Wednesday, September 8, 2021

15 सूरह अल हिज्र

सूरह अल हिज्र मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 99 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अलिफ़ लाम रा. ये अल्लाह की किताब और रौशन क़ुरआन की आयते हैं.
2. एक वक़्त ऐसा भी आएगा कि जब काफ़िर चाहेंगे कि काश ! वे मुसलमान होते. 
3. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो कि वे लोग खाते व पीते रहें और ख़ूब फ़ायदा उठाएं. और उनकी झूठी उम्मीद उन्हें आख़िरत से ग़ाफ़िल रखे. फिर अनक़रीब वे अपना अंजाम जान लेंगे. 
4. और हमने किसी बस्ती को हलाक नहीं किया, सिवाय इसके कि उसकी तबाही के लिए पहले से एक वक़्त मुक़र्रर था. 
5. कोई भी उम्मत अपने मुक़र्रर वक़्त से न आगे बढ़ सकती है और न पीछे हट सकती है.
6. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वे काफ़िर तुमसे कहते हैं कि ऐ वे शख़्स, जिन पर ज़िक्रे अज़ीम यानी क़ुरआन नाज़िल किया गया है. बेशक तुम दीवाने हो. 
7. तुम हमारे पास फ़रिश्तों को क्यों नहीं लाते. अगर तुम सच्चे हो.
8. हम फ़रिश्तों को नाज़िल नहीं किया करते, लेकिन उन्हें हक़ के साथ अज़ाब देने के लिए भेजते हैं और उस वक़्त लोगों को ज़रा सी भी मोहलत नहीं दी जाती. 
9. बेशक हमने ही ज़िक्रे अज़ीम यानी क़ुरआन नाज़िल किया है और बेशक हम ही उसके मुहाफ़िज़ हैं.
10. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक हमने तुमसे पहले भी गुज़श्ता उम्मतों में रसूल भेजे हैं.
11. और उनके पास ऐसा कोई रसूल नहीं आया, जिनका उन लोगों ने मज़ाक़ न उड़ाया हो. 
12. इसी तरह हम इस गुमराही को गुनाहगारों के दिल में डाल देते हैं.
13. वे लोग इस क़ुरआन पर ईमान नहीं लाएंगे और पहले के लोगों में भी यही रविश रही है. 
14. और अगर हम उन लोगों पर आसमान का कोई दरवाज़ा खोल दें और वे आसमान पर चढ़ते रहें. 
15. तब भी वे लोग यही कहेंगे कि हमारी नज़र बंदी की गई है या हमारी क़ौम पर जादू किया गया है.
16. और बेशक हमने आसमान में बुर्ज बनाए और देखने वालों के लिए उसे सितारों से सजाया.
17. और हमने आसमान को हर शैतान मरदूद से महफ़ूज़ रखा.
18. लेकिन जो कोई चोरी से कुछ सुनने की कोशिश करे, तो दहकता हुआ शोला उसके पीछे लग जाता है.
19. और ज़मीन को हमने फैला दिया और हमने इसमें मज़बूत पहाड़ रख दिए और हमने उसमें हर क़िस्म की मुनासिब चीज़ें उगाईं.
20. और हमने ज़मीन में तुम्हारे लिए भी ज़िन्दगी के साजो सामान बनाए और उस मख़लूक़ के लिए भी जिन्हें तुम रिज़्क़ नहीं देते.
21. और कोई भी चीज़ ऐसी नहीं है, जो हमारे ख़ज़ाने में न हो. और हम उसे सिर्फ़ एक मुनासिब मिक़दार के मुताबिक़ ही नाज़िल करते हैं.
22. और हम बादलों से लबरेज़ हवाएं भेजते हैं. फिर हम आसमान से पानी बरसाते हैं. फिर हम वह पानी तुम्हें पिलाते हैं. और तुम उसके ख़ज़ाने रखने वाले नहीं हो. 
