Sunday, August 15, 2021

39 सूरह अज़ जुमर

सूरह अज़ जुमर मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 75 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. यह किताब अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल हुई है, जो बड़ा ग़ालिब, बड़ा हिकमत वाला है.
2. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक हमने तुम्हारी तरफ़ यह किताब हक़ के साथ नाज़िल की है. फिर तुम अल्लाह की ख़ालिस इबादत किया करो. 
3. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम लोगों से कह दो कि जान लो कि ख़ालिस दीन यानी बन्दगी सिर्फ़ अल्लाह के लिए है. और जिन लोगों ने अल्लाह के सिवा दूसरों को अपना सरपरस्त बना रखा है और कहते हैं कि हम उन्हें इसलिए पुकारते हैं, ताकि वे हमें अल्लाह के मुक़र्रिब बना दें. बेशक अल्लाह उनके दरम्यान उस चीज़ का फ़ैसला कर देगा, जिसमें वे इख़्तिलाफ़ करते हैं. बेशक अल्लाह उस शख़्स को हिदायत नहीं देता, जो झूठा नाशुक्रा है. 
4. अगर अल्लाह किसी को अपनी औलाद बनाना चाहता, तो अपनी मख़लूक़ में से जिसे चाहता मुंतख़िब कर लेता. वह पाक है. वही अल्लाह वाहिद है, सब पर ग़ालिब है.
5. उसी अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन की हक़ के साथ तख़लीक़ की है. वही रात को दिन पर और दिन को रात पर तह दर तह लपेटता है. उसी ने सूरज और चांद को अपने क़ाबू में कर रखा है. ये सब अपने मुक़र्रर वक़्त पर अपने अहाते में चलते रहते हैं. जान लो कि वह बड़ा ग़ालिब, बड़ा बख़्शने वाला है.
6. उसी अल्लाह ने तुम्हें एक शख़्स से पैदा किया. फिर उसी से उसकी बीवी को पैदा किया. उसी ने तुम्हारे लिए आठ क़िस्म के चौपाये पैदा किए. वही तुम्हें तुम्हारी माओं के पेट में तीन अंधेरों में बनाता है, यानी पहले नुत्फ़ा, फिर जमा हुआ ख़ून और उसके बाद उसे रंग रूप देता है. वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है और उसी की बादशाहत है. उसके सिवा कोई माबूद नहीं. फिर तुम कहां भटक रहे हो. 
7. अगर तुम कुफ़्र व नाशुक्री करो, तो बेशक अल्लाह बेनियाज़ है. और वह अपने बन्दों के कुफ़्र व नाशुक्री को पसंद नहीं करता. और अगर तुम उसका शुक्र अदा करोगे, तो वह उसे तुम्हारे लिए पसंद करेगा. और कोई किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा. फिर तुम्हें अपने परवरदिगार की तरफ़ ही लौटना है. फिर वह तुम्हें उन आमाल से आगाह कर देगा, जो तुम किया करते हो. बेशक वह दिलों में पोशीदा राज़ों से भी ख़ूब वाक़िफ़ है.
8. और जब इंसान को कोई तकलीफ़ पहुंचती है, तो वह अपने परवरदिगार की तरफ़ रुजू करते हुए दुआएं मांगता है. फिर जब अल्लाह उसे अपनी तरफ़ से कोई नेअमत अता कर देता है, तो उस तकलीफ़ को भूल जाता है, जिसके लिए पहले वह दुआएं मांगा करता था. और फिर वह अल्लाह का शरीक ठहराने लगता है, ताकि दूसरे लोगों को भी उसके रास्ते से भटका सके. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अपने कुफ़्र के साथ थोड़ा सा फ़ायदा उठा लो. बेशक तुम असहाबे दोज़ख़ में से हो. 
