Saturday, July 31, 2021

54 सूरह अल क़मर

सूरह अल क़मर मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 55 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. क़यामत क़रीब आ गई और चांद दो टुकड़े हो गया.
2. और अगर काफ़िर कोई निशानी देखते हैं, तो मुंह फेर लेते हैं, और कहते हैं कि यह जादू है, जो पहले से चला आ रहा है.
3. और उन्होंने झुठलाया और अपनी ख़्वाहिशों की पैरवी की. और लेकिन हर काम का एक वक़्त मुक़र्रर है.
4. और बेशक उनके पास ऐसी ख़बरें आ चुकी हैं, जिनमें इबरत है. 
5. यह क़ुरआन कामिल दानाई और हिकमत है, फिर भी ख़बरदार करने वाले उन्हें कोई फ़ायदा नहीं देते. 
6. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम भी उनसे मुंह फेर लो. जिस दिन बुलाने वाला इस्राफ़ील उन्हें नागवार चीज़ की तरफ़ बुलाएगा.
7. लोग नज़रें झुकाये हुए क़ब्रों से निकल पड़ेंगे, गोया वे फैली हुई टिड्डियां हैं.
8. वे लोग बुलाने वाले इस्राफ़ील की तरफ़ दौड़ते हुए जाएंगे. काफ़िर कहेंगे कि यह बड़ा सख़्त दिन है.
9. इनसे पहले नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम ने भी झुठलाया था. फिर उन्होंने हमारे ख़ास बन्दे नूह अलैहिस्सलाम को झुठलाया और कहने लगे कि यह दीवाना है और उन्हें ख़ूब झिड़का. 
10. फिर उन्होंने अपने परवरदिगार से दुआ मांगी कि मैं मग़लूब हूं. फिर तू मेरा इंतक़ाम ले.
11. फिर हमने मूसलाधार बारिश के साथ आसमान के दरवाज़े खोल दिए.
12. और हमने ज़मीन से चश्मे जारी कर दिए. फिर ज़मीन और आसमान का पानी एक ही काम के लिए जमा हो गया, जो उनकी तबाही के लिए पहले से मुक़र्रर हो चुका था.
13. और हमने नूह अलैहिस्सलाम को एक कश्ती पर सवार किया, जो तख़्तों और मेख़ों से तैयार की गई थी.
14. वह हमारी निगरानी में चल रही थी. ये सबकुछ उस एक शख़्स यानी नूह अलैहिस्सलाम का इंतक़ाम लेने के लिए किया गया, जिनसे कुफ़्र किया गया था.
15. और बेशक हमने उस तूफ़ान को एक निशानी बना दिया. फिर कोई है, जो इबरत हासिल करे.
16. फिर जान लो कि हमारा अज़ाब और ख़बरदार करना कैसा था ? 
17. और बेशक हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान कर दिया है. फिर कोई है, जो इबरत हासिल करे.
18. हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद ने भी अपने पैग़म्बरों को झुठलाया था. फिर उन पर हमारा अज़ाब और ख़बरदार करना कैसा था ?
19. बेशक हमने एक नहूसत के दिन उन पर मुसलसल तेज़ आंधी चलाई.  
20. जो लोगों को इस तरह उखाड़ फेंकती थी, गोया वे खजूर के उखड़े हुए तने हैं.
21. फिर हमारा अज़ाब और ख़बरदार करना कैसा था ?
22. और बेशक हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान कर दिया है. फिर कोई है, जो इबरत हासिल करे.
23. सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद ने भी पैग़म्बरों को झुठलाया था.
24. फिर वे कहने लगे कि क्या हम एक ऐसे बशर की पैरवी करें, जो हम ही में से है. अगर हम उसकी पैरवी करेंगे, तो हम गुमराही और दीवानगी में मुब्तिला हो जाएंगे.
25. क्या हम सब में से उसी पर नसीहत यानी वही नाज़िल हुई है. बल्कि वह झूठा शेख़ीबाज़ है.
26. वे अनक़रीब क़यामत के दिन जान लेंगे कि कौन झूठा शेख़ीबाज़ है.
