सूरह इब्राहीम मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 52 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अलिफ़ लाम रा. यह अज़ीम किताब है, जिसे हमने तुम्हारी तरफ़ नाज़िल किया है, ताकि तुम लोगों को कुफ़्र की तारीकियों से निकाल कर ईमान के नूर की तरफ़ ले आओ. और उनके परवरदिगार के हुक्म से उन्हें उसकी राह पर लाओ, जो बड़ा ग़ालिब सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं.
2. वह सब अल्लाह ही का है, जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है. और काफ़िरों के लिए सख़्त अज़ाब की वजह से तबाही है.
3. यही वे लोग हैं, जो दुनियावी ज़िन्दगी को आख़िरत के मुक़ाबले में ज़्यादा पसंद करते हैं और लोगों को अल्लाह की राह से रोकते हैं और इसमें कजी यानी ख़ामियां तलाश करते हैं. वे लोग परले दर्जे की गुमराही में मुब्तिला हैं.
4. और हमने ऐसा कोई रसूल नहीं भेजा, जो अपनी क़ौम की ज़बान में बात न करता हो, ताकि उसके लिए अल्लाह के अहकाम को वाज़ेह तौर पर बयान कर सके. अल्लाह जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है हिदायत देता है और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
5. और बेशक हमने मूसा अलैहिस्सलाम को अपनी निशानियों के साथ भेजा कि ऐ मूसा अलैहिस्सलाम ! तुम अपनी क़ौम को कुफ़्र की तारीकियों से निकाल कर ईमान के नूर की तरफ़ ले आओ और उन्हें अल्लाह के उन दिनों की याद दिलाओ, जो उन पर और उनसे पहले की उम्मतों पर गुज़रे हैं. बेशक इसमें सब्र और शुक्र करने वाले लोगों के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं.
6. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम से कहा कि तुम अपने परवरदिगार की उस नेअमत को याद करो कि जब उसने तुम्हें फ़िरऔन के लोगों से निजात दी, जो तुम्हें सख़्त अज़ाब देते थे और तुम्हारे बेटों को ज़िबह कर देते थे और तुम्हारी औरतों को अपनी ख़िदमत के लिए ज़िन्दा रहने देते थे. और इसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम्हारे सब्र की बड़ी भारी आज़माइश थी.
7. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें आगाह किया कि अगर तुम हमारा शुक्र अदा करोगे, तो हम तुम्हारी नेअमतों में ज़रूर इज़ाफ़ा करेंगे. और अगर तुमने कुफ़्र किया, तो बेशक हमारा अज़ाब बड़ा सख़्त है.
8. और मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर तुम और ज़मीन पर बसने वाले तमाम लोग भी कुफ़्र करने लगें, तो अल्लाह बेनियाज़ और सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं.
9. क्या तुम्हें उन लोगों की ख़बर नहीं मिली, जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं. वे नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम और हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद और सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद और उनके बाद आने वाली क़ौमों के लोग थे. उन्हें अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता. उनके पास उनके रसूल वाज़ेह निशानियों के साथ आए, तो उन्होंने अपने हाथ मुंह में दे दिए और कहने लगे कि हम उससे कुफ़्र करते हैं, जिस हुक्म के साथ तुम भेजे गए हो. और बेशक हम उसकी निस्बत भी इज़्तिराब अंगेज़ शक में मुब्तिला हैं, जिसकी तरफ़ तुम हमें बुला रहे हो.
10. उनके रसूलों ने कहा कि क्या तुम अल्लाह के बारे में शक में मुब्तिला हो, जो आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ करने वाला है. वह तुम्हें अपनी तरफ़ बुलाता है, ताकि तुम्हारे गुनाह बख़्श दे और उसने तुम्हें एक मुक़र्रर वक़्त तक मोहलत दे रखी है. वे लोग कहने लगे कि तुम तो सिर्फ़ हमारे जैसे ही बशर हो. तुम यह चाहते हो कि हमें उनसे रोक दे, जिन्हें हमारे बाप दादा पुकारा करते थे. फिर तुम हमारे पास कोई रौशन दलील लाओ.