9. क्या यह मुशरिक अच्छा है या वह मोमिन जो रात में सजदे करता है और खड़े होकर अल्लाह की इबादत करता है और आख़िरत से डरता है और अपने परवरदिगार की रहमत की उम्मीद रखता है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या इल्म रखने वाले और इल्म न रखने वाले लोग बराबर हो सकते हैं. नसीहत तो वही हासिल करते हैं, जो अक़्लमंद हैं.
10. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम हमारी तरफ़ से कह दो कि ऐ मेरे ईमान वाले बन्दों, अपने परवरदिगार से डरते रहो. जो लोग दुनिया में अहसान करते हैं यानी अच्छे काम करते रहे, उनके लिए आख़िरत में बेहतरीन अज्र है. और अल्लाह की ज़मीन वसीह है. बेशक सब्र करने वालों को बेहिसाब अज्र मिलेगा.
11. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मुझे हुक्म हुआ है कि मैं अल्लाह की ख़ालिस इबादत करूं, अपने दीन को उसी के लिए मुख़लिस करूं.  
12. और मुझे यह भी हुक्म हुआ है कि मैं अव्वल मुसलमान यानी फ़रमाबरदार बनूं.
13. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की नाफ़रमानी करूं, तो मुझे एक बड़े सख़्त दिन यानी क़यामत के अज़ाब से ख़ौफ़ है.
14. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं सिर्फ़ अल्लाह की ख़ालिस इबादत करता हूं. मैंने उसी के लिए अपने दीन को मुख़लिस कर लिया है.  
15. फिर तुम अल्लाह के सिवा जिसे चाहो, पुकारो. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि घाटे में वही लोग हैं, जिन्होंने क़यामत के दिन ख़ुद को और अपने घरवालों को नुक़सान में डाला. जान लो कि यही सरीह नुक़सान है. 
16. उनके लिए ऊपर आग के ओढ़ने होंगे और उनके नीचे भी आग ही के बिछौने होंगे. यह वह अज़ाब है, जिससे अल्लाह अपने बन्दों को ख़बरदार करता है. ऐ मेरे बन्दो ! बस मुझसे ख़ौफ़ रखो.
17. और जो लोग बुतों को पुकारने से बचे रहे और उन्होंने अल्लाह की तरफ़ रुजू किया, उनके लिए जन्नत की बशारत है. फिर तुम मेरे बन्दों को खु़शख़बरी दे दो.
18. जो लोग बात को ग़ौर से सुनते हैं. फिर अच्छी बातों की पैरवी करते हैं, यही वे लोग हैं, जिन्हें अल्लाह ने हिदायत दी है. और यही लोग अक़्लमंद हैं. 
19. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! भला जिस शख़्स पर अज़ाब का हुक्म साबित हो चुका हो, तो क्या तुम उसे बचा सकते हो, जो दोज़ख़ी है. 
20. लेकिन जो लोग अपने परवरदिगार से डरते हैं, उनके लिए जन्नत में ऊंचे महल हैं. उनके ऊपर बालाख़ाने बने हुए होंगे. उन महलों के नीचे नहरें बहती होंगी. यह अल्लाह का वादा है. अल्लाह वादे की ख़िलाफ़ीवर्ज़ी नहीं करता.
21. ऐ इंसानो ! क्या तुमने नहीं देखा कि पहले अल्लाह आसमान से पानी बरसाता है. फिर उसे ज़मीन में चश्मे बनाकर जारी करता है. फिर उसके ज़रिये रंग बिरंगी यानी तरह-तरह की खेती उगाता है. फिर वह पकने के बाद ज़र्द हो जाती है. फिर अल्लाह उसे रेज़ा-रेज़ा करके भूसा बना देता है. बेशक अक़्लमंदों के लिए इसमें बड़ी नसीहत है.
22. भला अल्लाह ने जिस शख़्स के दिल को इस्लाम के लिए खोल दिया है और वह अपने परवरदिगार की तरफ़ से नूर पर फ़ाइज़ हो जाता है, इसके बरअक्स फिर उन लोगों के लिए तबाही है, जिनके दिल अल्लाह के ज़िक्र से ग़ाफ़िल होकर सख़्त हो गए हैं. ये लोग सरीह गुमराही में मुब्तिला हैं.
