सूरह तौबा मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 129 आयतें हैं.
1. ऐ ईमान वालो ! अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ़ से बेज़ारी का ऐलान है, उन मुशरिक लोगों के लिए जिन्होंने तुमसे अमन का अहद किया था.
2. ऐ मुशरिको ! फिर तुम ज़मीन में चार महीने तक चल फिर लो और जान लो कि तुम अल्लाह को आजिज़ नहीं कर सकते. और बेशक अल्लाह काफ़िरों को रुसवा करने वाला है.
3. और अल्लाह और उसके रसूल की जानिब से तमाम लोगों के लिए हज अकबर के दिन मुनादी की जाती है कि अल्लाह और उसका रसूल मुशरिकों से बेज़ार है. फिर अगर तुम तौबा कर लो, तो वह तुम्हारे लिए बेहतर है और अगर तुमने मुंह फेरा, तो जान लो कि तुम अल्लाह को आजिज़ नहीं कर सकते. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम कुफ़्र करने वाले लोगों को दर्दनाक अज़ाब की ख़बर दे दो.
4. सिवाय उन मुशरिकों के, जिनसे तुमने अहद किया था. फिर उन्होंने तुम्हारे साथ अहदे वफ़ा में कोई कमी नहीं की और न तुम्हारे ख़िलाफ़ किसी की मदद की. फिर तुम उनके अहद को उनकी मुक़र्रर मुद्दत तक पूरा करो. बेशक अल्लाह परहेज़गारों को पसंद करता है.
5. फिर जब हुरमत वाले चार महीने गुज़र जाएं, तो मुशरिकों को क़त्ल कर दो, जहां कहीं भी तुम उन्हें पाओ और उन्हें गिरफ़्तार कर लो और उन्हें क़ैद कर दो और उन्हें पकड़ने के लिए हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो. फिर अगर वे तौबा कर लें और पाबंदी से नमाज़ पढ़ें और ज़कात अदा करें, तो उनका रास्ता छोड़ दो. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
6. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर मुशरिकों में से कोई तुमसे पनाह मांगे, तो उसे पनाह दे दो, यहां तक कि वह अल्लाह का कलाम सुन ले. फिर तुम उसे उसकी अमन की जगह पहुंचा दो, क्योंकि वह क़ौम हक़ के बारे में नहीं जानती.
7. भला मुशरिकों का कोई अहद अल्लाह के पास और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास कैसे हो सकता है, सिवाय उन लोगों के जिनसे तुमने मस्जिदुल हराम यानी ख़ाना ए काबा के पास अहद किया है. फिर जब तक वे तुम्हारे साथ अहद क़ायम रखें, तुम भी उनके साथ अहद क़ायम रखो. बेशक अल्लाह परहेज़गारों को पसंद करता है.
8. और उन मुशरिकों का अहद कैसे रह सकता है. और अगर वे तुम पर ग़ालिब आ जाएं, तो न तुम्हारे किसी रिश्ते का लिहाज़ करें और न किसी अहद का. वे तुम्हें अपनी ज़बान से तो राज़ी कर देते हैं, लेकिन उनके दिल उसे नहीं मानते और उनमें से बहुत से लोग नाफ़रमान हैं.
9. और उन लोगों ने अल्लाह की आयतों के बदले थोड़ी सी क़ीमत हासिल कर ली. फिर लोगों को उसके रास्ते से रोकने लगे. बेशक वह बहुत बुरा है, जो कुछ वे किया करते हैं.
10. वे लोग किसी मोमिन के मामले में न किसी रिश्ते का लिहाज़ करते हैं और न किसी अहद का. और यही वे लोग हैं, जो हद से तजावुज़ करने वाले हैं.
11. फिर अगर वे लोग तौबा कर लें और पाबंदी से नमाज़ पढ़ें और ज़कात अदा करें, तो वे तुम्हारे दीनी भाई हैं. और हम अपनी आयतें उस क़ौम के लिए तफ़सील से बयान करते हैं, जो इल्म रखते हैं.
12. और अगर वे लोग अहद के बाद अपनी क़समें तोड़ दें और तुम्हारे दीन में ताने दें, तो तुम उन कुफ़्र के सरग़नों से जंग करो. बेशक उनकी क़समों का कोई ऐतबार नहीं है. शायद वे अपनी सरकशी से बाज़ आएं.
13. क्या तुम ऐसी क़ौम से जंग नहीं करोगे, जिसने अपनी क़समें तोड़ दीं और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
को उनके वतन से निकालने का इरादा कर लिया और उन्होंने ही तुमसे जंग की पहल की. क्या तुम उनसे डरते हो, तो अल्लाह इसका का मुस्तहक़ है कि तुम उससे डरो. अगर तुम ईमान वाले हो.
14. फिर तुम उन लोगों से जंग करो. अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें अज़ाब देगा और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुक़ाबले में तुम्हारी मदद करेगा और मोमिन क़ौम के दिलों को शिफ़ा बख़्शेगा.
15. और हम उन मोमिनों के दिलों से घुटन को दूर कर देंगे और अल्लाह जिसकी चाहता है तौबा क़ुबूल करता है. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
16. क्या तुम लोग यह गुमान करते हो कि तुम्हें यूं ही छोड़ दिया जाएगा, जबकि अल्लाह ने अभी उन लोगों को नहीं जाना यानी ज़ाहिर नहीं किया, जिन्होंने तुम में से अल्लाह की राह में जिहाद किया है और जिन्होंने अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मोमिनों के सिवा किसी को अपना राज़दार नहीं बनाया. और अल्लाह उन आमाल से बड़ा बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.
17. मुशरिकों का यह काम नहीं कि वे अल्लाह की मस्जिदों को आबाद करें, जबकि वे ख़ुद अपने कुफ़्र के गवाह हैं. यही वे लोग हैं, जिनके सब आमाल बर्बाद हो गए और वे दोज़ख़ में हमेशा रहेंगे.
18. अल्लाह की मस्जिदों को सिर्फ़ वही आबाद करता है, जो अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान लाए और पाबंदी से नमाज़ पढ़े और ज़कात अदा करे और अल्लाह के सिवा किसी से न डरे. फिर उम्मीद है कि वही लोग हिदायत पाने वालों में से हो जाएंगे.
