Monday, September 20, 2021

03 सूरह आले इमरान

सूरह आले इमरान मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 200 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अलिफ़ लाम मीम. 
2. अल्लाह ही है, जिसके सिवा कोई माबूद नहीं. वह हमेशा ज़िन्दा रहने वाला व सारे आलम को क़ायम रखने वाला है.
3. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! उसी अल्लाह ने यह किताब तुम पर हक़ के साथ नाज़िल की है. यह उन सब आसमानी किताबों की तसदीक़ करती है, जो इससे पहले नाज़िल हुई हैं और उसी ने तौरात और इंजील नाज़िल की है. 
4. जैसे इससे पहले लोगों की रहनुमाई के लिए किताबें नाज़िल की गईं और अब अल्लाह ने हक़ और बातिल में फ़र्क़ करने वाला क़ुरआन नाज़िल किया है. बेशक जो लोग अल्लाह की आयतों से कुफ़्र करते हैं, उनके लिए सख़्त अज़ाब है. और अल्लाह बड़ा ग़ालिब व इंतक़ाम लेने वाला है.
5. बेशक अल्लाह से ज़मीन और आसमान की कोई भी चीज़ पोशीदा नहीं है.
6. वह अल्लाह ही है, जो माओं के रहमों में तुम्हारी सूरतें जैसी चाहता है बनाता है. उसके सिवा कोई माबूद नहीं. वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है. 
7. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह अल्लाह ही है, जिसने तुम पर किताब यानी क़ुरआन नाज़िल किया है, जिसमें कुछ आयतें मुहकम यानी वाज़ेह हैं, जो किताब की बुनियाद हैं और दूसरी कुछ आयतें मुतशाबिह यानी कई मायनों वाली हैं. फिर जिन लोगों के दिलों में कजी है, वे इसमें से सिर्फ़ मुतशाबिहात की पैरवी करते हैं, ताकि फ़ितना फैलाएं और असल मतलब की बजाय मनपसंद मतलब तलाश करें. और इसका असल मतलब तो अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता. इल्म में महारत रखने वाले आलिम कहते हैं कि हम इस पर ईमान लाए हैं. सारी किताब हमारे परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल हुई है और इससे वही लोग नसीहत हासिल करते हैं, जो अक़्लमंद हैं. 
8. और वे आलिम अर्ज़ करते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! फिर हमारे दिलों में कजी पैदा न कर इसके बाद कि तूने हमें हिदायत से नवाज़ा है और हमें अपनी बारगाह से रहमत अता कर. बेशक तू ही बड़ा देने वाला है.
9. ऐ हमारे परवरदिगार ! बेशक तू ही सब लोगों को उस दिन जमा करेगा, जिसके आने में कोई शक नहीं है. बेशक अल्लाह अपने वादे की ख़िलाफ़वर्ज़ी नहीं करता.
10. बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र किया, न उनके माल उनके कुछ काम आएंगे और न उनकी औलाद ही उन्हें अल्लाह के अज़ाब से बचा पाएगी. और वही लोग दोज़ख़ का ईधन हैं. 
11. उनका हाल भी फ़िरऔन के लोगों और उनसे पहले के लोगों जैसा हुआ, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया, तो अल्लाह ने उन्हें उनके गुनाहों की वजह से अज़ाब की गिरफ़्त में ले लिया. और अल्लाह सख़्त अज़ाब देने वाला है.
12. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उनसे कह दो कि तुम अनक़रीब मग़लूब हो जाओगे और जहन्नुम की तरफ़ हांके जाओगे और वह बहुत बुरा ठिकाना है.
13. बेशक तुम्हारे लिए उन दो जमातों में एक निशानी है, जो जंगे बदर में आपस में मुक़ाबिल हुईं. एक जमात ने अल्लाह की राह में जंग की और दूसरी काफ़िर थी. काफ़िरों को अपनी खुली आंखों से मुसलमान दोगुने नज़र आ रहे थे. और अल्लाह अपनी मदद के ज़रिये जिसे चाहता है ताईद करता है. और बेशक इसमें बसीरत वाले लोगों के लिए बड़ी इबरत है.
14. लोगों के लिए उनकी पसंदीदा चीज़ों की मुहब्बत ख़ूब आरास्ता कर दी गई, मसलन औरतें और औलाद और सोने और चांदी के ढेर और घोड़े और चौपाये और खेतियां. और यह सब दुनियावी ज़िन्दगी का साजो सामान है. और अल्लाह के पास बहुत उम्दा रिहाइशगाह है.    
15. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या मैं तुम्हें उन सबसे बेहतरीन चीज़ की ख़बर दूं. परहेज़गारों के लिए उनके परवरदिगार के पास जन्नत के ऐसे बाग़ हैं, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. वे हमेशा उनमें रहेंगे. उनके लिए पाकीज़ा बीवियां होंगी और सबसे बढ़कर अल्लाह की ख़ुशनूदी नसीब होगी और अल्लाह अपने बन्दों को ख़ूब देखने वाला है. 
16. वे लोग कहते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! बेशक हम ईमान लाए हैं. फिर तू हमारे गुनाहों को बख़्श दे और हमें दोज़ख़ के अज़ाब से बचा ले. 
17. वे लोग सब्र करने वाले और सच बोलने वाले और इताअत करने वाले और अल्लाह की राह में ख़र्च करने वाले और रात के पिछले पहरों में अल्लाह से बख़्शीश मांगने वाले हैं. 
18. अल्लाह ने गवाही दी है कि बेशक उसके सिवा कोई माबूद नहीं. और इसी तरह फ़रिश्तों और इल्म वालों ने भी गवाही दी है कि वह अदल के साथ क़ायम है. उसके सिवा कोई माबूद नहीं. और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है. 
19. बेशक दीन अल्लाह के नज़दीक इस्लाम ही है. और अहले किताब ने अपने पास इल्म आ जाने के बाद जो इख़्तिलाफ़ किया, वह सिर्फ़ बाहमी ज़िद व हसद की वजह से था. और जो कोई अल्लाह की आयतों से कुफ़्र करे, तो बेशक अल्लाह उससे जल्दी हिसाब लेने वाला है. 
20. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अगर फिर भी वे लोग तुमसे हुज्जत करें, तो तुम कह दो कि मैंने और मेरी पैरवी करने वालों ने अल्लाह की बारगाह में अपना चेहरा झुका दिया है. और तुम अहले किताब और अनपढ़ लोगों से कह दो कि क्या तुम भी अल्लाह की बारगाह में झुकते हो यानी इस्लाम क़ुबूल करते हो. अगर उन्होंने इस्लाम क़ुबूल कर लिया, तो उन्होंने हिदायत पा ली और अगर उन्होंने मुंह फेर लिया, तो तुम्हारी ज़िम्मेदारी हमारे अहकाम वाज़ेह तौर पर पहुंचाने तक ही है. और अल्लाह अपने बन्दों को ख़ूब देखने वाला है.
21. बेशक जो लोग अल्लाह की आयतों से कुफ़्र करते हैं और नबियों को नाहक़ क़त्ल करते हैं और उन लोगों को भी क़त्ल करते हैं, जो उन्हें अदल व इंसाफ का हुक्म देते हैं, तो ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उन्हें दर्दनाक अज़ाब की ख़बर दे दो.
22. यही वे लोग हैं जिनके आमाल दुनिया और आख़िरत दोनों में बर्बाद हो गए और उनका कोई मददगार नहीं होगा. 
23. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें किताब यानी तौरात में से एक हिस्सा दिया गया था कि वे अल्लाह की किताब की तरफ़ बुलाए जाते हैं, ताकि वह किताब उनके दरम्यान फ़ैसला कर दे. फिर उनमें से फ़रीक़ एक मुंह फेर लेता है और वे लोग मुंह फेरने वाले ही हैं.
24. उनकी यह हालत इसलिए है कि वे लोग कहते हैं कि हमें गिनती के चन्द दिनों के सिवा दोज़ख़ की आग हरगिज़ नहीं छुएगी. और वे अल्लाह पर जो झूठे बोहतान बांधते रहते हैं, उसने उन्हें फ़रेब में मुब्तिला कर दिया है. 
25. फिर उस वक़्त क्या हाल होगा जब हम उन लोगों को क़यामत के दिन जमा करेंगे, जिसके आने में कोई शक नहीं है. और हर शख़्स को उसके किए का पूरा बदला दिया जाएगा और किसी पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा.
26. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम अर्ज़ करो कि ऐ अल्लाह सल्तनत के मालिक ! तू जिसे चाहे सल्तनत अता कर दे और जिससे चाहे सल्तनत छीन ले और तू जिसे चाहे इज़्ज़त दे और जिसे चाहे ज़िल्लत दे. सारी भलाई तेरे ही हाथ में है. बेशक तू हर चीज़ पर क़ादिर है.
