सूरह अन नहल मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 128 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अल्लाह का क़यामत का हुक्म क़रीब आ पहुंचा है. इसलिए तुम इसकी जल्दी न करो. अल्लाह पाक है और वह उनसे आला है, जिन्हें वे लोग उसका शरीक ठहराते हैं.
2. अल्लाह ही फ़रिश्तों को वही के साथ अपने हुक्म से अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है नाज़िल करता है कि लोगों को ख़बरदार करो कि हमारे सिवा कोई माबूद नहीं. इसलिए हमसे डरते रहो.
3. अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन की हक़ के साथ तख़लीक़ की है. वह उन चीज़ों से आला हैं, जिन्हें वे लोग उसका शरीक ठहराते हैं.
4. अल्लाह ने इंसान को नुत्फ़े से पैदा किया. फिर वह सरीह झगड़ने वाला हो गया.
5. और अल्लाह ने तुम्हारे लिए चौपाये पैदा किए. उनमें तुम्हारे लिए जाड़ो का गर्म सामान यानी ऊन से बनी चीज़ें और दूसरे फ़ायदे भी हैं. और उनमें से कुछ को तुम खाते भी हो.
6. और उन चौपायों में तुम्हारे लिए दिलकश मंज़र भी है, जब तुम शाम को चारागाह से उन्हें वापस घर लाते हो और जब तुम सुबह उन्हें चराने के लिए ले जाते हो.
7. और ये चौपाये तुम्हारे बोझ भी शहरों की तरफ़ ले जाते हैं, जहां तुम बिना हल्कान हुए नहीं पहुंच सकते. बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफ़क़त करने वाला बड़ा मेहरबान है.
8. और अल्लाह ने ही घोड़ों और ख़च्चरों और गधों को पैदा किया है, ताकि तुम उन पर सवारी कर सको और वे तुम्हारे लिए ज़ीनत का सामान भी हैं. और वह ऐसी चीज़ों को भी पैदा करता है, जिन्हें तुम नहीं जानते.
9. और सीधी राह अल्लाह की बारगाह तक पहुंचती है. और इस राह में कई टेढ़े रास्ते भी निकलते हैं. और अगर वह चाहता, तो तुम सबको हिदायत दे देता.
10. वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हारे लिए आसमान से पानी बरसाया. इसमें से तुम सब पीते हो और इससे शजर व चारागाहें भी शादाब होती हैं, जिनमें तुम अपने चौपायों को चराते हो.
11. अल्लाह इसी पानी से तुम्हारे लिए खेती और जै़तून और खजूर और अंगूर उगाता है और हर क़िस्म के फल उगाता है. बेशक इसमें ग़ौर व फ़िक्र करने वाली क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं.
12. और अल्लाह ने तुम्हारे लिए रात और दिन को और सूरज और चांद को काम में लगा रखा है. और सितारे भी उसी के हुक्म के पाबंद हैं. बेशक इसमें अक़्लमंद क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं.
13. और जो कुछ भी उसने तुम्हारे लिए ज़मीन में मुख़्तलिफ़ रंगों में पैदा किया है, बेशक उसमें भी ग़ौर व फ़िक्र करने वाली क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं.
14. और वह अल्लाह ही है, जिसने समन्दर और दरिया को भी तुम्हारे इख़्तियार में कर दिया, ताकि तुम उनमें से मछलियों का ताज़ा गोश्त खाओ और तुम उनमें से जे़वरात के लिए मोती वग़ैरह निकालो, जिन्हें तुम पहनते हो. और तुम जहाज़ों और कश्तियों को देखते हो, जो समन्दर व दरिया में पानी को चीरती हुई चलती हैं. और यह सब इसलिए किया, ताकि तुम उसका फ़ज़ल यानी रिज़्क़ तलाश करो और उसके शुक्रगुज़ार बन जाओ.
15. और उसी अल्लाह ने ज़मीन में भारी पहाड़ बना दिए, ताकि ज़मीन तुम्हें लेकर झुक न जाए. और उसने नहरें और रास्ते बनाए, ताकि तुम राह पा सको.
16. और दिन में राह तलाश करने के लिए निशानियां बनाईं. और रात में लोग सितारों के ज़रिये भी राह पा लेते हैं.
17. जो ख़ालिक़ सब कुछ पैदा करता है, क्या वह उसके बराबर हो सकता है, जो कुछ भी पैदा न कर सके. फिर तुम लोग ग़ौर व फ़िक्र क्यों नहीं करते.
18. और अगर तुम अल्लाह की नेअमतों को शुमार करना चाहते हो, तो उन्हें पूरा शुमार नहीं कर सकोगे. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
19. और अल्लाह उसे ख़ूब जानता है, जो कुछ तुम पोशीदा रखते हो और जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो.
