सूरह अल अनआम मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 165 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं, जिसने आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ की और तारीकी और नूर बनाया. फिर भी कुफ़्र करने वाले लोग दूसरों को अपने परवरदिगार के बराबर ठहराते हैं.
2. वह अल्लाह ही है, जिसने मिट्टी से तुम्हारी इब्तिदाई तख़लीक़ की. फिर उसने तुम्हारी मौत का एक वक़्त मुक़र्रर कर दिया और क़यामत का वक़्त भी उसके यहां मुक़र्रर है. फिर भी तुम शक में मुब्तिला हो.
3. और आसमानों में और ज़मीन में अल्लाह ही है, जो तुम्हारी पोशीदा और ज़ाहिरी बातों को जानता है. और वह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है, जो कुछ तुम करते हो.
4. और उन लोगों के परवरदिगार की निशानियों में से उनके पास ऐसी कोई निशानी नहीं आई, जिससे उन्होंने मुंह न फेरा हो.
5. फिर बेशक उन लोगों ने हक़ को झुठला दिया, जब भी वह उनके पास आया. फिर अनक़रीब उनके पास उसकी ख़बर आ जाएगी, जिसका वे मज़ाक़ उड़ाया करते हैं.
6. क्या उन लोगों ने नहीं देखा कि हमने उनसे पहले कितनी ही उम्मतों को हलाक कर दिया, जिन्हें हमने ज़मीन में ऐसा मुस्तहकम इख़्तेदार दिया था, जो तुम्हें नहीं दिया और हमने आसमान से उन पर मूसलाधार बारिश की और हमने नीचे नहरें जारी कर दीं. फिर हमने उनके गुनाहों की वजह से उन्हें हलाक कर दिया और उनके बाद हमने दूसरी उम्मतों को पैदा कर दिया.
7. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर हम तुम पर काग़ज़ पर लिखी हुई किताब नाज़िल कर देते और वे लोग उसे अपने हाथों से छू भी लेते. फिर भी कुफ़्र करने वाले लोग यही कहते है कि यह सरीह जादू के सिवा कुछ नहीं है.
8. और वे लोग कहते हैं कि उन रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कोई फ़रिश्ता नाज़िल क्यों नहीं किया गया. और अगर हम फ़रिश्ता नाज़िल कर देते, तो उनका काम तमाम हो जाता. फिर उन्हें मोहलत भी नहीं दी जाती.
9. और अगर हम किसी फ़रिश्ते को पैग़म्बर बनाते, तो उसे भी आदमी की सूरत में ही बनाते और हम तब भी उन्हें उसी शक व शुबहा में मुब्तिला कर देते, जो शक वे अब कर रहे हैं.
10. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक तुमसे पहले भी रसूलों के साथ मज़ाक़ किया गया है. फिर मज़ाक़ करने वाले लोगों को उस अज़ाब ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया, जिसका वे मज़ाक़ उड़ाया करते थे.
11. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि तुम ज़मीन में चल फिर कर देखो कि हक़ और रसूलों को झुठलाने वालों का क्या अंजाम हुआ.
12. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम दरयाफ़्त करो कि जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, वह किसका है? तुम ख़ुद ही कह दो कि अल्लाह का है. उसने अपनी ज़ात पर रहमत लाज़िम कर ली है. वह तुम्हें क़यामत के दिन ज़रूर जमा करेगा, जिसके आने में कोई शक नहीं है. जिन्होंने अपनी जानों को नुक़सान में डाल दिया है, वे अब ईमान नहीं लाएंगे.
13. और जो कुछ रात में और दिन में बसता है, सब अल्लाह ही का है और वही ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
14. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या मैं किसी दूसरे को अपना कारसाज़ बना लूं उस अल्लाह के सिवा, जो आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ करने वाला है और सबको खाना खिलाता है और उसे कोई नहीं खिलाता. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं सबसे पहला मुसलमान यानी फ़रमाबरदार बन जाऊं और यह भी हुक्म हुआ है कि तुम मुशरिकों में से हरगिज़ न हो जाना.
15. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की नाफ़रमानी करूं, तो बेशक मुझे बड़े अज़ाब के दिन का ख़ौफ़ है.
16. उस दिन जिस शख़्स से अज़ाब फेर दिया गया, तो बेशक अल्लाह ने उस पर बड़ा रहम किया और यही सरीह कामयाबी है.
17. और अगर अल्लाह तुम्हें कोई तकलीफ़ पहुंचाए, तो उसके सिवा कोई उसे दूर करने वाला नहीं है. और अगर वह तुम्हारी कोई भलाई करे, तो कोई उसे रोकने वाला भी नहीं है. वह हर चीज़ पर क़ादिर है.
18. और वह अल्लाह ही है, जो अपने बन्दों पर ग़ालिब है. और वह बड़ा हिकमत वाला बड़ा बाख़बर है.
19. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम दरयाफ़्त करो कि गवाही के लिए सबसे बड़ी चीज़ कौन सी है? तुम ख़ुद ही कह दो कि अल्लाह मेरे और तुम्हारे दरम्यान गवाह है और मेरी तरफ़ क़ुरआन की वही की गई है कि इसके ज़रिये मैं तुम्हें और हर उस शख़्स को जहां तक यह पैग़ाम पहुंचे, ख़बरदार करूं. क्या तुम वाक़ई यह गवाही देते हो कि अल्लाह के साथ दूसरे सरपरस्त भी हैं ? ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं ऐसी गवाही नहीं देता. सिर्फ़ माबूद तो वाहिद अल्लाह ही है और बेशक मैं उन सब चीज़ों से बेज़ार हूं, जिन्हें तुम अल्लाह का शरीक ठहराते हो.
20. जिन लोगों को हमने किताब दी थी, वे आख़िरी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को वैसे ही पहचानते हैं, जैसे वे अपने बेटों को पहचानते हैं. जिन्होंने ख़ुद को नुक़सान में डाला, वे कभी ईमान नहीं लाएंगे.
21. और उस शख्स़ से बढ़कर ज़ालिम कौन होगा, जिसने अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधे या उसकी निशानियों को झुठला दिया. बेशक ज़ालिम लोग कभी कामयाब नहीं होते.
22. और जिस दिन हम उन सब लोगों को जमा करेंगे. फिर शिर्क करने वाले लोगों ने कहेंगे कि तुम्हारे वे सरपरस्त कहां हैं, जिन्हें तुम अल्लाह का शरीक गुमान करते थे.
23. फिर उनका कोई फ़ितना बाक़ी नहीं रहेगा, सिवाय इसके कि वे लोग कहेंगे कि हमें अपने परवरदिगार अल्लाह की क़सम है. हम किसी को उसका शरीक नहीं ठहराते थे.
24. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! देखो कि उन लोगों ने किस तरह ख़ुद को ही झुठला दिया और जो झूठे बोहतान वे दुनिया में बांधा करते थे, वे उनसे ग़ायब हो गए.
25. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और उन लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं, जो तुम्हारी तरफ़ कान लगाए रहते हैं और हमने उनके दिलों पर ग़फ़लत के पर्दे डाल दिए हैं कि वे हक़ को समझ न सकें और उनके कानों में बहरापन पैदा कर दिया है. और अगर वे अल्लाह की क़ुदरत की तमाम निशानियां देख लें, तब भी उन पर ईमान नहीं लाएंगे. यहां तक कि जब वे तुम्हारे पास आकर तुमसे झगड़ा करते हैं, तो कुफ़्र करने वाले लोग कहते हैं कि यह क़ुरआन तो सिर्फ़ पहले के लोगों की कहानियों के सिवा कुछ भी नहीं है.
26. और वे लोग दूसरों को भी क़ुरआन सुनने से रोकते हैं और ख़ुद तो उससे दूर भागते ही हैं और इस तरह वे ख़ुद को ही हलाक कर रहे हैं और उन्हें इसका शऊर तक नहीं है.
27. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अगर तुम उन लोगों को उस वक़्त देखोगे कि जब उन्हें दोज़ख़ के किनारे पर खड़ा कर दिया जाएगा, तो कहेंगे कि ऐ काश ! हमें दुनिया में वापस भेज दिया जाए, तो हम अपने परवरदिगार की निशानियों को कभी नहीं झुठलाएं और हम भी मोमिनों में से हो जाएं.
28. बल्कि उन लोगों पर वह सब ज़ाहिर हो गया है, जो कुछ पहले वे छुपाया करते थे. और अगर वे दुनिया में वापस भेज दिए जाएं, तो फिर वही सब करने लगेंगे, जिससे उन्हें मना किया गया था. और बेशक वे लोग झूठे हैं.
29. और वे लोग कहते हैं कि हमारी इस दुनियावी ज़िन्दगी के सिवा और कोई ज़िन्दगी नहीं है और हम मरने के बाद दोबारा ज़िन्दा करके उठाए नहीं जाएंगे.
30. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर तुम उन्हें उस वक़्त देखोगे कि जब वे लोग अपने परवरदिगार के सामने खड़े किए जाएंगे और अल्लाह फ़रमाएगा कि क्या यह ज़िन्दगी हक़ नहीं है, तो वे लोग कहेंगे कि क्यों नहीं. हमारे परवरदिगार की क़सम यह हक़ है. अल्लाह फ़रमाएगा कि फिर अब तुम अज़ाब का मज़ा चखो, इसलिए कि तुम कुफ़्र किया करते थे.
31. फिर वे लोग नुक़सान में रहेंगे, जिन्होंने अल्लाह से मिलने को झुठला दिया, यहां तक कि जब उनके पास अचानक क़यामत आ पहुंचेगी, तो वे कहेंगे कि हाय अफ़सोस ! हमने इस बारे में कोताही की. और वे अपनी पीठों पर अपने गुनाहों का बोझ उठाए हुए होंगे. जान लो कि वह बहुत बुरा बोझ है, जो वे लोग उठाएंगे.
32. और दुनियावी ज़िन्दगी तो खेल और तमाशे के सिवा कुछ भी नहीं है और आख़िरत का घर ही परहेज़गारों के लिए बेहतर है. क्या फिर भी तुम नहीं समझते.
33. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक हम जानते हैं कि यक़ीनन वह बात तुम्हें रंजीदा कर रही है, जो वे लोग कहते हैं. वे तुम्हें नहीं झुठलाते, लेकिन हक़ीक़त यह है कि ज़ालिम लोग अल्लाह की निशानियों से इनकार करते हैं.
34. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक तुमसे पहले भी बहुत से रसूलों को झुठलाया गया है, लेकिन उन्होंने अपने झुठलाए जाने और अज़ीयत पहुंचाए जाने पर सब्र किया, यहां तक कि उनके पास हमारी मदद आ गई. और अल्लाह के कलमात को कोई बदलने वाला नहीं है. और बेशक तुम्हारे पास रसूलों की ख़बरें आ चुकी हैं.
35. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर तुम्हें उन लोगों का मुंह फेरना नागवार गुज़र रहा है, तो अगर तुमसे यह हो सके कि ज़मीन में उतरने वाली कोई सुरंग या आसमान में चढ़ने वाली कोई सीढ़ी तलाश कर लो. फिर उनके लिए कोई निशानी ले आओ. और अगर अल्लाह चाहता, तो उन्हें हिदायत पर ज़रूर जमा कर देता. फिर तुम नादानों में से न हो जाना.
36. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम्हारा कहना सिर्फ़ वही लोग मानते हैं, जो दिल से सुनते हैं. और मुर्दों को अल्लाह क़यामत के दिन उठाएगा. फिर वे उसकी तरफ़ ही लौटाए जाएंगे.
37. और वे लोग कहते हैं कि उन रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर उनके परवरदिगार की तरफ़ से कोई निशानी नाज़िल क्यों नहीं की गई. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक अल्लाह इस पर क़ादिर है कि वह ऐसी कोई निशानी नाज़िल कर दे, लेकिन उनमें से बहुत से लोग नहीं जानते.
38. ऐ इंसानो ! ज़मीन में कोई भी चलने फिरने वाला जानवर या अपने दोनों परों से परवाज़ करने वाला परिन्दा ऐसा नहीं है, जिसकी तुम्हारी तरह उम्मतें नहीं हैं. और हमने किताब यानी लौहे महफूज़ में किसी शय के लिखने में कोई कसर नहीं छोड़ी. फिर सब अपने परवरदिगार के सामने जमा किए जाएंगे.
39. और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठला दिया, वे बहरे और और गूंगे तारीकियों में भटक रहे हैं. अल्लाह जिसे चाहता है उसे गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है उसे सीधे रास्ते पर चलाता है.
40. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि भला देखो तो अगर तुम पर अल्लाह का अज़ाब आ जाए या तुम पर क़यामत ही आ जाए, तो अल्लाह के सिवा तुम किसे पुकारोगे. अगर तुम सच्चे हो.
41. बल्कि तुम उसी अल्लाह को पुकारते हो. फिर अगर वह चाहे तो उन मुसीबतों को दूर कर दे, जिनके लिए तुम उसे पुकारते हो. और उस वक़्त तुम उन सरपरस्तों को भूल जाते हो, जिन्हें तुम अल्लाह का शरीक ठहराते हो.
42. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक हमने तुमसे पहले भी बहुत सी उम्मतों की तरफ़ रसूल भेजे. फिर हमने उन लोगों को नाफ़रमानी की वजह से उन्हें सख़्तियों और तकलीफ़ों में मुब्तिला कर दिया, ताकि वे आजिज़ी करें यानी अल्लाह की बारगाह में झुक जाएं.
43. फिर जब उन लोगों पर हमारा अज़ाब आ गया, तो उन्होंने आजिज़ी क्यों नहीं की? लेकिन हक़ीक़त यह है कि उनके दिल सख़्त हो गए थे और शैतान ने उनके वे बुरे आमाल आरास्ता करके दिखाए थे, जो वे किया करते थे.
44. फिर जब वे लोग उस नसीहत को भूल गए, जो उन्हें दी गई थी, तो हमने उन पर हर चीज़ के दरवाज़े खोल दिए, यहां तक कि जब वे उन चीज़ों से ख़ूब ख़ुश हो गए, जो उन्हें दी गई थीं, तो हमने अचानक उन्हें अज़ाब की गिरफ़्त में ले लिया. फिर उस वक़्त वे मायूस होकर रह गए.
45. फिर ज़ुल्म करने वाली क़ौम के लोगों की जड़ काट दी गई और अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं, जो तमाम आलमों का परवरदिगार है.
46. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि तुम यह बताओ कि अगर अल्लाह तुम्हारी सुनने और देखने की क़ूवत ले ले और तुम्हारे दिलों पर मुहर लगा दे, तो अल्लाह के सिवा कौन सरपरस्त ऐसा है, जो ये नेअमतें तुम्हें वापस कर दे. देखो कि हम किस तरह बदल-बदल कर अपनी आयतें बयान करते हैं. फिर भी वे लोग मुंह फेर लेते हैं.
47. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उनसे कह दो कि तुम यह बताओ कि अगर तुम पर अल्लाह का अज़ाब अचानक या ऐलानिया आ जाए, तो ज़ालिम क़ौम के सिवा कोई और भी हलाक होगा.
48. और हम रसूलों को सिर्फ़ इसलिए भेजते हैं कि वे फ़रमाबरदारों को जन्नत की ख़ुशख़बरी दें और नाफ़रमानों को अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करें. फिर जो लोग ईमान लाए और अपनी इस्लाह कर ली, तो उन्हें न कोई ख़ौफ़ होगा और न वे ग़मग़ीन होंगे.
49. और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया, तो उन्हें अज़ाब पहुंचेगा. इसलिए कि वे नाफ़रमानी करते थे.
50. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं तुमसे यह नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं और न मैं गै़ब की बातें जानता हूं और न तुमसे यह कहता हूं कि मैं फ़रिश्ता हूं. मै सिर्फ़ उसी हुक्म की पैरवी करता हूं, जो मेरी तरफ़ वही किया जाता है. तुम कह दो कि क्या अंधा और आंखों वाला बराबर हो सकता है? फिर क्या तुम ग़ौर व फ़िक्र नहीं करते.
51. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम इस क़ुरआन के ज़रिये उन लोगों को ख़बरदार करो, जो अपने परवरदिगार के पास उस हाल में जमा किए जाने से ख़ौफ़ज़दा हैं कि उनके लिए अल्लाह के सिवा न कोई मददगार होगा और न कोई सिफ़ारिश करने वाला, ताकि वे परहेज़गार बन जाएं.
52. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम उन लोगों को ख़ुद से दूर न करो, जो सुबह व शाम अपने परवरदिगार को पुकारते हैं और उसकी ख़ुशनूदी चाहते हैं. तुम पर उनके हिसाब की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है और न उन पर तुम्हारे हिसाब की कोई ज़िम्मेदारी है. फिर भी तुम उन्हें दूर करोगे, तो हक़ तल्फ़ी करने वालों में से हो जाओगे.
53. और इसी तरह हमने उनमें से कुछ लोगों को कुछ के ज़रिये आज़माते हैं, ताकि वे कहें कि क्या हम में से यही वे लोग हैं, जिन पर अल्लाह ने फ़ज़ल किया है और क्या वे अपने शुक्रगुज़ार बन्दों को नहीं जानता.
54. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब वे लोग तुम्हारे पास आएं, जो हमारी आयतों पर ईमान रखते हैं, तो तुम कह दो कि तुम पर सलाम हो. तुम्हारे परवरदिगार ने अपनी ज़ात पर रहमत लाज़िम कर ली है. फिर तुम में से जो शख्स़ जहालत में कोई गुनाह कर बैठे. फिर तौबा कर ले और उसके बाद अपनी इस्लाह कर ले, तो बेशक वह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
55. और हम इसी तरह हम अपनी आयतों को यूं तफ़सील से बयान करते हैं, ताकि गुनाहगारों का रास्ता सब पर ज़ाहिर हो जाए.
56. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक मुझे इससे रोक दिया गया है कि मैं उन्हें उन बातिल सरपरस्तों को पुकारूं, जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो. तुम कह दो कि मैं तुम्हारी ख़्वाहिशों की पैरवी नहीं कर सकता. अगर मैं ऐसा करूं, तो बेशक मैं गुमराह हो जाऊंगा और मैं हिदायत याफ़्ता लोगों में से नहीं रहूंगा.
57. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ से रौशन दलील पर क़ायम हूं और तुमने उसे झुठला दिया. मेरे पास वह अज़ाब नहीं है, जिसकी तुम जल्दी कर रहे हो. हुक्म सिर्फ़ अल्लाह ही का है. वह हक़ बयान करता है और वह बेहतरीन फ़ैसला करने वाला है.
58. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगर वह अज़ाब मेरे पास होता, जिसकी तुम जल्दी कर रहे हो, तो मेरे और तुम्हारे दरम्यान फ़ैसला हो चुका होता और अल्लाह ज़ालिमों से ख़ूब वाक़िफ़ है.
59. और ग़ैब की कुंजियां अल्लाह ही के पास हैं. उन्हें उसके सिवा कोई नहीं जानता. और वह हर चीज़ से वाक़िफ़ है, जो कुछ ख़ुश्की में और जो कुछ दरिया और समन्दरों में है. और कोई पत्ता भी गिरता है, तो वह उसे जानता है. और ज़मीन की तारीकियों में कोई दाना या कोई तर व ख़ुश्क ऐसा नहीं है, जो रौशन किताब यानी लौहे महफूज़ में दर्ज न हो.
60. और वह अल्लाह ही है, जो रात में तुम्हारी रूहें क़ब्ज़ कर लेता है और जो कुछ तुम दिन में कमाते हो, वह सब जानता है. फिर वह तुम्हें दिन में उठा देता है, ताकि तुम्हारी ज़िन्दगी की मुक़र्रर मियाद पूरी कर दी जाए. फिर तुम सबको उसकी तरफ़ ही लौटना है. फिर वह तुम्हें उन आमाल से आगाह कर देगा, जो तुम किया करते थे.
61. और वही अल्लाह अपने बन्दों पर ग़ालिब है और वह तुम लोगों पर फ़रिश्तों को मुहाफ़िज़ यानी निगेहबान बनाकर भेजता है, यहां तक कि जब तुम में से किसी की मौत आती है, तो हमारे भेजे हुए फ़रिश्ते उसकी रूह को क़ब्ज़ कर लेते हैं और वे कोई कोताही नहीं करते.
62. फिर वे सब लोग अल्लाह की तरफ़ ही लौटाए जाएंगे, जो उनका हक़ीक़ी मालिक है. जान लो कि हुक्म उसी का है. और वह अनक़रीब हिसाब लेने वाला है.
63. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ख़ुश्की और दरिया और समन्दरों की तारीकियों से तुम्हें कौन निजात देता है? उस वक़्त तुम आजिज़ी और आहिस्ता-आहिस्ता उसी से दुआएं मांगते हो कि अगर वह हमें मुसीबत से निजात दे दे, तो हम ज़रूर उसके शुक्रगुज़ारों में से हो जाएंगे.
64. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अल्लाह ही तुम्हें इस मुसीबत और हर तकलीफ़ से निजात देता है. फिर भी तुम शिर्क करते हो.
65. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अल्लाह इस पर क़ादिर है कि तुम पर अज़ाब भेजे. चाहे तुम्हारे ऊपर से या तुम्हारे पांव के नीचे से या तुम्हें फ़िरक़ा-फ़िरक़ा करके एक दूसरे से जंग करा दे. और तुम में से कुछ लोगों को कुछ की लड़ाई का ज़ायक़ा चखा दे. देखो कि हम किस तरह अपनी आयतों को बदल-बदल कर बयान करते हैं, ताकि लोग समझ सकें.
66. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम्हारी क़ौम ने इस क़ुरआन को झुठला दिया. हालांकि वह बरहक़ है. तुम कह दो कि मैं तुम्हारा वकील नहीं हूं.
67. हर ख़बर के पूरा होने का एक वक़्त मुक़र्रर है और तुम अनक़रीब जान लोगे.
68. और जब तुम उन लोगों को देखो, जो हमारी आयतों के बारे में झगड़ रहे हैं, तो उनसे किनाराकशी कर लो, यहां तक कि वे इसके सिवा किसी दूसरी बात में मशग़ूल हो जाएं. और अगर शैतान तुम्हें यह बात भुला दे, तो याद आने के बाद तुम ज़ालिम क़ौम के साथ हरगिज़ न बैठो.
69. और परहेज़गारी इख़्तियार करने वाले लोगों पर उन काफ़िरों के हिसाब की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है, लेकिन उन्हें नसीहत करनी चाहिए, ताकि वे भी परहेज़गार बन जाएं.
70. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम उन लोगों को छोड़ दो, जिन्होंने अपने दीन को खेल और तमाशा बना रखा है और जिन्हें दुनियावी ज़िन्दगी ने धोखे में डाल दिया है और इस क़ुरआन के ज़रिये उन्हें नसीहत करते रहो, ताकि कोई शख़्स अपने बुरे आमाल की वजह से गिरफ़्त में न आए. फिर उसके लिए अल्लाह के सिवा न कोई सरपरस्त होगा और न कोई सिफ़ारिश करने वाला. और अगर वह अपने गुनाहों की सज़ा से बचने के लिए सबकुछ दे दे, तो भी उससे नहीं लिया जाएगा. यही वे लोग हैं, जो उन आमाल की वजह से गिरफ़्त में लिए गए, जो उन्होंने कमाये थे. उनके लिए खौलता हुआ पीने का पानी और दर्दनाक अज़ाब है. इसलिए कि वे कुफ़्र किया करते थे.
71. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या हम अल्लाह के सिवा उन्हें पुकारें, जो हमें न नफ़ा पहुंचा सकते हैं और न नुक़सान ही कर सकते हैं और इसके बाद कि अल्लाह ने हमें हिदायत दे दी. हम उस शख़्स की तरह उलटे पांव कुफ़्र की तरफ़ फिर जाएं, जिसे ज़मीन में शैतानों ने रास्ता भुला कर हैरान कर दिया हो, जिसके साथी उसे सीधे रास्ते की तरफ़ बुला रहे हों कि हमारे पास आ जाओ. तुम कह दो कि बेशक अल्लाह की हिदायत ही हक़ीक़ी हिदायत है और हमें यह हुक्म दिया गया है कि हम तमाम आलमों के परवरदिगार अल्लाह की फ़रमाबरदारी करें.
72. और यह भी हुक्म हुआ है कि तुम पाबंदी से नमाज़ पढ़ो और उसी से डरते रहो. और वह अल्लाह ही है, जिसकी तरफ़ तुम सब जमा किए जाओगे.
73. और वह अल्लाह ही है, जिसने आसमानों और ज़मीन की हक़ के साथ तख़लीक़ की है और जिस दिन वह फ़रमाएगा है कि ‘हो जा’ तो वह हो जाएगी. यानी क़यामत बरपा हो जाएगी. उसका क़ौल बरहक़ है. और उस दिन भी उसी की बादशाही होगी, जब सूर फूंका जाएगा. वह ग़ैब और ज़ाहिर का जानने वाला है और वह बड़ा हिकमत वाला बड़ा बाख़बर है.
74. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वक़्त का याद करो कि जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मुंह बोले वालिद यानी अपनी परवरिश करने वाले अपने चाचा आज़र से कहा कि क्या तुम बुतों को सरपरस्त मानते हो? बेशक मैं तुम्हें और तुम्हारी क़ौम को सरीह गुमराही में मुब्तिला देखता हूं.
75. और इसी तरह हमने इब्राहीम अलैहिस्सलाम को आसमानों और ज़मीन की तमाम बादशाहतें दिखाईं और यह इसलिए कि वे यक़ीन करने वालों में से हो जाएं.
76. फिर जब उन पर रात की तारीक़ी छा गई, तो उन्होंने एक सितारे को देखा. वे अपनी क़ौम से कहने लगे कि क्या यह परवरदिगार है? फिर जब वह ग़़ुरूब हो गया, तो वे कहने कि मैं ग़़ुरूब हो जाने वालों को पसंद नहीं करता.
77. फिर जब उन्होंने जगमगाते हुए चांद को देखा, तो कहने लगे कि क्या यह मेरा परवरदिगार है? फिर जब वह भी ग़ुरुब हो गया, तो वे कहने लगे कि अगर मेरा परवरदिगार मुझे हिदायत न देता, तो मैं भी गुमराह क़ौम में से हो जाता.
78. फिर जब उन्होंने चमकते हुए सूरज को देखा, तो कहने लगे कि क्या यह मेरा परवरदिगार है? यह सबसे बड़ा भी है. फिर जब वह भी ग़ुरुब हो गया, तो वे कहने लगे कि ऐ मेरी क़ौम ! बेशक मैं उन सब चीज़ों से बेज़ार हूं, जिन्हें तुम अल्लाह का शरीक ठहराते हो.
79. बेशक मैंने अपना रुख़ बातिल से कतराकर सिर्फ़ अल्लाह ही की तरफ़ कर लिया है, जिसने आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ की. और मैं मुशरिकों में से नहीं हूं.
80. और इब्राहीम अलैहिस्सलाम की क़ौम उनसे झगड़ा करने लगी, तो उन्होंने कहा कि क्या तुम मुझसे अल्लाह के बारे में झगड़ते हो. हालांकि उसने मुझे हिदायत दी है और मैं उनसे नहीं डरता, जिन्हें तुम अल्लाह का शरीक ठहराते हो. मेरा परवरदिगार जो कुछ चाहे, कर सकता है. मेरे परवरदिगार ने हर चीज़ को अपने इल्म के अहाते में ले रखा है. क्या फिर भी तुम ग़ौर व फ़िक्र नहीं करते.
81. और मैं उनसे कैसे ख़ौफ़ज़दा हो सकता हूं, जिन्हें तुम अल्लाह का शरीक ठहराते हो, जबकि तुम इस बात से ख़ौफ़ज़दा नहीं होते कि तुमने अल्लाह के शरीक ठहरा रखे हैं. अल्लाह ने तुम पर उस शिर्क की कोई दलील नाज़िल नहीं की. फिर दोनों फ़रीक़ों में से अमन का ज़्यादा मुस्तहक़ कौन है. अगर तुम जानते हो.
82. जो लोग ईमान लाए और अपने ईमान को ज़ुल्म यानी शिर्क के साथ नहीं मिलाया, उन्हीं लोगों के लिए अमन व सुकून है और वही लोग हिदायत याफ़्ता हैं.
83. और यह हमारी तौहीद की दलील थी, जो हमने इब्राहीम अलैहिस्सलाम को उनकी क़ौम के मुक़ाबले में दी थी. हम जिसे चाहते हैं उसके दर्जात बुलंद कर देते हैं. बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ा हिकमत वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
84. और हमने इब्राहीम अलैहिस्सलाम को इसहाक़ अलैहिस्सलाम और याक़ूब अलैहिस्सलाम अता किए. हमने उन्हें हिदायत दी और हमने उनसे पहले नूह अलैहिस्सलाम को भी हिदायत दी थी और हमने इब्राहीम अलैहिस्सलाम की औलाद में से दाऊद अलैहिस्सलाम और सुलेमान अलैहिस्सलाम और अय्यूब अलैहिस्सलाम और यूसुफ़ और मूसा अलैहिस्सलाम और हारून अलैहिस्सलाम को भी हिदायत दी थी. और इसी तरह हम मोहसिनों को जज़ा दिया करते हैं.
85. और हमने ज़करिया अलैहिस्सलाम और यहया अलैहिस्सलाम और ईसा अलैहिस्सलाम और इलियास अलैहिस्सलाम को भी हिदायत दी. ये सब स्वाहिलीन बन्दों से थे.
86. और हमने इस्माईल अलैहिस्सलाम और इलियास अलैहिस्सलाम और यूनुस अलैहिस्सलाम और लूत अलैहिस्सलाम को भी हिदायत दी और हमने उन सबको तमाम आलमों पर फ़ज़ीलत बख़्शी.
87. और उनके बाप दादाओं और उनकी औलाद और उनके भाइयों में से कुछ को भी फ़ज़ीलत दी. और हमने उन्हें मुंतख़िब कर लिया और उन्हें सीधे रास्ते की हिदायत अता की.
88. यह अल्लाह की हिदायत है. वह अपने बन्दों में से जिसे चाहता है, उसके ज़रिये रहनुमाई करता है. और अगर वे लोग शिर्क करते हैं, तो वह सब बर्बाद हो जाता है, जो कुछ वे किया करते हैं.
89. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यही वे लोग हैं, जिन्हें हमने किताब और हिकमत और नबुवत अता की थी. फिर अगर वे लोग इनसे कुफ़्र करते हैं, तो बेशक हमने इसके लिए ऐसी क़ौम को मुक़र्रर कर दिया है, जो इनसे कुफ़्र करने वाली नहीं है.
90. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यही वे लोग यानी पैग़म्बर हैं, जिन्हें अल्लाह ने हिदायत अता की है. फिर तुम भी उनके रास्ते पर चलो और कह दो कि ऐ लोगो ! मैं तुमसे कोई उजरत नहीं चाहता. यह तो सिर्फ़ आलम वालों के लिए ज़िक्र यानी नसीहत है.
