Saturday, September 11, 2021

12 सूरह अल यूसुफ़

सूरह अल यूसुफ़ मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 111 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अलिफ़ लाम रा. ये रौशन किताब की आयतें हैं.
2. बेशक हमने इस किताब को क़ुरआन की सूरत में अरबी में नाज़िल किया है, ताकि तुम समझ सको.
3. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हम तुमसे एक बेहतरीन क़िस्सा बयान करते हैं इस क़ुरआन के ज़रिये जिसे हमने तुम पर नाज़िल किया है. अगरचे तुम इससे पहले इस क़िस्से से बिल्कुल बेख़बर थे.
4. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वक़्त याद करो कि जब यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने अपने वालिद याक़ूब अलैहिस्सलाम से कहा कि ऐ मेरे अब्बा ! मैंने ख़्वाब में ग्यारह सितारों और सूरज और चांद को देखा है, जो मुझे सजदा कर रहे हैं.
5. याक़ूब अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ मेरे बेटे ! अपना यह ख़्वाब अपने भाइयों के सामने बयान मत करना, वरना वे तुम्हारे ख़िलाफ़ मक्कारी की तदबीर करने लगेंगे. बेशक शैतान इंसान का सरीह  दुश्मन है.
6. और इसी तरह तुम्हारा परवरदिगार तुम्हें रिसालत के लिए मुंतख़िब करेगा और तुम्हें ख़्वाबों की ताबीर का इल्म अता करेगा. और तुम पर और याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद पर अपनी नेअमत पूरी करेगा, जैसे उसने इससे पहले तुम्हारे परदादा इब्राहीम अलैहिस्सलाम और दादा इसहाक़ अलैहिस्सलाम पर अपनी नेअमत पूरी की थी. और तुम्हारा परवरदिगार बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
7. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक यूसुफ़ अलैहिस्सलाम और उनके भाइयों के क़िस्से में सवाल करने वालों के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं.
8. और वह वक़्त भी याद करो कि जब यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाइयों ने कहा कि यूसुफ़ अलैहिस्सलाम और उनके हक़ीक़ी भाई बिन यामीन हमारे वालिद को हमसे ज़्यादा महबूब हैं, जबकि हम ज़्यादा क़ूवत वाली जमात हैं. बेशक हमारे वालिद सरीह ग़लत फ़हमी में मुब्तिला हैं.
9. अब यही हल है कि यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को क़त्ल कर दो या उसे किसी अनजान जगह छोड़ आओ. इस तरह तुम्हारे वालिद की तवज्जो तुम्हारी तरफ़ हो जाएगी. और उसके बाद तुम तौबा करके स्वाहिलीन क़ौम में शामिल हो जाओगे.
10. उनमें से लावी नाम का एक भाई कहने लगा कि यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को क़त्ल मत करो. उसे किसी तारीकी कुएं में डाल दो. कोई राहगीर उसे निकालकर ले जाएगा. अगर तुम कुछ करने वाले हो.
11. सब भाइयों ने याक़ूब अलैहिस्सलाम से कहा कि ऐ हमारे अब्बा ! आख़िर इसकी क्या वजह है कि आप यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के बारे में हम पर ऐतबार नहीं करते. और यक़ीनन हम उसके ख़ैरख़्वाह हैं. 
12. आप उसे हमारे साथ भेज दो कि वह ख़ूब खाये और खेले कूदें. और बेशक हम उसके मुहाफ़िज़ हैं. 
13. याक़ूब अलैहिस्सलाम ने कहा कि बेशक मुझे यह ख़्याल ग़मगीन करता है कि तुम उसे ले जाओ और मैं इस ख़्याल से भी ख़ौफ़ज़दा हूं कि उसे भेड़िया खा जाए और तुम उससे ग़ाफ़िल रहो.
14. वे कहने लगे कि अगर उसे भेड़िया खा जाए हालांकि हम क़वी जमात मौजूद हों, तो बेशक हम बिल्कुल नाकारा हुए.
15. फिर जब वे यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को ले गए और इस पर इत्तेफ़ाक़ कर लिया कि उन्हें तारीकी कुएं में डाल दें. तब हमने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के पास वही भेजी कि ऐ यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ! घबराओ नहीं. एक वक़्त आएगा कि तुम यक़ीनन उन्हें उनके इस काम से आगाह करोगे और उन्हें शऊर भी नहीं होगा.
16. और वे यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को तारीकी कुएं में डालकर रात के वक़्त अपने वालिद याक़ूब अलैहिस्सलाम के पास रोते हुए आए.
17. वे कहने लगे कि ऐ हमारे अब्बा ! हम लोग दौड़ते हुए आगे निकल गए और यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को अपने सामान के पास छोड़ दिया. फिर उसे भेड़िया खा गया. और आप हमारी बात का यक़ीन भी नहीं करेंगे, अगरचे हम सच्चे ही हों.
