Sunday, September 12, 2021

11 सूरह हूद

सूरह हूद मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 123 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अलिफ़ लाम रा. यह वह किताब है, जिसकी आयतें ख़ूब मुस्तहकम कर दी गईं हैं. फिर हिकमत वाले बाख़बर अल्लाह की तरफ़ से तफ़सील से बयान की गई हैं.
2. यह कि अल्लाह के सिवा तुम किसी को मत पुकारो. बेशक मैं तुम्हारे लिए अल्लाह की तरफ़ से अज़ाब से ख़बरदार करने वाला और जन्नत की ख़ुशख़बरी देने वाला पैग़म्बर हूं.
3. और यह कि तुम अपने परवरदिगार से मग़फ़िरत की दुआ मांगो. फिर उसकी बारगाह में दिल से तौबा करो. वह तुम्हें मुक़र्रर वक़्त तक ज़िन्दगी के अच्छे साजो सामान से फ़ायदा पहुंचाएगा और वह हर फ़ज़ीलत वाले को उसकी फ़ज़ीलत की जज़ा देगा. और अगर तुमने उसके हुक्म से मुंह फेरा, तो बेशक मैं तुम्हारे बारे में एक बड़े सख़्त दिन के अज़ाब से ख़ौफ़ज़दा हूं. 
4. तुम सबको अल्लाह की तरफ़ ही लौटना है और वह हर चीज़ पर क़ादिर है.
5. जान लो कि वे काफ़िर अपने सीनों को दोहरा कर लेते हैं, ताकि अल्लाह से अपने दिलों का हाल छुपा सकें. सुनो कि जब वे अपने कपड़े पहन ओढ़ लेते हैं, तब भी अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है, जो कुछ वे लोग पोशीदा रखते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं. बेशक वह दिलों में पोशीदा राज़ों से भी ख़ूब वाक़िफ़ है.
6. और ज़मीन में कोई चलने फिरने वाला ऐसा नहीं, जिसका रिज़्क़ अल्लाह के ज़िम्मे नहीं है. और अल्लाह उनके रहने और मरने के बाद उनके सौंपे जाने की जगह को भी ख़ूब जानता है. हर बात रौशन किताब यानी लौहे महफ़ूज़ में लिखी हुई है.
7. और वह अल्लाह ही है, जिसने आसमानों और ज़मीन की छह दिन में तख़लीक़ की. और इससे पहले उसका अर्श पानी पर था. उसने यह तख़लीक़ इसलिए की, ताकि तुम लोगों को आज़माए कि तुम में से कौन अमल के ऐतबार से बेहतर है और ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अगर तुम यह कहो कि तुम लोग मरने के बाद ज़िन्दा करके उठाए जाओगे, तो कुफ़्र करने वाले लोग ज़रूर कह देंगे कि यह तो सरीह जादू के सिवा कुछ नहीं है.
8. और अगर हम उनसे एक मुद्दत तक अज़ाब में देर कर दें, तो वे लोग ज़रूर कहेंगे कि उसे किस चीज़ ने रोके रखा है. जान लो कि जिस दिन वह अज़ाब उन पर आएगा, तो फिर उनसे टाला नहीं जाएगा. और वह अज़ाब उन्हें घेर लेगा, जिसका वे लोग मज़ाक़ उड़ाया करते हैं.  
9. और अगर हम इंसान को अपनी रहमत का ज़ायक़ा चखाते हैं, फिर हम उसे वापस ले लेते हैं, तो बेशक वह बहुत मायूस और नाशुक्रा हो जाता है.
10. और अगर हम उसे कोई नेअमत का चखाते हैं, उस तकलीफ़ के बाद, जो उसे पहुंच चुकी थी, तो वह ज़रूर कहता है कि मुझसे सारी तकलीफ़ें दूर हो गईं. बेशक वह बड़ा ख़ुश होने वाला फ़ख़्र करने वाला है.
11. सिवाय उन लोगों के, जिन्होंने सब्र किया और नेक अमल करते रहे, तो ऐसे लोगों के लिए मग़फ़िरत और बड़ा अज्र है.
12. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या यह मुमकिन है कि तुम उसमें से कुछ छोड़ दो, जो तुम्हारी तरफ़ वही के ज़रिये भेजा गया है और उससे तुम्हारा दिल इस ख़्याल से तंग होने लगे कि काफ़िर यह कहते हैं कि इस रसूल पर कोई ख़ज़ाना नाज़िल क्यों नहीं किया गया या उनके साथ कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं आया. तुम तो सिर्फ़ अज़ाब से ख़बरदार करने वाले पैग़म्बर हो. और अल्लाह हर चीज़ का निगेहबान है. 
13. क्या वे काफ़िर कहते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस क़ुरआन को ख़ुद गढ़ लिया है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि तुम भी ऐसी गढ़ी हुई दस सूरतें ले आओ और तुम अल्लाह के सिवा अपनी मदद के लिए जिसे चाहो बुला लो. अगर तुम सच्चे हो.
14. ऐ लोगो ! फिर अगर वे लोग तुम्हारी बात का जवाब न दे सकें, तो जान लो कि यह क़़ुरआन सिर्फ़ अल्लाह के इल्म से नाज़िल किया गया है और यह कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं. तो क्या अब तुम मुसलमान बनोगे. 