27. तू ही रात को दिन में दाख़िल करता है और दिन को रात में दाख़िल करता है. और तू ही ज़िन्दा को मुर्दे से निकालता है और मुर्दे से ज़िन्दा को निकालता है. और वह जिसे चाहता है, बग़ैर हिसाब के रिज़्क़ देता है.   
28. मोमिनों को चाहिए कि वे अहले ईमान को छोड़कर काफ़िरों को दोस्त न बनाएं और जो भी ऐसा करेगा, तो उसका अल्लाह से कोई ताल्लुक़ नहीं होगा सिवाय इसके कि तुम उनके शर से बचना चाहो. और अल्लाह तुम्हें अपनी ज़ात के ग़ज़ब से डराता है और तुम्हें अल्लाह की तरफ़ ही लौटना है.
29. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि जो कुछ तुम्हारे दिलों में है चाहे तुम उसे पोशीदा रखो या ज़ाहिर करो, अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है. और वह उसे भी ख़ूब जानता है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है. और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
30. जिस दिन हर शख़्स हर उस नेकी को अपने सामने हाज़िर पाएगा, जो उसने की थी और हर बुराई को भी जो उसने की थी, तो वह चाहेगा कि कि काश ! मेरे और उस बुराई के दरम्यान बहुत ज़्यादा फ़ासला होता. और अल्लाह तुम्हें अपनी ज़ात के ग़ज़ब से डराता है. और अल्लाह अपने बन्दों पर शफ़क़त करने वाला है.
31. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगर अल्लाह से मुहब्बत करते हो, तो मेरी पैरवी करो. फिर अल्लाह भी तुमसे मुहब्बत करेगा और तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
32. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो. फिर अगर वे लोग मुंह फेरें, तो जान लो कि अल्लाह काफ़िरों को पसंद नहीं करता. 
33. बेशक अल्लाह ने आदम अलैहिस्सलाम और नूह अलैहिस्सलाम और आले इब्राहीम अलैहिस्सलाम और आले इमरान को तमाम आलम वालों पर मुंतख़िब कर लिया. 
34. यह एक ही नस्ल है. उनमें बाज़ बाज़ की औलाद हैं. और अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है. 
35. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वक़्त याद करो कि जब इमरान की बीवी ने अल्लाह से दुआ मांगी कि ऐ मेरे परवरदिगार ! बेशक जो बच्चा मेरे पेट में है, मैं उसे अपनी तमाम ज़िम्मेदारियों से आज़ाद करके ख़ालिस तेरी नज़र करती हूं. फिर तू मेरी तरफ़ से इसे क़ुबूल कर ले. बेशक तू ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
36. फिर जब उसने बेटी को जन्म दिया, तो कहने लगी कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मैंने लड़की को जन्म दिया है.
हालांकि अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ़ था, जिसे उसने जन्म दिया था. उसने कहा कि बेटा बेटी जैसा नहीं हो सकता था, जो अल्लाह ने अता की है. और मैंने इसका नाम मरयम अलैहिस्सलाम रखा है. और बेशक मैं इसे और इसकी औलाद को शैतान मरदूद के शर से तेरी पनाह में देती हूं.
37. फिर उसके परवरदिगार ने मरयम को ख़ुशी से क़ुबूल कर लिया और उनकी अच्छी तरह से परवरिश की और ज़करिया अलैहिस्सलाम को उनका कफ़ील बना दिया. जब भी ज़करिया अलैहिस्सलाम उनके पास उनके हुजरे में दाख़िल होते, तो उनके पास खाने की चीज़ें मौजूद पाते. उन्होंने पूछा कि ऐ मरयम अलैहिस्सलाम ! ये चीज़ें तुम्हारे पास कहां से आती हैं, तो वे कह देतीं कि ये अल्लाह के पास से आती हैं. बेशक अल्लाह जिसे चाहता है बेहिसाब रिज़्क़ देता है.
38. उसी वक़्त ज़करिया अलैहिस्सलाम ने अपने परवरदिगार से दुआ मांगी कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझे भी अपनी बारगाह से पाकीज़ा औलाद अता कर. बेशक तू ही दुआ का सुनने वाला है.
39. अभी ज़करिया अलैहिस्सलाम हुजरे में खड़े नमाज़ पढ़कर दुआ मांग ही रहे थे कि फ़रिश्तों ने उन्हें आवाज़ दी कि बेशक अल्लाह आपको यहया अलैहिस्सलाम की पैदाइश की बशारत देता है, जो अल्लाह के एक कलमे की तसदीक़ करने वाला होगा और लोगों का सरदार होगा और नफ़्स को क़ाबू में रखने वाला होगा और हमारे स्वालिहीन नबियों में से होगा. 
40. ज़करिया अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मेरे यहां बेटा कैसे होगा? मैं ज़ईफ़ हो चुका हूं और मेरी बीवी कुलसूम भी बांझ है. उनसे कहा गया कि इसी तरह अल्लाह जो चाहता है, वह करता है.
41. ज़करिया अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मेरे लिए कोई निशानी मुक़र्रर कर दे. उनसे कहा गया कि तुम्हारी निशानी यह है कि तुम तीन दिन तक लोगों से सिवाय इशारे के बात नहीं कर सकोगे और अपने परवरदिगार का कसरत से ज़िक्र करो और शाम और सुबह अल्लाह की तस्बीह किया करो.
42. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वाक़िया भी याद करो कि जब फ़रिश्तों ने कहा कि ऐ मरयम अलैहिस्सलाम ! बेशक अल्लाह ने तुम्हें मुंतख़िब किया और तुम्हें पाकीज़गी अता की और तमाम आलम की औरतों पर तुम्हें बर्गुज़ीदा कर दिया है. 
43. ऐ मरयम अलैहिस्सलाम ! तुम अपने परवरदिगार की इताअत करो यानी बन्दगी करो और उसे सजदा करो और रुकू करने वालों के साथ रुकू करती रहो.
44. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये ग़ैब की ख़बरें हैं, जो हम तुम्हारे पास वही के ज़रिये भेजते हैं. हालांकि तुम उस वक़्त उन लोगों के पास मौजूद नहीं थे जब वे अपने क़लम बतौर क़ु़रआ दरिया में फेंक रहे थे कि उनमें से कौन मरयम अलैहिस्सलाम की परवरिश करेगा और न तुम उस वक़्त उनके पास मौजूद थे जब वे आपस में झगड़ रहे थे.
45. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वाक़िया भी याद करो कि जब फ़रिश्तों ने कहा कि ऐ मरयम अलैहिस्सलाम ! बेशक अल्लाह तुम्हें अपनी बारगाह से एक कलमे यानी बेटे की पैदाइश की बशारत देता है, जिसका नाम ईसा मसीह इब्ने मरयम अलैहिस्सलाम होगा और वह दुनिया और आख़िरत दोनों में मुअज़्ज़िज़ और अल्लाह के मुक़र्रिब बन्दों में से होगा. 
46. और वह लोगों से बचपन में भी बात करेगा और बड़ी उम्र में भी उसी तरह बातें करेगा और वह स्वालिहीन में से होगा.
47. यह सुनकर मरयम अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मेरे यहां बेटा कैसे हो सकता है. हालांकि मुझे किसी बशर ने छुआ तक नहीं. उनसे कहा गया कि इसी तरह अल्लाह जो चाहता है, वह पैदा करता है. जब वह किसी काम का इरादा करता है, तो सिर्फ़ इतना फ़रमाता है कि ‘हो जा’, तो वह ‘हो जाता’ है.
48. और अल्लाह उसे किताब और हिकमत और तौरात और इंजील सब कुछ सिखा देगा.
49. और वह बनी इस्राईल का रसूल होगा और उनसे कहेगा कि बेशक मैं तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से एक निशानी लेकर आया हूं. मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से एक परिन्दे बनाता हूं. फिर उस पर दम करता हूं, तो वह अल्लाह के हुक्म से फ़ौरन उड़ने लगता है और मैं अल्लाह ही के हुक्म से पैदायशी अंधे और कोढ़ी को अच्छा करता हूं और मुर्दो को ज़िन्दा करता हूं और जो कुछ तुम खाते हो और जो कुछ तुम अपने घरों में जमा करते हो, मैं तुम्हें वह सब बताता हूं. बेशक इसमें तुम्हारे लिए अल्लाह की क़ुदरत की निशानी है. अगर तुम ईमान वाले हो. 