23. अल्लाह ने बहुत ही अच्छी हदीस की किताब यानी क़ुरआन नाज़िल किया है, जिसकी आयतें एक दूसरे से मिलती जुलती हैं और कई बातें बार-बार दोहराई गई हैं, जिससे उन लोगों के जिस्मों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, जो लोग अपने परवरदिगार से डरते हैं. फिर उनके जिस्म और दिल नर्म होकर अल्लाह के ज़िक्र की तरफ़ मुतावज्जे हो जाते हैं. यह अल्लाह की हिदायत है. वह जिसे चाहता है इसके ज़रिये हिदायत देता है. और अल्लाह जिसे गुमराही में छोड़ दे, तो उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं है.
24. भला जो शख़्स क़यामत के दिन बुरे अज़ाब से बचने के लिए अपने चेहरे को ढाल बना रहा होगा, क्या वह निजात पाने वाले शख़्स के बराबर हो सकता है. और ऐसे ज़ालिमों से कहा जाएगा कि अब उसके मज़े चखो, जो कुछ तुम दुनिया में किया करते थे.
25. उनसे पहले के लोगों ने भी पैग़म्बरों को झुठलाया था, तो उन पर वहां से अज़ाब आया जहां से उन्हें शऊर भी नहीं था.
26. फिर अल्लाह ने उन्हें दुनियावी ज़िन्दगी में ही ज़िल्लत व रुसवाई का ज़ायक़ा चखा दिया और यक़ीनन आख़िरत का अज़ाब तो बहुत बड़ा है. काश ! वे लोग जानते. 
27. और हक़ीक़त यह है कि हमने लोगों को समझाने के लिए क़ुरआन में हर तरह की मिसालें बयान की हैं, ताकि वे नसीहत हासिल करें.
28. क़ुरआन अरबी ज़बान में है, जिसमें ज़रा भी कजी यानी ख़ामी नहीं है, ताकि लोग परहेज़गारी इख़्तियार करें.  
29. अल्लाह ने एक मिसाल बयान की है कि एक ग़ुलाम के कई मालिक हैं, जो बद अख़लाक़ और झगड़ालू हैं. और एक ग़ुलाम ऐसा है, जिसका एक ही मालिक है. क्या इन दोनों की हालत एक जैसी हो सकती है. अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं. बल्कि इनमें से बहुत से लोग तौहीद की हक़ीक़त को नहीं जानते.
30. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक एक दिन तुम भी विसाल कर जाओगे और बेशक वे लोग भी मर जाएंगे. 
31. फिर बेशक तुम सब क़यामत के दिन अपने परवरदिगार की बारगाह में झगड़ा करोगे.
32. फिर उस शख़्स से बढ़कर ज़ालिम कौन है, जो अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधे और जब हक़ उसके पास आए, तो उसे झुठला दे. क्या काफ़िरों का ठिकाना जहन्नुम में नहीं है.
33. और जो शख़्स हक़ लेकर आया और जिसने उसकी तसदीक़ की, वही लोग परहेज़गार हैं.
34. वे लोग जो चाहेंगे उनके परवरदिगार के पास सब मौजूद है. यह अहसान यानी नेकी करने वालों की जज़ा है.
35. ताकि अल्लाह उनकी ख़ताओं को उनसे दूर कर दे और उन्हें उनके उन अहसानों यानी नेकियों का अज्र दे, जो वे किया करते थे. 
36. क्या अल्लाह अपने बन्दों के लिए काफ़ी नहीं है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वे लोग तुम्हें अल्लाह के सिवा अपने सरपरस्तों का ख़ौफ़ दिलाते हैं. अल्लाह जिसे गुमराही में छोड़ दे, तो उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं है. 
37. और जिसे अल्लाह हिदायत दे, तो उसे कोई गुमराह करने वाला नहीं है. क्या अल्लाह बड़ा ग़ालिब व इंतक़ाम लेने वाला नहीं है.
38. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर तुम उनसे दरयाफ़्त करो कि आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ किसने की है, तो यक़ीनन वे लोग कह देंगे कि अल्लाह ने की है. तुम कह दो कि अल्लाह को छोड़कर जिन्हें तुम पुकारते हो, अगर अल्लाह मुझे कोई तक़लीफ पहुंचाना चाहे, तो क्या तुम्हारे सरपरस्त उस तकलीफ़ को दूर कर सकते हैं या अल्लाह मुझे रहमत से नवाज़ना चाहे, तो क्या वे लोग उसकी रहमत को रोक सकते हैं. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मेरे लिए अल्लाह ही काफ़ी है. भरोसा करने वाले उसी पर भरोसा करते हैं.
39. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ऐ मेरी क़ौम ! तुम अपनी जगह अमल किए जाओ. बेशक मैं अपनी जगह अमल कर रहा हूं. फिर अनक़रीब ही तुम अंजाम को जान लोगे.
40. कि किस पर अज़ाब आता है, जो उसे रुसवा करेगा और उस पर हमेशा क़ायम रहेगा. 
41. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक हमने तुम पर यह किताब लोगों की रहनुमाई के लिए हक़ के साथ नाज़िल की है. फिर जो हिदायत हासिल करता है, तो वह अपने ही भले के लिए हासिल करता है और जो गुमराह होता है, तो वह अपना ही नुक़सान करता है. और तुम उनके वकील नहीं हो, यानी उनके ज़िम्मेदार नहीं हो. 
42. अल्लाह मौत के वक़्त लोगों की जानें यानी रूहें क़ब्ज़ कर लेता है और जिन्हें मौत नहीं आई, उनकी रूहें नींद में क़ब्ज़ कर ली जाती हैं. फिर उन्हें रोक लेता है, जिन पर मौत का हुक्म सादिर हो चुका है और बाक़ी दूसरी रूहों को फिर एक मुक़र्रर वक़्त तक के लिए उनके जिस्मों में भेज देता है. बेशक इसमें उस क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं, जो ग़ौर व फ़िक्र करती है.
43. क्या उन लोगों ने अल्लाह के सिवा दूसरे सिफ़ारिशी बना रखे हैं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगरचे वे किसी चीज़ का भी इख़्तियार नहीं रखते हों और न कुछ समझते हों ?
44. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि शफ़ाअत तो अल्लाह ही के इख़्तियार में है. आसमानों और ज़मीन की बादशाहत उसी की है. फिर तुम्हें उसकी तरफ़ ही लौटना है.
45. और जब वाहिद अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है, तो उन लोगों के दिल मुनक़बिज़ हो जाते हैं, जो आख़िरत पर ईमान नहीं लाते. और जब अल्लाह के सिवा दूसरे सरपरस्तों का ज़िक्र किया जाता है, तो वे लोग ख़ुश हो जाते हैं.
46. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ऐ अल्लाह ! आसमानों और ज़मीन को वजूद में लाने वाले, ग़ैब और ज़ाहिर को जानने वाले ! तू ही अपने बन्दों के दरम्यान उन बातों का फ़ैसला करेगा, जिन्हें लेकर वे इख़्तिलाफ़ करते हैं.
47. और अगर ज़ुल्म करने वाले लोगों को वह सबकुछ मयस्सर हो जाए, जो ज़मीन में है और उसके साथ उतना ही और मिल जाए, तो वे उसे क़यामत के दिन सख़्त अज़ाब से बचने के लिए बदले में दे देंगे. और अल्लाह की तरफ़ से उनके लिए वह अज़ाब ज़ाहिर हो जाएगा, जिसका उन्हें गुमान भी नहीं था.
48. और उनकी वे सब बुराइयां ज़ाहिर हो जाएंगी, जो उन्होंने कमाई हैं. और उन्हें वह अज़ाब घेर लेगा, जिसका वे मज़ाक़ उड़ाया करते थे.
