Monday, July 26, 2021

59 सूरह अल हश्र

सूरह अल हश्र मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 24 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. हर वह शय, जो आसमानों में है और जो ज़मीन में है, अल्लाह की तस्बीह करती है. और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है. 
2. वह अल्लाह ही है, जिसने अहले किताब में से काफ़िरों यानी बनू नज़ीर को पहली जिलावतनी में घरों से जमा करके मदीने से शाम की तरफ़ निकाल दिया. तुम्हें यह गुमान भी न था कि वे निकल जाएंगे और उन्हें यह गुमान था कि उनके मज़बूत क़िले उन्हें अल्लाह की गिरफ़्त से बचा लेंगे. फिर अल्लाह के अज़ाब ने उन्हें वहां से घेरा, जहां से उन्हें गुमान भी न था. अल्लाह ने उनके दिलों में रौब डाल दिया कि वे अपने घरों को ख़ुद अपने हाथों और मोमिनों के हाथों उजाड़ने लगे. फिर ऐ बसीरत वालो ! इससे इबरत हासिल करो.
3. और अगर अल्लाह ने उनके लिए जिलावतन होना नहीं लिखा होता, तो वह उन्हें दुनिया में बहुत सख़्त अज़ाब देता और उनके लिए आख़िरत में भी दोज़ख़ का अज़ाब है.
4. यह इसलिए है कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त की. और जो अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त करेगा, तो बेशक अल्लाह उसे सख़्त अज़ाब देगा.
5. ऐ ईमान वालो ! यहूद और बनू नज़ीर के घेराव के दौरान तुमने खजूर के जो दरख़्त काटे या उन्हें उनकी जड़ों पर खड़ा रहने दिया, तो यह सब अल्लाह ही के हुक्म से था, ताकि वह नाफ़रमानों को रुसवा करे.
6. और उनका जो माल अल्लाह ने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दिलवाया है, उसमें तुम्हारा हक़ नहीं है, क्योंकि तुमने उसके लिए न घोड़े दौड़ाए और न ऊंट. लेकिन अल्लाह अपने रसूलों को जिस पर चाहता है ग़ालिब कर देता है. और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
7. जो माल अल्लाह ने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बस्ती वालों से दिलवाया है, वह ख़ास अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों और मुसाफ़िरों के लिए है, ताकि यह सारा माल सिर्फ़ तुम्हारे अमीरों के दरम्यान ही न रहे, बल्कि तमाम ज़रूरतमंदों तक पहुंचे. और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जो कुछ तुम्हें दें, तो उसे ले लिया करो और जिससे तुम्हें मना करें, तो उससे बाज़ आओ. और अल्लाह से डरते रहो. बेशक अल्लाह सख़्त अज़ाब देने वाला है.
8. इस माल में उन मुफ़लिस मुहाजिरों का भी हिस्सा है, जो अपने घरों और अपने मालों से ख़ारिज किए गए और वे अल्लाह का फ़ज़ल और उसकी ख़ुशनूदी चाहते हैं. और वे अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मदद करते हैं. यही लोग सच्चे मोमिन हैं. 
9. और इस माल में उन लोगों का भी हिस्सा है, जिन्होंने मुहाजिरों से पहले ही मदीना शहर को अपना घर बना लिया और ईमान ले आए. ये लोग उनसे मुहब्बत करते हैं, जो हिजरत करके उनके पास आते हैं. और उनके दिलों में उस माल की निस्बत कोई ख्व़ाहिश और ख़लिश नहीं है, जो मुहाजिरों को दिया जाता है. और अपनी जानों पर उन्हें तरजीह देते हैं, अगरचे वे ख़ुद कितने ही ज़रूरतमंद हों. और जो लोग अपनी नफ़्स के बुख़्ल से बचे रहे, वही कामयाब हैं.