50. और मैं ख़ुद से पहले नाज़िल हुई किताब यानी तौरात की तसदीक़ करता हूं, ताकि तुम्हारे लिए वे चीज़ें हलाल कर दूं, जो तुम पर हराम कर दी गई थीं और मैं तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से निशानी लेकर आया हूं. फिर तुम अल्लाह से डरो और मेरी इताअत करो. 
51. बेशक अल्लाह ही मेरा परवरदिगार है और वह तुम्हारा भी परवरदिगार है. फिर तुम उसी की इबादत किया करो. यही सीधा रास्ता है. 
52. फिर जब ईसा अलैहिस्सलाम को उन लोगों के कुफ़्र का अहसास हुआ, तो उन्होंने कहा कि अल्लाह की राह में कौन मेरा मददगार है? उनके साथी हवारियों ने कहा कि हम अल्लाह के दीन के मददगार हैं. हम अल्लाह पर ईमान लाए हैं. और आप गवाह रहें कि हम मुसलमान हैं. 
53. ऐ हमारे परवरदिगार ! हम उस सब पर ईमान लाए, जो कुछ तूने नाज़िल किया है. और हमने तेरे रसूल ईसा अलैहिस्सलाम की पैरवी की. फिर तू हमारा नाम अपने रसूल की गवाही देने वालों के साथ लिख ले.
54. फिर काफ़िरों ने ईसा अलैहिस्सलाम को क़त्ल करने के लिए मक्कारी की और अल्लाह ने अपने रसूल को बचाने के लिए तदबीर की. और अल्लाह बेहतरीन तदबीर करने वाला है.
55. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वक़्त भी याद करो कि जब अल्लाह ने फ़रमाया कि ऐ ईसा अलैहिस्सलाम ! बेशक हम तुम्हें पूरी उम्र तक पहुंचाएंगे और तुम्हें अपनी तरफ़ आसमान में उठा लेंगे और तुम्हें  कुफ़्र करने वाले लोगों से पाकीज़ा रखेंगे यानी उनसे निजात दिलाएंगे और तुम्हारी पैरवी करने वाले लोगों को उन काफ़िर लोगों पर क़यामत तक ग़ालिब रखेंगे. फिर तुम सबको हमारी तरफ़ ही लौटना है. फिर तुम्हारे दरम्यान उन बातों का फ़ैसला कर दिया जाएगा, जिनमें तुम इख़्तिलाफ़ किया करते थे.  
56. फिर जिन लोगों ने कुफ़्र किया, हम उन्हें दुनिया और आख़िरत दोनों में सख़्त अज़ाब देंगे और उनका कोई मददगार नहीं होगा.
57. और जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो अल्लाह उन्हें उनका पूरा अज्र देगा और अल्लाह  ज़ालिमों को पसंद नहीं करता.
58. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यह जो हम तुम्हें पढ़कर सुना रहे हैं, ये आयतें और हिकमत भरे तज़्किरे हैं.
59. बेशक ईसा अलैहिस्सलाम की मिसाल अल्लाह के नज़दीक आदम अलैहिस्सलाम जैसी है, जिन्हें उसने मिट्टी से पैदा किया. फिर फ़रमाया कि ‘हो जा’ तो वह ‘हो गया.’ 
60. ऐ लोगो ! यह तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से हक़ है. फिर तुम शक करने वालों में से न हो जाना.
61. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम्हारे पास इल्म आ जाने के बाद जो शख़्स ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में तुमसे हुज्जत करे, तो तुम कह दो कि आ जाओ हम मिलकर अपने बेटों को और तुम्हारे बेटों को और अपनी औरतों को और तुम्हारी औरतों को और ख़ुद को भी और तुम्हें भी बुला लेते हैं. फिर हम सब मिलकर अल्लाह की बारगाह में इल्तिजा करते हैं और झूठों पर अल्लाह की लानत भेजते हैं.
62. बेशक यही सच्चा क़िस्सा है. और अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं. और बेशक वही अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
63. फिर अगर वे लोग मुंह फेर लें, तो बेशक अल्लाह मुफ़सिदों को ख़ूब जानता है. 
64. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ऐ अहले किताब ! तुम इस बात की तरफ़ आ जाओ, जो हमारे और तुम्हारे दरम्यान एक जैसी है कि हम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत नहीं करेंगे और हम उसके साथ किसी को शरीक नहीं ठहराएंगे और हम में से कोई एक दूसरे को अल्लाह के सिवा अपना परवरदिगार नहीं बनाएगा. फिर अगर वे मुंह फेरें, तो तुम कह दो कि तुम गवाह रहना कि हम अल्लाह ही के मुसलमान यानी फ़रमाबरदार हैं.
65. ऐ अहले किताब ! तुम इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बारे में आपस में क्यों झगड़ते हो यानी उन्हें यहूदी या नसरानी यानी ईसाई क्यों ठहराते हो. हालांकि तुम्हारे दीन की बुनियाद तौरात और इंजील तो उनके बाद ही नाज़िल हुई हैं. क्या फिर भी तुम नहीं समझते.
66. तुम वही लोग हो, जो उन बातों में भी झगड़ते रहे हो, जिनका तुम्हें कुछ इल्म था. लेकिन उन बातों में क्यों झगड़ते हो, जिनका तुम्हें कोई इल्म ही नहीं है. और अल्लाह सब जानता है और तुम नहीं जानते. 
67. इब्राहीम अलैहिस्सलाम न यहूदी थे और न नसरानी यानी ईसाई थे, लेकिन वे हर बातिल से जुदा रहने वाले मुसलमान थे. और वे मुशरिकों में से नहीं थे. 
68. बेशक सब लोगों से ज़्यादा इब्राहीम अलैहिस्सलाम के क़रीब वे लोग हैं, जिन्होंने उनके दीन की पैरवी की है और वही नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उन पर ईमान लाए हैं. और अल्लाह मोमिनों का कारसाज़ है.
69. ऐ मुसलमानो ! अहले किताब में से एक तबक़ा चाहता है कि काश ! वह तुम्हें गुमराह कर सके, लेकिन वह ख़ुद को ही गुमराही में मुब्तिला किए हुए है और उसे इसका शऊर भी नहीं है.
70. ऐ अहले किताब ! तुम अल्लाह की आयतों से कुफ़्र क्यों करते हो. हालांकि तुम ख़ुद गवाह हो. यानी तुम अपनी किताबों में सबकुछ पढ़ चुके हो.
71. ऐ अहले किताब ! तुम हक़ को बातिल के साथ क्यों मिलाते हो और हक़ को क्यों छुपाते हो. हालांकि तुम जानते हो.
72. और अहले किताब का एक तबक़ा लोगों से कहता है कि जो किताब यानी क़ुरआन अहले ईमान पर नाज़िल हुआ है तुम उस पर सुबह ईमान लाया करो और शाम को कुफ़्र कर दिया करो, ताकि तुम्हें देखकर वे मुसलमान भी अपने दीन से फिर जाएं. 
73. और किसी की बात न मानो सिवाय उस शख़्स के जो तुम्हारे दीन की पैरवी करता हो. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक हिदायत तो वही है, जो अल्लाह की हिदायत है. यहूदी कहते हैं कि यह भी न मानना कि जैसी किताब या दीन तुम्हें दिया गया है, वैसा किसी और को दिया जाएगा या यह कि कोई तुम्हारे परवरदिगार के पास तुम्हारे ख़िलाफ़ हुज्जत कर सकेगा. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक फ़ज़ल तो अल्लाह के हाथ में है. वह जिसे चाहता है अता करता है. और अल्लाह बड़ा वुसअत वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
74. अल्लाह जिसे चाहता है अपनी रहमत से ख़ास कर लेता है और अल्लाह बड़ा फ़ज़ल वाला है. 
75. और अहले किताब में कुछ ऐसे लोग भी हैं कि अगर तुम उनके पास माल का ढेर अमानत रख दो, तो वे तुम्हें लौटा देंगे और उन्हीं में से कुछ ऐसे लोग भी हैं कि अगर उनके पास एक दीनार अमानत रख दो, तो तुम्हें वह उस वक़्त तक नहीं लौटाएंगे जब तक तुम उनके सर पर खड़े न रहो. ऐसा इसलिए है कि वे कहते हैं कि अनपढ़ों के मामले में हम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है और वे अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधते हैं और वे ख़ुद भी जानते हैं.
76. क्यों नहीं. जो शख़्स अपने अहद को पूरा करे और परहेज़गारी इख़्तियार करे, तो बेशक अल्लाह परहेज़गारों से मुहब्बत करता है.
77. बेशक जो लोग अपने अहद और अपनी क़समों का थोड़ी सी क़ीमत पर सौदा कर देते हैं, यही वे लोग हैं जिनके लिए आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं है और न क़यामत के दिन अल्लाह उनसे कलाम करेगा और न उनकी तरफ़ नज़र ही करेगा और न उन्हें पाकीज़गी अता करेगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है.
