Monday, August 16, 2021

38 सूरह सुआद

सूरह सुआद मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 88 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. सुआद. क़सम है ज़िक्र वाले क़ुरआन की. 
2. बल्कि कुफ़्र करने वाले लोग तकब्बुर और हमारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त में मुब्तिला हैं.
3. हमने उनसे पहले कितनी ही उम्मतों को हलाक कर दिया. फिर अज़ाब देखकर वे लोग फ़रियाद करने लगे. हालांकि अब रिहाई का वक़्त नहीं बचा था.
4. और उन्होंने ताज्जुब किया कि उनके पास उन्हीं में से ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर आया और काफ़िर कहने लगे कि यह जादूगर है, झूठा है.
5. क्या उसने तमाम सरपरस्तों की जगह एक ही माबूद बना दिया. बेशक यह तो बड़ी अजीब बात है.
6. और उनके सरदार अबू तालिब के घर से रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मजलिस से यह कहते हुए खड़े हो गए कि यहां से चलो और अपने सरपरस्तों पर सब्र करो यानी उन्हीं को पुकारते रहो. बेशक यह कोई ऐसी बात है, जिसमें ग़रज़ है.
7. हमने तौहीद की यह बात पिछली मिल्लत यानी दीन में कभी नहीं सुनी. यह बिल्कुल मनगढ़ंत है.
8. क्या सब लोगों में से इन्हीं पर यानी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर क़ुरान नाज़िल किया गया है. बल्कि वे हमारे ज़िक्र की निस्बत शक में मुब्तिला हैं, बल्कि उन्होंने अभी हमारे अज़ाब का ज़ायक़ा नहीं चखा.
9. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या उनके पास तुम्हारे परवरदिगार की रहमत के ख़ज़ाने हैं, जो बड़ा ग़ालिब, बहुत अता करने वाला है.
10. या उनके पास आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इनके दरम्यान है, उनकी बादशाहत है. उन्हें चाहिए कि रस्सियों से आसमान पर चढ़ जाएं.
11. काफ़िरों के शिकस्त खाये हुए लश्करों में से यह भी एक लश्कर है.
12. उनसे पहले नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम और हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद और मेख़ों से अज़ीयत देने वाले फ़िरऔन के लोग भी झुठला चुके हैं.
13. और सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद और लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम और जंगल में रहने वाले यानी शुऐब अलैहिस्सलाम की क़ौम भी झुठलाने वाले ऐसे ही बड़े लश्कर थे. 
14. इन सबने रसूलों को झुठलाया, तो हमारा अज़ाब उन पर नाज़िल हुआ.
15. और वे लोग सख़्त चीख़ की आवाज़ का इंतज़ार कर रहे हैं, जिसमें ज़रा भी देर नहीं होगी.
16. और वे लोग कहते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें हमारा हिस्सा हिसाब के दिन यानी क़यामत से पहले ही अता कर दे.
17. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वे लोग जो कुछ कहते हैं, तुम उस पर सब्र करो और हमारे बन्दे दाऊद अलैहिस्सलाम का ज़िक्र करो, जो बेशक बड़े क़ूवत वाले थे. बेशक वे हमारी तरफ़ रुजू करने वाले थे. 
18. बेशक हमने पहाड़ों को उनके ताबे कर दिया था, जो उनके साथ सुबह व शाम तस्बीह किया करते थे.
19. और परिन्दे भी उनके पास जमा रहते थे. वे सब उनके फ़रमाबरदार थे.
20. और हमने उनके मुल्क को मुस्तहकम कर दिया था और हमने उन्हें हिकमत व दानाई और फ़ैसला करने की तौफ़ीक़ अता की थी. 
21. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और क्या तुम्हारे पास झगड़ने वाले लोगों की भी ख़बर आई है. जब वे दीवार फांद कर दाऊद अलैहिस्सलाम की इबादतगाह में दाख़िल हो गए थे.
