सूरह अल मुनाफ़िक़ून मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 11 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जब मुनाफ़िक़ तुम्हारे पास आकर कहते हैं कि हम गवाही देते हैं कि बेशक आप अल्लाह के रसूल हैं. और अल्लाह भी जानता है कि बेशक तुम उसके रसूल हो. और अल्लाह गवाह है कि बेशक मुनाफ़िक़ झूठे हैं.
2. उन्होंने अपनी क़समों को ढाल बना रखा है. फिर वे लोगों को अल्लाह के रास्ते से रोकते हैं. बेशक वह बहुत ही बुरा है, जो कुछ वे लोग कर रहे हैं.
3. यह इसलिए है कि वे लोग ज़बान से ईमान लाए, फिर दिल से काफ़िर ही रहे, तो उनके दिलों पर मुहर लगा दी गई. फिर वे कुछ नहीं समझते.
4. फिर जब तुम उन्हें देखोगे, तो जिस्म की वजह से तुम्हें बहुत अच्छे लगेंगे और गुफ़्तगू ऐसी करेंगे कि तुम ग़ौर से सुनते रह जाओ. लेकिन यह ऐसा है, जैसे दीवार के सहारे खड़ी हुई लकड़ियां. वे हर बुलंद आवाज़ पर गुमान करते हैं कि उन पर कोई मुसीबत आ गई है. वे मुनाफ़िक़ तुम्हारे दुश्मन हैं. फिर तुम उनसे बचे रहो. अल्लाह उन्हें क़त्ल करे. वे कहां भटक रहे हैं.
5. और जब उनसे कहा जाता है कि आओ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम्हारे लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगें, तो वे अपने सर झटक देते हैं. और तुम उन्हें देखोगे कि वे तकब्बुर करते हुए मुंह फेर लेते हैं.
6. उनके हक़ में बराबर है कि तुम उनके लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगो या न मांगो. क्योंकि अल्लाह उन्हें हरगिज़ नहीं बख़्शेगा. बेशक अल्लाह नाफ़रमान क़ौम को हिदायत नहीं देता.
7. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यही वे लोग हैं, जो कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास रहने वाले लोगों पर ख़र्च न करो, यहां तक कि वे सब उन्हें छोड़कर चले जाएं. हालांकि आसमानों और ज़मीन के तमाम ख़ज़ाने अल्लाह ही के हैं, लेकिन मुनाफ़िक़ यह नहीं समझते.
8. वे लोग कहते हैं कि अगर हम लौट कर मदीने पहुंचे, तो इज़्ज़त वाले लोग वहां से ज़लील लोगों यानी मुसलमानों को निकाल देंगे. हालांकि इज़्ज़त तो सिर्फ़ अल्लाह के लिए और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए और मोमिनों के लिए है, लेकिन मुनाफ़िक़ यह नहीं जानते.
9. ऐ ईमान वालो ! तुम्हारा माल और तुम्हारी औलाद कहीं तुम्हें अल्लाह के ज़िक्र से ग़ाफ़िल न कर दें. जो लोग ऐसा करेंगे, तो वही नुक़सान उठाने वाले हैं.
10. और उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करो, जो रिज़्क़ हमने तुम्हें दिया है, इससे पहले कि तुम में से किसी को मौत आ जाए. फिर वह कहने लगे कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तूने मुझे थोड़ी सी मोहलत और क्यों नहीं दी, ताकि मैं सदक़ा करता और नेक लोगों में शामिल हो जाता.
11. और अल्लाह किसी को मोहलत नहीं देता, जब उसकी मौत का वक़्त आ जाता है. और अल्लाह उन आमाल से ख़ूब बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जब मुनाफ़िक़ तुम्हारे पास आकर कहते हैं कि हम गवाही देते हैं कि बेशक आप अल्लाह के रसूल हैं. और अल्लाह भी जानता है कि बेशक तुम उसके रसूल हो. और अल्लाह गवाह है कि बेशक मुनाफ़िक़ झूठे हैं.
2. उन्होंने अपनी क़समों को ढाल बना रखा है. फिर वे लोगों को अल्लाह के रास्ते से रोकते हैं. बेशक वह बहुत ही बुरा है, जो कुछ वे लोग कर रहे हैं.
3. यह इसलिए है कि वे लोग ज़बान से ईमान लाए, फिर दिल से काफ़िर ही रहे, तो उनके दिलों पर मुहर लगा दी गई. फिर वे कुछ नहीं समझते.
4. फिर जब तुम उन्हें देखोगे, तो जिस्म की वजह से तुम्हें बहुत अच्छे लगेंगे और गुफ़्तगू ऐसी करेंगे कि तुम ग़ौर से सुनते रह जाओ. लेकिन यह ऐसा है, जैसे दीवार के सहारे खड़ी हुई लकड़ियां. वे हर बुलंद आवाज़ पर गुमान करते हैं कि उन पर कोई मुसीबत आ गई है. वे मुनाफ़िक़ तुम्हारे दुश्मन हैं. फिर तुम उनसे बचे रहो. अल्लाह उन्हें क़त्ल करे. वे कहां भटक रहे हैं.
5. और जब उनसे कहा जाता है कि आओ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम्हारे लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगें, तो वे अपने सर झटक देते हैं. और तुम उन्हें देखोगे कि वे तकब्बुर करते हुए मुंह फेर लेते हैं.
6. उनके हक़ में बराबर है कि तुम उनके लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगो या न मांगो. क्योंकि अल्लाह उन्हें हरगिज़ नहीं बख़्शेगा. बेशक अल्लाह नाफ़रमान क़ौम को हिदायत नहीं देता.
7. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यही वे लोग हैं, जो कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास रहने वाले लोगों पर ख़र्च न करो, यहां तक कि वे सब उन्हें छोड़कर चले जाएं. हालांकि आसमानों और ज़मीन के तमाम ख़ज़ाने अल्लाह ही के हैं, लेकिन मुनाफ़िक़ यह नहीं समझते.
8. वे लोग कहते हैं कि अगर हम लौट कर मदीने पहुंचे, तो इज़्ज़त वाले लोग वहां से ज़लील लोगों यानी मुसलमानों को निकाल देंगे. हालांकि इज़्ज़त तो सिर्फ़ अल्लाह के लिए और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए और मोमिनों के लिए है, लेकिन मुनाफ़िक़ यह नहीं जानते.
9. ऐ ईमान वालो ! तुम्हारा माल और तुम्हारी औलाद कहीं तुम्हें अल्लाह के ज़िक्र से ग़ाफ़िल न कर दें. जो लोग ऐसा करेंगे, तो वही नुक़सान उठाने वाले हैं.
10. और उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करो, जो रिज़्क़ हमने तुम्हें दिया है, इससे पहले कि तुम में से किसी को मौत आ जाए. फिर वह कहने लगे कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तूने मुझे थोड़ी सी मोहलत और क्यों नहीं दी, ताकि मैं सदक़ा करता और नेक लोगों में शामिल हो जाता.
11. और अल्लाह किसी को मोहलत नहीं देता, जब उसकी मौत का वक़्त आ जाता है. और अल्लाह उन आमाल से ख़ूब बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.
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