सूरह निसा मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 177 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ इंसानो ! अपने परवरदिगार से डरो, जिसने तुम्हारी पैदाइश की इब्तिदा एक जान यानी आदम अलैहिस्सलाम से की. फिर उन्हीं से हव्वा की तख़लीक़ करके उनका जोड़ा बनाया. फिर उन दोनों से बहुत से मर्द और औरतें दुनिया में फैला दिए और उस अल्लाह से डरो, जिसके वसीले से तुम एक दूसरे से सवाल करते हो और रिश्ते क़तअ करने से भी डरो. बेशक अल्लाह तुम्हारा रक़ीब यानी निगेहबान है.
2. और यतीमों को उनके माल दे दो और अपनी बुरी चीज़ को दूसरों की अच्छी चीज़ से न बदला करो और न उनके माल अपने मालों में मिलाकर खाया करो. बेशक यह बहुत बड़ा गुनाह है.
3. और अगर तुम्हें यह अंदेशा हो कि तुम यतीम लड़कियों के बारे में इंसाफ़ नहीं कर सकोगे, तो उन औरतों से निकाह करो, जो तुम्हारी पसंदीदा और हलाल हों. दो-दो और तीन-तीन और चार-चार निकाह करो. फिर अगर तुम्हें अंदेशा हो कि तुम बीवियों में इंसाफ़ नहीं कर सकोगे, तो सिर्फ़ एक ही औरत से निकाह करो या जो कनीज़ तुम्हारी मिल्कियत में हो. यह तदबीर बेइंसाफ़ी करने से क़रीबतर है.
4. और औरतों को उनके महर ख़ुशी-ख़ुशी दे दिया करो. फिर अगर वे ख़ुशी से महर में से कुछ छोड़ दें, तो शौक़ से खाओ व पियो.
5. और तुम नासमझ लोगों को अपने या उनके माल सुपुर्द न करो, जिन्हें अल्लाह ने तुम्हारी ज़िन्दगी गुज़ारने का सहारा बनाया है. हां, इसमें से उनके खाने और पहनने का इंतज़ाम करो और उनसे अच्छी तरह बात किया करो.
6. और यतीमों को तरबियत के मामले में आज़माते रहो, यहां तक कि वे निकाह की उम्र को पहुंच जाएं. फिर अगर तुम उनमें सलाहियत पाओ, तो उनके माल उनके सुपुर्द कर दो. और उनके माल फ़ुज़ूल ख़र्ची और जल्दबाज़ी में यह सोचकर न खा जाओ कि वे बड़े होकर अपना माल वापस ले लेंगे. और जो कोई ग़नी यानी मालदार हो, तो वह यतीम के माल को ख़र्च करने से बचे. और वह ख़ुद फ़क़ीर यानी मोहताज हो, तो दस्तूर के मुताबिक़ उस माल में से खा सकता है. फिर जब यतीमों के माल उनके सुपुर्द करो, तो उन पर गवाह बना लो. और हिसाब लेने के लिए अल्लाह ही काफ़ी है.
7. मर्दों के लिए उस माल में से हिस्सा है, जो वालिदैन और क़रीबी रिश्तेदारों ने छोड़ा हो और औरतों के लिए भी वालिदैन और क़रीबी रिश्तेदारों के तरके यानी छोड़े हुए माल में से हिस्सा है. माल कम हो या ज़्यादा वह अल्लाह का मुक़र्रर किया हुआ हिस्सा है.
8. और अगर मीरास की तक़सीम के वक़्त दीगर क़राबतदार यानी रिश्तेदार और यतीम और मिस्कीन मौजूद हों, तो उसमें से उन्हें भी कुछ दे दो और उनसे अच्छी तरह बात किया करो.
9. और यतीमों के मामले में लोगों को डरना चाहिए कि अगर वे अपने पीछे मासूम छोटे बच्चे छोड़ जाते, तो वे मरते वक़्त कितने ख़ौफ़ज़दा और फ़िक्रमंद होते. फिर उन्हें यतीमों के मामले में अल्लाह से डरना चाहिए और उनसे सीधी बात करनी चाहिए.
10. बेशक जो लोग ज़ुल्म करके यतीमों का माल खा जाते हैं, वे अपने पेट में आग के सिवा और कुछ नहीं भरते और अनक़रीब वे दोज़ख़ में डाले जाएंगे.
11. अल्लाह तुम्हारी औलाद के हक़ के बारे में तुम्हें हुक्म देता है कि एक लड़के का हिस्सा दो लड़कियों के हिस्से के बराबर है. फिर अगर औलाद में सिर्फ़ लड़कियां ही हों और वे दो या दो से ज़्यादा हों, तो उनके लिए इस तरके का दो तिहाई हिस्सा है. और अगर इकलौती लड़की हो, तो उसका आधा हिस्सा है. मय्यत के वालिदैन के लिए उन दोनों में से हर एक के लिए तरके का छठा हिस्सा है. बशर्ते मय्यत की कोई औलाद न हो. फिर अगर उस मय्यत की कोई औलाद न हो, तो उसके वारिस सिर्फ़ उसके वालिदैन होंगे. इसमें उसकी मां के लिए तिहाई हिस्सा है और बाक़ी सब बाप का है. फिर अगर मय्यत के भाई और बहन हों, तो उसकी मां के लिए छठा हिस्सा है. यह तक़सीम उस वसीयत के पूरा करने के बाद होगी, जो उसने की हो या क़र्ज़ की अदायगी के बाद होगी. तुम नहीं जानते कि तुम्हारे बाप और तुम्हारे बेटों में से तुम्हें नफ़ा पहुंचाने में कौन तुम्हारे क़रीबतर है. ये अल्लाह की तरफ़ से मुक़र्रर किए हुए हिस्से हैं. बेशक अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
12. और तुम्हारे लिए उस माल का आधा हिस्सा है, जो तुम्हारी बीवियां छोड़ जाएं, बशर्ते उनकी कोई औलाद न हो. फिर अगर उनकी कोई औलाद हो, तो तुम्हारे लिए उनके तरके से चौथाई हिस्सा है. यह तक़सीम उस वसीयत के पूरा करने के बाद होगी, जो उसने की हो या क़र्ज़ की अदायगी के बाद होगी. और तुम्हारी बीवियों का तुम्हारे माल में से चौथाई हिस्सा है, बशर्ते तुम्हारी कोई औलाद न हो. फिर अगर तुम्हारी कोई औलाद हो, तो उनके लिए तुम्हारे तरके में से आठवां हिस्सा है. यह तक़सीम वसीयत को पूरा करने के बाद होगी, जो उसने की होगी या क़र्ज़ की अदायगी के बाद होगी. और अगर किसी ऐसे मर्द या औरत की मीरास की तक़सीम की जा रही हो, जिसके न वालिदैन हों और न कोई औलाद हो. और उसका एक भाई या एक बहन हो, तो उन दोनों में से हर एक के लिए छठा हिस्सा है. फिर अगर भाई और बहन एक से ज़्यादा हों, तो सब एक तिहाई हिस्से में शरीक होंगे. यह तक़सीम उस वसीयत को पूरा करने के बाद होगी, जो वारिसों को नुक़सान पहुंचाए बग़ैर की गई हो या क़र्ज़ अदायगी के बाद होगी. ये अल्लाह का हुक्म है. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हलीम है.
13. ये अल्लाह की मुक़र्रर की हुई हदें हैं. और जो अल्लाह और उसके रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करेगा, तो अल्लाह उसे जन्नत के उन बाग़ों में दाख़िल करेगा, जिनके नीचे नहरें बहती हैं और वे हमेशा उनमें रहेंगे और यह बड़ी कामयाबी है.
14. और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नाफ़रमानी करे और उसकी हदों से तजावुज़ करे, तो अल्लाह उसे दोज़ख़ में डाल देगा. वह हमेशा उसमें रहेगा और उसके लिए ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब है.
15. और तुम्हारी औरतों में से जो औरतें बदकारी करें, तो उन पर अपने लोगों में से चार मर्दों की गवाही लाओ. फिर अगर वे गवाही दे दें, तो उन्हें घरों में बंद कर दो, यहां तक कि उन्हें मौत आ जाए या अल्लाह उनके लिए कोई दूसरी राह निकाल दे.
16. और अगर तुम में से दो मर्द बदकारी करें, तो उन्हें अज़ीयत दो. फिर अगर वे तौबा कर लें और अपनी इस्लाह कर लें, तो उन्हें छोड़ दो. बेशक अल्लाह बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला बड़ा मेहरबान है.
17. अल्लाह ने सिर्फ़ उन्हीं लोगों की तौबा क़ुबूल करने का वादा किया है, जो अनजाने में बुराई कर बैठें. फिर अपनी ग़लती का अहसास होने पर जल्दी तौबा कर लें. फिर अल्लाह ऐसे लोगों की तौबा क़ुबूल कर लेता है और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
18. और ऐसे लोगों के लिए तौबा की क़ुबूलियत नहीं है, जो गुनाह करते रहें, यहां तक कि उनमें से किसी के सामने मौत आ जाए, तो वे कहने लगें कि मैं अब तौबा करता हूं और न ऐसे लोगों के लिए है, जो कुफ़्र की हालत में मर जाएं. उनके लिए हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है.