19. क्या तुम लोगों ने हाजियों को पानी पिलाने और मस्जिदुल हराम यानी ख़ाना ए काबा को आबाद करने को उस शख़्स के आमाल के बराबर क़रार दिया है, जो अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान ले आया और उसने अल्लाह की राह में जिहाद किया. ये दोनों अल्लाह के नज़दीक बराबर नहीं हो सकते और अल्लाह ज़ालिमों की क़ौम को हिदायत नहीं देता.
20. जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह की राह में अपना माल व दौलत और अपनी जानों से जिहाद किया, वे अल्लाह के नज़दीक दर्जे में कहीं बढ़कर हैं और यही वे लोग हैं, जो आला दर्जे पर फ़ाइज़ होने वाले हैं.
21. उनका परवरदिगार उन्हें अपनी रहमत और अपनी ख़ुशनूदी और जन्नत के उन बाग़ों की ख़ुशख़बरी देता है, जिनमें उनके लिए दाइमी नेअमतें हैं.
22. वे लोग उन बाग़ों में हमेशा-हमेशा रहेंगे. बेशक अल्लाह के पास बड़ा अज्र है.
23. ऐ ईमान वालो ! तुम अपने बाप दादा और भाइयों को भी दोस्त न बनाओ, अगर वे ईमान के मुक़ाबले कुफ़्र को पसंद करें. और तुम में जो भी उनसे दोस्ती करेंगे, तो वही लोग ज़ालिम हैं.
24. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि तुम्हारे बाप दादा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई और तुम्हारी बीवियां और तुम्हारे कुनबे वाले और तुम्हारे माल जो तुमने कमाये और तिजारत व कारोबार, जिनके नुक़सान से तुम डरते हो और वे मकान जिन्हें तुम पसंद करते हो, तुम्हारे नज़दीक अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उसकी राह में जिहाद करने से ज़्यादा अज़ीज़ हैं, तो तुम इंतज़ार करो, यहां तक कि अल्लाह के अज़ाब का हुक्म आ जाए. और अल्लाह नाफ़रमान क़ौम को हिदायत नहीं देता.
25. बेशक अल्लाह ने बहुत सी जगह तुम्हारी मदद की और ख़ासकर जंगे हुनैन के दिन जब तुम अपनी कसरत पर इतरा रहे थे. फिर भी वह तुम्हें कुछ फ़ायदा नहीं दे सकी और ज़मीन अपनी फ़राख़ी के बावजूद तुम पर तंग हो गई. फिर तुम पीठ फेरकर भाग निकले.
26. फिर अल्लाह ने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मोमिनों पर अपनी तस्कीन नाज़िल की और उसने फ़रिश्तों के लश्कर उतारे, जिन्हें तुम न देख सके. और उसने उन लोगों को अज़ाब दिया, जो कुफ़्र किया करते थे. और काफ़िरों की यही सज़ा है.
27. फिर अल्लाह उसके बाद भी जिसकी चाहता है तौबा क़ुबूल करता है और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
28. ऐ ईमान वालो ! मुशरिक तो निजासत यानी नापाकी में हैं. फिर वे अपने इस साल के बाद मस्जिदुल हराम यानी ख़ाना ए काबा के क़रीब न आने पाएं. और अगर तुम्हें मुफ़लिसी का ख़ौफ़ हो, तो अनक़रीब अल्लाह चाहेगा, तो अपने फ़ज़ल से तुम्हें ग़नी कर देगा. बेशक अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
29. ऐ ईमान वालो ! तुम अहले किताब में से उन लोगों के साथ भी जंग करो, जो न अल्लाह पर ईमान रखते हैं और न रोज़े आख़िरत पर और न उन चीज़ों को हराम जानते हैं, जिन्हें अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हराम क़रार दिया है और न दीने हक़ को इख़्तियार करते हैं, यहां तक कि वे अपने हाथ से जज़िया दें और रुसवा होकर रहें.
30. और यहूदी कहते हैं कि अज़ीज़ अल्लाह के बेटे हैं और नसरानी यानी ईसाई कहते हैं कि मसीह अल्लाह के बेटे हैं. ये सब उनकी ज़बानी बातें हैं. ये उन लोगों की तरह बातें कर रहे हैं, जो उनसे पहले कुफ़्र कर चुके हैं. अल्लाह उन्हें हलाक करे. वे कहां भटक रहे हैं.
31. उन लोगों ने अल्लाह के सिवा अपने आलिमों और राहिबों को अपना परवरदिगार बना लिया और मरियम अलैहिस्सलाम के बेटे मसीह अलैहिस्सलाम को भी. हालांकि उन्हें इसके सिवाय कोई हुक्म नहीं दिया गया था कि वे वाहिद अल्लाह ही की इबादत करें, जिसके सिवा कोई माबूद नहीं. अल्लाह उनसे पाक है, जिन्हें वे उसका शरीक ठहराते हैं.
32. वे लोग चाहते हैं कि अपनी फूंकों से अल्लाह के नूर को बुझा दें और अल्लाह इसके सिवा कुछ नहीं चाहता कि वह अपने नूर को पूरा करे. अगरचे काफ़िरों को वह कितना ही नागवार गुज़रे.
33. वह अल्लाह ही है, जिसने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हिदायत और दीने हक़ के साथ भेजा, ताकि उन्हें तमाम दीनों पर ग़ालिब कर दे. अगरचे मुशरिकों को वह कितना ही नागवार गुज़रे.
34. ऐ ईमान वालो ! बेशक अहले किताब में से बहुत से उलेमा और राहिब लोगों का माल नाहक़ खाते हैं और लोगों को अल्लाह के रास्ते से रोकते हैं. और जो लोग सोना और चांदी जमा करते हैं और उसे अल्लाह की राह में ख़र्च नहीं करते, तो ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उन्हें दर्दनाक अज़ाब की ख़बर दे दो.
35. जिस दिन वह सोना और चांदी जहन्नुम की आग में तपाया जाएगा. फिर उससे उनकी पेशानियां और उनके पहलू और उनकी पीठें दाग़ी जाएंगी. और उनसे कहा जाएगा कि ये वही माल है, जिसे तुमने अपने लिए जमा किया था. फिर तुम उसका ज़ायक़ा चखो, जो तुम जमा किया करते थे.
