Thursday, July 15, 2021

70 सूरह अल मारिज

सूरह अल मारिज मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 44 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. एक साइल ने ऐसा अज़ाब मांगा, जो वाक़े होकर रहेगा. 
2. काफ़िरों के लिए, जिसे कोई दफ़ा नहीं कर सकता.
3. वह अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल होगा, जो आसमानी बुलंदियों का मालिक है.
4. उसके अर्श की तरफ़ फ़रिश्ते और रूहुल अमीन यानी जिब्रईल अलैहिस्सलाम चढ़ते हैं एक दिन में, जिसकी मिक़दार पचास हज़ार साल है.
5. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम सब्र करो. सब्र करना अच्छा है.
6. बेशक उन लोगों की नज़र में क़यामत बहुत दूर है,
7. और हमारी नज़र में क़यामत क़रीब है.
8. उस दिन आसमान पिघले हुए तांबे की तरह हो जाएगा.
9. और पहाड़ धुनी हुई रंग बिरंगी ऊन की तरह हो जाएंगे.
10. और कोई दोस्त किसी दोस्त को नहीं पूछेगा.
11. हालांकि वे लोग एक दूसरे को देख रहे होंगे. गुनाहगार चाहेगा कि काश ! उस दिन के अज़ाब से रिहाई के बदले अपने बेटे दे दे.
12. और अपनी बीवी और अपने भाई दे दे.
13. और अपना कुनबा दे दे, जिसमें वह रहता था.
14. और जितने लोग भी ज़मीन में हैं, उन सबको दे दे और ख़ुद को अज़ाब से बचा ले.
15. ऐसा हरगिज़ नहीं होगा. बेशक वह भड़कती हुई आग है,
16. जो जिस्म की खाल उतारने वाली है.
17. वह उसे बुला रही है, जिसने हक़ से पीठ फेरी और मुंह मोड़ा.
18. और जिसने माल जमा किया. फिर उसे तक़सीम न करके समेट कर रखा.  
19. बेशक इंसान बेसब्रा और लालची बनाया गया है.
20. जब उसे कोई तकलीफ़ पहुंचती है, तो घबरा जाता है.
21. और जब उसे कोई भलाई पहुंचती है, तो बुख़्ल करने लगता है. 
22. लेकिन जो नमाज़ी हैं,
23. जो लोग पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हैं, 
24. और वे लोग जिनके माल में हिस्सा मुक़र्रर है.
25. मांगने वाले के लिए और न मांगने वाले मोहताज के लिए
26. और जो लोग जज़ा और सज़ा के दिन की तसदीक़ करते हैं.
27. और वे लोग, जो अपने परवरदिगार के अज़ाब से ख़ौफ़ रखते हैं,
28. बेशक उनके परवरदिगार का अज़ाब बेख़ौफ़ होने की चीज़ नहीं है.
29. और वे लोग, जो अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करते हैं.
30. सिवाय अपनी बीवियों और अपनी कनीज़ों के. बेशक उनके पास जाने पर कोई मलामत नहीं.
31. फिर जिसने इसके अलावा कुछ और चाहा, तो ऐसे ही लोग हद से गुज़रने वाले हैं.
32. और वे लोग, जो अपनी अमानतों और अपने अहद की हिफ़ाज़त करने वाले हैं,
33. और वे लोग, जो अपनी गवाहियों पर क़ायम रहते हैं.
34. और वे लोग, जो अपनी नमाज़ों की हिफ़ाज़त करते हैं. 
35. यही वे लोग हैं, जो जन्नत के बाग़ों में इज़्ज़त व इकराम से होंगे.
36. फिर कुफ़्र करने वाले लोगों को क्या हुआ है कि तुम्हारी तरफ़ दौड़े चले आते हैं.
37. दायें और बायें से हुजूम दर हुजूम आ रहे हैं.
38. क्या इनमें से हर शख़्स को यह उम्मीद है कि वह ईमान और अमल के बग़ैर नेअमतों से लबरेज़ जन्नत में दाख़िल किया जाएगा?
39. हरगिज़ नहीं. बेशक हमने उन्हें उस चीज़ से पैदा किया, जिसे वे लोग भी जानते हैं
40. फिर क़सम है मशरिक़ और मग़रिब के परवरदिगार की कि बेशक हम क़ुदरत रखते हैं.
41. हम इस पर क़ादिर हैं कि उनके बदले उनसे अच्छे लोग ले आएं और हम आजिज़ नहीं हैं.
42. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम उन्हें छोड़ दो कि वे अपनी बेहूदा बातों और खेल तमाशे में पड़े रहें, यहां तक कि वे अपने उस दिन से मिल लें, जिसका उनसे वादा किया जाता है.
43. उस दिन वे लोग क़ब्रों से निकल कर इस तरह दौड़ेंगे, जैसे वे अपने बुतख़ानों की तरफ़ दौड़े जा रहे हैं.
44. उनकी आंखें झुकी हुई होंगी और उन पर ज़िल्लत छाई होगी, यही वह दिन है, जिसका उनसे वादा किया जाता था. 

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