10. और इस माल में उन लोगों का भी हिस्सा है, जो उन मुहाजिरों के बाद आए और अर्ज़ करते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें बख़्श दे और हमारे उन भाइयों को भी, जो हमसे पहले ईमान लाए. और हमारे दिलों में ईमान लाने वालों के लिए किसी भी तरह का कीना और बुग़्ज़ बाक़ी न रखना. ऐ हमारे परवरदिगार ! बेशक तू बड़ा शफ़क़त करने वाला बड़ा मेहरबान है.
11. क्या तुमने उन मुनाफ़िक़ों को नहीं देखा, जो अहले किताब में से काफ़िर हुए अपने भाइयों से कहते हैं कि अगर तुम यहां से निकाले गए, तो हम भी ज़रूर तुम्हारे साथ चल पड़ेंगे. और हम तुम्हारे मामले में कभी किसी का कहना नहीं मानेंगे. और अगर तुमसे जंग की गई, तो हम ज़रूर तुम्हारी मदद करेंगे. और अल्लाह गवाही देता है कि बेशक वे लोग झूठे हैं.
12. अगर काफ़िर मदीना से निकाले गए, तो ये मुनाफ़िक़ उनके साथ नहीं निकलेंगे. और अगर उनसे जंग की गई, तो ये उनकी मदद भी नहीं करेंगे. और अगर उन्होंने उनकी मदद भी की, तो ज़रूर पीठ फेर कर भाग जाएंगे. फिर उन्हें कहीं से मदद भी नहीं मिलेगी.
13. ऐ ईमान वालो ! बेशक उनके दिलों में अल्लाह से ज़्यादा तुम्हारा रौब है. यह इसलिए है कि वह क़ौम समझ नहीं रखती.
14. वे सब मिलकर भी तुमसे जंग नहीं कर सकते, लेकिन क़िलाबंद बस्तियों या दीवारों के पीछे हों, तो अलग बात है. उनकी आपस में सख़्त लड़ाई है. तुम गुमान करते हो कि ये सब एकजुट हैं, लेकिन उनके दिल एक दूसरे से जुदा हैं. यह इसलिए है कि वह क़ौम अक़्ल से काम नहीं लेती.
15. उनका हाल उन लोगों जैसा है, जो उनसे कुछ अरसे पहले ही अपने काम के वबाल का ज़ायक़ा चख चुके हैं और उनके लिए आख़िरत में भी दर्दनाक अज़ाब है.
16. मुनाफ़िक़ों की मिसाल शैतान जैसी है, जब वह इंसान से कहता है कि तू कुफ़्र कर, फिर जब वह कुफ़्र करता है, तो शैतान उससे कहता है कि मैं तुझसे बेज़ार हूं, बेशक मैं अल्लाह से ख़ौफ़ज़दा हूं, जो तमाम आलमों का परवरदिगार है.
17. फिर उन दोनों का अंजाम यह होगा कि दोनों दोज़ख़ में डाले जाएंगे और हमेशा उसमें रहेंगे. और ज़ालिमों की यही सज़ा है.
18. ऐ ईमान वालो ! तुम अल्लाह से डरते रहो. हर किसी को ग़ौर करना चाहिए कि उसने क़यामत के लिए आगे क्या भेजा है. और तुम अल्लाह से डरते रहो. और अल्लाह उन आमाल से ख़ूब बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.
19. और तुम उन लोगों जैसे न हो जाना, जो अल्लाह को भुला बैठे, तो अल्लाह ने उन्हें ऐसा कर दिया कि वे ख़ुद को भूल गए. वही लोग नाफ़रमान हैं.
20. अहले दोज़ख़ और अहले जन्नत किसी भी तरह बराबर नहीं हो सकते. अहले जन्नत ही कामयाब हैं.
21. अगर हम इस क़ुरआन को किसी पहाड़ पर नाज़िल करते, तो तुम देखते कि वह अल्लाह के ख़ौफ़ से झुक जाता और शिगाफ़्ता होकर टुकड़े-टुकड़े हो जाता है. और ये मिसालें हम लोगों के लिए बयान कर रहे हैं, ताकि वे ग़ौर व फ़िक्र करें.
22. वह अल्लाह ही है, जिसके सिवा कोई माबूद नहीं. वह ग़ैब और ज़ाहिर को जानने वाला है. वह बड़ा मेहरबान निहायत रहम करने वाला है.
23. अल्लाह ही है, जिसके सिवा कोई माबूद नहीं. वह हक़ीक़ी बादशाह, पाक ज़ात, सलामत रखने वाला, अमन देने वाला, निगेहबान, ग़ालिब, ज़बरदस्त बड़ाई वाला है. अल्लाह हर उस चीज़ से पाक है, जिसे वे लोग उसका शरीक ठहराते हैं.
24. अल्लाह ही है, जो तमाम मख़लूक़ात को पैदा करने वाला, वजूद बख़्शने वाला, सूरतें बनाने वाला, सब अच्छे नाम उसी के हैं. आसमानों और ज़मीन की हर शय उसी की तस्बीह करती है. और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.

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