Sunday, August 29, 2021

25 सूरह अल फ़ुरक़ान

सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ और बातिल को समझने और फ़ैसला करने के लिए अपने महबूब बन्दे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर क़ुरआन नाज़िल किया, ताकि वे तमाम आलमों के लिए अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करने वाले पैग़म्बर बन जाएं. 
2. वह अल्लाह ही है, जिसकी आसमानों और ज़मीन पर बादशाहत है और जिसने अपने लिए न औलाद बनाई और न बादशाही में उसका कोई शरीक है. और उसने हर चीज़ की तख़लीक़ की. फिर उसे एक मुक़र्रर किए हुए मुनासिब अंदाज़े पर ठहराया.
3. और उन मुशरिकों ने अल्लाह के सिवा दूसरे सरपरस्त बना लिए हैं, जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते, बल्कि वे ख़ुद ही पैदा किए गए हैं. और वे ख़ुद अपने लिए भी न किसी नुक़सान और नफ़े का इख़्तियार रखते हैं. और न मौत और ज़िन्दगी ही उनके इख़्तियार में है. और न उन्हें किसी को दोबारा ज़िन्दा करके उठाने का ही कुछ इख़्तियार है.
4. और कुफ़्र करने वाले लोग कहने लगे कि यह क़ुरआन तो सिर्फ़ झूठ है, जिसे उन्होंने ख़ुद गढ़ लिया है और दूसरी क़ौम ने उनकी मदद की है. बेशक काफ़िर ज़ुल्म और झूठ बोलने पर उतर आए हैं. 
5. और वे लोग कहने लगे कि यह क़ुरआन तो सिर्फ़ पहले के लोगों के अफ़साने हैं, जिन्हें उन्होंने लिखवा लिया है. फिर वही अफ़साने सुबह व शाम उनके सामने पढ़े जाते हैं.
6. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि इस क़ुरआन को उस अल्लाह ने नाज़िल किया है, जो आसमानों और ज़मीन के तमाम राज़ों को ख़ूब जानता है. बेशक वह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
7. और वे लोग कहने लगे कि ये कैसे रसूल हैं, जो खाना भी खाते हैं और बाज़ारों में भी चलते फिरते हैं. उनके पास कोई फ़रिश्ता नाज़िल क्यों नहीं किया गया कि वह भी उनके साथ अज़ाब से ख़बरदार करने वाला होता.
8. या उनके पास कोई ख़ज़ाना उतार दिया जाता या उनके पास कोई बाग़ ही होता, जिससे वे खाते व पीते. और ज़ालिम मोमिनों से कहते हैं कि तुम तो सिर्फ़ ऐसे शख़्स की पैरवी करते हो, जिस पर जादू कर दिया गया है.
9. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ज़रा देखो तो कि वे लोग तुम्हारे लिए कैसी मिसालें बयान करते हैं. लिहाज़ा वे लोग बहक गए हैं और अब वे हिदायत का कोई रास्ता नहीं पा सकते.
10. वह अल्लाह बड़ा बारबरकत है. अगर वह चाहे तो तुम्हारे लिए दुनिया में इससे कहीं बेहतर बाग़ बना दे, जिनके नीचे नहरें बहती हों. और तुम्हारे लिए आलीशान महल भी बना दे.
11. बल्कि उन लोगों ने क़यामत को भी झुठला दिया है. और हमने क़यामत को झुठलाने वाले लोगों के लिए दोज़ख़ की भड़कती हुई आग तैयार कर रखी है.
12. जब दोज़ख़ की आग उन्हें दूर से देखेगी, तो वे लोग उसके जोश व ख़रोश की ख़ौफ़नाक आवाज़ सुनेंगे
13. और जब उन्हें ज़ंजीरों से जकड़कर दोज़ख़ की किसी तंग जगह में डाला जाएगा, तो उस वक़्त वे लोग मौत की दुआ मांगेंगे.