36. बेशक अल्लाह के नज़दीक महीनों का शुमार अल्लाह की किताब में बारह महीने लिखा हुआ है, जिस दिन से उसने आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ की है. उनमें से चार महीने यानी मुहर्रम, रजब, ज़ुलक़ादा और ज़ुलहिज्जा हुरमत वाले हैं. यही सीधा दीन है, तो तुम इन चार महीनों में ख़ुद पर ज़ुल्म न किया करो और तुम भी तमाम मुशरिकों से उसी तरह जंग किया करो जिस तरह वे सब तुमसे जंग करते हैं. और जान लो कि अल्लाह परहेज़गारों के साथ है.
37. हुरमत वाले महीनों को आगे पीछे करना भी कुफ़्र में ज़्यादती है. इससे उन कुफ़्र करने वाले लोगों को गुमराह किया जाता है, जो एक ही महीने को एक साल हलाल मान लेते हैं और दूसरे साल उसी महीने को हराम क़रार देते हैं, ताकि उस महीने का शुमार पूरा कर दें, जिसे अल्लाह ने हुरमत बख़्शी है. और उस महीने को हलाल भी कर दें, जिसे अल्लाह ने हराम किया है. उन लोगों के लिए उनके बुरे आमाल आरास्ता कर दिए गये हैं और अल्लाह काफ़िरों की क़ौम को हिदायत नहीं देता.
38. ऐ ईमान वालो ! तुम्हें क्या हुआ है कि जब तुमसे कहा जाता है कि अल्लाह की राह में जिहाद के लिए निकलो, तो तुम बोझल होकर ज़मीन की तरफ़ झुके जाते हो. क्या तुम आख़िरत के बदले दुनियावी ज़िन्दगी को पसंद करते हो. फिर आख़िरत के मुक़ाबले में दुनियावी ज़िन्दगी का साजो सामान थोड़े सा है.
39. अगर तुम जिहाद के लिए नहीं निकलोगे, तो अल्लाह तुम्हें दर्दनाक अज़ाब में मुब्तिला कर देगा और तुम्हारे बदले किसी दूसरी क़ौम को ले आएगा और तुम उसे कुछ भी नुक़सान नहीं पहुंचा सकते और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
40. अगर तुम उन रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मदद नहीं करोगे, तो बेशक अल्लाह ने उस वक़्त उनकी मदद की थी जब काफ़िरों ने उन्हें मक्का से निकाल दिया था. हिजरत करने वालों में वे दूसरे थे. जब वे दोनों ग़ारे सौर में थे, तो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने साथी अबु बक़र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से कहा कि घबराओ नहीं. बेशक अल्लाह हमारे साथ है. फिर अल्लाह ने उन पर अपनी तस्कीन नाज़िल की और उनकी फ़रिश्तों के ऐसे लश्करों के ज़रिये मदद की, जिन्हें तुमने नहीं देखा और उसने कुफ़्र करने वाले लोगों की बात नीची कर दी. और अल्लाह का कलाम तो बुलंद व बाला है. और अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
41. ऐ ईमान वालो ! तुम हल्के हो या बोझल हर हाल में निकल पड़ो और अपने माल व दौलत और अपनी जानों से अल्लाह की राह में जिहाद करो. यह तुम्हारे लिए बेहतर है. अगर तुम जानते हो.
42. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अगर माले ग़नीमत क़रीब और सफ़र आसान होता, तो वे मुनाफ़िक़ भी तुम्हारा पीछे चल पड़ते, लेकिन उन्हें दूर का सफ़र मुश्किल नज़र आया और वे अनक़रीब अल्लाह की क़समें खाकर कहेंगे कि अगर हम में सकत होती, तो हम ज़रूर तुम्हारे साथ चल पड़ते. वे लोग झूठी क़समें खाकर ख़ुद को हलाकत में डाल रहे हैं और अल्लाह जानता है कि बेशक वे झूठे हैं.
43. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अल्लाह ने तुमसे दरगुज़र किया. तुमने उन्हें जिहाद में पीछे रह जाने की इजाज़त ही क्यों दी, यहां तक कि वे लोग भी तुम पर ज़ाहिर हो जाते, जो सच बोलने वाले हैं और तुम झूठों को भी जान लेते.
44. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जो लोग अल्लाह और रोज़े आख़िरत पर ईमान रखते हैं, वे तुमसे अपने माल और अपनी जानों से जिहाद न करने की इजाज़त नहीं मांगते और अल्लाह परहेज़गारों से ख़ूब वाक़िफ़ है.
45. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुमसे जिहाद में शरीक न होने की इजाज़त तो सिर्फ़ वही लोग मांगते हैं, जो अल्लाह और रोजे़ आख़िरत पर ईमान नहीं रखते और उनके दिल शक व शुबहा में मुब्तिला रहते हैं. फिर वे अपने शक की वजह से भटक रहे हैं.
46. और अगर उन लोगों ने जिहाद के लिए निकलने का इरादा किया होता, तो उसके लिए कुछ न कुछ सामान तो ज़रूर मुहैया कर लेते, लेकिन अल्लाह को उनका जिहाद के लिए उठना गवारा नहीं था. इसलिए उसने उन्हें रोक दिया और उनसे कह दिया गया कि तुम बैठने वालों के साथ बैठे रहो.
47. अगर वे लोग तुम में शामिल होकर निकलते, तो तुम्हारी वहशत बढ़ा देते और तुम्हारे दरम्यान फ़ितना कराने के लिए दौड़ धूप करते फिरते. और तुम में उनके कुछ जासूस मौजूद हैं. और अल्लाह ज़ालिमों से ख़ूब वाक़िफ़ है.
48. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक उन लोगों ने इससे पहले भी फ़ितना पैदा करने की कोशिश की थी और तुम्हारे बहुत से कामों में उलट फेर करने की तदबीरें भी करते रहे हैं, यहां तक कि हक़ आ गया और अल्लाह का हुक्म ग़ालिब हो गया और वह उन्हें नागवार गुज़रता रहा.
49. और उन लोगों में से वह शख़्स भी है, जो कहता है कि आप मुझे इजाज़त दे दें कि मैं जिहाद में न जाऊं और मुझे फ़ितने में मुब्तिला न करें. जान लो कि वे लोग ख़ुद ही फ़ितने में गिर पड़े हैं. और बेशक जहन्नुम काफ़िरों को घेरे हुए है.
50. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अगर तुम्हें कोई भलाई पहुंचती है, तो वह उन मुनाफ़िक़ों को बुरी लगती है और अगर तुम पर कोई मुसीबत आ पड़ती है, तो वे कहते हैं कि हमने तो पहले ही अपना काम ऐहतियात से किया था और वे ख़ुशियां मनाते हुए वापस लौटते हैं.
51. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि हम पर हरगिज़ कोई मुसीबत नहीं आ सकती, सिवाय उसके जो अल्लाह ने हमारे लिए लिख दी है. वही हमारा मौला है और मोमिनों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए.
52. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या तुम हमारे लिए दो भलाइयों यानी फ़तह और शहादत में से एक ही का इंतज़ार कर रहे हो. और हम तुम्हारे लिए यह इंतज़ार कर रहे हैं कि अल्लाह अपनी तरफ़ से तुम पर कोई अज़ाब नाज़िल करता है या हमारे हाथों से दिलाता है. फिर तुम भी इंतज़ार करो और हम भी तुम्हारे साथ मुंतज़िर हैं.
53. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि तुम लोग चाहे ख़ुशी से ख़र्च करो या नागवारी से. तुमसे हरगिज़ कुछ भी क़ुबूल नहीं जाएगा. बेशक तुम नाफ़रमान क़ौम हो.
54. और उन लोगों के नफ़क़ात यानी सदक़े क़ुबूल न किए जाने की इसके सिवा और कोई वजह नहीं है कि वे अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कुफ़्र करते हैं और नमाज़ पढ़ने के लिए नहीं आते और आते भी हैं, तो अलकसाये हुए और वे अल्लाह की राह में ख़र्च भी नहीं करते और करते भी हैं तो नागवारी से.
55. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम्हें उन लोगों के माल और उनकी औलादें ताज्जुब में न डाल दें. फिर अल्लाह यह चाहता है कि उन्हें उनकी चीज़ों की वजह से दुनियावी ज़िन्दगी में अज़ाब में मुब्तिला कर दे और जब उनकी जानें निकलें, तो वे काफ़िर ही हों.
56. और वे मुनाफ़िक़ अल्लाह की क़समें खाते हैं कि बेशक वे तुम ही में से हैं. हालांकि वे तुम में से नहीं हैं, लेकिन वह क़ौम डरती है.
57. अगर उन लोगों को कोई पनाहगाह या ग़ार या सुरंग मिल जाए, तो वे रस्सियां तुड़ाते हुए तेज़ी से उसकी तरफ़ पलट जाएं.
58. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! उनमें से कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो ज़कात की तक़सीम में तुम्हें ताने देते हैं. फिर अगर उन्हें उनमें से कुछ दे दिया जाए, तो वे राज़ी हो जाते हैं और अगर उन्हें उसमें से कुछ न दिया जाए, तो वे फ़ौरन नाराज़ हो जाते हैं.
59. और कितना अच्छा होता अगर वे लोग इस पर राज़ी हो जाते, जो अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें अता किया था और कहते कि हमारे लिए अल्लाह ही काफ़ी है. अनक़रीब अल्लाह हमें अपने फ़ज़ल से और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अता करेंगे. बेशक हम अल्लाह की तरफ़ राग़िब हैं.
60. बेशक ज़कात सिर्फ़ फ़क़ीरों और मिस्कीनों यानी मोहताजों और उसकी वसूली पर मुक़र्रर किए गये कारिन्दों और ऐसे लोगों के लिए है, जिनकी दिलदारी मक़सूद हो और गर्दनों यानी गु़लामों को आज़ाद कराने और क़र्ज़दारों का बोझ उतारने और अल्लाह की राह में जिहाद करने वालों और मुसाफ़िरों के लिए है. यह सब अल्लाह की तरफ़ से फ़र्ज़ किया गया है. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
61. और उन मुनाफ़िक़ों में वे लोग भी हैं, जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अज़ीयतें देते हैं और कहते हैं कि वे तो सिर्फ़ कान हैं, यानी जो कहो मान लेते हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि तुम्हारे लिए भलाई के कान हैं. वे अल्लाह पर ईमान रखते हैं और मोमिनों की बातों पर यक़ीन करते हैं और तुम में से जो लोग ईमान लाए हैं, उनके लिए रहमत हैं. और जो लोग अल्लाह के रसूल को अज़ीयतें देते हैं, उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है.
62. ऐ ईमान वालो ! वे मुनाफ़िक़ तुम्हारे सामने अल्लाह की क़समें खाते हैं, ताकि तुम्हें राज़ी कर लें. हालांकि अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ज़्यादा मुस्तहक़ हैं कि वे उन्हें राज़ी करें. अगर वे लोग मोमिन हैं.
63. क्या वे लोग नहीं जानते कि जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त करता है, तो बेशक उसके लिए जहन्नुम की आग है, जिसमें वह हमेशा रहेगा. यह बड़ी रुसवाई है.
64. वे लोग डरते हैं कि मुसलमानों पर कोई ऐसी सूरत नाज़िल न कर दी जाए, जो उन्हें उन मुनाफ़िक़ों के दिलों के राज़ से आगाह कर दे. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि तुम लोग मज़ाक़ उड़ाते रहो. बेशक अल्लाह उसे ज़ाहिर करने वाला है, जिससे तुम डरते हो.
65. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर तुम उनसे दरयाफ़्त करो, तो वे ज़रूर यही कहेंगे कि हम तो सिर्फ़ गुफ़्तगू और दिल्लगी कर रहे थे. तुम कह दो कि क्या तुम अल्लाह और उसकी आयतों और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ मज़ाक़ कर रहे थे.
66. तुम बहाने मत बनाओ. बेशक तुम ईमान लाने के बाद काफ़िर हो गए. अगर हम तुम में एक तबक़े को मुआफ़ कर दें, तब भी दूसरे को अज़ाब ज़रूर देंगे, क्योंकि वे गुनाहगार हैं.
