सूरह अल माइदा मदीने में नाज़िल हुई और इसकी 120 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ ईमान वालो ! अपने अहद को पूरा किया करो. तुम्हारे लिए चौपाये हलाल कर दिए गये, सिवाय उनके जिनके बारे में तुम्हें बताया जाएगा. लेकिन जब तुम एहराम में हो, तो शिकार को हलाल न समझना. बेशक अल्लाह जो चाहता है हुक्म देता है.
2. ऐ ईमान वालो ! अल्लाह की निशानियों की बेहुरमती न किया करो और न हुरमत वाले महीनों यानी ज़ुलक़ादा, ज़ुलहिज्जा मुह़र्रम और रजब की और न काबा को भेजे हुए क़ुर्बानी के जानवरों की और न मक्का लाए जाने वाले जानवरों की, जिनके गले में अलामती पट्टे हों और न हुरमत वाले घर यानी ख़ाना ए काबा का तवाफ़ व ज़ियारत के लिए आने वाले लोगों की बेहुरमती करो, क्योंकि वे लोग अपने परवरदिगार की ख़ुशनूदी और फ़ज़ल तलाश कर रहे हैं. और जब तुम एहराम खोल दो, तो शिकार कर सकते हो और तुम्हें किसी क़ौम की यह दुश्मनी कि उन लोगों ने तुम्हें ख़ाना ए काबा में जाने से रोका था, इस बात पर आमादा न कर दे कि तुम उन पर ज़्यादती करने लगो. और तुम्हारा फ़र्ज़ यह है कि नेकी और परहेज़गारी के कामों में एक दूसरे की मदद किया करो और गुनाह और सरकशी के मामले में एक दूसरे की मदद न करो और अल्लाह से डरते रहो. बेशक अल्लाह ज़ालिमों को सख़्त अज़ाब देने वाला है.
3. तुम पर मुर्दार यानी बिना ज़िबह के मरने वाले जानवर का गोश्त हराम कर दिया गया है. और ख़ून और ख़ंज़ीर का गोश्त और वह जानवर जिस पर ज़िबह के वक़्त ग़ैर अल्लाह का नाम पुकारा गया हो और गर्दन घोंटने से मरा हुआ जानवर और चोट से मरा हुआ जानवर और ऊंचाई से गिरकर मरा हुआ जानवर और किसी जानवर के सींग से मरा हुआ जानवर और वह जानवर जिसे किसी दरिन्दे ने फाड़ दिया हो, सिवाय उसके जिसे मरने के पहले तुमने ज़िबह कर लिया हो. और वह जानवर भी हराम है, जिसे बातिल सरपरस्तों के थानों पर चढ़ाकर ज़िबह किया गया हो और वह जानवर भी हराम है, जिसे तुम पांसों के तीरों के ज़रिये क़िस्मत का हाल जानो या हिस्से तक़सीम करो. ये सब काम गुनाह हैं. आज काफ़िर तुम्हारे दीन से मायूस हो गए. फिर तुम उनसे मत डरो और हमसे ही डरते रहो. आज हमने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया और तुम पर अपनी नेअमत पूरी कर दी और तुम्हारे लिए दीन के तौर पर इस्लाम को पसंद किया है. और अगर कोई शख़्स भूख और प्यास की शिद्दत में बेइंतिहा मजबूर हो जाए और वह गुनाह की तरफ़ माइल होने वाला न हो और वह हराम चीज़ खा ले, तो अल्लाह बेशक बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
4. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! लोग तुमसे सवाल पूछते हैं कि उनके लिए क्या चीज़ें हलाल की गई हैं. तुम उनसे कह दो कि तुम्हारे लिए पाकीज़ा चीज़ें हलाल कर दी गई हैं और वे शिकारी जानवर, जिन्हें तुमने शिकार पर दौड़ाते हुए सधा लिया हो कि तुम उन्हें शिकार के वह तरीक़े सिखाते हो, जो अल्लाह ने तुम्हें सिखाए हैं. फिर तुम उस शिकार में से भी खाओ, जो वह शिकारी जानवर तुम्हारे लिए पकड़ कर रखे और शिकारी जानवर को छोड़ते वक़्त उस पर अल्लाह का नाम लिया करो और अल्लाह से डरते रहो. बेशक अल्लाह अनक़रीब हिसाब लेने वाला है.
5. आज तुम्हारे लिए तमाम पाकीज़ा चीज़ें हलाल कर दी गई हैं. और उन लोगों का खाना भी तुम्हारे लिए हलाल है, जिन्हें तुमसे पहले किताब दी गई थी. और तुम्हारा खाना उनके लिए हलाल है. और पाक दामन मोमिन औरतें और उन लोगों में से पाक दामन औरतें, जिन्हें तुमसे पहले किताब दी गई थी, तुम्हारे लिए हलाल हैं, जबकि तुम उन्हें उनके महर अदा कर दो. बशर्ते कि तुम उन्हें निकाह में लाने वाले बनो न कि ऐलानिया बदकारी करने वाले और न आशनाई करने वाले बनो. और जो शख़्स अल्लाह के अहकाम पर ईमान लाने से कुफ़्र करे, तो उसके सारे आमाल बर्बाद हो जाएंगे और वह आख़िरत में भी नुक़सान उठाने वालों में से होगा.
6. ऐ ईमान वालो ! जब तुम नमाज़ के लिए उठो, तो अपने चेहरों और अपने हाथों को कोहनियों तक धो लिया करो और अपने सरों का मसह करो और अपने पांव भी टख़नों तक धो लिया करो और अगर तुम जनाबत की हालत में हो, तो तुम गु़स्ल करके ख़ूब पाक हो जाओ. और अगर तुम बीमार हो या सफ़र में हो या तुम में से कोई हाजत से फ़ारिग़ होकर आया हो या तुमने औरतों से सोहबत की हो और तुम्हें पानी न मिल सके, तो पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लिया करो यानी पाक मिट्टी से अपने चेहरों और अपने पूरे हाथों का मसह कर लो. अल्लाह नहीं चाहता कि वह तुम पर किसी भी तरह की कोई सख़्ती करे, लेकिन वह यह चाहता है कि तुम्हें पाक करे और तुम पर अपनी नेअमत पूरी कर दे, ताकि तुम उसके शुक्रगुज़ार बन जाओ.
7. और अल्लाह की उस नेअमत का ज़िक्र करो, जो तुम पर की गई और उसके अहद को भी याद करो, जो उसने तुमसे पुख़्ता तरीक़े से लिया था, जब तुमने कहा था कि हमने अल्लाह के अहकाम को सुना और हमने दिल से उसकी इताअत की और तुम अल्लाह से डरते रहो. बेशक अल्लाह दिलों में पोशीदा राज़ों से भी ख़ूब वाक़िफ़ है.
8. ऐ ईमान वालो ! अल्लाह की ख़ुशनूदी के लिए क़याम करने वाले और इंसाफ़ के साथ गवाही देने वाले बन जाओ और किसी क़ौम की दुश्मनी भी तुम्हें इस पर आमादा न कर दे कि तुम इंसाफ़ न करो. तुम इंसाफ़ किया करो कि वह परहेज़गारी से क़रीबतर है और अल्लाह से डरते रहो. बेशक अल्लाह उन आमाल से ख़ूब बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.
