सूरह अनफ़ाल मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 75 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! लोग तुमसे अनफ़ाल यानी माले ग़नीमत के बारे में सवाल करते हैं. तुम कह दो कि अनफ़ाल अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का है. फिर तुम अल्लाह से डरो और अपने बाहमी मामलों की इस्लाह करो और अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत किया करो. अगर तुम ईमान वाले हो.
2. हक़ीक़त में ईमान वाले तो सिर्फ़ वही लोग हैं कि जब उनके सामने अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है, तो उनके दिल कांप उठते हैं और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाती हैं, तो उनके ईमान में मज़ीद इज़ाफ़ा हो जाता है और वे अपने परवरदिगार पर भरोसा करते हैं.
3. यही वे लोग हैं, जो पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है, उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं.
4. यही सच्चे मोमिन हैं. उनके लिए उनके परवरदिगार की बारगाह में बड़े दर्जात और मग़फ़िरत और इज़्ज़त वाला रिज़्क़ है.
5. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जिस तरह तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें तुम्हारे घर से हक़ के साथ जिहाद के लिए बाहर निकाला. हालांकि मोमिनों का एक फ़रीक़ इससे नाख़ुश था.
6. वे लोग तुमसे हक़ के ज़ाहिर हो जाने के बाद भी झगड़ने लगे. गोया वे मौत की तरफ़ धकेले जा रहे हैं और वे उसे देख रहे हैं.
7. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब अल्लाह ने तुमसे मक्का के काफ़िरों के दो तबक़ों में से एक पर फ़तह का वादा किया था कि वह यक़ीनन तुम्हारे लिए है और तुम यह चाहते थे कि कमज़ोर तबक़ा तुम्हारे हाथ आ जाए. और अल्लाह यह चाहता था कि अपने कलाम से हक़ को साबित कर दे और काफ़िरों की जड़ काट दे.
8. ताकि वह हक़ को हक़ साबित कर दे और बातिल को बातिल कर दे. अगरचे गुनाहगार उससे नाख़ुश हों.
9. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब तुम अपने परवदिगार से मदद के लिए फ़रियाद कर रहे थे, तो उसने तुम्हारी फ़रियाद क़ुबूल कर ली और फ़रमाया कि एक हज़ार मुसलसल आने वाले फ़रिश्तों के ज़रिये तुम्हारी मदद की जाएगी.
10. और अल्लाह ने सिर्फ़ तुम्हारी ख़ुशी के लिए ही यह मदद की थी, ताकि तुम्हारे दिल मुतमईन हो जाएं और हक़ीक़त में अल्लाह की बारगाह के सिवा कहीं और से मदद नहीं होती. बेशक अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
11. जब अल्लाह ने तुम्हें चैन व सुकून देने के लिए तुम पर नींद तारी कर दी और तुम पर आसमान से पानी बरसाया, ताकि उसके ज़रिये तुम्हें पाकीज़गी अता करे और तुमसे शैतान के वसवसों की ग़लाज़त को दूर कर दे और तुम्हारे दिलों को मज़बूत कर दे और तुम्हारे क़दम अच्छी तरह जमा दे.
12. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वक़्त याद करो कि जब तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रिश्तों की तरफ़ वही भेजी कि असहाबे रसूल की मदद के लिए हम भी तुम्हारे साथ हैं. फिर तुम मोमिनों को साबित क़दम रखो. हम अनक़रीब कुफ़्र करने वाले लोगों के दिलों में तुम्हारा रौब डाल देते हैं. फिर तुम उनकी गर्दनों पर मारो और उनके एक-एक पोर को तोड़ दो.
13. यह सज़ा इसलिए है कि उन लोगों ने अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त की और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त करेगा, तो बेशक अल्लाह उसे बड़ा सख़्त अज़ाब देगा.
14. तुम दुनिया में भी अज़ाब का ज़ायक़ा चखो और आख़िरत में भी काफ़िरों के लिए दोज़ख़ का अज़ाब है.
15. ऐ ईमान वालो ! जब तुम मैदाने जंग में कुफ़्र करने वाले लोगों से मुक़ाबला करो, तो उनकी तरफ़ से पीठ न फेरना.
16. और जो शख़्स उस दिन से पीठ फेरेगा, सिवाय उसके जो जंग के लिए कोई दाव चल रहा हो या अपने ही किसी लश्कर से मिलना चाहता हो, तो वह यक़ीनन अल्लाह के ग़ज़ब के साथ पलटा और उसका ठिकाना जहन्नुम है और वह बहुत बुरा ठिकाना है.
17. ऐ मुसलमानो ! उन काफ़िरों को तुमने क़त्ल नहीं किया, बल्कि अल्लाह ने उन्हें क़त्ल कर दिया. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब तुमने उन पर कंकड़ फेंके थे, तो वे तुमने नहीं फेंके थे, बल्कि ख़़ुद अल्लाह ने फेंके थे. और यह इसलिए है कि वह मोमिनों को अपनी तरफ़ से अच्छी तरह आज़माये. बेशक अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
18. यह सब तुम्हारे लिए हुआ और यह कि अल्लाह काफ़िरों की मक्कारी को कमज़ोर करने वाला है.
19. ऐ काफ़िरो ! अगर तुम फ़ैसला कुन फ़तह चाहते हो, तो यक़ीनन तुम्हारे पास हक़ की फ़तह आ चुकी है. और अगर तुम अब भी बाज़ आ जाओ, तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है. और अगर तुम फिर यही सरकशी करोगे, तो हम भी यही सज़ा देंगे और तुम्हारा लश्कर तुम्हारे हरगिज़ कुछ काम नहीं आएगा, अगरचे कितना ही ज़्यादा हो और बेशक अल्लाह मोमिनों के साथ है.
20. ऐ ईमान वालो ! तुम अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो और उससे मुंह न फेरो, जबकि तुम सुन रहे हो.
21. और उन लोगों की तरह न हो जाना, जिन्होंने कहा कि हमने सुन लिया. हालांकि वे सुनते नहीं थे.
22. बेशक अल्लाह के नज़दीक जानदारों में सबसे बदतर वह बहरे और गूंगे हैं, जो न हक़ को सुनते हैं और न हक़ कहते हैं और न हक़ को हक़ समझते हैं.
23. और अगर अल्लाह उनमें कुछ भी भलाई जानता, तो उन्हें ज़रूर सुना देता. और अगर वह उन्हें हक़ सुना दे, तो वे फिर भी ज़रूर मुंह फेर लेंगे और वे हक़ से मुंह फेरने वाले हैं.