49. फिर जब इंसान को कोई तकलीफ़ पहुंचती है, तो वह हमसे दुआएं मांगने लगता है. फिर जब हम उसे अपनी तरफ़ से कोई नेअमत अता करते हैं, तो कहने लगता है कि यह तो मुझे मेरे इल्म व तदबीर की वजह से मिली है. बल्कि यह एक आज़माइश है, लेकिन उनमें से बहुत से लोग नहीं जानते. 
50. हक़ीक़त में वे लोग भी यही कहा करते थे, जो उनसे पहले थे. फिर वह सब उनके कुछ भी काम नहीं आया, जो उन्होंने कमाया था. 
51. फिर उन्हें उन बुराइयों का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा, जो उन्होंने कमाई थीं. और उनमें से जो लोग ज़ुल्म करते रहे हैं, उन्हें भी अनक़रीब उन बुराइयों की सज़ा भुगतनी पड़ेगी, जो वे कमा रहे हैं. और वे लोग अल्लाह को आजिज़ नहीं कर सकते.
52. और क्या वे लोग नहीं जानते कि अल्लाह जिसके लिए चाहता है रिज़्क़ को कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है तंग कर देता है. बेशक इसमें ईमान वाली क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं.
53. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम हमारी तरफ़ से कह दो कि ऐ मेरे बन्दों, जिन्होंने अपनी जानों पर ज़्यादतियां की हैं, वे लोग अल्लाह की रहमत से नाउम्मीद न हों. बेशक अल्लाह सब गुनाहों को बख़्श  देता है. बेशक वह बड़ा बख़्शने वाला, बड़ा मेहरबान है.
54. और तुम लोग अपने परवरदिगार की तरफ़ रुजू करो और उसी की इताअत करो. इससे पहले कि तुम पर अज़ाब आ जाए. फिर तुम्हें कोई मदद नहीं मिलेगी.
55. और तुम इस बेहतरीन किताब पर अमल करो, जो तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल हुई है. इससे पहले कि तुम पर अचानक अज़ाब आ जाए और तुम्हें शऊर भी न हो, 
56. कहीं ऐसा न हो कि कोई शख़्स कहने लगे कि मुझे उस कोताही पर अफ़सोस है, जो मैंने अल्लाह की बारगाह में की और मैं मज़ाक़ उड़ाने वालों में से था.
57. या वह कहने लगे कि अगर अल्लाह मुझे हिदायत देता, तो मैं ज़रूर परहेज़गारों में से होता.
58. या जब वह अज़ाब को देखे, तो कहने लगे कि काश ! मुझे फिर से वापस लौटने का मौक़ा मिले, तो मैं अहसान करने वालों यानी नेक लोगों में से हो जाऊं.
59. उस वक़्त अल्लाह फ़रमाएगा कि क्यों नहीं. बेशक हमारी आयतें तेरे पास आई थीं, फिर तूने उन्हें झुठलाया और तूने तकब्बुर किया और तू काफ़िरों में से हो गया.
60. और तुम क़यामत के दिन देखोगे कि जिन लोगों ने अल्लाह पर झूठे बोहतान बांधे, उनके चेहरे स्याह होंगे. क्या मुताकब्बिरों का ठिकाना जहन्नुम में नहीं है.
61. और जो लोग परहेज़गार हैं, उनकी कामयाबी के सबब अल्लाह उन्हें निजात देगा. उन्हें न कोई तकलीफ़ पहुंचेगी और न वे लोग ग़मगीन होंगे.
62. अल्लाह हर चीज़ का ख़ालिक है और वह हर चीज़ का निगेहबान है.
63. आसमानों और ज़मीन की कुंजियां उसी के पास हैं. और जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र किया, वही लोग नुक़सान उठाने वाले हैं. 
64. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ऐ जाहिलों ! तुम मुझसे कहते हो कि मैं ग़ैर अल्लाह को पुकारूं.
65. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हक़ीक़त में तुम्हारी तरफ़ और तुमसे पहले के पैग़म्बरों की तरफ़ वही भेजी गई कि ऐ इंसानो ! अगर तुमने शिर्क किया, तो यक़ीनन तुम्हारे सारे आमाल बर्बाद हो जाएंगे और तुम ज़रूर नुक़सान उठाने वालों में से हो जाओगे.
66. बल्कि तुम सिर्फ़ अल्लाह की इबादत किया करो और शुक्रगुज़ारों में से हो जाओ.
67. और उन्होंने अल्लाह की क़द्र और ताज़ीम नहीं की, जैसे उसकी क़द्र व ताज़ीम का हक़ था. और क़यामत के दिन सारी ज़मीन उसकी मुट्ठी में होगी. और तमाम आसमान उसके दाहिने हाथ में लिपटे हुए होंगे. वह हर उस चीज़ से पाक और आला है, जिसे वे लोग उसका शरीक ठहराते हैं. 
68. और जब सूर फूंका जाएगा, तो जो लोग आसमानों में हैं और जो ज़मीन में हैं, सब बेहोश होकर गिर पड़ेंगे, लेकिन जिसे अल्लाह चाहेगा वह बचा रहेगा. फिर जब दोबारा सूर फूंका जाएगा, तो वे सब देखते हुए खड़े हो जाएंगे.
69. और मेहशर की ज़मीन अपने परवरदिगार के नूर से जगमगा उठेगी और हर एक के आमाल की किताब रख दी जाएगी. फिर नबियों और गवाहों को लाया जाएगा. और लोगों के दरम्यान हक़ के साथ फ़ैसला कर दिया जाएगा और उन पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा.
70. और हर शख़्स को उसके आमाल का बदला दिया जाएगा. और अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है, जो कुछ वे लोग किया करते हैं.
71. और कुफ़्र करने वाले लोगों के गिरोह के गिरोह जहन्नुम की तरफ़ हांके जाएंगे, यहां तक तक कि जब वे जहन्नुम के पास पहुंचेंगे तो उसके दरवाज़े खोल दिए जाएंगे और उसके दरोग़ा उनसे कहेंगे कि क्या तुम्हारे पास तुममें से रसूल नहीं आए थे, जो तुम्हें तुम्हारे परवरदिगार की आयतें पढ़कर सुनाते थे और तुम्हें इस दिन की पेशी से ख़बरदार करते थे. वे लोग कहेंगे कि क्यों नहीं, ज़रूर आए थे. लेकिन काफ़िरों पर अज़ाब का कलमा यानी क़ौल पूरा होकर रहेगा.
72. उनसे कहा जाएगा कि इन दरवाज़ों से जहन्नुम में चले जाओ और हमेशा उसमें रहो. फिर मुताकब्बिरों का बहुत बुरा ठिकाना है.
73. और जो लोग अपने परवरदिगार से डरते रहे, उनकी जमातें जन्नत की तरफ़ लाई जाएंगी, यहां तक कि जब वे उसके पास पहुंचेंगे और उसके दरवाज़े खोल दिए जाएंगे, तो उसके निगेहबान उनसे कहेंगे कि तुम पर सलामती हो. तुम बहुत अच्छे रहे. फिर तुम हमेशा रहने के लिए इसमें दाख़िल हो जाओ.
74. और वे लोग कहेंगे कि अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं. जिसने अपने वादे को पूरा किया और हमें इस सरज़मीन का वारिस बना दिया. हम जन्नत में जहां चाहें, वहां रहें. फिर नेक अमल करने वालों का कितना अच्छा अज्र है.
75. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम फ़रिश्तों को अर्श के अतराफ़ घेरा बांधे खड़े देखोगे, जो अपने परवरदिगार की हम्दो सना की तस्बीह कर रहे होंगे. और सब लोगों के दरम्यान हक़ के साथ फ़ैसला कर दिया जाएगा. और कहा जाएगा कि अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं, जो तमाम आलमों का परवरदिगार है.

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