9. अल्लाह ने ईमान वालों और नेक अमल करने वाले लोगों से वादा किया है कि उनके लिए मग़फ़िरत और बड़ा अज्र है.
10. और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया, तो वे असहाबे जहन्नुम हैं.
11. ऐ ईमान वालो ! तुम अल्लाह की उस नेअमत का ज़िक्र करो, जो उसने तुम पर की थी कि जब काफ़िरों की क़ौम ने यह इरादा किया कि अपने हाथ क़त्ल के लिए तुम्हारी तरफ़ बढ़ाए, तो अल्लाह ने उनके हाथ तुम्हारी तरफ़ बढ़ने से रोक दिए. और तुम अल्लाह से डरते रहो. और मोमिनों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए.
12. और बेशक अल्लाह ने बनी इस्राईल से पुख़्ता अहद लिया था और हमने उनमें से बारह सरदार मुक़र्रर किए. और अल्लाह ने बनी इस्राईल से फ़रमाया था कि बेशक हम तुम्हारे साथ हैं. अगर तुम पाबंदी से नमाज़ पढ़ते रहे और ज़कात अदा करते रहे और हमारे रसूलों पर ईमान लाए और उनकी मदद करते रहे और अल्लाह की ख़ुशनूदी के लिए लोगों को क़र्ज़े हसना देते रहे, तो हम भी तुम्हारे आमालनामों से तुम्हारे गुनाहों को ज़रूर मिटा देंगे और तुम्हें जन्नत के उन बाग़ों में ज़रूर दाख़िल करेंगे, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. फिर उसके बाद तुम में से जिसने शख़्स कुफ़्र किया, तो बेशक वह सीधे रास्ते से भटक गया.
13. फिर उन लोगों के अहद तोड़ने की वजह से हमने उन पर लानत की और हमने उनके दिलों को सख़्त कर दिया. वे हमारे कलमात को उनकी जगह से बदल देते हैं और उसका एक बड़ा हिस्सा भूल गए, जिसकी उन्हें नसीहत की गई थी. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम हमेशा उनकी किसी न किसी ख़्यानत की ख़बर पाते रहते हो, सिवाय उनमें से चन्द लोगों के. फिर तुम उन्हें मुआफ़ कर दो और उनसे दरगुज़र करो. बेशक अल्लाह मोहसिनों से मुहब्बत करता है.
14. और हमने उन लोगों से अहद लिया था, जो कहते हैं कि हम नसरानी यानी ईसाई हैं. फिर वे भी उसका एक बड़ा हिस्सा भूल गए, जिसकी उन्हें नसीहत की गई थी. फिर हमने उनके दरम्यान दुश्मनी और बुग़्ज़ रोज़े क़यामत तक के लिए डाल दिया. और अनक़रीब अल्लाह उन्हें उन आमाल से आगाह कर देगा, जो वे किया करते थे.
15. ऐ अहले किताब ! बेशक तुम्हारे पास हमारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आ चुके हैं, जो तुम्हारे लिए बहुत सी ऐसी बातें वाज़ेह तौर पर ज़ाहिर करते हैं, जो तुम किताब में से छुपाया करते थे और तुम्हारी बहुत सी बातों से दरगुज़र करते हैं. बेशक तुम्हारे पास अल्लाह की तरफ़ से एक नूर यानी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और एक रौशन किताब यानी क़ुरआन आ चुका है.
16. अल्लाह उसके ज़रिये अपनी ख़ुशनूदी की पैरवी करने वालों को सलामती की राहों की हिदायत करता है और उन्हें अपने हुक्म से कुफ़्र की तारीकियों से निकालकर ईमान के नूर की तरफ़ ले आता है और उन्हें सीधे रास्ते की हिदायत देता है.
17. बेशक उन लोगों ने कुफ़्र किया, जो कहते हैं कि बेशक अल्लाह ही मसीह इब्ने मरयम अलैहिस्सलाम है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि फिर ऐसा कौन है, जो अल्लाह की ख़िलक़त में से किसी चीज़ का मालिक हो ? अगर वह यह इरादा करे कि मसीह इब्ने मरयम अलैहिस्सलाम और उनकी मां और सब ज़मीन वालों को हलाक कर दे, तो कौन है, जो उसे रोक सके. और आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरम्यान है, सबकी बादशाही अल्लाह ही की है. वह जो चाहता है, पैदा करता है. और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
18. और यहूदी और नसरानी यानी ईसाई कहते हैं कि हम अल्लाह के बेटे और उसके प्यारे चहेते हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगर ऐसा है, तो वे तुम्हारे गुनाहों पर तुम्हें अज़ाब क्यों देता है, बल्कि हक़ीक़त तो यह है कि जिस मख़लूक़ को अल्लाह ने पैदा किया है तुम भी उसी में से बशर हो. वह जिसे चाहता है बख़्श देता है और जिसे चाहता है अज़ाब देता है. और आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरम्यान है सबकी बादशाही अल्लाह ही की है और सबको उसकी तरफ़ ही लौटना है.
19. ऐ अहले किताब ! बेशक तुम्हारे पास हमारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रसूलों की आमद के सिलसिले के टूट जाने के बाद आए हैं, जो तुम्हारे लिए हमारे अहकाम वाज़ेह करके बयान करते हैं. इसलिए कि तुम यह न कह दो कि हमारे पास न तो कोई ख़ुशख़बरी देने वाला पैग़म्बर आया और न अज़ाब से ख़बरदार करने वाला ही आया. बेशक तुम्हारे पास ख़ुशख़बरी देने वाला और अज़ाब से ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर आ गया है और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
20. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वक़्त भी याद करो कि जब मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम से कहा कि ऐ मेरी क़ौम ! तुम उन नेअमतों का ज़िक्र करो, जो अल्लाह ने तुम्हें अता कीं. अल्लाह ने तुम में से नबी पैदा किए और तुम्हें बादशाह बनाया और तुम्हें वह सब दिया, जो तुम्हारे ज़माने में तमाम आलम में किसी को नहीं दिया गया था.
21. ऐ मेरी क़ौम ! उस मुक़द्दस सरज़मीन में जाओ, जो अल्लाह ने तुम्हारी तक़दीर में लिख दी है और दुश्मन से मुक़ाबले में पीठ न फेरना, वरना तुम नुक़सान उठाने वाले बनकर लौटोगे.
22. वे लोग कहने लगे कि ऐ मूसा अलैहिस्सलाम ! बेशक उस सरज़मीन में तो बड़ी जाबिर यानी सरकश क़ौम रहती है और हम हरगिज़ उसमें दाख़िल नहीं होंगे, यहां तक कि वे लोग उस सरज़मीन से निकल जाएं. फिर अगर वे लोग ख़ुद वहां से निकल जाएंगे, तो हम ज़रूर उसमें दाख़िल हो जाएंगे.
23. उन चन्द लोगों में से जो अल्लाह का ख़ौफ़ रखते थे और जिन्हें अल्लाह ने ईनाम अता किया था, कहने लगे कि तुम उन पर हमला करते हुए दरवाज़े से दाख़िल हो जाओ. फिर जब तुम उस दरवाज़े से दाख़िल हो जाओगे, तो बेशक तुम ग़ालिब हो जाओगे. और तुम अल्लाह पर भरोसा करो. अगर तुम ईमान वाले हो.