20. और वे मुशरिक जिन्हें अल्लाह के सिवा पुकारते हैं, वे कुछ भी पैदा नहीं कर सकते, बल्कि वे ख़ुद पैदा किए गए हैं.
21. वे बुत बेजान हैं, ज़िन्दा नहीं हैं. और उन्हें इतना भी शऊर नहीं कि लोग कब उठाए जाएंगे.
22. तुम्हारा माबूद, माबूदे यकता है. फिर जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते उनके दिल ही मुनकिर हैं और वे मुताकब्बिर हैं.
23. यह हक़ है कि अल्लाह उसे ख़ूब जानता है, जो कुछ वे लोग पोशीदा रखते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं. बेशक वह मुताकब्बिरों को पसंद नहीं करता.
24. और जब उनसे पूछा जाता है कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या नाज़िल किया है, तो वे कहते हैं कि पहले के लोगों के झूठे क़िस्से.
25. वे क़यामत के दिन अपने गुनाह के पूरे बोझ उठाएंगे और कुछ बोझ उन लोगों के भी उठाएंगे, जिन्हें वे अपनी जहालत से गुमराह कर रहे हैं. जान लो कि वह बहुत बुरा बोझ है, जो वे लोग उठाने वाले हैं.
26. बेशक उन लोगों ने भी मक्कारियां कीं, जो उनसे पहले थे. लिहाज़ा अल्लाह ने उनके मंसूबों की इमारत को बुनियाद से ही उखाड़ दिया, तो ऊपर से छत भी उन पर गिर पड़ी. और उन पर उस तरफ़ से अज़ाब आ पहुंचा, जिसका उन्हें इसका शऊर भी न था.
27. फिर अल्लाह उन लोगों को क़यामत के दिन रुसवा करेगा और फ़रमाएगा कि हमारे वे शरीक कहां हैं, जिनके लिए तुम मोमिनों से झगड़ते थे. जिन्हें अल्लाह की तरफ़ से इल्म दिया गया है वे कहेंगे कि बेशक आज काफ़िरों के लिए रुसवाई और तबाही है.
28. जिनकी रूहें फ़रिश्ते इस हालत में क़ब्ज़ करते हैं कि वे लोग अपनी जानों पर ज़ुल्म कर रहे हों, तो वे क़यामत के दिन इताअत का इज़हार करेंगे और कहेंगे कि हम दुनिया में कोई बुराई नहीं करते थे. उनसे कहा जाएगा कि क्यों नहीं. बेशक अल्लाह उन आमाल से ख़ूब वाक़िफ़ है, जो तुम किया करते थे.
29. फिर तुम जहन्नुम के दरवाज़ों में दाख़िल हो जाओ और हमेशा उसमें रहोगे. मुताकब्बिरों का कितना बुरा ठिकाना है.
30. और जब परहेज़गार लोगों से पूछा जाता है कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या नाज़िल किया है, तो वे कहते हैं कि ख़ैर ही ख़ैर नाज़िल की है. जो लोग अच्छे काम करते रहे, तो उनके लिए इस दुनिया में भी अच्छाई है और आख़िरत में भी उनके लिए उम्दा घर है. और परहेज़गार लोगों का घर बहुत ही बेहतरीन है.
31. उनके लिए सदाबहार हरे भरे बाग़ हैं, जिनमें वे दाख़िल होंगे. उनके नीचे नहरें बहती होंगी. और वहां उनके लिए वह सब होगा, जो कुछ वे चाहेंगे. इसी तरह अल्लाह परहेज़गारों को जज़ा दिया करता है.
32. जिनकी रूहें फ़रिश्ते इस हालत में क़ब्ज़ करते हैं कि वे लोग पाकीज़ा हों, तो फ़रिश्ते उनसे कहते हैं कि तुम पर सलामती हो. तुम जन्नत में दाख़िल हो जाओ, उन आमाल के बदले जो तुम किया करते थे.
33. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या वे लोग इस इंतज़ार में हैं कि उनके पास मौत के फ़रिश्ते आ जाएं या तुम्हारे परवरदिगार के अज़ाब का हुक्म ही आ पहुंचे. यही सब उन लोगों ने भी किया था, जो उनसे पहले थे. और अल्लाह ने उन पर ज़ुल्म नहीं किया था, बल्कि वे लोग ख़ुद ही अपनी जानों पर ज़ुल्म करते रहे.
34. फिर जो आमाल उन्होंने किए थे, उन्हें उसकी सज़ा मिली और उसी अज़ाब ने उन्हें घेर लिया, जिसका वे मज़ाक़ उड़ाया करते थे.
