सूरह क़ाफ़ मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 45 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. क़ाफ़. क़सम है क़ुरआन मजीद की कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं.
2. बल्कि उन लोगों ने ताज्जुब किया कि उन्हीं में से अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करने वाला एक पैग़म्बर उनके पास आया है. फिर काफ़िर कहने लगे कि यह बड़ी अजीब शय है.
3. क्या जब हम मर जाएंगे और मिट्टी हो जाएंगे, तो फिर ज़िन्दा होंगे. यह वापसी तो हमारी समझ से परे है.
4. बेशक हम जानते हैं कि ज़मीन उनके जिस्मों को खाकर कितना कम करती है. और हमारे पास ऐसी किताब है, जिसमें सब महफ़ूज़ है.
5. बल्कि अजीब बात तो यह है कि जब हक़ यानी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और क़ुरआन उनके पास आया, तो उन्होंने उसे झुठला दिया. वे ख़ुद ही इज़्तिराब के काम में मुब्तिला हैं.
6. फिर क्या उन्होंने अपने ऊपर आसमान की तरफ़ नहीं देखा कि हमने उसे कैसे बनाया है और कैसे सजाया है. और उसमें कहीं कोई शिगाफ़ तक नहीं है.
7. और हमने ज़मीन को फैलाया और हमने उसमें पहाड़ रख दिए और हमने उसमें हर क़िस्म की ख़ुशनुमा चीज़ें उगाईं,
8. ये सब अल्लाह की तरफ़ रुजू करने वाले बन्दों के लिए बसीरत और नसीहत है.
9. और हमने आसमान से बरकत वाला पानी नाज़िल किया. फिर हमने उससे बाग़ उगाए और खेतों से अनाज उगाया.
10. और खजूर के ऊंचे दरख़्त उगाए, जिनमें फलों के गुच्छे लगे हुए हैं.
11. ये सब बन्दों को रिज़्क़ देने के लिए पैदा किया है. और हमने इस पानी से मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा किया यानी बंजर ज़मीन को शादाब किया. इसी तरह क़यामत के दिन मुर्दों को ज़मीन से निकलना है.
12 इन मक्का के काफ़िरों से पहले नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम और ख़ंदक़ वालों और सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद ने अपने-अपने पैग़म्बरों को झुठलाया था.
13. और हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद और फ़िरऔन और लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम ने
14. और जंगल में रहने वाली शुऐब अलैहिस्सलाम की क़ौम और यमन के बादशाह असअद अबू करेब तुब्बा की क़ौम ने भी रसूलों को झुठलाया था. फिर उन पर हमारा अज़ाब का वादा साबित होकर रहा.
15. क्या हम पहली बार तख़लीक़ करके थक गए हैं, बल्कि वे लोग नई तख़लीक़ को लेकर शक में मुब्तिला हैं.
16. और बेशक हमने इंसान को पैदा किया है. और हम उन वसवसों को भी जानते हैं, जो उसके दिल में आते रहते हैं. और हम उसकी शह रग से भी ज़्यादा क़रीब हैं.
17. जब वह कोई काम करता है, तो उसके दायें बायें बैठे लिखने वाले दो फ़रिश्ते उसे लिख लेते हैं.
18. वह कोई बात कहने नहीं पाता कि उसके पास एक निगेहबान फ़रिश्ता पहले से ही लिखने के लिए तैयार रहता है.
19. और मौत की बेहोशी हक़ के साथ तारी होगी. ऐ इंसान ! यही वह चीज़ है, जिससे तू भागा करता था.
20. और जब सूर फूंका जाएगा, तो यही अज़ाब के वादे का दिन है.
21. और हर शख़्स हमारे हुज़ूर में इस तरह आएगा कि उसके साथ एक हांकने वाला फ़रिश्ता होगा और दूसरा उसके आमाल की गवाही देने वाला होगा.
22. हक़ीक़त में तू इस दिन से ग़फ़लत में था. फिर हमने तेरा ग़फ़लत का पर्दा हटा दिया, तो आज तेरी नज़र बड़ी तेज़ है.