19. ऐ ईमान वालो ! तुम्हारे लिए यह हलाल नहीं है कि तुम जबरन औरतों के वारिस बन जाओ और उन्हें इस ग़र्ज़ से न रोके रखो कि जो माल तुमने उन्हें दिया था उसमें से कुछ वापस ले लो, सिवाय इसके कि वे सरीह बेहयाई करें. और उनके साथ अच्छा सुलूक करो. फिर अगर तुम उन्हें नापसंद करते हों, तो मुमकिन है कि तुम किसी चीज़ को नापसंद करते हो और अल्लाह ने उसमें बहुत सी भलाई रख दी हो.
20. और अगर तुम एक बीवी की जगह दूसरी बीवी लाना चाहो और तुम उसे बहुत सा माल दे चुके हो, तो उसमें से कुछ भी वापस मत लो. क्या तुम उस पर नाहक़ बोहतान लगाकर और सरीह गुनाह के ज़रिये उसे वापस लेना चाहते हो.
21. और तुम लोग उस माल को कैसे वापस ले सकते हो, जबकि तुम एक दूसरे के बहुत बहुत क़रीब आ चुके हो और वे निकाह के वक़्त तुमसे पुख़्ता अहद भी ले चुकी हैं.
22. और तुम उन औरतों से निकाह न करो, जिनसे तुम्हारे बाप दादा निकाह कर चुके हैं, लेकिन जो इस हुक्म से पहले हो चुका है, वह मुआफ़ है. बेशक यह बड़ी बेहयाई और ग़ज़ब की बात है और बहुत बुरी रविश है.
23. तुम पर तुम्हारी मायें और तुम्हारी बेटियां और तुम्हारी बहनें और तुम्हारी फूफियां और तुम्हारी ख़ालायें और तुम्हारी भतीजियां और तुम्हारी भांजियां और तुम्हारी वे मायें, जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया हो और तुम्हारी दूध शरीक बहनें और तुम्हारी बीवियों की मायें सब हराम कर दी गई हैं. और इसी तरह तुम्हारी गोद में पररिश पाने वाली वे लड़कियां, जो तुम्हारी उन औरतों की बेटियां हैं, जिनसे तुम सोहबत कर चुके हो. फिर अगर तुमने उनसे सोहबत न की हो, तो उन लड़कियों से निकाह करने में कोई गुनाह नहीं है. और तुम्हारे सगे बेटों की बीवियां भी हराम हैं और दो बहनों से एक साथ निकाह करना भी हराम है, सिवाय उसके कि जो जहालत के दौर में गुज़र चुका है. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
24. और शौहर वाली औरतें भी तुम पर हराम हैं, सिवाय उन काफ़िरों की उन क़ैदी औरतों के जो तुम्हारी मिल्कियत में आ जाएं. यह अल्लाह का हुक्म है, जो तुम पर फ़र्ज़ किया गया है. और इनके अलावा सब औरतें तुम्हारे लिए हलाल कर दी गई हैं, ताकि तुम अपने माल के ज़रिये उनसे निकाह करो पाक दामिनी के लिए न कि अय्याशी के लिए. फिर उनमें से जिनसे तुमने उस माल के बदले फ़ायदा उठाया है, उन्हें उनका मुक़र्रर किया हुआ महर अदा कर दो. और तुम पर उस माल के बारे में कोई गुनाह नहीं, जिस पर तुम महर मुक़र्रर करने के बाद आपस में रज़ामंद हो जाओ. बेशक अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
25. और तुम में से जो शख़्स इतनी माली हैसियत न रखता हो कि वह आज़ाद मुसलमान औरतों से निकाह कर सके, तो वह उन मोमिन कनीज़ों से निकाह कर ले, जो तुम्हारी मिल्कियत में हों. और अल्लाह तुम्हारे ईमान से ख़ूब वाक़िफ़ है. तुम सब एक दूसरे की जिन्स में से हो. फिर उन कनीज़ों से उनके मालिकों की इजाज़त से निकाह कर लो और उनके महर दस्तूर के मुताबिक़ अदा कर दो. और वे निकाह में आने वाली हों न कि बेहयाई करने वाली हों और न चोरी छुपे आशनाई करने वाली हों. फिर जब वे निकाह में आ जाएं और फिर अगर वे बेहयाई करें, तो उनके लिए उस सज़ा की आधी सज़ा है, जो आज़ाद औरतों के लिए मुक़र्रर है. यह इजाज़त उस शख़्स के लिए है, जिसे तुम में से गुनाह का अंदेशा हो. और अगर तुम सब्र करो, तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
26. अल्लाह चाहता है कि तुम्हारे लिए अपने अहकाम वाज़ेह तौर पर बयान कर दे और तुम्हें उन नेक लोगों के रास्ते पर चलाए, जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं और तुम्हारी तौबा क़ुबूल करे और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
27. और अल्लाह तुम्हारी तौबा क़ुबूल करना चाहता है और जो लोग अपनी ख़्वाहिशों की पैरवी कर रहे हैं, वे चाहते हैं कि तुम राह से भटक कर बहुत दूर चले जाओ.
28. अल्लाह चाहता है कि तुम्हारा बोझ हल्का कर दे, क्योंकि इंसान कमज़ोर पैदा किया गया है.
29. ऐ ईमान वालो ! तुम आपस में एक दूसरे का माल नाहक़ तरीक़े से न खाओ, सिवाय इसके कि बाहमी रज़ामंदी से कोई तिजारत हो. और तुम ख़ुद को क़त्ल न करो यानी ख़ुदकुशी न करो. बेशक अल्लाह तुम पर बहुत मेहरबान है.
30. और जो शख़्स सरकशी और ज़ुल्म से नाहक़ ख़ुदकुशी करेगा, तो अनक़रीब हम उसे दोज़ख़ में डाल देंगे. यह अल्लाह के लिए आसान है.
31. अगर तुम कबीरा गुनाहों से बचे रहो, जिनसे तुम्हें रोका गया है, तो हम तुम्हारे आमालनामे से तुम्हारे सग़ीरा गुनाह मिटा देंगे. और तुम्हें इज़्ज़त वाला मक़ाम अता करेंगे.
32. और तुम उस चीज़ की तमन्ना न करो, जिसमें अल्लाह ने तुम में से कुछ को कुछ पर फ़ज़ीलत दी है. मर्दों के लिए उसमें से हिस्सा है, जो उन्होंने कमाया है. और औरतों के लिए उसमें से हिस्सा है, जो उन्होंने कमाया है. और अल्लाह से उसका फ़ज़ल मांगा करो. बेशक अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है.
33. और हमने सबके लिए वालिदैन और रिश्तेदारों के छोड़े हुए माल के वारिस मुक़र्रर कर दिए हैं. और जिनसे तुम्हारा अहद हो चुका है, तो उन्हें उनका हिस्सा दे दो. बेशक अल्लाह हर चीज़ का गवाह है.
34. मर्द औरतों का निगेहबान है, इसलिए कि अल्लाह ने कुछ को कुछ पर फ़ज़ीलत दी है और इसलिए कि मर्द उन पर अपना माल ख़र्च करते हैं. फिर नेक औरतें शौहरों की फ़रमाबरदार होती हैं और उनके पीछे अल्लाह की हिफ़ाज़त में हर चीज़ की निगेहबानी करती हैं. और तुम्हें जिन औरतों की नाफ़रमानी का अंदेशा हो, तो पहले उन्हें समझाओ और अगर न समझें, तो उनकी ख़्वाबगाहों से दूर हो जाओ और इस पर भी न मानें, तो उन्हें मारो. फिर अगर वे तुम्हारी फ़रमाबरदार हो जाएं, तो उन पर ज़ुल्म करने का कोई बहाना तलाश न करो. बेशक अल्लाह सबसे आला सबसे बड़ा है.
35. और अगर तुम्हें शौहर और बीवी के दरम्यान नाइत्तेफ़ाक़ी का अंदेशा हो, तो एक मुंसिफ़ मर्द के ख़ानदान में से और एक मुंसिफ़ औरत के ख़ानदान में से मुक़र्रर करो. अगर दोनों मुंसिफ़ सुलह कराना चाहें, तो अल्लाह उन दोनों के दरम्यान इत्तेफ़ाक़ पैदा कर देगा. बेशक अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा बाख़बर है.
36. और तुम अल्लाह की इबादत करो और उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ और वालिदैन के साथ हुस्ने सुलूक करो और रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों और नज़दीकी पड़ौसियों और अजनबी पड़ौसियों और साथ उठने बैठने वालों और मुसाफ़िरों और अपने गु़लामों से अच्छा बर्ताव करो. बेशक अल्लाह उसे पसंद नहीं करता, जो इतराने वाला शेख़ीबाज़ हो.
37. जो लोग ख़ुद भी बुख़्ल करते हैं और दूसरों को भी बुख़्ल करने का हुक्म देते हैं और उस माल को छुपाते हैं, जो अल्लाह ने उन्हें अपने फ़ज़ल से दिया है. और हमने काफ़िरों के लिए ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब तैयार कर रखा है.
