सूरह मरयम मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 98 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. काफ़ हा या ऐन साद.
2. यह तुम्हारे परवरदिगार की रहमत का ज़िक्र है, जो उसने अपने ख़ास बन्दे ज़करिया अलैहिस्सलाम पर की थी.
3. जब ज़करिया अलैहिस्सलाम ने अपने परवरदिगार को धीमी आवाज़ से पुकारा था.
4. ज़करिया अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! बेशक मेरी हड्डियां बहुत कमज़ोर हो गई हैं और बुढ़ापे की वजह से सर के बाल आग के बुझे शोले की तरह सफ़ेद हो गए हैं. और ऐ मेरे परवरदिगार ! मैं तेरी बारगाह में दुआ मांगकर कभी महरूम नहीं रहा.
5. और मैं अपनी मौत के बाद अपने रिश्तेदारों से डरता हूं कि वह दीन को बर्बाद न कर दें. और मेरी बीवी उम्मे कुलसूम भी बांझ है. फिर तू मुझे अपनी बारगाह से एक वारिस अता कर दे.
6. जो मेरा भी वारिस बने और याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद के नबुवत के सिलसिले का भी वारिस हो. और ऐ मेरे परवरदिगार ! तू भी उससे राज़ी हो.
7. उनसे कहा गया कि ऐ ज़करिया अलैहिस्सलाम ! बेशक हम तुम्हें एक बेटे की खुशख़बरी देते हैं, जिसका नाम यहया अलैहिस्सलाम होगा और हमने इससे पहले किसी को उसका हमनाम नहीं बनाया.
8. ज़करिया अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मेरे यहां बेटा कैसे होगा, जबकि मेरी बीवी कुलसूम बांझ है और मैं खु़द बेइंतिहा बूढ़ा हो चुका हूं.
9. उनसे कहा गया कि ऐसा ही होगा. तुम्हारा परवरदिगार फ़रमाता है कि यह काम हमारे लिए बहुत आसान है. और बेशक हम इससे पहले तुम्हें भी पैदा कर चुके हैं, जबकि तुम कुछ भी नहीं थे.
10. ज़करिया अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मेरे लिए कोई निशानी मुक़र्रर कर दे. उन्हें हुक्म दिया गया कि तुम बिल्कुल सेहतमंद होते हुए भी तीन रात व दिन लोगों से बात नहीं कर सकोगे.
11. फिर ज़करिया अलैहिस्सलाम अपने इबादत के हुजरे से निकल कर अपनी क़ौम के पास आए, तो उनकी तरफ़ इशारा किया कि तुम लोग सुबह व शाम अल्लाह की तस्बीह किया करो.
12. फिर जब यहया अलैहिस्सलाम पैदा हुए, तो उनसे कहा गया कि ऐ यहया अलैहिस्सलाम ! हमारी किताब यानी तौरात को मज़बूती से पकड़कर रखो. और हमने उन्हें बचपन ही से हिकमत और नबुवत अता की.
13. और अपनी बारगाह से उन्हें शफ़क़त और पाक़ीज़गी अता की. और वे बड़े परहेज़गाए थे.
14. वे अपने वालिदैन के साथ बड़ी नेकी करने वाले थे. और वे जाबिर और नाफ़रमान नहीं थे.
15. और यहया पर सलाम हो, उनकी पैदाइश के दिन और उनकी वफ़ात के दिन और जिस दिन वे दोबारा ज़िन्दा करके उठाए जाएंगे.
16. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और किताब यानी क़ुरआन में मरयम अलैहिस्सलाम का ज़िक्र करो कि जब वे घरवालों से अलग होकर इबादत के लिए मशरिक़ी मकान में आ गईं.
17. फिर मरयम अलैहिस्सलाम ने लोगों से पर्दा कर लिया, तो हमने उनके पास अपनी रूह जिब्रईल अलैहिस्सलाम को भेजा. फिर जिब्रईल अलैहिस्सलाम उनके सामने इंसान की सूरत में ज़ाहिर हुए.
18. मरयम अलैहिस्सलाम ने कहा कि बेशक मैं तुझसे मेहरबान अल्लाह की पनाह चाहती हूं. अगर तू परहेज़गार है.
19. जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने कहा मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे परवरदिगार का भेजा हुआ फ़रिश्ता हूं, ताकि तुम्हें एक पाकीज़ा बेटा अता करूं.
