सूरह अल फ़तह मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 29 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक हमने तुम्हें रौशन फ़तह अता की.
2. ताकि अल्लाह तुम्हारी तुफ़ैल में माज़ी और हाल की उम्मत के गुनाह बख़्श दे. और तुम्हें अपनी तमाम नेअमतें अता करे और तुम्हारे लिए तुम्हारी उम्मत को सीधे रास्ते पर साबित क़दम रखे.
3. और अल्लाह तुम्हारी मदद करे और तुम्हें ग़ालिब रखे.
4. वह अल्लाह ही है, जिसने मोमिनों के दिलों में तस्कीन नाज़िल की, ताकि उनके ईमान पर मज़ीद ईमान का इज़ाफ़ा हो. और आसमानों और ज़मीन के तमाम लश्कर अल्लाह के हैं. अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
5. यह सब इसलिए कि वह मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों को जन्नत के बाग़ों में दाख़िल करे, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. वे हमेशा उसमें रहेंगे. और उनके गुनाहों को दरगुज़र कर दे. और यह अल्लाह के नज़दीक मोमिनों की बहुत बड़ी कामयाबी है.
6. और वह मुनाफ़िक़ मर्दों और मुनाफ़िक़ औरतों और मुशरिक मर्दों और मुशरिक औरतों को अज़ाब दे, जो अल्लाह लिए बदगुमानी रखते हैं. उन पर बुरी गर्दिश मुक़र्रर है और अल्लाह उन पर ग़ज़बनाक है. अल्लाह ने उन पर लानत की है और उनके लिए जहन्नुम को तैयार कर रखा है और वह बहुत बुरी जगह है.
7. और आसमानों और ज़मीन के तमाम लश्कर अल्लाह के हैं और अल्लाह बड़ा ग़ालिब और बड़ा हिकमत वाला है.
8. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक हमने तुम्हें गवाह और ख़ुशख़बरी देने वाला और ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर बनाकर भेजा है.
9. ताकि तुम अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान लाओ और उनके दीन की मदद करो और उनकी ताज़ीम करो और सुबह व शाम अल्लाह की तस्बीह करते रहो.
10. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक जो लोग तुमसे बैअत करते हैं, वे अल्लाह ही से बैअत करते हैं. उनके हाथों पर तुम्हारे हाथ की सूरत में अल्लाह का हाथ है. फिर जिसने अल्लाह से किए अहद को तोड़ा, तो उसने अपने बड़े अहद को तोड़ा. जिसने अल्लाह से किए अहद को पूरा किया, तो उसे अनक़रीब ही अल्लाह बहुत बड़ा अज्र देगा.
11. जो देहाती हुदैबिया के समझौते में शिरकत से पीछे रह गए थे, अनक़रीब वे तुमसे कहेंगे कि हमारे माल और घरवालों ने हमें मशग़ूल कर रखा था. इसलिए तुम हमारे लिए अल्लाह से मग़फ़िरत की दुआ मांगो. ये लोग अपनी ज़बानों से ऐसी बातें कहते हैं, जो उनके दिलों में नहीं हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि कौन है जो अल्लाह के फ़ैसले के ख़िलाफ़ तुम्हारे लिए किसी भी बात का इख़्तियार रखता हो. अगर अल्लाह ने तुम्हें नुक़सान पहुंचाने का इरादा किया हो या तुम्हें नफ़ा पहुंचाने का इरादा किया हो. बल्कि अल्लाह उन आमाल से ख़ूब बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.
12. बल्कि तुमने यह गुमान किया था कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मोमिन अब कभी अपने घरों की तरफ़ लौटकर नहीं आएंगे. और यह गुमान तुम्हारे दिलों में अच्छी तरह से बस गया था और तुमने बदगुमानियां कीं. और तुम हलाकत में पड़ने वाली क़ौम बन गए.