38. और जो लोग अपने माल सिर्फ़ लोगों को दिखाने के लिए ख़र्च करते हैं और वे न अल्लाह पर ईमान रखते हैं और न आख़िरत के दिन पर. और शैतान जिसका साथी बन गया, तो वह बहुत बुरा साथी है.
39. उन लोगों का क्या नुक़सान हो जाता अगर वे अल्लाह और क़यामत के दिन पर ईमान ले आते और जो कुछ अल्लाह ने उन्हें दिया था, उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करते. और अल्लाह उनसे ख़ूब वाक़िफ़ है.
40. बेशक अल्लाह ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म नहीं करता. और अगर कोई नेकी हो, तो उसे दोगुना कर देता है और अल्लाह अपनी बारगाह से बड़ा अज्र अता करता है.
41. फिर क़यामत के दिन क्या हाल होगा जब हम हर उम्मत से एक गवाह बुलाएंगे और ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम्हें उन सब पर गवाह बनाकर बुलाएंगे.
42. उस दिन वे लोग जिन्होंने कुफ़्र किया होगा और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नाफ़रमानी की होगी, आरज़ू करेंगे कि काश ! उन्हें दफ़न करके उनके ऊपर से ज़मीन बराबर कर दी जाती और वे लोग अल्लाह से कोई बात छुपा नहीं सकेंगे.
43. ऐ ईमान वालो ! तुम नशे की हालत में नमाज़ के क़रीब न जाओ, यहां तक कि तुम वह बात न समझने लगो, जो तुम कहते हो. और न जनाबत की हालत में नमाज़ के क़रीब जाओ, यहां तक कि तुम ग़ुस्ल कर लो, सिवाय इसके कि तुम सफ़र में हो और अगर तुम बीमार हो या सफ़र में हाजत से लौटे हो या तुमने अपनी औरतों से सोहबत की हो. फिर तुम्हें पानी मयस्सर न हो, तो तुम पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लो और अपने चेहरों और अपने हाथों पर मिट्टी भरा हाथ फेरो. बेशक अल्लाह मुआफ़ करने वाला बड़ा बख़्शने वाला है.
44. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें आसमानी किताब यानी तौरात का कुछ हिस्सा दिया गया था. वे लोग हिदायत के बदले गुमराही ख़रीदने लगे और वे चाहते हैं कि तुम भी सीधे रास्ते से भटक जाओ.
45. और अल्लाह तुम्हारे दुश्मनों से ख़ूब वाक़िफ़ है और कारसाज़ अल्लाह ही काफ़ी है और मददगार अल्लाह ही काफ़ी है.
46. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और यहूदियों में से कुछ लोग ऐसे हैं, जो तौरात के कलमात को उसकी असल जगह से बदल देते हैं और कहते हैं कि हमने सुन लिया और हमने नाफ़रमानी की और तुम भी सुनो, लेकिन तुम्हारी बात नहीं सुनी जाएगी. और अपनी ज़बानें मरोड़ कर दीन में तानाज़नी करते हुए ‘राइना’ कहते हैं. अगर वे लोग इसकी जगह यह कहते कि हमने सुना और हमने इताअत की और हुज़ूर हमारी अर्ज़ सुनो और हम पर नज़रें करम करो, तो यह उनके लिए बेहतर होता और ज़्यादा मुनासिब भी होता. लेकिन अल्लाह ने उनके कुफ़्र की वजह से उन पर लानत की है. फिर उनमें से चन्द लोगों से सिवा और लोग ईमान नहीं लाते.
47. ऐ अहले किताब ! इस किताब यानी क़ुरआन पर ईमान लाओ, जो हमने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
पर नाज़िल किया है. यह उस किताब की तसदीक़ करता है, जो तुम्हारे पास है. इससे पहले कि हम कुछ चेहरों को मिटाकर उन्हें पीछे मोड़ दें या उन पर उसी तरह लानत करें जैसे हमने असहाबे सबत यानी हफ़्ते के दिन नाफ़रमानी करने वाले लोगों पर लानत की थी. यानी जिन लोगों को हफ़्ते के दिन शिकार करने से रोका गया था. और अल्लाह का हुक्म पूरा होकर ही रहता है.
48. बेशक अल्लाह यह नहीं बख़्शता कि किसी को उसका शरीक ठहराया जाए और इसके अलावा वह जिसे चाहता है बख़्श देता है. और जिसने किसी को अल्लाह का शरीक ठहराया, तो उसने बड़े गुनाह का बोहतान बांधा.
49. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जो ख़ुद को पाकबाज़ कहते हैं, बल्कि अल्लाह जिसे चाहता है मुक़द्दस बनाता है और उन पर एक रेशे के बराबर भी ज़ुल्म नहीं किया जाता.
50. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! देखो कि वे लोग अल्लाह पर कैसे झूठे बोहतान बांधते हैं. और उनके अज़ाब के लिए यही गुनाह काफ़ी है.
51. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें आसमानी किताब का कुछ हिस्सा दिया गया था. फिर भी वे बुतों और ताग़ूतों यानी शैतानों को मानते हैं और कुफ़्र करने वाले लोगों के बारे में कहते हैं कि ये लोग ईमान वालों से ज़्यादा सीधे रास्ते पर हैं.
52. यही वे लोग हैं जिन पर अल्लाह ने लानत की है. और जिस पर अल्लाह लानत करे, तो तुम हरगिज़ उसका कोई मददगार नहीं पाओगे.
53. क्या उनका मुल्क में कोई हिस्सा है ? अगर ऐसा हो, तो वे लोगों को तिल बराबर भी कुछ नहीं देंगे.
54. क्या वे यहूदी मुस्लिम लोगों से उन नेअमतों की वजह से हसद करते हैं, जो अल्लाह ने उन्हें अपने फ़ज़ल से अता की हैं. फिर हमने इब्राहीम अलैहिस्सलाम की औलाद को किताब और हिकमत से नवाज़ा और हमने उन्हें बड़ा मुल्क अता किया.
55. फिर उनमें से कोई इस पर ईमान ले आया और उनमें से किसी ने इससे इनकार कर दिया और कुफ़्र करने वाले के लिए दोज़ख़ की दहकती हुई आग ही काफ़ी है.
56. बेशक जिन लोगों ने हमारी आयतों से कुफ़्र किया हम अनक़रीब उन्हें दोज़ख़ की आग में डाल देंगे. जब उनकी खालें जल जाएंगी, तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे, ताकि वे मुसलसल अज़ाब का ज़ायक़ा चखते रहें. बेशक अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
57. और जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो हम उन्हें जन्नत के बाग़ों में दाख़िल करेंगे, जिनके नीचे नहरें बहती होंगी और वे उनमें हमेशा रहेंगे. उनके लिए उसमें पाकीज़ा बीवियां होंगी और हम उन्हें घनी छांव में रखेंगे.
58. बेशक अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि अमानतें उनके हक़दारों तक पहुंचा दो. और जब तुम लोगों के दरम्यान फ़ैसला करो, तो अदल व इंसाफ़ के साथ किया करो. बेशक अल्लाह तुम्हें कितनी अच्छी नसीहत करता है. बेशक
अल्लाह ख़ूब सुनने वाला ख़ूब देखने वाला है.
59. ऐ ईमान वालो ! अल्लाह की इताअत करो और उसके रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो और अपने हुकुमरानों की इताअत करो. फिर अगर तुम किसी बात में इख़्तिलाफ़ करो, तो उसे फ़ैसले के लिए अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सुपुर्द कर दो. अगर तुम अल्लाह और आख़िरत पर ईमान रखते हो. यह तुम्हारे लिए बेहतर और अंजाम के लिहाज़ से बहुत अच्छा है.
60. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने उन मुनाफ़िक़ लोगों को नहीं देखा, जो दावा करते हैं कि वे उस किताब यानी क़ुरआन पर ईमान लाए हैं, जो तुम पर नाज़िल किया गया है और उन आसमानी किताबों पर भी, जो तुमसे पहले नाज़िल की गई हैं. वे चाहते हैं कि अपने मुक़दमे ताग़ूत यानी शैतान के पास ले बनाएं. हालांकि उन्हें हुक्म दिया गया है कि उसका सरीह इनकार कर दें. और शैतान तो यही चाहता है कि उन्हें परले दर्जे की गुमराही में मुब्तिला कर दे.
61. और जब उनसे कहा जाता है कि उस क़ुरआन की तरफ़ आओ, जो अल्लाह ने नाज़िल किया है और उसके रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ़ आओ, तो तुम मुनाफ़िक़ों को देखोगे कि वे तुमसे गुरेज़ करते हैं.
62. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर कैसी नदामत की बात है कि जब उनके किसी अमल की वजह से उन पर कोई मुसीबत आन पड़ती है, तो वे तुम्हारे पास दौड़े चले आते हैं और अल्लाह की क़समें खाते हुए कहते हैं कि हम तो सिर्फ़ भलाई और बाहमी मेल जोल चाहते थे.
63. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यही वे लोग हैं, जिनके दिलों का हाल अल्लाह ख़ूब जानता है. फिर तुम उनसे दरगुज़र करो और उन्हें नसीहत करते रहो और उनसे उनके हक़ में ऐसी गुफ़्तगू करो, जो उनके दिल में उतर जाए.