24. ऐ ईमान वालो ! जब भी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम्हें किसी काम के लिए बुलाएं, जो तुम्हें रूहानी ज़िन्दगी अता करता है, तो फ़ौरन उनकी ख़िदमत में हाज़िर हो जाया करो. और जान लो कि अल्लाह आदमी और उसके क़ल्ब के दरम्यान हाइल हो जाता है. और यह कि तुम सबको उठकार उसकी तरफ़ ही लौटाया जाएगा.
25. और तुम उस फ़ितने से डरते रहो, जो ख़ास तौर पर ज़ुल्म करने वाले लोगों पर ही नहीं पड़ेगा, बल्कि तुम सब भी उसकी ज़द में आ जाओगे. और जान लो कि अल्लाह बड़ा सख़्त अज़ाब देने वाला है.
26. और वह वक़्त याद करो कि जब तुम सरज़मीन मक्का में बहुत कम थे और कमज़ोर समझे जाते थे. तुम ख़ौफ़ज़दा रहते थे कि कहीं ताक़तवर लोग तुम्हें उचक न लें. फिर अल्लाह ने तुम्हें मदीने में पनाह दी और अपनी मदद से तुम्हें क़ूवत बख़्शी और तुम्हें पाकीज़ा चीज़ों का रिज़्क़ दिया, ताकि तुम उसके शुक्रगुज़ार बनो.
27. ऐ ईमान वालो ! तुम अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ख़्यानत न किया करो और न आपस की अमानतों में ख़्यानत करो. हालांकि तुम हक़ीक़त जानते हो.
28. और जान लो कि हक़ीक़त में तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद तो सिर्फ़ फ़ितना यानी आज़माइश है और यह कि अल्लाह के पास बड़ा अज्र है.
29. ऐ ईमान वालो ! अगर तुम ईमान लाए और अल्लाह से डरते रहे, तो वह तुम्हें हक़ और बातिल में फ़र्क़ करने की सलाहियत अता करेगा और तुम्हारे आमालनामों से तुम्हारी बुराइयों को मिटा देगा और तुम्हारी मग़फ़िरत करेगा. और अल्लाह बड़ा फ़ज़ल वाला है.
30. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब कुफ़्र करने वाले लोग तुम्हारे ख़िलाफ़ ख़ुफ़िया साज़िशें कर रहे थे कि वे तुम्हें क़ैद कर लें या तुम्हें क़त्ल कर दें या तुम्हें तुम्हारे वतन से बाहर निकाल दें. और इधर वे साज़िशें कर रहे थे और उधर अल्लाह अपनी तदबीर कर रहा था. और अल्लाह बेहतरीन तदबीर करने वाला है.
31. और जब उन लोगों के सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं, तो वे कहते हैं कि बेशक हमने सुन लिया. अगर हम चाहें, तो हम भी बिल्कुल ऐसा ही कलाम कह सकते हैं. ये तो पिछले लोगों की कहानियों के सिवा कुछ भी नहीं हैं.
32. और जब उन लोगों ने कहा कि ऐ अल्लाह ! अगर यह क़ुरआन तेरी तरफ़ से हक़ है, तो इसकी नाफ़रमानी की वजह से हम पर आसमान से पत्थर बरसा दे या हम पर कोई और दर्दनाक अज़ाब ही नाज़िल कर दे.
33. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और यह अल्लाह के शायाने शान नहीं है कि उन पर उस वक़्त अज़ाब नाज़िल करे, जब तुम उनके दरम्यान मौजूद हो और न अल्लाह ऐसी हालत में उन पर अज़ाब नाज़िल करेगा, जब वे मग़फ़िरत की दुआ मांग रहे हों.
34. और अब उन लोगों के लिए कौन सी वजह है कि अल्लाह उन्हें अज़ाब न दे. हालांकि वे लोगों को मस्जिदुल हराम यानी ख़ाना ए काबा में जाने से रोकते हैं और वे इसके वली यानी मुतवल्ली भी नहीं हैं. मुतवल्ली तो सिर्फ़ परहेज़गार लोग ही होते हैं, लेकिन उनमें से बहुत से लोग यह नहीं जानते.
35. और बैतुल्लाह यानी ख़ाना ए काबा के नज़दीक उन लोगों की नामनेहाद नमाज़ सीटियां और तालियां बजाने के सिवा कुछ भी नहीं है. फिर तुम अज़ाब का ज़ायक़ा चखो, इसके बदले कि तुम कुफ़्र किया करते थे.
36. बेशक कुफ़्र करने वाले लोग अपना माल व दौलत इसलिए ख़र्च करते हैं, ताकि इसके ज़रिये वे लोगों को अल्लाह के रास्ते से रोक दें. फिर अब वे इसलिए भी अपना माल ख़र्च करते रहेंगे कि बाद में यही माल उनके लिए हसरत बन जाए. फिर वे मग़लूब कर दिए जाएंगे. और कुफ़्र करने वाले लोग जहन्नुम की तरफ़ हांके जाएंगे.
37. ताकि अल्लाह ख़बीस को पाकीज़ा से जुदा कर दे और ख़बीस को एक दूसरे पर रखकर ढेर बना दे. फिर सबको जहन्नुम में डाल दे. यही लोग नुक़सान उठाने वाले हैं.
38. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कुफ़्र करने वाले लोगों से कह दो कि अगर वे अपनी हरकतों से बाज़ आ जाएं, तो उनके वह गुनाह बख़्श दिए जाएंगे, जो पहले गुज़र चुके हैं. और अगर वे फिर वही सब करेंगे, तो यक़ीनन उनसे पहले के लोगों पर भी अज़ाब दर अज़ाब गुज़र चुका है. यानी उनके साथ भी वही सब होगा.
39. ऐ ईमान वालो ! और तुम उन काफ़िरों से जंग करते रहो, यहां तक कोई फ़ितना बाक़ी न रहे और सब अल्लाह ही का दीन हो जाए. फिर अगर वे बाज़ आ जाएं, तो बेशक अल्लाह उनके आमाल को ख़ूब देख रहा है.
40. और अगर उन लोगों ने हक़ से मुंह फेरा, तो जान लो कि बेशक अल्लाह तुम्हारा मौला है और वह कितना अच्छा मौला है और वह बहुत अच्छा मददगार है.