11. उनके रसूलों ने कहा कि अगरचे हम भी तुम्हारे जैसे ही बशर हैं, लेकिन अल्लाह अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है अहसान करता है. और यह हमारे इख़्तियार में नहीं है कि अल्लाह के हुक्म के बग़ैर तुम्हारे पास कोई दलील ले आएं. और अल्लाह ही पर सब मोमिनों को भरोसा करना चाहिए.
12. और हमें क्या हुआ है कि हम अल्लाह पर भरोसा न करें. और उसी ने हमें हिदायत दी. और हम उस पर ज़रूर सब्र करेंगे, जो अज़ीयतें तुम हमें देते हो. और भरोसा करने वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए.
13. और कुफ़्र करने वाले लोग अपने रसूलों से कहने लगे कि हम तुम्हें अपनी सरज़मीन से ज़रूर निकाल देंगे या तुम्हें हमारी मिल्लत यानी मज़हब की तरफ़ पलटना होगा. फिर उनके परवरदिगार ने उनकी तरफ़ वही भेजी कि हम ज़ालिमों को ज़रूर हलाक कर देंगे.
14. और उनके बाद हम तुम्हें ज़रूर इस सरज़मीन में बसाएंगे. यह वादा हर उस शख़्स के लिए है, जो हमारे सामने खड़ा होने से डरता है और हमारे अज़ाब के वादे से ख़ौफ़ज़दा है.
15. और रसूलों ने अल्लाह से फ़तह की दुआ मांगी और हर जाबिर ज़िद्दी नाकाम हो गया.
16. उसके आगे जहन्नुम है और उसमें उसे पीप का पानी पिलाया जाएगा.
17. जिसे वह मुश्किल से घूंट-घूंट करके पिएगा और उसे हलक़ से नीचे नहीं उतार सकेगा. और उसे हर तरफ़ से मौत घेर लेगी और वह मर भी नहीं पाएगा. और फिर उसके आगे बड़ा सख़्त अज़ाब होगा.
18. जिन लोगों ने अपने परवरदिगार से कुफ़्र किया, उनके आमाल की मिसाल राख के ढेर की मानिन्द है जिसे आंधियों के दिन तेज़ हवा का झोंका उड़ा ले जाए. उन्हें उस पर ज़रा भी इख़्तियार न होगा, जो कुछ उन लोगों ने कमाया. यह परले दर्जे की गुमराही है.
19. ऐ इंसान ! क्या तूने नहीं देखा कि बेशक अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन की हक़ के साथ तख़लीक़ की है. अगर वह चाहे, तो तुम्हें नाबूद करके नई मख़लूक़ ले आए.
20. और अल्लाह के लिए यह कुछ भी मुश्किल नहीं है.
21. और क़यामत के दिन सब अल्लाह के सामने हाज़िर होंगे, तो कमज़ोर लोग मुताकब्बिरों से कहेंगे कि हम तुम्हारे ताबेदार थे, तो क्या तुम अल्लाह के अज़ाब से हमें बचा सकते हो. वे कहेंगे कि अगर अल्लाह हमें हिदायत देता, तो हम भी तुम्हें हिदायत की राह दिखाते. हमारे लिए सब बराबर है, अगरचे हम घबरायें या सब्र करें. हमारे लिए निजात नहीं है.
22. और शैतान सबका फ़ैसला होने के बाद कहेगा कि बेशक अल्लाह ने तुमसे सच्चा वादा किया था और मैंने भी वादा किया था. फिर मैंने वादाख़िलाफ़ी की और मेरा दुनिया में तुम पर कोई ज़ोर नहीं था, सिवाय इसके कि मैंने तुम्हें बातिल की तरफ़ बुलाया. फिर तुमने मेरा कहना मान लिया. अब तुम मुझ पर इल्ज़ाम न लगाओ, बल्कि ख़ुद की मलामत करो. आज न मैं तुम्हारी फ़रियादरसी कर सकता हूं और न तुम मेरी फ़रियादरसी कर सकते हो. इससे पहले जो तुम मुझे अल्लाह का शरीक ठहराते रहे हो, बेशक मैं उससे इनकार करता हूं. बेशक ज़ालिमों के लिए दर्दनाक अज़ाब है.