64. और हमने कोई रसूल नहीं भेजा, सिवाय इसके कि अल्लाह के हुक्म से उसकी इताअत की जाए. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब वे लोग कुफ़्र करके अपनी जानों पर ज़ुल्म कर बैठते, तो तुम्हारे पास चले आते और अल्लाह से मग़फ़िरत की दुआ मांगते और रसूल भी उनकी मग़फ़िरत चाहते, तो बेशक वे लोग अल्लाह को बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला बड़ा मेहरबान पाते.
65. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम्हारे परवरदिगार की क़सम वे लोग उस वक़्त तक मोमिन नहीं हो सकते, जब तक कि वे अपने दरम्यान होने वाले हर इख़्तिलाफ़ में तुम्हें अपना हाकिम न बनाएं. फिर जब तुम फै़सला करो, तो अपने दिल में किसी तरह की तंगी महसूस न करो और उसे ख़ुशी-ख़ुशी तस्लीम कर लो.
66. और अगर हम उन्हें हुक्म देते कि ख़ुद को क़त्ल कर दो या अपने घरों को छोड़कर निकल जाओ, तो उनमें से बहुत कम लोग ही इस पर अमल करते. और उन्हें जो नसीहत की जाती है अगर वे उस पर अमल करते, तो उनके लिए बेहतर होता और वे ईमान पर ज़्यादा साबित क़दम रहते.
67. और उस वक़्त हम भी उन्हें अपनी बारगाह से बड़ा अज्र अता करते.
68. और हम उन्हें सीधे रास्ते की हिदायत देते.
69. और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करे, तो यही लोग उन मक़बूल बन्दों के साथ होंगे, जिन्हें अल्लाह ने अपनी नेअमतों से नवाज़ा है यानी नबियों और सिद्दीक़ीन और शौहदा और स्वालिहीन. और ये बहुत अच्छे साथी हैं.
70. यह अल्लाह का फ़ज़ल है और साहिबे इल्म अल्लाह ही काफ़ी है.
71. ऐ ईमान वालो ! जिहाद के वक़्त अपनी हिफ़ाज़त का सामान ले लिया करो. फिर मुतफ़र्रिक़ जमातें होकर निकला करो.
72. और बेशक तुम में से कोई ऐसा भी होगा जो देर करता है और पीछे रह जाता है. फिर अगर जंग में तुम पर कोई मुसीबत आ जाए, तो कहता है कि बेशक अल्लाह ने मुझ पर अहसान किया कि मैं उनके साथ मौजूद नहीं था.
73. और अगर तुम्हें अल्लाह के फ़ज़ल से कोई नेअमत मिल जाए, तो फिर वह मुनाफ़िक़ ज़रूर कहेगा कि गोया तुम्हारे और उसके दरम्यान कोई दोस्ती ही नहीं थी. काश ! मैं उनके साथ होता, तो मैं भी बड़ी कामयाबी हासिल करता.
74. फिर उन मोमिनों को अल्लाह की राह में जंग करनी चाहिए, जो आख़िरत के लिए दुनियावी ज़िन्दगी को बेच देते हैं. और जो अल्लाह की राह में जंग करे, चाहे वह ख़ुद क़त्ल हो जाए या ग़ालिब आ जाए, तो हम अनक़रीब उसे बड़ा अज्र देंगे.
75. ऐ मुसलमानो ! तुम्हें क्या हुआ है कि तुम अल्लाह की राह में और उन कमज़ोर व मज़लूम मर्दो और औरतों और बच्चों को काफ़िरों के ज़ुल्म से बचाने के लिए जंग नहीं करते, जो अल्लाह से फ़रियाद करते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें इस बस्ती से निकाल ले, जिसके बाशिन्दे बड़े ज़ालिम हैं और किसी को अपनी बारगाह से हमारा सरपरस्त बना दे और किसी को अपनी बारगाह से हमारा मददगार बना दे.
76. जो लोग ईमान लाए वे अल्लाह की राह में जंग करते हैं और जो कुफ़्र करते हैं, वे शैतान की राह में लड़ते हैं. फिर ऐ मुसलमानो ! तुम ताग़ूत यानी शैतान के दोस्तों से जंग करो. बेशक शैतान का दाव बहुत ही कमज़ोर है.
77. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें हुक्म दिया गया कि तुम अपने हाथ जंग से रोक लो और पाबंदी से नमाज़ पढ़ो और ज़कात अदा करते रहो. फिर जब उन पर जंग फ़र्ज़ कर दी गई, तो उनमें से एक फ़रीक़ लोगों से ऐसे डरने लगा जैसे अल्लाह से डरा जाता है या उससे भी कहीं ज़्यादा. और वे लोग कहने लगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! तूने हम पर जंग क्यों फ़र्ज़ कर दी. तूने हमें कुछ दिनों की और मोहलत क्यों नहीं दी. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उनसे कह दो कि दुनिया का साजो सामान थोड़ा सा है और परहेज़गारों के लिए आख़िरत बहुत अच्छी है. और तुम पर एक धागे के बराबर भी ज़ुल्म नहीं किया जाएगा.
78. तुम जहां कहीं भी रहो, मौत तुम्हें वहीं गिरफ़्त में ले लेगी. अगरचे तुम मज़बूत क़िलों में ही हो. और अगर उन्हें कोई भलाई पहुंचती है, तो कहते हैं कि यह अल्लाह की तरफ़ से है और अगर उन्हें कोई बुराई पहुंचती है, तो कहने लगते हैं कि ऐ रसूल ! यह तुम्हारी तरफ़ से है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि सबकुछ अल्लाह की तरफ़ से होता है. फिर इस क़ौम को क्या हुआ है कि यह कोई बात समझती ही नहीं है.
79. ऐ इंसान ! जब तुझे कोई भलाई पहुंचती है, तो वह अल्लाह की तरफ़ से है और जब कोई बुराई पहुंचती है, तो वह तेरी अपनी तरफ़ से है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हमने तुम्हें तमाम इंसानों के लिए रसूल बनाकर भेजा है. और इसकी गवाही के लिए अल्लाह ही काफ़ी है.
80. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जिसने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत की, तो उसने अल्लाह की इताअत की और जिसने मुंह फेरा, तो हमने तुम्हें उनका मुहाफ़िज़ बनाकर नहीं भेजा.
81. और वे मुनाफ़िक़ तुम्हारे सामने कहते हैं कि हम आपकी इताअत करते हैं. फिर जब तुम्हारे पास से उठकर बाहर जाते हैं, तो उनमें से एक तबक़ा तुम्हारी कही हुई बात के ख़िलाफ़ रातों को मशवरा करता है. और अल्लाह वह सबकुछ लिख रहा है, जो वे रातभर मंसूबे बनाते हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम उनसे रुख़ फेर लो और अल्लाह पर भरोसा करो और कारसाज़ अल्लाह ही काफ़ी है.
82. फिर क्या वे लोग क़ुरआन में भी ग़ौर व फ़िक्र नहीं करते और अगर यह क़ुरआन अल्लाह के सिवा किसी और की तरफ़ से आया होता, तो वे लोग इसमें बहुत इख़्तिलाफ़ पाते.
83. और जब उनके पास अमन या ख़ौफ़ की कोई ख़बर आती है, तो वे उसे फ़ौरन फैला देते हैं. और अगर वे उसे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हाकिम की तरफ़ लौटा देते तो ज़रूर उनमें से वे लोग जो उसकी तहक़ीक़ करने वाले हैं, उसकी हक़ीक़त को जान लेते. अगर तुम पर अल्लाह का फ़ज़ल और उसकी रहमत न होती, तो चन्द लोगों के सिवा तुम सब शैतान की पैरवी करने लगते.
84. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम अल्लाह की राह में जिहाद करो और तुम अपनी ज़ात के सिवा किसी और के ज़िम्मेदार नहीं हो और तुम मोमिनों को जिहाद की तरग़ीब दो. मुमकिन है कि अल्लाह कुफ़्र करने वाले लोगों का जंगी ज़ोर ख़त्म कर दे. और अल्लाह की गिरफ़्त भी बहुत सख़्त है और उसकी सज़ा भी बहुत ही सख़्त है.
85. जो शख़्स किसी अच्छे काम की सिफ़ारिश करे, तो उसे भी उस काम के सवाब में से कुछ हिस्सा मिलेगा और जो बुरे काम की सिफ़ारिश करे, तो उसे भी उस काम की सज़ा का कुछ हिस्सा मिलेगा. और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
86. और जब कोई तुम्हें सलाम करे, तो तुम भी उसके जवाब में उससे बेहतर तरीक़े से सलाम किया करो या वही अल्फ़ाज़ जवाब में कह दो. बेशक अल्लाह हर चीज़ का हिसाब करने वाला है.
87. अल्लाह ही है, जिसके सिवा कोई माबूद नहीं. वह तुम्हें क़यामत के दिन ज़रूर जमा करेगा, जिसके आने में कोई शक नहीं है. और अल्लाह से ज़्यादा बात में सच्चा कौन है.