41. और जान लो कि जो माले ग़नीमत तुमने हासिल किया हो, तो उसमें से पाचवां हिस्सा अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों और मुसाफ़िरों के लिए है. अगर तुम अल्लाह और उस वही पर ईमान लाए हो, जो हमने अपने मुख़लिस बन्दे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर फ़ैसले के दिन नाज़िल की थी, जब मैदाने बदर में मोमिनों और काफ़िरों के दोनों लश्करों में आपस में मुक़ाबला हुआ था. और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
42. जब तुम मैदाने जंग में मदीने की जानिब वादी के क़रीबी किनारे पर थे और वे काफ़िर दूसरे किनारे पर थे और अबु सूफ़ियान का क़ाफ़िला तुमसे नीचे साहिल की तरफ़ उतर गया था. और अगर तुम आपस में जंग के लिए कोई वादा कर लेते, तो ज़रूर अपने वादे से मुख़्तलिफ़ वक़्तों में पहुंचते, लेकिन अल्लाह ने अचानक तुम लोगों को इकट्ठा कर दिया, इसलिए कि अल्लाह उस काम को पूरा कर दे, जो होकर रहने वाला था, ताकि जिस शख़्स को हलाक होना है, वह दलील के साथ हलाक हो और जिसे ज़िन्दा रहना वह भी दलील के साथ ज़िन्दा रहे. और बेशक अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
43. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वक़्त याद करो कि जब अल्लाह ने तुम्हें ख़्वाब में उन काफ़िरों के लश्कर को कम करके दिखाया था और अगर तुम्हें ज़्यादा करते दिखाता, तो ऐ मुसलमानो ! तुम हिम्मत हार जाते और तुम यक़ीनन उस जंग के बारे में आपस में झगड़ने लगते, लेकिन अल्लाह ने तुम्हें बचा लिया. बेशक वह दिलों में पोशीदा राज़ों से भी ख़ूब वाक़िफ़ है.
44. और जब अल्लाह ने मुक़ाबले के वक़्त तुम्हारी नज़र में दुश्मनों को कम करके दिखाया और उनकी नज़र में तुम्हें कम करके दिखाया, ताकि अल्लाह उसे पूरा कर दे, जो कुछ मुक़र्रर हो चुका था और अल्लाह की तरफ़ ही तमाम काम लौटाए जाते हैं.
45. ऐ ईमान वालो ! जब दुश्मन के किसी लश्कर से तुम्हारा मुक़ाबला हो, तो साबित क़दम रहा करो और अल्लाह का कसरत से ज़िक्र किया करो, ताकि तुम कामयाबी पाओ.
46. और अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो और आपस में झगड़े न करो, वरना तुम हिम्मत हार जाओगे और दुश्मनों के सामने तुम्हारी क़ूवत कमज़ोर पड़ जाएगी और तुम सब्र करो. बेशक अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है.
47. और उन लोगों की तरह न हो जाओ, जो अपने घरों से इतराते हुए और लोगों को दिखाने के लिए निकलते थे और लोगों को अल्लाह के रास्ते से रोकते थे और अल्लाह उसे जो कुछ वे करते हैं अपने अहाते में लिए हुए है.
48. और जब शैतान ने उन काफ़िरों के लिए उनके आमाल आरास्ता करके दिखाए और उसने कहा कि आज लोगों में से कोई तुम पर ग़ालिब नहीं हो सकता और बेशक मैं तुम्हारा साथी हूं. फिर जब दोनों लश्कर एक दूसरे के मुक़ाबिल हुए, तो वह उलटे पांव भाग गया और कहने लगा कि बेशक मैं तुमसे बेज़ार हूं. बेशक मैं वह देख रहा हूं, जो तुम नहीं देखते. बेशक मैं अल्लाह से ख़ौफ़ज़दा हूं और अल्लाह सख़्त अज़ाब देने वाला है.
49. और वह वक़्त भी याद करो कि जब मुनाफ़िक़ और वे लोग जिनके दिल में कुफ़्र का मर्ज़ है, कह रहे थे कि उन मुसलमानों को उनके दीन ने बड़ा मग़रूर कर रखा है. और जो शख़्स अल्लाह पर भरोसा करता है, तो हक़ीक़त में वह ग़ालिब ही रहता है. बेशक अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
50. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर तुम वह मंज़र देखते, तो अफ़सोस करते. जब फ़रिश्ते काफ़िरों की रूहें क़ब्ज़ करते हैं और उनके चेहरों और उनकी पीठ पर मारते जाते हैं और कहते हैं कि अब दोज़ख़ की आग का ज़ायक़ा चखो.
51. यह अज़ाब उन आमाल का बदला है, जो तुम्हारे हाथों ने आगे भेजे हैं और अल्लाह हरगिज़ बन्दों पर ज़ुल्म करने वाला नहीं है.
52. उन लोगों का हाल भी क़ौमे फ़िरऔन और उनसे पहले के लोगों की तरह हुआ. उन्होंने भी अल्लाह की निशानियों से कुफ़्र किया था. फिर अल्लाह ने उन्हें उनके गुनाहों की वजह से अज़ाब की गिरफ़्त में ले लिया. बेशक अल्लाह बड़ा क़ूवत वाला सख़्त अज़ाब देने वाला है.
53. यह अज़ाब इस वजह से है कि अल्लाह किसी नेअमत को हरगिज़ नहीं बदलता, जो उसने किसी क़ौम को दी हो, यहां तक कि वे लोग ख़ुद अपनी क़ल्बी हालत को न बदलें. बेशक अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
54. यह अज़ाब भी क़ौमे फ़िरऔन और उनसे पहले के लोगों के दस्तूर की तरह है. उन्होंने भी अपने परवरदिगार की निशानियों को झुठलाया था. फिर हमने उनके गुनाहों की वजह से उन्हें हलाक कर दिया और हमने फ़िरऔन के लोगों को दरिया में ग़र्क़ कर दिया और वे सब ज़ालिम थे.
55. बेशक अल्लाह के नज़दीक सब जानवरों से भी बदतर वे लोग हैं, जिन्होंने कुफ़्र किया. फिर वे ईमान नहीं लाते.
56. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यही वे लोग हैं, जिनसे तुमने बार-बार अहद लिया. वे हर बार अपना अहद तोड़ देते हैं और वे अल्लाह से नहीं डरते.
57. फिर अगर उन लोगों को मैदाने जंग में पाओ, तो उन्हें ऐसी इबरतनाक सज़ा दो कि उनके बाद आने वाले लोगों को भी नसीहत हासिल हो.