78. और बेशक अहले किताब में से एक फ़रीक़ ऐसा भी है, जो किताब यानी तौरात पढ़ते हुए अपनी ज़बानों को मरोड़ लेता है, ताकि तुम उनकी उलट फेर को भी किताब का हिस्सा ही समझो. हालांकि वह किताब में नहीं है. और वे कहते हैं कि यह सब अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल हुआ है. हालांकि वह अल्लाह की तरफ़ से नहीं है. और वे अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधते हैं और वे ख़ुद भी जानते हैं.
79. किसी बशर को यह हक़ नहीं कि अल्लाह उसे अपनी किताब और हिकमत और नबुवत अता करे. फिर वे लोगों से यह कहने लगे कि तुम अल्लाह को छोड़कर मेरे बन्दे बन जाओ, बल्कि वह तो यही कहेगा कि तुम परवरदिगार वाले बन जाओ, इसलिए कि तुम किताब दूसरों को सिखाते हो और इस वजह से कि तुम ख़ुद भी उसे पढ़ते हो.
80. और पैग़म्बर तुम्हें यह हुक्म कभी नहीं देता कि तुम फ़रिश्तों और नबियों को अपना परवरदिगार बना लो. क्या वह तुम्हारे मुसलमान हो जाने के बाद तुम्हें कुफ़्र का हुक्म देगा.
81. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वक़्त याद करो कि जब अल्लाह ने नबियों से पुख़्ता अहद लिया कि जब हम तुम्हें किताब और हिकमत अता कर दें. फिर तुम्हारे पास रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाएं, जो उन किताबों की तसदीक़ करने वाले हों, जो तुम्हारे पास हों, तो तुम ज़रूर उन पर ईमान लाओगे और ज़रूर उनकी मदद करोगे. उनसे कहा गया कि क्या तुमने इक़रार कर लिया है और अहद का वज़न उठा लिया ? सबने अर्ज़ किया कि हमने इक़रार कर लिया है. उनसे कहा गया कि तुम गवाह हो जाओ और हम भी तुम्हारे साथ गवाहों में से हैं.
82. फिर जिस शख़्स ने इस इक़रार के बाद मुंह फेरा, तो वही नाफ़रमान है.
83. क्या वे लोग अल्लाह के दीन को छोड़कर कोई और दीन तलाशते हैं और जो कोई भी आसमानों और ज़मीन में है, उसने ख़ुशी से या नागवारी से उसी की फ़रमाबरदारी क़ुबूल की है और सबको उसकी तरफ़ ही लौटना है.
84. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि हम अल्लाह पर ईमान लाए हैं और जो कुछ हम पर नाज़िल किया गया है और जो कुछ इब्राहीम अलैहिस्सलाम और इस्माईल अलैहिस्सलाम और इसहाक़ अलैहिस्सलाम और याक़ूब अलैहिस्सलाम और उनकी औलाद पर नाज़िल किया गया है और जो कुछ मूसा अलैहिस्सलाम और ईसा अलैहिस्सलाम और दूसरे नबियों को उनके परवरदिगार की तरफ़ से अता किया गया है, हम उस सब पर ईमान लाए हैं. हम उनमें किसी के दरम्यान कोई फ़र्क़ नहीं करते और हम उसी अल्लाह के मुसलमान यानी फ़रमाबरदार हैं. 
85. और जो शख़्स इस्लाम को छोड़कर किसी और दीन को चाहेगा, तो उसका वह दीन हरगिज़ क़ुबूल नहीं किया जाएगा और वह आख़िरत में नुक़सान उठाने वालों में से होगा. 
86. अल्लाह उस क़ौम को क्यों हिदायत देगा, जो ईमान लाने के बाद काफ़िर हो गई. हालांकि वे लोग गवाही दे चुके थे कि ये रसूल बरहक़ हैं और उनके पास वाज़ेह निशानियां भी आ चुकी थीं और अल्लाह ज़ालिमों की क़ौम को हिदायत नहीं देता.
87. ऐसे लोगों की सज़ा यह है कि उन पर अल्लाह और फ़रिश्तों और तमाम इंसानों की लानत पड़ती रहे.
88. और वे हमेशा उसी लानत में गिरफ़्तार रहेंगे और न उनके अज़ाब में कोई कमी की जाएगी और न उन्हें मोहलत ही दी जाएगी.
89. सिवाय उन लोगों के जिन्होंने इसके बाद तौबा कर ली और अपनी इस्लाह कर ली. फिर बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
90. बेशक जो लोग ईमान लाने के बाद काफ़िर हो गए. फिर वे कुफ़्र में आगे बढ़ते गए, तो उनकी तौबा हरगिज़ क़ुबूल नहीं की जाएगी और वे लोग गुमराह हैं. 
91. बेशक जो लोग काफ़िर हो गए और उसी कुफ़्र की हालत में मर गए, तो उनमें से कोई शख़्स अगर ज़मीन भर सोना भी अपनी निजात के लिए देना चाहे, तो उसे हरगिज़ क़ुबूल नहीं किया जाएगा. उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है और उनका कोई मददगार भी नहीं होगा. 
92. ऐ लोगो ! तुम हरगिज़ नेकी को नहीं पहुंचोगे जब तक तुम अपनी पसंदीदा चीज़ों में से कुछ अल्लाह की राह में ख़र्च न करो. और तुम जो कुछ भी ख़र्च करते हो, अल्लाह उसे ख़ूब जानता है. 
93. तौरात के नाज़िल होने से पहले बनी इस्राईल के लिए हर खाने की चीज़ हलाल थी, सिवाय उन चीज़ों के जिन्हें याक़ूब अलैहिस्सलाम ने ख़ुद अपने ऊपर हराम कर लिया था. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उनसे कह दो कि तौरात लाओ और उसे पढ़ो. अगर तुम सच्चे हो.
94. फिर उसके बाद भी जो अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधें, तो वही लोग ज़ालिम हैं.
95. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अल्लाह ने सच फ़रमाया है. फिर तुम इब्राहीम अलैहिस्सलाम के दीन की पैरवी करो, जो सिर्फ़ अल्लाह ही की इबादत करते थे और मुशरिकों में से नहीं थे. 
96. बेशक सबसे पहला घर जो लोगों की इबादत के लिए बनाया गया वह मक्का में है. वह मुबारक और तमाम आलमों के लिए हिदायत का मरकज़ है.
97. काबे में वाज़ेह निशानियां हैं. उनमें से एक निशानी इब्राहीम अलैहिस्सलाम का मक़ाम यानी वह पत्थर है, जिस पर खड़े होकर उन्होंने काबे की तामीर कराई थी. और जो इसमें दाख़िल हो गया वह अमान पा गया और अल्लाह के लिए लोगों पर इस घर का हज फ़र्ज़ है, जो भी इस तक पहुंचने की सकत रखता हो. और जो इससे कुफ़्र करे, तो बेशक अल्लाह तमाम आलमों से बेनियाज़ है.     
98. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ऐ अहले किताब ! तुम अल्लाह की आयतों से कुफ़्र क्यों करते हो ? और अल्लाह उन आमाल का गवाह है, जो तुम किया करते हो.
99. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ऐ अहले किताब ! जो शख़्स ईमान ले आया है, तुम उसे अल्लाह की राह से क्यों रोकते हो ? तुम उसके रास्ते में भी कजी यानी ख़ामियां तलाशते हो. हालांकि तुम उसके हक़ होने के ख़ुद गवाह हो. और अल्लाह उन आमाल से ग़ाफ़िल नहीं, जो तुम किया करते हो.    
100. ऐ ईमान वालो ! अगर तुम अहले किताब में से किसी फ़रीक़ का कहना मानोगे, तो वह तुम्हें ईमान लाने के बाद कुफ़्र की तरफ़ फेर देगा.
101. और अब तुम कैसे कुफ़्र करोगे, जबकि तुम्हारे सामने अल्लाह की आयतें पढ़ी जाती हैं और तुम्हारे दरम्यान ख़ुद अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मौजूद हैं और जो अल्लाह का सहारा मज़बूती से थाम लेता है, उसे ज़रूर सीधे रास्ते की हिदायत दी जाती है.
102. ऐ ईमान वालो ! अल्लाह से डरो, जैसे उससे डरने का हक़ है और तुम्हारी मौत सिर्फ़ उसी हाल में आए कि तुम मुसलमान हो.