24. वे लोग कहने लगे कि ऐ मूसा अलैहिस्सलाम ! बेशक जब तक वे लोग उस सरज़मीन में हैं, तो हम हरगिज़ उसमें दाख़िल नहीं होंगे. फिर तुम जाओ और तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारे साथ जाए. फिर तुम दोनों ही उनसे जंग करो. हम तो यहीं बैठे हैं.
25. मूसा अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! बेशक मैं अपनी ज़ात और अपने भाई हारून के सिवा किसी पर कोई इख़्तियार नहीं रखता. फिर तू हमारे और इस नाफ़रमान क़ौम के दरम्यान जुदाई कर दे.
26. अल्लाह ने फ़रमाया कि फिर यह सरज़मीन इस नाफ़रमान लोगों पर चालीस साल तक हराम कर दी गई है. ये लोग इस सरज़मीन में परेशान हाल भटकते फिरेंगे. फिर तुम इस नाफ़रमान क़ौम की बदहाली पर अफ़सोस न करना.
27. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उन लोगों से आदम अलैहिस्सलाम के दो बेटों हाबील और क़ाबील का सच्चा क़िस्सा बयान करो कि जब उन दोनों ने अल्लाह की बारगाह में एक-एक क़ुर्बानी पेश की, तो उनमें से एक हाबील की क़ुर्बानी क़ुबूल कर ली गई और दूसरी क़ाबील की क़ुर्बानी क़ुबूल नहीं की गई, तो हसद में जलते हुए वह हाबील से कहने लगा कि मैं तुझे ज़रूर क़त्ल कर दूंगा. हाबील ने जवाब देते हुए कहा कि बेशक अल्लाह परहेज़गारों से ही नियाज़ क़ुबूल करता है.
28. अगर तुम अपना हाथ मुझे क़त्ल के लिए मेरी तरफ़ बढ़ाओगे, तब भी मैं अपना हाथ तुम्हें क़त्ल के लिए तुम्हारी तरफ़ नहीं बढ़ाऊंगा. बेशक मैं अल्लाह से ख़ौफ़ रखता हूं, जो तमाम आलमों का परवरदिगार है.
29. बेशक मैं चाहता हूं कि तू मेरे क़त्ल के गुनाह और अपने पिछले गुनाहों को समेट ले. फिर तू दोज़ख़ वाले लोगों में से हो जाए और यही ज़ालिमों की सज़ा है.
30. फिर क़ाबील के नफ़्स ने उसे अपने भाई हाबील के क़त्ल पर आमादा कर दिया. फिर उसने हाबील को क़त्ल कर दिया. फिर वह नुक़सान उठाने वालों में से हो गया.
31. फिर अल्लाह ने एक कौवे को भेजा, जो ज़मीन को कुरेदने लगा, ताकि क़ाबील को दिखा दे कि वह अपने भाई की लाश किस तरह छुपाये. यह देखकर वह कहने लगा कि हाय अफ़सोस ! क्या मैं इस कौवे जैसा भी न हो सका कि अपने भाई की लाश छुपा देता. फिर वह अपने ज़ुल्म की वजह से नादिम होने वाले लोगों में से हो गया.
32. इसी वजह से हमने बनी इस्राईल पर नाज़िल की गई तौरात में यह हुक्म लिख दिया था कि जिसने किसी को बग़ैर क़सास के यानी जान के बदले में जान और ज़मीन में फ़साद फैलाने की सज़ा के बग़ैर नाहक़ क़त्ल कर दिया, तो गोया उसने सब लोगों को क़त्ल कर दिया. और जिसने उसे नाहक़ क़त्ल होने से बचाकर ज़िन्दा रखा, तो गोया उसने सब लोगों को ज़िन्दा रखा. और बेशक उनके पास हमारे रसूल वाज़ेह निशानियां लेकर आए. उसके बाद भी उनमें से बहुत से लोग ज़मीन में हद से बढ़ जाने वाले हैं.
33. बेशक जो लोग अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से जंग करते हैं यानी नाफ़रमानी करते हैं और ज़मीन में फ़साद फैलाते फिरते हैं, तो उनकी सज़ा यही है कि उन्हें क़त्ल कर दिया जाए या उन्हें सूली पर चढ़ा दिया जाए या उनके हाथ पांव मुख़ालिफ़ सिम्तों से काट दिए जाएं या उन्हें अपने वतन की सरज़मीन से निकाल दिया जाए. यह उनके लिए दुनिया में रुसवाई है और उनके लिए आख़िरत में भी बड़ा अज़ाब है.
34. लेकिन जिन लोगों ने तौबा कर ली, इससे पहले कि तुम उन पर क़ाबू पाओ, तो जान लो कि बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
35. ऐ ईमान वालो ! अल्लाह से डरते रहो और उस तक पहुंचने का वसीला तलाश करो और उसकी राह में जिहाद करो, ताकि तुम कामयाबी पाओ.
36. बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उनके पास वह सब हो, जो ज़मीन में है, बल्कि उसके साथ उतना और भी हो, ताकि वे क़यामत के दिन अज़ाब से निजात पाने के लिए फ़िदया दे दें, तब भी वह क़ुबूल नहीं किया जाएगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है.
37. वे लोग चाहेंगे कि किसी तरह दोज़ख़ से निकल जाएं. हालांकि वे उसमें से निकल नहीं सकेंगे और उनके लिए तो दाइमी अज़ाब है.
38. और चोरी करने वाला मर्द हो या औरत, दोनों के हाथ काट दो. यह उस जुर्म की सज़ा है, जो उन्होंने किया है. यह अल्लाह की तरफ़ से इबरतनाक सज़ा है. और अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
39. फिर जो शख़्स अपने इस ज़ुल्म यानी गुनाह के बाद तौबा कर ले और अपनी इस्लाह कर ले, तो बेशक अल्लाह उसकी तौबा क़ुबूल कर लेता है. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
40. ऐ इंसान ! क्या तू नहीं जानता कि आसमानों और ज़मीन की सारी बादशाहत अल्लाह ही की है. वह जिसे चाहता है अज़ाब देता है और जिसे चाहता है बख़्श देता है और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
41. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वे लोग तुम्हें ग़मगीन न कर दें, जो कुफ़्र में तेज़ी करते हैं. उनमें वे मुनाफ़िक़ भी हैं, जो अपने मुंह से कहते हैं कि हम ईमान लाए हैं. हालांकि उनके दिल ईमान नहीं लाए. और उनमें यहूदी भी हैं, जो झूठी बातें बनाने के लिए तुम्हें सुनते हैं. हक़ीक़त में वे दूसरी क़ौम की ख़ातिर जासूसी के लिए सुनते हैं, जो अभी तक तुम्हारे पास नहीं आए. ये लोग तौरात के कलमात को उनके असली मायने मालूम होने के बाद भी बदल देते हैं और लोगों से कहते हैं कि अगर तुम्हें यह हुक्म दिया जाए, तो उसे मान लेना और अगर तुम्हें यह हुक्म न दिया जाए, तो उससे गुरेज़ करना. और अल्लाह जिसे गुमराही में छोड़ दे, तो तुम उसके लिए हरगिज़ कुछ नहीं कर सकते. यही वे लोग हैं जिनके दिलों को पाक करने का अल्लाह ने इरादा ही नहीं किया. उनके लिए दुनिया में भी रुसवाई है और उनके लिए आख़िरत में भी बड़ा अज़ाब है.