23. और जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, वे जन्नत के सदाबहार बाग़ों में दाख़िल किए जाएंगे, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. वे उनमें अपने परवरदिगार के हुक्म से हमेशा रहेंगे और उनकी मुलाक़ात का तोहफ़ा सलाम होगा.
24. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ने कितनी अच्छी मिसाल बयान की है कि कलमा तैयब उस पाकीज़ा शजर की मानिन्द है, जिसकी जड़ें ज़मीन में मज़बूत हैं और उसकी शाख़ें आसमान में हैं.
25. वह दरख़्त अपने परवरदिगार के हुक्म से हर वक़्त फल दे रहा है और अल्लाह लोगों के लिए मिसालें बयान फ़रमाता है, ताकि वे ग़ौर व फ़िक्र करें.
26. और ख़बीस बात की मिसाल उस ख़बीस शजर की मानिन्द है, जिसे ज़मीन के ऊपर से ही उखाड़ कर फ़ेंक दिया जाए. उसके लिए ज़रा भी क़रार नहीं है यानी वह मुस्तहकम नहीं है.
27. अल्लाह ईमान वालों को पुख़्ता क़ौल यानी कलमा तैयब की बरकत से दुनियावी ज़िन्दगी में भी साबित क़दम रखता है और आख़िरत में भी. और अल्लाह ज़ालिमों को गुमराही में छोड़ देता है और अल्लाह जो चाहता है, वही करता है.
28. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्होंने अल्लाह की नेअमतों के बदले कुफ़्र किया और अपनी क़ौम को तबाही के घर में उतार दिया.
29. वह जहन्नुम है, जिसमें वे लोग झोंके जाएंगे और वह बहुत बुरा ठिकाना है.
30. और वे लोग अल्लाह के शरीक ठहराने लगे, ताकि वे लोगों को उसकी राह से भटका सकें. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि कुछ दिन फ़ायदा उठा लो. फिर बेशक तुम्हें दोज़ख की तरफ़ ही लौटना है.
31. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरे ईमान लाने वाले बन्दों से कह दो कि पाबंदी से नमाज़ पढ़ा करो और जो रिज़्क़ हमने उन्हें दिया है, उसमें से अल्लाह की राह में पोशीदा या ज़ाहिरी तौर पर ख़र्च किया करो. इससे पहले कि क़यामत का वह दिन आ जाए, जब न ख़रीद फ़रोख़्त कुछ काम आएगी और न कोई दुनियावी दोस्ती ही काम आएगी.
32. अल्लाह ही है, जिसने आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ की. और आसमान से पानी बरसाया. फिर उसके ज़रिये तुम्हारे खाने के लिए फल उगाए. और उसने जहाज़ों और कश्तियों को तुम्हारे क़ाबू में किया, ताकि वे उसके हुक्म से समन्दर व दरिया में चलें और उसने समन्दर व दरिया को भी तुम्हारे काम में लगा दिया.
33. और अल्लाह ने तुम्हारे लिए सूरज और चांद को काम पर लगा दिया, जो हमेशा अपने दायरे में घूमते रहते हैं. और उसने रात और दिन को भी तुम्हारे काम में लगा दिया.
34. और अल्लाह ने तुम्हें हर वह चीज़ अता की, जो तुमने उससे मांगी. और अगर तुम उसकी नेअमतों को शुमार करना चाहो, तो उन्हें शुमार नहीं कर सकोगे. बेशक इंसान तू बड़ा ज़ालिम और बड़ा काफ़िर है.
35. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! इस शहर मक्का को अमन की जगह बना दे और मुझे और मेरी औलाद को इससे बचा ले कि हम बुतों को पुकारने लगें.
36. ऐ मेरे परवरदिगार ! बेशक उन बुतों ने बहुत से लोगों को गुमराह किया है. फिर जिसने मेरी पैरवी की, तो बेशक वह मेरा हो गया और जिसने मेरी नाफ़रमानी की, तो बेशक तू बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
37. ऐ मेरे परवरदिगार ! बेशक मैंने अपनी औलाद को मक्के की बिना खेती वाली बंजर वादी में तेरे हुरमत वाले घर काबा के क़रीब बसा दिया है. ऐ मेरे परवरदिगार ! ताकि वे पाबंदी से नमाज़ पढ़ा करें. फिर तू लोगों के दिलों को ऐसा कर दे कि उनकी तरफ़ माइल हो जाएं और उन्हें हर तरह के फलों का रिज़्क़ अता कर, ताकि वे लोग शुक्रगुज़ार बन जाएं.