58. और अगर तुम्हें किसी क़ौम से ख़्यानत का ख़ौफ़ हो, तो उनका अहद उनकी तरफ़ बराबरी की बुनियाद पर फेंक दो यानी तोड़ दो. बेशक अल्लाह ख़्यानत करने वाले दग़ाबाज़ों को पसंद नहीं करता.
59. और कुफ़्र करने वाले लोग यह हरगिज़ गुमान न करें कि वे बचकर निकल गए. बेशक वे हमें आजिज़ नहीं कर सकते.
60. ऐ मुसलमानो ! और उन लोगों के मुक़ाबले के लिए तुमसे जितनी हो सके अपनी क़ूवत मुहैया कर लो और बंधे हुए घोड़ों की सफ़बंदी का इंतज़ाम भी करो. इसके ज़रिये तुम अल्लाह के दुश्मनों और अपने दुश्मनों को डराते रहो और इनके सिवा दूसरे छुपे हुए दुश्मनों को भी, जिन्हें तुम नहीं जानते, लेकिन अल्लाह उन्हें जानता है. और तुम जो कुछ भी अल्लाह की राह में ख़र्च करोगे, तो तुम्हें उसका पूरा-पूरा बदला दिया जाएगा और तुम पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा.
61. और अगर वे काफ़िर सुलह के लिए झुकें, तो तुम भी उसकी तरफ़ झुक जाओ और अल्लाह पर भरोसा करो. बेशक वह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
62. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर वे लोग चाहें कि तुम्हें धोखा दें, तो बेशक तुम्हारे लिए अल्लाह ही काफ़ी है. वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें अपनी मदद और मोमिनों के ज़रिये ताक़त बख़्शी.
63. और अल्लाह ने उन मुसलमानों के दिलों में बाहम उल्फ़त पैदा कर दी. अगर तुम जो कुछ ज़मीन में है, सब ख़र्च कर देते, तो भी तुम उनके दिलों में यह उल्फ़त पैदा नहीं कर सकते, लेकिन अल्लाह ने उनके दरम्यान उल्फ़त पैदा कर दी. बेशक वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
64. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम्हारे लिए अल्लाह ही काफ़ी है और वे मोमिन, जो तुम्हारी पैरवी करते हैं.
65. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम मोमिनों को जिहाद की तरग़ीब दो. अगर तुम लोगों में से जंग में बीस आदमी साबित क़दम रहने वाले हों, तो वे दो-दो सौ काफ़िरों पर ग़ालिब रहेंगे और अगर तुम में से एक सौ आदमी साबित क़दम होंगे, तो वे उन काफ़िरों में से एक हज़ार पर ग़ालिब रहेंगे. इस वजह से कि उस काफ़िर क़ौम को हक़ की समझ नहीं है.
66. अब अल्लाह ने तुम से अपने हुक्म की सख़्ती में कमी कर दी है. वह जानता है कि तुम में कितनी कमज़ोरी है. अगर तुम में से एक सौ आदमी साबित क़दम रहने वाले हों, तो वे दो सौ काफ़िरों पर ग़ालिब रहेंगे और अगर तुम में से एक हज़ार साबित क़दम हों, तो वे अल्लाह के हुक्म से दो हज़ार काफ़िरों पर ग़ालिब रहेंगे और अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है.
67. किसी नबी के लिए यह मुनासिब नहीं है कि उसके पास क़ैदी हों, जब तक कि वह ज़मीन यानी मैदाने जंग में अच्छी तरह दुश्मनों का ख़ून न बहा ले. तुम लोग दुनिया का साजो सामान चाहते हो औॅर अल्लाह तुम्हारे लिए आख़िरत की भलाई चाहता है. और अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
68. और अगर अल्लाह की तरफ़ से पहले ही मुआफ़ी का हुक्म लिखा हुआ न होता, तो तुम्हें उस फ़िदये के लिए बड़ा अज़ाब पहुंचता, जो तुमने बदर के क़ैदियों से वसूल किया था.
69. फिर तुम उसमें से खाओ व पियो, जो हलाल व पाकीज़ा माले ग़नीमत तुमने हासिल किया है. और अल्लाह से डरते रहो. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
70. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जो क़ैदी तुम्हारे क़ब्ज़े में हैं, उनसे कह दो कि अगर अल्लाह तुम्हारे दिलों में भलाई जान लेगा, तो तुम्हें उस माल से बेहतर अता करेगा, जो तुमसे फ़िदये के तौर पर लिया गया है और तुम्हें बख़्श देगा और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
71. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर वे लोग तुमसे ख़्यानत करना चाहें, तो वे इससे पहले भी अल्लाह से ख़्यानत कर चुके हैं. फिर अल्लाह ने उनमें से कुछ लोगों को तुम्हारे क़ब्ज़े में दे दिया. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
72. बेशक जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अल्लाह की राह में हिजरत की और अपने माल व अपनी जानों से जिहाद किया. और जिन लोगों ने मुहाजिरों को पनाह दी और उनकी मदद की, वही लोग एक दूसरे के हक़ीक़ी दोस्त हैं. लेकिन जो लोग ईमान लाए, लेकिन उन्होंने अल्लाह की राह में हिजरत नहीं की, तो तुम्हें उनकी दोस्ती से कोई सरोकार नहीं, यहां तक कि वे हिजरत करें और दीन के मामले में तुमसे मदद चाहें, तो तुम पर उनकी मदद करना लाज़िम है. लेकिन उस क़ौम के मुक़ाबले में मदद नहीं करना कि तुम्हारे और उनके दरम्यान कोई अहद हो. और अल्लाह उनके आमाल को ख़ूब देख रहा है.
73. और कुफ़्र करने वाले लोग एक दूसरे के दोस्त हैं. ऐ मुसलमानो ! अगर तुम आपस में एक दूसरे की मदद नहीं करोगे, तो ज़मीन पर फ़ितना व बड़ा फ़साद बरपा हो जाएगा.
74. और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह की राह में जिहाद किया और जिन लोगों ने मुहाजिरों को पनाह दी और उनकी मदद की, तो यही लोग सच्चे मोमिन हैं और उनके लिए मग़फ़िरत और इज़्ज़त का रिज़्क़ है.
75. और जो लोग सुलह हुदैबिया के बाद ईमान लाए और उन्होंने अल्लाह की राह में हिजरत की और तुम्हारे साथ मिलकर जिहाद किया, तो वे लोग भी तुम में से हैं और रिश्तेदार अल्लाह की किताब में मीरास के लिहाज़ से एक दूसरे के ज़्यादा हक़दार हैं. बेशक अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! लोग तुमसे अनफ़ाल यानी माले ग़नीमत के बारे में सवाल करते हैं. तुम कह दो कि अनफ़ाल अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का है. फिर तुम अल्लाह से डरो और अपने बाहमी मामलों की इस्लाह करो और अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत किया करो. अगर तुम ईमान वाले हो.