14. उनसे कहा जाएगा कि आज एक मौत को नहीं, बल्कि बहुत सी मौतों की दुआ करो.
15. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि यह दोज़ख़ बेहतर है या दाइमी जन्नत, जिसका परहेज़गारों से वादा किया गया है. वे उनके आमाल की जज़ा होगी और उनकी दाइमी क़यामगाह भी होगी.
16. उनके लिए जन्नत में वे सब होगा, जो वे चाहेंगे और वे उसमें हमेशा रहेंगे. यह तुम्हारे परवरदिगार का लाज़िमी वादा है, जो क़ाबिले तलब है.
17. और जिस दिन अल्लाह उन लोगों को और उन्हें जिन्हें वे अल्लाह के सिवा पुकारते थे, सबको जमा करेगा और फ़रमाएगा कि क्या तुमने हमारे बन्दों को गुमराह किया था या वे लोग ख़ुद ही राह से भटक गए थे.
18. वे अर्ज़ करेंगे कि तेरी ज़ात पाक है. हमें यह हक़ नहीं कि तेरे सिवा किसी दूसरे को अपना सरपरस्त बनाएं. लेकिन तूने ही उन्हें और उनके बाप दादाओं को इतना दुनियावी माल व असबाब अता कर दिया, यहां तक कि वे लोग तेरे ज़िक्र को भूल गए. और वह ख़ुद ही हलाक होने वाली क़ौम थी.      
19. फिर काफ़िरों से कहा जाएगा कि लिहाज़ा तुम्हारे सरपरस्तों ने उसे झुठला दिया, जो कुछ तुम कह रहे थे. अब तुम न हमारे अज़ाब को फेरने की ताक़त रखते हो और न अपनी ही कुछ मदद कर सकते हो. और तुममें से जो भी ज़ुल्म करेगा, हम उसे बड़े सख़्त अज़ाब का ज़ायक़ा चखाएंगे.
20. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हमने तुमसे पहले जितने भी रसूल भेजे हैं, वे सब यक़ीनन खाना खाते थे और बाज़ारों में भी चलते फिरते थे. और हमने तुम सबको एक दूसरे के लिए आज़माइश का ज़रिया बनाया है. ऐ ईमान वालो ! क्या तुम इस आज़माइश पर सब्र करोगे? और तुम्हारा परवरदिगार ख़ूब देखने वाला है.
21. और जो लोग आख़िरत में हमसे मिलने की उम्मीद नहीं रखते, वे कहते हैं कि हम पर फ़रिश्ते नाज़िल क्यों नहीं किए गए या हम अपने परवरदिगार को देख लेते. हक़ीक़त में वे लोग अपने दिलों में ख़ुद को बहुत बड़ा समझने लगे हैं और हद से बढ़कर सरकशी कर रहे हैं.
22. जिस दिन वे लोग फ़रिश्तों को देख लेंगे, तो उस दिन गुनाहगारों को कोई ख़ुशी नहीं होगी और वे कहेंगे कि काश ! कोई रोक वाली आड़ होती.
23. और हम उनके आमाल की तरफ़ मुतावज्जे होंगे. जो कुछ उन्होंने किया होगा, उसे ख़ाक का ग़ुबार बनाकर बिखेर देंगे.
24. उस दिन असहाबे जन्नत की क़यामगाह भी अच्छी होगी और ख़्वाबगाह भी उम्दा होगी. 
25. और जिस दिन आसमान फटकर बादल की तरह धुआं-धुआं हो जाएगा और फ़रिश्तों के ग़ौल के ग़ौल नाज़िल किए जाएंगे. 
26. उस दिन हक़ की बादशाहत मेहरबान अल्लाह ही की होगी और वह दिन काफ़िरों के लिए बड़ा सख़्त होगा.
27. और जिस दिन ज़ालिम अपने हाथ को काटने लगेगा और कहेगा कि काश ! रसूल के साथ मैंने भी सीधा रास्ता इख़्तियार कर लिया होता. 