23. और बेशक हम ही ज़िन्दगी बख़्शते हैं और हम ही मौत देते हैं. और हम ही सबके वारिस हैं.
24. और बेशक हम उन लोगों को भी जानते हैं, जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं और बेशक हम तुम्हारे आने वाले लोगों को भी जानते हैं.
25. और बेशक तुम्हारा परवरदिगार ही है, जो उन सबको क़यामत के दिन जमा करेगा. बेशक वह बड़ा हिकमत वाला बड़ा साहिबे इल्म है. 
26. और बेशक हमने इंसान की इब्तिदाई तख़लीक़ खनखनाती हुई स्याह मिट्टी के सड़े हुए गारे से की है. 
27. और इससे पहले हमने जिन्नों को शदीद जलने वाली आग से पैदा किया, जिसमें धुआं नहीं था. 
28. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रिश्तों से कहा कि बेशक हम खनखनाती हुई स्याह मिट्टी के सड़े हुए गारे से एक आदमी की तख़लीक़ करने वाले हैं. 
29. जब हम उसे दुरुस्त कर लें और उसमें अपनी तरफ़ से रूह फूंक दें, तो तुम सब उसके सामने सजदे में गिर पड़ना.
30. फिर सब फ़रिश्तों ने उसे सजदा किया. 
31. सिवाय इबलीस के. उसने सजदा करने वालों के साथ शामिल होने से इनकार कर दिया. 
32. अल्लाह ने फ़रमाया कि ऐ इबलीस ! तुझे क्या गया है कि तू सजदा करने वालों के साथ शामिल नहीं हुआ.
33. इबलीस ने कहा कि मैं ऐसा नहीं हूं कि ऐसे बशर को सजदा करूं, जिसे तूने खनखनाती हुई स्याह मिट्टी के सड़े हुए गारे से बनाया है.
34. अल्लाह ने फ़रमाया कि तू यहां से निकल जा. बेशक तू मरदूद है.
35. और बेशक तुझ पर जज़ा और सज़ा के दिन तक लानत रहेगी. 
36. इबलीस ने कहा कि ऐ मेरे परवरदिगार !  तू मुझे उस दिन तक की मोहलत दे, जिस दिन मुर्दे ज़िन्दा करके क़ब्रों से उठाए जाएंगे.
37. अल्लाह ने फ़रमाया कि बेशक तुझे मोहलत दी जाती है.
38. एक मुक़र्रर दिन तक. 
39. इबलीस ने कहा कि ऐ मेरे परवरदिगार ! जिस तरह तूने मुझे गुमराह किया है, तो बेशक उसी तरह मैं भी ज़मीन में उनके लिए गुनाहों को आरास्ता कर दूंगा और सबको ज़रूर गुमराह करूंगा.
40. सिवाय तेरे मुख़लिस बन्दों के.  
41. अल्लाह ने फ़रमाया कि यही सीधा रास्ता है, जो मुझ तक पहुंचता है.
42. बेशक मेरे मुख़लिस बन्दों पर तेरा ज़ोर नहीं चलेगा, सिवाय उनके जो तेरी पैरवी करते हैं और भटके हुए हैं.
43. और बेशक उन सबके लिए वादे की जगह जहन्नुम है.
44. जहन्नुम के सात दरवाज़े हैं. हर दरवाज़े के लिए उनमें से गिरोह तक़सीम कर दिए गए हैं. 
45. और बेशक परहेज़गार जन्नत के बाग़ों और चश्मों के दरम्यान रहेंगे.
46. उनसे कहा जाएगा कि जन्नत में सलामती और अमन के साथ दाख़िल हो जाओ.
47. और हम उनके दिलों से सारा कीना निकाल देंगे और वे जन्नत में भाइयों की तरह आमने सामने तख़्त पर बैठे होंगे. 
48. उन लोगों को जन्नत में कोई तकलीफ़ नहीं होगी और न वे वहां से कभी निकाले जाएंगे. 
49. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम मेरे बन्दों को बता दो कि बेशक मैं बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान हूं.