20. मरयम अलैहिस्सलाम ने कहा कि मुझे बेटा कैसे हो सकता है, जबकि मुझे किसी इंसान से छुआ तक नहीं और न मैं बदकार हूं.
21. जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐसा ही होगा. तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रमाया है कि यह काम हमारे लिए आसान है. यह इसलिए होगा, ताकि इसे लोगों के लिए अपनी क़ु़दरत की निशानी और अपनी ख़ास रहमत बनाएं. और यह काम पहले से तयशुदा है.
22. फिर मरयम अलैहिस्सलाम हामिला हो गईं और वे लोगों से दूर एक मकान में चली गईं.
23. फिर दर्दे ज़ह उन्हें एक खजूर के सूखे दरख़्त की जड़ की तरफ़ ले आया और वे कहने लगीं कि काश ! मैं इससे पहले ही मर गई होती और भूली बिसरी हो जाती.
24. फिर मरयम अलैहिस्सलाम को आवाज़ आई कि तुम परेशान मत हो. बेशक तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हारे नीचे एक चश्मा जारी कर दिया है.
25. और खजूर की शाख़ को पकड़ कर अपनी तरफ़ हिलाओ. वह तुम पर ताज़ी खजूरें गिरा देगी.
26. फिर तुम खजूर खाओ और चश्मे का पानी पियो. और अपने बेटे को देखकर अपनी आंखें ठंडी करो. फिर अगर तुम किसी बशर को देखो, तो इशारे से कह देना कि मैंने अल्लाह के लिए रोजे़ की नज़र मानी थी. इसलिए मैं आज किसी इंसान से बात नहीं कर सकती.
27. फिर मरयम अलैहिस्सलाम उस बच्चे को अपनी गोद में लिए हुए अपनी क़ौम के पास आ गईं, वे लोग कहने लगे कि ऐ मरयम अलैहिस्सलाम ! तुम बहुत बुरी चीज़ लाई हो.
28. ऐ हारून की बहन ! न तुम्हारा बाप बुरा आदमी था और न तुम्हारी मां ही बदकार थी.
29. तो मरयम अलैहिस्सलाम ने बच्चे की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि इससे पूछ लो. वे लोग कहने लगे कि हम गोद के बच्चे से कैसे बात करें?
30. बच्चे ने कहा कि बेशक मैं अल्लाह का बन्दा हूं. उसने मुझे किताब यानी इंजील अता की है और मुझे नबी बनाया है.
31. और मै जहां कहीं भी रहूं, उसने मुझे सरापा मुबारक बनाया है और मैं जब तक ज़िन्दा रहूं, उसने मुझे नमाज़ पढ़ने और ज़कात अदा करने का हुक्म दिया है.
32. और उसने मुझे अपनी मां के साथ नेक सुलूक करने वाला बनाया है. और उसने मुझे जाबिर और बदनसीब नहीं बनाया.
33. और मुझ पर सलाम हो मेरी पैदाइश के दिन और मेरी वफ़ात के दिन और जिस दिन मैं ज़िन्दा करके उठाया जाऊंगा.
34. यह मरयम अलैहिस्सलाम के बेटे ईसा अलैहिस्सलाम का सच्चा क़ौल है, जिस पर वे लोग शक किया करते हैं.
35. अल्लाह के शायाने शान नहीं है कि वह किसी को अपना बेटा बनाए. वह इससे पाक है. जब वह किसी काम का इरादा करता है, तो सिर्फ़ यही हुक्म देता है कि ‘हो जा’ तो वह ‘हो जाता’ है.
36. और बेशक अल्लाह ही मेरा परवरदिगार है और तुम्हारा भी परवरदिगार है, तो तुम उसी की इबादत किया करो. यही सीधा रास्ता है.
37. फिर उनके फ़िरक़े आपस में इख़्तिलाफ़ करने लगे. फिर काफ़िरों के लिए बड़े सख़्त दिन की हाज़िरी से तबाही है.
38. जिस दिन वे लोग हमारे सामने हाज़िर होंगे, तो ख़ूब सुनेंगे और देखेंगे, लेकिन ज़ालिम आज के दिन सरीह गुमराही में मुब्तिला हैं.
39. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम उन लोगों को हसरत व नदामत के दिन से ख़बरदार करो, जब हर चीज़ का फ़ैसला कर दिया जाएगा, लेकिन वे लोग ग़फ़लत में मुब्तिला हैं और ईमान नहीं लाते.
