सूरह अत तलाक़ मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 12 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मुसलमानों से कह दो कि जब तुम अपनी बीवियों को तलाक़ दो, तो उनकी पाकी के वक़्त तलाक़ दो और इद्दत का शुमार रखो और अल्लाह से डरो, जो तुम्हारा परवरदिगार है. उन्हें उनके घरों से न निकालो और न वे ख़ुद घर से निकलें, सिवाय इसके कि वे कोई सरीह बेहयाई करें. ये अल्लाह की मुक़र्रर की हुई हदें हैं और जो अल्लाह की हदों से तजावुज़ करेगा, तो बेशक वह अपनी जान पर ज़ुल्म करेगा. तुम नहीं जानते कि शायद अल्लाह इसके बाद बेहतरी की कोई सूरत पैदा कर दे.
2. फिर जब वे औरतें अपनी मुक़र्रर मियाद के ख़त्म होने के क़रीब पहुंचें, तो तुम उन्हें भलाई के साथ अपनी ज़ौजियत में रोक लो या उन्हें भलाई के साथ जुदा कर दो. और तलाक़ के वक़्त तुम अपने लोगों में से दो आदिल मर्दों को गवाह बना लो और गवाही अल्लाह के लिए क़ायम किया करो. इन बातों के ज़रिये उस शख़्स को नसीहत की जाती है, जो अल्लाह और आख़िरत पर ईमान रखता है. और जो अल्लाह से डरता है, तो वह उसके लिए निजात की राह पैदा कर देगा.
3. और अल्लाह उसे ऐसी जगह से रिज़्क़ देता है, जहां से उसे गुमान भी नहीं होता. और जो शख़्स अल्लाह पर भरोसा करता है, तो उसके लिए अल्लाह ही काफ़ी है. बेशक अल्लाह अपना काम मुकम्मल करने वाला है. बेशक अल्लाह ने हर चीज़ का एक अंदाज़ा मुक़र्रर कर रखा है.
4. और तुम्हारी जो मुतल्लिक़ा औरतें हैज़ से मायूस हो चुकी हैं, अगर तुम्हें उनकी इद्दत में शक हो, तो उनकी इद्दत तीन महीने है और वे औरतें जिन्हें हैज़ नहीं आया, तो उनकी भी यही इद्दत है. और हामिला औरतों की इद्दत उनके बच्चे की पैदाइश है. और जो शख़्स अल्लाह से डरता है, तो वह उसके काम में आसानी पैदा कर देता है.
5. यह अल्लाह का हुक्म है, जो उसने तुम पर नाज़िल किया है. और जो शख़्स अल्लाह से डरता है, तो वह उसके गुनाहों को उसके आमालनामे से मिटा देता है और उसके अज्र को बढ़ा देता है.
6. तुम उन मुतल्लिक़ा औरतों को अपनी गुंजाइश के मुताबिक़ वहीं रखो, जहां तुम ख़ुद रहते हो और उन्हें कोई तकलीफ़ मत पहुंचाओ कि वे तंगी में मुब्तिला हो जाएं. अगर वे हामिला हों, तो बच्चे की पैदाइश तक उनका ख़र्च देते रहो. फिर अगर वे तुम्हारे कहने से बच्चे को दूध पिलाएं, तो उन्हें उनकी उजरत दो और आपस में एक दूसरे के साथ भलाई का मशवरा कर लिया करो. और अगर कोई इख़्तिलाफ़ हो, तो उसे कोई दूसरी औरत दूध पिला देगी.
7. साहिबे वुसअत को अपनी वुसअत यानी गुंजाइश के मुताबिक़ ख़र्च करना चाहिए और जिस पर उसका रिज़्क़ तंग कर दिया गया हो, तो वह उसी में से ख़र्च करे, जो उसे अल्लाह ने दिया है. अल्लाह किसी शख़्स को सिर्फ़ उतनी ही तकलीफ़ देता है, जितनी उसे बर्दाश्त की क़ूवत दी है. अल्लाह अनक़रीब मुश्किल के बाद आसानी अता करेगा.
8. और बहुत सी बस्तियां ऐसी थीं, जिनके बाशिन्दों ने अपने परवरदिगार के हुक्म और उसके रसूलों से सरकशी की, तो हमने उनसे बड़ा सख़्त हिसाब लिया और उन्हें बुरे अज़ाब में मुब्तिला कर दिया.
9. फिर उन्होंने अपने कामों का वबाल चख लिया और उनके काम का अंजाम नुक़सान ही था.
10. अल्लाह ने उनके लिए आख़िरत में भी सख़्त अज़ाब तैयार कर रखा है. फिर अल्लाह से डरते रहो, ऐ अक़्ल वालो ! जो ईमान लाए हो. बेशक अल्लाह ने तुम्हारी तरफ़ ज़िक्र यानी क़ुरआन नाज़िल किया है.
11. अल्लाह ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भी भेजा है, जो तुम्हें अल्लाह की वाज़ेह आयतें पढ़कर सुनाते हैं, ताकि जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, उन्हें कुफ़्र के अंधेरे से निकाल कर ईमान के नूर की तरफ़ ले आएं. और जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो अल्लाह उन्हें जन्नत के उन बाग़ों में दाख़िल करेगा, जिनके नीचे नहरें बहती हैं और वे उनमें हमेशा आबाद रहेंगे. बेशक अल्लाह ने उनके लिए बहुत अच्छा रिज़्क़ तैयार कर रखा है.
12. अल्लाह ही है, जिसने तबक़ दर तबक़ सात आसमान बनाए और उसी तरह ज़मीन बनाई. उनके दरम्यान अल्लाह का हुक्म नाज़िल होता रहता है, ताकि तुम जान लो कि बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है. और बेशक अल्लाह अपने इल्म से हर चीज़ का अहाता किए हुए है.
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