Sunday, September 5, 2021

18 सूरह अल कहफ़

सूरह अल कहफ़ मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 110 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं, जिसने अपने महबूब व मुक़र्रिब बन्दे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर किताब यानी क़ुरआन नाज़िल किया और उसमें कोई कमी नहीं रखी.
2. यह सीधा रास्ता बताने वाली किताब है, ताकि वह मुनकिरों को अल्लाह की तरफ़ से आने वाले सख़्त अज़ाब से ख़बरदार करे और जिन मोमिनों ने अच्छे काम किए हैं, उन्हें ख़ुशख़बरी दे कि उनके लिए बहुत अच्छा अज्र है.
3. जिसमें वे हमेशा रहेंगे.
4. और उन लोगों को ख़बरदार करे, जो कहते हैं कि अल्लाह ने अपने लिए बेटा बना रखा है. 
5. इस बारे में न उन्हें कोई इल्म है और न उनके बाप दादाओं को ही कुछ इल्म था. यह बड़ी सख़्त बात है, जो उनके मुंह से निकल रही है. वे लोग झूठ के सिवा कुछ नहीं कहते. 
6. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तो क्या तुम उनके पीछे शिद्दते ग़म में ख़ुद को हलाक कर लोगे. अगर वे लोग इस हदीस पर ईमान नहीं लाए. 
7. बेशक हमने उन सब चीज़ों को जो ज़मीन पर हैं उसकी ज़ीनत बनाया, ताकि हम लोगों को आज़माएं कि उनमें से कौन अमल के ऐतबार से बेहतर है.
8. और बेशक हम क़यामत के दिन जो कुछ भी ज़मीन पर है, सबको नाबूद करके बंजर मैदान बना देंगे.
9. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुम्हारा यह ख़्याल है कि कहफ़ व रक़ीम वाले हमारी क़ुदरत की निशानियों में से एक अजीब निशानी थे?
10. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वक़्त याद करो कि जब चन्द नौजवान ग़ार में आए, तो अर्ज़ करने लगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें अपनी बारगाह से रहमत अता कर और हमारे काम में बेहतरी फ़राहम कर.
11. फिर हमने उस ग़ार में उनके कानों पर कई बरसों के लिए पर्दे डाल दिए. यानी उन्हें सुला दिया.
12. फिर हमने उन्हें उठा दिया, ताकि यह देखें कि दोनों जमातों में अपने ठहरने की मुद्दत किसे ज़्यादा याद है.
13. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अब हम तुम्हें उनका सही हाल सुनाते हैं. बेशक वे चन्द नौजवान थे, जो अपने परवरदिगार पर ईमान लाए थे और हमने उनके लिए हिदायत में ज़्यादा इज़ाफ़ा कर दिया था. 
14. और हमने उनके दिलों को मज़बूत व मुस्तहकम कर दिया. जब वे अपने मुशरिक बादशाह के सामने खड़े हुए, तो कहने लगे कि हमारा परवरदिगार तो आसमानों और ज़मीन का भी परवरदिगार है. हम उसके सिवा हरगिज़ किसी दूसरे सरपरस्त को नहीं पुकारेंगे. अगर हम ऐसा करेंगे, तो उस वक़्त हम ज़रूर बेजा बात करेंगे.   
15. ये हमारी क़ौम के लोग हैं, जिन्होंने अल्लाह के सिवा दूसरे सरपरस्त बना लिए हैं. फिर ये लोग उनके सरपरस्त होने की कोई सरीह दलील पेश क्यों नहीं करते ? फिर उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा, जो अल्लाह पर झूठा बोहतान बांधे. 
16. और वे नौजवान आपस में कहने लगे कि जब तुमने उन लोगों से और उन झूठे सरपरस्तों से, जिन्हें वे अल्लाह के सिवा पुकारते हैं, किनाराकशी कर ली है, तो ग़ार में पनाह ले लो. तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारे लिए अपनी रहमत कुशादा कर देगा और तुम्हारे लिए तुम्हारे काम में आसानी पैदा करेगा.