15. जो लोग सिर्फ़ दुनियावी ज़िन्दगी और उसकी ज़ीनत व आराइश चाहते हैं, तो हम उनके आमाल का पूरा-पूरा बदला इसी दुनिया में दे देते हैं और इसमें कोई कमी नहीं की जाती. 
16. यही वे लोग हैं जिनके लिए आख़िरत में दोज़ख़ की आग के सिवा कुछ नहीं है. और उनके सब आमाल बर्बाद हो गए, जो उन्होंने दुनिया में अंजाम दिए थे. और वह सब बातिल हो गया, जो कुछ वे किया करते थे. यानी उन्हें उनके आमाल का सिला दुनिया में ही दे दिया गया.  
17. फिर क्या जो शख़्स अपने परवरदिगार की तरफ़ से रौशन दलील पर क़ायम है और अल्लाह की तरफ़ से एक गवाह क़ुरआन भी उसकी ताईद के लिए आ गया है और इससे पहले मूसा अलैहिस्सलाम की किताब यानी तौरात भी आ चुकी हो, जो लोगों के लिए इमाम यानी रहनुमा और रहमत थी. यही लोग इस क़ुरआन पर ईमान लाते हैं. और काफ़िर फिरक़ों में से जो इसका मुनकिर है, तो उसका ठिकाना दोज़ख़ है. ऐ बन्दे ! फिर तू इस क़ुरआन के बारे में शक में मुब्तिला न हो. बेशक यह क़़ुरआन तेरे परवरदिगार की तरफ़ से बरहक़ है, लेकिन बहुत से लोग ईमान नहीं लाते.
18. और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा, जो अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधे. यही लोग अपने परवरदिगार के हुज़ूर में पेश किए जाएंगे और गवाह कहेंगे कि यही वे लोग हैं, जिन्होंने अपने परवरदिगार के बारे में झूठ बोला था. जान लो कि ज़ालिमों पर अल्लाह की लानत है.
19. जो लोग दूसरों को अल्लाह की राह से रोकते हैं और इसमें ख़ामियां तलाश करते हैं और यही लोग आख़िरत  से भी कुफ़्र करते हैं.
20. वे लोग अल्लाह को ज़मीन में आजिज़ नहीं कर सकते और न अल्लाह के सिवा उनका कोई मददगार है. उन्हें दोगुना अज़ाब दिया जाएगा, क्योंकि वे लोग न हक़ बात सुन सकते थे और न देख सकते थे.
21. यही वे लोग हैं, जिन्होंने ख़ुद अपना नुक़सान किया और उनसे वह भी गुम हो गया, जो झूठे बोहतान वे बांधा करते थे. 
22. इसमें शक नहीं कि यही लोग आख़िरत में सबसे ज़्यादा नुक़सान उठाने वाले हैं. 
23. बेशक जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे और अपने परवरदिगार की बारगाह में आजिज़ी का इज़हार करते रहे, तो वही असहाबे जन्नत हैं. वे उसमें हमेशा रहेंगे.
24. काफ़िर और मुसलमान दोनों फ़िरक़ों की मिसाल अंधे और बहरे और देखने वाले और सुनने वाले की मानिन्द है. क्या दोनों बराबर हो सकते हैं? क्या फिर भी तुम लोग ग़ौर व फ़िक्र नहीं करते. 
25. और बेशक हमने नूह अलैहिस्सलाम को उनकी क़ौम के पास भेजा. उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि मैं तुम्हें  अज़ाब से ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर हूं.
26. तुम अल्लाह के सिवा किसी को मत पुकारो. बेशक मैं तुम्हारे बारे में एक बड़े सख़्त दिन के अज़ाब से ख़ौफ़ज़दा हूं.
27. फिर नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम के कुफ़्र करने वाले सरदार कहने लगे कि हमें तो तुम अपने जैसे ही बशर दिखाई देते हो और हमने किसी को तुम्हारी पैरवी करते हुए नहीं देखा, सिवाय हम में से पस्त और हक़ीर लोगों के, जो बग़ैर सोचे समझे तुम्हारे पीछे लग गए हैं. और हम तुम में ख़ुद पर कोई फ़ज़ीलत नहीं देखते, बल्कि हम तुम्हें झूठा गुमान करते हैं.
28. नूह अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ मेरी क़ौम ! तुम देखो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ से रौशन दलील पर क़ायम हूं और उसने मुझे अपनी बारगाह से ख़ास रहमत यानी नबुवत अता की है और वह तुम्हें दिखाई नहीं देती. तो क्या मैं उसे जबरन तुमसे मनवा सकता हूं, जबकि तुम उससे बेज़ार हो.
29. और ऐ मेरी क़ौम ! मैं तुमसे कोई माल व दौलत नहीं चाहता. मेरा अज्र तो सिर्फ़ अल्लाह के ज़िम्मे है. और मैं तुम्हारे लिए उन लोगों को निकाल नहीं सकता, जो ईमान ले आए हैं. बेशक वे लोग अपने परवरदिगार से मिलेंगे. लेकिन मैं तुम लोगों को जहालत की बातें करते हुए देख रहा हूं.
30. और मेरी क़ौम ! अगर मैं उन लोगों को निकाल दूं, तो अल्लाह के अज़ाब से मुझे कौन बचाएगा. क्या फिर भी तुम ग़ौर व फ़िक्र नहीं करते.