103. और तुम सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थाम लो और आपस में तफ़रक़ा यानी फूट मत डालो और ख़ुद पर अल्लाह की नेअमतों का ज़िक्र करो यानी उन्हें याद करो कि जब तुम आपस में एक दूसरे के दुश्मन थे, तो अल्लाह ने तुम्हारे दिलों में एक दूसरे की मुहब्बत पैदा कर दी और तुम उसकी नेअमत की वजह से आपस में भाई-भाई हो गए और तुम दोज़ख की आग के गड्ढे के किनारे पर पहुंच चुके थे. फिर अल्लाह ने तुम्हें उससे बचा लिया. इसी तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी निशानियां वाजे़ह करके बयान करता है, ताकि तुम हिदायत पा सको.
104. और तुम में से एक उम्मत ऐसी ज़रूर होनी चाहिए, जो लोगों को भलाई की तरफ़ बुलाए और अच्छे काम करने का हुक्म दे और बुराई से रोके और यही वे लोग हैं, जो कामयाबी पाएंगे. 
105. और तुम उन लोगों की तरह न हो जाना, जो फ़िरक़ों में तक़सीम हो गए थे और अपने पास वाज़ेह निशानियां आ जाने के बाद भी इख़्तिलाफ़ करने लगे. और उन लोगों के लिए सख़्त अज़ाब है.
106. जिस दिन कुछ लोगों के चेहरे सफ़ेद नूरानी होंगे और कुछ के चेहरे स्याह होंगे, तो जिनके चेहरे स्याह होंगे, उनसे कहा जाएगा कि क्या तुमने ईमान लाने के बाद कुफ़्र किया ? फिर उसके अज़ाब का ज़ायक़ा चखो, जो कुफ़्र तुम किया करते थे. 
107. और जिन लोगों के चेहरे सफ़ेद नूरानी होंगे, तो वे अल्लाह की रहमत यानी जन्नत में होंगे और वे उसमें हमेशा रहेंगे.
108. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये अल्लाह की आयतें हैं, जिन्हें हम हक़ के साथ तुम्हें पढ़कर सुनाते हैं और अल्लाह आलम वालों पर कोई ज़ुल्म नहीं चाहता.
109. और अल्लाह ही का है, जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है. और सब काम अल्लाह की तरफ़ ही लौटाए जाते हैं. 
110. ऐ मुसलमानो ! तुम बेहतरीन उम्मत हो, जो सब लोगों की रहनुमाई के लिए ज़ाहिर की गई है. तुम अच्छे काम करने का हुक्म देते हो और बुरे कामों से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो. और अगर अहले किताब भी ईमान ले आते, तो उनके लिए बेहतर होता. उनमें से कुछ लोग ईमान वाले भी हैं और उनमें से कुछ नाफ़रमान भी हैं. 
111. ऐ मुसलमानो ! ये लोग मामूली अज़ीयत देने के सिवा तुम्हारा कोई नुक़सान नहीं कर सकते और अगर तुमसे जंग करें, तो तुम्हारे सामने से पीठ फेरकर भाग जाएंगे और फिर उनकी कोई मदद भी नहीं की जाएगी. 
112. और वे लोग जहां कहीं भी पाए गये उन पर ज़िल्लत मुसल्लत कर दी गई है, सिवाय इसके कि उन्हें अल्लाह के अहद से या और लोगों के अहद के ज़रिये कहीं पनाह दे दी जाए और वे अल्लाह के ग़ज़ब की गिरफ़्त में आ गए और उन पर मोहताजी मुसल्लत कर दी गई है. यह इसलिए है कि वे अल्लाह की आयतों से कुफ़्र करते थे और नबियों को नाहक़ क़त्ल करते थे. यह इसलिए भी है कि उन्होंने नाफ़रमानी की और सरकशी में हद से गुज़र गए थे.
113. ये सब अहले किताब एक जैसे नहीं हैं. उनमें से एक उम्मत हक़ पर क़ायम है. वे लोग रात के वक़्त अल्लाह की आयतें पढ़ते हैं और सजदे करते हैं.
114. वे अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हैं और अच्छे काम करने का हुक्म देते हैं और बुरे कामों से रोकते हैं और वे नेक कामों में तेज़ी से बढ़ते हैं और यही लोग नेक बन्दों में से हैं.
115. और वे लोग जो भी अच्छे काम करेंगे, उसकी हरगिज़ नाक़द्री नहीं की जाएगी और अल्लाह परहेज़गारों को ख़ूब जानता है.
116. बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र किया है, अल्लाह के अज़ाब से बचाने में न उनका माल उनके कुछ काम आएगा और न उनकी औलाद ही कुछ काम आएगी. और यही लोग असहाबे दोज़ख़ हैं, जो उसमें हमेशा रहेंगे.
117. वे लोग दुनियावी ज़िन्दगी में जो भी माल ख़र्च करते हैं, उसकी मिसाल उस हवा की मानिन्द है, जिसमें बहुत पाला हो और उस क़ौम के खेतों पर पड़ जाए, जो ख़ुद पर ज़ुल्म करती हो और फिर उसे हलाक कर दे. और अल्लाह ने उन पर कोई ज़ुल्म नहीं किया, बल्कि वे ख़ुद ही अपनी जानों पर ज़ुल्म करते रहे. 
118. ऐ ईमान वालो ! अपने सिवा तुम किसी ग़ैर को अपना राज़दार न बनाओ. वे तुम्हें नुक़सान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते. वे तुम्हें सख़्त तकलीफ़ पहुंचाना चाहते हैं. उनकी दुश्मनी उनकी ज़बानों से ज़ाहिर हो चुकी है और जो बुग़्ज़ उनके दिलों में छुपा हुआ है वह उससे भी कहीं बढ़कर है. हमने तुम्हारे लिए निशानियां वाज़ेह कर दी हैं. अगर तुम समझते हो.
119. सुनो ! तुम वे लोग हो कि उनसे उलफ़त रखते हो और वह तुम्हें ज़रा भी पसंद नहीं करते. हालांकि तुम सब आसमानी किताबों पर ईमान रखते हो और जब वे तुमसे मिलते हैं, तो कहते हैं कि हम ईमान ले आए हैं और जब अकेले होते हैं तो ग़ुस्से से उंगलियां काटते हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि तुम अपने ग़ुस्से में मर जाओ. बेशक अल्लाह दिलों में पोशीदा राज़ों से भी खू़ब वाक़िफ़ है.
120. अगर तुम्हें कोई भलाई पहुंचती है, तो उन्हें बुरा लगता है और तुम्हारा कुछ बुरा होता है, तो उन्हें ख़ुशी होती है. और अगर तुम सब्र करते रहो और परहेज़गारी इख़्तियार कर लो, तो उनका फ़रेब तुम्हें कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकेगा. जो कुछ वे कर रहे हैं बेशक अल्लाह उन्हें अपने अहाते में लिए हुए है.
121. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब तुम सुबह सवेरे अपने घर से निकल पड़े और मोमिनों को जंग के मोर्चों पर बिठा रहे थे. और अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
122. जब तुम में से दो तबक़ों बनू सलमा और बनू हारिसा ने हिम्मत हार कर वापस लौटने का इरादा किया. हालांकि अल्लाह उनका मददगार था और मोमिनों को अल्लाह पर ही भरोसा करना चाहिए.
123. और अल्लाह ने जंगे बदर में तुम्हारी मदद की. हालांकि तुम दुश्मन के मुक़ाबले में बहुत कमज़ोर थे. फिर तुम अल्लाह से डरो, ताकि तुम उसके शुक्रगुज़ार रहो.  
124. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जब तुम मोमिनों से कह रहे थे कि क्या तुम्हारे लिए यह काफ़ी नहीं है कि तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारी मदद के लिए आसमान से तीन हज़ार फ़रिश्ते नाज़िल करे.
125. क्यों नहीं. अगर तुम सब्र करते रहो और परहेज़गारी इख़्तियार करो और वे काफ़िर तुम पर फ़ौरन हमला कर दें, तो तुम्हारा परवरदिगार ऐसे पांच हज़ार जंग के निशान वाले फ़रिश्तों के ज़रिये तुम्हारी मदद करेगा.
126. और अल्लाह ने यह मदद सिर्फ़ तुम्हारी ख़ुशी के लिए की है और इसलिए कि इससे तुम्हारे दिल मुतमईन हो जाएं. और मदद तो सिर्फ़ अल्लाह ही की तरफ़ से होती है, जो बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
127. और यह मदद इसलिए भी की गई कि अल्लाह कुफ़्र करने वाले लोगों के एक तबक़े को हलाक कर दे या उन्हें ज़लील कर दे कि वे नाकाम होकर लौट जाएं. 
128. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम्हारा इस काम से कोई ताल्लुक़ नहीं. चाहे अल्लाह उन्हें तौबा की तौफ़ीक़ दे या उन्हें अज़ाब दे, क्योंकि वे ज़ालिम हैं.