18. और वे यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की क़मीज़ पर झूठ मूठ का ख़ून लगाकर लाए थे. याक़ूब अलैहिस्सलाम ने कहा कि यह हक़ीक़त नहीं है, बल्कि तुम्हारे नफ़्सों ने एक काम को तुम्हारे लिए जमील बना दिया है. यानी उन्हें भेड़िये ने खाया होता, तो क़मीज़ फटी हुई होती. फिर सब्र ही मेरे लिए बेहतर है. और मैं उस पर अल्लाह ही से मदद चाहता हूं, जो कुछ तुम बयान कर रहे हो. 
19. और राहगीरों का एक क़ाफ़िला वहां आया. उन्होंने अपने पानी भरने वाले को पानी लेने के लिए भेजा. उसने कुएं में डोल लटकाया, तो यूसुफ़ अलैहिस्सलाम उसमें बैठकर बाहर आ गए. उसने कहा कि ख़ुशी की बात है कि यह एक लड़का है. क़ाफ़िले वालों ने उन्हें क़ीमती सरमाया समझकर छुपा लिया. और अल्लाह उन आमाल से ख़ूब वाक़िफ़ था, जो वे कर रहे थे.
20. (यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई छुपकर यह सब देख रहे थे.) और उन्होंने अपने भाई को भगा हुआ ग़ुलाम बताकर बहुत कम दिरहम के बदले बेच दिया. और वे लोग यूसुफ़ अलैहिस्सलाम से बेज़ार हो रहे थे. 
21. (क़ाफ़िले वालों ने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को मिस्र में ले जाकर बड़े नफ़े में बेच दिया. मिस्र के वज़ीरे ख़ज़ाना क़तफ़ीर ने उन्हें ख़रीदा, जिसे अज़ीज़े मिस्र कहा जाता था.) और उसने अपनी बीवी ज़ुलैख़ा से कहा कि इसे इज़्ज़त व इकराम से रखो, शायद यह हमें कुछ नफ़ा पहुंचाए या हम इसे अपना बेटा ही बना लें. और इस तरह हमने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को मिस्र की सरज़मीन में पनाह दी. और हमने उन्हें ख़्वाब की ताबीर का इल्म सिखाया. अल्लाह अपने हर काम पर ग़ालिब है, लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते.
22. और जब यूसुफ़ अलैहिस्सलाम बालिग़ होकर अपने शबाब पर पहुंचे, तो हमने उन्हें हिकमत यानी नबुवत  और इल्म अता किया. और हम मोहसिनों को ऐसे ही जज़ा दिया करते हैं.
23. और जिस औरत ज़ुलैख़ा के घर में यूसुफ़ अलैहिस्सलाम रहते थे, उसने उनसे अपनी ख़्वाहिश पूरी करनी चाही और सब दरवाज़े भी बंद कर दिए और कहने लगी कि जल्दी आओ. यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह की पनाह. वह तुम्हारा शौहर मेरा मरबी यानी बादशाह है. उसने मुझे बहुत अच्छी तरह रखा है. बेशक ज़ालिम लोग कभी कामयाब नहीं होते. 
24. और बेशक उस ज़ुलैख़ा ने तो उन्हें हासिल करने का इरादा कर ही लिया था. शायद वह भी इसका क़सद कर लेते अगर उन्होंने अपने परवरदिगार की रौशन दलील न देखी होती. ऐसा इसलिए किया गया कि हम उनसे बुराई और बेहयाई को दूर रखें. बेशक वह हमारे मुख़लिस बन्दों में से थे.
25. और दोनों दरवाजे़ की तरफ़ दौड़ पड़े और ज़ुलैख़ा ने पीछे से उनकी क़मीज़ पकड़ कर खींच ली, जिससे वह फट गई. और दोनों ने ज़ुलैख़ा के शौहर को दरवाज़े के क़रीब खड़ा पाया. वह अपने शौहर से कहने लगी कि जो तुम्हारी बीवी के साथ बुराई का इरादा करे, उसकी सज़ा इसके सिवा और क्या हो सकती है कि उसे ज़िन्दान में डाल दिया जाए या दर्दनाक अज़ाब में मुब्तिला कर दिया जाए.
26. यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि उसने ख़ुद मुझसे ख़्वाहिश की थी. और ज़ुलैख़ा के कुनबे वालों में से एक दूध पीते बच्चे ने गवाही दी कि अगर उनकी क़मीज़ आगे से फटी हुई है, तो यह सच्ची है और वे झूठों में से हैं. 
27. और अगर उनकी क़मीज़ पीछे से फटी हुई है, तो यह झूठी है और वे सादिक़ों में से हैं. 
28. फिर जब अज़ीजे़ मिस्र ने उनकी क़मीज़ पीछे से फटी हुई देखी, तो अपनी बीवी ज़ुलैख़ा से कहने लगा कि बेशक यह तुम औरतों का फ़रेब है. बेशक तुम औरतों के फ़रेब बड़े ग़ज़ब के होते हैं.
29. उसने कहा कि ऐ यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ! तुम इससे दरगुज़र करो और अपनी बीवी ज़ुलैख़ा से कहा कि तू अपने गुनाह की मुआफ़ी मांग, क्योंकि बेशक तू ही ख़तावारों में से है.