35. और मुशरिक कहते हैं कि अगर अल्लाह चाहता, तो न हम उसके सिवा किसी और चीज़ को पुकारते और न हमारे बाप दादा और न हम उसके हुक्म के बग़ैर किसी चीज़ को हराम क़रार देते. यही सब उन लोगों ने भी किया, जो उनसे पहले थे. तो क्या रसूलों की ज़िम्मेदारी अल्लाह के अहकाम को वाज़ेह तौर पर पहुंचाने के अलावा कुछ और भी है.
36. और बेशक हमने हर उम्मत में एक रसूल इस हुक्म के साथ भेजा कि तुम अल्लाह की इबादत करो और ताग़ूत यानी शैतान को पुकारने से बचो. फिर उनमें से कुछ लोगों को अल्लाह ने हिदायत दे दी और कुछ पर गुमराही मुसल्लत हो गई. फिर तुम लोग ज़मीन में चल फिर कर देखो कि झुठलाने वाले लोगों का क्या अंजाम हुआ.
37. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अगर तुम उन लोगों के लिए हिदायत चाहते हो, तो जान लो कि बेशक अल्लाह जिसे गुमराही में छोड़ देता है, तो उसे हिदायत नहीं देता और उसका कोई मददगार भी नहीं होता.
38. और वे लोग शिद्दत से अल्लाह की क़समें खाकर कहते हैं कि जो मर जाता है, तो अल्लाह क़यामत के दिन उसे दोबारा ज़िन्दा करके नहीं उठाएगा. क्यों नहीं, अल्लाह का वादा बरहक़ है, लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते.
39. मुर्दों को ज़िन्दा करके उठाया जाना इसलिए भी है, ताकि उनके लिए वह हक़ बात वाज़ेह कर दे, जिनमें वे लोग इख़्तिलाफ़ किया करते हैं और काफ़िर जान लें कि हक़ीक़त में वही झूठे हैं.
40. हमारा फ़रमान तो किसी चीज़ के लिए सिर्फ़ इतना है कि जब हम उसका इरादा करते हैं, तो फ़रमाते हैं कि ‘हो जा’ तो वह ‘हो जाती’ है.
41. और जिन लोगों ने ज़ुल्म सहने के बाद अल्लाह की राह में हिजरत की, तो अनक़रीब हम उन्हें दुनिया में भी बेहतर जगह देंगे और यक़ीनन आख़िरत का अज्र तो बहुत बड़ा है. काश वे लोग जानते.
42. और यही वे लोग हैं, जो सब्र करते हैं और अपने परवरदिगार पर भरोसा करते हैं.
43. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हमने तुमसे पहले भी मर्दों को पैग़म्बर बनाकर भेजा, जिनकी तरफ़ हम वही भेजते थे. फिर तुम ज़िक्र करने वालों से दरयाफ़्त कर लिया करो. अगर तुम कुछ नहीं जानते हो.
44. हमने उन पैग़म्बरों को भी वाज़ेह दलीलों और किताबों के साथ भेजा था. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम्हारी तरफ़ ज़िक्रे अज़ीम यानी क़ुरआन नाज़िल किया है, ताकि लोगों के लिए वे अहकाम वाज़ेह तौर पर बयान कर दो, जो उनकी तरफ़ उतारे गए हैं. और ताकि वे लोग ग़ौर व फ़िक्र करें.
45. तो क्या वे मक्कारियां करने वाले लोग इससे बेख़ौफ़ हैं कि अल्लाह उन्हें ज़मीन में धंसा दे या उन पर किसी ऐसी जगह से अज़ाब आ जाए कि उन्हें उसका शऊर भी न हो.
46. या उन्हें चलते फिरते ही अज़ाब की गिरफ़्त में ले ले. फिर वे लोग अल्लाह को आजिज़ नहीं कर सकते.
47. या उन लोगों को उनके ख़ौफ़ज़दा होने पर गिरफ़्त में ले ले, तो बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफ़क़त वाला बड़ा मेहरबान है.
48. क्या उन लोगों ने सायेदार चीज़ों की तरफ़ नहीं देखा, जिन्हें अल्लाह ने पैदा किया है. उनके साये दायीं और बायीं तरफ़ से झुक कर अल्लाह को सजदा करते हैं और वे इताअत और आजिज़ी का इज़हार करते हैं.
49. और आसमानों और ज़मीन के जानदार और फ़रिश्ते अल्लाह ही को सजदा करते हैं. और वे ज़रा भी तकब्बुर नहीं करते.
50. और वे सब अपने परवरदिगार से ख़ौफ़ज़दा रहते हैं, जो उनके ऊपर है. और जो हुक्म उन्हें दिया जाता है, उसकी फ़ौरन तामील करते हैं.
51. और अल्लाह ने फ़रमाया है कि दो माबूद न बनाओ. बेशक वही अल्लाह माबूदे यकता है. फिर तुम हमसे ही डरते रहो.