129. और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है सब अल्लाह ही का है. वह जिसे चाहे बख़्श दे और जिसे चाहे अज़ाब दे. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
130. ऐ ईमान वालो ! दोगुना और चौगुना करके ब्याज़ न खाया करो और अल्लाह से डरा करो, ताकि तुम कामयाबी पाओ.  
131. और दोज़ख़ की उस आग से डरो, जो काफ़िरों के लिए तैयार की गई है.
132. और अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो, ताकि तुम पर रहम किया जाए.
133. और अपने परवरदिगार की मग़फ़िरत और उसकी जन्नत की तरफ़ तेज़ी से बढ़ो, जिसकी कुशादगी में तमाम आसमान और ज़मीन आ जाते हैं, जो परहेज़गारों के लिए बनाई गई है.  
134. यही वे लोग हैं, जो ख़ुशहाली और तकलीफ़ दोनों ही हालात में अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं और ग़ुस्से को ज़ब्त करते हैं और लोगों की ख़ताओं को दरगुज़र करते हैं. और अल्लाह मोहसिनों से मुहब्बत करता है.
135. और ये वे लोग हैं कि जब कोई बुराई कर बैठते हैं या ख़ुद पर ज़ुल्म करते हैं, तो अल्लाह का ज़िक्र करते हैं. फिर अपने गुनाहों की बख़्शीश मांगते हैं और अल्लाह के सिवा गुनाहों का बख़्शने वाला कौन है और फिर जो गुनाह वे नागहानी कर बैठे थे, उन पर जानबूझ कर इसरार नहीं करते. 
136. ये वे लोग हैं, जिनकी जज़ा उनके परवरदिगार की तरफ़ से मग़फ़िरत है और जन्नत के बाग़ हैं, जिनके नीचे नहरें बहती हैं और वे उनमें हमेशा रहेंगे. और अच्छे काम करने वालों का कितना अच्छा अज्र है. 
137. तुमसे पहले बहुत से वाक़िआत गुज़र चुके हैं. फिर तुम ज़मीन में चल फिर देखो कि हक़ को झुठलाने वालों का क्या अंजाम हुआ.
138. यह क़ुरआन आम लोगों के लिए वाज़ेह बयान है और परहेज़गारों के लिए हिदायत और नसीहत है.
139. ऐ मुसलमानो ! और तुम हिम्मत न हारो और जंगे उहुद की शिकस्त पर ग़म न करो और तुम ही ग़ालिब रहोगे. अगर तुम ईमान वाले हो.
140. अगर जंगे उहुद में तुम्हें कोई ज़ख़्म लगा है, तो याद रखो कि उस क़ौम को भी जंगे बदर में ऐसा ही ज़ख़्म लग चुका है. और ये गर्दिश के दिन हैं, जिन्हें हम लोगों के दरम्यान फेरते रहते हैं. और यह इसलिए है कि अल्लाह ईमान वाले लोगों की पहचान करा दे और तुम में से कुछ को शहादत का दर्जा अता करे और अल्लाह ज़ालिमों को पसंद नहीं करता.  
141. और यह इसलिए भी है कि अल्लाह ईमान वालों को मज़ीद पाक साफ़ कर दे और काफ़िरों को मिटा दे. 
142. ऐ मुसलमानो ! क्या तुम यह गुमान करते हो कि तुम यूं ही जन्नत में दाख़िल हो जाओगे. हालांकि अभी अल्लाह ने तुम में से जिहाद करने वालों को आज़माया ही नहीं है और न सब्र करने वालों को जाना यानी ज़ाहिर किया है. 
143. और तुम तो मौत का सामना करने से पहले ही शहादत की तमन्ना करते थे. फिर अब तुमने उसे अपनी आंखों के सामने देख लिया है.
144. और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक रसूल हैं. और उनसे पहले कई रसूल गुज़रे हैं. फिर अगर वे वफ़ात पा जाएं या शहीद कर दिए जाएं, तो क्या तुम अपने कुफ़्र की तरफ़ उलटे पांव पलट जाओगे. और जो उलटे पांव फिरेगा, तो वह हरगिज़ अल्लाह को कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकता और अनक़रीब अल्लाह शुक्रगुज़ारों को उनकी जज़ा देगा. 
145. और कोई शख़्स अल्लाह के हुक्म के बग़ैर नहीं मर सकता. उसकी मौत का वक़्त लिखा हुआ है. और जो शख़्स दुनिया में ईनाम चाहता है, तो हम उसे उसमें से दे देते हैं और जो आख़िरत का ईनाम चाहता है, तो हम उसे उसमें से दे देते हैं. और हम अनक़रीब शुक्रगुज़ारों को उनकी जज़ा देंगे. 
146. और बहुत से नबी ऐसे गुज़रे हैं, जिनके साथ अल्लाह वालों ने भी जिहाद किया है. उन्होंने अल्लाह की राह में आने वाली मुसीबतों से न हिम्मत हारी और न कमज़ोर पड़े और न झुके. और अल्लाह सब्र करने वालों से मुहब्बत करता है.
147. और उनका कहना कुछ न था सिवाय इस दुआ के कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमारे गुनाह बख़्श दे और हमारे काम में हमसे होने वाली हमारी ज़्यादतियों को दरगुज़र कर दे और हमें अपनी राह में साबित क़दम रख और हमें काफ़िर क़ौम के मुक़ाबले में हमारी मदद फ़रमा. 
148. फिर अल्लाह ने उन्हें दुनिया में भी सवाब दिया और आख़िरत में भी उनके लिए सवाब है. और अल्लाह  मोहसिनों से मुहब्बत करता है.
149. ऐ ईमान वालो ! अगर तुमने कुफ़्र करने वाले लोगों की पैरवी की, तो वे तुम्हें उलटे पांव कुफ़्र की तरफ़ फेर देंगे. फिर तुम नुक़सान उठाने वालों में से हो जाओगे.
150. बल्कि अल्लाह तुम्हारा मौला है और वह सबसे बेहतरीन मदद करने वाला है. 
151. हम अनक़रीब कुफ़्र करने वाले लोगों के दिलों में तुम्हारा रौब डाल देंगे, क्योंकि उन्होंने उस चीज़ को अल्लाह का शरीक ठहराया, जिसके लिए अल्लाह ने कोई सनद नाज़िल नहीं की. और उनका ठिकाना दोज़ख़ है और ज़ालिमों का बहुत बुरा ठिकाना है.
152. और बेशक अल्लाह ने तुम्हें जंगे उहुद में भी अपना फ़तह का वादा सच कर दिखाया, जब तुम उसके हुक्म से दुश्मनों को क़त्ल कर रहे थे, यहां तक कि जब तुमने हिम्मत हारी और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म के बारे में झगड़ने लगे और तुमने उसके बाद उनकी नाफ़रमानी की, जबकि अल्लाह ने तुम्हें वह फ़तह दिखा दी थी, जो तुम चाहते थे. तुममें से कोई दुनिया का तलबगार था, तो कोई आख़िरत चाहता था. फिर उसने तुम्हें उनसे फेर दिया, ताकि वह तुम्हें आज़माये. फिर उसने तुम्हें मुआफ़ कर दिया. और अल्लाह मोमिनों पर फ़ज़ल करने वाला है.
153. ऐ मुसलमानो ! जब तुम भागकर पहाड़ पर चढ़े जा रहे थे और किसी को मुड़कर भी नहीं देख रहे थे. और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस जमात में खड़े तुम्हें पुकार रहे थे, जो तुम्हारे पीछे साबित क़दम थी. फिर अल्लाह ने तुम्हें ग़म के बदले ग़म दिया, ताकि जब कभी तुम्हारी कोई चीज़ हाथ से जाती रहे या कोई मुसीबत आन पड़े तो तुम रंज न करो और अल्लाह उन आमाल से बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.  
154. फिर अल्लाह ने ग़म के बाद तुम पर पुरसुकून नींद तारी कर दी थी, जो तुम में से एक तबक़े पर छा गई और एक तबक़े को सिर्फ़ अपनी जानों की फ़िक्र थी. वे अल्लाह के बारे में नाहक़ बदगुमानी करते थे. वे जहालत की बदगुमानी करते हुए कहने लगे कि क्या इस काम में हमारे लिए भी कुछ इख़्तियार है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि सब काम अल्लाह ही के हाथ में हैं. वे अपने दिलों में वह बातें पोशीदा रखे हुए हैं, जो तुम पर ज़ाहिर नहीं होने देते. वे कहते हैं कि अगर इस काम में हमारा भी कुछ इख़्तियार होता, तो हम इस जगह क़त्ल न किए जाते. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगर तुम अपने घरों में भी होते तब भी जिनका क़त्ल होना लिखा जा चुका है, वे ज़रूर अपनी क़त्ल्गाहों की तरफ़ निकल कर आ जाते. और यह इसलिए किया गया है कि जो कुछ तुम्हारे दिलों में है अल्लाह उसे आज़माये और जो वसवसे तुम्हारे दिलों में हैं उन्हें ख़ूब साफ़ कर दे. और अल्लाह दिलों में पोशीदा राज़ों से भी ख़ूब वाक़िफ़ है.