88. फिर तुम्हें क्या हुआ है कि मुनाफ़िक़ों के बारे में तुम दो फ़रीक़ हो गए हो. हालांकि अल्लाह ने उनकी अपनी करतूतों की वजह से उनकी अक़्लों को औंधा कर दिया है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुम उस शख़्स को सीधे रास्ते पर चलाना चाहते हो, जिसे अल्लाह ने गुमराही में छोड़ दिया है. और जिसे अल्लाह गुमराही में छोड़ दे, तो उसके लिए कोई राह नहीं है.
89. वे मुनाफ़िक़ चाहते हैं कि तुम भी काफ़िर हो जाओ, जैसे वे काफ़िर हो गए हैं, ताकि तुम उनके बराबर हो जाओ. फिर तुम उनमें से किसी को दोस्त न बनाओ, यहां तक कि वे अल्लाह की राह में हिजरत न करे. फिर अगर वे मुंह फेरें, तो उन्हें गिरफ़्तार कर लो और जहां भी पाओ उन्हें क़त्ल कर दो और उनमें से किसी को न अपना दोस्त बनाओ और न मददगार.
90. लेकिन उन लोगों को क़त्ल न करो, जो उस क़ौम से ताल्लुक़ रखते हों कि तुम्हारे और उनके दरम्यान अहद हो चुका हो या वे तुम्हारे पास इस हाल में आएं कि उनके दिल तुमसे जंग करने या अपनी क़ौम के साथ लड़ने से तंग आ गए हों. और अगर अल्लाह चाहता तो उन्हें तुम पर मुसल्लत कर देता, तो वे तुमसे ज़रूर जंग करते. फिर अगर वे तुमसे किनाराकशी कर लें और तुमसे जंग न करें और तुम्हारे पास सुलह का पैग़ाम भेजें, तो अल्लाह ने तुम्हारे लिए उन पर ज़्यादती करने की कोई राह मुक़र्रर नहीं की.
91. अब तुम कुछ ऐसे और लोगों को भी पाओगे, जो चाहते हैं कि ईमान ज़ाहिर करके तुमसे भी अमन में रहें और पोशीदा तौर पर कुफ़्र करके अपनी क़ौम से भी अमन मे रहें. लेकिन वे जब भी मुसलमानों के ख़िलाफ़ फ़ितना अंगेज़ी के लिए बुलाए जाते हैं, तो उसमें औंधे मुंह गिर पड़ते हैं. फिर अगर वे तुमसे लड़ने में किनाराकशी न करें और न तुम्हें सुलह का पैग़ाम भेजें और न जंग से अपने हाथ रोकें, तो तुम उन्हें गिरफ़्तार करो और जहां पाओ उन्हें क़त्ल कर दो और यही वे लोग हैं, जिन पर हमने तुम्हें सरीह इख़्तियार दिया है.
92. और किसी मोमिन के लिए यह जायज़ नहीं है कि वह किसी मोमिन को क़त्ल करे, सिवाय किसी ख़ता के.
और जिसने किसी मोमिन को ग़लती से क़त्ल कर दिया, तो उस पर एक मोमिन ग़ुलाम का आज़ाद करना और मक़तूल के वारिसों को फ़िदया अदा कर देना लाज़िम है, लेकिन जब वे लोग मुआफ़ कर दें. फिर अगर वह मक़तूल तुम्हारी दुश्मन क़ौम से हो और वह मोमिन भी हो, तो सिर्फ़ एक मोमिन ग़ुलाम का आज़ाद करना ही लाज़िम है. और अगर वह ऐसी क़ौम में से हो कि तुम्हारे और उनके दरम्यान सुलह का अहद हो चुका है, तो फ़िदया उसके वारिसों के सुपुर्द किया जाए और एक मोमिन ग़ुलाम का आज़ाद करना भी लाज़िम है. फिर जो शख़्स किसी ग़ुलाम को आज़ाद न कर पाए, तो उस पर मुसलसल दो महीने के रोज़े रखना लाज़िम है. अल्लाह की तरफ़ से यह उसकी तौबा है. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
93. और जो शख़्स किसी मोमिन का जानबूझ कर क़त्ल कर दे, तो उसकी सज़ा जहन्नुम है. वह हमेशा उसमें रहेगा. उस पर अल्लाह का ग़ज़ब है और उस पर अल्लाह की लानत है और अल्लाह ने उसके लिए बड़ा सख़्त अज़ाब तैयार कर रखा है.
94. ऐ ईमान वालो ! जब तुम अल्लाह की राह में जिहाद के लिए सफ़र करो, तो तहक़ीक़ कर लिया करो. और जो तुम्हें सलाम करे, तो उससे यह न कहो कि तुम मोमिन नहीं हो. इससे ज़ाहिर होता है कि तुम सिर्फ़ दुनियावी ज़िन्दगी का साजो सामान चाहते हो, लेकिन अल्लाह के पास बहुत माले ग़नीमत है. इससे पहले तुम ख़ुद भी तो ऐसे ही थे. फिर अल्लाह ने तुम पर अहसान किया कि तुम मुसलमान हो गए. फिर दूसरों के बारे में भी तहक़ीक़ कर लिया करो. बेशक अल्लाह तुम्हारे हर काम से ख़ूब बाख़बर है.
95. मोमिनों में से वे लोग जो बग़ैर किसी तकलीफ़ के घरों में बैठे रहने वाले हैं और वे लोग जो अल्लाह की राह में अपने मालों और अपनी जानों से जिहाद करने वाले हैं, तो ये दोनों बराबर नहीं हो सकते. अल्लाह ने अपने माल और अपनी जानों से जिहाद करने वालों को बैठे रहने वालों पर दर्जे के लिहाज़ से बड़ी फ़ज़ीलत दी है. और अल्लाह ने सब ईमान वालों से अच्छाई का वादा किया है और अल्लाह ने जिहाद करने वालों को घर बैठे रहने वालों के मुक़ाबले अज्र में बड़ी फ़ज़ीलत बख़्शी है.
96. अल्लाह की तरफ़ से उनके लिए बहुत से दर्जात और मग़फ़िरत और रहमत है. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
97. बेशक जिन लोगों की रूह फ़रिश्ते इस हाल में क़ब्ज़ करते हैं कि वे दारूल हरब में पड़े अपनी जानों पर ज़ुल्म करते थे, तो फ़रिश्ते उनसे पूछते हैं कि तुम किस हाल में थे. वे कहते हैं कि हम ज़मीन में कमज़ोर व बेकस थे. फ़रिश्ते कहते हैं कि क्या अल्लाह की ज़मीन इतनी वसीह न थी कि तुम हिजरत करके कहीं और चले जाते. लिहाज़ा यही वे लोग हैं, जिनका ठिकाना जहन्नुम है और वह बहुत बुरी जगह है.
98. सिवाय उन मजबूर व बेबस मर्दों और औरतें और बच्चे के, जो न दारूल हरब से निकलने की कोई तदबीर कर सकते हैं और न वहां से निकलने का कोई रास्ता ही जानते हैं.
99. फिर उम्मीद है कि ऐसे लोगों को अल्लाह मुआफ़ कर दे. और अल्लाह बड़ा मुआफ़ करने वाला बड़ा बख़्शने वाला है.
100. और जो शख़्स अल्लाह की राह में हिजरत करे, तो वह ज़मीन में रहने की बहुत सी जगहें और वुसअत पाएगा और जो भी अपने घर से अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ़ हिजरत करते हुए निकले. फिर उसे रास्ते में ही मौत ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया, तो उसका अज्र अल्लाह के ज़िम्मे हो गया. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
101. और जब तुम ज़मीन में सफ़र करो, तो तुम पर कोई गुनाह नहीं कि तुम नमाज़ में क़स्र करो यानी फ़र्ज़ आधे पढ़ो. अगर तुम्हें ख़ौफ़ हो कि काफ़िर तुम्हें तकलीफ़ में मुब्तिला कर देंगे. बेशक काफ़िर तुम्हारे सरीह दुश्मन हैं.
102. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब तुम उन मुजाहिदों में मौजूद हो, तो उनके लिए नमाज़ की जमात क़ायम करो. फिर उनमें से एक जमात को पहले तुम्हारे साथ खड़ा होना चाहिए और उन्हें अपने हथियार भी साथ रखने चाहिए. फिर जब वे सजदा कर चुकें, तो तुम्हारे पीछे हो जाएं और दूसरी जमात आ जाए, जिसने नमाज़ नहीं पढ़ी है. फिर वे तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़ें और अपनी हिफ़ाज़त का सामान और अपने हथियार लिए रहें. कुफ़्र करने वाले लोग चाहते हैं कि तुम अपने हथियारों और अपने सामान से ग़ाफ़िल हो जाओ, तो वे तुम पर अचानक हमला कर दें. और तुम पर कोई गुनाह नहीं कि अगर तुम्हें बारिश की वजह से तकलीफ़ हो या तुम बीमार हो, तो नमाज़ पढ़ते वक़्त अपने हथियार उतार कर रख दो और अपनी हिफ़ाज़त का सामान लिए रहो. बेशक अल्लाह ने काफ़िरों के लिए ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब तैयार कर रखा है.
