Friday, July 30, 2021

55 सूरह अर रहमान

सूरह अर रहमान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 78 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अल्लाह बड़ा मेहरबान है.
2. उसी ने रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़ुरआन की तालीम दी.
3. उसी ने इंसान को पैदा किया.
4. उसी ने बयान करना सिखाया.
5. सूरज और चांद उसी के मुक़र्रर हिसाब से चल रहे हैं.
6. और बेलें और शजर उसी को सजदा करते हैं.
7. और उसी ने आसमान को बुलंद किया और इंसाफ़ के लिए तराज़ू रखा,
8. ताकि तुम लोग तराज़ू से तौलने में हद से तजावुज़ न करो.
9. और इंसाफ़ के साथ वज़न को क़ायम करो और वज़न कम न करो.
10. और उसी ने मख़लूक़ के लिए ज़मीन बिछाई.
11. उसमें फल व मेवे और खजूर के दरख़्त हैं, जिनके ख़ोशे ग़िलाफ़ में लिपटे हुए हैं.
12. और उसमें भूसे वाला अनाज और ख़ुशबूदार फल व फूल भी हैं.
13. ऐ इंसानों और जिन्नो ! फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
14. उसी ने इंसान को ठीकरे की तरह खनखनाती हुई मिट्टी से बनाया,
15. और उसी ने जिन्नों को आग के शोलों से पैदा किया.
16. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
17. वही दोनों मशरिक़ों का परवरदिगार है और वही दोनों मग़रिबों का परवरदिगार है.
18. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन सी नेअमतों को झुठलाओगे.
19. उसी ने दो समन्दर रवां किए, जो आपस में मिल जाते हैं.
20. उन दोनों के दरम्यान एक आड़ है और वे अपनी-अपनी हदों से तजावुज़ नहीं करते.
21. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
22. उन दोनों समन्दरों में से मोती और मरजान निकलते हैं.
23. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
24. और पहाड़ों की तरह बुलंद जहाज़ भी उसी के इख़्तियार में हैं, जो समन्दर में चलते फिरते हैं.
25. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे. 
26. ज़मीन की हर शय फ़ानी है.
27. और तुम्हारे परवरदिगार की ज़ात ही बाक़ी रहेगी, जो साहिबे जलाल और बड़ा करम करने वाला है.
28. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
29. आसमानों और ज़मीन की हर मख़लूक़ उसी से मांगती है. वह हर रोज़ नई शान में होता है.
30. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
31. ऐ इंसानो और जिन्नो के गिरोह ! हम अनक़रीब ही तुम्हारी तरफ़ मुतावज्जे होंगे.
32. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
33. ऐ इंसानो और जिन्नो के गिरोह ! अगर तुममें क़ुदरत है कि आसमानों और ज़मीन के किनारों से कहीं निकल सको तो निकल जाओ, लेकिन तुम भाग नहीं सकते, क्योंकि तुम जहां भी जाओगे, वहां भी उसी की सल्तनत होगी.  
34. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
35 तुम दोनों पर आग के शोले और स्याह धुआं छोड़ दिया जाएगा, लेकिन तुम उससे बच नहीं सकोगे.
36. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
37. जब आसमान शिगाफ़्ता हो जाएंगे और जले हुए तेल की तरह गुलाबी हो जाएंगे.
38. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
39. फिर उस दिन न किसी इंसान से उसके गुनाहों के बारे में पूछा जाएगा और न किसी जिन्न से.
40. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
41. गुनाहगार लोग अपने चेहरों की स्याही से पहचान लिए जाएंगे. फिर उन्हें पेशानी के बालों और पैरों से पकड़कर खींचा जाएगा.
42. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे. 
43. उनसे कहा जाएगा कि यही वह जहन्नुम है, जिसे गुनाहगार झुठलाया करते थे.
44. वे उस जहन्नुम और खौलते हुए पानी के दरम्यान घूमते फिरेंगे.
45. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
46. और जो शख़्स अपने परवरदिगार के हुज़ूर में खड़ा होने से डरता रहा, उसके लिए जन्नत के दो बाग़ हैं.
47. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
48. दोनों बाग़ हरीभरी शाख़ों वाले हैं. यानी क़िस्म-क़िस्म के फलों और मेवों से लदे दरख़्तों वाले हैं. 
49. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
50. उन दोनों बाग़ों में दो चश्मे बह रहे हैं.
51. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे. 
52. उन दोनों बाग़ों में हर फल और मेवे की दो-दो क़िस्में हैं.
53. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
54. अहले जन्नत ऐसे बिछौनों पर तकिया लगाए बैठे होंगे, जिनके अस्तर गाढ़े रेशम के होंगे. और दोनों बाग़ों के फल उनके बहुत क़रीब होंगे. 
55. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे. 
56. उनमें निगाहें नीची रखने वाली हूरें होंगी, जिन्हें पहले न किसी इंसान ने छुआ होगा और न किसी जिन्न ने.
57. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे. 
58. गोया वे याक़ूत और मरजान हैं.
59. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
60. अहसान की जज़ा अहसान के सिवा कुछ नहीं है. 
61. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे. 
62. और इनके अलावा जन्नत के दो बाग़ और भी हैं.
63. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे. 
64. वे दोनों बाग़ गहरे सब्ज़ हैं.
65. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
66. उन दोनों बाग़ों में भी दो चश्मे हैं, जो जोश मार रहे हैं.
67. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
68. उन दोनों बाग़ों में भी फल और खजूर और अनार हैं.
69. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
70. उनमें भी ख़ूब सीरत और ख़ूबसूरत हूरें हैं.
71. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
72. ख़ेमों में पर्दानशीं हूरें होंगी.
73. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
74. उन्हें पहले न किसी इंसान ने छुआ होगा और न किसी जिन्न ने.
75. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
76. वे सब्ज़ क़ालीनों और नफ़ीस बिछौनों पर तकिये लगाए बैठे होंगे.
77. फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेअमतों को झुठलाओगे.
78. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम्हारे परवरदिगार का नाम बड़ी बरकत वाला है, जो बड़ा साहिबे जलाल और बड़ा करम करने वाला है.

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