91. और उन लोगों ने अल्लाह की वह क़द्र नहीं जानी, जिस क़द्र का उसका हक़ था. जब उन्होंने यह कह दिया कि अल्लाह ने किसी बशर यानी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कोई चीज़ नाज़िल नहीं की. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि वह किताब यानी तौरात किसने नाज़िल की थी, जो मूसा अलैहिस्सलाम लेकर आए थे, जो लोगों के लिए नूर और हिदायत थी, जिसे तुमने वर्क़-वर्क़ कर दिया. तुम अपने मतलब का कुछ हिस्सा ज़ाहिर भी करते हो और बहुत कुछ छुपाते भी हो. हालांकि उसके ज़रिये तुम्हें वह सिखाया गया था, जो न तुम जानते थे और न तुम्हारे बाप दादा. तुम कह दो कि सब अल्लाह ही ने नाज़िल किया है. फिर तुम उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो कि वे अपनी ख़ुराफ़ात में खेलते रहें.
92. और यह किताब यानी क़ुरआन जिसे हमने नाज़िल किया है, बड़ी बाबरकत है और उन किताबों की तसदीक़ करती है, जो इससे पहले से मौजूद हैं, ताकि तुम इसके ज़रिये उम्मुल क़ुरा यानी अहले मक्का और उसके अतराफ़ रहने वाले लोगों को अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करो. और जो लोग आख़िरत पर ईमान रखते हैं, वही उस पर ईमान लाते हैं और वही लोग अपनी नमाज़ों की हिफ़ाज़त करते हैं यानी ख़ुद को बुराई से बचाते हैं.
93. और उस शख़्स से बढ़कर ज़ालिम कौन होगा, जो अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधे या यह कहे कि मेरी तरफ़ वही आई है. हालांकि उसकी तरफ़ कुछ भी वही नहीं किया गया हो और जो यह कहे कि मैं भी अनक़रीब ऐसी ही किताब नाज़िल करता हूं, जैसी अल्लाह ने नाज़िल की है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर तुम देखो कि जब ज़ालिम लोग मौत की सख़्तियों में मुब्तिला होंगे और फ़रिश्ते उनकी तरफ़ अपने हाथ फैलाए हुए कहेंगे कि तुम अपनी जानें जिस्मों से निकालो. आज तुम्हें ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब की सज़ा दी जाएगी. इस वजह से कि तुम अल्लाह पर नाहक़ झूठे बोहतान बांधा करते थे और तुम उसकी आयतों को मानने की बजाय तकब्बुर किया करते थे.
94. और बेशक क़यामत के दिन तुम हमारे पास उसी तरह तन्हा आओगे, जिस तरह हमने तुम्हें पहली मर्तबा पैदा किया था और जो कुछ हमने तुम्हें दिया था वह सब अपनी पीठ पीछे छोड़ आओगे. और तुम्हारे साथ तुम्हारे उन सिफ़ारिश करने वालों को भी नहीं देखेंगे, जिनके बारे में तुम गुमान करते थे कि वे तुम्हारे मामले में हमारे शरीक हैं. बेशक अब तुम्हारे बाहमी ताल्लुक़ ख़त्म हो गए और वह सब तुमसे ग़ायब हो गया, जो कुछ तुम गुमान करते थे.
95. और बेशक अल्लाह दाने और गुठली को शिगाफ़्ता करने वाला है. वह मुर्दे से ज़िन्दा को पैदा करता है और ज़िन्दा से मुर्दे को निकालने वाला है. वही तुम्हारा अल्लाह है. फिर तुम कहां भटक रहे हो.
96. वही अल्लाह सुबह के उजाले को रात की तारीकी शिगाफ़्ता करके निकालने वाला है. और उसी ने रात को सुकून व आराम के लिए और सूरज और चांद को हिसाब के लिए बनाया है. ये अल्लाह के मुक़र्रर किए हुए अंदाज़े हैं, जो बड़ा ग़ालिब बड़ा साहिबे इल्म है.
97. और वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हारे लिए सितारे बनाए, ताकि तुम उनके ज़रिये ख़ुश्की और दरियाओं और समन्दरों की तारीकियों में रास्ता जान लो. बेशक हमने उस क़ौम के लिए अपनी क़ुदरत की निशानियां ख़ूब तफ़सील से बयान कर दी हैं, जो इल्म रखती है.
98. और वह अल्लाह ही है, जिसने तुम लोगों को एक शख्स़ से पैदा किया. फिर तुम्हारे लिए एक क़याम की जगह है और एक सुपुर्द होने की. बेशक हमने उस क़ौम के लिए अपनी क़ुदरत की निशानियां ख़ूब तफ़सील से बयान कर दी हैं, जो समझ रखती है.
99. और वह अल्लाह ही है, जिसने आसमान से पानी बरसाया. फिर हमने उसके ज़रिये हर चीज़ के कोये निकाले. फिर हमने उससे हरी भरी शाख़ें निकालीं, जिससे हम गुथे हुए दाने निकालते हैं और खजूर के शगूफ़े से लटके हुए गुच्छे और अंगूर और ज़ैतून और अनार के बाग़ उगाए, जिनके फल आपस में मिलते जुलते हैं, लेकिन उनका ज़ायक़ा जुदा है. तुम दरख़्त के फल की तरफ़ देखो जब वे पकते हैं. बेशक इसमें उस क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं, जो ईमान रखती है.
100. और उन लोगों ने जिन्नों को अल्लाह का शरीक ठहराया. हालांकि उसी ने उन्हें पैदा किया था और उन्होंने अल्लाह के लिए बग़ैर जाने बेटे और बेटियां भी गढ़ लीं. अल्लाह उन तमाम बातों से पाक और आला है, जो वे कहते हैं.
101. वही अल्लाह आसमानों और ज़मीन का ईजाद करने वाला है. उसकी औलाद कैसे हो सकती है, जबकि उसकी कोई बीवी भी नहीं है. और उसी ने हर चीज़ को पैदा किया है. और वह हर चीज़ का जानने वाला है.
102. वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है. उसके सिवा कोई माबूद नहीं. वह हर चीज़ का ख़ालिक़ है, तो तुम उसी की इबादत किया करो और वह हर चीज़ का निगेहबान है.
103. निगाहें अल्लाह का अहाता नहीं कर सकतीं और वह सब निगाहों का अहाता किए हुए है. और वह बड़ा लतीफ़ बड़ा बाख़बर है.
104. तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से निशानियां आ चुकी हैं. फिर जिसने उन्हें देख लिया, तो यह उसके लिए बेहतर है और जो अंधा बना रहा, तो उसका वबाल उसी पर है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं तुम पर मुहाफ़िज़ नहीं हूं.
105. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हम इसी तरह अपनी आयतों को बदल-बदल कर बयान करते हैं और यह इसलिए कि वे काफ़िर कहने लगें कि आपने क़ुरआन पढ़ लिया है और हम इसे उस क़ौम के लिए वाज़ेह कर दें, जो इल्म रखती है.
106. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम इस क़ुरआन की पैरवी करो, जो तुम्हारी तरफ़ तुम्हारे परवरदिगार की जानिब से वही किया गया है. अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और तुम मुशरिकों से किनाराकशी कर लो.
107. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर अल्लाह चाहता तो ये लोग कभी शिर्क नहीं करते और हमने तुम्हें उनका मुहाफ़िज़ नहीं बनाया और न तुम उनके वकील हो.
108. ऐ ईमान वालो ! और तुम उन्हें बुरा न कहो, जिन्हें वे लोग अल्लाह के सिवा पुकारते हैं. फिर वे लोग भी बिना जाने अल्लाह की शान में गुस्ताख़ी करेंगे. इसी तरह हमने हर उम्मत को उसके बुरे अमल आरास्ता करके दिखाए हैं. फिर सबको अपने परवरदिगार की तरफ़ ही लौटना है. फिर वह उन्हें उन आमाल से आगाह कर देगा, जो वे लोग किया करते थे.