155. बेशक जो लोग तुम में से उस दिन पीठ फेरकर भाग खड़े हुए थे जब दोनों लश्करों का आपस में मुक़ाबला हुआ था, तो शैतान ने उनके किसी अमल की वजह से उन्हें बहका दिया था. और अल्लाह ने उन्हें मुआफ़ कर दिया. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा हलीम है.
156. ऐ ईमान वालो ! तुम उन काफ़िरों की तरह न हो जाओ, जो अपने भाइयों के बारे में यह कहते हैं कि जो सफ़र पर गए हों या जिहाद कर रहे हों और वहां मर जाएं कि अगर वे हमारे पास होते, तो न मरते और न क़त्ल किए जाते. वे ऐसा इसलिए कहते हैं कि अल्लाह इस गुमान को उनके दिलों में हसरत बना दे और अल्लाह ही ज़िन्दगी बख़्शता है और वही मौत देता है. और जो आमाल तुम करते हो, अल्लाह उसे देख रहा है.
157. और अगर तुम अल्लाह की राह में क़त्ल कर दिए जाओ या अपनी मौत मर जाओ, तो बेशक अल्लाह की मग़फ़िरत और रहमत उस माल व दौलत से कहीं बेहतर है, जो तुम जमा करते हो.
158. और अगर तुम अपनी मौत मर जाओ या क़त्ल कर दिए जाओ, तो तुम सब अल्लाह ही के हुज़ूर में जमा किए जाओगे. 
159. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर अल्लाह की कैसी रहमत है कि तुम उन लोगों के लिए नरम दिल हो. और अगर तुम बदमिज़ाज और सख़्त दिल होते, तो वे लोग तुम्हारे पास से भाग खड़े होते. फिर तुम उनसे दरगुज़र करो और उनके लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगो और अहम कामों में उनसे मशवरा कर लिया करो. फिर जब तुम पुख़्ता इरादा कर लो, तो अल्लाह पर भरोसा करो. बेशक अल्लाह भरोसा करने वालों से मुहब्बत करता है.
160. अगर अल्लाह तुम्हारी मदद करे, तो तुम पर कोई ग़ालिब नहीं आ सकता और अगर वह तुम्हें बेसहारा छोड़ दे तो फिर कौन ऐसा है, जो उसके बाद तुम्हारी मदद कर सके. और मोमिनों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए. 
161. और किसी भी नबी के लिए यह मुमकिन नहीं है कि वह कुछ छुपाये. और जो कोई किसी का हक़ छुपाएगा, तो क़यामत के दिन उसे वह लाना होगा, जो उसने छुपाया होगा. फिर हर शख़्स को उसके किए का पूरा बदला दिया जाएगा और उन पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा. 
162. भला जो शख़्स अल्लाह की ख़ुशनूदी की पैरवी करता हो, क्या उस जैसा हो सकता है जो अल्लाह के ग़ज़ब की गिरफ़्त में हो और जिसका ठिकाना जहन्नुम है और वह बहुत बुरा ठिकाना है.
163. अल्लाह के नज़दीक उन लोगों के मुख़्तलिफ़ दर्जात हैं और अल्लाह उन आमाल को ख़ूब देख रहा है, जो वे किया करते हैं. 
164. बेशक अल्लाह ने मोमिनों पर बड़ा अहसान किया कि उनके दरम्यान उन्हीं में से एक रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भेजा, जो उनके सामने अल्लाह की आयतें पढ़ते हैं और उन्हें पाक करते हैं और उन्हें अल्लाह की किताब यानी क़ुरआन और हिकमत की तालीम देते हैं. अगरचे वे लोग इससे पहले सरीह गुमराही में मुब्तिला थे.
165. क्या जब तुम पर जंगे उहुद में वह एक मुसीबत आन पड़ी, जिससे दोगुनी तुम जंगे बदर में काफ़िरों पर डाल चुके थे, तो तुम कहने लगे कि यह आफ़त कहां से आ गई? ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि यह तुम्हारी अपनी ही तरफ़ से है. यानी ये नाफ़रमानी की सज़ा है. बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
166. और उस दिन तुम्हें जो तकलीफ़ पहुंची, जब दोनों जमातों में आपस में मुक़ाबला हुआ था, तो वह अल्लाह ही के हुक्म से था, ताकि अल्लाह मोमिनों की पहचान करा दे.
167. और ऐसे लोगों की भी पहचान करा दे, जो मुनाफ़िक़ हैं. और जब उनसे कहा गया कि आओ अल्लाह की राह में जंग करो या दुश्मन के हमले से हिफ़ाज़त करो, तो वे कहने लगे कि अगर हम जानते कि जंग होगी, तो ज़रूर तुम्हारा साथ देते. उस दिन वे ज़ाहिरी ईमान की निस्बत कुफ़्र के ज़्यादा क़रीब थे. वे अपने मुंह से वह बातें कह देते हैं, जो उनके दिलों में नहीं होतीं और अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है, जो कुछ वे छुपाते हैं.
168. यही वे लोग हैं, जो घरों में बैठे अपने शहीद भाइयों के बारे में कहते हैं कि अगर उन्होंने हमारा कहना माना होता, तो मारे नहीं जाते. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि तुम ख़ुद को मौत से बचा लो. अगर तुम सच्चे हो. 
169. और जो लोग अल्लाह की राह में शहीद किए गए उन्हें हरगिज़ मुर्दा न समझना, बल्कि वे ज़िन्दा हैं और उन्हें उनके परवरदिगार की बारगाह से रिज़्क़ दिया जाता है. 
170. वे उससे ख़ुश हैं, जो अल्लाह ने उन्हें अपने फ़ज़ल से अता किया है. और जो लोग उनके पीछे रह गए और उनमें शामिल नहीं हुए, उन्हें भी राहे हक़ पर देखकर ख़ुश होते हैं कि क़यामत के दिन उन्हें भी न कोई ख़ौफ़ होगा और न वे ग़मगीन होंगे.
171. वे लोग अल्लाह की नेअमत और उसके फ़ज़ल से ख़ुश रहते हैं और इस पर भी कि अल्लाह मोमिनों के अज्र को ज़ाया नहीं करता.
172. जिन लोगों ने जंगे उहुद में जख़्म खाने के बाद भी अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म पर लब्बैक कहा, ऐसे अहसान करने वाले और परहेज़गार लोगों के लिए बड़ा अज्र है.
173. यही वे लोग हैं, जिनसे लोगों ने कहा कि दुश्मन तुम्हारे मुक़ाबले में बड़ी तादाद में जमा हो चुके हैं, इसलिए उनसे डरो, तो इससे उनके ईमान में मज़ीद इज़ाफ़ा हो गया और वे कहने लगे कि हमारे लिए अल्लाह ही काफ़ी है और वह बेहतरीन कारसाज़ है. 
174. फिर वे मुसलमान अल्लाह की नेअमत और फ़ज़ल के साथ वापस आ गए और उन्हें किसी भी तरह की कोई तकलीफ़ नहीं पहुंची और उन्होंने अल्लाह की ख़ुशनूदी की पैरवी की. और अल्लाह बड़ा फ़ज़ल करने वाला है.
175. बेशक यह मुख़बिर शैतान ही है, जो तुम्हें अपने दोस्तों यानी काफ़िरों से ख़ौफ़ज़दा करता है. फिर तुम उनसे ख़ौफ़ न रखो और हमसे ख़ौफ़ज़दा रहो. अगर तुम ईमान वाले हो.
176. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम उनसे ग़मगीन न हो, जो लोग कुफ़्र में तेज़ी करने वाले हैं.
बेशक वे अल्लाह के दीन को कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकते और अल्लाह चाहता है कि उनके लिए आख़िरत में कोई हिस्सा न रखे और उनके लिए बड़ा सख़्त अज़ाब है.
177. बेशक जिन लोगों ने ईमान के बदले कुफ़्र ख़रीद लिया है, वे अल्लाह का कुछ भी नुक़सान नहीं कर सकते और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है.
178. और कुफ़्र करने वाले लोग हरगिज़ यह गुमान न करें कि हम उन्हें जो मोहलत दे रहे हैं वह उनके लिए बेहतर है. दरअसल हम तो यह मोहल्लत सिर्फ़ इसलिए दे रहे हैं कि वे गुनाहों में आगे बढ़ जाएं और उनके लिए ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब है.
