को तबाह व बर्बाद कर दिया. 
52. फिर ये उनके घर हैं, जो उनके ज़ुल्म की वजह से वीरान पड़े हैं. बेशक इसमें उस क़ौम के लिए बड़ी निशानी है, जो इल्म रखती है. 
53. और हमने उन लोगों को निजात दी, जो ईमान लाए और परहेज़गार रहे.
54. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम लूत अलैहिस्सलाम को याद करो कि जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि क्या तुम बेहयाई पर उतर आए हो. और तुम देखते भी हो. 
55. क्या तुम अपनी शहवत पूरी करने के लिए औरतों को छोड़कर मर्दों के पास जाते हो, बल्कि तुम जाहिल क़ौम हो.
56. फिर लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम का जवाब इसके सिवा कुछ नहीं था कि वे लोग कहने लगे कि लूत अलैहिस्सलाम के घरवालों को अपनी बस्ती सदूम से निकाल दो. बेशक वे बड़े पाकबाज़ बनते हैं.
57. फिर हमने लूत अलैहिस्सलाम और उनके घरवालों को निजात दी, सिवाय उनकी बीवी के. हमने उसे पीछे रह जाने वालों में से मुक़र्रर कर दिया था.
58. और हमने उन लोगों पर पत्थरों की बारिश बरसाई. फिर वह उन लोगों पर बहुत बुरी बारिश थी, जिन्हें ख़बरदार किया गया था. 
59. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं और उसके बरगुज़ीदा बन्दों पर सलाम हो. क्या अल्लाह बेहतर है या वे बातिल सरपरस्त, जिन्हें वे लोग अल्लाह का शरीक ठहराते हैं.
60. भला वह कौन है, जिसने आसमान और ज़मीन की तख़लीक़ की और तुम्हारे लिए आसमान से पानी बरसाया. फिर हमने उस पानी से ख़ुशनुमा बाग़ उगाए. तुम्हारे लिए यह मुमकिन नहीं था कि तुम उनके दरख़्तों को उगा सकते. क्या अल्लाह के साथ कोई और भी सरपरस्त है, बल्कि वे क़ौम ख़ुद ही सीधे रास्ते से हट रही है.
61. भला वह कौन है, जिसने ज़मीन को लोगों के ठहरने की जगह बनाया और उसके दरम्यान नहरें जारी कीं और उसके लिए भारी पहाड़ बनाए. और खारे और मीठे पानी के दो समन्दरों के दरम्यान हदे फ़ासिल बनाई. क्या अल्लाह के साथ कोई और भी सरपरस्त है, बल्कि उनमें से बहुत से लोग नहीं जानते. 
62. भला वह कौन है, जो बेकस की दुआ क़ुबूल करता है और उसकी तकलीफ़ दूर करता है, जब वह उसे पुकारे. और तुम्हें ज़मीन में अपना ख़लीफ़ा बनाता है. क्या अल्लाह के साथ कोई और भी सरपरस्त है? तुम लोग बहुत ही कम ग़ौर व फ़िक्र करते हो.
63. भला वह कौन है, जो तुम्हें ख़़ुशकी और तरी यानी ज़मीन और समन्दर की तारीकियों में राह दिखाता है और जो हवाओं को अपनी रहमत से बारिश से पहले ख़ुशख़बरी बनाकर भेजता है. क्या अल्लाह के साथ कोई और भी सरपरस्त है? अल्लाह उनसे आला है, जिन्हें वे लोग उसका शरीक ठहराते हैं.
64. भला वह कौन है, जो मख़लूक़ को पहली बार पैदा करता है. फिर उसे दोबारा ज़िन्दा करेगा और जो तुम्हें आसमान और ज़मीन से रिज़्क़ देता है. क्या अल्लाह के साथ कोई और भी सरपरस्त  है? ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उन मुशरिकों से कह दो कि अपनी दलील पेश करो, अगर तुम सच्चे हो.
65. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि जो लोग आसमानों और ज़मीन में हैं, उनमें से कोई भी गै़ब का इल्म नहीं जानता सिवाय अल्लाह के और न य उन्हें इसका शऊर है कि वे लोग कब दोबारा ज़िन्दा करके क़ब्रों से उठाए जाएंगे.
66. बल्कि आख़िरत के बारे में उनका इल्म ख़त्म हो गया है. लेकिन वे लोग इससे मुताल्लिक़ शक में मुब्तिला हैं, बल्कि वे लोग इस इल्म के अंधे हैं.
67. और कुफ़्र करने वाले लोग कहने लगे कि क्या जब हम और हमारे बाप दादा मरकर ख़ाक हो जाएंगे, तो क्या हम दोबारा ज़िन्दा होकर क़ब्रों से निकाले जाएंगे.
68. दर हक़ीक़त इसका वादा हमसे भी किया गया और इससे पहले हमारे बाप दादाओं से भी किया गया था. यह पहले के लोगों के अफ़सानों के सिवा कुछ नहीं. 
69. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ज़मीन में चल फिर कर देखो कि गुनाहगारों का क्या अंजाम हुआ.
70. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उनकी बातों पर ग़मज़दा न हुआ करो और उनके मकर व फ़रेब की वजह से तंगदिल न होना.
71. और वे काफ़िर सवाल करते हैं कि क़यामत का वादा कब पूरा होगा. अगर तुम सच्चे हो.
72. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि शायद उस अज़ाब का कुछ हिस्सा तुम्हारे क़रीब ही आ गया हो, जिसे तुम लोग बहुत जल्द तलब कर रहे हो. 
73. और बेशक तुम्हारा परवरदिगार लोगों पर बड़ा फ़ज़ल करने वाला है, लेकिन बहुत से लोग उसका शुक्र अदा नहीं करते.
74. और बेशक तुम्हारा परवरदिगार उससे ख़ूब वाक़िफ़ है, जो कुछ उनके दिलों में पोशीदा है और जो कुछ वे लोग ज़ाहिर करते हैं.
75. और आसमानों और ज़मीन में कोई भी पोशीदा चीज़ नहीं है, जो वाज़ेह किताब यानी लौहे महफ़ूज़ में दर्ज न हो.
76. बेशक यह क़ुरआन बनी इस्राईल के सामने उन बातों की हक़ीक़त बयान करता है, जिनमें वे लोग इख़्तिलाफ़ किया करते हैं.
77. और बेशक यह कु़रआन ईमान वालों के लिए हिदायत और रहमत है.
78. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक तुम्हारा परवरदिगार अपने हुक्म से उनके दरम्यान फ़ैसला कर देगा और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा साहिबे इल्म है. 
79. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम अल्लाह पर भरोसा करो. बेशक तुम सरीह हक़ पर क़ायम व फ़ाईज़ हो.
80. बेशक न तुम मुर्दों को सुना सकते हो और न बहरों को अपनी आवाज़ सुना सकते हो, जब वे पीठ फेरकर चले जाएं.
81. और न तुम अंधों को उनकी गुमराही से बचाकर हिदायत दे सकते हो. तुम तो सिर्फ़ उन्हीं लोगों को सुना सकते हो, जो हमारी आयतों पर ईमान रखते हैं. इसलिए वही लोग मुसलमान यानी फ़रमाबरदार हैं.
82. और जब उन लोगों पर अज़ाब का वादा पूरा होने का वक़्त आएगा, तो हम उनके लिए ज़मीन से एक जानवर निकालेंगे, जो उनसे गुफ़्तगू करेगा, क्योंकि वे लोग हमारी आयतों पर यक़ीन नहीं करते थे.
83. और जिस दिन हम हर उम्मत में से उन लोगों के एक-एक फ़ौज को जमा करेंगे, जो हमारी आयतों को झुठलाया करते थे. फिर वे जमातबंदी के लिए रोक दिए जाएंगे.
84. यहां तक कि जब वे सब अल्लाह के हुज़ूर में पेश किए जाएंगे और उनसे कहा जाएगा कि क्या तुम बग़ैर इल्म के हमारी आयतों को झुठलाते थे. भला तुम क्या करते थे?   
85. और उन पर हमारा अज़ाब का वादा पूरा हो गया, क्योंकि वे लोग ज़ुल्म करते थे. फिर वे लोग कुछ बोल भी नहीं सके.
86. क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने रात को इसलिए बनाया, ताकि वे लोग इसमें आराम करें और दिन को रौशन बनाया कि वे काम करें. बेशक इसमें उन लोगों के लिए बहुत सी निशानियां हैं, जो ईमान रखते हैं. 
87. और जिस दिन सूर फूंका जाएगा, तो आसमानों और ज़मीन के सब लोग दहल जाएंगे, लेकिन जिन्हें अल्लाह चाहेगा, वे ख़ौफ़ज़दा नहीं होंगे. और सब लोग आजिज़ होकर उसकी बारगाह में हाज़िर होंगे.
88. ऐ इंसान ! और तू पहाड़ों को देखेगा, तो गुमान करेगा कि जमे हुए हैं, लेकिन वे बादलों की तरह उड़े-उडे़ फिरेंगे. यह भी अल्लाह की कारीगरी है, जिसने हर चीज़ को मज़बूत बनाया है. बेशक अल्लाह उन आमाल से ख़ूब वाक़िफ़ है, जो तुम किया करते हो.
89. जो लोग उस दिन अच्छाई लेकर आएंगे, उनके लिए बेहतर भलाई होगी और वे लोग उस दिन घबराहट से अमान में होंगे.
90. और जो लोग बुराई लेकर आएंगे, उनके मुंह दोज़ख़ की आग में औंधे डाले जाएंगे. उनसे कहा जाएगा कि तुम्हें उसी की जज़ा दी जाएगी, जो कुछ तुम किया करते थे.
91. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मुझे तो सिर्फ़ यही हुक्म दिया गया है कि मैं इस शहर मक्का के मालिक की इबादत करूं, जिसने उसे इज़्ज़त व हुरमत वाला बनाया है और हर चीज़ उसी की है और मुझे यह हुक्म भी दिया गया कि मैं उसके मुसलमान यानी फ़रमाबरदार बन्दों में से रहूं.
92. और यह कि मैं क़ुरआन की तिलावत करूं. फिर जिसने हिदायत क़ुबूल की, तो उसने अपने भले के लिए ही सीधा रास्ता इख़्तियार किया. और जो गुमराह हुआ, तो तुम कह दो कि मैं तो सिर्फ़ अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर हूं.
93. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम कह दो कि अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं. वह अनक़रीब तुम्हें अपनी क़ुदरत की निशानियां दिखाएगा, तो तुम उन्हें पहचान लोगे. तुम्हारा परवरदिगार उन आमाल से ग़ाफ़िल नहीं, जो तुम किया करते हो.

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