28. हाय अफ़सोस ! काश मैंने फ़लां शख़्स को अपना दोस्त न बनाया होता.
29. बेशक उसने हमारे पास ज़िक्र आने के बाद मुझे बहकाया और शैतान तो इंसान को वक़्त पड़ने पर छोड़ देने वाला है.
30. और उस वक़्त रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ करेंगे कि ऐ मेरे परवरदिगार ! बेशक मेरी क़ौम ने इस क़ुरआन को बिल्कुल छोड़ रखा था.
31. और इसी तरह हमने हर नबी के लिए गुनाहगारों में से कुछ उनके दुश्मन क़रार दे दिए हैं और तुम्हारा परवरदिगार हिदायत करने और मदद करने के लिए काफ़ी है.
32. और कुफ़्र करने वाले लोग कहने लगे कि इन रसूल पर क़ुरआन एक ही बार नाज़िल क्यों नहीं किया गया. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हमने ऐसा इसलिए किया, ताकि तुम्हारे दिल को क़ूवत व तस्कीन बख़्शें और इसीलिए हमने इसे ठहर-ठहर कर पढ़ा है.
33. और वे काफ़िर तुम्हारे पास ऐतराज़ के सिवा कोई हक़ की मिसाल नहीं लाते. लेकिन हम तुम्हारे पास उसके जवाब में हक़ के साथ बेहतरीन और वाज़ेह बयां ले आएंगे.
34. यही वे लोग हैं, जो अपने मुंह के बल जहन्नुम की तरफ़ घसीटे जाएंगे. उनका ठिकाना बहुत बुरा है और वे सीधे रास्ते से भी बहुत ज़्यादा भटके हुए हैं.
35. और बेशक हमने मूसा अलैहिस्सलाम को किताब यानी तौरात अता की और उनके साथ उनके भाई हारून को उनका वज़ीर बनाया.
36. फिर हमने कहा कि तुम दोनों उस क़ौम के पास जाओ, जिसने हमारी आयतों को झुठलाया है. जब वे लोग बाज़ नहीं आए, तो हमने उन्हें बुरी तरह तबाह व बर्बाद कर दिया.
37. और जब नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम ने भी हमारे रसूलों को झुठलाया, तो हमने उन्हें ग़र्क़ कर दिया और हमने उन्हें दूसरे लोगों के लिए इबरत की निशानी बना दिया. और हमने ज़ालिमों के लिए दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है.
38. और इसी तरह हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद और सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद और कुओं वालों और उनके दरम्यान बहुत सी उम्मतों को भी तबाह व बर्बाद कर दिया.
39. और हमने उनमें से हर एक की नसीहत के लिए मिसालें बयान कीं और हमने उन सबको तबाह व बर्बाद कर दिया. 
40. और बेशक वे काफ़िर उस बस्ती की तरफ़ से गुज़रे हैं, जिस पर हमने पत्थरों की बारिश बरसाई थी. फिर क्या उन्होंने उसे नहीं देखा, बल्कि वे लोग दोबारा ज़िन्दा होकर उठने की उम्मीद नहीं रखते.
41. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब भी वे लोग तुम्हें देखते हैं, तो तुम्हारा मज़ाक़ उड़ाते हैं और कहते हैं कि क्या यही वे हज़रत हैं, जिन्हें अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है.
42. बेशक मुमकिन था कि रसूल हमें हमारे सरपरस्तों से बहका देते, अगर हम उन्हें पुकारने पर साबित क़दम न रहते. और अनक़रीब जब वे लोग अज़ाब को देख लेंगे, तो जान लेंगे कि सीधे रास्ते से कौन ज़्यादा भटका हुआ था.
43. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने उस शख़्स को देखा है, जिसने अपनी ख़्वाहिशों को अपना सरपरस्त बना रखा है. तो क्या तुम उसके वकील हो सकते हो.
44. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुम यह गुमान करते हो कि इन काफ़िरों में से बहुत से लोग तुम्हारी बात सुनते या समझते हैं? हरगिज़ नहीं, लेकिन वे लोग तो चौपायों की तरह हैं, बल्कि उनसे भी ज़्यादा गुमराह हैं.
45. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने अपने परवरदिगार की क़ुदरत की तरफ़ निगाह नहीं की कि वह किस तरह दोपहर तक साये को फैला देता है. और अगर वह चाहता, तो उसे एक ही जगह ठहरा देता. फिर हमने सूरज को उसकी दलील बना दिया.
46. फिर हम आहिस्ता-आहिस्ता उस साये को अपनी तरफ़ खींचकर समेट लेते हैं. 
47. और वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हारे लिए रात को पर्दा और नींद को राहत और दिन को उठने का वक़्त बनाया, ताकि तुम काम कर सको.
48. और वह अल्लाह ही है, जिसने अपनी रहमत की बारिश से पहले हवाओं को ख़ुशख़बरी बनाकर भेजा है. और हम ही आसमान से पाक पानी बरसाते हैं.
49. ताकि हम उसके ज़रिये मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा यानी बंजर ज़मीन को शादाब करें और अपनी मख़लूक़ात में से चौपायों और इंसानों को उससे सेराब करें.
50. और बेशक हमने पानी को उनके दरम्यान इस तरह फेरा यानी तक़सीम किया, ताकि लोग ग़ौर व फ़िक्र करें. फिर बहुत से लोगों ने नाशुक्री की और हर बात से कुफ़्र किया.
51. और अगर हम चाहते, तो हर बस्ती में अज़ाब से ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर भेज देते.
52. ऐ ईमान वालो ! फिर तुम काफ़िरों का कहना मत मानो और क़ुरआन के अहकाम के ज़रिये उनसे बड़ा जिहाद करो.
53. और वह अल्लाह ही है, जिसने दो समन्दरों को आपस में मिला दिया. एक समन्दर का पानी ख़ुशगवार व मीठा है और दूसरे का पानी खारा व कड़वा है. और दोनों के दरम्यान हदे फ़सील और एक मज़बूत ओट बना दी है.
54. और वह अल्लाह ही है, जिसने पानी से बशर को पैदा किया. फिर उसे ख़ानदान और ससुराल वाला बनाया. और तुम्हारा परवरदिगार हर चीज़ पर क़ादिर है.
55. और काफ़िर अल्लाह के सिवा ऐसी चीज़ों को पुकारते हैं, जो न उन्हें नफ़ा पहुंचा सकती हैं और न उन्हें नुक़सान ही पहुंचा सकती हैं. और काफ़िर तो अपने परवरदिगार की नाफ़रमानी पर हमेशा शैतान का मददगार होता है.
56. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हमने तुम्हें सिर्फ़ ख़ुशख़बरी देने वाला और अज़ाब से ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर बनाकर भेजा है.
57. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं इस तुमसे कोई अज्र नहीं मांगता. लेकिन जो चाहे अपने परवरदिगार तक पहुंचने का रास्ता इख़्तियार करे.
58. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम उस अल्लाह पर भरोसा करो, जो हमेशा ज़िन्दा रहने वाला है और उसे कभी मौत नहीं आएगी. और उसकी हम्दो सना की तस्बीह करते रहो और वह अपने बन्दों के गुनाहों की ख़बर रखने के लिए काफ़ी है.
59. वह अल्लाह ही है, जिसने आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरम्यान है, सबकी छह दिन में तख़लीक़ की. फिर वह अर्श पर जलवा फ़रोश हुआ. और वह बड़ा मेहरबान है. तुम उसके बारे में किसी ख़बीर  से दरयाफ़्त करो.