179. ऐ लोगो ! अल्लाह मुसलमानों को हरगिज़ उस हाल में नहीं छोड़ेगा, जिस हाल में तुम हो, यहां तक कि वह पाक को नापाक से जुदा न कर दे. और अल्लाह के शायाने शान नहीं हैं कि तुम्हें ग़ैब की ख़बर दे, लेकिन अल्लाह अपने रसूलों में से जिसे चाहे ग़ैब के इल्म के लिए मुंतख़िब कर लेता है. फिर तुम अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ. और अगर तुम ईमान ले आओ और परहेज़गारी इख़्तियार करो, तो तुम्हारे लिए बड़ा अज्र है.
180. और जो लोग उस माल व दौलत में से देने में बुख़्ल करते हैं, जो अल्लाह ने उन्हें अपने फ़ज़ल से अता किया है, तो वे हरगिज़ इस बुख़्ल को अपने लिए बेहतर गुमान न करें, बल्कि यह उनके लिए बदतर है. अनक़रीब क़यामत के दिन उसका तौक़ बनाकर उनके गले में पहनाया जाएगा, जिसमें वे बुख़्ल करते थे. और अल्लाह ही आसमानों और ज़मीन का वारिस है. और अल्लाह उन आमाल से बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.
181. बेशक अल्लाह ने उन लोगों की बात सुन ली, जो कहते हैं कि अल्लाह फ़क़ीर है और हम ग़नी हैं. अब हम उनकी सारी बातें और उन नबियों को नाहक़ क़त्ल करना भी लिख लेते हैं और क़यामत के दिन हम कहेंगे कि अब तुम जलाने वाले अज़ाब का ज़ायक़ा चखो.
182. यह उन आमाल का बदला है, जो तुम्हारे हाथ ख़ुद ही आगे भेज चुके हैं. और बेशक अल्लाह अपने बन्दों पर ज़ुल्म नहीं करता. 
183. जो लोग यह कहते हैं कि अल्लाह ने हमसे यह अहद लिया है कि हम किसी रसूल पर ईमान न लाएं, यहां तक कि वह अपनी रिसालत के सबूत के तौर पर ऐसी क़ुर्बानी न लाए, जिसे आग आकर खा जाए. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक मुझसे पहले बहुत से रसूल वाजे़ह निशानियां लेकर तुम्हारे पास आए और उस निशानी के साथ भी आए जो तुम कह रहे हो. फिर तुमने उन्हें शहीद क्यों किया. अगर तुम सच्चे हो. 
184. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर भी अगर वे लोग तुम्हें झुठलाएं, तो तुम रंज न करो. तुमसे पहले भी बहुत से रसूलों को झुठलाया गया है, जो वाज़ेह निशानियां और ज़ुबूर और नूरानी किताब लेकर आए थे. 
185. हर जान को मौत का ज़ायक़ा चखना है और बेशक तुम्हारा अज्र क़यामत के दिन दिया जाएगा. फिर जो कोई दोज़ख़ से बचा लिया गया और जन्नत में दाख़िल किया गया, वह वाक़ई कामयाब हो गया. और दुनियावी ज़िन्दगी धोखे के सिवा कुछ भी नहीं है.
186. ऐ मुसलमानो ! तुम्हें तुम्हारे मालों और जानों में ज़रूर आज़माया जाएगा और जिन लोगों को तुमसे पहले किताबें यानी ज़ुबूर और तौरात और इंजील दी जा चुकी हैं, उनसे और मुशरिकों से तुम्हें अज़ीयतनाक बातें सुननी पड़ेंगी और अगर तुम सब्र करो और परहेज़गारी इख़्तियार करो, तो ये बड़ी हिम्मत के कामों में से हैं.
187. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब अल्लाह ने उन लोगों से पुख़्ता अहद लिया, जिन्हें किताब दी गई थी कि तुम ज़रूर उसे लोगों से साफ़-साफ़ बयान कर देना और जो कुछ इसमें बयान किया गया है, उसे नहीं छुपाना, तो उन्होंने इस अहद को अपनी पीठ के पीछे फ़ेंक दिया और उसके बदले में थोड़ी सी क़ीमत हासिल कर ली. फिर यह उनकी बहुत बुरी ख़रीदारी है.
188. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम ऐसे लोगों को हरगिज़ निजात पाने वाला न समझो, जो अपनी कारस्तानी पर ख़ुश होते हैं और बग़ैर कुछ किए अपनी तारीफ़ चाहते हैं. फिर तुम उन्हें हरगिज़ अज़ाब से निजात पाने वाला न समझो. और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है.
189. और तमाम आसमानों और ज़मीन की बादशाहत अल्लाह ही की है और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
190. बेशक आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ में और रात और दिन के आने जाने में अक़्लमंदों के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं.
191. यही वे लोग हैं, जो उठते-बैठते और करवटें बदलते हुए यानी हर हाल में अल्लाह का ज़िक्र करते रहते हैं और आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ में ग़ौर व फ़िक्र करते रहते हैं और बेसाख़्ता कह उठते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! तूने सबकुछ बिना हिकमत और बिना तदबीर के नहीं बनाया है. तू पाक है. फिर तू हमें दोज़ख़ के अज़ाब से बचा ले. 
192. ऐ हमारे परवरदिगार ! बेशक तू जिसे दोज़ख़ में डाल दे, तो तूने उसे वाक़ई रुसवा कर दिया और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं है. 
193. ऐ हमारे परवरदिगार ! बेशक हमने एक आवाज़ देने वाले पैग़म्बर को सुना, जो ईमान की आवाज़ दे रहा था कि ऐ लोगो ! अपने परवरदिगार पर ईमान लाओ, तो हम ईमान ले आए. ऐ हमारे परवरदिगार ! अब हमारे गुनाह बख़्श दे और हमारी ख़ताओं को हमारे आमालनामे से मिटा दे और हमें नेक बन्दों के साथ मौत देना. 
194. और ऐ हमारे परवरदिगार ! और हमें वह सबकुछ अता कर, जो तूने हमसे अपने रसूलों के ज़रिये वादा किया है और हमें क़यामत के दिन रुसवा न करना. बेशक तू अपने वादे की ख़िलाफ़वर्ज़ी नहीं करता.
195. फिर उनके परवरदिगार ने उनकी दुआ क़ुबूल कर ली और उनसे फ़रमाया कि हम तुम में से किसी मेहनत करने वाले की मज़दूरी ज़ाया नहीं करते चाहे मर्द हो या औरत. तुम सब एक दूसरे के जिन्स से हो. फिर जिन लोगों ने अल्लाह की राह में हिजरत की और जो अपने घरों से निकाल दिए गये और हमारी राह में अज़ीयतें उठाईं और हमारे लिए जंग की और शहीद हो गए, हम ज़रूर उनके गुनाह उनके आमालनामे से मिटा देंगे और उन्हें यक़ीनन जन्नत के उन बाग़ों में दाख़िल करेंगे, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. यह अल्लाह की तरफ़ से सवाब है और   
उसके पास कितना अच्छा सवाब है.
196. कुफ़्र करने वाले लोगों का ख़ुशहाली के साथ शहरों में चलना फिरना तुम्हें धोखे में मुब्तिला न कर दे. 
197. यह मामूली सा साजो सामान है. फिर उनका ठिकाना जहन्नुम ही है और वह बहुत बुरा ठिकाना है.
198. लेकिन जो लोग अपने परवरदिगार से डरते रहे उनके लिए जन्नत के बाग़ हैं, जिनके नीचे नहरें बहती हैं और वे उनमें हमेशा रहेंगे. यह अल्लाह की तरफ़ से उनकी मेहमानी है और जो कुछ अल्लाह के पास है, वह नेक लोगों के लिए दुनिया से कहीं बेहतर है.
199. और बेशक अहले किताब में से कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अल्लाह पर ईमान लाते हैं और उस किताब पर भी ईमान लाते हैं, जो तुम्हारी तरफ़ नाज़िल की गई है और उनके दिल आजिज़ी करते हुए अल्लाह की बारगाह में झुके रहते हैं और वे अल्लाह की आयतों के बदले थोड़ी सी क़ीमत वसूल नहीं करते. यही वे लोग हैं, जिनका अज्र उनके परवरदिगार के पास है. बेशक अल्लाह अनक़रीब हिसाब करने वाला है.
200. ऐ ईमान वालो ! तुम सब्र करो और साबित क़दम रहो और दुश्मनों के मुक़ाबले में ज़्यादा मेहनत करो और जिहाद के लिए तैयारी करो और अल्लाह से डरो, ताकि तुम कामयाबी पाओ.

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