30. और शहर में कुछ औरतें कहने लगीं कि अज़ीज़े मिस्र की बीवी ज़ुलैख़ा अपने ग़ुलाम की ख़्वाहिशमंद है. उस ग़ुलाम की मुहब्बत उसके दिल में बस गई है. बेशक हम उसे सरीह गुमराही में मुब्तिला देख रही हैं. 
31. फिर जब ज़ुलैख़ा ने उनकी मक्कारी की बातें सुनीं, तो उसने उन औरतों को बुलवाया और उनके लिए एक महफ़िल आरास्ता की. और उसमें से हर एक औरत के हाथ में एक छुरी और एक नारंगी दे दी और उनसे कह दिया कि जब यूसुफ़ अलैहिस्सलाम तुम्हारे सामने आएं, तो इसे काट दे देना. और यूसुफ़ अलैहिस्सलाम से उनके सामने से गुज़रने को कहा. जब उन औरतों ने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को देखा, तो उनके हुस्न व जमाल की तारीफ़ करने लगीं और बेख़ुदी के आलम में नारंगी काटने के बजाय अपने हाथ काट लिए और कहने लगीं कि अल्लाह की पनाह ! ये इंसान नहीं हैं, बल्कि ये एक मुअज़्ज़िज़ फ़रिश्ते हैं.
32. फिर ज़ुलैख़ा उन औरतों से कहने लगी कि ये वही हैं, जिनकी वजह से तुम सब मुझे तानें दिया करती थीं और बेशक मैं उनकी ख़्वाहिशमंद थी, लेकिन वे सरापा अस्मत ही रहे. और अगर उन्होंने अब भी मेरा हुक्म नहीं माना, तो ज़रूर ज़िन्दान में डाले जाएंगे और उन्हें बेआबरू किया जाएगा. 
33. मिस्र की औरतें भी उनकी ख़्वाहिशमंद हो गईं, तो यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने हमारी बारगाह में अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! ये औरतें मुझसे ख़्वाहिश रखती हैं. मुझे ज़िन्दान उस काम से ज़्यादा पसंद है, जिसकी तरफ़ ये मुझे बुलाती हैं. और अगर तूने इनके मकर को मुझसे नहीं फेरा, तो शायद मैं भी उनकी तरफ़ माइल हो जाऊं और इस तरह नादानों में से हो जाऊं.
34. फिर उनके परवरदिगार ने उनकी दुआ क़ुबूल की और उन औरतों के मकर को उनसे फ़ेर दिया. बेशक वह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
35. फिर अज़ीज़े मिस्र ने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की पाक दामिनी की निशानियां देख लेने के बावजूद उन्हें एक मुद्दत तक ज़िन्दान में डालना ही मुनासिब समझा. 
36. और उनके साथ दो जवान भी ज़िन्दान में दाख़िल हुए. कुछ दिन के बाद उनमें से एक क़ैदी ने कहा कि मैंने ख़्वाब में देखा है कि मैं शराब बनाने के लिए अंगूर निचोड़ रहा हूं और दूसरे ने कहा कि मैंने ख़्वाब में देखा है कि मैं अपने सर पर रोटियां उठाए हुए हूं और उसमें से परिन्दे खा रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐ यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ! हमें इनकी ताबीर बताओ. बेशक हम आपको मोहसिनों में से मानते हैं.
37. यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो खाना तुम्हें दिया जाता है, उसके तुम्हारे पास आने से पहले ही मैं तुम्हें उनकी ताबीर बताऊंगा. ये ताबीरें ख़्वाब भी उन इल्मों में से है, जो मेरे परवरदिगार ने मुझे सिखाए हैं. बेशक मैंने उस क़ौम का दीन शुरू से ही छोड़ रखा है, जो अल्लाह पर ईमान नहीं लाती और वे लोग आख़िरत से भी कुफ़्र करते हैं.
38. और मैं तो अपने बाप दादाओं इब्राहीम अलैहिस्सलाम और इसहाक़ अलैहिस्सलाम और याक़ूब अलैहिस्सलाम के दीन की पैरवी करता हूं. हमारे लिए यह मुनासिब नहीं कि हम किसी चीज़ को अल्लाह के साथ शरीक ठहराएं. यह हम पर और तमाम लोगों पर अल्लाह का बहुत बड़ा फ़ज़ल है. लेकिन बहुत से लोग उसका शुक्र अदा नहीं करते. 
39. ऐ मेरे ज़िन्दान के दोनों साथियों ! ज़रा ग़ौर करो कि क्या बहुत से मुख़्तलिफ़ सरपरस्त बेहतर हैं या वाहिद अल्लाह, जो सब पर ग़ालिब है.  
40. तुम लोग अल्लाह के सिवा उन्हें पुकारते हो, जिनके नाम तुम्हारे बाप दादाओं ने ख़ुद गढ़ लिए हैं. अल्लाह ने उनके लिए कोई दलील नाज़िल नहीं की. हुक्म का इख़्तियार तो सिर्फ़ अल्लाह ही को है. उसी ने हुक्म दिया है कि तुम उसके सिवा किसी की इबादत न करो. यही सीधा दीन है. लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते.