103. ऐ मुसलमानो ! फिर जब तुम नमाज़ अदा कर लो, तो उठते बैठते और लेटे हुए यानी हर हाल में अल्लाह का ज़िक्र करते रहो. फिर जब तुम दुश्मनों से मुतमईन होकर अमन की हालत में आ जाओ, तो पाबंदी से नमाज़ पढ़ा करो. बेशक नमाज़ मोमिनों पर मुक़र्रर वक़्त के हिसाब से फ़र्ज़ की गई है.
104. और तुम दुश्मन क़ौम की तलाश में काहिली न करो. अगर तुम्हें तकलीफ़ पहुंची है, तो बेशक उन्हें भी वैसी ही तकलीफ़ पहुंची है, जैसी तकलीफ़ तुम्हें हो रही है. और तुम अल्लाह से अज्र व सवाब की उम्मीद रखते हो, जो उम्मीदें वे नहीं रखते. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
105. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक हमने तुम पर हक़ के साथ किताब यानी क़ुरआन नाज़िल किया है, ताकि तुम उसके मुताबिक़ लोगों के दरम्यान फ़ैसला करो, जो अल्लाह ने तुम्हें सिखाया है. और तुम कभी ख़्यानत करने वालों की तरफ़दारी न करना.
106. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम अल्लाह से अपनी उम्मत के लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगो. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
107. रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम ऐसे लोगों की तरफ़दारी न करो, जो ख़ुद से ही ख़्यानत करते हैं. बेशक अल्लाह ऐसे शख़्स को पसंद नहीं करता, जो ख़्यानत करने वाला गुनाहगार हो.
108. वे लोगों से तो अपनी हरकतें छुपा सकते हैं, लेकिन अल्लाह से नहीं छुपा सकते. हालांकि वह उस वक़्त भी उनके साथ होता है जब वे लोग रातों को बैठकर उन बातों के मशवरे करते हैं, जिनसे अल्लाह राज़ी नहीं है. और अल्लाह उनके सब आमाल को अपने अहाते में लिए हुए है.
109. ख़बरदार ! तुम वे लोग हो, जिन्होंने दुनियावी ज़िन्दगी में उनकी तरफ़ से झगड़ा किया. फिर कौन ऐसा शख़्स है, जो क़यामत के दिन भी उनकी तरफ़ से अल्लाह के सामने झगड़ा करेगा या कौन उनका वकील होगा.
110. और जो शख़्स कोई बुरा अमल करे या अपनी जान पर ज़ुल्म करे. फिर अल्लाह से अपनी मग़फ़िरत की दुआ मांगे, तो वह अल्लाह को बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान पाएगा.
111. और जो शख़्स कोई गुनाह करता है, तो वह अपने ही हक़ में बुरा करता है और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
112. और जो शख़्स कोई ख़ता या गुनाह करे, फिर उसकी तोहमत किसी बेगुनाह पर लगा दे, तो उसने यक़ीनन एक बड़ा बोहतान और सरीही गुनाह का बोझ उठा लिया.
113. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर तुम पर अल्लाह का फ़ज़ल और उसकी रहमत न होती, तो उन लोगों में से एक तबक़े ने इरादा कर लिया था कि तुम्हें बहका दे. हालांकि वे ख़ुद को ही गुमराह कर रहे हैं और वे तुम्हारा कुछ भी नुक़सान नहीं कर सकते और अल्लाह ने तुम पर किताब यानी क़ुरआन और हिकमत नाज़िल की है और उसने तुम्हें वह सब इल्म अता किया है, जो तुम नहीं जानते थे. और तुम पर अल्लाह का बहुत बड़ा फ़ज़ल है.
114. उन लोगों के ख़ुफ़िया मशवरों में अकसर कोई भलाई नहीं होती, सिवाय उस शख़्स के मशवरे के जो किसी को सदक़ा देने या अच्छे काम करने या लोगों के दरम्यान सुलह कराने का हुक्म देता है. और जो शख़्स ये काम अल्लाह की ख़ुशनूदी हासिल करने के लिए करेगा, तो हम उसे अनक़रीब बड़ा अज्र देंगे.
115. और जो शख़्स रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त करे इसके बाद कि उस पर हिदायत की राह ज़ाहिर हो चुकी हो और मोमिनों से जुदा किसी दूसरी राह पर चले, तो हम उसे उसी गुमराही की तरफ़ फेर देंगे और आख़िर में उसे जहन्नुम में डाल देंगे और वह बहुत बुरा ठिकाना है.
116. बेशक अल्लाह इसे नहीं बख़्शता कि किसी को उसका शरीक ठहराया जाए और इसके सिवा किसी भी गुनाह को जिसके लिए चाहे बख़्श दे और जिसने किसी को अल्लाह का शरीक ठहराया, तो वह परले दर्जे की गुमराही में मुब्तिला हो गया.
117. वे मुशरिक अल्लाह के सिवा सिर्फ़ औरतों को पुकारते हैं और वे सरकश शैतान को ही पुकारते हैं.
118. जिस शैतान पर अल्लाह ने लानत की है और जिसने कहा था कि मैं तेरे बन्दों में से एक मुक़र्रर हिस्सा ले लूंगा.
119. और मैं उन्हें ज़रूर गुमराह करूंगा और उन्हें ज़रूर बड़ी-बड़ी उम्मीदें भी दिलाऊंगा और उन्हें ऐसे हुक्म दूंगा कि वे जानवरों के कान काट देंगे. और उन्हें हुक्म देता रहूंगा, तो वे अल्लाह की बनाई हुई चीज़ों में बदलाव किया करेंगे. और जो अल्लाह के सिवा शैतान को अपना सरपरस्त बना ले, तो वह सरीह बड़ा नुक़सान उठाएगा.
120. शैतान उनसे झूठे वादे करता है और उन्हें झूठी उम्मीदें भी दिलाता है और शैतान उनसे फ़रेब के सिवा कोई वादा नहीं करता.
121. यही वे लोग हैं, जिनका ठिकाना जहन्नुम है और वे वहां से भागने की कोई जगह भी नहीं पाएंगे.
122. और जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, हम उन्हें अनक़रीब जन्नत के बाग़ों में दाख़िल करेंगे, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. वे उनमें हमेशा-हमेशा रहेंगे. अल्लाह का यह वादा बरहक़ है. और अल्लाह से ज़्यादा क़ौल का सच्चा कौन हो सकता है.
123. जन्नत में जाने के लिए न तुम्हारी आरज़ू काफ़ी है और न अहले किताब की आरज़ू. जो बुराई करेगा, तो वह उसकी सज़ा पाएगा और वह अल्लाह के सिवा किसी को न अपना सरपरस्त पाएगा और न मददगार.
124. और जो शख़्स नेक अमल करेगा अगरचे मर्द हो या औरत बशर्ते वह मोमिन हो, तो ऐसे लोग जन्नत में दाख़िल होंगे और उन पर तिल के बराबर भी ज़ुल्म नहीं किया जाएगा.
125. और दीनी ऐतबार से उस शख़्स से बेहतर कौन हो सकता है, जिसने अल्लाह की बारगाह में अपना सर झुका दिया और वह नेक काम करने वाला भी है और वह इब्राहीम अलैहिस्सलाम के दीन की पैरवी करने वाला भी है, जो बातिल से कतरा कर सिर्फ़ उसी के होकर रहने वाले थे. और अल्लाह ने इब्राहिम अलैहिस्सलाम को अपना मुख़लिस दोस्त बना लिया था.
126. और वह सब अल्लाह ही का है, जो कुछ आसमानों में और जो कुछ ज़मीन में है. और अल्लाह हर चीज़ का अहाता किए हुए है.
127. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वे लोग तुमसे यतीम औरतों के बारे में फ़तवा तलब करते हैं, तो तुम कह दो कि अल्लाह तुम्हें उनके बारे में हुक्म देता है और जो हुक्म तुम्हें पहले से किताब यानी क़ुरआन में सुनाया जा चुका है, वह भी उन यतीम औरतों के बारे में है, जिन्हें तुम वह हक़ूक़ नहीं देते, जो उनके लिए मुक़र्रर किए गए हैं और तुम चाहते हो कि उनका माल अपने क़ब्ज़े में लेने के लिए उनसे ख़ुद निकाह कर लो. और बेबस बच्चों के बारे में भी हुक्म है कि यतीमों के मामले में इंसाफ़ पर क़ायम रहो. और तुम जो भलाई भी करोगे, तो बेशक अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है.
128. और अगर कोई औरत अपने शौहर की ज़्यादती व बेपरवाही का ख़ौफ़ रखती हो, तो दोनों मियां बीवी पर कोई गुनाह नहीं कि वे आपस में किसी मुनासिब बात पर सुलह कर लें. और सुलह करना तो बेहतर है. और बुख़्ल तो हर नफ़्स के साथ रखा गया है. और अगर तुम अहसान करो और परहेज़गारी इख़्तियार करो, तो बेशक अल्लाह तुम्हारे आमाल से ख़ूब बाख़बर है.
129. और तुम अपनी बीवियों के दरम्यान बराबरी का सुलूक नहीं कर सकते, अगरचे तुम कितना ही चाहो. लेकिन एक ही की तरफ़ न झुक जाओ कि दूसरी को लटकती हुई चीज़ की तरह अधर में छोड़ दो. और अगर तुम इस्लाह कर लो और ज़्यादती से बचे रहो, तो अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
130. और अगर दोनों मियां बीवी एक दूसरे से जुदा हो जाएं, तो अल्लाह हर एक को अपनी वुसअत से एक दूसरे से बेनियाज़ कर देगा और अल्लाह बड़ा वुसअत वाला बड़ा हिकमत वाला है.