23. और उसके साथ रहने वाला फ़रिश्ता कहेगा कि ये उसके आमाल हैं, जो मेरे पास लिखे हुए हैं.
24. तब हुक्म होगा कि तुम दोनों हर नाशुक्रे काफ़िर को जहन्नुम में डाल दो.
25. जो नेकी से रोकने वाला, हद से बढ़ने वाला और शक करने वाला है,
26. जिसने अल्लाह के साथ दूसरे सरपरस्त बना रखे थे. फिर उसे दोज़ख़ के सख़्त अज़ाब में डाल दो.
27. अब उसका दूसरा साथी शैतान कहेगा कि ऐ हमारे परवरदिगार ! मैंने इसे गुमराह नहीं किया था, बल्कि यह ख़ुद ही परले दर्जे की गुमराही में मुब्तिला था.
28. उनसे कहा जाएगा कि तुम लोग हमारे हुज़ूर में झगड़ा मत करो. हम तुम्हें पहले ही अज़ाब से ख़बरदार कर चुके हैं.
29. हमारी बारगाह में क़ौल बदला नहीं करते. और न हम बन्दों पर ज़ुल्म करने वाले हैं.
30. उस दिन हम जहन्नुम से कहेंगे कि क्या तू भर गई? और वह कहेगी कि क्या कुछ और भी हैं?
31. और जन्नत परहेज़गारों के बिल्कुल क़रीब कर दी जाएगी. वह उनसे ज़रा भी दूर नहीं होगी.
32. और उनसे कहा जाएगा कि यही वह जन्नत है, जिसका तुमसे वादा किया जाता था कि यह हर तौबा करने वाले और अपने ईमान की हिफ़ाज़त करने वाले के लिए है.
33. जो मेहरबान अल्लाह से ग़ायबाना ख़ौफ़ रखता है और अल्लाह की बारगाह में रुजू करने वाला दिल लेकर आता है.
34. उससे कहा जाएगा कि इस जन्नत में सलामती के साथ दाख़िल हो जाओ. यह दाइमी दिन है.
35. इस जन्नत में उनके लिए वे तमाम नेअमतें मौजूद होंगी, जिसकी वे ख़्वाहिश करेंगे. और हमारे पास इससे भी ज़्यादा है.
36. और हमने मक्का के काफ़िरों और मुशरिकों से पहले कितनी ही उम्मतों को हलाक कर दिया, जो क़ूवत में उनसे कहीं बढ़कर थीं. फिर उन्होंने तमाम शहरों को छान मारा था कि कहीं भागने की कोई जगह हो?
37. बेशक इसमें उस शख़्स के लिए नसीहत है, जो दिल रखता है या मुतावज्जे होकर सुनता है और वह मुशाहिद है.
38. और बेशक हमने आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरम्यान है, उस सबकी तख़लीक़ छह दिन में की है. और हमें ज़रा भी थकान नहीं हुई.
39. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम उस पर सब्र करो, जो कुछ वे काफ़िर कहते है. और तुम सूरज निकलने से पहले और सूरज छुपने से पहले अपने परवरदिगार की हम्दो सना की तस्बीह किया करो.
40. और रात में भी कुछ वक़्त तस्बीह करो और सजदों यानी नमाज़ों के बाद भी उसकी तस्बीह किया करो.
41. और सुनो, जिस दिन पुकारने वाला फ़रिश्ता इस्राफ़ील क़रीब की जगह से पुकारेगा.
42. जिस दिन लोग यक़ीनन एक ख़ौफ़नाक सख़्त चीख़ सुनेंगे, वही क़ब्रों से निकलने का दिन होगा.
43. बेशक हम ही ज़िन्दगी बख़्शते हैं और हम ही मौत देते हैं. सबको हमारी तरफ़ ही लौटना है.
44. जिस दिन उनके ऊपर से ज़मीन फट जाएगी और वे फ़ौरन निकल पड़ेंगे. उन्हें जमा करना हमारे लिए बहुत आसान है.
45. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हम ख़ूब जानते हैं, जो कुछ वे लोग कहते हैं. तुम उन पर जबर करने वाले नहीं हो. तुम उन्हें नसीहत करते रहो, जो हमारे अज़ाब के वादे से ख़ौफ़ रखते हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. क़ाफ़. क़सम है क़ुरआन मजीद की कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं.