17. और तुम देखते हो कि जब सूरज तुलूअ होता है, तो उनकी ग़ार से दायीं तरफ़ कतरा कर निकल जाता है और जब सूरज ग़ुरूब होने लगता है, तो उससे बायीं तरफ़ झुक कर निकल जाता है और वे लोग ग़ार के अंदर कुशादा जगह लेटे हुए आराम कर रहे हैं. यानी सूरज अपना रास्ता बदल लेता है. ये अल्लाह की क़ुदरत की निशानियों में से है. जिसे अल्लाह हिदायत दे, वही हिदायत याफ़्ता है और जिसे वह गुमराह छोड़ दे, तो तुम उसका न कोई दोस्त पोअगे और न कोई रहनुमा ही पाओगे.
18. और तुम्हारा ख़्याल है कि वे जाग रहे हैं. हालांकि वे गहरी नींद में सो रहे हैं और हम उन्हें दायीं और बायीं तरफ़ करवटें बदलवाते रहते हैं. और उनका कुत्ता चौखट पर अपने दोनों पंजे फैलाए बैठा है. अगर तुम उन्हें झांक कर देख लो, तो उनसे पीठ फेरकर भाग जाओ और तुम्हारे दिल में उनका रौब समा जाए.
19. और उसी तरह हमने उन्हें उठा दिया, ताकि वे आपस में पूछगछ करें. उनमें एक शख़्स कहने लगा कि तुम यहां कितनी मुद्दत ठहरे हो ? उन्होंने कहा कि हम यहां एक दिन या इसका कुछ हिस्सा ही ठहरे हैं. फिर वे कहने लगे कि तुम्हारा परवरदिगार ही बेहतर जानता है कि तुम यहां कितना अरसा ठहरे हो. फिर तुम अपने में से किसी को चांदी का यह सिक्का देकर शहर की तरफ़ भेजो, तो वह देखे कि कौन सा खाना ज़्यादा हलाल और पाकीज़ा है. फिर उसमें से कुछ खाना तुम्हारे लिए ले आए और उसे चाहिए कि वह आहिस्ता और नरमी से काम ले और किसी को भी तुम्हारी ख़बर न होने दे.
20. बेशक अगर उन लोगों को तुम्हारी ख़बर हो गई, तो वे तुम्हें संगसार कर देंगे या तुम्हें भी अपनी मिल्लत यानी मज़हब की तरफ़ फेर लेंगे. और फिर तुम कभी कामयाब नहीं हो पाओगे. 
21. और इस तरह हमने उन्हें ख़बरदार कर दिया, ताकि वे लोग जान लें कि अल्लाह का वादा बरहक़ है और यह भी कि क़यामत के आने में कोई शक नहीं है. जब बस्ती वाले आपस में उनके मामले में झगड़ने लगे, तो उन्होंने कहा कि उनके ग़ार पर बतौर यादगार एक इमारत बना दो. उनका परवरदिगार उनके हाल को ख़ूब जानता है. ग़ालिब रहने वाले लोगों ने कहा कि हम उनके दरवाज़े पर एक मस्जिद बनाएंगे.
22. अब कुछ लोग कहेंगे कि वे तीन थे. उनमें से चौथा उनका कुत्ता था. और कुछ लोग कहेंगे कि वे पांच थे, उनमें से छठा उनका कुत्ता था. वे सब बिना देखे अंदाज़े लगाते हैं. और कुछ लोग कहेंगे कि वे सात थे और उनमें से आठवां उनका कुत्ता था. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मेरा परवरदिगार ही उनकी तादाद को जानता है और कुछ लोगों के सिवा उनकी सही तादाद का इल्म किसी को नहीं है. इसलिए तुम थोड़ी सी गुफ़्तगू के सिवा उनके बारे में किसी से बहस न किया करो और न उनके बारे में कुछ पूछगछ करो. 
23. और किसी चीज़ के बारे में यह हरगिज़ मत कहना कि मैं इस काम को कल करूंगा.
24. लेकिन यह कहो कि इंशा अल्लाह यानी अगर अल्लाह चाहेगा, तो करूंगा और जब कभी इंशा अल्लाह कहना भूल जाओ, तो अपने परवरदिगार का ज़िक्र करो और कहो कि मुझे उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे इससे भी बेहतर हिदायत की राह दिखाएगा. 
25. और वे लोग ग़ार में तीन सौ नौ बरस रहे.
26. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अल्लाह ही बेहतर जानता है कि वे नौजवान कितनी मुद्दत तक ग़ार में ठहरे थे. आसमानों और ज़मीन की ग़ैब की बातें अल्लाह ही जानता है. वह क्या ख़ूब देखने वाला है और क्या ख़ूब सुनने वाला है. उसके सिवा उन लोगों का न कोई कारसाज़ है और न वह अपने हुक्म में किसी को शरीक करता है. 
27. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम वह कलाम पढ़कर सुनाओ, जो तुम्हारे परवरदिगार की किताब में से तुम्हारी तरफ़ वही के ज़रिये भेजा गया है. इस क़ुरआन के कलाम को कोई बदल नहीं सकता 
और तुम उसके सिवा कहीं पनाह की जगह भी नहीं पाओगे.
28. ऐ हमारे बन्दो ! और ख़ुद को उन लोगों के साथ रखो, जो सुबह व शाम अपने परवरदिगार का ज़िक्र करते हैं और उसकी ख़ुशनूदी चाहते हैं. तुम्हारी मुहब्बत की निगाहें उनकी तरफ़ से न फिरें कि तुम दुनियावी ज़िन्दगी की आराइश के तलबगार बन जाओ और तुम उस शख़्स का कहना मत मानो, जिसके दिल को हमने अपने ज़िक्र से ग़ाफ़िल कर दिया है और वह अपनी ख़्वाहिशों की पैरवी करता है और उसका मामला हद से गुज़र गया है.   
29. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम कह दो कि यह हक़ तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से है. फिर जो चाहे ईमान ले आए और जो चाहे कुफ़्र करे. बेशक हमने ज़ालिमों के लिए दोज़ख़ की आग तैयार कर रखी है, जिसकी दीवारें उन्हें घेर लेंगी. और अगर वे लोग फ़रियाद करेंगे, तो उनकी फ़रियादरसी ऐसे खौलते हुए पानी से की जाएगी जो पिघले हुए ताम्बे की तरह होगा और वह उनके चेहरों को जला देगा. कितना बुरा पानी है और दोज़ख़ कितना बुरा ठिकाना है.
30. बेशक जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो यक़ीनन हम ऐसे लोगों का अज्र ज़ाया नहीं करते, जो अच्छे अमल करते हैं. 
31. यही वे लोग हैं, जिनके लिए जन्नत के सदाबहार बाग़ हैं, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. उन्हें वहां सोने के कंगन पहनाए जाएंगे और उन्हें बारीक और दबीज़ रेशम का सब्ज़ लिबास पहनाया जाएगा. और वे तख़्तों पर तकिये लगाए बैठे होंगे. कितना अच्छा अज्र है और जन्नत कितनी अच्छी आरामगाह है.
32. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम उन लोगों से उन दो शख़्सों की मिसाल बयान करो, जिनमें से एक के लिए हमने अंगूर के दो बाग़ बनाए और हमने उनके अतराफ़ खजूर के दरख़्त लगा दिए और उन दोनों बाग़ों के दरम्यान खेती भी उगाई.
33. उन दोनों बाग़ों में ख़ूब फल हुए और उनकी पैदावार में कोई कमी नहीं रही और हमने उन दोनों बाग़ों के दरम्यान नहर भी जारी कर दी.
34. और उस शख़्स के पास बहुत से फल यानी माल व दौलत भी आ गई, तो उसने अपने ग़रीब साथी से बात करते हुए कहा कि मैं तुझसे माल व दौलत में कहीं ज़्यादा हूं और क़बीले और ख़ानदान के लिहाज़ से भी ज़्यादा इज़्ज़त वाला हूं.
35. और वह शख़्स बातें करता हुआ अपने बाग़ में पहुंचा, तो तकब्बुर की वजह से अपनी जान पर ज़ुल्म करते हुए कहने लगा कि मुझे तो गुमान ही नहीं कि कभी यह बाग़ तबाह होगा.
36. और न मैं यह गुमान करता हूं कि क़यामत बरपा होगी और अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाया भी गया, तो भी यक़ीनन मैं इन बाग़ों से बेहतर जगह पाऊंगा.
37. उसके साथी ने गुफ़्तगू करते हुए कहा कि क्या तूने अपने उस परवरदिगार से कुफ़्र किया है, जिसने तुझे पहले मिट्टी से पैदा किया. फिर नुत्फ़े से, फिर तुझे पूरा मर्द बनाया.