50. और उन्हें इससे भी ख़बरदार कर दो कि बेशक मेरा अज़ाब भी बड़ा दर्दनाक अज़ाब है.
51. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और उन लोगों को इब्राहीम अलैहिस्सलाम के मेहमानों की ख़बर भी सुना दो.
52. जब वे फ़रिश्ते इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास आए, तो उन्होंने सलाम किया. इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि बेशक हम तुमसे डरे हुए हैं. 
53. मेहमान फ़रिश्तों ने कहा कि आप डरो नहीं. बेशक हम आपको एक साहिबे इल्म बेटे की पैदाइश की ख़ुशख़बरी देते हैं.
54. इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने कहा कि क्या तुम मुझे इस हाल में ख़ुशख़बरी दे रहे हो, जबकि मैं ज़ईफ़ हो चुका हूं. फिर तुम किस बात की ख़ुशख़बरी दे रहे हो.
55. फ़रिश्ते कहने लगे कि हम आपको बिल्कुल सच्ची ख़ुशख़बरी दे रहे हैं. फिर आप अल्लाह की रहमत से मायूस न हों. 
56. इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने परवरदिगार की रहमत से गुमराहों के सिवा कौन मायूस हो सकता है. 
57. फिर इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने दरयाफ़्त किया कि ऐ अल्लाह के भेजे हुए फ़रिश्तो ! और तुम्हारा क्या काम है, जिसके लिए तुम आए हो.
58. फ़रिश्तों ने कहा कि हम एक गुनाहगार क़ौम की तरफ़ अज़ाब नाज़िल करने के लिए भेजे गए हैं.
59. सिवाय लूत अलैहिस्सलाम के घरवालों के. बेशक हम उन्हें ज़रूर बचा लेंगे.
60. सिवाय लूत अलैहिस्सलाम की बीवी के. हम तय कर चुके हैं कि बेशक वह अज़ाब के लिए पीछे रह जाने वालों में से है.
61. फिर जब वे फ़रिश्ते लूत अलैहिस्सलाम के घरवालों के पास आए. 
62. लूत अलैहिस्सलाम ने कहा कि बेशक तुम अजनबी क़ौम के मालूम होते हो.
63. फ़रिश्तों ने कहा कि नहीं, बल्कि हम तो आपके पास वह अज़ाब लेकर आए हैं, जिसके बारे में आपके लोग शक में मुब्तिला हैं. 
64. और हम आपके पास हक़ के साथ आए हैं और बेशक हम बिल्कुल सच्चे हैं.
65. फिर आप रात के किसी हिस्से में अपने घरवालों को लेकर निकल जाएं और ख़ुद उनके पीछे चलें. और आप में से कोई भी मुड़कर पीछे न देखे. और आपको जहां जाने का हुक्म दिया गया है, वहां चले जाएं.
66. और हमने लूत अलैहिस्सलाम के पास वही के ज़रिये अपना हुक्म भेज दिया कि बेशक सुबह होते ही उन लोगों की जड़ काट दी जाएगी.
67. और शहर के बाशिन्दे मेहमानों की ख़बर सुनकर ख़ुशियां मनाते हुए आ गए.
68. लूत अलैहिस्सलाम ने कहा कि बेशक ये लोग मेरे मेहमान हैं, इसलिए तुम इन्हें सताकर मुझे शर्मसार न करो.
69. और अल्लाह से डरो और मुझे ज़लील व ख़्वार न करो.
70. वे लोग कहने लगे कि ऐ लूत अलैहिस्सलाम ! क्या हमने तुम्हें दुनियाभर के लोगों की हिमायत करने से मना नहीं किया था. 
71. लूत अलैहिस्सलाम ने कहा कि ये मेरी क़ौम की बेटियां हैं. अगर तुम कुछ करना चाहते हो, तो इनसे निकाह कर लो. 
72. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम्हारी जान की क़सम ! वे लोग अपनी मस्ती में मदहोश हो रहे थे.