2. हक़ीक़त में ईमान वाले तो सिर्फ़ वही लोग हैं कि जब उनके सामने अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है, तो उनके दिल कांप उठते हैं और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाती हैं, तो उनके ईमान में मज़ीद इज़ाफ़ा हो जाता है और वे अपने परवरदिगार पर भरोसा करते हैं.
3. यही वे लोग हैं, जो पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है, उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं.
4. यही सच्चे मोमिन हैं. उनके लिए उनके परवरदिगार की बारगाह में बड़े दर्जात और मग़फ़िरत और इज़्ज़त वाला रिज़्क़ है.
5. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जिस तरह तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें तुम्हारे घर से हक़ के साथ जिहाद के लिए बाहर निकाला. हालांकि मोमिनों का एक फ़रीक़ इससे नाख़ुश था.
6. वे लोग तुमसे हक़ के ज़ाहिर हो जाने के बाद भी झगड़ने लगे. गोया वे मौत की तरफ़ धकेले जा रहे हैं और वे उसे देख रहे हैं.
7. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब अल्लाह ने तुमसे मक्का के काफ़िरों के दो तबक़ों में से एक पर फ़तह का वादा किया था कि वह यक़ीनन तुम्हारे लिए है और तुम यह चाहते थे कि कमज़ोर तबक़ा तुम्हारे हाथ आ जाए. और अल्लाह यह चाहता था कि अपने कलाम से हक़ को साबित कर दे और काफ़िरों की जड़ काट दे.
8. ताकि वह हक़ को हक़ साबित कर दे और बातिल को बातिल कर दे. अगरचे गुनाहगार उससे नाख़ुश हों.
9. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब तुम अपने परवदिगार से मदद के लिए फ़रियाद कर रहे थे, तो उसने तुम्हारी फ़रियाद क़ुबूल कर ली और फ़रमाया कि एक हज़ार मुसलसल आने वाले फ़रिश्तों के ज़रिये तुम्हारी मदद की जाएगी.
10. और अल्लाह ने सिर्फ़ तुम्हारी ख़ुशी के लिए ही यह मदद की थी, ताकि तुम्हारे दिल मुतमईन हो जाएं और हक़ीक़त में अल्लाह की बारगाह के सिवा कहीं और से मदद नहीं होती. बेशक अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
11. जब अल्लाह ने तुम्हें चैन व सुकून देने के लिए तुम पर नींद तारी कर दी और तुम पर आसमान से पानी बरसाया, ताकि उसके ज़रिये तुम्हें पाकीज़गी अता करे और तुमसे शैतान के वसवसों की ग़लाज़त को दूर कर दे और तुम्हारे दिलों को मज़बूत कर दे और तुम्हारे क़दम अच्छी तरह जमा दे.
12. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वक़्त याद करो कि जब तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रिश्तों की तरफ़ वही भेजी कि असहाबे रसूल की मदद के लिए हम भी तुम्हारे साथ हैं. फिर तुम मोमिनों को साबित क़दम रखो. हम अनक़रीब कुफ़्र करने वाले लोगों के दिलों में तुम्हारा रौब डाल देते हैं. फिर तुम उनकी गर्दनों पर मारो और उनके एक-एक पोर को तोड़ दो.
13. यह सज़ा इसलिए है कि उन लोगों ने अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त की और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त करेगा, तो बेशक अल्लाह उसे बड़ा सख़्त अज़ाब देगा.
14. तुम दुनिया में भी अज़ाब का ज़ायक़ा चखो और आख़िरत में भी काफ़िरों के लिए दोज़ख़ का अज़ाब है.
15. ऐ ईमान वालो ! जब तुम मैदाने जंग में कुफ़्र करने वाले लोगों से मुक़ाबला करो, तो उनकी तरफ़ से पीठ न फेरना.
16. और जो शख़्स उस दिन से पीठ फेरेगा, सिवाय उसके जो जंग के लिए कोई दाव चल रहा हो या अपने ही किसी लश्कर से मिलना चाहता हो, तो वह यक़ीनन अल्लाह के ग़ज़ब के साथ पलटा और उसका ठिकाना जहन्नुम है और वह बहुत बुरा ठिकाना है.
17. ऐ मुसलमानो ! उन काफ़िरों को तुमने क़त्ल नहीं किया, बल्कि अल्लाह ने उन्हें क़त्ल कर दिया. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब तुमने उन पर कंकड़ फेंके थे, तो वे तुमने नहीं फेंके थे, बल्कि ख़़ुद अल्लाह ने फेंके थे. और यह इसलिए है कि वह मोमिनों को अपनी तरफ़ से अच्छी तरह आज़माये. बेशक अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
18. यह सब तुम्हारे लिए हुआ और यह कि अल्लाह काफ़िरों की मक्कारी को कमज़ोर करने वाला है.
19. ऐ काफ़िरो ! अगर तुम फ़ैसला कुन फ़तह चाहते हो, तो यक़ीनन तुम्हारे पास हक़ की फ़तह आ चुकी है. और अगर तुम अब भी बाज़ आ जाओ, तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है. और अगर तुम फिर यही सरकशी करोगे, तो हम भी यही सज़ा देंगे और तुम्हारा लश्कर तुम्हारे हरगिज़ कुछ काम नहीं आएगा, अगरचे कितना ही ज़्यादा हो और बेशक अल्लाह मोमिनों के साथ है.
20. ऐ ईमान वालो ! तुम अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो और उससे मुंह न फेरो, जबकि तुम सुन रहे हो.
21. और उन लोगों की तरह न हो जाना, जिन्होंने कहा कि हमने सुन लिया. हालांकि वे सुनते नहीं थे.
22. बेशक अल्लाह के नज़दीक जानदारों में सबसे बदतर वह बहरे और गूंगे हैं, जो न हक़ को सुनते हैं और न हक़ कहते हैं और न हक़ को हक़ समझते हैं.
23. और अगर अल्लाह उनमें कुछ भी भलाई जानता, तो उन्हें ज़रूर सुना देता. और अगर वह उन्हें हक़ सुना दे, तो वे फिर भी ज़रूर मुंह फेर लेंगे और वे हक़ से मुंह फेरने वाले हैं.