60. और जब उन काफ़िरों से कहा जाता है कि रहमान को सजदा करो, तो वे कहते हैं कि रहमान क्या है? क्या हम उसे सजदा करने लगें, जिसका तुम हमें हुक्म दे रहे हो. और इस तरह उनकी नफ़रत में मज़ीद इज़ाफ़ा हो जाता है. 
61. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने आसमान में बुर्ज बनाए और उनमें सूरज को रौशन चराग़ और चांद को पुरनूर बनाया.
62. और वह अल्लाह ही है, जिसने रात और दिन को एक दूसरे के पीछे आने वाला बनाया. यह उनके ग़ौर व फ़िक्र करने के लिए है, जो शुक्रगुज़ारी का इरादा करें.
63. और मेहरबान अल्लाह के मुख़लिस बन्दे वे हैं, जो ज़मीन पर आहिस्ता से चलते हैं और जब जाहिल उनसे जिहालत की बात करते हैं, तो वे कहते हैं कि तुम पर सलाम हो.
64. और यही वे लोग हैं, जो अपने परवरदिगार की बारगाह में सजदे और क़याम करते हुए रातें बसर करते हैं.
65. और यही वे लोग हैं, जो अर्ज़ करते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! तू हम से जहन्नुम का अज़ाब हटा दे. बेशक इसका अज़ाब बहुत सख़्त व चिमटने वाला है.
66. बेशक वह बहुत बुरा ठिकाना और बुरी जगह है.
67. और यही वे लोग हैं कि जब ख़र्च करते हैं तो न फ़ुज़ूल ख़र्ची करते हैं और न कंजूसी करते हैं. और उनका ख़र्च उसके दरम्यान औसत दर्जे का रहता है.
68. और यही वे लोग हैं, जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे को नहीं पुकारते. और किसी ऐसे जानदार को क़त्ल नहीं करते, जिसे नाहक़ मारना अल्लाह ने हराम क़रार दिया है. और बदकारी नहीं करते हैं. और जो ऐसा करेगा, वह ख़ुद अपने गुनाह की सज़ा भुगतेगा.
69. क़यामत के दिन उसके लिए अज़ाब दोगुना कर दिया जाएगा और वह ज़लील व ख़्वार होकर उसमें हमेशा रहेगा.
70. सिवाय उसके, जो तौबा कर ले और ईमान ले आए और नेक अमल करता रहे, तो अल्लाह उसकी बुराइयों को अच्छाइयों में बदल देगा. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
71. और जिसने तौबा कर ली और नेक अमल किए, तो बेशक उसने अल्लाह की तरफ़ सच्चे दिल से रुजू किया.
72. और यही वे लोग हैं, जो झूठी गवाही नहीं देते. और जब वे लोग किसी बेहूदा कामों के पास से गुज़रते हैं, तो बुज़ुर्गाना अंदाज़ से गुज़र जाते हैं.
73. और यही वे लोग हैं कि जब उन्हें उनके परवरदिगार की आयतें के ज़रिये नसीहत की जाती है, तो वे बहरों और अंधों की तरह नहीं गिर पड़ते, बल्कि ग़ौर व फ़िक्र करते हैं.
74. और यही वे लोग हैं, जो अर्ज़ करते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें हमारी बीवियों और औलादों की तरफ़ से आंखों की ठंडक अता कर और हमें परहेज़गारों का इमाम बना.
75. उन लोगों को उनके सब्र के बदले जन्नत में बालाख़ाने अता किए जाएंगे और वहां फ़रिश्ते उनसे दुआ सलाम करेंगे.
76. वे लोग जन्नत में हमेशा रहेंगे और वह बेहतरीन और पुरसुकून जगह है.
77. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मेरे परवरदिगार को तुम्हारी कोई परवाह नहीं है. अगर तुम उसकी इबादत नहीं करते. फिर तुमने उसे झुठलाया, तो अनक़रीब उसका अज़ाब भी तुम पर लाज़िम है.

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