109. और वे लोग बड़ी ताकीदी हल्फ़ के साथ अल्लाह की क़सम खाते हैं कि अगर उनके पास कोई निशानी आ जाए, तो वे उस पर ज़रूर ईमान ले आएंगे. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि निशानियां तो सिर्फ़ अल्लाह ही के पास हैं. ऐ ईमान वालो ! और तुम क्या जानो कि जब वह निशानी आ जाएगी, तो फिर भी वे ईमान नहीं लाएंगे.
110. और हम उन लोगों के दिलों और उनकी आंखों को हक़ से इस तरह फेर देंगे, जिस तरह वे इस क़ुरआन और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर पहली मर्तबा ईमान नहीं लाए और हम उन्हें उनकी सरकशी में ही छोड़ देंगे कि वे भटकते फिरें.
111. और अगर हम उनकी तरफ़ फ़रिश्ते नाज़िल कर देते और उनसे मुर्दे भी बातें करने लगते और हम हर चीज़ उनके सामने जमा कर देते, तब भी वे ईमान नहीं लाते, सिवाय इसके जो अल्लाह चाहे. और उनमें से बहुत से लोग जाहिल हैं.
112. और इसी तरह हमने हर नबी के लिए इंसानों और जिन्नों में से शैतानों को दुश्मन बना दिया, जो धोखा देने के लिए एक दूसरे के दिल में मुलम्मा की हुई बातें डालते रहते हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर तुम्हारा परवरदिगार चाहता तो वे ऐसा नहीं कर पाते. फिर तुम उन्हें छोड़ दो और उनके बोहतानों को भी, जो वे बांधा करते हैं.
113. और यह इसलिए कि उन लोगों के दिल उसकी तरफ़ माइल हो जाएं, जो आख़िरत पर ईमान नहीं रखते और ये कि वे उसे पसंद करने लगें और यह कि वे वही काम करने लगें, जो काम वे ख़ुद किया करते हैं.
114. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या मैं अल्लाह के सिवा किसी और को हाकिम तलाश करूं. हालांकि वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हारी तरफ़ पूरी तफ़सील के साथ किताब यानी क़ुरआन नाज़िल किया है. और जिन लोगों को हमने पहले किताब यानी तौरात अता की थी, वे जानते हैं कि यह क़ुरआन तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से बरहक़ नाज़िल किया गया है. फिर तुम शक करने वालों में से न हो जाना.
115. और तुम्हारे परवरदिगार का कलाम यानी क़ुरआन सच्चाई और इंसाफ़ में मुकम्मल है. और उसके कलमात को कोई बदलने वाला नहीं है. और वह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
116. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर तुम ज़मीन में बसने वालों की अकसीरियत का कहना मान लोगे, तो वे तुम्हें अल्लाह के रास्ते से भटका देंगे. वे सिर्फ़ वहम व गुमान की पैरवी करते हैं और महज़ ग़लत क़यास आराई करते रहते हैं.
117. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक तुम्हारा परवरदिगार उससे ख़ूब वाकिफ़ है, जो उसके रास्ते से भटका हुआ है और वह उसे भी ख़ूब जानता है, जो हिदायत याफ़्ता है.
118. फिर तुम उस ज़िबह में से खाया करो, जिस पर ज़िबह करने के वक़्त अल्लाह का नाम लिया गया हो. अगर तुम उसकी आयतों पर ईमान रखते हो.
119. और तुम्हें क्या हुआ है कि तुम उसमें से नहीं खाते, जिस पर ज़िबह करने के वक़्त पर अल्लाह का नाम लिया गया है. हालांकि उसने तुम्हारे लिए उन तमाम चीज़ों को तफ़सील से बयान कर दिया है, जो तुम पर हराम कर दी गई हैं, सिवाय इसके कि तुम जान बचाने के लिए इंतिहाई मजबूर हो जाओ. और बेशक बहुत से लोग बग़ैर जाने अपनी मर्ज़ी से लोगों को गुमराह करते रहते हैं. बेशक तुम्हारा परवरदिगार उनसे ख़ूब वाक़िफ़ है, जो हद से तजावुज़ करने वाले हैं.
120. और तुम ज़ाहिरी और बातिनी गुनाह छोड़ दो. बेशक जो लोग गुनाह करते हैं, उन्हें अनक़रीब उसकी सज़ा दी जाएगी, जो बुरे काम वे किया करते हैं.
121. और तुम उस जानवर के गोश्त में से न खाया करो, जिस पर ज़िबह करने के वक़्त अल्लाह का नाम न लिया गया हो और बेशक ऐसा गोश्त खाना गुनाह है. और बेशक शैतान अपने दोस्तों के दिलों में वसवसे डालते रहते हैं, ताकि वे तुमसे झगड़ा करें और अगर तुम उनके कहने पर चल पड़े, तो तुम भी मुशरिक हो जाओगे.
122. क्या जो शख्स़ पहले मुर्दा था यानी ईमान से महरूम था. फिर हमने उसे हिदायत देकर ज़िन्दा कर दिया और हमने उसके लिए ईमान का एक नूर पैदा किया, जिसके ज़रिये वह लोगों में ईमान का उजाला फैलाते हुए चलता फिरता है. क्या वह उस शख्स़ के बराबर हो सकता है, जो कुफ़्र की तारीकियों में इस तरह मुब्तिला है कि वह उसमें से निकल ही नहीं सकता. इसी तरह काफ़िरों के लिए वे बुरे आमाल आरास्ता कर दिए गए हैं, जो वे किया करते हैं.
123. और इसी तरह हमने हर बस्ती में बड़े-बड़े गुनाहगारों को सरग़ना बनाया, ताकि वे उस बस्ती में मक्कारियां करें और हक़ीक़त में वे ख़ुद के सिवा किसी और का नुक़सान नहीं करते और उन्हें इसका शऊर तक नहीं है.
124. और जब उन लोगों के पास अल्लाह की क़ुदरत की कोई निशानी आती है, वे कहते हैं कि हम हरगिज़ ईमान नहीं लाएंगे, यहां तक कि हमें भी वैसी ही निशानी दी जाए, जैसी अल्लाह के रसूलों को दी गई है. अल्लाह ख़ूब जानता है कि वह अपनी रिसालत को कहां रखेगा. यानी किसे अपना रसूल बनाएगा. अनक़रीब गुनाह करने वाले लोगों को अल्लाह के पास ज़िल्लत और सख़्त अज़ाब मिलेगा, इसलिए कि वे मक्कारी किया करते थे.
125. फिर अल्लाह जिसे हिदायत देना चाहता है उसका सीना इस्लाम के लिए कुशादा कर देता है और जिसे गुमराही में छोड़ना चाहता है उसका सीना तंग कर देता है, गोया वह मुश्किल से आसमान यानी बुलंदी पर चढ़ रहा हो. इसी तरह अल्लाह उन लोगों पर नापाकी मुसल्लत कर देता है, जो ईमान नहीं लाते.
126. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और यह रास्ता यानी इस्लाम ही तुम्हारे परवरदिगार का सीधा रास्ता है. बेशक हमने उस क़ौम के लिए अपनी आयतें तफ़सील से बयान कर दी हैं, जो ग़ौर व फ़िक्र करती है.
127. उन लोगों के लिए उनके परवरदिगार के पास सलामती का घर है और वही उनका परवरदिगार है और वही उनका कारसाज़ है. यह उन आमाल का सिला है, जो वे किया करते थे.
128. और जिस दिन अल्लाह सब लोगों को जमा करेगा और शैतानों से फ़रमाएगा कि ऐ जिन्नों के गिरोह ! बेशक तुमने बहुत से इंसानों को गुमराह कर दिया. और इंसानों में से उनके दोस्त कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमने एक दूसरे से ख़ूब फ़ायदा हासिल किया और हम अपनी इस मियाद को पहुंच गए, जो तूने हमारे लिए मुक़र्रर की थी. अल्लाह फ़रमाएगा कि अब दोज़ख़ ही तुम्हारा ठिकाना है और तुम हमेशा उसी में रहोगे, सिवाय उसके जिसे अल्लाह बख़्शना चाहे. बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ा हिकमत वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
129. और इसी तरह हम कुछ ज़ालिमों को कुछ पर मुसल्लत कर देते हैं, उन आमाल की वजह से जो वे किया करते हैं.