52. और जो कुछ आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में है, सब उसी का है और सबके लिए उसी की फ़रमानरवाई वाजिब है. तो क्या तुम अल्लाह के सिवा किसी और से भी डरते हो.
53. और तुम्हें जितनी नेअमतें मिल रही हैं, तो वह सब अल्लाह ही की तरफ़ से हैं. फिर जब तुम्हें तकलीफ़ पहुंचती है, तो तुम उसी के आगे गिर्या करते हुए फ़रियाद करने लगते हो.
54. फिर जब अल्लाह उस तकलीफ़ को तुमसे दूर कर देता है, तो तुममें से कुछ लोग अपने परवरदिगार से शिर्क करने लगते हैं.
55. ताकि वे लोग उन नेअमतों से कुफ़्र करें यानी उनकी नाशुक्री करें, जो हमने उन्हें अता की हैं. ऐ मुशरिको ! तुम कुछ दिन और फ़ायदा उठा लो. फिर अनक़रीब तुम अपना अंजाम जान लोगे.
56. और यह उन झूठे सरपरस्तों के लिए जिनकी हक़ीक़त वे लोग ख़ुद भी नहीं जानते, उस रिज़्क़ में से हिस्सा मुक़र्रर करते हैं, जो हमने उन्हें दिया है. अल्लाह की क़सम ! तुमसे क़यामत के दिन उसकी पूछगछ ज़रूर की जाएगी, जो झूठे बोहतान तुम बांधा करते थे.
57. और वे लोग अल्लाह के लिए बेटियां मुक़र्रर करते हैं. अल्लाह इससे पाक है. और वे अपने लिए बेटे चाहते हैं, जिनकी उन्हें ख़्वाहिश है.
58. और जब उनमें से किसी को लड़की की पैदाइश की ख़ुशख़बरी दी जाती है, तो रंज से उसका चेहरा स्याह हो जाता है और वह ग़ुस्से से भर जाता है.
59. वह क़ौम से छुपा फिरता है, उस ख़बर की वजह से जो उसे सुनाई गई है. वह सोचता है कि उसे रुसवाई के साथ ज़िन्दा रखे या ज़िन्दा मिट्टी में दफ़न कर दे. जान लो कि तुम लोग कितना बुरा फ़ैसला करते हो.
60. जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते, उनकी मिसाल बहुत ही बुरी है. और अल्लाह ही आला है. और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
61. और अगर अल्लाह लोगों को उनके ज़ुल्म के बदले फ़ौरन गिरफ़्त में ले लेता, तो ज़मीन पर किसी जानदार को बाक़ी न छोड़ता. लेकिन वह एक मुक़र्रर वक़्त तक उन लोगों को मोहलत देता है. फिर जब उनका वक़्त आ जाता है, तो वे न एक घड़ी पीछे हट सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं.
62. और वे लोग अल्लाह के लिए वह मुक़र्रर करते हैं, जो ख़ुद अपने लिए पसंद नहीं करते. और उनकी ज़बानें झूठ बोलती हैं कि आख़िरत में भी उनके लिए अच्छाई है. हरगिज़ नहीं, बेशक उनके लिए दोज़ख़ है और वे उसमें सबसे पहले डाले जाएंगे.
63. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अल्लाह की क़सम ! यक़ीनन हमने तुमसे पहले भी बहुत सी उम्मतों के पास पैग़म्बर भेजे, तो शैतान ने उनके आमाल उन्हें आरास्ता करके दिखाए. फिर वही शैतान आज भी उनका दोस्त है. और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है.
64. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हमने तुम पर किताब यानी क़ुरआन इसलिए नाज़िल किया है, ताकि तुम उन बातों को वाज़ेह कर दो, जिनमें वे लोग इख़्तिलाफ़ किया करते हैं. और यह क़ुरआन उस क़ौम के लिए हिदायत और रहमत है, जो ईमान लाती है.
65. और अल्लाह ने आसमान से पानी बरसाया, तो उसके ज़रिये मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा यानी बंजर ज़मीन को शादाब कर दिया. बेशक इसमें नसीहत सुनने वाली क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की निशानी है.
66. और बेशक तुम्हारे लिए चौपायों में भी इबरत का सामान है. हम उनके पेट से गोबर और ख़ून के दरम्यान से ख़ालिस दूध निकालते हैं, जो पीने वालों के लिए इंतिहाई ख़ुशगवार चीज़ है.
67. और खजूर और अंगूर के फलों से तुम शीरा व उम्दा रिज़्क़ बनाते हो और बेशक इसमें अक़्लमंद क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की निशानी है.
68. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम्हारे परवरदिगार ने शहद की मक्खी के ज़ेहन में यह बात डाल दी कि तू पहाड़ों और दरख़्तों और छतों में भी अपने घर बना, जिन्हें लोग ऊंचा बनाते हैं.