24. ऐ ईमान वालो ! जब भी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम्हें किसी काम के लिए बुलाएं, जो तुम्हें रूहानी ज़िन्दगी अता करता है, तो फ़ौरन उनकी ख़िदमत में हाज़िर हो जाया करो. और जान लो कि अल्लाह आदमी और उसके क़ल्ब के दरम्यान हाइल हो जाता है. और यह कि तुम सबको उठकार उसकी तरफ़ ही लौटाया जाएगा.
25. और तुम उस फ़ितने से डरते रहो, जो ख़ास तौर पर ज़ुल्म करने वाले लोगों पर ही नहीं पड़ेगा, बल्कि तुम सब भी उसकी ज़द में आ जाओगे. और जान लो कि अल्लाह बड़ा सख़्त अज़ाब देने वाला है.
26. और वह वक़्त याद करो कि जब तुम सरज़मीन मक्का में बहुत कम थे और कमज़ोर समझे जाते थे. तुम ख़ौफ़ज़दा रहते थे कि कहीं ताक़तवर लोग तुम्हें उचक न लें. फिर अल्लाह ने तुम्हें मदीने में पनाह दी और अपनी मदद से तुम्हें क़ूवत बख़्शी और तुम्हें पाकीज़ा चीज़ों का रिज़्क़ दिया, ताकि तुम उसके शुक्रगुज़ार बनो.
27. ऐ ईमान वालो ! तुम अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ख़्यानत न किया करो और न आपस की अमानतों में ख़्यानत करो. हालांकि तुम हक़ीक़त जानते हो.
28. और जान लो कि हक़ीक़त में तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद तो सिर्फ़ फ़ितना यानी आज़माइश है और यह कि अल्लाह के पास बड़ा अज्र है.
29. ऐ ईमान वालो ! अगर तुम ईमान लाए और अल्लाह से डरते रहे, तो वह तुम्हें हक़ और बातिल में फ़र्क़ करने की सलाहियत अता करेगा और तुम्हारे आमालनामों से तुम्हारी बुराइयों को मिटा देगा और तुम्हारी मग़फ़िरत करेगा. और अल्लाह बड़ा फ़ज़ल वाला है.
30. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब कुफ़्र करने वाले लोग तुम्हारे ख़िलाफ़ ख़ुफ़िया साज़िशें कर रहे थे कि वे तुम्हें क़ैद कर लें या तुम्हें क़त्ल कर दें या तुम्हें तुम्हारे वतन से बाहर निकाल दें. और इधर वे साज़िशें कर रहे थे और उधर अल्लाह अपनी तदबीर कर रहा था. और अल्लाह बेहतरीन तदबीर करने वाला है.
31. और जब उन लोगों के सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं, तो वे कहते हैं कि बेशक हमने सुन लिया. अगर हम चाहें, तो हम भी बिल्कुल ऐसा ही कलाम कह सकते हैं. ये तो पिछले लोगों की कहानियों के सिवा कुछ भी नहीं हैं.
32. और जब उन लोगों ने कहा कि ऐ अल्लाह ! अगर यह क़ुरआन तेरी तरफ़ से हक़ है, तो इसकी नाफ़रमानी की वजह से हम पर आसमान से पत्थर बरसा दे या हम पर कोई और दर्दनाक अज़ाब ही नाज़िल कर दे.
33. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और यह अल्लाह के शायाने शान नहीं है कि उन पर उस वक़्त अज़ाब नाज़िल करे, जब तुम उनके दरम्यान मौजूद हो और न अल्लाह ऐसी हालत में उन पर अज़ाब नाज़िल करेगा, जब वे मग़फ़िरत की दुआ मांग रहे हों.
34. और अब उन लोगों के लिए कौन सी वजह है कि अल्लाह उन्हें अज़ाब न दे. हालांकि वे लोगों को मस्जिदुल हराम यानी ख़ाना ए काबा में जाने से रोकते हैं और वे इसके वली यानी मुतवल्ली भी नहीं हैं. मुतवल्ली तो सिर्फ़ परहेज़गार लोग ही होते हैं, लेकिन उनमें से बहुत से लोग यह नहीं जानते.
35. और बैतुल्लाह यानी ख़ाना ए काबा के नज़दीक उन लोगों की नामनेहाद नमाज़ सीटियां और तालियां बजाने के सिवा कुछ भी नहीं है. फिर तुम अज़ाब का ज़ायक़ा चखो, इसके बदले कि तुम कुफ़्र किया करते थे.
36. बेशक कुफ़्र करने वाले लोग अपना माल व दौलत इसलिए ख़र्च करते हैं, ताकि इसके ज़रिये वे लोगों को अल्लाह के रास्ते से रोक दें. फिर अब वे इसलिए भी अपना माल ख़र्च करते रहेंगे कि बाद में यही माल उनके लिए हसरत बन जाए. फिर वे मग़लूब कर दिए जाएंगे. और कुफ़्र करने वाले लोग जहन्नुम की तरफ़ हांके जाएंगे.
37. ताकि अल्लाह ख़बीस को पाकीज़ा से जुदा कर दे और ख़बीस को एक दूसरे पर रखकर ढेर बना दे. फिर सबको जहन्नुम में डाल दे. यही लोग नुक़सान उठाने वाले हैं.
38. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कुफ़्र करने वाले लोगों से कह दो कि अगर वे अपनी हरकतों से बाज़ आ जाएं, तो उनके वह गुनाह बख़्श दिए जाएंगे, जो पहले गुज़र चुके हैं. और अगर वे फिर वही सब करेंगे, तो यक़ीनन उनसे पहले के लोगों पर भी अज़ाब दर अज़ाब गुज़र चुका है. यानी उनके साथ भी वही सब होगा.
39. ऐ ईमान वालो ! और तुम उन काफ़िरों से जंग करते रहो, यहां तक कोई फ़ितना बाक़ी न रहे और सब अल्लाह ही का दीन हो जाए. फिर अगर वे बाज़ आ जाएं, तो बेशक अल्लाह उनके आमाल को ख़ूब देख रहा है.
40. और अगर उन लोगों ने हक़ से मुंह फेरा, तो जान लो कि बेशक अल्लाह तुम्हारा मौला है और वह कितना अच्छा मौला है और वह बहुत अच्छा मददगार है.