130. ऐ जिन्नों और इंसानों के गिरोह ! क्या तुम्हारे पास तुम ही में से रसूल नहीं आए थे, जो तुम्हें हमारी आयतें पढ़कर सुनाते थे और तुम्हारी उस दिन की पेशी से तुम्हें ख़बरदार करते थे. फिर वे कहेंगे कि हम अपने ख़िलाफ़ गवाही देते हैं और उन्हें दुनियावी ज़िन्दगी ने धोखे में मुब्तिला कर रखा था और वे अपने ख़िलाफ़ गवाही देंगे कि वे कुफ़्र किया करते थे.
131. यह रसूलों का भेजना इसलिए था कि तुम्हारा परवरदिगार के शायाने शान नहीं कि वह बस्तियों को ज़ुल्म की वजह से हलाक कर दे, जबकि वहां के रहने वाले लोग हक़ से ग़ाफ़िल हों.
132. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हर एक के लिए उनके आमाल के हिसाब से दर्जात मुक़र्रर हैं. और तुम्हारा परवरदिगार उनसे ग़ाफ़िल नहीं, जो कुछ वे किया करते हैं.
133. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम्हारा परवरदिगार बेनियाज़ है. वह बड़ी रहमत वाला है. अगर वह चाहे तो तुम्हें दुनिया से ले जाए और तुम्हारे बाद जिसे चाहे तुम्हारा ख़लीफ़ा बना दे जैसा कि उसने दूसरी क़ौम की औलाद से तुम्हें पैदा किया.
134. बेशक जिस क़यामत का तुमसे वादा किया जाता है, वह ज़रूर आने वाली है और तुम अल्लाह को आजिज़ नहीं कर सकते.
135. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ऐ मेरी क़ौम ! तुम अपनी जगह पर अमल करते रहो. बेशक मैं अपनी जगह अमल कर रहा हूं. फिर तुम अनक़रीब जान लोगे कि आख़िरत किसके लिए बेहतर है. बेशक ज़ालिम लोग कभी कामयाब नहीं होते.
136. और उन लोगों ने अल्लाह की पैदा की हुई खेती और चौपायों में से उसका हिस्सा मुक़र्रर कर रखा है. फिर वे अपने गुमान से कहते हैं कि यह हिस्सा अल्लाह के लिए है और यह हमारे शरीकों के लिए है. फिर जो हिस्सा उनके शरीकों के लिए है, तो वह अल्लाह तक नहीं पहुंचता और जो हिस्सा अल्लाह के लिए है, तो वह उनके शरीकों तक पहुंच जाता है. वे कितना बुरा हुक्म देते हैं यानी बुरा फ़ैसला करते हैं.
137. और इसी तरह मुशरिकों के लिए उनके शरीकों ने अपनी औलाद को क़त्ल करने को उनकी नज़र में आरास्ता कर दिया, ताकि वे उन्हें तबाह व बर्बाद कर दें और उनके दीन को भी मशकूक कर दें. और अगर अल्लाह चाहता तो वे लोग ऐसा नहीं कर पाते. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम उन्हें छोड़ दो कि वे अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधते रहें.
138. और वे लोग अपने गुमान से कहते हैं कि ये चौपाये और खेती अछूती है. इसे कोई नहीं खा सकता, सिवाय उसके जिसे हम चाहें और इनमें से कुछ चौपाये ऐसे हैं, जिनकी पीठ पर सवारी को हराम किया गया है और कुछ ऐसे हैं, जिन पर ज़िबह करने के वक़्त वे लोग अल्लाह का नाम नहीं लेते. वे सब अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधते हैं. अनक़रीब वह उन्हें उसकी सज़ा देगा, जो झूठे बोहतान वे बांधते थे.
139. और वे लोग यह भी कहते हैं कि ज़िबह के वक़्त जो बच्चा उन चौपायों के पेट में है, वह हमारे मर्दों के लिए मख़सूस है और हमारी औरतों पर हराम है और अगर वह मरा हुआ हो, तो सब उसमें शरीक हैं. अल्लाह अनक़रीब उन्हें मनगढ़ंत बातों के लिए सज़ा देगा. बेशक वह बड़ा हिकमत वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
140. हक़ीक़त में वे लोग नुक़सान में रहे, जिन्होंने अपनी औलाद को बेवक़ूफ़ी से बग़ैर जाने क़त्ल कर दिया. और जो रिज़्क़ अल्लाह ने उन्हें दिया था उसे अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधते हुए ख़ुद पर हराम कर दिया. यक़ीनन वे गुमराह हो गए और और वे हिदायत याफ़्ता न हो सके.
141. और वह अल्लाह ही है, जिसने चढ़ाए हुए यानी बेलों वाले और बग़ैर चढ़ाए हुए यानी बग़ैर बेलों वाले बाग़ उगाए. और खजूर और खेती, जिसमें मुख़्तलिफ़ क़िस्म के फल हैं और ज़ैतून और अनार जो सूरत में एक दूसरे से मिलते जुलते हैं और ज़ायक़े में जुदा हैं. जब ये दरख़्त फल लाएं, तो तुम उनके फल खाया करो और खेती और फलों के कटने के दिन उसका अल्लाह की तरफ़ से मुक़र्रर हक़ अदा कर दिया करो और फुज़ूल ख़र्च न किया करो. बेशक वह बेजा ख़र्च करने वालों को पसंद नहीं करता.
142. और चौपायों में से कुछ बोझ उठाने वाले बड़े और कुछ ज़मीन से लगकर चलने वाले यानी छोटे हैं. तुम उस रिज़्क़ में से भी खाओ व पियो, जो अल्लाह ने तुम्हें दिया है. और तुम शैतान की पैरवी करते हुए उसके नक़्शे क़दम पर न चलो. बेशक वह तुम्हारा सरीह दुश्मन है.
143. अल्लाह ने आठ क़िस्म के जोड़े पैदा किए हैं. दो नर व मादा भेड़ से और दो नर व मादा बकरी से हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अल्लाह ने दोनों नर हराम किए हैं या दोनों मादा या वे बच्चे जो मादाओं के रहमों में मौजूद हैं. मुझे इल्म के साथ बताओ. अगर तुम सच्चे हो.
144. और दो नर व मादा ऊंट से और दो नर व मादा गाय से हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या अल्लाह ने दोनों नर हराम किए हैं या दोनों मादा या वे बच्चे जो दोनों माओं के रहमों में मौजूद है. क्या तुम उस वक़्त मौजूद थे जब अल्लाह ने तुम्हें ऐसा हुक्म दिया था. फिर उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा, जो अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधता है, ताकि लोगों को बग़ैर इल्म के गुमराह करता फिरे. बेशक अल्लाह ज़ालिमों की क़ौम को हिदायत नहीं देता.
145. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि जो वही मेरी तरफ़ भेजी गई है उसमें तो मैं कोई ऐसी चीज़ नहीं पाता, जो खाने वाले पर हराम की गई हो, सिवाय इसके कि वह मुर्दार हो या बहता हुआ ख़ून हो या ख़ंज़ीर का गोश्त हो, क्योंकि यह नापाक है या नाफ़रमानी का जानवर जिस पर ज़िबह करने के वक़्त अल्लाह के सिवा किसी और का नाम लिया गया हो. फिर जो शख़्स भूख की वजह से बेबस हो जाए और न वह नाफ़रमानी करने वाला हो और न वह हद से तजावुज़ करने वाला हो, तो बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
146. और हमने यहूदियों पर हर नाख़ून वाला जानवर हराम कर दिया था और गाय और बकरी में से उनकी चर्बी भी उन पर हराम कर दी थी, सिवाय उस चर्बी के जो जानवरों की पीठ पर हो या आंतों पर हो या हड्डी से मिली हुई हो. यह हमने उनकी सरकशी की वजह से उन्हें सज़ा दी थी. और बेशक हम सच्चे हैं.
147. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर अगर वे लोग तुम्हें झुठलाएं, तो तुम कह दो कि तुम्हारा परवरदिगार वसीह रहमत वाला है और उसका अज़ाब गुनाहगार क़ौम से टाला नहीं जाता.
148. अनक़रीब शिर्क करने वाले लोग कहेंगे कि अगर अल्लाह चाहता तो न हम शिर्क करते और न हमारे बाप दादा और न किसी चीज़ को ख़ुद पर हराम करते. इसी तरह उन लोगों ने भी झुठलाया था जो उनसे पहले थे, यहां तक कि उन्होंने हमारा अज़ाब का ज़ायक़ा चख लिया. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या तुम्हारे पास कोई इल्म है कि तुम उसे हमारे सामने पेश करो. तुम सिर्फ़ गुमान की पैरवी करते हो और क़यास लगाते हो.
149. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मुकम्मल हुज्जत तो अल्लाह ही के लिए है. फिर अगर वह चाहता तो तुम सबको हिदायत दे देता.
150. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि तुम अपने उन गवाहों को पेश करो, जो गवाही दें कि अल्लाह ने उसे हराम किया है. फिर अगर वह झूठी गवाही दें, तो तुम उनके साथ गवाही न देना. और न ऐसे लोगों की ख़्वाहिशों की पैरवी करना, जो हमारी आयतों को झुठलाते हैं और जो आख़िरत पर ईमान नहीं रखते और वे बातिल को अपने परवरदिगार के बराबर ठहराते हैं.
151. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि आओ मैं तुम्हें वह पढ़कर सुना दूं, जो तुम्हारे परवरदिगार ने तुम पर हराम किया है कि तुम अल्लाह के साथ किसी को शरीक न ठहराओ और वालिदैन के साथ हुस्ने सुलूक करो. और ग़रीबी की वजह से अपनी औलाद को क़त्ल न करो. हम ही तुम्हें रिज़्क़ देते हैं और उन्हें भी देंगे. और बेहयाई के कामों के क़रीब मत जाओ अगरचे वे ज़ाहिरी हों या पोशीदा हों. और उस जान को क़त्ल न करो, जिसे अल्लाह ने हुरमत दी है, सिवाय शरई हक़ के. यही वे बातें हैं, जिनका उसने तुम्हें हुक्म दिया है, ताकि तुम समझो.
152. और तुम यतीम के माल के क़रीब मत जाओ, लेकिन ऐसे तरीक़े से जो उसके लिए अच्छा हो, यहां तक कि वह अपनी जवानी को पहुंच जाए. और पैमाने और तराज़ू यानी नाप और तौल को इंसाफ़ के साथ पूरा किया करो. हम किसी को उसकी वुसअत से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं देते. और जब तुम कुछ कहो, तो इंसाफ़ करो अगरचे वह तुम्हारा रिश्तेदार ही क्यों न हो. और अल्लाह के अहद को पूरा किया करो. यही वे बातें हैं, जिनका उसने तुम्हें हुक्म दिया है, ताकि तुम तुम ग़ौर व फ़िक्र करो.
153. और यह कि यही सीधा रास्ता है, तो तुम इसी की पैरवी करो. और दूसरे रास्तों पर न चलो. फिर वे रास्ते तुम्हें अल्लाह की राह से जुदा कर देंगे. यही वह बात है, जिसका तुम्हें हुक्म दिया जाता है, ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ.
154. फिर हमने मूसा अलैहिस्सलाम को किताब यानी तौरात अता की, उस शख़्स पर नेअमत पूरी करने के लिए जो नेक हो और उसे हर चीज़ की तफ़सील और हिदायत और रहमत बनाकर उतारा, ताकि वे लोग क़यामत के दिन अपने परवरदिगार से मुलाक़ात पर ईमान लाएं.
155. और यह किताब यानी क़ुरआन जो हमने नाज़िल किया है बड़ा बरकत वाला है. फिर तुम इसकी पैरवी किया करो और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम पर रहम किया जाए.
156. कहीं तुम यह न कहो कि आसमानी किताब तो हमसे पहले सिर्फ़ दो तबक़ों यानी यहूदियों और ईसाइयों पर ही नाज़िल की गई थी और बेशक हम उनके पढ़ने पढ़ाने से ग़ाफ़िल थे.
157. या तुम यह कहो कि अगर हम पर किताब नाज़िल होती, तो हम उन लोगों से ज़्यादा हिदायत याफ़्ता होते. फिर अब तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम्हारे पास वाज़ेह दलील और हिदायत और रहमत आ चुकी है. फिर उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा, जो अल्लाह की आयतों को झुठलाए और उनसे कतराये. हम अनक़रीब उन लोगों को अज़ाब की सज़ा देंगे, जो हमारी आयतों से गुरेज़ करते हैं. इसके बदले कि वे हक़ से कतराया करते थे.
158. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या वे लोग इस इंतज़ार में हैं कि उनके पास फ़रिश्ते आ जाएं या तुम्हारा परवरदिगार आए या तुम्हारे परवरदिगार की कुछ निशानियां आ जाएं. जिस दिन तुम्हारे परवरदिगार की कोई निशानी आ जाएगी, तो उस वक़्त किसी ऐसे शख़्स का ईमान लाना उसे फ़ायदा नहीं पहुंचाएगा, जो पहले से ईमान नहीं लाया था या उसने अपने ईमान की हालत में कोई भलाई नहीं कमाई थी. तुम कह दो कि तुम इंतज़ार करो और मैं भी मुंतज़िर हूं.
159. बेशक जिन लोगों ने अपने दीन में तफ़रक़ा डाला और मुख़्तलिफ़ फ़िरक़ों में बट गए. तुम्हारा उनसे कोई ताल्लुक़ नहीं है. फिर उनका काम अल्लाह ही के हवाले है. फिर वह तुम्हें उन आमाल से आगाह कर देगा, जो तुम किया करते थे.
160. क़यामत के दिन जो शख़्स एक नेकी लाएगा, तो उसके लिए दस नेकियां हैं. और जो शख़्स एक गुनाह लाएगा, तो उसे उतनी ही सज़ा दी जाएगी और उस पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा.
161. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मुझे मेरे परवरदिगार ने सीधे रास्ते की हिदायत दी है. यह मुस्तहकम दीन इब्राहीम अलैहिस्सलाम की मिल्लत है, जो बातिल से कतरा कर सिर्फ़ अल्लाह ही के होकर रहने वाले थे और वे मुशरिकों में से नहीं थे.
162. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक मेरी नमाज़ और मेरा हज और क़ुर्बानी और मेरी ज़िन्दगी और मेरी मौत सब अल्लाह ही के लिए है, जो तमाम आलमों का परवरदिगार है.
163. और अल्लाह का कोई शरीक नहीं है और इसी का मुझे हुक्म दिया गया है और मैं सबसे पहला मुसलमान यानी फ़रमाबरदार बनूं.
164. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या मैं अल्लाह के सिवा दूसरा परवरदिगार तलाश करूं. हालांकि वह हर चीज़ का परवरदिगार है. और जो शख़्स बुराई कमाता है, तो उसका वबाल उसी पर होता है और कोई शख़्स किसी दूसरे के गुनाह का बोझ नहीं उठाएगा. फिर तुम सबको अपने परवरदिगार की तरफ़ ही लौटना है. फिर वह तुम्हें उससे आगाह कर देगा, जिन बातों में तुम इख़्तिलाफ़ किया करते हो.
165. और वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें ज़मीन में अपना नायब बनाया और तुममें से कुछ को कुछ पर दर्जात में बुलंद किया, ताकि वह उन चीज़ों में तुम्हें आज़माये, जो उसने तुम्हें अता कर रखी हैं. बेशक तुम्हारा परवरदिगार जल्द सज़ा देने वाला है और बेशक वह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
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