42. वे लोग झूठी बातें बनाने के लिए जासूसी करने वाले हैं और वे हराम माल ख़ूब खाने वाले हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर अगर वे लोग तुम्हारे पास कोई मामला लेकर आएं, तो तुम्हें यह इख़्तियार है कि उनके दरम्यान फ़ैसला कर दो या उनसे किनाराकशी कर लो. और अगर तुम उनसे किनाराकशी कर लो, तब भी वे लोग तुम्हारा कोई नुक़सान नहीं कर सकते और अगर तुम उनके दरम्यान फ़ैसला करो, तो इंसाफ़ के साथ फ़ैसला करो. बेशक अल्लाह इंसाफ़ करने वालों को पसंद करता है.
43. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वे लोग तुम्हें हाकिम कैसे मान सकते हैं, जबकि उनके पास तौरात मौजूद है, जिसमें अल्लाह का हुक्म है. फिर वे इसके बाद भी हक़ से मुंह फेरते हैं. और वे लोग ईमान लाने वाले नहीं हैं.
44. बेशक हमने तौरात नाज़िल की, जिसमें हिदायत और नूर है, जिसके ज़रिये अल्लाह के फ़रमाबरदार नबी यहूदियों को हुक्म देते रहे और अल्लाह वाले यानी अल्लाह के औलिया और उलेमा भी उसके मुताबिक़ फ़ैसले करते रहे. इस वजह से कि वे अल्लाह की किताब के मुहाफ़िज़ बनाए गए थे और वे उसके गवाह भी थे. फिर तुम लोगों से मत डरो और हमारी आयतों के बदले में थोड़ी सी क़ीमत न लिया करो और जो शख़्स अल्लाह की नाज़िल की हुई किताब के मुताबिक़ हुक्म न दे यानी फ़ैसला न करे, तो ऐसे ही लोग काफ़िर हैं.
45. और हमने उस तौरात में यहूदियों पर यह फ़र्ज़ कर दिया था कि जान के बदले जान और आंख के बदले आंख और नाक के बदले नाक और कान के बदले कान और दांत के बदले दांत और ज़ख़्म के बदले वैसा ही बराबर का ज़ख़्म बदला है. फिर जो शख़्स इस क़सास को सदक़ा कर दे यानी मुआफ़ कर दे, तो यह उसके गुनाहों का कफ़्फ़ारा होगा और जो शख़्स अल्लाह की नाज़िल की हुई किताब के मुताबिक़ हुक्म न दे यानी फ़ैसला न करे, तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं.
46. और हमने उन पैग़म्बरों के पीछे उनके नक़्शे क़दम पर ईसा इब्ने मरयम अलैहिस्सलाम को भेजा, जो ख़ुद से पहले की किताब यानी तौरात की तसदीक़ करने वाले थे और हमने उन्हें इंजील अता की, जिसमें हिदायत और नूर था और यह इंजील भी ख़ुद से पहले की किताब यानी तौरात की तसदीक़ करने वाली थी और यह परहेज़गारों के लिए हिदायत और नसीहत थी.
47. और अहले इंजील को भी इस हुक्म के मुताबिक़ फ़ैसला करना चाहिए, जो अल्लाह ने उसमें नाज़िल किया है. और जो शख़्स अल्लाह की नाज़िल की हुई किताब के मुताबिक़ हुक्म न दे यानी फ़ैसला न करे, तो ऐसे ही लोग नाफ़रमान हैं.
48. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हमने तुम्हारी तरफ़ भी हक़ के साथ किताब यानी क़ुरआन नाज़िल किया है, जो इससे पहले की किताब की तसदीक़ करता है और उसका निगेहबान भी है. फिर तुम उनके दरम्यान उन अहकाम के मुताबिक़ हुक्म दो यानी फ़ैसला करो, जो अल्लाह ने नाज़िल किया है और तुम उस हक़ से दूर होकर उन लोगों की ख़्वाहिशों की पैरवी न करो, जो तुम्हारे पास आ चुका है. हमने तुम में से हर एक के लिए एक शरीयत और एक रास्ता मुक़र्रर कर दिया है और अगर अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक ही उम्मत बना देता, लेकिन वह तुम्हें उन अहकाम के ज़रिये आज़माना चाहता है, जो उसने दिए हैं. फिर तुम भलाई के कामों में तेज़ी से आगे बढ़ो और तुम सबको अल्लाह की तरफ़ ही लौटना है. और अल्लाह तुम्हें उससे आगाह कर देगा, जिनमें तुम इख़्तिलाफ़ किया करते हो.
49. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और ये कि तुम उनके दरम्यान उस हुक्म के मुताबिक़ फ़ैसला करो, जो अल्लाह ने नाज़िल किया है और उनकी ख़्वाहिशों की पैरवी न करो और तुम उनसे बचो. कहीं वे तुम्हें उन अहकाम से न भटका दें, जो अल्लाह ने तुम्हारी तरफ़ नाज़िल किए हैं. फिर अगर वे लोग तुम्हारे हुक्म से मुंह फेरें, तो जान लो कि अल्लाह उनके कुछ गुनाहों की वजह से उन्हें सज़ा देना चाहता है. और बेशक उनमें से बहुत से लोग नाफ़रमान हैं.
50. क्या वे लोग जाहिलियत के ज़माने का हुक्म यानी क़ानून चाहते हैं. और यक़ीन करने वाली क़ौम के लिए अल्लाह के अहकाम से बेहतर क्या हो सकता है.
51. ऐ ईमान वालो ! यहूदियों और नसरानियों यानी ईसाइयों को अपना दोस्त मत बनाओ, वे लोग तुम्हारे ख़िलाफ़ आपस में एक दूसरे के दोस्त हैं. और तुम में से जो उन्हें अपना दोस्त बनाएगा, तो बेशक वह भी उनमें से हो जाएगा. बेशक अल्लाह ज़ालिमों की क़ौम को हिदायत नहीं देता.
52. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम उन लोगों को देखोगे, जिनके दिलों में निफ़ाक़ का मर्ज़ है कि वे उन यहूदियों और नसरानियों यानी ईसाइयों में शामिल होने के लिए दौड़े जाते हैं. वे कहते हैं कि हमें डर है कि हम किसी गर्दिश में मुब्तिला न हो जाएं. यानी अपनी हिफ़ाज़त के लिए उनसे मिलते हैं. फिर मुमकिन है कि अल्लाह मोमिनों को फ़तह अता करे या कोई और बात अपनी तरफ़ से ज़ाहिर कर दे, तो वे लोग अपने दिल में छुपी हुई बदगुमानी पर नादिम होकर रह जाएंगे.
53. और उस वक़्त ईमान वाले लोग कहेंगे कि क्या यही वे लोग हैं, जो अल्लाह की पुख़्ता क़समें खाकर कहते थे कि बेशक वे तुम्हारे साथ हैं. उनके सब आमाल बर्बाद हो गए. फिर वे नुक़सान उठाने वाले हो गए.
