Friday, September 10, 2021

13 सूरह अर रअद

सूरह अर रअद मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 43 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अलिफ़ लाम मीम रा. ये अल्लाह की किताब की आयतें हैं. और जो कुछ तुम्हारे परवरदिगार की जानिब से तुम्हारी तरफ़ नाज़िल किया गया है, वह हक़ है, लेकिन बहुत से लोग ईमान नहीं लाते.
2. अल्लाह ही है, जिसने आसमानों को बग़ैर किसी सुतून के बुलंद किया, जैसा कि तुम देख रहे हो. पूरी कायनात को बनाने के बाद उसने अर्श पर इख़्तेदार क़ायम किया. और उसने सूरज और चांद को निज़ाम का पाबंद बनाया कि हर एक मुक़र्रर वक़्त में अपने दायरे में घूम रहा है. वही सारी कायनात के तमाम कामों की तदबीर करता है. वह अपनी आयतों को तफ़सील से बयान करता है कि तुम लोग अपने परवरदिगार के सामने हाज़िर होने का यक़ीन करो.
3. और वह अल्लाह ही है, जिसने ज़मीन को बिछाया और उसमें पहाड़ और दरिया बनाए. और उसने हर तरह के फल व मेवों की दो-दो क़िस्में बनाईं. वही रात से दिन को ढक देता है. बेशक इसमें ग़ौर व फ़िक्र करने वाली क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं.
4. और ज़मीन में मुख़्तलिफ़ क़िस्म के क़तआत हैं, जो एक दूसरे के क़रीब हैं. और अंगूरों के बाग़ और खेतियां और खजूर के दरख़्त हैं, जिनमें कुछ की एक जड़ और दो शाख़ें हैं और कुछ एक ही शाख़ वाले हैं. सबको एक ही पानी से सेराब किया जाता है. और हम फलों के ज़ायक़े में कुछ को दूसरों पर फ़ज़ीलत देते हैं. बेशक इसमें अक़्लमंद क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं.
5. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर तुम काफ़िरों के इनकार पर ताज्जुब करो, तो उनका यह कहना अजीब है कि जब हम मरकर ख़ाक हो जाएंगे, तो क्या हम फिर नये सिरे से पैदा किए जाएंगे. यही वे लोग हैं, जिन्होंने अपने परवरदिगार के साथ कुफ़्र किया और उनकी गर्दनों में क़यामत के दिन तौक़ पड़े होंगे और यही लोग असहाबे दोज़ख़ हैं. वे उसमें हमेशा रहेंगे. 
6. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वे लोग तुमसे अच्छाई से पहले ही बुराई यानी अज़ाब की जल्दी कर रहे हैं. हालांकि उनसे पहले कई अज़ाब गुज़र चुके हैं. बेशक तुम्हारा परवरदिगार लोगों के लिए उनके ज़ुल्म के बावजूद बख़्शने वाला है. और बेशक तुम्हारा परवरदिगार ज़ालिमों को सख़्त अज़ाब देने वाला भी है.
7. और वे लोग कहते हैं कि इन रसूल पर उनके परवरदिगार की तरफ़ से कोई निशानी नाज़िल क्यों नहीं की गई. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम तो सिर्फ़ अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करने वाले और हर क़ौम के लिए हादी यानी रहबर हो.
8. अल्लाह ही जानता है, जो हर मादा अपने पेट में रखती है और रहम जितने सिकुड़ते और बढ़ते हैं. और उसके पास हर चीज़ की मिक़दार मुक़र्रर है.
9. अल्लाह ही ग़ैब और ज़ाहिर का जानने वाला है. वह सबसे बड़ा व आला मर्तबे वाला है.
10. तुम में से जो शख़्स आहिस्ता से बात करे और जो शख़्स बुलंद आवाज़ में बात करे और जो रात की तारीकी में छुपा हो और जो दिन के उजाले में चलता फिरता हो, उसके लिए सब बराबर है. 
11. हर इंसान के लिए उसके आगे और उसके पीछे उसके निगेहबान फ़रिश्ते मुक़र्रर हैं, जो अल्लाह के हुक्म से उसकी हिफ़ाज़त करते हैं. बेशक अल्लाह उस वक़्त तक किसी क़ौम की हालत को नहीं बदलता, जब तक वे लोग ख़ुद में तब्दीली नहीं लाते. और जब अल्लाह किसी क़ौम के साथ बुराई यानी अज़ाब का इरादा करता है, तो उसे कोई टाल नहीं सकता और न उसके सिवा उनका कोई कारसाज़ है.