40. बेशक हम ही ज़मीन के भी वारिस हैं और उनके भी जो उस पर रहते हैं. और सबको हमारी तरफ़ ही लौटना है.
41. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम किताब यानी क़ुरआन में इब्राहीम अलैहिस्सलाम का ज़िक्र करो. बेशक वे सादिक़ नबी थे.
42. जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मुंह बोले वालिद यानी अपनी परवरिश करने वाले अपने चाचा आज़र से कहा कि ऐ अब्बा ! आप उन्हें क्यों पुकारते हैं, जो न सुन सकते हैं और न देख सकते हैं. और न आपके कुछ काम ही आ सकते हैं.
43 ऐ मेरे अब्बा ! बेशक मेरे पास वह इल्म आ चुका है, जो आपके पास नहीं आया. लिहाज़ा आप मेरी पैरवी करें. मैं आपको दीन का सीधा रास्ता दिखाऊंगा.
44. ऐ मेरे अब्बा ! आप शैतान को मत पुकारो. बेशक शैतान मेहरबान अल्लाह का बड़ा नाफ़रमान है.
45. ऐ मेरे अब्बा ! बेशक मैं इससे डरता हूं कि कहीं मेहरबान अल्लाह का अज़ाब आ पहुंचे और आप शैतान के साथी बन जाओ.
46. इब्राहीम अलैहिस्सलाम के मुंह बोले वालिद यानी उनकी परवरिश करने वाले उनके चाचा आज़र ने कहा कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम ! क्या तुम मेरे सरपरस्तों को नहीं मानते. अगर तुम इससे बाज़ नहीं आए, तो मैं तुम्हें ज़रूर संगसार करूंगा. और तुम एक लम्बे अरसे के लिए मुझसे दूर हो जाओ.
47. इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह आपको सलामत रखे. मैं अपने परवरदिगार से आपकी बख़्शीश के लिए दुआ मांगूंगा. बेशक वह मुझ पर बड़ा मेहरबान है.
48. और मैं तुम सबसे और तुम्हारे सरपरस्तों से जिन्हें तुम लोग अल्लाह के सिवा पुकारते हो किनाराकशी करता हूं और अपने परवरदिगार की इबादत करता हूं. उम्मीद है कि मैं अपने परवरदिगार की इबादत से महरूम नहीं रहूंगा.
49. फिर जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम उन लोगों और उनके सरपरस्तों से जिन्हें वे लोग अल्लाह के सिवा पुकारते थे, जुदा हो गए, तो हमने उन्हें इसहाक़ अलैहिस्सलाम और याक़ूब अलैहिस्सलाम से नवाज़ा और उन्हें नबी बनाया.
50. और हमने उन्हें अपनी ख़ास रहमत अता की और हमने सच्ची ज़बान में उनका ज़िक्रे ख़ैर बुलंद किया.
51. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और इस किताब यानी क़ुरआन में मूसा अलैहिस्सलाम का भी ज़िक्र करो. बेशक वे मुख़लिस बन्दे थे और वे साहिबे रिसालत नबी थे.
52. और हमने उन्हें कोहे तूर की दाहिनी तरफ़ से आवाज़ दी और हमने उन्हें राज़ व नियाज़ की बातें करने के लिए अपने क़रीब बुलाया.
53. और हमने अपनी ख़ास रहमत से उनके भाई हारून को नबी बनाया.
54. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और इस किताब यानी क़ुरआन में इस्माईल अलैहिस्सलाम का भी ज़िक्र करो. बेशक वे वादे के सच्चे थे और साहिबे रिसालत नबी थे.
55. और इस्माईल अलैहिस्सलाम अपने घरवालों को नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने का हुक्म देते थे और अपने परवरदिगार की बारगाह में पसंदीदा नबी थे.
56. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और इस किताब यानी क़ुरआन में इदरीस अलैहिस्सलाम का भी ज़िक्र करो. बेशक वे सादिक़ नबी थे.
57. और हमने उन्हें बुलंद मक़ाम अता किया.