41. और जान लो कि जो माले ग़नीमत तुमने हासिल किया हो, तो उसमें से पाचवां हिस्सा अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों और मुसाफ़िरों के लिए है. अगर तुम अल्लाह और उस वही पर ईमान लाए हो, जो हमने अपने मुख़लिस बन्दे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर फ़ैसले के दिन नाज़िल की थी, जब मैदाने बदर में मोमिनों और काफ़िरों के दोनों लश्करों में आपस में मुक़ाबला हुआ था. और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
42. जब तुम मैदाने जंग में मदीने की जानिब वादी के क़रीबी किनारे पर थे और वे काफ़िर दूसरे किनारे पर थे और अबु सूफ़ियान का क़ाफ़िला तुमसे नीचे साहिल की तरफ़ उतर गया था. और अगर तुम आपस में जंग के लिए कोई वादा कर लेते, तो ज़रूर अपने वादे से मुख़्तलिफ़ वक़्तों में पहुंचते, लेकिन अल्लाह ने अचानक तुम लोगों को इकट्ठा कर दिया, इसलिए कि अल्लाह उस काम को पूरा कर दे, जो होकर रहने वाला था, ताकि जिस शख़्स को हलाक होना है, वह दलील के साथ हलाक हो और जिसे ज़िन्दा रहना वह भी दलील के साथ ज़िन्दा रहे. और बेशक अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
43. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वक़्त याद करो कि जब अल्लाह ने तुम्हें ख़्वाब में उन काफ़िरों के लश्कर को कम करके दिखाया था और अगर तुम्हें ज़्यादा करते दिखाता, तो ऐ मुसलमानो ! तुम हिम्मत हार जाते और तुम यक़ीनन उस जंग के बारे में आपस में झगड़ने लगते, लेकिन अल्लाह ने तुम्हें बचा लिया. बेशक वह दिलों में पोशीदा राज़ों से भी ख़ूब वाक़िफ़ है.
44. और जब अल्लाह ने मुक़ाबले के वक़्त तुम्हारी नज़र में दुश्मनों को कम करके दिखाया और उनकी नज़र में तुम्हें कम करके दिखाया, ताकि अल्लाह उसे पूरा कर दे, जो कुछ मुक़र्रर हो चुका था और अल्लाह की तरफ़ ही तमाम काम लौटाए जाते हैं.
45. ऐ ईमान वालो ! जब दुश्मन के किसी लश्कर से तुम्हारा मुक़ाबला हो, तो साबित क़दम रहा करो और अल्लाह का कसरत से ज़िक्र किया करो, ताकि तुम कामयाबी पाओ.
46. और अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो और आपस में झगड़े न करो, वरना तुम हिम्मत हार जाओगे और दुश्मनों के सामने तुम्हारी क़ूवत कमज़ोर पड़ जाएगी और तुम सब्र करो. बेशक अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है.
47. और उन लोगों की तरह न हो जाओ, जो अपने घरों से इतराते हुए और लोगों को दिखाने के लिए निकलते थे और लोगों को अल्लाह के रास्ते से रोकते थे और अल्लाह उसे जो कुछ वे करते हैं अपने अहाते में लिए हुए है.
48. और जब शैतान ने उन काफ़िरों के लिए उनके आमाल आरास्ता करके दिखाए और उसने कहा कि आज लोगों में से कोई तुम पर ग़ालिब नहीं हो सकता और बेशक मैं तुम्हारा साथी हूं. फिर जब दोनों लश्कर एक दूसरे के मुक़ाबिल हुए, तो वह उलटे पांव भाग गया और कहने लगा कि बेशक मैं तुमसे बेज़ार हूं. बेशक मैं वह देख रहा हूं, जो तुम नहीं देखते. बेशक मैं अल्लाह से ख़ौफ़ज़दा हूं और अल्लाह सख़्त अज़ाब देने वाला है.
49. और वह वक़्त भी याद करो कि जब मुनाफ़िक़ और वे लोग जिनके दिल में कुफ़्र का मर्ज़ है, कह रहे थे कि उन मुसलमानों को उनके दीन ने बड़ा मग़रूर कर रखा है. और जो शख़्स अल्लाह पर भरोसा करता है, तो हक़ीक़त में वह ग़ालिब ही रहता है. बेशक अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
50. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर तुम वह मंज़र देखते, तो अफ़सोस करते. जब फ़रिश्ते काफ़िरों की रूहें क़ब्ज़ करते हैं और उनके चेहरों और उनकी पीठ पर मारते जाते हैं और कहते हैं कि अब दोज़ख़ की आग का ज़ायक़ा चखो.
51. यह अज़ाब उन आमाल का बदला है, जो तुम्हारे हाथों ने आगे भेजे हैं और अल्लाह हरगिज़ बन्दों पर ज़ुल्म करने वाला नहीं है.
52. उन लोगों का हाल भी क़ौमे फ़िरऔन और उनसे पहले के लोगों की तरह हुआ. उन्होंने भी अल्लाह की निशानियों से कुफ़्र किया था. फिर अल्लाह ने उन्हें उनके गुनाहों की वजह से अज़ाब की गिरफ़्त में ले लिया. बेशक अल्लाह बड़ा क़ूवत वाला सख़्त अज़ाब देने वाला है.
53. यह अज़ाब इस वजह से है कि अल्लाह किसी नेअमत को हरगिज़ नहीं बदलता, जो उसने किसी क़ौम को दी हो, यहां तक कि वे लोग ख़ुद अपनी क़ल्बी हालत को न बदलें. बेशक अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
54. यह अज़ाब भी क़ौमे फ़िरऔन और उनसे पहले के लोगों के दस्तूर की तरह है. उन्होंने भी अपने परवरदिगार की निशानियों को झुठलाया था. फिर हमने उनके गुनाहों की वजह से उन्हें हलाक कर दिया और हमने फ़िरऔन के लोगों को दरिया में ग़र्क़ कर दिया और वे सब ज़ालिम थे.
55. बेशक अल्लाह के नज़दीक सब जानवरों से भी बदतर वे लोग हैं, जिन्होंने कुफ़्र किया. फिर वे ईमान नहीं लाते.
56. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यही वे लोग हैं, जिनसे तुमने बार-बार अहद लिया. वे हर बार अपना अहद तोड़ देते हैं और वे अल्लाह से नहीं डरते.
57. फिर अगर उन लोगों को मैदाने जंग में पाओ, तो उन्हें ऐसी इबरतनाक सज़ा दो कि उनके बाद आने वाले लोगों को भी नसीहत हासिल हो.