41. ऐ मेरे ज़िन्दान के दोनों साथियों ! तुममें से जिसने अंगूर देखे हैं, वह रिहा होकर अपने मरबी यानी बादशाह को शराब पिलाने का काम करेगा और दूसरा जिसने रोटियां सर पर रखी देखी हैं, तो उसे सूली पर चढ़ाया जाएगा और परिन्दे उसके सर को नोच-नोच कर खाएंगे. उसका फ़ैसला कर दिया गया है, जो तुम दोनों दरयाफ़्त कर रहे थे.
42. और उन दोनों में से रिहाई पाने वाले से यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने मरबी यानी बादशाह से मेरा ज़िक्र करना कि एक बेगुनाह ज़िन्दान में है. फिर शैतान ने उसे अपने मरबी से ज़िक्र करना भुला दिया. फिर यूसुफ़ अलैहिस्सलाम कई बरस ज़िन्दान में ही रहे.
43. और एक दिन बादशाह ने कहा कि मैंने ख़्वाब में देखा है कि सात मोटी ताज़ी गाय हैं और उन्हें सात दुबली पतली गाय खा रही हैं और सात ताज़ी सब्ज़ बालियां हैं और फिर सात सूखी बालियां हैं. ऐ मेरे दरबार के सरदारो ! तुम सब मेरे ख़्वाब के बारे में बताओ, अगर तुम ख़्वाब की ताबीर जानते हो. 
44. उन लोगों ने कहा कि ये परेशान क़िस्म के ख़्वाब हैं और हम ऐसे ख़्वाबों की ताबीर नहीं जानते.
45. और उन दो क़ैदियों में से जिसने रिहाई पाई थी और उसे एक मुद्दत के बाद यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के साथ किया हुआ अपना वादा याद आया, तो उसने कहा कि मैं आपको इसकी ताबीर बता दूंगा. मुझे यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के पास जाने की इजाज़त दो.
46. वह उनके पास गया और कहने लगा कि ऐ यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ! ऐ सादिक़, मुझे इस ख़्वाब बताएं कि सात मोटी ताज़ी गाय हैं, जिन्हें सात पतली गाय खा रही हैं और सात सब्ज़ बालियां हैं और फिर सात सूखी बालियां हैं, ताकि मैं उन लोगों के पास वापस जाकर बयान करूं. शायद वे आपकी क़द्र जान लें. 
47. यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि इस ख़्वाब की ताबीर यह है कि तुम लोग मुसलसल सात बरस काश्त करोगे. फिर जो फ़सल तुम काटागे उसे उसकी बालियों में ही रहने देना. लेकिन इतने थोड़े दाने निकालना जितने तुम साल भर खा लो.
48. फिर उसके बाद सात बरस सख़्त सूखे के आएंगे, वह उसे खा जाएंगे, जो तुमने उन सातों बरसों के लिए पहले से जमा करके रखा होगा. लेकिन तुम बीज के लिए थोड़ा सा अनाज बचाकर रखना. 
49. फिर उसके बाद एक साल ऐसा आएगा, जिसमें ख़ूब बारिशें होंगी और इतने अंगूर होंगे कि लोग उन्हें शराब के लिए निचोड़ेंगे.
50. और यह ताबीर सुनते ही बादशाह ने हुक्म दिया कि यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को मेरे पास लेकर आओ. फिर जब शाही क़ासिद यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के पास आया, तो उन्होंने कहा कि तुम अपने बादशाह के पास लौट जाओ और उनसे दरयाफ़्त करो कि उन औरतों का अब क्या हाल है, जिन्होंने मुझे देखकर अपने हाथ काट लिए थे. बेशक मेरा परवरदिगार ही उनके मकर से ख़ूब वाक़िफ़ है. 
51. बादशाह ने ज़ुलैख़ा समेत सभी औरतों को बुलवाकर दरयाफ़्त किया कि क्या वाक़िया है जब तुम सबने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम से अपनी ख़्वाहिश हासिल करनी चाही थी. उन सबने कहा कि अल्लाह की पनाह ! हमने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम में किसी तरह की कोई बुराई नहीं पाई. तब अज़ीज़े मिस्र की बीवी ज़ुलैख़ा कहने लगी कि अब हक़ सब पर ज़ाहिर हो ही चुका है. हक़ीक़त यह है कि मैंने ख़ुद ही उनसे अपनी ख़्वाहिश हासिल करने की कोशिश की थी. और बेशक वे सादिक़ों में से हैं. 
52. यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैंने ऐसा इसलिए किया, ताकि अज़ीज़े मिस्र जान लें कि मैंने उनके पीठ पीछे उनकी अमानत में ख़यानत नहीं की. और बेशक अल्लाह ख़यानत करने वालों के फ़रेब को चलने नहीं देता.