54. ऐ ईमान वालो ! तुममें से जो शख़्स अपने दीन से फिरेगा, तो अनक़रीब अल्लाह उन लोगों की जगह ऐसी क़ौम को ले आएगा, जिससे वह मुहब्बत करेगा और जो उससे मुहब्बत करेगी. वे लोग मोमिनों के लिए नर्म और काफ़िरों के लिए सख़्त होंगे और अल्लाह की राह में जिहाद करेंगे और किसी मलामत करने वाले की मलामत से ख़ौफ़ज़दा नहीं होंगे. यह अल्लाह का फ़ज़ल है. वह जिसे चाहता है देता है और अल्लाह बड़ा वुसअत वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
55. ऐ ईमान वालो ! बेशक तुम्हारा कारसाज़ तो अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही हैं और वे मोमिन भी हैं, जो पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हैं और ज़कात अदा करते हैं और वे अल्लाह की बारगाह में रुजू करने वाले हैं.
56. और जो शख़्स अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मोमिनों को अपना दोस्त बनाएगा, तो वह अल्लाह की जमात में शामिल हो गया. बेशक अल्लाह की जमात के लोग ही ग़ालिब रहने वाले हैं.
57. ऐ ईमान वालो ! जिन लोगों को तुमसे पहले किताब यानी तौरात और इंजील दी गई थी, उनमें से और काफ़िरों में से उन लोगों को अपना दोस्त मत बनाओ, जो तुम्हारे दीन का मज़ाक़ उड़ाते हैं. और अल्लाह से डरते रहो. अगर तुम ईमान वाले हो.
58. और जब तुम अज़ान देकर नमाज़ के लिए लोगों को बुलाते हो, तो वे लोग उसे मज़ाक़ और खेल बना लेते हैं. यह इसलिए कि इस क़ौम को अक़्ल नहीं है.
59. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ऐ अहले किताब ! क्या तुम हमसे सिर्फ़ इसी बात पर नाराज़ हो कि हम अल्लाह और उसकी किताब यानी क़ुरआन पर जो हमारी तरफ़ नाज़िल किया गया है और इससे पहले नाज़िल हुई किताबों यानी ज़ुबूर और तौरात और इंजील पर ईमान लाए हैं. और बेशक तुम में से बहुत से लोग नाफ़रमान हैं.
60. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या मैं तुम्हें उस शख़्स के बारे में आगाह करूं, जो सज़ा के लिहाज़ से अल्लाह के नज़दीक उससे भी बदतर है, जिसे तुम बुरा समझते हो और जिस पर अल्लाह ने लानत की है और उस पर ग़ज़बनाक हुआ है और उसने उनमें से किसी को बंदर और किसी को ख़ंज़ीर बना दिया है. और जिसने अल्लाह के सिवा ताग़ूत यानी शैतान को पुकारा, तो ऐसे लोग दर्जे के लिए लिहाज़ से बदतरीन और सीधे रास्ते से बहुत ही भटके हुए हैं.
61. और जब वे मुनाफ़िक़ तुम्हारे पास आते हैं, तो कहते हैं कि हम ईमान लाए हैं. हालांकि वे कुफ़्र के साथ ही तुम्हारी मजलिसों में दाख़िल हुए और उसी कुफ़्र के साथ ही वहां से निकल गए और अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है, जो कुछ वे छुपाते हैं.
62. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम उनमें से बहुत से ऐसे लोगों को देखोगे, जो गुनाह और सरकशी और हरामख़ोरी में तेज़ी से बढ़ते हैं. वह बहुत बुरा है, जो कुछ वे किया करते हैं.
63. उन लोगों को अल्लाह वाले और उलेमा झूठ बोलने और हरामख़ोरी से मना क्यों नहीं करते ? वह बहुत बुरा है, जो कुछ वे किया करते हैं.
64. और यहूदी कहते हैं कि अल्लाह का हाथ बंधा हुआ है यानी बुख़ील हो गया है. उनके अपने हाथ बांध दिए जाएं और जो कुछ उन्होंने कहा उसकी वजह से उन पर लानत की गई, बल्कि अल्लाह के दोनों हाथ कुशादा हैं. वह जिस तरह चाहता है अपने बन्दों पर ख़र्च करता है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जो किताब यानी क़ुरआन तुम्हारी तरफ़ तुम्हारे परवरदिगार की जानिब से नाज़िल हुआ है. बेशक उसकी हसद उनमें से बहुत से लोगों की सरकशी और कुफ़्र को मज़ीद बढ़ा देगी. और गोया हमने उनके दरम्यान रोज़े क़यामत तक के लिए दुश्मनी और बुग़्ज़ डाल दिया है. जब भी वे लोग जंग की आग भड़काते हैं, तो अल्लाह उसे बुझा देता है और वे ज़मीन में फ़साद फैलाते रहते हैं और अल्लाह मुफ़सिदों को पसंद नहीं करता.
65. और अगर अहले किताब हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान ले आते और हमसे डरते, तो हम ज़रूर उनके गुनाहों को उनके आमालनामों से मिटा देते और उन्हें नेअमतों वाली जन्नत के बाग़ों में ज़रूर दाख़िल करते.
66. और अगर वे लोग तौरात और इंजील और सहीफ़े जो उनकी तरफ़ उनके परवरदिगार की जानिब से नाज़िल किए गए थे, उनके अहकाम को क़ायम कर देते, तो ज़रूर वे अपने ऊपर से भी और पांव के नीचे से भी खाते. यानी उन पर ऊपर से भी रिज़्क़ बरसता और ज़मीन से भी बेहिसाब रिज़्क़ मिलता, जो कभी ख़त्म नहीं होता. उनमें से एक उम्मत सीधे रास्ते पर है और उनमें से बहुत से लोग बुरा कर रहे हैं.
67. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जो कुछ तुम्हारी तरफ़ तुम्हारे परवरदिगार की जानिब से नाज़िल किया गया है, उसे लोगों तक पहुंचा दो. और अगर तुमने ऐसा नहीं किया, तो जान लो तुमने अल्लाह का कोई पैग़ाम नहीं पहुंचाया. और अल्लाह मुख़ालिफ़ लोगों से तुम्हारी हिफ़ाज़त करेगा. बेशक अल्लाह काफ़िर क़ौम को हिदायत नहीं देता.
68. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ऐ अहले किताब ! तुम किसी भी शय पर नहीं हो यानी किसी भी दीन पर नहीं हो, यहां तक कि तुम तौरात और इंजील और जो सहीफ़े तुम्हारी तरफ़ तुम्हारे परवरदिगार की जानिब से नाज़िल हुए हैं, उनके अहकाम को क़ायम न कर दो. और ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जो किताब यानी क़ुरआन तुम्हारी तरफ़ तुम्हारे परवरदिगार की जानिब से नाज़िल किया गया है, उसकी हसद उनमें से बहुत से लोगों की सरकशी और कुफ़्र को मज़ीद बढ़ा देगी. फिर तुम काफ़िर क़ौम के लिए अफ़सोस न किया करो.