38. लेकिन मैं तो यही कहता हूं कि वही अल्लाह मेरा परवरदिगार है और मैं अपने परवरदिगार के साथ किसी को शरीक नहीं करता.
39. और जब तू अपने बाग़ में आया, तो यह क्यों नहीं कहा कि वही होता है, जो अल्लाह चाहता है. अल्लाह की मदद के बिना किसी में कुछ भी क़ूवत नहीं है. अगर तू माल और औलाद के ऐतबार से मुझे ख़ुद से कम देखता है, तो क्या हुआ. 
40. उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे तेरे बाग़ों से कहीं बेहतर बाग़ अता कर दे. और तेरे बाग़ों पर आसमान से कोई अज़ाब नाज़िल कर दे. फिर वे बाग़ मिट्टी का बंजर मैदान बन जाएं. 
41. या बाग़ों का पानी ख़ुश्क हो जाए. फिर तू उसे तलाश भी न कर सके.  
42. और उसके बाग़ के सारे फल आफ़त में घेर लिए गए, तो वह उस माल पर अफ़सोस से हाथ मलने लगा, जो उसने बाग़ों की तैयारी में ख़र्च किया था. और बाग़ अपनी शाख़ों पर औंधा पड़ा हुआ था और वह कहने लगा कि  काश ! मैं अपने परवरदिगार के साथ किसी को शरीक नहीं ठहराता.
43. और अल्लाह के सिवा उसकी कोई जमात भी नहीं थी, जो उसकी मदद करती और न वह ख़ुद ही बदला ले सकता था. 
44. वह जान गया कि सब अल्लाह ही के इख़्तियार में है, जो बरहक़ है. वही बेहतर सवाब देने वाला है और वही बेहतर अंजाम करने वाला है.
45. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम उनसे दुनियावी ज़िन्दगी की मिसाल भी बयान करो, जो उस पानी की तरह है, जिसे हमने आसमान से बरसाया, तो उससे ज़मीन शादाब होकर सरसब्ज़ हो गई. फिर वह ख़ुश्क होकर रेज़ा-रेज़ा हो गई, जिसे हवायें उड़ाए फिरती हैं. और अल्लाह हर चीज़ पर कामिल क़ुदरत रखने वाला है.
46. माल और औलाद तो दुनियावी ज़िन्दगी की ज़ीनत हैं और बाक़ी रहने वाली तो नेकियां हैं, जो तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक सवाब के लिहाज़ से भी बेहतर हैं और आरज़ू के लिहाज़ से भी बेहतर हैं.
47. और वह दिन क़यामत का होगा, जब हम पहाड़ों को चलाएंगे और तुम ज़मीन को ख़ाली खुला मैदान देखोगे और हम सबको जमा करेंगे और उनमें से किसी को नहीं छोड़ेंगे.
48. और सब लोग तुम्हारे परवरदिगार के सामने क़तार दर क़तार हाज़िर किए जाएंगे. उस वक़्त उनसे कहा जाएगा कि बेशक तुम हमारे पास उसी तरह आए हुए हो जिस तरह हमने तुम्हें पहली मर्तबा पैदा किया था, जबकि तुम गुमान करते थे कि हम तुम्हारे लिए वादे का दिन मुक़र्रर नहीं करेंगे. 
49. और लोगों के सामने आमालनामे रख दिए जाएंगे. फिर तुम गुनाहगारों को देखोगे कि वे उन गुनाहों से डरे हुए होंगे, जो उनमें लिखे होंगे. और वे लोग कहेंगे कि हाय हमारी शामत ! इस आमालनामे को क्या हुआ है. इसने न कोई छोटा गुनाह छोड़ा है और न कोई बड़ा गुनाह. लेकिन उसने हर चीज़ को शुमार कर रखा है और वे लोग जो कुछ करते रहे हैं, वह सब अपने सामने हाज़िर पाएंगे. और तुम्हारा परवरदिगार किसी पर ज़ुल्म नहीं करेगा. 
50. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम अलैहिस्सलाम को सजदा करो, तो इबलीस के सिवा सबने सजदा किया. इबलीस जिन्नों में से था, तो वह अपने परवरदिगार की इताअत से बाहर निकल गया. क्या तुम हमें छोड़कर उसे और उसकी औलाद को दोस्त बनाते हो. हालांकि वह तुम्हारा सरीह दुश्मन है. यह ज़ालिमों के लिए क्या बुरा बदला है.