12. वह अल्लाह ही है, जो कभी तुम्हें डराने और कभी उम्मीद दिलाने के लिए बर्क़ यानी बिजली की चमक दिखाता है और पानी से भरे घने बादलों को उठाता है.
13. और बादलों की गरज और फ़रिश्ते उसके ख़ौफ़ से अल्लाह की हम्दो सना की तस्बीह करते हैं. और वह कड़कती बिजलियां भेजता है. फिर वह जिस पर चाहता है, उसे गिरा देता है. और वे लोग अल्लाह के बारे में झगड़ते रहते हैं. और वह सख़्त गिरफ़्त में लेने वाला है.
14. अल्लाह को पुकारना हक़ है और वे काफ़िर लोग उसके सिवा जिन्हें पुकारते हैं, वे उन्हें किसी बात का जवाब भी नहीं दे सकते. उनकी मिसाल तो सिर्फ़ उस शख़्स की मानिन्द है, जो अपनी दोनों हथेलियां पानी की तरफ़ फैला दे कि पानी ख़ुद उसके मुंह तक पहुंच जाए और वह पानी उस तक नहीं पहुंचेगा. और इसी तरह काफ़िरों की दुआ गुमराही में भटकने के सिवा कुछ नहीं.
15. और आसमानों और ज़मीन की तमाम मख़लूक़ अल्लाह ही को सजदा करती है, कुछ ख़ुशी से कुछ नागवारी से. और उनके साये भी सुबह व शाम उसी को सजदा करते हैं.
16. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम दरयाफ़्त करो कि आसमानों और ज़मीन का परवरदिगार कौन है? तुम कह ख़ुद ही दो कि अल्लाह है. फिर तुम उनसे दरयाफ़्त कि क्या तुमने अल्लाह के सिवा दूसरे सरपरस्त बना लिए हैं, जो अपने लिए न किसी नफ़े का इख़्तियार रखते हैं और न किसी नुक़सान का. तुम कह दो कि क्या अंधा और आंखों वाला बराबर हो सकता है. क्या तारीकी और नूर बराबर हो सकते हैं. क्या उन्होंने अल्लाह के ऐसे शरीक बनाए हैं, जिन्होंने अल्लाह की मख़लूक़ की तरह कुछ भी पैदा किया है और उस मख़लूक़ की वजह से उन्हें मुग़ालता हो गया हो. तुम कह दो कि अल्लाह ही हर चीज़ का ख़ालिक है. और वह वाहिद सब पर ग़ालिब है.
17. अल्लाह ने आसमान से पानी बरसाया. फिर वह मिक़दार के मुताबिक़ नदी व नालों में बहने लगा. फिर सैलाब की लहरों पर झाग आ गया. और जिन चीज़ों को ज़ेवर या दूसरे सामान बनाने के लिए आग में तपाते हैं, उन पर भी ऐसा ही झाग उठता है. इस तरह अल्लाह हक़ और बातिल की मिसालें बयान करता है. फिर झाग ख़ुश्क होकर ज़ाया हो जाता है, लेकिन जो कुछ लोगों के नफ़े के लिए होता है, वह ज़मीन में बाक़ी रहता है. इसी तरह अल्लाह लोगों को समझाने के लिए मिसालें बयान करता है.
18. जिन लोगों ने अपने परवरदिगार का हुक्म मान लिया, उनके लिए अच्छाई है और जिन्होंने उसका हुक्म नहीं माना अगर उनके पास वह सब हो, जो ज़मीन में है और उसके साथ इतना ही और भी हो, तो वे उसे अज़ाब से बचने के लिए बतौर फ़िदया दे दें, तब भी उनका हिसाब बुरा ही होगा. और उनका ठिकाना जहन्नुम है और वह बहुत बुरी जगह है.
19. भला वह शख़्स जो यह जानता है कि जो कुछ तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाज़िल किया गया है वह हक़ है, तो क्या वह उस शख़्स की मानिन्द हो सकता है जो बिल्कुल अंधा है. सिर्फ़ अक़्लमंद लोग ही नसीहत हासिल करते हैं. 
20. जो लोग अल्लाह के अहद को पूरा करते हैं और अपने मुआहिदे को नहीं तोड़ते.
21. और जो लोग उन सबको जोड़े रखते हैं, जिन्हें जोड़े रखने का अल्लाह ने हुक्म दिया है और अपने परवरदिगार से डरते हैं और क़यामत के दिन बुरे हिसाब से ख़ौफ़ज़दा रहते हैं.