69. बेशक जो लोग ईमान लाए और यहूदी हुए और साबी यानी सितारा परस्त हुए और नसरानी यानी ईसाई हुए, उनमें से जो अल्लाह और रोज़े क़यामत पर ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो उन्हें न कोई ख़ौफ़ होगा न वे ग़मगीन होंगे.
70. बेशक हमने बनी इस्राईल से पुख़्ता अहद लिया और हमने उनकी तरफ़ बहुत से रसूल भी भेजे. जब भी उनके पास कोई रसूल ऐसा हुक्म लाता, जिसे उनके दिल नहीं चाहते थे, तो उन्होंने नबियों के एक फ़रीक़ को झुठला दिया और एक फ़रीक़ को क़त्ल करते रहे.
71. और वे लोग गुमान करते रहे कि नबियों को झुठलाने और क़त्ल करने से उन पर कोई आफ़त नहीं आएगी. फिर वे अंधे और बहरे हो गए. जब उन्होंने तौबा की, तो अल्लाह ने उनकी तौबा क़ुबूल कर ली. फिर उनमें से बहुत से लोग अंधे और बहरे हो गए. और अल्लाह उसे ख़ूब देख रहा है, जो कुछ वे किया करते हैं.
72. हक़ीक़त में वे लोग काफ़िर हो गए, जिन्होंने कहा कि अल्लाह ही मसीह इब्ने मरयम अलैहिस्सलाम है, हालांकि मसीह अलैहिस्सलाम ने ख़ुद कहा था है कि ऐ बनी इस्राईल ! तुम अल्लाह की इबादत करो, जो मेरा भी परवरदिगार है और तुम्हारा भी परवरदिगार है. बेशक जिसने किसी को अल्लाह का शरीक ठहराया, तो अल्लाह ने उसके लिए जन्नत हराम कर दी और उसका ठिकाना दोज़ख़ है और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं है.
73. बेशक वे लोग भी काफ़िर हो गए, जिन्होंने कहा कि अल्लाह तीन सरपरस्तों में से तीसरा है. हालांकि माबूदे यकता के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं और अगर वे लोग इससे बाज़ नहीं आए, जो कुछ वे कहते हैं, तो उनमें से काफ़िरों को ज़रूर दर्दनाक अज़ाब पहुंचेगा.
74. क्या वे लोग अल्लाह की बारगाह में तौबा नहीं करते और उससे मग़फ़िरत की दुआ नहीं मांगते. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
75. मसीह इब्ने मरयम अलैहिस्सलाम रसूल के सिवा और कुछ नहीं हैं. और उनसे पहले भी बहुत से रसूल गुज़र चुके हैं और उनकी मां अल्लाह की सच्ची बन्दी थीं. वे दोनों मख़लूक़ थे, क्योंकि वे खाना भी खाते थे. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! देखो कि हम उनके लिए किस तरह आयतों को वाज़ेह तौर पर बयान करते हैं. फिर वे लोग कहां भटक रहे हैं.
76. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या तुम अल्लाह के सिवा उसे पुकारते हो, जो न तुम्हारे लिए किसी नुक़सान का इख़्तियार रखता है और न किसी नफ़े का. और अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
77. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ऐ अहले किताब ! तुम अपने दीन में नाहक़ ज़्यादती न करो और न उस क़ौम की ख़्वाहिशों की पैरवी किया करो, जो पहले ही गुमराह हो चुकी थी और अपने साथ दूसरों को भी गुमराह कर गई और सीधे रास्ते से भटक गई.
78. बनी इस्राईल में से जिन लोगों ने कुफ़्र किया था, उन्हें दावूद और ईसा इब्ने मरयम अलैहिस्सलाम की ज़बान से लानत की जा चुकी है. यह इसलिए कि उन्होंने नाफ़रमानी की और वे हद से गुज़र जाते थे.
79. और वे लोग जो भी बुरा काम करते थे, एक दूसरे को उससे मना नहीं करते थे. बेशक वे काम बुरे थे, जो वे किया करते थे.
80. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उनमें से बहुत से लोगों को देखोगे कि वे कुफ़्र करने वाले लोगों से दोस्ती करते हैं. वह बहुत बुरा है, जो उन्होंने अपने लिए आगे भेजा है. और यह कि अल्लाह दुनिया में भी उन पर ग़ज़बनाक हुआ और आख़िरत में भी वे लोग हमेशा अज़ाब में मुब्तिला रहेंगे.
81. और अगर वे लोग अल्लाह और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उस किताब यानी क़ुरआन पर जो उनकी तरफ़ नाज़िल किया गया है ईमान लाते, तो उन्हें यानी इस्लाम के दुश्मनों को अपना दोस्त नहीं बनाते, लेकिन उनमें से बहुत से लोग नाफ़रमान हैं.
82. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम यक़ीनन ईमान वाले लोगों का सबसे ज़्यादा दुश्मन यहूदियों और शिर्क करने वाले लोगों को पाओगे. और तुम यक़ीनन ईमान वाले लोगों से मुहब्बत में सबसे ज़्यादा क़रीब उन लोगों को पाओगे, जो ख़ुद को नसरानी यानी ईसाई कहते हैं. यह इसलिए कि उनमें से बहुत से आलिम और राहिब हैं और वे तकब्बुर भी नहीं करते.
83. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब उनमें से कुछ नसरानी यानी ईसाई उस क़ुरआन को सुनते हैं, जो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल किया गया है, तो तुम देखते हो कि उनकी आंखों से आंसू छलक कर बहने लगते हैं. यह इसलिए कि उन्होंने हक़ को पहचान लिया है और वे अर्ज़ करते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हम ईमान ला चुके हैं, तो तू हमें हक़ की गवाही देने वालों के साथ लिख ले यानी उनमें शामिल कर ले.
84. और हमें क्या हुआ है कि हम अल्लाह और उस हक़ यानी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
और क़ुरआन पर ईमान न लाएं, जो हमारे पास आया है. हालांकि हमें उम्मीद है कि हमारा परवरदिगार हमें अपने नेक बन्दों के साथ रखेगा यानी उनमें शामिल करेगा.
85. फिर अल्लाह ने उनकी इस दुआ के बदले उन्हें जन्नत के बाग़ अता किए, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. वे उसमें हमेशा रहेंगे और यह नेकी करने वालों की जज़ा है.
86. और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और हमारी आयतों को झुठला दिया, तो वे लोग जहन्नुम में रहेंगे.
87. ऐ ईमान वालो ! जो पाकीज़ा चीज़ें अल्लाह ने तुम्हारे लिए हलाल की हैं, उन्हें अपने लिए हराम न ठहराओ और न हद से बढ़ो. बेशक अल्लाह हद से तजावुज़ करने वाले लोगों को पसंद नहीं करता.
88. और जो हलाल पाकीज़ा रिज़्क़ अल्लाह ने तुम्हें दिया है, उसमें से खाओ व पियो और अल्लाह से डरते रहो, जिस पर तुम ईमान रखते हो.