51. हमने न उन्हें आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ के वक़्त मदद के लिए बुलाया था और न ख़ुद उनकी तख़लीक़ के वक़्त. और न हम ऐसे थे कि गुमराह करने वालों को अपना बाज़ू यानी मददगार बनाते.    
52. और जिस दिन अल्लाह फ़रमाएगा कि तुम उन्हें पुकारो, जिन्हें तुम हमारा शरीक गुमान करते थे. फिर वे लोग उन्हें बुलाएंगे, लेकिन वे उन्हें कोई जवाब नहीं देंगे. और हम उनके दरम्यान हलाकत की जगह बना देंगे. 
53. और गुनाहगार दोज़ख़ की आग को देखेंगे, तो जान लेंगे कि यक़ीनन वे उसमें गिराए जाएंगे और उन्हें उससे निजात की कोई राह नहीं मिल पाएगी.
54. और बेशक हमने इस क़ुरआन में लोगों को समझाने के लिए हर तरह की मिसालें बदल-बदल कर बयान की हैं. और इंसान हर चीज़ से ज़्यादा झगड़ने वाला है.
55. और जब लोगों के पास हिदायत आ चुकी थी, तो उन्हें किसने रोका था कि वे ईमान न लाएं और अपने परवरदिगार से बख़्शीश न मांगे, सिवाय इस रविश कि वे पहले के लोगों की तरह हलाकत में पड़ जाएं या उनके सामने अज़ाब ही आ जाए. 
56. और हम रसूलों को सिर्फ़ ख़ुशख़बरी सुनाने और अज़ाब से ख़बरदार करने के लिए ही भेजते हैं. और कुफ़्र करने वाले लोग उनसे बातिल का सहारा लेकर झगड़ते हैं, ताकि उसके ज़रिये हक़ को ज़ायल सकें. और उन्होंने हमारी आयतों और जिस अज़ाब से उन्हें ख़बरदार किया जाता है, उसका मज़ाक़ बना रखा है. 
57. और उस शख़्स से बढ़कर ज़ालिम कौन होगा, जिसे उसके परवरदिगार की आयतें याद दिलाई जाएं, तो वह उनसे मुंह फेर ले और अपने उन आमाल को भूल जाए, जो उसके हाथ आगे भेज चुके हैं. बेशक हमने उनके दिलों पर पर्दे डाल दिए हैं कि वे हक़ को समझ ही न सकें और उनके कान बहरे कर दिए है कि वे हक़ को सुन ही न सकें. और अगर तुम उन्हें सीधे रास्ते की तरफ़ बुलाओगे, तो वे कभी हिदायत नहीं पाएंगे. 
58. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम्हारा परवरदिगार बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है. अगर वह लोगों को उनके आमाल की सज़ा में गिरफ़्त में लेता, तो फ़ौरन दुनिया ही में उन पर अज़ाब नाज़िल कर देता, लेकिन उनके लिए एक वक़्त मुक़र्रर है. जब वह वक़्त आएगा, तो वे लोग अल्लाह के सिवा कहीं पनाह की जगह नहीं पाएंगे. 
59. और तुम्हारे सामने ये वे बस्तियां हैं, जब उनमें रहने वाले लोगों ने ज़ुल्म किया तो हमने उन्हें हलाक कर दिया और हमने उनकी हलाकत के लिए एक वक़्त मुक़र्रर कर रखा था. 
60. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वाक़िया याद करो कि जब मूसा अलैहिस्सलाम ने अपने जवान ख़ादिम यूशा बिन नून से कहा कि मैं तब तक पीछे नहीं हट सकता जब तक दोनों दरियाओं के मिलने की जगह न पहुंच जाऊं या मुद्दतों चलता रहूं.
61. फिर जब वे दोनों दरियाओं के मिलने की जगह पहुंचे, तो वे अपनी भुनी हुई मछली वहीं भूल गए. फिर उस मछली ने ज़िन्दा होकर दरिया में सुरंग की तरह अपना रास्ता बना लिया. 