58. और अगर तुम्हें किसी क़ौम से ख़्यानत का ख़ौफ़ हो, तो उनका अहद उनकी तरफ़ बराबरी की बुनियाद पर फेंक दो यानी तोड़ दो. बेशक अल्लाह ख़्यानत करने वाले दग़ाबाज़ों को पसंद नहीं करता.
59. और कुफ़्र करने वाले लोग यह हरगिज़ गुमान न करें कि वे बचकर निकल गए. बेशक वे हमें आजिज़ नहीं कर सकते.
60. ऐ मुसलमानो ! और उन लोगों के मुक़ाबले के लिए तुमसे जितनी हो सके अपनी क़ूवत मुहैया कर लो और बंधे हुए घोड़ों की सफ़बंदी का इंतज़ाम भी करो. इसके ज़रिये तुम अल्लाह के दुश्मनों और अपने दुश्मनों को डराते रहो और इनके सिवा दूसरे छुपे हुए दुश्मनों को भी, जिन्हें तुम नहीं जानते, लेकिन अल्लाह उन्हें जानता है. और तुम जो कुछ भी अल्लाह की राह में ख़र्च करोगे, तो तुम्हें उसका पूरा-पूरा बदला दिया जाएगा और तुम पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा.
61. और अगर वे काफ़िर सुलह के लिए झुकें, तो तुम भी उसकी तरफ़ झुक जाओ और अल्लाह पर भरोसा करो. बेशक वह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
62. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर वे लोग चाहें कि तुम्हें धोखा दें, तो बेशक तुम्हारे लिए अल्लाह ही काफ़ी है. वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें अपनी मदद और मोमिनों के ज़रिये ताक़त बख़्शी.
63. और अल्लाह ने उन मुसलमानों के दिलों में बाहम उल्फ़त पैदा कर दी. अगर तुम जो कुछ ज़मीन में है, सब ख़र्च कर देते, तो भी तुम उनके दिलों में यह उल्फ़त पैदा नहीं कर सकते, लेकिन अल्लाह ने उनके दरम्यान उल्फ़त पैदा कर दी. बेशक वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
64. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम्हारे लिए अल्लाह ही काफ़ी है और वे मोमिन, जो तुम्हारी पैरवी करते हैं.
65. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम मोमिनों को जिहाद की तरग़ीब दो. अगर तुम लोगों में से जंग में बीस आदमी साबित क़दम रहने वाले हों, तो वे दो-दो सौ काफ़िरों पर ग़ालिब रहेंगे और अगर तुम में से एक सौ आदमी साबित क़दम होंगे, तो वे उन काफ़िरों में से एक हज़ार पर ग़ालिब रहेंगे. इस वजह से कि उस काफ़िर क़ौम को हक़ की समझ नहीं है.
66. अब अल्लाह ने तुम से अपने हुक्म की सख़्ती में कमी कर दी है. वह जानता है कि तुम में कितनी कमज़ोरी है. अगर तुम में से एक सौ आदमी साबित क़दम रहने वाले हों, तो वे दो सौ काफ़िरों पर ग़ालिब रहेंगे और अगर तुम में से एक हज़ार साबित क़दम हों, तो वे अल्लाह के हुक्म से दो हज़ार काफ़िरों पर ग़ालिब रहेंगे और अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है.
67. किसी नबी के लिए यह मुनासिब नहीं है कि उसके पास क़ैदी हों, जब तक कि वह ज़मीन यानी मैदाने जंग में अच्छी तरह दुश्मनों का ख़ून न बहा ले. तुम लोग दुनिया का साजो सामान चाहते हो औॅर अल्लाह तुम्हारे लिए आख़िरत की भलाई चाहता है. और अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
68. और अगर अल्लाह की तरफ़ से पहले ही मुआफ़ी का हुक्म लिखा हुआ न होता, तो तुम्हें उस फ़िदये के लिए बड़ा अज़ाब पहुंचता, जो तुमने बदर के क़ैदियों से वसूल किया था.
69. फिर तुम उसमें से खाओ व पियो, जो हलाल व पाकीज़ा माले ग़नीमत तुमने हासिल किया है. और अल्लाह से डरते रहो. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
70. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जो क़ैदी तुम्हारे क़ब्ज़े में हैं, उनसे कह दो कि अगर अल्लाह तुम्हारे दिलों में भलाई जान लेगा, तो तुम्हें उस माल से बेहतर अता करेगा, जो तुमसे फ़िदये के तौर पर लिया गया है और तुम्हें बख़्श देगा और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
71. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर वे लोग तुमसे ख़्यानत करना चाहें, तो वे इससे पहले भी अल्लाह से ख़्यानत कर चुके हैं. फिर अल्लाह ने उनमें से कुछ लोगों को तुम्हारे क़ब्ज़े में दे दिया. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
72. बेशक जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अल्लाह की राह में हिजरत की और अपने माल व अपनी जानों से जिहाद किया. और जिन लोगों ने मुहाजिरों को पनाह दी और उनकी मदद की, वही लोग एक दूसरे के हक़ीक़ी दोस्त हैं. लेकिन जो लोग ईमान लाए, लेकिन उन्होंने अल्लाह की राह में हिजरत नहीं की, तो तुम्हें उनकी दोस्ती से कोई सरोकार नहीं, यहां तक कि वे हिजरत करें और दीन के मामले में तुमसे मदद चाहें, तो तुम पर उनकी मदद करना लाज़िम है. लेकिन उस क़ौम के मुक़ाबले में मदद नहीं करना कि तुम्हारे और उनके दरम्यान कोई अहद हो. और अल्लाह उनके आमाल को ख़ूब देख रहा है.
73. और कुफ़्र करने वाले लोग एक दूसरे के दोस्त हैं. ऐ मुसलमानो ! अगर तुम आपस में एक दूसरे की मदद नहीं करोगे, तो ज़मीन पर फ़ितना व बड़ा फ़साद बरपा हो जाएगा.
74. और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह की राह में जिहाद किया और जिन लोगों ने मुहाजिरों को पनाह दी और उनकी मदद की, तो यही लोग सच्चे मोमिन हैं और उनके लिए मग़फ़िरत और इज़्ज़त का रिज़्क़ है.
75. और जो लोग सुलह हुदैबिया के बाद ईमान लाए और उन्होंने अल्लाह की राह में हिजरत की और तुम्हारे साथ मिलकर जिहाद किया, तो वे लोग भी तुम में से हैं और रिश्तेदार अल्लाह की किताब में मीरास के लिहाज़ से एक दूसरे के ज़्यादा हक़दार हैं. बेशक अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है.
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