73. सूरज निकलते ही ख़ौफ़नाक कड़क ने उन्हें अपनी गिरफ़्त में ले लिया. 
74. फिर हमने उनकी बस्ती को उलट पलट दिया और हमने उन पर कंकड़ व पत्थर बरसाए.
75. बेशक इस वाक़िये में ग़ौर व फ़िक्र करने वाले लोगों के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं.
76. और बेशक वह बस्ती मुस्तक़िल आमद व रफ़्त वाले रास्ते पर मौजूद है.
77. बेशक इस वाक़िये में मोमिनों के लिए अल्लाह की क़ुदरत की निशानी है.
78. और बेशक एैका यानी जंगल में रहने वाली क़ौमे शुऐब भी बहुत ज़ालिम थी. 
79. फिर हमने उनसे भी इंतक़ाम लिया और ये दोनों यानी लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम और शुऐब अलैहिस्सलाम की क़ौम की बस्तियां एक खुले रास्ते पर मौजूद हैं.
80. और बेशक हिज्र की वादी में रहने वाली सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद ने भी पैग़म्बरों को झुठलाया.
81. और हमने उन्हें भी अपनी निशानियां दीं, तो उन्होंने उनसे मुंह फेर लिया.  
82. और वे लोग पहाड़ों को तराश कर घर बनाते थे और अमन से रहते थे.
83. फिर उन्हें भी सुबह होते ही ख़ौफ़नाक कड़क ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया.
84. फिर वह सब उनके कुछ काम नहीं आया, जो कुछ उन्होंने कमाया था.
85. और हमने आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इनके दरम्यान है, उनकी हक़ के साथ तख़लीक़ की है. और बेशक क़यामत आने वाली है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम काफ़िरों को हुस्ने सुलूक के साथ दरगुज़र करते रहो. 
86. बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ा ख़ालिक़ बड़ा साहिबे इल्म है.
87. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक हमने तुम्हें बार-बार दोहराई जाने वाली आयतें यानी सूरह फ़ातिहा और बड़ी अज़मत वाला क़ुरआन अता किया है.
88. तुम उन चीज़ों की तरफ़ निगाह उठाकर भी न देखना, जिन्हें हमने काफ़िरों के कुछ लोगों को ऐश व इशरत के लिए दिया है. और तुम उनकी गुमराही पर ग़मज़दा भी न हुआ करो और मोमिनों के लिए अपनी शफ़क़त की बाहें फैला दिया करो.  
89. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक मैं अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर हूं.
90. जैसा अज़ाब हमने तक़सीम करने वाले लोगों यानी यहूदी और ईसाइयों पर नाज़िल किया था. 
91. जिन्होंने क़ुरआन को टुकड़े-टुकड़े करके तक़सीम कर दिया.
92. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम्हारे ही परवरदिगार की क़सम ! हम उन सबसे ज़रूर पूछगछ करेंगे.
93. उसके बारे में, जो कुछ वे लोग किया करते थे. 
94. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम वे बातें ऐलानिया कह दो, जिनका तुम्हें हुक्म दिया गया है. 
और तुम मुशरिकों की तरफ़ से किनाराकशी कर लो.
95. बेशक उन लोगों के लिए हम काफ़ी हैं, जो तुम्हारा मज़ाक़ उड़ाया करते हैं. 
96. जो लोग अल्लाह के साथ दूसरा सरपरस्त बनाते हैं, तो अनक़रीब वे अपना अंजाम जान लेंगे.
97. और बेशक हम जानते हैं कि तुम उन बातों से तंगदिल होते, जो वे लोग कहते हैं. 
98. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम अपने परवरदिगार की हम्दो सना की तस्बीह किया करो और उसकी बारगाह में सजदा करने वालों में से हो जाओ.
99. और अपने परवरदिगार की इबादत करते रहो, यहां तक कि तुम्हें मक़ामे यक़ीन मिल जाए यानी विसाल का वक़्त आ जाए. 

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