53. और मैं अपने नफ़्स की पाकीज़गी बयान नहीं करता. बेशक नफ़्स बुराई सिखाता है, सिवाय उसके जिस पर परवरदिगार रहम करे. बेशक मेरा परवरदिगार बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
54. और बादशाह ने हुक्म दिया कि यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को मेरे पास लेकर आओ. मैं उन्हें अपना ख़ास मुशीर बना लूं. फिर जब बादशाह ने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम से गुफ़्तगू करके उनकी आला क़ाबिलियत जान ली, तो उनसे कहा कि बेशक तुम आज से हमारे बावक़ार अमीन हो. यानी इख़्तेदार में बराबर के शरीक हो.
55. यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने बादशाह से कहा कि अगर आप मुझसे ख़ास काम लेना ही चाहते हैं, तो मुझे सरज़मीन मिस्र के ख़ज़ानों पर मुक़र्रर कर दें. बेशक मैं उनकी ख़ूब हिफ़ाज़त करने वाला और उसके हिसाब व किताब से भी ख़ूब वाक़िफ़ हूं. 
56. और हमने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को इस तरह मुल्क पर इख़्तेदार अता किया, ताकि उसमें जहां चाहें, वहां रहें. हम जिसे चाहते हैं, अपनी रहमत से सरफ़राज़ कर देते हैं. और हम मोहसिनों का अज्र ज़ाया नहीं करते.
57. और यक़ीनन उन लोगों के लिए आख़िरत का बेहतर अज्र है, जो ईमान लाए और परहेज़गार रहे.
58. और क़हत के वक़्त यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के सौतेले भाई ग़ल्ला लेने के लिए मिस्र आए, तो उनके पास गए. फिर यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने उन्हें पहचान लिया और उनके भाई उन्हें न पहचान सके.
59. और जब यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने उन्हें सामान मुहैया करवा दिया, तो उनसे कहा कि अगली बार आना तो अपने सौतेले भाई बिन यामीन को मेरे पास लेकर आना. क्या तुम नहीं देखते कि मैं ग़ल्ला पूरा नाप कर देता हूं और बेहतरीन मेहमान नवाज़ भी हूं. 
60. फिर अगर तुम उसे मेरे पास नहीं लाओगे, तो तुम्हारे लिए मेरे पास न ग़ल्ले का कोई पैमाना होगा और न तुम लोग मेरे क़रीब ही आ सकोगे.
61. वे लोग कहने लगे कि हम इस बारे में वालिद से ज़रूर दरख़्वास्त करेंगे, ताकि वे उसे हमारे साथ भेज दें. और हम यक़ीनन ऐसा करेंगे.
62. और यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने अपने ख़िदमतदारों को हुक्म दिया कि उनकी रक़म उनके बोरो में रख दो, ताकि जब वे लोग अपने घरवालों के पास लौटकर जाएं, तो उसे पहचान लें. शायद वे इसकी वजह से ही वापस आ जाएं. 
63. फिर जब वे लोग अपने वालिद के पास वापस आए, तो कहने लगे कि ऐ हमारे अब्बा ! हमें आइन्दा ग़ल्ला देने से मना कर दिया गया है. आप हमारे साथ हमारे भाई बिन यामीन को भेज दें, ताकि हम ग़ल्ला ले आएं.  और यक़ीनन हम उसकी हिफ़ाज़त करेंगे. 
64. याक़ूब अलैहिस्सलाम ने कहा कि क्या मैं उसके बारे में भी तुम पर उसी तरह ऐतमाद कर लूं, जैसा इससे पहले उसके भाई यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के बारे में ऐतमाद किया था. फिर अल्लाह ही बेहतर हिफ़ाज़त करने वाला है. और वही सब मेहरबानों से ज़्यादा मेहरबान है. 
65. और जब उन्होंने अपना सामान खोला, तो उसमें अपनी रक़म को देखा, जो उन्हें वापस कर दी गई थी. वे अपने वालिद से कहने लगे कि ऐ हमारे अब्बा ! हमें और क्या चाहिए. यह हमारी रक़म भी हमें वापस दे दी गई है और अब तो हम अपने घरवालों के लिए ग़ल्ला ज़रूर लाएंगे. और हम अपने भाई की पूरी हिफ़ाज़त करेंगे. और एक ऊंट का बोझ यानी ग़ल्ला और लाएंगे. और पहले का यह ग़ल्ला थोड़ा है.
66. याकूब अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं उसे हरगिज़ तुम्हारे साथ नहीं भेजूंगा, यहां तक कि तुम अल्लाह की क़सम खाकर मुझसे पुख़्ता अहद नहीं करोगे कि तुम उसे ज़रूर सही सलामत मेरे पास लाओगे, सिवाय इसके कि तुम सब घेर लिए जाओ. जब उन्होंने पुख़्ता अहद कर लिया, तो उन्होंने कहा कि जो कुछ हम कह रहे हैं, अल्लाह उसका निगेहबान है. 
67. और याक़ूब अलैहिस्सलाम ने रवानगी के वक़्त कहा कि ऐ मेरे बेटों ! शहर में तुम सब एक ही दरवाजे़ से दाख़िल न होना, बल्कि मुख़्तलिफ़ दरवाज़ों से दाख़िल होना. और मैं उसे नहीं टाल सकता, जो हुक्म अल्लाह की तरफ़ से सादिर हो. मैंने अल्लाह पर भरोसा किया है और भरोसा करने वालों को उसी पर भरोसा करना चाहिए.