13. और जो लोग अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान नहीं लाए, तो हमने उन काफ़िरों के लिए दोज़ख़ तैयार कर रखी है.
14. और आसमानों और ज़मीन की बादशाहत अल्लाह की है. वह जिसे चाहता है बख़्श देता है और जिसे चाहता है अज़ाब देता है. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
15. ऐ मुसलमानो ! जब तुम ख़ैबर के माले ग़नीमत को लेने के लिए चलोगे, तो हुदैबिया के सफ़र में पीछे रहने वाले लोग तुमसे कहेंगे कि हमें भी इजाज़त दो कि हम तुम्हारे पीछे चलें. वे लोग चाहते हैं कि अल्लाह के कलाम को बदल दें. तुम उनसे कह दो कि तुम हरगिज़ हमारे पीछे नहीं चलोगे. अल्लाह ने पहले ही ऐसा कह दिया है. फिर वे लोग कहेंगे कि बल्कि तुम हमसे हसद करते हो. दरअसल वे लोग हक़ बात को बहुत ही कम समझते हैं.
16. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हुदैबिया के सफ़र में पीछे रह जाने वाले देहातियों से कह दो कि अनक़रीब ही तुम्हें सख़्त जंगजू क़ौम के साथ लड़ने के लिए बुलाया जाएगा. तुम उनसे जंग करते रहोगे या वे मुसलमान हो जाएंगे. फिर अगर तुम अल्लाह का हुक्म मानोगे, तो वह तुम्हें बेहतरीन अज्र देगा. और अगर तुम पहले की तरह मुंह फेर लोगे, तो वह तुम्हें दर्दनाक अज़ाब में मुब्तिला कर देगा.
17. जिहाद से पीछे रह जाने में न अंधे पर कोई गुनाह है, न लंगड़े पर कोई गुनाह है और न बीमार पर कोई गुनाह है. और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करेगा, तो वह उसे जन्नत के सदाबहार बाग़ों में दाख़िल करेगा, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. और जो शख़्स अल्लाह के हुक्म से मुंह फेरेगा, तो वह उसे दर्दनाक अज़ाब में मुब्तिला कर देगा.
18. बेशक अल्लाह मोमिनों से राज़ी हुआ, जब वे हुदैबिया में शजर के नीचे तुमसे बैअत कर रहे थे. जो कुछ उनके दिलों में था, अल्लाह ने उसे जान लिया. फिर अल्लाह ने उनके दिलों में तस्कीन नाज़िल की और उन्हें अनक़रीब मिलने वाली ख़ैबर की फ़तह अता की.
19. और उन्होंने बहुत सा माले ग़नीमत हासिल किया. और अल्लाह बड़ा ग़ालिब और बड़ा हिकमत वाला है.
20. और अल्लाह ने तुमसे बहुत सी ग़नीमतों का वादा किया है, जिन्हें तुम आइन्दा हासिल करोगे. और तुम उन पर क़ाबिज़ हो गए, तो उसने तुम्हें ग़नीमतें जल्द दिलवा दीं और लोगों के हाथ तुम से रोक दिए यानी उन्हें तुम पर हमला करने से रोक दिया, ताकि यह मोमिनों के लिए एक निशानी बन जाए. और अल्लाह तुम्हें सीधे रास्ते की हिदायत दे.
21. और अल्लाह ने तुम्हें वे ग़नीमतें भी दीं, जिन पर तुम क़ुदरत नहीं रखते थे. बेशक अल्लाह ने उन्हें भी अपने अहाते में ले रखा है. और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
22. और अगर कुफ़्र करने वाले लोग हुदैबिया में तुमसे जंग करते, तो पीठ फेरकर भाग जाते. फिर वे न किसी को अपना सरपरस्त पाते और न मददगार.
23. यह अल्लाह का दस्तूर है, जो पहले ही से चला आ रहा है और तुम अल्लाह के दस्तूर को बदलते हुए नहीं देखोगे.