89. अल्लाह तुम्हारी बेमक़सद क़समों की वजह से तुम्हें गिरफ़्त में नहीं लेता, लेकिन तुम्हारी उन बामक़सद क़समों पर गिरफ़्त में लेता है, जिन्हें तुमने पुख़्ता किया हो. अगर तुम ऐसी क़समें तोड़ दो, तो उसका कफ़्फ़ारा दस मोहताजों को वह खाना खिलाना है, जो तुम अपने घरवालों को खिलाते हो. या उन्हें कपड़े देना है या एक गर्दन यानी एक ग़ुलाम को आज़ाद करना है. फिर जिससे यह सब न हो सके, तो उसे तीन दिन रोज़े रखने हैं. यह तुम्हारी क़समों का कफ़्फ़ारा है जब तुम क़सम खाओ और उन्हें पूरा न करो. और अपनी क़समों की हिफ़ाज़त किया करो. इसी तरह अल्लाह अपनी आयतें वाज़ेह तौर पर बयान करता है, ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो.
90. ऐ ईमान वालो ! बेशक शराब और जुआ और बुत और पांसे सब नापाक और शैतानी काम हैं, तो तुम इनसे बचो, ताकि तुम कामयाबी पाओ.
91. शैतान यही चाहता कि शराब और जुए के ज़रिये तुम्हारे दरम्यान दुश्मनी और बुग़्ज़ डाल दे और तुम्हें अल्लाह के ज़िक्र और नमाज़ से रोक दे. क्या तुम इससे बाज़ आओगे.
92. और तुम अल्लाह की इताअत करो और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो और नाफ़रमानी से बचो. फिर अगर तुमने हक़ से मुंह फेरा, तो जान लो कि हमारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ हमारे अहकाम वाज़ेह तौर पर पहुंचाने तक ही है.
93. जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो उन पर कोई गुनाह नहीं है, जो कुछ वे पहले खा पी चुके हैं, जबकि उन्होंने परहेज़गारी इख़्तियार की और ईमान ले आए और नेक अमल करते रहे. फिर वे हुक्मे इलाही आने के बाद भी हराम चीज़ों से परहेज़ करते रहे और अच्छे काम करते रहे और अल्लाह मोहसिनों से मुहब्बत करता है.
94. ऐ ईमान वालो ! अल्लाह ऐसे शिकार के ज़रिये तुम्हें ज़रूर आज़माएगा, जिस तक तुम्हारे हाथ और तुम्हारे नेज़ें पहुंच सकते हैं, ताकि यह ज़ाहिर कर दे कि कौन उससे ग़ायबाना ख़ौफ़ रखता है. फिर जो शख़्स उसके बाद भी हद से तजावुज़ करेगा, तो उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है.
95. ऐ ईमान वालो ! जब तुम एहराम में हो, तो शिकार को मत मारो और तुम में से जो जानबूझ कर शिकार को मारेगा, तो उसका बदला चौपायों में से उसी के बराबर कोई जानवर है, जिसे उसने मारा है. इस बारे में तुम में से दो आदिल शख़्स फ़ैसला करें कि वह क़ुर्बानी हदिया के तौर पर काबे तक पहुंचाई जाए या उसका कफ़्फ़ारा उसकी क़ीमत से मिस्कीनों को खाना खिलाकर हो या वह खाना जितने लोगों को पूरा हो, उसके बराबर रोज़े रखे जाएं, ताकि वह अपने वबाल का ज़ायक़ा चखे. जो कुछ इससे पहले हो चुका, अल्लाह ने उसे मुआफ़ किया और जो शख़्स फिर ऐसी हरकत करेगा, तो अल्लाह उससे नाफ़रमानी का बदला लेगा और अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा इंतक़ाम लेने वाला है.
96. तुम्हारे लिए दरिया और समन्दर का शिकार और उसका खाना हलाल कर दिया गया है, जो तुम्हारे और मुसाफ़िरों के लिए फ़ायदेमंद है. और ख़ुश्की का शिकार तुम पर हराम किया गया है, जब तक कि तुम एहराम में हो. और उस अल्लाह से डरते रहो, जिसकी तरफ़ तुम सब उठाकर जमा किए जाओगे.
97. अल्लाह ने हुरमत वाले घर काबे को लोगों के लिए अमन के क़याम का ज़रिया बना दिया है और हुरमत वाले महीने और क़ुर्बानी और गले में अलामती पट्टे वाले चौपायों को भी. यह इसिलए कि तुम जान लो कि अल्लाह उसे ख़ूब जानता है, जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है. और यह कि अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है.
98. जान लो कि अल्लाह सख़्त अज़ाब देने वाला है और यह भी कि बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
99. रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िम्मेदारी अल्लाह के अहकाम वाज़ेह तौर पर लोगों तक पहुंचाने के सिवा और कुछ नहीं है और अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है, जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम पोशीदा रखते हो.
100. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ख़बीस और पाकीज़ा बराबर नहीं हो सकते. अगरचे तुम्हें ख़बीस की कसरत भली लगे, तो ऐ अक़्लमन्दो ! अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम कामयाबी पाओ.
101. ऐ ईमान वालो ! तुम ऐसी चीज़ों के बारे में रसूल से सवाल न किया करो कि अगर वे तुम्हारे लिए ज़ाहिर कर दी जाएं, तो तुम्हें बुरी लगें. और अगर तुम उनके बारे में उस वक़्त सवाल करोगे, जब क़ुरआन नाज़िल किया जा रहा है, तो वे तुम पर ज़ाहिर कर दी जाएंगी. और अब तक की बातों को अल्लाह ने दरगुज़र किया है और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा हलीम है.
102. तुमसे पहले की क़ौम ने अपने पैग़म्बरों से ऐसी ही बातें पूछी थीं. फिर बातें जानने के बाद उन्होंने कुफ़्र किया.
103. अल्लाह ने न कोई बहीरह मुक़र्रर की है और न साइबा और न वसीला और न हाम मुक़र्रर किया है, लेकिन कुफ़्र करने वाले लोग अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधते हैं. और उनमें से बहुत से लोग फिर भी नहीं समझते.
104. और जब उन लोगों से कहा जाता है कि इस क़ुरआन की तरफ़ आओ, जिसे अल्लाह ने नाज़िल किया है और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ़ आओ, तो वे कहते हैं कि हमारे लिए वह तरीक़ा काफ़ी है, जिस पर हमने अपने बाप दादाओं को पाया है. अगरचे उनके बाप दादा न हक़ के बारे में कुछ जानते थे और न वे हिदायत याफ़्ता थे.
105. ऐ ईमान वालो ! तुम अपनी जानों की फ़िक्र करो. कोई गुमराह तुम्हें नुक़सान नहीं पहुंचा सकता, अगर तुम हिदायत याफ़्ता हो. तुम सबको अल्लाह की तरफ़ ही लौटना है. फिर वह तुम्हें उन आमाल से आगाह कर देगा, जो तुम किया करते थे.
106. ऐ ईमान वालो ! जब तुममें से किसी की मौत आए, तो वसीयत करते वक़्त तुम्हारे दरम्यान गवाही के लिए तुम में से दो आदिल आदमियों का होना ज़रूरी है या ग़ैरों में से दो आदमी हों अगर तुम ज़मीन में कहीं सफ़र कर रहे हो और तुम्हें मौत की मुसीबत आ जाए, तो उन दोनों को नमाज़ के बाद रोक लो. अगर तुम्हें उन पर शक हो, तो वे अल्लाह की क़सम खाएं कि हम इस गवाही के एवज़ में कोई क़ीमत नहीं लेंगे. अगरचे कोई कितना ही क़रीबी रिश्तेदार हो और न हम अल्लाह की गवाही को छुपाएंगे. अगर ऐसा करें, तो बेशक हम उसी वक़्त गुनाहगारों में से हो जाएं.