31. और मैं तुमसे यह नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं और न मैं ग़ैब की बातें जानता हूं और न मैं यह कहता हूं कि मैं फ़रिश्ता हूं और न जो लोग तुम्हारी नज़रों में हक़ीर हैं, उनके बारे में यह कहता हूं कि अल्लाह उन्हें ख़ैर नहीं देगा. अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है, जो कुछ उनके दिलों में है. और अगर मैं ऐसा कहूं, तो बेशक मैं भी ज़ालिमों में से हो जाऊंगा.
32. वे लोग कहने लगे कि ऐ नूह अलैहिस्सलाम ! बेशक तुमने हमसे झगड़ा किया है. फिर अब हमारे पास वह अज़ाब ले आओ, जिसका तुम हमसे वादा करते हो. अगर तुम सच्चे हो. 
33. नूह अलैहिस्सलाम ने कहा कि वह अज़ाब तो बस अल्लाह ही तुम पर लाएगा. अगर वह चाहेगा और तुम लोग उसे आजिज़ नहीं सकते.
34. और मेरी नसीहत भी तुम्हें नफ़ा नहीं देगी, अगरचे मैं तुम्हें कितनी ही नसीहत करूं. अगर अल्लाह तुम्हें गुमराही में छोड़ना चाहता हो. वह तुम्हारा परवरदिगार है और तुम्हें उसकी तरफ़ ही लौटना है. 
35. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या वे लोग यह कहते हैं कि रसूल ने इस क़ुरआन को ख़ुद ही गढ़ लिया है. तुम कह दो कि अगर मैंने इसे गढ़ा है, तो मेरे गुनाह का वबाल मुझ पर होगा और मैं उससे बरी हूं, जो गुनाह तुम कर रहे हो. 
36. और नूह अलैहिस्सलाम की तरफ़ वही भेज दी गई कि बेशक अब हरगिज़ तुम्हारी क़ौम में से और कोई ईमान नहीं लाएगा, सिवाय उनके जो अब तक ईमान ला चुके हैं. फिर तुम उन बातों से ग़मगीन न हो, जो वे लोग बनाया करते हैं.   
37. और हमारे हुक्म के मुताबिक़ हमारे सामने कश्ती बनाओ और ज़ुल्म करने वाले लोगों के बारे में हमसे कोई बात मत करना. बेशक वे लोग ग़र्क़ कर दिए जाएंगे.
38. और नूह अलैहिस्सलाम कश्ती बनाने लगे और जब भी उनकी क़ौम के सरदार उनके क़रीब से गुज़रते, तो उनका मज़ाक़ उड़ाते. नूह अलैहिस्सलाम कहते कि अगर आज तुम हमारा मज़ाक़ उड़ा रहे हो, तो बेशक कल हम भी तुम पर हंसेंगे, जैसे तुम हंस रहे हो. 
39. फिर तुम लोग अनक़रीब जान लोगे कि किस पर दुनिया में अज़ाब आता है, जो उसे रुसवा कर देगा और किस पर आख़िरत में भी दाइमी अज़ाब नाज़िल होता है.
40. यहां तक कि जब हमारा अज़ाब का हुक्म आ गया और तन्नूर जोश से उबलने लगा, तो हमने हुक्म दिया कि ऐ नूह अलैहिस्सलाम ! इस कश्ती में हर क़िस्म में से नर और मादा का जोड़ा सवार कर लो और अपने घरवालों को भी ले लो, सिवाय उनके जिन पर हलाकत का फ़रमान सादिर हो चुका है. और जो कोई ईमान ले आया है, उसे भी साथ ले लो. और कुछ लोगों के सिवा उनके साथ कोई ईमान नहीं लाया था. 
41. और नूह अलैहिस्सलाम ने कहा कि तुम लोग इस कश्ती में सवार हो जाओ. अल्लाह ही के नाम से. उसका चलना और उसका ठहरना है. बेशक मेरा परवरदिगार बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
42. और वह कश्ती पहाड़ों जैसी तूफ़ानी लहरों में उन लोगों को लिए हुए चली जा रही थी. और नूह अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे को आवाज़ दी, जो उनसे अलग काफ़िरों के साथ खड़ा था कि ऐ मेरे बेटे ! हमारे साथ कश्ती में सवार हो जा और काफ़िरों के साथ न ठहर.
43. नूह अलैहिस्सलाम के बेटे ने कहा कि मैं कश्ती में सवार होने के बजाय अभी किसी पहाड़ की पनाह ले लेता हूं. वह मुझे पानी से बचा लेगा. नूह अलैहिस्सलाम ने कहा कि आज अल्लाह के अज़ाब से कोई बचाने वाला नहीं है, सिवाय उसके जिस पर अल्लाह रहम करे. इतने में दोनों के दरम्यान तूफ़ानी मौज हाइल हो गई और वह ग़र्क़ होने वालों में से हो गया. 
44. और फिर हुक्म दिया गया कि ऐ ज़मीन ! अपना पानी जज़्ब कर ले और ऐ आसमान ! बरसने से थम जा और पानी ख़ुश्क हो गया और काम मुकम्मल हो गया और कश्ती जूदी नाम के पहाड़ पर जाकर ठहर गई और इरशाद हुआ कि ज़ालिमों की क़ौम अल्लाह की रहमत से दूर है. 