131. और अल्लाह ही का है, जो कुछ आसमानों में और जो कुछ ज़मीन में है. और हमने उन लोगों को भी हुक्म दिया, जिन्हें तुमसे पहले किताब दी गई थी और तुम्हें भी कि अल्लाह से डरते रहो और अगर तुम कुफ़्र करोगे, तो बेशक सबकुछ अल्लाह ही का है, जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है. फिर अल्लाह बेनियाज़ सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं.
132. और अल्लाह ही का है, जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है. और कारसाज़ अल्लाह ही काफ़ी है.
133. ऐ लोगो ! अगर अल्लाह चाहे, तो तुम्हें नाबूद कर दे और तुम्हारी जगह दूसरे लोग ले आए और अल्लाह इस पर क़ादिर है.
134. और जो शख़्स अपने आमाल के बदले दुनिया का सवाब चाहता है, तो अल्लाह के पास दुनिया व आख़िरत दोनों का सवाब है. और अल्लाह ख़ूब सुनने वाला ख़ूब देखने वाला है.
135. ऐ ईमान वालो ! तुम इंसाफ़ पर मज़बूती के साथ क़ायम रहने वाले और अल्लाह के लिए गवाही देने वाले बन जाओ, अगरचे गवाही ख़ुद तुम्हारे या तुम्हारे वालिदैन या तुम्हारे रिश्तेदारों के ही ख़िलाफ़ हो और जिसके ख़िलाफ़ गवाही हो, चाहे वह ग़नी यानी मालदार हो या फ़क़ीर हो. अल्लाह उन दोनों का तुमसे ज़्यादा ख़ैरख़्वाह है. फिर तुम अपनी ख़्वाहिशों की पैरवी न किया करो कि इंसाफ़ को छोड़ दो. और अगर तुम गवाही में गोलमोल बात करोगे या हक़ से किनाराकशी करोगे, तो बेशक अल्लाह तुम्हारे आमाल से ख़ूब बाख़बर है.
136. ऐ ईमान वालो ! तुम अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उस किताब यानी क़ुरआन पर, जो उसने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल किया है और उस किताब पर जो उसने इससे पहले नाज़िल की है, ईमान लाओ. और जो शख़्स अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और आख़िरत के दिन से कुफ़्र यानी इनकार करे, तो बेशक वह परले दर्जे की गुमराही में मुब्तिला हो गया.
137. बेशक जो लोग ईमान लाए. फिर काफ़िर हो गए. फिर ईमान लाए और फिर काफ़िर हो गए और कुफ़्र में बढ़ते चले गए, तो अल्लाह न उनकी मग़फ़िरत करेगा और न उन्हें सीधा रास्ता दिखाएगा.
138. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम मुनाफ़िक़ों को ख़बर दे दो कि उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है.
139. जो लोग मोमिनों को छोड़कर काफ़िरों को अपना दोस्त बनाते हैं. क्या वे उनके पास इज़्ज़त तलाश करते हैं? बेशक सारी इज़्ज़त अल्लाह ही के लिए है.
140. और बेशक अल्लाह ने तुम्हें अपनी किताब यानी क़ुरआन में यह हुक्म नाज़िल किया है कि जब तुम सुनो कि अल्लाह की आयतों से कुफ़्र किया जा रहा है और उनका मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है, तो तुम उन लोगों के साथ मत बैठो, यहां तक कि वे किसी दूसरी बात में मशग़ूल हो जाएं, वरना उस वक़्त तुम भी उन जैसे हो जाओगे. बेशक अल्लाह तमाम मुनाफ़िक़ों और काफ़िरों को जहन्नुम में जमा करेगा.
141. जो मुनाफ़िक़ तुम्हारी फ़तह और शिकस्त के इंतज़ार में रहते हैं. फिर अगर तुम्हें अल्लाह की तरफ़ से फ़तह मिल जाए, तो तुमसे कहते हैं कि क्या हम तुम्हारे साथ न थे और अगर काफ़िरों को ज़ाहिरी फ़तह का कुछ हिस्सा मिल गया तो काफ़िरों से कहते हैं कि क्या हम तुम पर ग़ालिब नहीं हो गए थे और क्या हमने तुम्हें मोमिनों से नहीं बचाया था. फिर अल्लाह तुम्हारे दरम्यान क़यामत के दिन फ़ैसला कर देगा. और अल्लाह काफ़िरों को मोमिनों पर ग़ालिब होने की कोई राह हरगिज़ नहीं देगा.
142. बेशक मुनाफ़िक़ अपने गुमान में अल्लाह को धोखा देना चाहते हैं. हालांकि अल्लाह ही उन्हें धोखे में मुब्तिला किए हुए है. और जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते हैं, तो बेदिली से अलकसाये हुए सिर्फ़ लोगों को दिखाने के लिए खड़े होते हैं और अल्लाह का ज़िक्र भी नहीं करते, सिवाय थोड़े दिखावे के.
143. वे मुनाफ़िक़ कुफ़्र और ईमान के दरम्यान लटके हुए हैं. वे न काफ़िरों की तरफ़ हैं और न मोमिनों की तरफ़ हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जिसे अल्लाह गुमराही में छोड़ दे, तो तुम हरगिज़ उसके लिए कोई हिदायत की राह नहीं पाओगे.
144. ऐ ईमान वालो ! मोमिनों के सिवा काफ़िरों को अपना दोस्त न बनाओ. क्या तुम चाहते हो कि अल्लाह का सरीही इल्ज़ाम अपने सर पर ले लो.
145. बेशक मुनाफ़िक़ दोज़ख़ के सबसे निचले दर्जे में होंगे. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम उनके लिए हरगिज़ कोई मददगार नहीं पाओगे.
146. सिवाय उन लोगों के, जिन्होंने तौबा कर ली और अपनी इस्लाह कर ली और उन्होंने अल्लाह से मज़बूत ताल्लुक़ जोड़ लिया और उन्होंने अपना दीन अल्लाह के लिए ख़ालिस कर लिया, तो वे लोग मोमिनों के साथ होंगे और अनक़रीब अल्लाह मोमिनों को बड़ा अज्र देगा.
147. अल्लाह तुम्हें अज़ाब देकर क्या करेगा, अगर तुम उसके शुक्रगुज़ार रहो और उस पर ईमान ले आओ और अल्लाह बड़ा क़द्रदान बड़ा साहिबे इल्म है.
148. अल्लाह किसी की बुरी बात को ज़ाहिरी तौर पर कहना पसंद नहीं करता, सिवाय उसके जिस पर ज़ुल्म किया गया हो. और अल्लाह ख़ूब सुनने वाला ख़ूब देखने वाला है.
149. अगर तुम किसी भलाई को ज़ाहिर करो या पोशीदा रखो या किसी की बुराई से दरगुज़र करो, तो बेशक अल्लाह भी बड़ा मुआफ़ करने वाला बड़ा क़ादिर है.
150. बेशक जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों से कुफ़्र करते हैं और चाहते हैं कि अल्लाह और उसके रसूलों के दरम्यान फ़र्क़ करें और कहते हैं कि हम कुछ रसूलों को मानते हैं और कुछ को नहीं मानते हैं और चाहते हैं कि इस कुफ़्र और ईमान के दरम्यान कोई राह निकाल लें.
151. यही वे लोग हैं, जो हक़ीक़त में काफ़िर हैं. और हमने काफ़िरों के लिए ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब तैयार कर रखा है.
152. और जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाए और उनमें से किसी के दरम्यान फ़र्क़ नहीं किया, तो अनक़रीब वे उन्हें उनका अज्र देंगे. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
153. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुमसे अहले किताब सवाल करते हैं कि तुम उन पर आसमान से कोई किताब नाज़िल करवा दो, तो वे लोग मूसा अलैहिस्सलाम से इससे भी बड़ा सवाल कर चुके हैं. उन्होंने कहा था कि हमें अल्लाह को अपनी आखों से दिखा दो. फिर उनके इस ज़ुल्म की वजह से उन्हें आसमानी बिजली ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया, जिससे वे मर गए. फिर मूसा अलैहिस्लाम की दुआ से अल्लाह ने उन्हें ज़िन्दा कर दिया. फिर उन्होंने बछड़े को अपना सरपरस्त बना लिया, उसके बाद कि उनके पास अल्लाह की क़ुदरत की वाज़ेह निशानियां आ चुकी थीं. फिर हमने इससे भी दरगुज़र किया और हमने मूसा अलैहिस्सलाम को उन पर ग़ालिब कर दिया.
154. और जब यहूदी तौरात के अहकाम से फिर गए, तो हमने उनसे पुख़्ता अहद लेने के लिए कोहे तूर को उनके ऊपर उठा दिया और हमने उनसे कहा कि तुम इस शहर के दरवाज़े से सजदा करते हुए दाख़िल होना और हमने यह भी कहा कि तुम हफ़्ते के दिन मछली का शिकार न करने के हमारे हुक्म से तजावुज़ न करना और हमने उनसे बहुत मज़बूत अहद लिया था.
