Friday, July 16, 2021

69 सूरह अल हाक़का

सूरह अल हाक़का मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 52 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. यक़ीनन वाक़े होने वाली, 
2. यक़ीनन वाक़े होने वाली चीज़ क्या है?
3. और क्या तुम जानते हो कि यक़ीनन वाक़े होने वाली चीज़ क्या है?
4. सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद और हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद ने जिस गरजने वाली ख़ौफ़नाक क़यामत को झुठलाया था.
5. फिर क़ौमे समूद के लोग गरजने वाली ख़ौफ़नाक आवाज़ से हलाक कर दिए गए.
6. और जो क़ौमे आद के लोग थे, वे भी ऐसी बहुत तेज़ आंधी से हलाक कर दिए गए, जो इन्तिहाई सर्द और गरजदार थी.
7. अल्लाह ने उस आंधी को उन पर सात रातें और आठ दिन मुसलसल चलाए रखा, तो उस के लोग ऐसे पड़े हुए दिखाई दिए, जैसे खजूर के दरख़्तों के खोखले तने हों.
8. फिर क्या तुम उनमें से किसी को भी बाक़ी देखते हो?
9. और फ़िरऔन और उससे पहले लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम की उलटने वाली बस्तियों में रहने वाले लोगों ने भी बड़ी ख़तायें की थीं.  
10. फिर उन्होंने भी अपने भी परवरदिगार के रसूल की नाफ़रमानी की, तो अल्लाह ने उन्हें बड़ी सख़्त गिरफ़्त में ले लिया.
11. बेशक जब पानी हद से गुज़रने लगा, तो हमने तुम्हें कश्ती में सवार किया,
12. ताकि हम उस वाक़िये को तुम्हारे लिए यादगार नसीहत बना दें और उसे याद रखने वाले कान सुनकर याद रखें. 
13. फिर जब एक बार सूर फूंका जाएगा.
14. और ज़मीन और पहाड़ उठा लिए जाएंगे और फिर एक ही बार में तोड़कर रेज़ा-रेज़ा कर दिए जाएंगे.
15. तो उस वक़्त वाक़े हो जाएगी, वाक़े होने वाली क़यामत. 
16. और उस दिन आसमान शिगाफ़्ता होकर कमज़ोर हो जाएंगे. 
17. और फ़रिश्ते उसके किनारे पर खड़े हुए होंगे और तुम्हारे परवरदिगार के अर्श को उस दिन आठ फ़रिश्ते उठाए हुए होंगे.
18. उस दिन तुम हिसाब के लिए पेश किए जाओगे और तुम्हारी कोई पोशीदा बात छुपी नहीं रहेगी.
19. फिर जिसकी किताब यानी आमालनामा उसके दाहिने हाथ में दिया जाएगा, तो वह शख़्स ख़ुशी से कहेगा कि आओ, मेरा आमालनामा पढ़ो.
20. मुझे यक़ीन था कि मुझे मेरा हिसाब ज़रूर मिलेगा.
21. फिर वह मनचाहे ऐश में रहेगा.
22. जन्नत के आला बाग़ में,
23. जिसमें फलों के गुच्छे झुके होंगे.
24. उनसे कहा जाएगा कि ख़ूब मज़े से खाओ और पियो, उन आमाल के बदले, जो तुमने गुज़श्ता दुनियावी ज़िन्दगी में किए थे. 
25. और जिसकी किताब यानी आमालनामा उसके बायें हाथ में दिया जाएगा, तो वह कहेगा कि काश ! मुझे मेरा आमालनामा न दिया जाता.
26. और मैं नहीं जानता कि मेरा हिसाब क्या है.
27. काश ! मौत ने मुझे हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया होता.
28. आज मेरा माल मेरे कुछ भी काम नहीं आया.
29. मेरी सल्तनत हलाक हो गई यानी ख़ाक में मिल गई.  
30. हुक्म होगा कि उसे गिरफ़्तार करो और उसे तौक़ पहना दो.
31. फिर इसे जहन्नुम में डाल दो.
32. फिर एक जंज़ीर में उसे ख़ूब जकड़ दो, जो सत्तर गज़ लम्बी है.
33. बेशक यह बड़ी अज़मत वाले अल्लाह पर ईमान नहीं रखता था. 
34. और न मिस्कीन यानी ग़रीब और मोहताज को खाना खिलाता था.
35. इसलिए आज यहां इसका कोई सरपरस्त नहीं है.
36. और न पीप के सिवा उसके लिए कोई खाना है,
37. जिसे ख़तावारों के सिवा कोई नहीं खाएगा.
38. फिर क़सम है उन चीज़ों की, जो तुम्हें दिखाई देती हैं,
39. और उन चीज़ों की भी, जो तुम्हें दिखाई नहीं देतीं.
40. बेशक यह क़ुरआन अज़मत वाले रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कलाम है.
41. और यह किसी शायर का कलाम नहीं है. तुम लोग बहुत कम यक़ीन रखते हो.
42. और यह किसी काहिन का कलाम नहीं है. तुम लोग बहुत कम ग़ौर व फ़िक्र करते हो.
43. यह तमाम आलमों के परवरदिगार का नाज़िल किया हुआ कलाम है.
44. और अगर वे हमारे बारे में एक बात भी गढ़ कर कह देते,
45. तो यक़ीनन हम उन्हें दाहिने हाथ से पकड़ लेते.
46. फिर हम ज़रूर उनकी शह रग काट देते.
47. फिर तुम में से कोई भी हमें इससे रोकने वाला नहीं होता.
48. और बेशक यह क़ुरआन परहेज़गारों के लिए नसीहत है.
49. और बेशक हम जानते हैं कि तुम में से कुछ लोग इसे झुठलाने वाले हैं.
50. और बेशक यह काफ़िरों के लिए हसरत का सबब है. 
51. और बेशक यह बरहक़ और क़ाबिले यक़ीन है. 
52. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम अपने अज़ीम परवरदिगार के नाम की तस्बीह करते रहो. 

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