24. और वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें उन काफ़िरों पर फ़तह देने के बाद मक्के की सरहद पर उनके हाथ तुमसे और तुम्हारे हाथ उनसे रोक दिए. इसके बाद उसने तुम्हें उन पर ग़ालिब कर दिया. और अल्लाह उन सब आमाल को देख रहा है, जो तुम किया करते हो.
25. यही वे लोग हैं, जिन्होंने कुफ़्र किया और तुम्हें मस्जिद अल हराम में जाने से रोक दिया और क़ुर्बानी के जानवर भी अपनी जगह पर पहुंचने से रुके रहे. और अगर कई ऐसे मोमिन मर्द और मोमिन औरतें मक्का में मौजूद न होतीं, जिन्हें तुम जानते भी नहीं हो कि तुम उन्हें भी काफ़िरों के साथ कुचल दोगे और अनजाने में उनकी तरफ़ से भी तुम्हें कोई तकलीफ़ पहुंच जाएगी, तो हम उसी मौक़े पर तुम्हें जंग की इजाज़त दे देते. लेकिन ऐसा इसलिए नहीं किया गया कि अल्लाह जिसे चाहे अपनी रहमत में दाख़िल करे. अगर वहां के मोमिन और काफ़िर एक दूसरे से अलग हो जाते, तो हम उनमें से कुफ़्र करने वाले लोगों को दर्दनाक अज़ाब में मुब्तिला कर देते.
26. जब कुफ़्र करने वाले लोगों ने अपने दिलों में ज़िद ठान ली और ज़िद भी जाहिलियत की, तो अल्लाह ने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मोमिनों के दिलों में तस्कीन नाज़िल कर दी और उन्हें कलमा तक़वा पर क़ायम रखा. और वे लोग इसके मुस्तहक़ और अहल भी थे. और अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है.
27. बेशक अल्लाह ने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हक़ीक़त के मुताबिक़ एक सच्चा ख़्वाब दिखाया था कि इंशा अल्लाह तुम लोग अपने सर मुंडवा कर और अपने बाल कतरवा कर अमन से मस्जिद अल हराम में दाख़िल हो जाओगे. और तुम्हें किसी भी तरह का ख़ौफ़ नहीं होगा. फिर अल्लाह वह जानता था, जो तुम नहीं जानते थे. फिर उसने इससे पहले ही जल्द फ़तह अता कर दी. यानी उसने मक्का फ़तह से भी पहले ख़ैबर की फ़तह अता कर दी.
28. वह अल्लाह ही है, जिसने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हिदायत और दीने हक़ देकर भेजा, ताकि उसे तमाम दीनों पर ग़ालिब कर दे और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह की सदाक़त पर अल्लाह ही गवाह काफ़ी है.
29. मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं. और जो लोग उनके साथ हैं, वे काफ़िरों के लिए बड़े सख़्त और आपस में बड़े रहम दिल हैं. तुम उन्हें अल्लाह के सामने रुकू और सजदे में देखोगे. वे अल्लाह का फ़ज़ल और उसकी ख़ुशनूदी हासिल करना चाहते हैं. वे अपने चेहरों से पहचाने जाते हैं. उनकी पेशानियों पर सजदों के निशान हैं. उनके ये औसाफ़ तौरात में हैं और इंजील में भी हैं. वे सहाबा उस खेती की तरह हैं, जिसने पहले ज़मीन से अपनी नन्ही कोंपल निकाली. फिर उसे मज़बूत किया. फिर वह मोटी हुई और अपनी जड़ पर सीधी खड़ी हो गई. फिर जब सब्ज़ व शादाब होकर लहलहाई, तो काश्तकारों को अच्छी लगने लगी, ताकि उनके ज़रिये काफ़िरों के दिल जलाए. जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, अल्लाह ने उनसे मग़फ़िरत और बड़ा अज्र देने का वादा किया है.
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