67. मुनाफ़िक़ मर्द और मुनाफ़िक़ औरतें एक दूसरे के जिन्स से हैं. वे लोग बुराई का हुक्म देते हैं और नेक कामों से मना करते हैं और अपने हाथ अल्लाह की राह में ख़र्च करने से बंद रखते हैं. उन्होंने अल्लाह को भुला दिया, तो अल्लाह ने भी उन्हें भुला दिया. बेशक मुनाफ़िक़ नाफ़रमान हैं.
68. अल्लाह ने मुनाफ़िक़ मर्दों और मुनाफ़िक़ औरतों और काफ़िरों से जहन्नुम की आग का वादा किया है कि वे उसमें हमेशा रहेंगे. वही उनके लिए काफ़ी है. और अल्लाह ने उन पर लानत की है और उनके लिए दाइमी अज़ाब है.
69. ऐ मुनाफ़िक़ो ! तुम्हारी मिसाल उन लोगों जैसी है, जो तुमसे पहले थे. वे तुमसे ज़्यादा क़ूवत वाले और माल व औलाद में भी कहीं बढ़कर थे. फिर उन्होंने अपने दुनियावी हिस्से से फ़ायदा उठाया, तो तुम भी अपने हिस्से से उसी तरह फ़ायदा उठा लो, जैसे तुमसे पहले लोगों ने अपने हिस्से से फ़ायदा उठाया था. फिर तुम भी उसी तरह बातिल में दाख़िल हो गए, जैसे वे लोग दाख़िल हुए थे. उन लोगों के आमाल दुनिया और आख़िरत में बर्बाद हो गए और वही लोग नुक़सान उठाने वाले हैं.
70. क्या उन मुनाफ़िक़ों के पास उन लोगों की ख़बर नहीं पहुंची, जो उनसे पहले थे. नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम और हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद और सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद और इब्राहीम अलैहिस्सलाम की क़ौम और मदयन के बाशिन्दों यानी शुऐब अलैहिस्सलाम की क़ौम और उन बस्तियों में रहने वाले, जो उलट दी गई थीं यानी लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम के पास भी उनके रसूल वाज़ेह निशानियां लेकर आए थे, लेकिन उन्होंने नाफ़रमानी की. फिर अल्लाह के शायाने शान नहीं कि वह उन पर ज़ुल्म करता, लेकिन वे लोग अपनी जानों पर ही ज़ुल्म करते थे.
71. और मोमिन मर्द और मोमिन औरतें एक दूसरे के रफ़ीक़ हैं और वे भलाई का हुक्म देते हैं और बुराई से रोकते हैं और पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हैं और ज़कात अदा करते हैं और अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करते हैं. यही वे लोग हैं, जिन पर अल्लाह रहम करेगा. बेशक अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
72. अल्लाह ने मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों से जन्नत के उन बाग़ों का वादा किया है, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. वे उनमें हमेशा रहेंगे. उन दाइमी बाग़ों में पाकीज़ा घर होंगे. और अल्लाह की ख़़ुशनूदी सबसे बढ़कर है. यह बड़ी कामयाबी है.
73. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद करो और उन पर सख़्ती करो और उनका ठिकाना जहन्नुम है और वह बहुत बुरी जगह है.
74. वे मुनाफ़िक़ अल्लाह की क़समें खाते हैं कि उन्होंने कुछ नहीं कहा. हालांकि उन लोगों ने कुफ़्र की बात कही है और वे इस्लाम लाने के बाद काफ़िर हो गए और उन्होंने जो इरादा किया था, उसे हासिल न कर सके और उन्होंने सिर्फ़ इसका बदला दिया कि उन्हें अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने फ़ज़ल से ग़नी कर दिया. फिर अगर वे तौबा कर लें, तो उनके लिए बेहतर है और अगर वे हक़ से मुंह फेरे रहेंगे, तो अल्लाह उन्हें दुनिया और आख़िरत में दर्दनाक अज़ाब देगा और उनके लिए ज़मीन में न कोई सरपरस्त होगा और न कोई मददगार.
75. और उन मुनाफ़िक़ों में वे लोग भी हैं, जिन्होंने अल्लाह से अहद किया था कि अगर हमें अपने फ़ज़ल से माल व दौलत अता की, तो हम ज़रूर सदक़ा दिया करेंगे और नेक बन्दों में से हो जाएंगे.
76. फिर जब अल्लाह ने अपने फ़ज़ल से उन लोगों को माल व दौलत अता कर दी, तो वे उसमें बुख़्ल करने लगे और अपने अहद से मुंह फेर कर चल दिए.
77. फिर अल्लाह ने बुख़्ल के बदले उन लोगों के दिलों में निफ़ाक़ डाल दिया, उस दिन तक के लिए जब वे उससे मिलेंगे, क्योंकि उन्होंने अल्लाह से किए अपने वादे की ख़िलाफ़वर्ज़ी की और और इसलिए भी कि वे झूठ बोला करते थे.
78. क्या वे लोग नहीं जानते कि अल्लाह उनके राज़ों और उनकी सरगोशियों से ख़ूब वाक़िफ़ है और वह ग़ैब का जानने वाला है.
79. जो लोग ख़ुशी से सदक़ा देने वाले मोमिनों पर दिखावे का इल्ज़ाम लगाते हैं और उन मोमिनों पर भी इल्ज़ाम लगाते हैं, जो अपनी मेहनत और मशक़्क़त के सिवा कुछ नहीं पाते. फिर वे मुनाफ़िक़ उनका मज़ाक़ उड़ाते हैं. अल्लाह उन्हें उनके मज़ाक़ की सज़ा देगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है.
80. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम चाहे उन मुनाफ़िक़ों के लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगो या उनके लिए मग़फ़िरत की दुआ न मांगो, उनके लिए सब बराबर है. अगर तुम उनके लिए सत्तर बार भी मग़फ़िरत की दुआ मांगोगे, तो भी अल्लाह उन्हें हरगिज़ नहीं बख़्शेगा, क्योंकि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ कुफ़्र किया और अल्लाह नाफ़रमान क़ौम को हिदायत नहीं देता.
81. जंगे तबूक में रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त की वजह से जिहाद में पीछे रह जाने वाले मुनाफ़िक़ अपने बैठे रहने पर बहुत ख़ुश थे. उन्हें यह बात नागवार थी कि वे अपने माल और अपनी जानों से अल्लाह की राह में जिहाद करें. वे कहते थे कि इस गर्मी में घर से मत निकलो. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि जहन्नुम की आग सबसे ज़्यादा गरम है. काश ! वे लोग समझते.