2. बल्कि उन लोगों ने ताज्जुब किया कि उन्हीं में से अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करने वाला एक पैग़म्बर उनके पास आया है. फिर काफ़िर कहने लगे कि यह बड़ी अजीब शय है.
3. क्या जब हम मर जाएंगे और मिट्टी हो जाएंगे, तो फिर ज़िन्दा होंगे. यह वापसी तो हमारी समझ से परे है.
4. बेशक हम जानते हैं कि ज़मीन उनके जिस्मों को खाकर कितना कम करती है. और हमारे पास ऐसी किताब है, जिसमें सब महफ़ूज़ है.
5. बल्कि अजीब बात तो यह है कि जब हक़ यानी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और क़ुरआन उनके पास आया, तो उन्होंने उसे झुठला दिया. वे ख़ुद ही इज़्तिराब के काम में मुब्तिला हैं.
6. फिर क्या उन्होंने अपने ऊपर आसमान की तरफ़ नहीं देखा कि हमने उसे कैसे बनाया है और कैसे सजाया है. और उसमें कहीं कोई शिगाफ़ तक नहीं है.
7. और हमने ज़मीन को फैलाया और हमने उसमें पहाड़ रख दिए और हमने उसमें हर क़िस्म की ख़ुशनुमा चीज़ें उगाईं,
8. ये सब अल्लाह की तरफ़ रुजू करने वाले बन्दों के लिए बसीरत और नसीहत है.
9. और हमने आसमान से बरकत वाला पानी नाज़िल किया. फिर हमने उससे बाग़ उगाए और खेतों से अनाज उगाया.
10. और खजूर के ऊंचे दरख़्त उगाए, जिनमें फलों के गुच्छे लगे हुए हैं.
11. ये सब बन्दों को रिज़्क़ देने के लिए पैदा किया है. और हमने इस पानी से मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा किया यानी बंजर ज़मीन को शादाब किया. इसी तरह क़यामत के दिन मुर्दों को ज़मीन से निकलना है.
12 इन मक्का के काफ़िरों से पहले नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम और ख़ंदक़ वालों और सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद ने अपने-अपने पैग़म्बरों को झुठलाया था.
13. और हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद और फ़िरऔन और लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम ने
14. और जंगल में रहने वाली शुऐब अलैहिस्सलाम की क़ौम और यमन के बादशाह असअद अबू करेब तुब्बा की क़ौम ने भी रसूलों को झुठलाया था. फिर उन पर हमारा अज़ाब का वादा साबित होकर रहा.
15. क्या हम पहली बार तख़लीक़ करके थक गए हैं, बल्कि वे लोग नई तख़लीक़ को लेकर शक में मुब्तिला हैं.
16. और बेशक हमने इंसान को पैदा किया है. और हम उन वसवसों को भी जानते हैं, जो उसके दिल में आते रहते हैं. और हम उसकी शह रग से भी ज़्यादा क़रीब हैं.
17. जब वह कोई काम करता है, तो उसके दायें बायें बैठे लिखने वाले दो फ़रिश्ते उसे लिख लेते हैं.
18. वह कोई बात कहने नहीं पाता कि उसके पास एक निगेहबान फ़रिश्ता पहले से ही लिखने के लिए तैयार रहता है.
19. और मौत की बेहोशी हक़ के साथ तारी होगी. ऐ इंसान ! यही वह चीज़ है, जिससे तू भागा करता था.
20. और जब सूर फूंका जाएगा, तो यही अज़ाब के वादे का दिन है.
21. और हर शख़्स हमारे हुज़ूर में इस तरह आएगा कि उसके साथ एक हांकने वाला फ़रिश्ता होगा और दूसरा उसके आमाल की गवाही देने वाला होगा.
22. हक़ीक़त में तू इस दिन से ग़फ़लत में था. फिर हमने तेरा ग़फ़लत का पर्दा हटा दिया, तो आज तेरी नज़र बड़ी तेज़ है.
23. और उसके साथ रहने वाला फ़रिश्ता कहेगा कि ये उसके आमाल हैं, जो मेरे पास लिखे हुए हैं.