45. जिस वक़्त नूह अलैहिस्सलाम का बेटा ग़र्क़ हो रहा था, तो उन्होंने अपने परवरदिगार को पुकारा और अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! बेशक मेरा बेटा मेरे घरवालों में शामिल है और बेशक तेरा वादा सच्चा है और तू सबसे बड़ा हाकिम है. यानी तू मेरे बेटे को निजात दे.
46. अल्लाह ने फ़रमाया कि ऐ नूह अलैहिस्सलाम ! बेशक वह तुम्हारे घरवालों में शामिल नहीं है. बेशक उसके अमल अच्छे नहीं थे. हमसे वह सवाल न किया करो, जिसका तुम्हें इल्म नहीं है. हम तुम्हें नसीहत करते हैं कि कहीं तुम जाहिलों में से न हो जाना. 
47. नूह अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया ऐ मेरे परवरदिगार ! मैं इस बात से तेरी पनाह चाहता हूं कि मैं तुझसे वह सवाल करूं, जिसका मुझे इल्म न हो. और अगर तू मुझे नहीं बख़्शेगा और मुझ पर रहम नहीं करेगा, तो मैं नुक़सान उठाने वालों में से हो जाऊंगा.
48. जब तूफ़ान थम गया, तो हुक्म दिया गया कि ऐ नूह अलैहिस्सलाम ! हमारी तरफ़ से सलामती और उन बरकतों के साथ कश्ती से उतर जाओ, जो तुम पर हैं. और उन तबक़ों पर हैं, जो तुम्हारे साथ हैं. और आइन्दा फिर कुछ तबक़े ऐसे होंगे, जिन्हें हम दुनियावी फ़ायदा देंगे. फिर उन्हें हमारी तरफ़ से दर्दनाक अज़ाब पहुंचेगा.
49. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यह बयान ग़ैब की उन ख़बरों में से हैं, जिन्हें हम तुम्हारी तरफ़ वही के ज़रिये भेजते हैं. इससे पहले न तुम इन्हें जानते थे और न तुम्हारी क़ौम ही जानती थी. फिर तुम सब्र करो. बेशक अच्छा अंजाम परहेज़गारों के लिए है. 
50. और हमने क़ौमे आद की तरफ़ उनके भाई हूद अलैहिस्सलाम को पैग़म्बर बनाकर भेजा. उन्होंने कहा कि ऐ मेरी क़ौम ! अल्लाह की इबादत करो. उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं. तुम सिर्फ़ झूठे बोहतान बांधने वाले हो.
51. ऐ मेरी क़ौम ! मैं तुमसे कोई उजरत नहीं चाहता. मेरा अज्र तो सिर्फ़ उस ख़ालिक़ के ज़िम्मे है, जिसने मुझे पैदा किया है. क्या फिर भी तुम नहीं समझते.
52. और ऐ मेरी क़ौम ! तुम अपने परवरदिगार से मग़फ़िरत की दुआ मांगो. फिर उसकी बारगाह में दिल से  तौबा करो. वह तुम पर आसमान से मूसलाधार बारिश बरसाएगा. और तुम्हारी क़ूवत में मज़ीद इज़ाफ़ा करेगा. और तुम गुनाहगार बनकर उससे मुंह न फेरो.
53. वे लोग कहने लगे कि ऐ हूद अलैहिस्सलाम ! तुम हमारे पास कोई वाज़ेह दलील लेकर नहीं आए हो और न हम तुम्हारे कहने से अपने सरपरस्तों को छोड़ेंगे और न हम तुम पर ईमान लाएंगे.
54. हम इसके सिवा कुछ नहीं कहते कि हमारे सरपरस्तों में से किसी ने तुम्हें दीवाना बना दिया है. हूद अलैहिस्सलाम ने कहा कि बेशक मैं अल्लाह को गवाह बनाता हूं और तुम भी गवाह रहो कि मैं उनसे बेज़ार हूं, जिन्हें तुम अल्लाह का शरीक ठहराते हो. 
55. उस अल्लाह के सिवा तुम सब मिलकर मेरे साथ मक्कारी करो. फिर मुझे मोहलत भी न दो. 
56. बेशक मैंने अल्लाह पर भरोसा किया है, जो मेरा भी परवरदिगार है और तुम्हारा भी परवरदिगार है. और  ज़मीन पर चलने फिरने वाला ऐसा कोई नहीं है, जिसकी चोटी उसकी गिरफ़्त में न हो. बेशक मेरे परवरदिगार का रास्ता बिल्कुल सीधा है.
57. फिर भी अगर तुम उसके हुक्म से मुंह फेरो, तो मैंने तमाम अहकाम तुम तक पहुंचा दिए हैं, जिन्हें लेकर मैं तुम्हारे पास भेजा गया हूं. और मेरा परवरदिगार तुम्हारी जगह किसी और क़ौम को यहां बसा देगा. और तुम उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते. बेशक मेरा परवरदिगार हर चीज़ का मुहाफ़िज़ है.
58. और जब हमारा अज़ाब का हुक्म आ गया, तो हमने हूद अलैहिस्सलाम और उनके साथ ईमान लाने वाले लोगों को अपनी रहमत से बचा लिया और उन्हें सख़्त अज़ाब से निजात दी. 