62. फिर जब वे दोनों आगे बढ़ गए, तो मूसा अलैहिस्सलाम ने अपने ख़ादिम यूशा बिन नून से कहा कि हमारा खाना लाओ. बेशक हमने अपने इस सफ़र में बहुत तकलीफ़ उठाई है. 
63. यूशा बिन नून ने कहा कि क्या आपने देखा कि जब हमने दरिया के किनारे पत्थर के पास आराम किया था, तो बेशक मैं वहां मछली भूल गया और शैतान ने मुझे इसका आपसे ज़िक्र करना भुला दिया. और उस मछली ने ज़िन्दा होकर दरिया में अजीब तरह से अपना रास्ता बना लिया था. 
64. मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि यही वह जगह है, जिसे हम तलाश कर रहे थे. फिर वे दोनों अपने क़दमों के निशान देखते हुए वापस लौट आए. 
65. फिर वहां उन दोनों ने हमारे बन्दों में से एक ख़ास बन्दे ख़िज़्र अलैहिस्सलाम को पाया, जिन्हें हमने अपनी बारगाह से ख़ास रहमत अता की थी और हमने अपना इल्म सिखाया था. 
66. मूसा अलैहिस्सलाम ने ख़िज़्र अलैहिस्सलाम से कहा कि क्या मैं इस शर्त पर आपके साथ रह सकता हूं कि आप मुझे भी उस इल्म में से कुछ सिखा दें, जो नेकी व रहनुमाई का इल्म आपको सिखाया गया है.
67. ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने कहा कि बेशक आप मेरे साथ रहकर सब्र नहीं कर सकेंगे.
68. और आप उस पर कैसे सब्र कर सकते हैं, जो आपके इल्म के अहाते में नहीं है. यानी जिसका आपको कोई इल्म ही नहीं है. 
69. मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह ने चाहा, तो आप मुझे साबिर पाएंगे और मैं आपकी नाफ़रमानी नहीं करूंगा. 
70. ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर आप मेरे साथ रहना चाहते हैं, तो मुझसे तब तक किसी चीज़ के बारे में सवाल मत करना जब तक मैं ख़ुद ही आपसे उसका ज़िक्र न करूं.
71. फिर वे दोनों चल पड़े, यहां तक कि जब दोनों कश्ती में सवार हुए, तो ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने कश्ती में सुराख़ कर दिया. मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि क्या आपने कश्ती में इसलिए सुराख़ किया है कि लोगों को ग़र्क़ कर दें. बेशक आपने बड़ा अजीब काम किया है. 
72. ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने कहा कि क्या मैंने आपसे पहले ही नहीं कह दिया था कि आप मेरे साथ रहकर हरगिज़ सब्र नहीं कर सकेंगे.
73. मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि आप मेरी भूल पर मेरी गिरफ़्त न करें और इस मामले में मुझे ज़्यादा मुश्किल में न डालें. 
74. फिर वे दोनों चल पड़े, यहां तक कि दोनों एक लड़के से मिले, तो ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने उसे क़त्ल कर दिया. मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि क्या आपने एक मासूम शख़्स को क़त्ल कर दिया, जबकि उसने किसी की जान नहीं ली थी. यक़ीनन आपने एक नापसंदीदा काम किया है. 
75. ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने कहा कि क्या मैंने आपसे नहीं कहा था कि आप मेरे साथ रहकर हरगिज़ सब्र नहीं कर सकेंगे. 
76. मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि अब अगर मैं इसके बाद आपसे किसी चीज़ के बारे में सवाल करूं, तो आप मुझे अपने साथ न रखिएगा. बेशक आप मेरी तरफ़ से माज़रत की हद को पहुंच चुके हैं. 
77. फिर वे दोनों चल पड़े, यहां तक कि जब वे एक बस्ती वालों के पास पहुंचे, तो वहां के बाशिन्दों से खाना तलब किया. बस्ती वालों ने उन्हें मेहमान बनाने से इनकार कर दिया. फिर उन दोनों ने वहां एक दीवार देखी, जो गिरना चाहती थी, तो ख़ि अलैहिस्सलाम ने उसे सीधा खड़ा कर दिया. मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर आप चाहते, तो इसका मेहनताना ले सकते थे.
78. ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने कहा कि मेरे और आपके दरम्यान जुदाई का वक़्त आ गया है. अब मैं आपको उन बातों की हक़ीक़त बताता हूं, जिन पर आप सब्र नहीं कर सके. 