69. फिर तू हर क़िस्म के फलों और फूलों से उनका अर्क़ चूसकर अपने परवरदिगार के बताए रास्ते पर औरों के लिए आसानी फ़राहाम करते हुए चलती रहना. मक्खियों के पेट से पीने की एक चीज़ निकलती है, वह शहद है. इसके मुख़्तलिफ़ रंग होते हैं. यह लोगों के लिए शिफ़ा है. बेशक इसमें ग़ौर व फ़िक्र करने वाली क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की निशानी है.
70. और अल्लाह ने तुम्हें पैदा किया है. फिर वही तुम्हें मौत देता है. और तुममें से कुछ लोगों को इतने सख़्त बुढ़ापे की तरफ़ फेर दिया जाता है, ताकि वे बहुत कुछ जान लेने के बाद भी कुछ न जान सकें. बेशक अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा क़ुदरत वाला है.
71. और अल्लाह ने तुममें से कुछ लोगों को दूसरे लोगों पर रिज़्क़ के मामले में फ़ज़ीलत दी है. लेकिन जिन लोगों को फ़ज़ीलत दी गई है, वे अपने रिज़्क़ में से उन्हें भी कुछ नहीं देते, जिनके वे मालिक हैं. हालांकि वे सब इसमें बराबर हैं. फिर क्या वे अल्लाह की नेअमतों का इनकार करते हैं.
72. और अल्लाह ने तुम्हीं में से तुम्हारे लिए बीवियां बनाई हैं और तुम्हारे जोड़ों से तुम्हारे लिए बेटे और पोते और नवासे पैदा किए. और तुम्हें पाकीज़ा रिज़्क़ दिया, तो क्या फिर भी वे लोग हक़ को छोड़कर बातिल पर ईमान रखते हैं और अल्लाह की नेअमत से कुफ़्र करते हैं.
73. और वे लोग अल्लाह के सिवा उन्हें पुकारते हैं, जो आसमानों और ज़मीन से उनके लिए रिज़्क़ देने का कुछ भी इख़्तियार नहीं रखते हैं और न रख सकते हैं.
74. फिर तुम लोग अल्लाह के लिए मिसालें न गढ़ो. बेशक अल्लाह सबकुछ जानता है और तुम नहीं जानते.
75. अल्लाह ने एक मिसाल बयान की है कि एक ग़ुलाम है, जो किसी चीज़ पर कुछ भी इख़्तियार नहीं रखता और दूसरा वह शख़्स है, जिसे हमने उसे अपनी बारगाह से उम्दा रिज़्क़ दिया है. फिर वह उसमें से पोशीदा और ज़ाहिरी तौर पर अल्लाह की राह में ख़र्च करता है. क्या वे दोनों बराबर हो सकते हैं. अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं, लेकिन उनमें से बहुत से लोग नहीं जानते.
76. और अल्लाह ने दो ऐसे आदमियों की मिसाल बयान की है, जिनमें से एक गूंगा है. उसका किसी चीज़ पर इख़्तियार नहीं है और वह अपने मालिक के लिए बोझ है. वह उसे जहां भी भेजता है, तो वह कोई ख़ैर लेकर नहीं आता. क्या वह गूंगा उस शख़्स के बराबर हो सकता है, जो लोगों को अदल व इंसाफ़ का हुक्म देता है और वह ख़ुद भी सीधे रास्ते पर क़ायम है.
77. और आसमानों और ज़मीन की सब ग़ैब की बातें अल्लाह के लिए ही हैं और क़यामत पलक झपकते ही आ जाएगी या बल्कि इससे भी जल्दी आएगी. बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
78. और अल्लाह ने जब तुम्हें तुम्हारी माओं के पेट से निकाला, तब तुम कुछ नहीं जानते थे और उसने तुम्हारे लिए कान और आंखें और दिल बनाए, ताकि तुम उसके शुक्रगुज़ार बनो.
79. क्या उन लोगों ने परिन्दों को नहीं देखा, जो अल्लाह के हुक्म से आसमान की फ़िज़ाओं में उड़ते रहते हैं. उन्हें अल्लाह के सिवा कोई संभालने वाला नहीं है. बेशक इसमें उस क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं, जो ईमान रखती है.
80. और अल्लाह ही ने तुम्हारे घरों को तुम्हारे लिए रहने की जगह बनाया और तुम्हारे लिए चौपायों की खालों से ख़ेमे बनाए, जो तुम्हें सफ़र पर रवाना होते वक़्त और क़याम के वक़्त हल्के फुल्के महसूस होते हैं. और उनकी ऊन और उनके रोयें और उनके बालों से घरेलू इस्तेमाल के सामान बनाए, जो एक मुक़र्रर वक़्त तक के लिए हैं.