58. ये सब वे अम्बिया हैं, जिन्हें अल्लाह ने ईनाम अता किए. ये नबी आदम अलैहिस्सलाम की औलाद में से हैं और उन मोमिनों में से हैं, जिन्हें हमने नूह अलैहिस्सलाम के साथ कश्ती में सवार किया था और इब्राहीम अलैहिस्सलाम और इस्राईल अलैहिस्सलाम यानी याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद में से हैं और उन मुंतख़िब लोगों में से हैं, जिन्हें हमने हिदायत बख़्शी और बरगुज़ीदा किया. जब उनके सामने मेहरबान अल्लाह की आयतें पढ़ी जाती हैं, तो वे सजदे में गिर पड़ते हैं और ज़ारो क़तार रोते हैं.
59. फिर उनके बाद वे नाख़लफ़ उनके जानशीन हुए, जिन्होंने नमाज़ें ज़ाया कर दीं और ख़्वाहिशों की पैरवी की. फिर अनक़रीब वे आख़िरत के अज़ाब का सामना करेंगे.
60. सिवाय उस शख़्स के, जिसने तौबा कर ली और ईमान ले आया और नेक अमल करता रहा, तो ऐसे लोग जन्नत में दाख़िल होंगे और उन पर कोई जु़ल्म नहीं किया जाएगा.
61. वे जन्नत के सदाबहार बाग़ों में रहेंगे, जिनका मेहरबान अल्लाह ने अपने बन्दों से ग़ैब में वादा किया है. बेशक उसका वादा पूरा होने वाला है.
62. वे लोग उसमें सलाम के सिवा कोई बेहूदा बात नहीं सुनेंगे. उनके लिए उनका रिज़्क़ उसमें सुबह व शाम मयस्सर होगा.
63. यही वह जन्नत है, जिसका वारिस हम अपने बन्दों में से उसे बनाएंगे, जो परहेज़गार होगा.
64. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फ़रिश्ते तुमसे कहते हैं कि हम आपके परवरदिगार के हुक्म के बग़ैर ज़मीन पर नहीं उतर सकते. और जो कुछ आपके सामने है और जो कुछ आपके पीछे है और जो कुछ उनके दरम्यान में है, सब उसी का है. और आपका परवरदिगार कुछ भी भूलने वाला नहीं है.
65. अल्लाह आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इनके दरम्यान है, सबका परवरदिगार है. फिर तुम उसकी इबादत करो और उसकी इबादत पर साबित क़दम रहो. क्या तुम उसका कोई हमनाम जानते हो.
66. और इंसान कहता है कि क्या जब मैं मर जाऊंगा, तो अनक़रीब ज़िन्दा करके क़ब्र से निकाला जाऊंगा.
67. क्या इंसान यह याद नहीं करता कि बेशक हमने इससे पहले भी उसे पैदा किया था, जबकि वह कुछ भी नहीं था.
68. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम्हारे परवरदिगार की क़सम ! हम उन्हें और शैतानों को क़यामत के दिन ज़रूर जमा करेंगे. फिर हम उन्हें जहन्नुम के गिर्द ज़रूर हाज़िर करेंगे. वे घुटनों के बल गिरे हुए होंगे.
69. फिर हम हर गिरोह में से ऐसे लोगों को अलग निकाल लेंगे, जो उनमें से मेहरबान अल्लाह से सरकशी करने वाला होगा.
70. फिर हम उन लोगों को ख़ूब जानते हैं, जो दोज़ख़ में डाले जाने के ज़्यादा सज़ावार हैं.
71. और तुममे से कोई ऐसा नहीं है, जो दोज़ख़ से होकर नहीं गुज़रेगा. क्योंकि पुल सिरात उसी पर है. यह वादा तुम्हारे परवरदिगार पर लाज़िम है, जो पूरा होकर रहेगा.
72. फिर हम परहेज़गारों को निजात देंगे और ज़ालिमों को उसमें घुटनों के बल गिरा हुआ छोड़ देंगे.
73. और जब उनके सामने हमारी वाज़ेह आयतें पढ़ी जाती हैं, तो कुफ़्र करने वाले लोग ईमान वालों से कहते हैं दोनों फ़रीक़ों में से किसकी रिहाइश बेहतर है और किसकी मजलिस ज़्यादा अच्छी है.
74. और हमने उनसे पहले कितनी ही क़ौमों को हलाक कर दिया, जो साजो सामान और ज़ाहिरी शानो शौकत में उनसे कहीं बढ़कर थीं.
75. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि जो शख़्स गुमराही में मुब्तिला है, तो मेहरबान अल्लाह उसे उम्र और ऐश में मोहलत देता रहता है, यहां तक कि जब वे लोग उस चीज़ को देख लेंगे, जिसका उनसे वादा किया गया है, चाहे वह अज़ाब हो या क़यामत हो, तो उस वक़्त वे जान लेंगे कि कौन रिहाइशगाह के ऐतबार से बदतर है और लश्कर के ऐतबार से कमज़ोर है.
76. और अल्लाह हिदायत याफ़्ता लोगों की हिदायत में इज़ाफ़ा करता है और बाक़ी रहने वाली नेकियां तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक अज्र व सवाब में भी बेहतर हैं और अंजाम में भी बेहतर हैं.
77. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने उस शख़्स को देखा है, जिसने हमारी आयतों से कुफ़्र किया और कहने लगा कि क़यामत के दिन भी इसी तरह मुझे माल व औलाद ज़रूर दे दिए जाएंगे.
78. क्या वह ग़ैब का हाल जानता है या उसने अल्लाह से कोई अहद ले रखा है.
79. हरगिज़ नहीं. अब हम वह सब लिखते रहेंगे, जो वह कहता है और उसके लिए ज़्यादा अज़ाब बढ़ाते चले जाएंगे.
80. और जिस माल व औलाद के बारे में वह कह रहा है, उसके हम ही वारिस होंगे और वह हमारे पास अकेला ही आएगा.
81. और उन लोगों ने अल्लाह के सिवा दूसरे सरपरस्त बना लिए हैं, ताकि वे उनकी इज़्ज़त बढ़ाएं.
82. हरगि़ज़ नहीं. अनक़रीब वे उनके पुकारने से ही इनकार कर देंगे और उनके दुश्मन हो जाएंगे.
83. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने नहीं देखा कि बेशक हमने शैतानों को काफ़िरों पर मुसल्लत कर दिया है. वे हर वक़्त उन्हें हक़ के ख़िलाफ़ उकसाते रहते हैं.
84. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तो तुम उन काफ़िरों पर अज़ाब के लिए जल्दी न करो. हम ख़ुद ही उनके अज़ाब के लिए दिन गिन रहे हैं.
85. जिस दिन हम परहेज़गारों को जमा करके मेहरबान अल्लाह के सामने मेहमानों की तरह ले जाएंगे.
86. और गुनाहगारों को जहन्नुम की तरफ़ प्यासे हांक कर ले जाएंगे.
87. उस दिन वे लोग सिफ़ारिश का इख़्तियार नहीं रखेंगे, सिवाय उनके जिन्होंने मेहरबान अल्लाह से शफ़ाअत का अहद ले लिया है.
88. और वे लोग कहते हैं कि मेहरबान अल्लाह ने अपने लिए बेटा बना लिया है.
89. ऐ काफ़िरो ! बेशक तुमने बड़ी सख़्त बात कही है.
90. मुमकिन है कि इस बोहतान से तमाम आसमान फट पड़ें और ज़मीन टुकड़े-टुकड़े हो जाए और पहाड़ रेज़ा-रेज़ा होकर गिर पड़ें.
91. कि उन लोगों ने मेहरबान अल्लाह के लिए बेटा क़रार दिया है.
92. और मेहरबान अल्लाह के शायाने शान नहीं कि वह किसी को अपना बेटा बना ले.
93. आसमानों और ज़मीन में कोई ऐसा नहीं है, जो मेहरबान अल्लाह की बारगाह में बन्दा बनकर हाज़िर होने वाला न हो.
94. बेशक अल्लाह ने उन्हें अहाते में ले लिया है और उन्हें अच्छी तरह शुमार कर रखा है.
95. और उनमें से हर एक क़यामत के दिन अल्लाह के हुज़ूर में अकेला आएगा.
96. बेशक जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो मेहरबान अल्लाह लोगों के दिलों में उनके लिए मुहब्बत पैदा कर देगा.
97. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर बेशक हमने इस क़ुरआन को तुम्हारी अरबी ज़बान में आसान कर दिया है, ताकि तुम इसके ज़रिये परहेज़गारों को जन्नत की ख़ुशख़बरी दे दो और झगड़ालू क़ौम को अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करो.
98. और हमने उनसे पहले कितनी ही क़ौमों को हलाक कर दिया. क्या तुम उनमें से किसी को देखते हो या किसी की कोई आहट सुनते हो.
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