68. और जब वे सब भाई उसी तरह मिस्र में दाख़िल हुए जिस तरह उनके वालिद ने हुक्म दिया था. लेकिन हुक्म अल्लाह की तरफ़ से आने वाला था, जिसे याक़ूब अलैहिस्सलाम नहीं टाल सकते थे. लेकिन यह याक़ूब अलैहिस्सलाम की दिली ख़्वाहिश थी, जिसे उसने पूरा किया. बेशक याक़ूब अलैहिस्सलाम साहिबे इल्म थे. हमने उन्हें इल्म अता किया था. लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते. 
69. और जब वे लोग यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के पास आए, तो उन्होंने अपने सगे भाई बिन यामीन को अपने पास जगह दी और आहिस्ता से कहा कि बेशक मैं तुम्हारा भाई यूसुफ़ अलैहिस्सलाम हूं. फिर तुम उसका ग़म न करो, जो कुछ वे तुम्हारे साथ करते रहे हैं, 
70. फिर जब यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने उन्हें सामान मुहैया करवा दिया, तो अपने भाई बिन यामीन के सामान में शाही प्याला रखवा दिया. फिर मुनादी करने वाले ने ऐलान किया कि ऐ क़ाफ़िले वालो ! ठहरो, यक़ीनन तुम्हीं लोग चोर लगते हो.
71. यह सुनकर वे लोग उनकी तरफ़ मुतावाज्जे हुए और कहने लगे कि तुम्हारी क्या चीज़ गुम हो गई है.
72. उन्होंने जवाब दिया कि हमें बादशाह का प्याला नहीं मिल रहा है. और जो उसे तलाश कर ले आएगा, तो उसे एक ऊंट के बोझ के बराबर ग़ल्ला ईनाम में मिलेगा. और हम इसके ज़िम्मेदार हैं.
73. वे लोग कहने लगे कि अल्लाह की क़सम. बेशक तुम जानते हो कि हम तुम्हारी सरज़मीन में इसलिए नहीं आए कि फ़साद करें और न हम चोर हैं.
74. ख़िदमतगार कहने लगे कि अगर तुम झूठे निकले, तो फिर चोर की क्या सज़ा होगी.
75. वे कहने लगे कि उसकी सज़ा यह है कि जिसके सामान में प्याला बरामद हो, तो वह ख़ुद ही उसका बदला है. यानी माल के बदले में उसे ग़ुलाम बना लिया जाए. हम ज़ालिमों को इसी तरह सज़ा दिया करते हैं.
76. फिर यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने अपने भाई बिन यामीन की बोरी से पहले दूसरे भाइयों के बोरों से तलाशी शुरू की. फिर उस प्याले को अपने भाई बिन यामीन की बोरी से बरामद किया. इस तरह हमने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को भाई बिन यामीन को रोकने की तदबीर बताई. वह अपने भाई बिन यामीन को मिस्र के बादशाह के क़ानून के मुताबिक़ रोक नहीं सकते थे, सिवाय उसके जिसे अल्लाह चाहे. हम जिसे चाहते हैं, उसके दर्जात बुलंद कर देते हैं. और दुनिया में हर साहिबे इल्म से बढ़कर एक और आलिम है.
77. बिन यामीन रोक लिए गए, तो वे लोग कहने लगे कि अगर उसने चोरी की है, तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है. बेशक इससे पहले इसका भाई यूसुफ़ भी चोरी कर चुका है. फिर यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने इस बात को अपने दिल में पोशीदा रखा और उन पर ज़ाहिर नहीं होने दिया. लेकिन यह कह दिया कि तुम्हारा हाल बहुत बुरा है. और अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है, जो कुछ तुम बयान कर रहे हो. 
78. इस पर वे लोग कहने लगे कि ऐ अज़ीज़े मिस्र ! इसके वालिद बहुत ज़ईफ़ हैं और इसे बहुत चाहते हैं. आप उसके बदले में हम में से किसी को रख लें और इसे छोड़ दें. बेशक हम देखते हैं कि आप मोहसिनों में से हैं. 
79. यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह की पनाह ! हमने जिसके पास से अपना सामान बरामद किया है, अगर उसे छोड़कर किसी दूसरे को गिरफ़्त में लेंगे, तो बेशक हम ज़ालिमों में से हो जाएंगे. 
80. फिर जब वे लोग यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की तरफ़ से मायूस हो गए, तो अलग खड़े होकर आपस में मशवरा करने लगे. उनके बड़े भाई लावी ने कहा कि क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारे वालिद ने तुमसे अल्लाह की क़सम लेकर अहद करवा लिया था और इससे पहले तुम लोग यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के हक़ में ज़्यादतियां कर चुके हो. इसलिए मैं इस सरज़मीन से हरगिज़ नहीं जाऊंगा, जब तक मेरे वालिद मुझे इजाज़त न दें या अल्लाह मुझे कोई हुक्म न दे. और अल्लाह बेहतरीन हुक्म देने वाला है.