59. और यह क़ौमे आद है, जिन्होंने अपने परवरदिगार की आयतों से इनकार किया और अपने रसूलों की नाफ़रमानी की और हर जाबिर और मुताकब्बिर दुश्मन की पैरवी की. 
60. और इस दुनिया में उन लोगों के पीछे लानत लगा दी गई और क़यामत के दिन भी लगी रहेगी. जान लो कि बेशक क़ौमे आद ने अपने परवरदिगार के साथ कुफ़्र किया. याद रखो कि हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद के लिए अल्लाह की रहमत से दूरी है.
61. और हमने क़ौमे समूद के पास उनके भाई सालेह को पैग़म्बर बनाकर भेजा. उन्होंने कहा कि ऐ मेरी क़ौम !  अल्लाह की इबादत करो. उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं. उसी ने तुम्हें ज़मीन की मिट्टी से पैदा किया और तुम्हें उसमें बसाया. फिर तुम उससे मग़फ़िरत की दुआ मांगो. फिर उसकी बारगाह में दिल से तौबा करो. बेशक मेरा परवरदिगार क़रीबतर है और वह दुआएं क़ुबूल करने वाला है.
62. वे लोग कहने लगे कि ऐ सालेह अलैहिस्सलाम ! इससे पहले तुम ही हमारे दरम्यान उम्मीदों का मरकज़ थे. क्या तुम हमें उन्हें पुकारने से रोक रहे हो, जिन्हें हमारे बाप दादा पुकारा करते थे. और जिस दीन की तरफ़ तुम हमें बुला रहे हो, बेशक हम उसके बारे में इज़्तिराब अंगेज़ शक में मुब्तिला हैं. 
63. सालेह अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ मेरी क़ौम ! देखो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ से रौशन दलील पर क़ायम हूं और उसने मुझे अपनी बारगाह से रहमत यानी नबुवत अता की है. अगर मैं उसकी नाफ़रमानी करूं, तो कौन उसके अज़ाब से बचाने में मेरी मदद करेगा. फिर तुम सिवाय नुक़सान बढ़ाने के मेरा कुछ नहीं कर सकते. 
64. और ऐ मेरी क़ौम ! अल्लाह की यह ऊंटनी तुम्हारे लिए निशानी है. फिर इसे इसके हाल पर छोड़ दो कि अल्लाह की ज़मीन में जहां चाहे खाये व पिये और इसे बुरे इरादे से छूना भी नहीं, वरना तुम्हें अनक़रीब अल्लाह का अज़ाब अपनी गिरफ़्त में ले लेगा. 
65. उन लोगों ने ऊंटनी की कूंचें काटकर उसे मार दिया. सालेह अलैहिस्लाम ने कहा कि तुम अपने घरों में तीन दिन और आराम से रह लो. अल्लाह का अज़ाब का वादा कभी झूठा नहीं होता.
66. फिर जब हमारा अज़ाब का हुक्म आ गया, तो हमने सालेह अलैहिस्सलाम और उनके साथ ईमान लाने वाले लोगों को अपनी रहमत से निजात दी और उन्हें उस दिन की रुसवाई से बचा लिया. बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ा क़ूवत वाला बड़ा ग़ालिब है.
67. और ज़ुल्म करने वाले लोगों को एक ख़ौफ़नाक आवाज़ ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया. फिर सुबह वे लोग अपने घरों में औंधे पड़े रह गए.
68. गोया वे लोग कभी उनमें बसे ही न थे. जान लो कि सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद ने अपने परवरदिगार से कुफ़्र किया था. याद रखो कि क़ौमे समूद पर अल्लाह की रहमत से दूर है.
69. और हमारे भेजे हुए फ़रिश्ते इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास ख़ुशख़बरी लेकर आए. उन्होंने सलाम किया. इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने भी सलाम का जवाब दिया. फिर इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने देर न की और बछड़े का भुना हुआ गोश्त ले आए.
70. फिर जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने देखा कि उनके हाथ खाने की तरफ़ नहीं बढ़ रहे हैं, तो उन्हें बदगुमानी हुई और वे उनसे ख़ौफ़ज़दा हो गए. फ़रिश्तों ने कहा कि आप ख़ौफ़ज़दा न हों. बेशक हम लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम की तरफ़ भेजे गए हैं.
71. और इब्राहीम अलैहिस्सलाम की बीवी सारा पास ही खड़ी हुई थीं. वे यह ख़बर सुनकर हंस पड़ीं कि हमने उन्हें इसहाक़ अलैहिस्सलाम और उनके बाद याक़ूब अलैहिस्सलाम की पैदाइश की ख़ुशख़बरी दी.
72. सारा कहने लगीं कि हाय ! क्या मैं बच्चे को जन्म दूंगी. हालांकि मैं बूढ़ी हो गई हूं और मेरे शौहर भी बूढे़ हैं. यह तो बड़ी अजीब बात है.
73. वे फ़रिश्ते कहने लगे कि क्या तुम अल्लाह के हुक्म पर ताज्जुब कर रही हो. ऐ अहले बैत ! तुम पर अल्लाह की रहमतें और उसकी बरकतें नाज़िल हों. बेशक वह सज़ावारे हम्दो सना और मजीद है. यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं और वह बड़ा अज़मत वाला है. 