81. और अल्लाह ने ही तुम्हारे लिए अपनी पैदा की हुई चीज़ों के साये बनाए और उसने तुम्हारे लिए पहाड़ों में पनाहगाहें बनाईं. और उसने तुम्हारे लिए कुछ ऐसे लिबास बनाए, जो तुम्हें गर्मी व सर्दी से महफ़ूज़ रखते हैं और कुछ ऐसे लिबास बनाए, जो जंग में दुश्मनों के वार से बचाते हैं. इसी तरह अल्लाह तुम पर अपनी नेअमत पूरी करता है, ताकि तुम उसके फ़रमाबरदार बनो.
82. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर अगर वे लोग हक़ से मुंह फेर लें, तो तुम्हारी ज़िम्मेदारी हमारे अहकाम वाज़ेह तौर पर पहुंचाने तक ही है.
83. वे लोग अल्लाह की नेअमतों को पहचानते हैं. फिर उनसे कुफ़्र करते हैं और उनमें से बहुत से लोग काफ़िर हैं.
84. और जिस दिन हम हर उम्मत से उसके रसूल को गवाह बनाकर क़ब्रों से उठाएंगे, तो काफ़िरों को न कुछ कहने की इजाज़त दी जाएगी और न उनकी तौबा क़ुबूल की जाएगी.
85. और जब ज़ालिम लोग अज़ाब देख देंगे, तो न उनसे अज़ाब हल्का किया जाएगा और न उन्हें मोहलत ही दी जाएगी.
86. और जब मुशरिक अपने ख़ुद के गढ़े हुए शरीकों को देख लेंगे, तो कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! यही हमारे शरीक थे, जिन्हें हम तुझे छोड़कर पुकारते थे. फिर वे शरीक उनकी बात को उन्हीं पर मढ़ते हुए कहेंगे कि बेशक तुम सरीह झूठे हो.
87. और वे मुशरिक उस दिन अल्लाह की बारगाह में आजिज़ी का इज़हार करेंगे और उनसे सारा बोहतान जाता रहेगा, जो वे बांधा करते थे.
88. जिन लोगों ने कुफ़्र किया और दूसरे लोगों को अल्लाह की राह से रोका, तो हम उनके लिए अज़ाब पर अज़ाब बढ़ाते जाएंगे, क्योंकि वे फ़साद फैलाया करते थे.
89. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह दिन याद करो कि जब हम हर उम्मत में उन्हीं में से ख़ुद उन पर एक गवाह उठाएंगे. हम तुम्हें उन सब पर गवाह बनाकर लाएंगे. और हमने तुम पर किताब यानी क़ुरआन नाज़िल किया है, जिसमें हर चीज़ वाज़ेह तौर पर बयान की गई है और वह मुसलमानों के लिए हिदायत और रहमत और बशारत है.
90. बेशक अल्लाह लोगों के साथ अदल और अहसान करने का हुक्म देता है और रिश्तेदारों को कुछ देते रहने और बेहयाई और नाशाइस्ता हरकतों और सरकशी करने से मना करता है. वह तुम्हें नसीहत करता है, ताकि तुम इसे याद रखो.
91. और तुम लोग अल्लाह का अहद पूरा किया करो, जब तुम अहद करो और क़समों को पुख़्ता करने के बाद उन्हें मत तोड़ा करो. हालांकि तुम अल्लाह को अपना ज़ामिन बना चुके हो. बेशक अल्लाह उन आमाल से ख़ूब वाक़िफ़ है, जो तुम किया करते हो.
92. और तुम लोग उस औरत की तरह न हो जाओ, जिसने अपना सूत मज़बूत कातने के बाद तोड़कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया. तुम अपनी क़समों को अपने दरम्यान मक्कारी का ज़रिया बनाते हो, ताकि एक उम्मत दूसरी उम्मत से ज़्यादा फ़ायदा उठाने वाली हो जाए. दरअसल इस तरह अल्लाह तुम्हें आज़माता है. और वह क़यामत के दिन उन बातों को ज़रूर वाज़ेह कर देगा, जिनमें तुम इख़्तिलाफ़ किया करते थे.
93. और अगर अल्लाह चाहता, तो तुम सबको एक ही उम्मत बना देता, लेकिन वह जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है हिदायत देता है और तुम लोगों से उन आमाल के बारे में ज़रूर पूछगछ की जाएगी, जो तुम किया करते थे.
94. और तुम अपनी क़समों को आपस में मक्कारी का ज़रिया न बनाया करो, वरना लोगों के क़दम इस्लाम पर जम जाने के बाद लड़खड़ा जाएंगे. और तुम लोगों को अल्लाह की राह से रोकने की वजह से अज़ाब का ज़ायक़ा चखोगे और तुम्हारे लिए बड़ा सख़्त अज़ाब है.