82. फिर उन लोगों को चाहिए कि वे कम हंसे और ज़्यादा रोयें. यह उसकी जज़ा है, जो कुछ वे कमाते थे.
83. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर अगर अल्लाह तुम्हें तुम उन मुनाफ़िक़ों में से किसी तबक़े की तरफ़ दोबारा वापस ले जाए और वे फिर तुमसे जिहाद के लिए निकलने की इजाज़त मांगे, तुम कह दो कि तुम मेरे साथ हरगिज़ मत निकलना और तुम मेरे साथ होकर कभी दुश्मन से जंग न करना. बेशक तुमने पहली मर्तबा जिहाद छोड़कर घर में बैठना पसंद किया था, तो अब भी पीछे रह जाने वालों के साथ घर में बैठे रहो.
84. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और उन मुनाफ़िक़ों में से कोई मर जाए, तो तुम न उसके जनाज़े पर नमाज़ पढ़ना और न उसकी क़ब्र पर जाकर खडे़ होना. बेशक उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ कुफ़्र किया और वे नाफ़रमानी की हालत में ही मर गए.
85. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और उन लोगों के माल और उनकी औलाद तुम्हें ताज्जुब में न डाल दे. अल्लाह सिर्फ़ यह चाहता है कि उन चीज़ों के ज़रिये उन्हें दुनिया में अज़ाब में मुब्तिला कर दे और उनकी जानें इस हाल में निकलें कि वे काफ़िर ही हों.
86. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब कोई ऐसी सूरत नाज़िल होती है कि तुम अल्लाह पर ईमान लाओ और उसके रसूल के साथ मिलकर जिहाद करो, तो उनमें से रसूख़ वाले लोग तुमसे इजाज़त मांगते हैं और कहते हैं कि आप हमें छोड़ दें. हम पीछे बैठे रह जाने वालों के साथ रहेंगे.
87. वे लोग इससे राज़ी हैं कि वे पीछे रह जाने वाली औरतों के साथ रहें और उनके दिलों पर मुहर लगा दी गई है. फिर वे कुछ नहीं समझते.
88. लेकिन रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और जो लोग उनके साथ ईमान लाए और अपने माल और अपनी जानों से अल्लाह की राह में जिहाद करते रहे और यही वे लोग हैं, जिनके लिए सब भलाइयां हैं और वे लोग कामयाबी पाने वाले हैं.
89. अल्लाह ने उन लोगों के लिए जन्नत के बाग़ तैयार कर रखे हैं, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. वे उनमें हमेशा रहेंगे. यह बड़ी कामयाबी है.
90. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम्हारे पास कुछ बहाना बनाने वाले देहाती भी आए, ताकि उन्हें भी जिहाद से पीछे रह जाने की इजाज़त दे दी जाए. और जिन लोगों ने अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से झूठ बोला था, वे घर में बैठे रहे. अनक़रीब उनमें से कुफ़्र करने वाले लोगों को दर्दनाक अज़ाब पहुंचेगा.
91. जिहाद में पीछे रहने पर न ज़ईफ़ों व कमज़ोरों पर कोई गुनाह है और न बीमारों पर और न उन लोगों पर जो इतना नहीं पाते कि ख़र्च कर सकें, जबकि वे अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़ैरख़्वाह हों और नेकी करने वालों पर इल्ज़ाम की कोई राह नहीं है. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
92. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और न उन लोगों पर कोई गुनाह है, जो तुम्हारे पास आएं कि तुम उन्हें जिहाद के लिए सवार करो. तुमने कहा कि मेरे पास भी कोई सवारी मौजूद नहीं है, जिस पर मैं तुम्हें सवार कर सकूं. इस पर वे लोग वापस लौट गए और उनकी आंखें ग़म से आबशार थीं कि उनके पास ख़र्च करने के लिए कुछ नहीं था.
93. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इल्ज़ाम तो सिर्फ़ उन लोगों पर है, जो तुमसे जिहाद में न जाने की इजाज़त मांगते हैं, जबकि वे मालदार हैं. वे इससे राज़ी हैं कि वे पीछे रह जाने वाली औरतों के साथ रहें. और अल्लाह ने उनके दिलों पर मुहर कर दी है, तो वे लोग कुछ नहीं जानते.
94. ऐ ईमान वालो ! वे लोग तुमसे बहाने बनाएंगे, जब तुम तबूक से लौटकर उनकी तरफ़ आओगे. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बहाने मत बनाओ. हम हरगिज़ तुम्हारी बातों पर यक़ीन नहीं करेंगे. हमें अल्लाह ने तुम्हारे हालात से बाख़बर कर दिया है. और तुम्हारा अमल अल्लाह देखेगा और
उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी. फिर तुम ग़ैब और ज़ाहिर को जानने वाले अल्लाह की तरफ़ लौटा दिए जाओगे, तो वह तुम्हें उन आमाल से आगाह कर देगा, जो तुम किया करते थे.
95. अब वे लोग तुम्हारे सामने अल्लाह की क़समें खाएंगे जब तुम जिहाद से उनकी तरफ़ वापस जाओगे, ताकि तुम उनसे दरगुज़र करो. फिर तुम उनकी तरफ़ से मुंह फेर लो. बेशक वे लोग नापाक हैं और उनका ठिकाना जहन्नुम है. यह उसकी जज़ा है, जो कुछ वे दुनिया में कमाया करते थे.
96. वे लोग तुम्हारे सामने क़समें खाते हैं, ताकि तुम उनसे राज़ी हो जाओ. अगर तुम उनसे राज़ी भी हो जाओ, तो भी बेशक अल्लाह नाफ़रमान क़ौम से हरगिज़ राज़ी नहीं होगा.