 79. वह कश्ती चन्द ग़रीब लोगों की थी, जो दरिया में मेहनत मज़दूरी करके गुज़ारा करते थे. फिर मैंने चाहा कि उसे ऐबदार बना दूं, क्योंकि उसके पीछे एक ज़ालिम बादशाह था, जो अच्छी कश्तियों को जबरन छीन लेता था.
80. और वह जो लड़का था, तो उसके वालिदैन मोमिन थे, जिन्हें अंदेशा हुआ कि वह बड़ा होकर उन्हें भी सरकशी और कुफ़्र में मुब्तिला कर देगा.
81. फिर मैंने चाहा कि उनका परवरदिगार इसके बदले में उन्हें ऐसा बेटा अता करेगा, जो पाकीज़गी और रहम दिली में उससे बेहतर होगा.    
82. और वह जो दीवार थी, तो वह शहर में रहने वाले दो यतीम बच्चों की थी और उसके नीचे उन दोनों के लिए एक ख़ज़ाना गड़ा हुआ था और उनका वालिद एक नेक आदमी था. लिहाज़ा आपके परवरदिगार ने चाहा कि वे दोनों जवान हो जाएं, और आपके परवरदिगार की रहमत से अपना ख़ज़ाना निकाल लें. और मैंने जो कुछ किया, वह ख़ुद नहीं किया, बल्कि अल्लाह के हुक्म से किया. ये उन वाक़ियात की हक़ीक़त है, जिन पर आपसे सब्र नहीं हो सका.
83. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुमसे लोग ज़ुलक़रनैन के बारे में सवाल करते हैं. तुम कह दो कि मैं तुम्हें उसके हाल के बारे में तज़्किरा पढ़कर सुनाता हूं.
84. बेशक हमने उसे ज़मीन पर इख़्तेदार अता किया था और हमने उसे हर शय का साजो सामान दिया था. 
85. फिर ज़ुलक़रनैन एक राह पर चल पड़ा. 
86. यहां तक कि जब वह चलते-चलते सूरज के ग़ुरूब होने की जगह पहुंच गया, तो उसने सूरज के ग़ुरूब होने के मंज़र को देखकर महसूस किया कि गोया वह काली कीचड़ के चश्मे में डूब रहा हो और उसने वहां एक क़ौम को आबाद पाया. हमने कहा कि ऐ ज़ुलक़रनैन ! तुम चाहो तो उन्हें सज़ा दो या उनके साथ हुस्ने सुलूक करो. 
87. ज़ुलक़रनैन ने अर्ज़ किया कि जो शख़्स ज़ुल्म करेगा, तो मैं उसे ज़रूर सज़ा दूंगा. फिर वह अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाया जाएगा, तो वह उसे बड़ा सख़्त अज़ाब देगा. 
88. और जो शख़्स ईमान लाया और नेक अमल करता रहा, तो उसके लिए बेहतर अज्र है. और अनक़रीब हम उसे अपने कामों में से आसान काम करने को कहेंगे.
89. फिर ज़ुलक़रनैन दूसरी राह पर चल पड़ा.
90. यहां तक कि जब वह चलते-चलते सूरज के तूलूअ होने की जगह पर पहुंच गया, तो वहां उसने सूरज को ऐसे महसूस किया गोया वह एक क़ौम पर तुलूअ हो रहा हो, जिसके लिए हमने सूरज से बचाव की ख़ातिर कोई आड़ नहीं बनाई थी. 
91. वाक़िया इसी तरह है. और जो कुछ ज़ुलक़रनैन के पास था हमने अपने इल्म से उसका अहाता कर लिया. 
92. फिर ज़ुलक़रनैन एक और राह पर चल पड़ा.
93. यहां तक कि जब वह चलते-चलते दो पहाड़ों के दरम्यान पहुंच गया, तो उसने उन पहाड़ों के पीछे एक ऐसी क़ौम को आबाद पाया, जो किसी की ज़बान नहीं समझती थी.
94. उन लोगों ने किसी तरह कहा कि ऐ ज़ुलक़रनैन ! बेशक याजूज और माजूज ने इस सर में फ़साद फैला रखा है, तो क्या हम आपके लिए इस शर्त पर कुछ माल जमा कर दें कि आप हमारे और उनके दरम्यान एक बुलंद व मज़बूत दीवार बना दें.