24. तब हुक्म होगा कि तुम दोनों हर नाशुक्रे काफ़िर को जहन्नुम में डाल दो.
25. जो नेकी से रोकने वाला, हद से बढ़ने वाला और शक करने वाला है,
26. जिसने अल्लाह के साथ दूसरे सरपरस्त बना रखे थे. फिर उसे दोज़ख़ के सख़्त अज़ाब में डाल दो.
27. अब उसका दूसरा साथी शैतान कहेगा कि ऐ हमारे परवरदिगार ! मैंने इसे गुमराह नहीं किया था, बल्कि यह ख़ुद ही परले दर्जे की गुमराही में मुब्तिला था.
28. उनसे कहा जाएगा कि तुम लोग हमारे हुज़ूर में झगड़ा मत करो. हम तुम्हें पहले ही अज़ाब से ख़बरदार कर चुके हैं.
29. हमारी बारगाह में क़ौल बदला नहीं करते. और न हम बन्दों पर ज़ुल्म करने वाले हैं.
30. उस दिन हम जहन्नुम से कहेंगे कि क्या तू भर गई? और वह कहेगी कि क्या कुछ और भी हैं?
31. और जन्नत परहेज़गारों के बिल्कुल क़रीब कर दी जाएगी. वह उनसे ज़रा भी दूर नहीं होगी.
32. और उनसे कहा जाएगा कि यही वह जन्नत है, जिसका तुमसे वादा किया जाता था कि यह हर तौबा करने वाले और अपने ईमान की हिफ़ाज़त करने वाले के लिए है.
33. जो मेहरबान अल्लाह से ग़ायबाना ख़ौफ़ रखता है और अल्लाह की बारगाह में रुजू करने वाला दिल लेकर आता है.
34. उससे कहा जाएगा कि इस जन्नत में सलामती के साथ दाख़िल हो जाओ. यह दाइमी दिन है.
35. इस जन्नत में उनके लिए वे तमाम नेअमतें मौजूद होंगी, जिसकी वे ख़्वाहिश करेंगे. और हमारे पास इससे भी ज़्यादा है.
36. और हमने मक्का के काफ़िरों और मुशरिकों से पहले कितनी ही उम्मतों को हलाक कर दिया, जो क़ूवत में उनसे कहीं बढ़कर थीं. फिर उन्होंने तमाम शहरों को छान मारा था कि कहीं भागने की कोई जगह हो?
37. बेशक इसमें उस शख़्स के लिए नसीहत है, जो दिल रखता है या मुतावज्जे होकर सुनता है और वह मुशाहिद है.
38. और बेशक हमने आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरम्यान है, उस सबकी तख़लीक़ छह दिन में की है. और हमें ज़रा भी थकान नहीं हुई.
39. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम उस पर सब्र करो, जो कुछ वे काफ़िर कहते है. और तुम सूरज निकलने से पहले और सूरज छुपने से पहले अपने परवरदिगार की हम्दो सना की तस्बीह किया करो.
40. और रात में भी कुछ वक़्त तस्बीह करो और सजदों यानी नमाज़ों के बाद भी उसकी तस्बीह किया करो.
41. और सुनो, जिस दिन पुकारने वाला फ़रिश्ता इस्राफ़ील क़रीब की जगह से पुकारेगा.
42. जिस दिन लोग यक़ीनन एक ख़ौफ़नाक सख़्त चीख़ सुनेंगे, वही क़ब्रों से निकलने का दिन होगा.
43. बेशक हम ही ज़िन्दगी बख़्शते हैं और हम ही मौत देते हैं. सबको हमारी तरफ़ ही लौटना है.
44. जिस दिन उनके ऊपर से ज़मीन फट जाएगी और वे फ़ौरन निकल पड़ेंगे. उन्हें जमा करना हमारे लिए बहुत आसान है.
45. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हम ख़ूब जानते हैं, जो कुछ वे लोग कहते हैं. तुम उन पर जबर करने वाले नहीं हो. तुम उन्हें नसीहत करते रहो, जो हमारे अज़ाब के वादे से ख़ौफ़ रखते हैं.
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