Sunday, July 25, 2021

60 सूरह अल मुम्तहीना

सूरह अल मुम्तहीना मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 13 आयतें हैं. अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है. 1. ऐ ईमान वालो ! तुम हमारे और अपने दुश्मनों को दोस्त मत बनाओ. तुम अपनी दोस्ती की वजह से उन्हें पैग़ाम भेजते हो. हालांकि वे लोग उस दीने हक़ से इनकार करते हैं, जो तुम्हारे पास आया है. वे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को और तुम्हें इस वजह से तुम्हारे वतन से निकालना चाहते हैं कि तुम अल्लाह पर ईमान ले आए हो, जो तुम्हारा परवरदिगार है. अगर तुम हमारी राह में जिहाद करने और हमारी ख़ुशनूदी हासिल करने के लिए निकले हो, तो फिर उनसे दोस्ती मत रखो. तुम उनके पास दोस्ती के ख़ुफ़िया पैग़ाम भेजते हो. हम उससे ख़ूब वाक़िफ़ हैं, जो कुछ तुम पोशीदा रखते हो और जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो. और तुममें से जो कोई ऐसा करेगा, तो वह सीधे रास्ते से भटक गया है. 2. अगर वे लोग तुम पर क़ाबू पा लें, तो देखना कि वे तुम्हारे सरीह दुश्मन हो जाएंगे. वे बुराई के साथ तुम्हारी तरफ़ हाथ भी बढ़ाएंगे और अपनी ज़बानें भी चलाएंगे. और वे चाहते हैं कि तुम भी काफ़िर हो जाओ. 3. क़यामत के दिन न तुम्हारे काफ़िरों व मुशरिकों से रिश्ते नाते कुछ नफ़ा देंगे और न तुम्हारी काफ़िर व मुशरिक औलाद ही कुछ काम आएगी. और क़यामत के दिन अल्लाह तुम्हारे दरम्यान फ़ैसला कर देगा. और अल्लाह तुम्हारे आमाल ख़ूब देख रहा है. 4. बेशक तुम्हारे लिए इब्राहिम अलैहिस्सलाम और उनके साथियों की बेहतरीन मिसाल मौजूद है. जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि हम तुमसे और उन बुतों से जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, बेज़ार हैं. हम तुम सबसे सरीह इनकार करते हैं. हमारे और तुम्हारे दरम्यान उस वक़्त तक ऐलानिया अदावत और दुश्मनी रहेगी, जब तक तुम एक अल्लाह पर ईमान नहीं आते. लेकिन इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने मुंह बोले वालिद यानी अपनी परवरिश करने वाले अपने चाचा आज़र से यह ज़रूर कहा कि मैं आपके लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगूंगा और अल्लाह के सामने मैं आपके लिए कुछ भी इख़्तियार नहीं रखता. ऐ हमारे परवरदिगार ! हमने तुझ पर ही भरोसा किया है और हमने तेरी तरफ़ ही रुजू किया है. और सबको तेरी तरफ़ ही लौटना है. 5. ऐ हमारे परवरदिगार ! तू कुफ़्र करने वाले लोगों के हाथों हमें आज़माइश में मत डालना और तू हमें बख़्श दे. ऐ हमारे परवरदिगार ! बेशक तू बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है. 6. बेशक तुम्हारे लिए उन लोगों की बेहतरीन मिसालें हैं, जो अल्लाह की बारगाह में पेश होने और रोज़े आख़िरत की उम्मीद रखते हैं. और जो मुंह फेरे, तो बेशक अल्लाह भी बेनियाज़ और सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं. 7. मुमकिन है कि अल्लाह तुम्हारे और उन लोगों के दरम्यान दोस्ती पैदा कर दे, जिन्हें तुम अपना दुश्मन समझते हो. और अल्लाह बड़ा क़ादिर है. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है. 8. अल्लाह तुम्हें उनसे दोस्ती करने से मना नहीं करता कि जिन लोगों ने तुमसे तुम्हारे दीन के बारे में जंग नहीं की और न तुम्हें तुम्हारे घरों यानी तुम्हारे वतन से निकाला है. तुम उनके साथ भलाई और इंसाफ़ का सुलूक करो. बेशक अल्लाह इंसाफ़ करने वालों को पसंद करता है. 9. बेशक अल्लाह तुम्हें सिर्फ़ उन्हीं लोगों के साथ दोस्ती करने से मना करता है, जिन्होंने तुमसे दीन के बारे में जंग की और तुम्हें तुम्हारे घरों से निकाला, और तुम्हें निकालने में तुम्हारे दुश्मनों की मदद की. और जो ऐसे लोगों से दोस्ती करेंगे, तो वही लोग ज़ालिम हैं. 10. ऐ ईमान वालो ! जब तुम्हारे पास मोमिन औरतें हिजरत करके आएं तो तुम उन्हें अच्छी तरह आज़मा लो. अल्लाह उनके ईमान को ख़ूब जानता है. फिर अगर तुम्हें उनके मोमिन होने का यक़ीन हो जाए, तो उन्हें काफ़िरों के पास वापस मत भेजो. क्योंकि न ये मोमिन औरतें काफ़िरों के लिए हलाल हैं और न काफ़िर उनके लिए हलाल हैं. और उन काफ़िरों ने जो माल मेहर के तौर पर उन औरतों पर ख़र्च किया हो, वह उन्हें अदा कर दो. और तुम पर कोई गुनाह नहीं है कि तुम उनसे निकाह कर लो, जबकि तुमने उनका मेहर उन्हें अदा कर दिया हो. और तुम भी काफ़िर औरतों को अपने क़ब्ज़े में न रखो और तुम काफ़िरों से वह माल मांग लो, जो तुमने उन औरतों पर ख़र्च किया हो. और वे काफ़िर भी तुमसे वह माल मांग लें, जो उन्होंने उन औरतों पर ख़र्च किया हो. यही अल्लाह का हुक्म है. और वह तुम्हारे दरम्यान फ़ैसला करता है. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है. 11. और अगर तुम्हारी बीवियों में से कोई तुमसे छूटकर काफ़िरों की तरफ़ चली जाए, तो तुम उन्हें सज़ा दो. यानी उनसे जंग करो. जब तुम जंग में ग़ालिब आ जाओ और तुम्हें जो माले ग़नीमत मिले, तो जिनकी बीवियां चली गई हैं, उन्हें उसमें से उतना दे दो, जितना वे लोग मेहर के तौर पर ख़र्च कर चुके हैं. और उस अल्लाह से डरते रहो, जिस पर तुम ईमान लाए हो. 12. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जब तुम्हारे पास मोमिन औरतें इस बात पर बैअत करने के लिए आएं कि वे अल्लाह के साथ न किसी को शरीक करेंगी, और न चोरी करेंगी, न बदकारी करेंगी, न अपनी औलाद को क़त्ल करेंगी और न अपने हाथ व पांव के सामने गढ़कर कोई बोहतान लाएंगी और न किसी नेक काम में तुम्हारी नाफ़रमानी करेंगी, तो तुम उनसे बैअत कर लिया करो. और अल्लाह से उनके लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगो. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
13. ऐ ईमान वालो ! तुम ऐसी क़ौम से दोस्ती मत रखो, जिस पर अल्लाह ग़ज़बनाक हुआ है. बेशक वे आख़िरत से उसी तरह मायूस हैं, जिस तरह काफ़िरों को मुर्दों के दोबारा ज़िन्दा होने की उम्मीद नहीं है.

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