74. फिर जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम के दिल से ख़ौफ़ जाता रहा और उनके पास औलाद की ख़ुशख़बरी भी आ गई, तो वह हमसे क़ौमे लूत के बारे में इसरार करने लगे.
75. बेशक इब्राहीम अलैहिस्सलाम हलीम और नरम दिल और अल्लाह की तरफ़ रुजू करने वाले थे.
76. हमने कहा कि ऐ इब्राहीम अलैहिस्सलाम ! इस बात से दरगुज़र करो. बेशक अब तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब का हुक्म आ चुका है. और बेशक उन पर ऐसा अज़ाब आने वाले वाला है, जिसे टाला नहीं जा सकता.
77. और जब हमारे भेजे हुए फ़रिश्ते लूत अलैहिस्सलाम के पास आए, तो वे उनके आने से परेशान और तंग दिल हो गए और कहने लगे कि यह बड़ा सख़्त दिन है.
78. और लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम मेहमानों की आवाज़ सुनते ही बुरे इरादे से उनके पास दौड़ती हुई आ गई और वे लोग पहले ही बुरे काम किया करते थे. लूत अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ मेरी क़ौम ! ये मेरी क़ौम की बेटियां हैं. इनसे निकाह कर लो. ये तुम्हारे लिए पाकीज़ा और हलाल हैं. फिर तुम अल्लाह से डरो और मेरे मेहमान के बारे में मुझे रुसवा न करो. क्या तुम में से कोई भी नेक सीरत आदमी नहीं है.
79. वे लोग कहने लगे कि तुम अच्छी तरह जानते हो कि हमें तुम्हारी बेटियों से कोई ग़रज़ नहीं है और बेशक तुम ख़ूब जानते हो, जो कुछ हम चाहते हैं. 
80. लूत अलैहिस्सलाम ने कहा कि काश ! मुझमें तुम्हारा मुक़ाबला करने की क़ूवत होती या मेरे पास कोई मज़बूत सहारा होता, जिसकी मैं पनाह ले सकता.
81. वे फ़रिश्ते कहने लगे कि ऐ लूत अलैहिस्सलाम ! हम तुम्हारे परवरदिगार के भेजे हुए फ़रिश्ते हैं. ये लोग तुम तक हरगिज़ नहीं पहुंच सकते. फिर तुम अपने घरवालों को रात के किसी हिस्से में लेकर निकल जाओ. और तुममें से कोई मुड़कर भी पीछे न देखे. लेकिन अपनी बीवी को साथ न लेना. बेशक उसे भी वही अज़ाब पहुंचेगा, जो उन लोगों पर नाज़िल होगा. बेशक उनके अज़ाब का मुक़र्रर वक़्त सुबह का है. क्या सुबह क़रीब नहीं है. 
82. फिर जब हमारा अज़ाब का हुक्म आ गया, तो हमने उस बस्ती को उलट कर उसके ऊपर के हिस्से को नीचे का बना दिया और हमने उस पर कंकड़ और पत्थर बरसाए, जो तह दर तह गिरते गए. 
83. जिन पर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से निशान बनाए हुए थे और वह बस्ती उन ज़ालिमों से कुछ दूर नहीं है. 
84. और हमने मदयन की तरफ़ उनके भाई शुऐब अलैहिस्सलाम को पैग़म्बर बना कर भेजा. उन्होंने कहा कि ऐ मेरी क़ौम ! अल्लाह की इबादत करो. उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं. और नाप और तौल में कमी न किया करो. बेशक मैं तुम्हें ख़ुशहाली में देख रहा हूं. और बेशक मैं तुम्हारे लिए ऐसे बड़े सख़्त दिन के अज़ाब से ख़ौफ़ज़दा हूं, जो सबको घेर लेगा. 
85. और ऐ मेरी क़ौम ! तुम नाप और तौल इंसाफ़ के साथ पूरे रखा करो और लोगों को उनकी चीज़ें कम करके न दिया करो और ज़मीन में फ़साद फैलाते न फिरो.
86. लोगों को उनका हक़ देने के बाद अल्लाह के दिए में से बचा हुआ तुम्हारे लिए बेहतर है. अगर तुम मोमिन हो और मैं तुम्हारा मुहाफ़िज़ नहीं हूं. 
87. वे लोग कहने लगे कि ऐ शुऐब अलैहिस्सलाम ! क्या तुम्हारी नमाज़ तुम्हें यही हुक्म देती है कि हम उन सरपरस्तों को छोड़ दें, जिन्हें हमारे बाप दादा पुकारते आए हैं या हम अपने माल में से जो चाहें वह न करें. बेशक तुम ही हलीम और नेक सीरत रह गए हो.
88. शुऐब अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ मेरी क़ौम ! देखो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ से रौशन दलील पर क़ायम हूं और उसने मुझे अपनी बारगाह से उम्दा रिज़्क़ भी अता किया है, तो मैं हक़ की तबलीग़ क्यों न करूं. और मैं यह नहीं चाहता कि मैं तुम्हारे पीछे लग कर ख़ुद ही हक़ के ख़िलाफ़ कुछ करूं, जिससे मैं तुम्हें रोकता हूं. मुझसे जहां तक हो सकता है, मैं तुम्हारी इस्लाह ही चाहता हूं. और मेरी तौफ़ीक़ अल्लाह ही से वाबस्ता है. मैंने उसी पर भरोसा किया है. और मैं उसी की तरफ़ रुजू करता हूं.