107. फिर अगर यह मालूम हो जाए कि वे दोनों गवाह झूठी गवाही की वजह से गुनाह के मुस्तहक़ हो गए हैं, तो उनकी जगह दो और गवाह उन लोगों में से खड़े हो जाएं, जिनका हक़ दबाया गया है और वे मय्यत के क़रीबी रिश्तेदार हों. फिर वे अल्लाह की क़सम खाएं कि बेशक हमारी गवाही पहले के दोनों गवाहों की गवाही से ज़्यादा सच्ची है और हमने किसी तरह की ज़्यादती नहीं की. अगर ऐसा करें, तो बेशक हम उसी वक़्त ज़ालिमों में से हो जाएं.
108. यह तरीक़ा इस बात से क़रीबतर है कि लोग सही तौर पर गवाही दें या इस बात से ख़ौफ़ज़दा हों कि उनकी क़समें दूसरों की क़समों के बाद रद्द न कर दी जाएं और अल्लाह से डरते रहो और उसके अहकाम को ग़ौर से सुनो. और अल्लाह नाफ़रमान क़ौम को हिदायत नहीं देता.
109. उस दिन से डरो, जिस दिन अल्लाह अपने सब रसूलों को जमा करेगा और उनसे फ़रमाएगा कि तुम्हें तुम्हारी उम्मतों की तरफ़ से दीन के बारे में क्या जवाब मिला, तो वे अर्ज़ करेंगे कि हम कुछ नहीं जानते. बेशक तू ही ग़ैब की बातों का जानने वाला है.
110. जब अल्लाह फ़रमाएगा कि ऐ ईसा इब्ने मरयम अलैहिस्सलाम ! तुम ख़ुद पर और अपनी मां पर हमारी नेअमतें का ज़िक्र करो कि जब हमने रूहुल क़ुदूस यानी जिब्रईल अलैहिस्सलाम के ज़रिये तुम्हारी ताईद की. तुम गोद में और जवानी में लोगों से एक ही अंदाज़ में गुफ़्तगू करते थे. और जब हमने तुम्हें किताब और हिकमत और तौरात और इंजील सिखाई और जब तुम हमारे हुक्म से मिट्टी के गारे से परिन्दे का मुजस्समा बनाते थे. फिर तुम उस पर दम कर देते थे, तो वह हमारे हुक्म से उड़ने वाला परिन्दा बन जाता था. और जब तुम हमारे हुक्म से पैदायशी अंधों और कोढ़ियों को अच्छा कर देते थे. और जब तुम हमारे हुक्म से मुर्दों को ज़िन्दा करके क़ब्रों से निकाल कर खड़ा कर देते थे. और जब हमने बनी इस्राईल को तुम्हारा क़त्ल करने से रोक दिया था, जबकि तुम उनके पास वाज़ेह निशानियां लेकर आए, तो उनमें से कुफ़्र करने वाले लोग कहने लगे कि यह सरीह जादू के सिवा कुछ नहीं है.
111. और जब हमने हवारियों के दिलों में यह डाल दिया कि हम पर और हमारे रसूल ईसा अलैहिस्सलाम पर ईमान लाओ, तो वे कहने लगे कि हम ईमान ले आए और तू गवाह रहना कि हम मुसलमान यानी फ़रमाबरदार हैं.
112. और वह वक़्त भी याद करो कि जब हवारियों ने कहा कि ऐ ईसा इब्ने मरयम अलैहिस्सलाम ! क्या तुम्हारा परवरदिगार ऐसा कर सकता है कि हम पर आसमान से खाने का एक ख़्वान नाज़िल कर दे. ईसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि तुम अल्लाह से डरो. अगर तुम ईमान वाले हो.
113. वे लोग कहने लगे कि हम तो सिर्फ़ यह चाहते हैं कि इसमें से कुछ खाएं और हमारे दिल मुतमईन हो जाएं. और हम जान लें कि आपने हमसे सच कहा है और हम गवाहों में से हो जाएं.
114. ईसा इब्ने मरयम अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ अल्लाह ! ऐ हमारे परवरदिगार ! हम पर आसमान से एक ख़्वान नाज़िल कर दे कि वह दिन हमारे लिए ईद हो जाए, हमारे अगलों के लिए भी और हमारे पिछलों के लिए भी और वह ख़्वान तेरी तरफ़ से एक निशानी हो. और तू हमें रिज़्क़ दे और तू बेहतरीन रिज़्क़ देने वाला है.
115. अल्लाह ने फ़रमाया कि बेशक हम ख़्वान तुम पर नाज़िल करते हैं. फिर तुम में से जो शख़्स उसके बाद कुफ़्र करेगा, तो हम उसे ऐसा अज़ाब देंगे कि तमाम आलमों में से किसी को भी ऐसा अज़ाब नहीं देंगे.
116. और जब क़यामत के दिन अल्लाह फ़रमाएगा कि ऐ ईसा इब्ने मरयम अलैहिस्सलाम ! क्या तुमने लोगों से कहा था कि तुम मुझे और मेरी मां को अल्लाह के सिवा दो सरपरस्त बना लो. ईसा अलैहिस्सलाम अर्ज़ करेंगे कि तू पाक है. मेरी यह मजाल नहीं कि मैं ऐसी बात कहूं, जिसका मुझे कोई हक़ नहीं है. अगर मैंने यह कहा होता, तो तू ज़रूर जानता. तू हर उस बात से वाक़िफ़ है, जो मेरे दिल में है और मैं उन बातों को नहीं जानता, जो तेरे दिल में है. बेशक तू ही ग़ैब की बातों का जानने वाला है.
117. मैंने उन्हें सिवाय उसके कुछ नहीं कहा था, जिसका तूने मुझे हुक्म दिया था कि तुम सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करो, जो मेरा भी परवरदिगार है और तुम्हारा भी परवरदिगार है और मैं उस वक़्त तक उनका गवाह रहा जब तक उनके दरम्यान रहा. फिर जब तूने मुझे आसमान में उठा लिया, तो तू ही उनका रक़ीब यानी निगेहबान था और तू हर चीज़ का गवाह है.
118. अगर तू उन लोगों को अज़ाब दे, तो वे तेरे ही बन्दे हैं और अगर तू उन्हें बख़्श दे, तो बेशक तू बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
119. अल्लाह फ़रमाएगा कि यह वह दिन है, जिसमें सच्चे लोगों को उनकी सच्चाई ही नफ़ा देगी. उनके लिए जन्नत के बाग़ हैं, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. वे उनमें हमेशा आबाद रहेंगे. अल्लाह उनसे राज़ी और वे अल्लाह से राज़ी हो गए. यही सबसे बड़ी कामयाबी है.
120. आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इनके दरम्यान हैं, सबकी बादशाही अल्लाह ही की है और वह हर चीज़ पर क़ादिर है.
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