22. और जो लोग अपने परवरदिगार की ख़ुशनूदी हासिल करने के लिए सब्र करते हैं और पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हैं और जो रिज़्क़ हमने उन्हें दिया है, उसमें से पोशीदा और ज़ाहिरी तौर पर अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं और अच्छाई के ज़रिये बुराई को दूर करते हैं. यही वे लोग हैं, जिनके लिए आख़िरत का अच्छा घर है. 
23. जहां सदाबहार बाग़ हैं, जिनमें वे दाख़िल होंगे और उनके बाप दादा और बीवियां और उनकी औलाद में से जो नेक हैं, वह सब भी. और फ़रिश्ते उनके पास जन्नत के हर दरवाजे़ से आएंगे.
24. फ़रिश्ते उनसे कहेंगे कि तुम पर सलामती हो. तुमने सब्र किया और अब आख़िरत का घर कितना अच्छा है. 
25. और जो लोग अल्लाह का अहद पुख़्ता करने के बाद तोड़ देते हैं और उन ताल्लुक़ात को क़तआ करते हैं, जिन्हें जोड़े रखने का अल्लाह ने हुक्म दिया है और ज़मीन में फ़साद फैलाते फिरते हैं. उन्हीं लोगों के लिए लानत है और उनके लिए बुरा घर यानी दोज़ख़ है.
26. अल्लाह जिसके लिए चाहता है रिज़्क़ कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है तंग कर देता है. और वे लोग दुनियावी ज़िन्दगी से बहुत ख़ुश हैं. हालांकि दुनियावी ज़िन्दगी आख़िरत के मुक़ाबले में बहुत हक़ीर साजो सामान के सिवा कुछ भी नहीं.
27. और कुफ़्र करने वाले लोग कहते हैं कि उन रसूल पर उनके परवरदिगार की तरफ़ से कोई निशानी नाज़िल क्यों नहीं की गई. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक अल्लाह जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जो उसकी तरफ़ रुजू करता है, तो उसे हिदायत देता है. यानी उसे अपनी तरफ़ आने की राह दिखा देता है. 
28. जो लोग ईमान लाए और उनके दिल अल्लाह के ज़िक्र से मुतमईन होते हैं. जान लो कि अल्लाह ही के ज़िक्र से दिलों को इत्मीनान मिलता है. 
29. जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो उनके लिए ख़ुशहाली और अच्छा मक़ाम है.
30. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इसी तरह हमने तुम्हें ऐसी उम्मत में रसूल बनाकर भेजा है, जिससे पहले हक़ीक़त में तमाम उम्मतें गुज़र चुकी हैं, ताकि तुम उन्हें क़ुरआन पढ़कर सुनाओ, जो हमने वही के ज़रिये तुम्हारी तरफ़ भेजा है. और वे मेहरबान अल्लाह से कुफ़्र कर रहे हैं. तुम कह दो कि वही मेरा परवरदिगार है. उसके सिवा कोई माबूद नहीं. मैंने उस पर भरोसा किया है और मैं उसी की तरफ़ रुजू करता हूं.
31. और अगर कोई ऐसा क़ुरआन होता, जिसकी बरकत से पहाड़ चला दिए जाते या उसकी वजह से ज़मीन फट जाती और उसके ज़रिये मुर्दों से बात करवा दी जाती, तब भी वे लोग ईमान नहीं लाते. बल्कि सब काम अल्लाह ही के इख़्तियार में हैं. तो क्या ईमान वाले लोगों को यह इत्मीनान नहीं है कि अगर अल्लाह चाहता, तो सब लोगों को हिदायत दे देता और कुफ़्र करने वाले लोग अपने आमाल के बदले में किसी न किसी मुसीबत में मुब्तिला रहेंगे या उनके घरों के क़रीब आफ़त नाज़िल होगी, यहां तक कि अल्लाह का अज़ाब का वादा आ जाएगा. बेशक अल्लाह अपने वादे की ख़िलाफ़वर्ज़ी नहीं करता.
32. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुमसे पहले भी बहुत से रसूलों का मज़ाक़ उड़ाया गया है. फिर हमने कुफ़्र करने वाले लोगों को मोहलत दी. फिर हमने उन्हें अज़ाब की गिरफ़्त में ले लिया. फिर देख लो कि हमारा अज़ाब कैसा था.