97. वे देहाती लोग सख़्त काफ़िर और मुनाफ़िक़ हैं और इसी लायक़ हैं कि वे उन हदों और अहकाम से नवाक़िफ़ रहें, जो अल्लाह ने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल किए हैं. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
98. और उन देहातियों में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो उस माल को तावान यानी बोझ समझते हैं, जिसे वे अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं और तुम पर ज़माने की गर्दिशों का इंतज़ार करते हैं. हक़ीक़त में ज़माने की बुरी गर्दिशें उन्हीं पर हैं. और अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
99. और उन देहातियों में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अल्लाह और रोज़े आख़िरत पर ईमान रखते हैं और जो कुछ अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं, उसे अल्लाह की क़ुर्बत और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुआओं का ज़रिया समझते हैं. जान लो कि वह बेशक उनके लिए क़ुर्बते इलाही है. अनक़रीब अल्लाह उन्हें अपनी रहमत में दाख़िल करेगा. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
100. और मुहाजिरों और उनके मददगार अंसार में से सबक़त करने वालों और सबसे पहले ईमान लाने वालों और जिन लोगों ने अहसान के साथ उनकी पैरवी की, अल्लाह उन सबसे राज़ी हो गया और वे सब उससे राज़ी हो गए. और उसने उनके लिए जन्नत के बाग़ तैयार कर रखे हैं, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. वे उनमें हमेशा-हमेशा रहेंगे. यह बड़ी कामयाबी है.
101. ऐ ईमान वालो ! और तुम्हारे आसपास के देहातियों में से कुछ मुनाफ़िक़ हैं और मदीने के बाशिन्दों में से भी कुछ मुनाफ़िक़ हैं, जो निफ़ाक़ पर अड़ गए हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उन्हें नहीं जानते, लेकिन हम उनसे ख़ूब वाक़िफ़ हैं. अनक़रीब हम उन्हें दो मर्तबा दुनिया में अज़ाब देंगे. फिर वे क़यामत में एक बड़े अज़ाब की तरफ़ लौटा दिए जाएंगे.
102. और कुछ दूसरे लोग भी हैं, जिन्होंने अपने गुनाहों का ऐतराफ़ कर लिया है. उन्होंने कुछ नेक अमल और कुछ बुरे कामों को ग़लती से मिला दिया है. उम्मीद है कि अल्लाह उनकी तौबा क़ुबूल कर ले. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
103. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उनके माल में से सदक़ा लो कि तुम इसके ज़रिये उन्हें गुनाहों से पाक कर दो और उन्हें दुआएं दो. बेशक तुम्हारी दुआ उनके लिए सुकून है. और अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
104. क्या वे लोग नहीं जानते कि बेशक अल्लाह ही अपने बन्दों की तौबा क़ुबूल करता है और सदक़ा लेता है. और यह कि अल्लाह ही तौबा क़ुबूल करने वाला बड़ा मेहरबान है.
105. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम कह दो कि तुम लोग अमल किए जाओ. फिर अनक़रीब तुम्हारे अमल अल्लाह देख लेगा और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मोमिन भी देख लेंगे. और तुम अनक़रीब ग़ैब और ज़ाहिर को जानने वाले अल्लाह की तरफ़ लौटा दिए जाओगे. फिर वह तुम्हें उन आमाल से आगाह कर देगा, जो तुम किया करते थे.
106. और कुछ दूसरे लोग भी हैं, जिन्हें अल्लाह के हुक्म की उम्मीद पर छोड़ दिया गया है. अल्लाह चाहे उन्हें अज़ाब दे या उनकी तौबा क़ुबूल करे. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
107. और मुनाफ़िक़ों में वे लोग भी हैं, जिन्होंने मस्जिदे ज़िरार तामीर की है, ताकि उसके ज़रिये वे मुसलमानों को नुक़सान पहुंचाएं और कुफ़्र को बढ़ावा दें और मोमिनों के दरम्यान तफ़रक़ा पैदा करें और उस शख़्स के लिए घात की जगह बनाएं, जो इससे पहले अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से जंग कर चुका है और वे ज़रूर क़समें खाएंगे कि हमने भलाई के सिवा और कुछ नहीं चाहा. और अल्लाह गवाही देता है कि बेशक वे झूठे हैं.
108. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम मस्जिदे ज़िरार में कभी खड़े न होना. बेशक जिस मस्जिद की बुनियाद रोज़े अव्वल से ही तक़वे पर रखी गई है, वह ज़्यादा मुस्तहक़ है कि तुम उसमें क़याम करो. उसमें ऐसे लोग हैं, जो पाक साफ़ रहना चाहते हैं. और अल्लाह पाक साफ़ रहने वालों को पसंद करता है.
109. जिस शख़्स ने अपनी इमारत यानी मस्जिद की बुनियाद तक़वे और अल्लाह की ख़ुशनूदी पर रखी, वह बेहतर है या वह शख़्स जिसने अपनी इमारत की बुनियाद एक खाई के गिरते हुए किनारे पर रखी. फिर वह इमारत उसे लेकर जहन्नुम की आग में गिर पड़ी. और अल्लाह ज़ालिमों की क़ौम को हिदायत नहीं देता.
110. मस्जिदे ज़िरार के नाम पर बनाई गई उनकी यह इमारत हमेशा उन लोगों के दिलों में शक की वजह से खटकती रहेगी, सिवाय इसके कि उनके दिल टुकड़े-टुकड़े हो जाएं. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
111. बेशक अल्लाह ने मोमिनों से उनकी जानें और उनके माल उनके लिए जन्नत के बदले ख़रीद लिए हैं. वे अल्लाह की राह में जंग करते हैं. वे हक़ के लिए क़त्ल करते हैं और ख़ुद भी क़त्ल किए जाते हैं. यह वादा बरहक़ है, जो तौरात और इंजील और क़ुरआन में लिखा हुआ है. और कौन अपना वादा अल्लाह से बेहतर पूरा करने वाला है. ऐ ईमान वालो ! फिर तुम अपने सौदे पर ख़ुशियां मनाओ, जो तुमने उससे किया है. और यही तो बड़ी कामयाबी है.
112. ये लोग तौबा करने वाले, इबादत करने वाले, अल्लाह की हम्दो सना करने वाले, उसकी राह में सफ़र करने वाले, उसकी बारगाह में रुकू करने वाले, सजदा करने वाले, नेक काम का हुक्म देने वाले और बुराई से रोकने वाले और अल्लाह की मुक़र्रर की हुई हदों की हिफ़ाज़त करने वाले हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम इन मोमिनों को ख़ुशख़बरी दे दो.
113. नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और ईमान वालों के लिए यह शायान नहीं कि वे मुशरिकों के लिए मग़फ़िरत की दुआ करें. अगरचे वे रिश्तेदार ही हों. इसके बाद कि जब उन पर ज़ाहिर हो गया कि वे मुशरिक जहन्नुमी हैं.
114. और इब्राहीम अलैहिस्सलाम का अपने मुंह बोले वालिद यानी अपनी परवरिश करने वाले अपने चाचा आज़र के लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगना सिर्फ़ उस वादे की वजह से था, जो उन्होंने उससे किया था. फिर जब उन पर ज़ाहिर हो गया कि वह अल्लाह का दुश्मन है, वे तो उससे बेज़ार हो गए. बेशक इब्राहीम अलैहिस्सलाम बड़े दर्दमंद और हलीम थे.
115. और अल्लाह के शायाने शान नहीं कि वह किसी क़ौम को गुमराह कर दे, उसके बाद कि उसे हिदायत दी गई हो, यहां तक कि वह उन लोगों के लिए वे चीज़ें वाज़ेह न कर दे, जिनसे उन्हें परहेज़ करना है. बेशक अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है.
116. बेशक अल्लाह के लिए आसमानों और ज़मीन की सारी बादशाहत है. वही ज़िन्दगी बख़्शता है और वही मौत देता है. और तुम लोगों के लिए अल्लाह के सिवा न कोई सरपरस्त है और न कोई मददगार.
117. यक़ीनन अल्लाह ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अपने फ़ज़ल से तव्वजो फ़रमाई और उन मुहाजिरों और अंसार पर भी, जिन्होंने तबूक के मुश्किल वक़्त में रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैरवी की. उसके बाद क़रीब था कि उनमें से एक फ़रीक़ के दिल फिर जाते. फिर अल्लाह ने उन पर भी तवज्जो दी. बेशक वह बड़ा शफ़क़्क़त करने वाला बड़ा मेहरबान है.
118. और अल्लाह ने उन तीनों लोगों पर भी रहम किया, जो जिहाद में पीछे रह गए थे, यहां तक कि ज़मीन अपनी वुसअत के बावजूद उन पर तंग हो गई और ख़ुद उनकी जानें भी उन पर तंग हो गईं और वे जान गए कि अल्लाह के सिवा और कहीं पनाह की जगह नहीं है. फिर अल्लाह ने उन पर तवज्जो दी, ताकि वे तौबा कर लें. बेशक अल्लाह तौबा क़ुबूल करने वाला बड़ा मेहरबान है.
119. ऐ ईमान वालो ! अल्लाह से डरो और सच्चे लोगों के साथ हो जाओ.
120. मदीने के बाशिन्दों और उसके अतराफ़ के देहातियों को यह हक़ नहीं था कि वे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का साथ छोड़कर पीछे रह जाएं और न यह कि उनकी जान से ज़्यादा अपनी जानों को अज़ीज़ समझें. इसलिए कि अल्लाह की राह में उन्हें न प्यास लगती है और न थकान होती है और न भूख लगती है और न वे काफ़िरों को गु़स्सा दिलाने के लिए कोई क़दम उठाते हैं और न किसी दुश्मन से कुछ हासिल करते हैं. लेकिन इसके बदले में उनके आमालनामे में नेकियां लिख दी जाती हैं. बेशक अल्लाह नेकी करने वालों का अज्र ज़ाया नहीं करता है.
121. और वे मुहाजिर अल्लाह की राह में न थोड़ा माल ख़र्च करते हैं और न बहुत सा माल. और न किसी मैदान को पार करते हैं, लेकिन इस सबको उनके आमालनामे में बतौर नेकी लिख दिया जाता है, ताकि अल्लाह उन्हें उसकी अच्छी जज़ा दे, जो कुछ वे किया करते थे.
122. और यह मुमकिन नहीं कि तमाम मोमिन अपने घरों से एकसाथ निकल पड़ें. फिर उनमें से हर फ़रीक़ का एक तबक़ा क्यों न निकले कि वह दीन की समझ हासिल करे और वह अपनी क़ौम को ख़बरदार करे, जब वह उनकी तरफ़ वापस आए, ताकि वे बुराइयों से बचें.
123. ऐ ईमान वालो ! तुम काफ़िरों में से उन लोगों से जंग करो, जो तुम्हारे क़रीब हैं और वे तुम में सख़्ती पाएं. और जान लो कि अल्लाह परहेज़गारों के साथ है.
124. और जब कोई सूरत नाज़िल की जाती है, तो उन मुनाफ़िक़ों में से कुछ लोग कहते हैं कि इस सूरत ने तुम में से किसके ईमान में इज़ाफ़ा किया है. फिर जो लोग ईमान लाए हैं, तो उनके ईमान में इज़ाफ़ा हो गया और वे ख़ुशियां मनाते हैं.
125. और जिन लोगों के दिलों में मर्ज़ है, तो उस सूरत ने उनकी निजासत में और निजासत बढ़ा दी और वे काफ़िर ही मर गए.
126. क्या वे लोग नहीं देखते कि वे हर साल एक मर्तबा या दो मर्तबा आज़माइश में मुब्तिला किए जाते हैं. फिर भी वे न तौबा करते हैं और न ग़ौर व फ़िक्र करते हैं.
127. और जब भी कोई सूरत नाज़िल की जाती है, तो वे एक दूसरे की तरफ़ देखते हैं कि तुम्हें कोई देख तो नहीं रहा है. फिर वे वापस लौट जाते हैं. अल्लाह ने उनके दिलों को फेर दिया है, क्योंकि वह क़ौम बिल्कुल समझ नहीं रखती.
128. ऐ लोगो ! बेशक तुम्हारे पास तुम ही में से हमारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाए हैं. तुम्हारा तकलीफ़ में मुब्तिला होना, उन पर भारी गुज़रता है और वे तुम्हारी भलाई चाहते हैं. वे मोमिनों के लिए बड़े शफ़क़त वाले बड़े मेहरबान हैं.
129. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अगर इस पर भी वे लोग मुंह फेरें, तो तुम कह दो कि मेरे लिए अल्लाह ही काफ़ी है. उसके सिवा कोई माबूद नहीं. मैं उसी पर भरोसा करता हूं. वही अर्शे अज़ीम का परवरदिगार है.
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