155. फिर उन लोगों को जो सज़ा मिली, वह उनके अपने अहद तोड़ने और अल्लाह की आयतों से कुफ़्र करने और नबियों को नाहक़ क़त्ल करने और यह कहने की वजह से दी गई कि हमारे दिलों पर ग़िलाफ़ चढे़ हुए हैं. बल्कि अल्लाह ने उनके कुफ़्र की वजह से उनके दिलों पर मोहर लगा दी है. फिर चन्द लोगों के सिवा वे ईमान नहीं लाएंगे.
156. और उन लोगों के उस कुफ़्र और उस झूठे बोहतान की वजह से भी जो उन्होंने मरियम अलैहिस्सलाम पर बांधा था.
157. और उनके यह कहने की वजह से भी कि हमने मरियम अलैहिस्सलाम के बेटे ईसा अलैहिस्सलाम और अल्लाह के रसूल को क़त्ल कर दिया है. हालांकि उन्होंने न उन्हें क़त्ल किया और न उन्हें सूली पर ही चढ़ाया. लेकिन हुआ यूं कि उनके लिए किसी को ईसा अलैहिस्सलाम का हमशक्ल बना दिया गया. और बेशक जो लोग उनके बारे में इख़्तिलाफ़ कर रहे हैं कि वे यक़ीनन उस क़त्ल की वजह से शक में मुब्तिला हैं. वे हक़ीक़त के बारे में कुछ भी नहीं जानते. लेकिन वे गुमान की पैरवी कर रहे हैं और यक़ीनन उन्होंने ईसा अलैहिस्सलाम को क़त्ल नहीं किया.
158. बल्कि अल्लाह ने ईसा अलैहिस्सलाम को अपनी तरफ़ आसमान में उठा लिया और अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
159. और क़यामत के क़रीब ईसा अलैहिस्सलाम आसमान से उतरेंगे, तो अहले किताब में से कोई ऐसा नहीं होगा, जो उनके विसाल से पहले उन पर ईमान न लाए और क़यामत के दिन ईसा अलैहिस्सलाम उनके गवाह होंगे.
160. फिर यहूदियों के ज़ुल्म की वजह से हमने उन पर कई पाकीज़ा चीज़ें हराम कर दीं, जो पहले उनके लिए हलाल थीं. और इस वजह से भी कि वे बहुत से लोगों को अल्लाह की राह से रोकते थे.
161. और उन लोगों के ब्याज़ लेने की वजह से. हालांकि उन्हें इससे रोका गया था. और उनके लोगों का नाहक़ माल खाने की वजह से भी उन्हें सज़ा मिली. और हमने उनमें से काफ़िरों के लिए दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है.
162. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! लेकिन उन लोगों में से पुख़्ता इल्म वाले और मोमिन उस वही पर जो तुम पर नाज़िल की गई है और उस वही पर जो तुमसे पहले नाज़िल की गई, दोनों पर ईमान लाते हैं और वे पाबंदी से नमाज़ पढ़ने वाले और ज़कात देने वाले हैं और अल्लाह और क़यामत के दिन पर ईमान रखने वाले हैं.
ऐसे ही लोगों को हम अनक़रीब बड़ा अज्र देंगे.
163. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक हमने तुम्हारी तरफ़ भी इसी तरह वही भेजी, जिस तरह नूह अलैहिस्सलाम और उनके बाद वाले रसूलों की तरफ़ भेजी थी. और हमने इब्राहीम अलैहिस्सलाम और इस्माईल अलैहिस्सलाम और इसहाक़ अलैहिस्सलाम और याक़ूब अलैहिस्सलाम और उनकी औलाद और ईसा अलैहिस्सलाम और अय्यूब अलैहिस्सलाम और यूनुस अलैहिस्सलाम और हारून अलैहिस्सलाम और सुलेमान अलैहिस्सलाम की तरफ़ भी वही भेजी थी. और हमने दाऊद अलैहिस्सलाम को ज़ुबूर अता की थी.
164. और हमने कई ऐसे रसूल भेजे, जिनके हालात हम तुमसे बयान कर चुके हैं और कई ऐसे रसूल भी भेजे, जिनके हालात हमने अभी तक तुमसे बयान नहीं किए और अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम से बहुत सी गुफ़्तगू भी की थी.
165. ये रसूल ख़ुशख़बरी देने वाले और अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करने वाले थे. वे इसलिए भेजे गए, ताकि रसूलों के आने के बाद लोगों के लिए अल्लाह पर कोई हुज्जत बाक़ी न रहे और अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
166. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! कोई तुम पर ईमान लाए या न लाए, लेकिन अल्लाह ख़ुद इसकी गवाही देता है कि जो कुछ उसने तुम पर नाज़िल किया है, उसे अपने इल्म से नाज़िल किया है और फ़रिश्ते भी इसकी गवाही देते हैं. और अल्लाह ही गवाह काफ़ी है.
167. बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र किया और लोगों को अल्लाह की राह से रोका, तो यक़ीनन वे परले दर्जे की गुमराही में मुब्तिला हो गए.
168. बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र किया और वे ज़ुल्म भी करते रहे, तो अल्लाह हरगिज़ न उन्हें बख़्शेगा और न उन्हें सीधे रास्ते की हिदायत देगा.
169. सिवाय जहन्नुम के रास्ते के, जिसमें वे लोग हमेशा रहेंगे और यह अल्लाह के लिए आसान है.
170. ऐ इंसानो ! बेशक तुम्हारे पास रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से हक़ के साथ आए हैं. फिर तुम इन पर अपनी बेहतरी के लिए ईमान ले आओ और अगर तुम कुफ़्र करोगे, तो जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, बेशक वह सब अल्लाह ही का है. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
171. ऐ अहले किताब ! तुम अपने दीन में हद से तजावुज़ न करो और अल्लाह की शान में सच के सिवा कुछ न कहो. हक़ीक़त सिर्फ़ यह है कि मरियम अलैहिस्सलाम के बेटे ईसा मसीह अल्लाह के एक रसूल और उसका कलमा हैं, जिसे अल्लाह ने मरियम अलैहिस्सलाम के पास भेज दिया और उसकी तरफ़ से एक रूह हैं. फिर तुम अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और यह मत कहो कि सरपरस्त तीन हैं. इससे बाज़ आओ. यह तुम्हारे लिए बेहतर है. बेशक अल्लाह ही वाहिद माबूद है. अल्लाह इससे पाक है कि उसकी कोई औलाद हो. सबकुछ उसी अल्लाह का है, जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है. और कारसाज़ अल्लाह ही काफ़ी है.
172. मसीह इससे हरगिज़ गुरेज़ नहीं करता कि वह अल्लाह का बन्दा है और न मुक़र्रिब फ़रिश्ते भी इससे परहेज़ करते हैं. और जो कोई अल्लाह की बन्दगी से गुरेज़ करे और तकब्बुर करे, वह ऐसे तमाम लोगों को अनक़रीब अपने पास जमा करेगा.
173. फिर जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो अल्लाह उन्हें पूरा-पूरा अज्र देगा और फिर अपने फ़ज़ल से उन्हें और ज़्यादा ही देगा और जिन लोगों ने अल्लाह का बन्दा होने से गुरेज़ किया और तकब्बुर किया, तो वह उन्हें दर्दनाक अज़ाब देगा. और वे अल्लाह के सिवा अपना न कोई सरपरस्त पाएंगे और न कोई मददगार.
174. ऐ इंसानो ! बेशक तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
की सूरत में उसकी सबसे मज़बूत व वाज़ेह दलील आ चुकी है और हमने तुम्हारे पास वाज़ेह नूर यानी क़ुरआन भी नाज़िल कर दिया है.
175. फिर जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और उसके दामन को मज़बूती से थामे रहे, तो अनक़रीब अल्लाह उन्हें अपनी रहमत व फ़ज़ल में दाख़िल करेगा. और उन्हें अपनी तरफ़ पहुंचने का सीधा रास्ता दिखाएगा.
176. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! लोग तुमसे फ़तवा तलब करते हैं. तुम कह दो कि अल्लाह तुम्हें कलाला भाई बहन यानी बग़ैर औलाद और बग़ैर वालिदैन के मरने वाले की विरासत के बारे में हुक्म देता है कि अगर कोई ऐसा शख़्स मर जाए जो बेऔलाद हो, लेकिन उसकी एक बहन हो, तो उसके लिए उस माल का आधा हिस्सा है, जो उसने छोड़ा है. और अगर बहन कलाला हो, तो उसके मरने पर उसका भाई बहन का कामिल वारिस होगा. और अगर उस बहन की कोई औलाद न हो. फिर अगर कलाला भाई की मौत पर दो बहनें वारिस हों, तो उनके लिए उस माल का दो तिहाई हिस्सा है, जो उसने छोड़ा है. और अगर किसी के वारिस भाई बहन दोनों हों, तो फिर हर मर्द का हिस्सा दो औरतों के हिस्से के बराबर होगा. ये अहकाम अल्लाह तुम्हारे लिए वाज़ेह तौर पर बयान कर रहा है, ताकि तुम भटकने न फिरो. और अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है.
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