Thursday, August 5, 2021

49 सूरह अल हुजुरात

सूरह अल हुजुरात मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 18 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ ईमान वालो ! किसी भी मामले में अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से आगे न बढ़ा करो और अल्लाह से डरते रहो. बेशक अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
2. ऐ ईमान वालो ! तुम अपनी आवाज़ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आवाज़ से बुलंद न किया करो और उनके साथ इस तरह बुलंद आवाज़ में बात भी न किया करो, जिस तरह तुम आपस में एक दूसरे से बुलंद आवाज़ में बात करते हो. कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे तमाम आमाल बर्बाद हो जाए और तुम्हें इसका शऊर भी न हो.
3. बेशक जो लोग अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में अपनी आवाज़ें धीमी रखते हैं, यही वे लोग हैं, जिनके दिलों को अल्लाह ने तक़वे के लिए मुंतख़िब करके ख़ालिस कर लिया है. उनके लिए मग़फिरत और बड़ा अज्र है.
4. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक जो लोग तुम्हें हुजरों के बाहर से आवाज़ देते हैं, उन्हें तुम्हारे आला मर्तबे और ताज़ीम की समझ नहीं है.
5. और अगर वे लोग इतना सब्र करते कि तुम ख़ुद ही उनके पास बाहर आ जाते, तो यह उनके लिए बेहतर था. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
6. ऐ ईमान वालो ! अगर तुम्हारे पास कोई बदकार कोई ख़बर लेकर आए, तो ख़ूब तहक़ीक़ कर लिया करो. कहीं ऐसा न हो कि जहालत में तुम किसी क़ौम को नुक़सान पहुंचा बैठो और फिर तुम्हें अपने किए पर नादिम होना पड़े.
7. और जान लो कि तुम्हारे बीच में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मौजूद हैं. अगर वे बहुत से कामों में तुम्हारा कहना मान लें, तो तुम ज़रूर मुश्किल में पड़ जाओ. लेकिन अल्लाह ने तुम्हें ईमान की मुहब्बत अता की है और उसे तुम्हारे दिलों में बसा दिया है. और तुम्हें कुफ़्र और बदकारी और नाफ़रमानी से बेज़ार कर दिया है. ऐसे ही लोग सीधे रास्ते पर हैं. 
8. यह सब अल्लाह के फ़ज़ल और उसकी नेअमत की वजह से है. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
9. और अगर मोमिनों के दो फ़िरक़े आपस में जंग करें, तो उनके दरम्यान सुलह करा दिया करो. फिर अगर उनमें से एक फ़िरक़ा दूसरे पर ज़्यादती करे, तो उससे यहां तक लड़ो कि वह अल्लाह के हुक्म की तरफ़ रुजू करे. फिर अगर वह रुजू कर ले, तो उनके दरम्यान इंसाफ़ के साथ सुलह करा दो. बेशक अल्लाह इंसाफ़ करने वालों को पसंद करता है.
10. बेशक सब मोमिन आपस में भाई-भाई हैं. इसलिए तुम अपने दो भाइयों के दरम्यान सुलह करा दिया करो और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम पर रहम किया जाए.
11. ऐ ईमान वालो ! कोई क़ौम किसी क़ौम का मज़ाक़ न उड़ाए. मुमकिन है कि वे लोग मज़ाक़ उड़ाने वाले लोगों से बेहतर हों. इसी तरह औरतें भी दूसरी औरतों का मज़ाक़ न उड़ाएं. मुमकिन है कि वे उनसे बेहतर हों. और न आपस में ताने दो और न एक दूसरे के बुरे नाम रखो. किसी के ईमान लाने के बाद बुरा नाम रखना गुनाह है. और जो तौबा न करें, तो वही लोग ज़ालिम हैं.
12. ऐ ईमान वालो ! बदगुमानी से बचा करो. बेशक बाज़ बदगुमानी गुनाह है. और एक दूसरे के राज़ तलाशने की कोशिश न किया करो और न किसी की ग़ीबत करो. क्या तुममें से कोई इस बात को पसंद करेगा कि अपने मुर्दा भाई का गोश्त खाए. इसलिए तुम ज़रूर इस बात से नफ़रत करोगे. अल्लाह से डरो. बेशक अल्लाह तौबा क़ुबूल करने वाला बड़ा मेहरबान है.
13. ऐ लोगो ! हमने तुम्हें एक मर्द और एक औरत से पैदा किया. और हमने तुम्हें क़ौमों और क़बीलों में तक़सीम किया, ताकि तुम एक दूसरे को पहचान सको. बेशक अल्लाह के नज़दीक तुममें ज़्यादा बाइज़्ज़त वह है, जो ज़्यादा परहेज़गार है. बेशक अल्लाह ख़ूब जानने वाला बड़ा बाख़बर है.
14. अरब के देहाती लोग कहते हैं कि हम ईमान लाए हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि हक़ीक़त में तुम ईमान नहीं लाए, बल्कि यूं कहो कि तुमने इस्लाम क़ुबूल किया है. हालांकि ईमान का अभी तक तुम्हारे दिल में गुज़र हुआ ही नहीं. और अगर तुम अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो, तो अल्लाह तुम्हारे आमाल में से कुछ भी कम नहीं करेगा. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
15. बेशक मोमिन तो सिर्फ़ वही लोग हैं, जो अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान लाए, फिर शक में मुब्तिला नहीं हुए और अल्लाह की राह में अपनी जान व माल से जिहाद करते रहे यानी अपनी जान व माल से अल्लाह की मख़लूक़ की मदद करते रहे. यही लोग सच्चे हैं.
16. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! उनसे कह दो कि क्या तुम अल्लाह को अपनी दीनदारी जता रहे हो. हालांकि अल्लाह वह सब जानता है, जो आसमानों में है और जो ज़मीन में है. और अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है.
17. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इस्लाम क़ुबूल करने वाले लोग तुम पर अहसान जताते हैं. तुम उनसे कह दो कि तुम अपने इस्लाम का मुझ पर अहसान न जताओ, बल्कि अल्लाह ने तुम पर अहसान किया है कि उसने तुम्हें ईमान का रास्ता दिखा दिया. अगर तुम सच्चे हो. 
18. बेशक अल्लाह आसमानों और ज़मीन की तमाम ग़ैब की बातें जानता है. और अल्लाह वह सब देख रहा है, जो कुछ तुम किया करते हो.

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