95. और अल्लाह के अहद थोड़ी सी क़ीमत यानी दुनियावी फ़ायदे के बदले में न बेचा करो. बेशक जो अज्र अल्लाह के पास है, वह तुम्हारे लिए कहीं बेहतर है. अगर तुम जानते हो.
96. जो माल व दौलत तुम्हारे पास है वह ख़त्म हो जाएगा और जो अज्र अल्लाह के पास है, वह हमेशा बाक़ी रहेगा. और जिन लोगों ने दुनिया में सब्र किया, तो हम उन्हें उसका अज्र ज़रूर देंगे. यह उनके नेक आमाल का बदला होगा, जो वे किया करते थे.
97. जो कोई नेक अमल करेगा अगरचे वह मर्द हो या औरत हो और वह मोमिन भी हो, तो हम उसे ज़रूर पाकीज़ा जिन्दगी अता करेंगे और उन्हें ज़रूर उन आमाल का बेहतर अज्र देंगे, जो वे किया करते थे.
98. फिर जब तुम क़ुरआन पढ़ो, तो शैतान मरदूद के वसवसों से बचने के लिए अल्लाह से पनाह मांग लिया करो.
99. बेशक उसका उन लोगों पर ज़ोर नहीं चलता, जो ईमान लाए और अपने परवरदिगार पर भरोसा करते हैं.
100. बस उसका ज़ोर सिर्फ़ उन्हीं लोगों पर चलता है, जो उसे दोस्त बनाते हैं और जो अल्लाह के साथ शिर्क करते हैं.
101. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब हम कोई आयत किसी दूसरी आयत से बदल देते हैं और अल्लाह ही बेहतर जानता है जो कुछ वह नाज़िल करता है. काफ़िर कहते हैं कि तुम ख़ुद ही गढ़ लेते हो, बल्कि उनमें से बहुत से लोग उसकी मसलेहत को नहीं जानते.
102. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि इस क़ुरआन को रूहुल क़ुदूस यानी जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से हक़ के साथ नाज़िल किया है, ताकि ईमान लाने वाले लोगों को साबित क़दम रखे और यह मुसलमानों के लिए हिदायत और बशारत है.
103. और बेशक हम जानते हैं कि वे काफ़िर तुम्हारे बारे में कहते हैं कि उन्हें यह क़ुरआन कोई बशर ही सिखाता है. हालांकि जिस शख़्स का वे लोग हवाला दे रहे हैं, उसकी ज़बान अजमी है और यह क़ुरआन वाज़ेह अरबी ज़बान में है.
104. बेशक जो लोग अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं लाते, तो अल्लाह उन्हें हिदायत नहीं देता. और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है.
105. बेशक झूठे बोहतान वही लोग बांधा करते हैं, जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं लाते. और वही लोग झूठे हैं.
106. जो शख़्स अपने ईमान लाने के बाद कुफ़्र करे, सिवाय इसके कि उसे इंतिहाई मजबूर कर दिया गया हो, लेकिन उसका दिल ईमान से मुतमईन है. लेकिन जो शख़्स ईमान लाने के बाद कुफ़्र के लिए अपना सीना कुशादा करे यानी दिल खोलकर कुफ़्र करे, तो ऐसे लोगों पर अल्लाह का ग़ज़ब है और उनके लिए बड़ा सख़्त अज़ाब है.
107. यह इसलिए है कि उन लोगों ने दुनियावी ज़िन्दगी को आख़िरत पर तरजीह दी और इसलिए कि अल्लाह काफ़िरों की क़ौम को हरगिज़ हिदायत नहीं देता.
108. यही वे लोग हैं कि अल्लाह ने उनके दिलों और उनके कानों और उनकी आंखों पर मुहर लगा दी है और यही लोग आख़िरत से ग़ाफ़िल हैं.
109. बेशक यही लोग आख़िरत में नुक़सान उठाने वाले हैं.
110. फिर बेशक तुम्हारा परवरदिगार उन लोगों के लिए जिन्होंने मुसीबतों में मुब्तिला होने के बाद हिजरत की और अल्लाह की राह में जिहाद किया और सब्र किया, तो उन आज़माइशों के बाद तुम्हारा परवरदिगार बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
111. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह दिन याद करो कि जब हर शख़्स सिर्फ़ ख़ुद को बचाने के लिए झगड़ता हुआ हाज़िर होगा. और हर किसी को उसका पूरा बदला दिया जाएगा, जो कुछ उसने किया होगा. और किसी पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा.
112. और अल्लाह ने एक ऐसी बस्ती की मिसाल बयान की है, जो अमन और इत्मीनान से थी. उसका रिज़्क़ उसके पास हर जगह से कुशादगी के साथ आता था. फिर उस बस्ती के बाशिन्दों ने अल्लाह की नेअमतों का ज़ायक़ा चखने के बाद उनसे कुफ़्र किया, तो अल्लाह ने उसे भूख और ख़ौफ़ के अज़ाब का लिबास पहना दिया, उन आमाल के बदले, जो वे लोग किया करते थे.