81. तुम अपने वालिद के पास लौट जाओ और उनसे कहना कि ऐ हमारे अब्बा !  बेशक आपके बेटे ने चोरी की है. और हमने सिर्फ़ उसी बात की गवाही दी थी, जो हमें मालूम थी. और हम ग़ैब के मुहाफ़िज़ नहीं थे.
82. और आप बस्ती वालों से दरयाफ़्त कर लें और इस क़ाफ़िले वालों से भी मालूम कर लें. और बेशक हम बिल्कुल सच्चे हैं.
83. यह सुनकर याक़ूब अलैहिस्सलाम न कहा कि ऐसा नहीं है, बल्कि तुम्हारे नफ़्सों ने यह बात तुम्हारे लिए गढ़ ली है. फिर सब्र ही बेहतर है. उम्मीद है कि अल्लाह उन सबको मेरे पास ले आए. बेशक वह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
84. और याक़ूब अलैहिस्सलाम ने उन लोगों की तरफ़ से मुंह फेर लिया और कहने लगे कि अफ़सोस ! यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की जुदाई पर और ग़म से उनकी आंखें सफ़ेद हो गईं. और वह रंज व ग़म को ज़ब्त किए हुए थे. 
85. यह देखकर उनके बेटे कहने लगे कि अल्लाह की क़सम ! आप हमेशा यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को ही याद करते रहेंगे, यहां तक कि बीमार हो जाएं या हलाक ही हो जाएं. 
86. याक़ूब अलैहिस्सलाम ने कहा कि बेशक मैं तो अपनी बेक़रारी और ग़म की फ़रियाद सिर्फ़ अल्लाह ही से करता हूं और मैं अल्लाह की तरफ़ से जो कुछ जानता हूं, उसे तुम नहीं जानते.
87. उन्होंने कहा कि ऐ मेरे बेटो ! एक बार फिर मिस्र जाओ और यूसुफ़ अलैहिस्सलाम और उसके भाई को तलाश करके ले आओ और अल्लाह की रहमत से मायूस न होना. बेशक अल्लाह की रहमत से सिर्फ़ वही क़ौम मायूस होती है, जो काफ़िर है. 
88. फिर जब वे लोग यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के पास गए, तो कहने लगे कि ऐ अज़ीज़े मिस्र ! हम और हमारे घरवाले क़हत की वजह से बड़ी मुसीबत में मुब्तिला हैं. और हम यह थोड़ी सी रक़म लेकर आए हैं, तो हमें इसके बदले में पूरा ग़ल्ला दिलवा दो. और इसके अलावा हम पर कुछ सदक़ा भी कर दें. बेशक अल्लाह सदक़ा करने वालों को जज़ा देता है.
89. यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि क्या तुम जानते हो कि तुमने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम और उसके भाई बिन यामिन के साथ क्या सुलूक किया था, जब तुम जहालत में मुब्तिला थे.
90. यह सुनकर वे कहने लगे कि क्या वाक़ई तुम ही यूसुफ़ हो ? यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि हां, मैं ही यूसुफ़ अलैहिस्सलाम हूं और यह मेरा भाई बिन यामीन है. बेशक अल्लाह ने हम पर अहसान किया है. बेशक जो शख़्स उससे डरता है और सब्र करता है, तो यक़ीनन अल्लाह मोहसिनों का अज्र ज़ाया नहीं करता.
91. वे लोग कहने लगे कि अल्लाह की क़सम ! बेशक अल्लाह ने तुम्हें हम पर फ़ज़ीलत दी है और बेशक हम ही ख़तावार थे.
92. यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि आज से तुम पर कोई मलामत नहीं है. अल्लाह तुम्हें बख़्शे और वह सब मेहरबानों से ज़्यादा मेहरबान है. 
93. और तुम मेरी क़मीज़ ले जाओ और उसे अब्बा के चेहरे पर डाल देना. फिर वह बीना हो जाएंगे और देखने लगेंगे. और फिर तुम अपने सब घरवालों को मेरे पास ले आओ.
94. और जब क़ाफ़िला मिस्र से रवाना हुआ, तो कनआन में उनके वालिद याक़ूब अलैहिस्सलाम ने अपने घरवालों से कहा कि मैं यूसुफ़ की ख़ुशबू महसूस कर रहा हूं. अगर तुम मुझे ज़ईफ़ी की वजह से बहका हुआ न समझो. 
95. वे लोग कहने लगे कि अल्लाह की क़सम ! बेशक आप क़दीमी मुहब्बत में मुब्तिला हैं. 
96. फिर जब यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की ख़ुशख़बरी देने वाला आया और उसने उनकी क़मीज़ को उनके चेहरे पर डाल दिया, तो याक़ूब अलैहिस्सलाम की बीनाई लौट आई. उन्होंने बेटों से कहा कि क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि बेशक मैं अल्लाह की तरफ़ से जो कुछ जानता हूं, उसे तुम नहीं जानते. 