38. ऐ मेरे परवरदिगार ! बेशक तू सब जानता है, जो कुछ हम पोशीदा रखते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं. और अल्लाह से न ज़मीन में कोई चीज़ पोशीदा है और न आसमान में.
39. अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं, जिसने मुझे ज़ईफ़ी में इस्माईल अलैहिस्सलाम और इसहाक़ अलैहिस्सलाम दो बेटे अता किए. बेशक मेरा परवरदिगार बड़ा दुआएं सुनने वाला है.
40. ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझे और मेरी औलाद को पाबंदी से नमाज़ पढ़ने वाला बना दे और ऐ मेरे परवरदिगार ! और तू मेरी दुआओं को क़ुबूल फ़रमा.
41. ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझे और मेरे वालिदैन और तमाम मोमिनों को उस वक़्त बख़्श देना, जिस दिन आमाल का हिसाब होगा.
42. और हरगिज़ यह गुमान मत करना कि अल्लाह उससे ग़ाफ़िल है, जो कुछ ज़ालिम किया करते हैं. फिर वह उन्हें सिर्फ़ उस दिन तक की मोहलत दे रहा है, जब ख़ौफ़ से उनकी आंखें खुली रह जाएंगी.
43. वे लोग अपने सर उठाए हुए मैदाने हश्र की तरफ़ दौड़े चले जा रहे होंगे. उनकी पलकें भी न झुकती होंगी. और उनके दिल ख़ौफ़ से उड़े जा रहे होंगे.
44. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम लोगों को उस दिन से ख़बरदार करो जब उन पर अज़ाब आएगा, तो ज़ुल्म करने वाले लोग फ़रियाद करेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें एक दिन की थोड़ी सी मोहलत और दे दे कि हम तेरी दावत को क़ुबूल कर लें और सब रसूलों की पैरवी कर लें. उनसे कहा जाएगा कि क्या तुम वही लोग नहीं हो, जो पहले क़समें खाया करते थे कि तुम्हें कभी ज़वाल नहीं आएगा.
45. और तुम उन लोगों के घरों में रहते थे, जिन्होंने अपनी जानों पर ज़ुल्म किया था. हालांकि तुम पर यह ज़ाहिर हो चुका था कि हमने उनके साथ क्या सुलूक किया और हमने तुम्हारे लिए मिसालें भी बयान की थीं.
46. और उन लोगों ने मक्कारियां कीं, जबकि अल्लाह के पास उनकी हर मक्कारी का तोड़ था. हालांकि उनकी मक्काराना तदबीरें ऐसी थीं कि पहाड़ भी अपनी जगह से हट जाएं.
47. फिर तुम हरगिज़ यह गुमान मत करना कि अल्लाह अपने रसूलों से वादा ख़िलाफ़ी करेगा. बेशक अल्लाह बड़ा ग़ालिब व इंतक़ाम लेने वाला है.
48. जिस दिन यह ज़मीन दूसरी ज़मीन से बदल दी जाएगी और आसमान भी बदल दिए जाएंगे और सब लोग अल्लाह के सामने हाज़िर होंगे, जो वाहिद सब पर ग़ालिब है.
49. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम उस दिन देखोगे कि गुनाहगार ज़ंजीरों में जकड़े हुए होंगे.
50. उन लोगों के लिबास गंधक के होंगे और उनके चेहरों को आग हर तरफ़ से ढक रही होगी.
51. ताकि अल्लाह हर शख़्स को उसका बदला दे, जो कुछ उसने कमाया. बेशक अल्लाह बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है.
52. यह क़ुरआन लोगों के लिए अल्लाह का एक कामिल पैग़ाम है, ताकि उन्हें इसके ज़रिये अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार किया जाए और वे जान लें कि बस वही अल्लाह माबूदे यकता है और यह कि अक़्लमंद लोग नसीहत हासिल करें.
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