33. क्या फिर वह अल्लाह जो हर शख़्स के आमाल की निगेहबानी करता है और उन लोगों ने अल्लाह के लिए शरीक ठहराए हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उनसे कह दो कि तुम उनके नाम तो बताओ. क्या तुम अल्लाह को उस चीज़ की ख़बर देते हो, जिसे वह सारी ज़मीन में नहीं जानता या ये सिर्फ़ ज़ाहिरी बातें हैं, बल्कि कुफ़्र करने वाले लोगों के लिए उनकी मक्कारियां आरास्ता कर दी गई हैं. और वे सीधे रास्ते से रोक दिए गए हैं. और जिसे अल्लाह गुमराही में छोड़ दे, तो उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं है. 
34. उन लोगों के लिए दुनियावी ज़िन्दगी में भी अज़ाब है और यक़ीनन आख़िरत का अज़ाब बहुत सख़्त है. और उन्हें अल्लाह के अज़ाब से कोई बचाने वाला नहीं है. 
35. जिस जन्नत का परहेज़गारों से वादा किया गया है, उसकी मिसाल यह है कि उसके नीचे नहरें बहती होंगी और उसके फल दाइमी होंगे और साये भी हमेशा रहेंगे. यह उन लोगों का बेहतरीन अंजाम है, जिन्होंने परहेज़गारी इख़्तियार की और काफ़िरों का अंजाम दोज़ख़ है.
36. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जिन लोगों को हमने किताब यानी तौरात अता कर चुके हैं, वे इस क़ुरआन से ख़ुश होते हैं, जो तुम्हारी तरफ़ नाज़िल किया गया है. और उन्हीं के फ़िरक़ों में से कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इसके कुछ हिस्से से इनकार करते हैं. तुम कह दो कि बेशक मुझे तो यही हुक्म दिया गया है कि मैं अल्लाह ही की इबादत करूं और उसके साथ किसी को शरीक न ठहराऊं. उसी की तरफ़ मैं बुलाता हूं और उसकी तरफ़ ही मुझे लौटना है.      
37. और इस तरह हमने इस क़ुरआन को हुक्म बनाकर अरबी ज़बान में नाज़िल किया. ऐ इंसान ! अगर तूने उन काफ़िरों की ख़्वाहिशों की पैरवी की, इसके बावजूद कि तेरे पास इल्म आ चुका था, तो तेरे लिए अल्लाह के मुक़ाबले में न कोई तेरा सरपरस्त होगा और न कोई बचाने वाला. 
38. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक हमने तुमसे पहले भी बहुत से रसूलों को भेजा और हमने उनके लिए बीवियां भी बनाईं और उन्हें औलाद भी अता की. और किसी रसूल का यह काम नहीं कि वह अल्लाह की इजाज़त के बग़ैर कोई निशानी ले आए. हर मुद्दत यानी ज़माने के लिए एक तहरीर है. 
39. अल्लाह तहरीर में से जिसे चाहता है मिटा देता है और जिसे चाहता है बाक़ी रखता है. और उसके पास असल किताब यानी लौहे महफ़ूज़ है.
40. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर हम इस अज़ाब का कुछ हिस्सा, जिसका हमने काफ़िरों से वादा किया है, तुम्हें दिखा दें या तुम्हें इससे पहले वफ़ात दें. तुम्हारी ज़िम्मेदारी तो सिर्फ़ हमारे अहकाम वाज़ेह तौर पर पहुंचाने तक ही है और हिसाब लेना हमारा काम है. 
41. क्या उन लोगों ने नहीं देखा कि हम ज़मीन को हर तरफ़ से घटाते जा रहे हैं. और अल्लाह ही हुक्म देता है. कोई उसके हुक्म को रद्द नहीं कर सकता. और वह जल्द हिसाब लेने वाला है.
42. और बेशक उन लोगों ने भी मक्कारियां की थीं, जो उनसे पहले गुज़रे हैं. फिर उस मकर को तोड़ना भी अल्लाह ही के इख़्तियार में है. वह उसे ख़ूब जानता है, जो कुछ हर शख़्स कमा रहा है. और काफ़िर अनक़रीब जान लेंगे कि आख़िरत का घर किसके लिए है. 
43. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और काफ़िर लोग कहते हैं कि तुम रसूल नहीं हो. तुम कह दो कि मेरे और तुम्हारे दरम्यान रिसालत की गवाही के लिए अल्लाह ही काफ़ी है और वह शख़्स काफ़ी है, जिसके पास आसमानी किताब का इल्म है.

0 comments:

Post a Comment