113. और बेशक उन लोगों के पास उन्हीं में से एक रसूल आया, तो उन्होंने उसे झुठलाया. फिर उन्हें अज़ाब ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया और वे लोग ज़ालिम थे.
114. फिर जो हलाल और पाकीज़ा रिज़्क़ अल्लाह ने तुम्हें दिया है, तो तुम उसमें से खाओ व पियो. और अल्लाह की नेअमतों का शुक्र अदा करते रहो. अगर तुम उसकी इबादत करते हो.
115. अल्लाह तुम पर सिर्फ़ मुर्दार और ख़ून और ख़ंज़ीर का गोश्त और वह जानवर जिस पर ज़िबह करते वक़्त अल्लाह के सिवा किसी और का नाम लिया गया हो, हराम किया है. फिर जो शख़्स इंतिहाई मजबूर हो और न वह सरकशी करने वाला हो और न हद से गुज़रने वाला हो, तो बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
116. और वह झूठ मत कहा करो, जो तुम्हारी ज़बानें बयान करती रहती हैं कि यह हलाल है और यह हराम है. इस तरह कि तुम अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधो. बेशक जो लोग अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधते हैं, वे कभी कामयाब नहीं होंगे.
117. झूठ का फ़ायदा तो थोड़ा सा है और आख़िरत में उनके लिए बड़ा दर्दनाक अज़ाब है.
118. और यहूदियों पर हमने वे चीज़ें हराम कर दी थीं, जो हम तुमसे पहले बयान कर चुके हैं. और हमने उन पर ज़ुल्म नहीं किया था, लेकिन वे लोग ख़ुद ही अपनी जानों पर ज़ुल्म किया करते थे.
119. फिर बेशक तुम्हारा परवरदिगार उन लोगों के लिए जो नादानी से गुनाह कर बैठे, फिर उसके बाद दिल से तौबा कर ली और अपनी इस्लाह कर ली, तो बेशक तुम्हारा परवरदिगार इसके बाद बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
120. बेशक इब्राहीम अलैहिस्सलाम लोगों के इमाम और अल्लाह के फ़रमाबरदार और बातिल से कतरा कर सिर्फ़ उसी के होकर रहने वाले थे. और वे मुशरिकों में से नहीं थे.
121. इब्राहीम अलैहिस्सलाम अल्लाह की नेअमतों के शुक्रगुज़ार थे. अल्लाह ने उन्हें मुंतख़िब कर लिया है और उन्हें सीधे रास्ते की हिदायत अता की.
122. और हमने इब्राहीम अलैहिस्सलाम को दुनिया में भी ख़ैर अता की और बेशक आख़िरत में भी वे स्वालिहीन में से होंगे.
123. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर हमने तुम्हारी तरफ़ वही भेजी कि तुम इब्राहीम अलैहिस्सलाम के दीन की पैरवी करो, जो हर बातिल से जुदा थे. और वे मुशरिकों में से नहीं थे.
124. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हफ़्ते का दिन सिर्फ़ उन्हीं लोगों पर मुक़र्रर किया गया था, जिन्होंने इसमें इख़्तिलाफ़ किया. और बेशक तुम्हारा परवरदिगार क़यामत के दिन उनके दरम्यान उन बातों का फ़ैसला कर देगा, जिनमें वे लोग इख़्तिलाफ़ किया करते थे.
125. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम अपने परवरदिगार के रास्ते की तरफ़ लोगों को हिकमत और नसीहत के ज़रिये बुलाओ और उनसे बहस भी इस अंदाज़ में करो, जो बहुत हसीन हो. बेशक तुम्हारा परवरदिगार उस शख़्स से भी ख़ूब वाक़िफ़ है, जो उसकी राह से भटक गया है और वह उन लोगों को भी ख़ूब जानता है, जो हिदायत याफ़्ता हैं.
126. और अगर तुम उन लोगों के साथ सख़्ती करो, तो उतनी ही सख़्ती करो, जितनी उन्होंने तुम पर की थी. और अगर तुम सब्र करो, तो यक़ीनन वह सब्र करने वालों के लिए बेहतर है.
127. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम सब्र करो और तुम्हारा सब्र करना अल्लाह ही की मदद से है और तुम उनकी सरकशी पर रंज न किया करो और उनसे तंग दिल भी न हुआ करो, जो मक्कारियां वे लोग किया करते हैं.
128. और बेशक अल्लाह उन लोगों के साथ है, जो परहेज़गार हैं और दूसरों पर अहसान करते हैं.
0 comments:
Post a Comment