89. और ऐ मेरी क़ौम ! कहीं मुझसे तुम्हारी ज़िद और मुख़ालिफ़त तुम पर ऐसा अज़ाब न ला दे, जैसा अज़ाब नूह अलैहिस्सलाम या हूद अलैहिस्सलाम या सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम पर नाज़िल हुआ था. और लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम का ज़माना तो तुमसे दूर नहीं गुज़रा.
90. और तुम अपने परवरदिगार से मग़फ़िरत की दुआ मांगो. फिर उसकी बारगाह में दिल से तौबा करो. बेशक मेरा परवरदिगार बड़ा मेहरबान मुहब्बत करने वाला है.
91. और वे लोग कहने लगे कि ऐ शुऐब अलैहिस्सलाम ! तुम्हारी बहुत सी बातें हमारी समझ में नहीं आतीं और बेशक हम तुम्हें अपने दरम्यान बहुत कमज़ोर समझते हैं और अगर तुम्हारा कुनबा न होता, तो हम तुम्हें संगसार कर देते. और तुम किसी भी तरह हम पर ग़ालिब नहीं आ सकते.
92. शुऐब अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ मेरी क़ौम ! क्या मेरा कुनबा तुम्हारी नज़र में अल्लाह से ज़्यादा मुअज़्ज़िज़ है. और तुम लोगों ने उसे अपनी पीठ के पीछे रखा हुआ है. बेशक मेरा परवरदिगार तुम्हारे सब आमाल को अपने अहाते में लिए हुए है.
93. और ऐ मेरी क़ौम ! तुम अपनी जगह अमल करो. बेशक मैं अपनी जगह अमल कर रहा हूं. तुम अनक़रीब जान लोगे कि किस पर अज़ाब आता है, जो उसे रुसवा कर देगा और कौन झूठा है. तुम भी इंतज़ार करते रहो और मैं भी तुम्हारे साथ मुंतज़िर हूं.
94. और जब हमारा अज़ाब का हुक्म आ गया, तो हमने शुऐब अलैहिस्सलाम और उनके साथ ईमान लाने वाले  लोगों को अपनी रहमत से निजात दी. और ज़ुल्म करने वाले लोगों को एक ख़ौफ़नाक आवाज़ ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया. फिर सुबह वे लोग अपने घरों में औंधे पड़े रह गए.
95. गोया वे लोग उन बस्तियों में कभी बसे ही नहीं थे. जान लो कि मदयन के लोग भी अल्लाह की रहमत से इसी तरह दूर हुए जैसे सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद दूर हुई थी. 
96. और बेशक हमने मूसा अलैहिस्सलाम को अपनी निशानियों और रौशन दलील के साथ भेजा था. 
97. फ़िरऔन और उसके सरदारों के पास. फिर उन लोगों ने फ़िरऔन के हुक्म की पैरवी की. हालांकि फ़िरऔन  का हुक्म सही नहीं था.
98. फ़िरऔन क़यामत के दिन अपनी क़ौम के आगे चलेगा. फिर उन्हें दोज़ख़ में उतार देगा और वह उतरने की बहुत बुरी जगह है. 
99. और इस दुनिया में भी लानत उनके पीछे लगा दी गई और क़यामत के दिन भी लगी रहेगी. क्या बुरा अतिया है, जो उन्हें दिया गया है. 
100. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये उन बस्तियों के हालात हैं, जो हम तुमसे बयान कर रहे हैं. इनमें से कुछ क़ायम हैं और कुछ नाबूद हो चुकी हैं. 
101. और हमने उन लोगों पर ज़ल्म नहीं किया था, बल्कि उन्होंने ख़ुद ही अपनी जानों पर ज़ुल्म किया. फिर उनके वे बातिल सरपरस्त, जिन्हें वे अल्लाह के सिवा पुकारते थे. उनके कुछ काम नहीं आए. जब तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब का हुक्म आ गया, तो उनके सरपरस्तों ने उनकी तबाही को बढ़ाने के सिवा कुछ नहीं किया. 
102. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और इसी तरह तुम्हारे परवरदिगार की गिरफ़्त है. वह बस्तियों को उस वक़्त अज़ाब की गिरफ़्त में लेता है, जब वहां के बाशिन्दे ज़ुल्म करने लगते हैं. बेशक उसकी गिरफ़्त सख़्त और दर्दनाक होती है.
103. बेशक इन वाक़ियात में उस शख़्स के लिए अल्लाह की क़ुदरत की निशानी है, जो आख़िरत के अज़ाब से ख़ौफ़ रखता है. वह दिन क़यामत का दिन होगा जब सब लोग जमा होंगे और यही वह दिन है जब सब अल्लाह के हुज़ूर में पेश किए जाएंगे. 
104. और हम एक मुक़र्रर मुद्दत के लिए ही इसमें देर कर रहे हैं. 
105. जब क़यामत का वह दिन आएगा, तो कोई भी अल्लाह के हुक्म के बग़ैर बात नहीं कर सकेगा. फिर उनमें कुछ लोग बदबख़्त होंगे और कुछ लोग नेक बख़्त होंगे. 