95. ज़ुलक़रनैन ने कहा कि मुझे मेरे परवरदिगार ने जो इख़्तियार दिया है, वह बेहतर है. तुम सिर्फ़ अपनी क़ूवत से मेरी मदद करो, तो मैं तुम्हारे और उनके दरम्यान एक मज़बूत दीवार बना दूंगा.
96. तुम मुझे लोहे के बड़े-बड़े टुकड़े लाकर दो, यहां तक कि जब उसने दोनों पहाड़ों के दरम्यान एक दीवार बना दी, तो वह कहने लगा कि अब आग लगाकर इसे धौंको. जब उसने उस लोहे को धौंकते-धौंकते सुर्ख़ अंगारा बना दिया, तो वह कहने लगा कि इसे मेरे पास लाओ, मैं इस पर पिघला हुआ ताम्बा डालूंगा.
97. फिर उन याजूज और माजूज में न इतनी ताक़त थी कि वे उस दीवार पर चढ़ सकें और न वे उसमें सुराख़ ही कर सकते थे. 
98. ज़ुलक़रनैन ने कहा कि यह मेरे परवरदिगार की रहमत है. फिर जब मेरे परवरदिगार का क़यामत का वादा क़रीब आएगा, तो वह इस दीवार को ढहा कर हमवार कर देगा और मेरे परवरदिगार का वादा बरहक़ है.
99. और हम उस दिन याजूज और माजूज को आज़ाद कर देंगे और वे दरिया की मौजों की तरह एक दूसरे में समा जाएंगे. फिर सूर फूंका जाएगा, तो हम सबको जमा कर लेंगे. 
100. और हम उस दिन दोज़ख़ को काफ़िरों के सामने कर देंगे.
101. वे लोग जिनकी आंखें हमारे ज़िक्र से पर्दे में थीं और वे हमारा ज़िक्र सुन भी नहीं सकते थे.
102. तो क्या कुफ़्र करने वाले लोग यह गुमान करते हैं कि हमारे बन्दों को अपना सरपरस्त बना लेंगे. बेशक हमने काफ़िरों की मेहमानी के लिए जहन्नुम तैयार कर रखी है.
103. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या हम तुम्हें ऐसे लोगों से ख़बरदार कर दें, जो आमाल के ऐतबार से नुक़सान उठाने वाले हैं.
104. यही वे लोग हैं, जिनकी सारी जद्दोजहद दुनियावी ज़िन्दगी में ही बर्बाद हो गई और वे गुमान करते रहे कि वे बड़े अच्छे काम कर रहे हैं.
105. यही वे लोग हैं, जिन्होंने अपने परवरदिगार की निशानियों और क़यामत के दिन उसके सामने हाज़िर होने से कुफ़्र किया है. इसलिए उनके सब आमाल बर्बाद हो गए. फिर हम उनके लिए क़यामत के दिन कोई वज़न क़ायम नहीं करेंगे. यानी उन्हें बिना हिसाब के सीधा दोज़ख़ में डाल दिया जाएगा.
106. यही जहन्नुम उनकी सज़ा है. ऐसा इसलिए है कि उन्होंने कुफ़्र किया और हमारी आयतों और हमारे रसूलों का मज़ाक़ उड़ाया.
107. बेशक जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो उनकी मेहमानी के लिए जन्नतुल फ़िरदौस के बाग़ होंगे. 
108. और वे लोग हमेशा उसमें रहेंगे. 
109. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगर समन्दर मेरे परवरदिगार के कलाम को लिखने के लिए रौशनाई बन जाए, तो वह समन्दर मेरे परवरदिगार का कलाम मुकम्मल होने से पहले ही ख़त्म हो जाएगा, अगरचे हम वैसा ही एक समन्दर उसकी मदद को ले आएं.
110. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं तो ज़ाहिरी तौर पर तुम्हारे जैसा ही एक बशर हूं. मेरे पास यह वही आई है कि तुम्हारा माबूद, माबूदे यकता ही है. फिर जो शख़्स अपने परवरदिगार से मुलाक़ात की उम्मीद रखता है, तो उसे चाहिए कि वे नेक अमल करे और अपने परवरदिगार की इबादत में किसी को शरीक न करे.

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