27. ऐ सालेह अलैहिस्सलाम ! बेशक हम उनकी आज़माइश के लिए ऊंटनी भेजने वाले हैं. फिर तुम उनके अंजाम का इंतज़ार करो और और सब्र करते रहो.
28. और उन्हें आगाह कर दो कि उनके और ऊंटनी के दरम्यान पानी तक़सीम कर दिया गया है. हर किसी को अपनी बारी पर हाज़िर होना है.
29. फिर उन लोगों ने अपने साथी को बुलाया. फिर उसने ऊंटनी पर तलवार से वार किया और उसकी कूचें काट दीं.
30. फिर हमारा अज़ाब और ख़बरदार करना कैसा था?
31. बेशक हमने उन पर एक निहायत ख़ौफ़नाक आवाज़ भेजी. फिर वे बाड़ लगाने वाले की रौंदी हुई घास की तरह हो गए.
32. और बेशक हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान कर दिया है. फिर कोई है, जो इबरत हासिल करे.
33. लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम ने भी पैग़म्बरों को झुठलाया था.
34. बेशक हमने उन लोगों पर कंकड़-पत्थर बरसाने वाली आंधी भेजी. लेकिन हमने लूत अलैहिस्सलाम के घरवालों को सहर से पहले ही बचा लिया था.
35. यह हमारी नेअमत थी. हम इसी तरह शुक्र अदा करने वालों को जज़ा देते हैं.
36. और बेशक लूत अलैहिस्सलाम ने उन्हें हमारे अज़ाब से ख़बरदार किया था. फिर भी उन लोगों ने शक में मुब्तिला होकर झुठला दिया.
37. और बेशक उन लोगों ने लूत अलैहिस्सलाम के मेहमान फ़रिश्तों के बारे में नाजायज़ ख़्वाहिश की, तो हमने उनकी आंखों की रौशनी ख़त्म कर दी. फिर उनसे कहा कि हमारे अज़ाब और ख़बरदार करने का मज़ा चखो.
38. और बेशक उन पर सुबह सवेरे ही मुस्तक़िल अज़ाब आ गया.
39. फिर उनसे कहा गया कि हमारे अज़ाब और ख़बरदार करने का मज़ा चखो.
40. और बेशक हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान कर दिया है. फिर कोई है, जो इबरत हासिल करे.
41. और बेशक फ़िरऔन की आल के पास भी ख़बरदार करने वाले पैग़म्बर आए.
42. उन्होंने हमारी सब निशानियों को झुठला दिया. फिर हमने उन्हें बड़े ग़ालिब और साहिबे क़ुदरत की शान के मुताबिक़ गिरफ़्त में ले लिया.
43. ऐ अहले मक्का ! क्या तुम्हारे काफ़िर पहले के उन लोगों से अच्छे हैं या ज़ुबूर और आसमानी किताबों में तुम्हारे लिए मुआफ़ी लिखी हुई है.
44. या वे काफ़िर कहते हैं कि हम ग़ालिब रहने वाली मज़बूत जमात हैं?
45. अनक़रीब ही यह जमात शिकस्त खाएगी और ये लोग पीठ फेर कर भाग जाएंगे.
46. बल्कि उनके वादे का वक़्त क़यामत है. और क़यामत बड़ी सख़्त और तल्ख़ है.
47. बेशक गुनाहगार लोग गुमराही और दीवानगी में मुब्तिला हैं.
48. जिस दिन वे लोग मुंह के बल दोज़ख़ की आग में घसीटे जाएंगे. तब उनसे कहा जाएगा कि अब आग में जलने का मज़ा चखो.
49. बेशक हमने हर चीज़ एक मुक़र्रर अंदाज़े से पैदा की है.
50. और हमारा हुक्म तो सिर्फ़ एक बार में ही पूरा हो जाता है, जैसे आंख का झपकना.
51. और बेशक हम तुम्हारे जैसे कितने ही गिरोहों को हलाक कर चुके हैं. फिर कोई है, जो इबरत हासिल करे.
52. और उन्होंने जो कुछ किया, सब आमालनामों में दर्ज है.
53. और हर छोटा और बड़ा अमल उसमें लिख दिया गया है.
54. बेशक परहेज़गार लोग जन्नत के बाग़ों और चश्मों में रहेंगे.
55. वे लोग हक़ की मजलिस में तमाम क़ुदरत के मालिक के क़रीब होंगे.

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