106. फिर जो लोग बदबख़्त होंगे, वे दोज़ख़ में होंगे और उनके लिए चीख़ना और चिल्लाना होगा.
107. वे लोग दोज़ख़ में हमेशा रहेंगे. जब तक आसमान और ज़मीन क़ायम रहेंगे. लेकिन यह कि जब तुम्हारा परवरदिगार चाहे. बेशक तुम्हारा परवरदिगार जो चाहता है, वह करता है.
108. और जो लोग नेक बख़्त होंगे, वे जन्नत में होंगे और उसमें हमेशा रहेंगे. जब तक आसमान और ज़मीन क़ायम है. लेकिन यह कि जो तुम्हारा परवरदिगार चाहे. यह वह अता होगी, जो कभी ख़त्म नहीं होगी. 
109. फिर तुम उनके बारे में शक में मुब्तिला न हो, जिन्हें वे लोग पुकारते हैं. वे लोग किसी दलील पर नहीं पुकारते, बल्कि इसलिए पुकारते हैं, क्योंकि इससे पहले उनके बाप दादा भी उन्हें पुकारते रहे हैं. और बेशक हम उन्हें उनका पूरा हिस्सा देंगे, जिसमें कोई कमी नहीं की जाएगी.   
110. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक हमने मूसा अलैहिस्सलाम को किताब तौरात अता की. फिर उसमें इख़्तिलाफ़ किया जाने लगा. और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से एक बात पहले से सादिर न हो चुकी होती, तो उनके दरम्यान ज़रूर फ़ैसला कर दिया गया होता. और बेशक वे लोग इस क़ुरआन के बारे में इज़्तिराब अंगेज़ शक में मुब्तिला हैं. 
111. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक तुम्हारा परवरदिगार सबको उनके आमाल का पूरा-पूरा बदला देगा. जो आमाल वे लोग किया करते हैं, अल्लाह उनसे बाख़बर है.
112. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम साबित क़दम रहो, जैसा तुम्हें हुक्म दिया गया है और वह भी साबित क़दम रहे, जिसने तुम्हारे साथ तौबा की है. ऐ लोगो ! तुम सरकशी न करना. बेशक तुम जो कुछ करते हो, वह उसे ख़ूब देख रहा है.
113. ऐ मुसलमानो ! और तुम ज़ुल्म करने वाले लोगों की तरफ़ माइल मत होना, वरना तुम्हें भी दोज़ख़ की आग छू लेगी और तुम्हारे लिए अल्लाह के सिवा कोई मददगार नहीं होगा. फिर तुम्हारी मदद भी नहीं की जाएगी.
114. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम दिन के दोनों किनारों में और रात के कुछ हिस्सों में नमाज़ पढ़ा करो. बेशक नेकियां बुराइयों को मिटा देती हैं और हमारा ज़िक्र करने वालों के लिए यह नसीहत है. 
115. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम सब्र करो. बेशक अल्लाह मोहसिनों का अज्र ज़ाया नहीं करता. 
116. फिर तुमसे पहले की क़ौमों में ऐसे ख़ैर चाहने वाले लोग क्यों नहीं हुए, जो लोगों को ज़मीन में फ़साद फैलाने से रोकते, सिवाय थोड़े से लोगों के, जिन्हें हमने निजात दे दी. और ज़ुल्म करने वाले लोगों ने ऐशो इशरत की पैरवी की और वे सब गुनाहगार थे.
117. और तुम्हारा परवरदिगार के शायाने शान नहीं कि वह बस्तियों को ज़ुल्म से हलाक कर दे, जबकि उनके बाशिन्दे नेक सीरत हों.
118. और अगर तुम्हारा परवरदिगार चाहता, तो बेशक तमाम लोगों को एक ही क़िस्म की उम्मत बना देता. और वे लोग हमेशा आपस में इख़्तिलाफ़ करते रहेंगे. 
119. सिवाय उस शख़्स के, जिस पर तुम्हारा परवरदिगार रहम करे. और इसीलिए उसने जिन्नों और इंसानों को पैदा किया. और तुम्हारे परवरदिगार का हुक्म पूरा हो गया कि बेशक हम जहन्नुम को जिन्नों और इंसानों से भर देंगे. 
120. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हम रसूलों के हालात की हर बात तुमसे बयान कर रहे हैं, जिसके ज़रिये तुम्हारे दिल को मज़बूती और तसल्ली दें और इस तरह तुम्हारे पास हक़ पहुंचता है, जो मोमिनों के लिए ज़िक्र यानी नसीहत है. 
121. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम ईमान न लाने वाले लोगों से कह दो कि तुम अपनी जगह अमल करते रहो और मैं अपनी जगह अमल कर रहा हूं.
122. और तुम भी इंतज़ार करो. मैं भी मुंतज़िर हूं. 
123. और आसमानों और ज़मीन की ग़ैब की बातें अल्लाह ही जानता है और उसकी तरफ़ ही हर काम लौटता है. तुम उसी की इबादत करो और उसी पर भरोसा करो. और अल्लाह उन आमाल से ग़ाफ़िल नहीं है, जो वे लोग किया करते हैं. 

0 comments:

Post a Comment