97. वे कहने लगे कि ऐ हमारे अब्बा ! हमारे लिए अल्लाह से हमारे गुनाहों के लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगो. बेशक हम ही ख़तावार थे. 
98. याक़ूब अलैहिस्सलाम ने कहा कि अनक़रीब ही मैं अपने परवरदिगार से तुम्हारे लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगूंगा. बेशक वह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
99. फिर जब वे सब लोग यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के पास आए, तो यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने शहर से बाहर आकर शाही जुलूस की सूरत में उनका इस्तक़बाल किया और अपने वालिद की ताज़ीम करते हुए उन्हें अपने पास जगह दी. और ख़ुश आमदीद कहते हुए कहा कि अब इंशा अल्लाह अमन के साथ मिस्र में क़याम करो. 
100. और मिस्र पहुंचकर यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने अपने वालिदैन को ऊंचे तख़्त पर बिठाया और वे सब यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की ताज़ीम के लिए सजदे में गिर पड़े. और उस वक़्त यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ मेरे अब्बा ! यह मेरे उस ख़्वाब की ताबीर है, जो मैंने बहुत पहले देखा था. और बेशक मेरे परवरदिगार ने उसे सच कर दिखाया. और बेशक उसने मुझ पर बड़ा अहसान किया, जब उसने मुझे ज़िन्दान से निकाला और तुम सबको यहां ले आया. इसके बावजूद कि शैतान ने मेरे और मेरे भाइयों के दरम्यान फ़साद पैदा कर दिया था. और बेशक मेरा परवरदिगार जिस चीज़ को चाहे आसान कर दे. बेशक वह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है. 
101. उसके बाद यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! बेशक तूने मुझे मुल्क की बादशाहत अता की और मुझे ख़्वाबों की ताबीर का इल्म सिखाया. ऐ आसमान और ज़मीन की तख़लीक़ करने वाले ! तू ही दुनिया और आख़िरत में मेरा कारसाज़ है. तू मुझे मुसलमान होने की हाल में वफ़ात देना और मुझे स्वालिहीन बन्दों में शामिल करना. 
102. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यह क़िस्सा ग़ैब की ख़बरों में से है, जिसे हम तुम्हारे पास वही के ज़रिये भेज रहे हैं. और तुम उस वक़्त उनके पास नहीं थे, जब यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई साज़िश के लिए जमा हो रहे थे और वे मकर कर रहे थे कि उन्हें कुएं में डालेंगे. 
103. और बहुत से लोग ईमान लाने वाले नहीं हैं, अगरचे तुम कितना ही चाहो. 
104. और तुम उनसे कोई उजरत नहीं चाहते. यह क़ुरआन तमाम आलमों के लिए ज़िक्र यानी नसीहत है.
105. और आसमानों और ज़मीन में अल्लाह की क़ुदरत की कितनी ही निशनियां हैं, जिन पर वे लोग गुज़रते हैं. लेकिन वे उनसे मुंह फेरे रहते हैं.
106. और उनमें से बहुत से लोग अल्लाह पर ईमान नहीं लाते, लेकिन वे मुशरिक हैं.
107. फिर क्या वे लोग इस बात से बेख़ौफ़ हो गए हैं कि उन पर अल्लाह के अज़ाब की छा जाने वाली आफ़त आ जाए या उन पर अचानक क़यामत ही आ जाए और उन्हें शऊर भी न हो.
108. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि यही मेरा रास्ता है कि मैं लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाता हूं. मैं बसीरत पर क़ायम हूं. मैं भी और वह भी, जो मेरी इताअत करता है. और अल्लाह पाक ज़ात है और मैं मुशरिकों में से नहीं हूं.
109. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हमने तुमसे पहले भी मुख़्तलिफ़ बस्तियों में कुछ मर्दों को पैग़म्बर बनाकर भेजा था, जिन पर हम वही नाज़िल करते थे. क्या उन लोगों ने ज़मीन में चल फिर कर नहीं देखा कि जो लोग उनसे पहले गुज़रे हैं, उनका क्या अंजाम हुआ. और बेशक आख़िरत का घर ही परहेज़गारी इख़्तियार करने वाले लोगों के लिए बेहतर है. क्या फिर भी तुम नहीं समझते.
110. यहां तक कि जब रसूल मायूस हो गए और उन मुनकिर क़ौमों ने गुमान कर लिया कि उनसे झूठ बोला गया है. यानी उन पर कोई अज़ाब नहीं आएगा, तो उन रसूलों को हमारी मदद मिली. फिर हमने जिसे चाहा निजात दी. और गुनाहगार क़ौम से हमारा अज़ाब टाला नहीं जाता. 
111. बेशक उनके क़िस्सों में अक़्लमंद लोगों के लिए इबरत है. यह क़ुरआन ऐसी हदीस यानी कलाम नहीं है, जिसे गढ़ लिया जाए. यह तो आसमानी किताबों की तसदीक़ है, जो इससे पहले नाज़िल हुई हैं और हर चीज़ की तफ़सील है और हिदायत है और रहमत है उस क़ौम के लिए, जो ईमान लाती है.

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