22. जब वे लोग दाऊद अलैहिस्सलाम के पास अन्दर आए, तो वे घबरा गए. उन लोगों ने कहा कि आप ख़ौफ़ न करें. हम दोनों का एक मुक़दमा है कि हम में से एक ने दूसरे पर ज़्यादती की है. आप हमारे दरम्यान हक़ के साथ फ़ैसला कर दें और हद से तजावुज़ न करें. और हमारी रहनुमाई करते हुए हमें सीधा रास्ता दिखा दें.
23. बेशक यह मेरा भाई है. इसके पास निन्यानवे दुम्बियां हैं और मेरे पास एक ही दुम्बी है. फिर वह कहता है कि यह दुम्बी भी मेरे हवाले कर दे और गुफ़्तगू में भी मुझ पर हावी रहता है.
24. दाऊद अलैहिस्सलाम ने कहा कि इसने तुम्हारी दुम्बी को अपनी दुम्बियों के साथ शामिल करने की मांग करके तुम पर ज़ुल्म किया है. और बेशक अकसर मिलकर रहने वाले लोग एक दूसरे पर जु़ल्म किया करते हैं, सिवाय उनके जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे. ऐसे लोग बहुत कम हैं. और दाऊद अलैहिस्सलाम ने गुमान किया कि हमने इस मुक़दमे के ज़रिये उनकी आज़माइश ली है, तो वे अपने परवरदिगार से मग़फ़िरत की दुआ मांगने लगे और सजदे में गिर पड़े और उन्होंने अल्लाह की तरफ़ रुजू किया. 
25. फिर हमने उन्हें बख़्श दिया और बेशक उनके लिए हमारी बारगाह में ख़ास क़ुर्ब और उम्दा मक़ाम है.
26. ऐ दाऊद अलैहिस्सलाम ! बेशक हमने तुम्हें ज़मीन में अपना ख़लीफ़ा बनाया है, तो तुम लोगों के दरम्यान हक़ के साथ फ़ैसले किया करो और ख़्वाहिशों की पैरवी मत करो, वरना ये तुम्हें अल्लाह के रास्ते से भटका देंगी. बेशक जो लोग अल्लाह के रास्ते से भटक जाते हैं, उनके लिए सख़्त अज़ाब है, क्योंकि वे हिसाब के दिन को भूल गए.
27. और हमने आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इनके दरम्यान है, उसे बेमक़सद नहीं बनाया. यह कुफ़्र करने वाले लोगों का गुमान है. फिर कुफ़्र करने वाले लोगों के लिए दोज़ख़ का अज़ाब है.
28. जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, क्या हम उन्हें उन जैसा कर देंगे, जो ज़मीन में फ़साद फैलाया करते हैं या हम परहेज़गारों को बदकारों जैसा बना देंगे.
29. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यह मुबारक किताब है, जिसे हमने तुम पर नाज़िल किया है, ताकि अक़्लमंद इसकी आयतों में ग़ौर व फ़िक्र करें और नसीहत हासिल करें.
30. और हमने दाऊद अलैहिस्सलाम को सुलेमान अलैहिस्लाम अता किए. बेशक वे बहुत नेक बन्दे थे. बेशक वे अल्लाह की तरफ़ रुजू करने वाले थे.
31. जब उनके सामने शाम के वक़्त तेज़ रफ़्तार उम्दा घोड़े पेश किए गए.
32. तो वे कहने लगे कि मैं माल की मुहब्बत को अपने परवरदिगार के ज़िक्र से भी ज़्यादा पसंद कर बैठा, यहां तक कि सूरज रात के पर्दे में छुप गया.
33. वे कहने लगे कि उन घोड़ों को मेरे पास वापस लाओ. फिर उन्होंने तलवार से उनकी टांगें और गर्दनें काट दीं. 
34. और बेशक हमने सुलेमान अलैहिस्सलाम की भी आज़माइश ली. और हमने उनके तख़्त पर एक बेजान जिस्म डाल दिया. फिर उन्होंने अल्लाह की तरफ़ रुजू किया.
35. उन्होंने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझे बख़्श दे और मुझे ऐसी हुकूमत अता फ़रमा, जो मेरे बाद किसी को मयस्सर न हो. बेशक तू बड़ा अता करने वाला है.
36. फिर हमने हवा को उनके ताबे कर दिया. वे जहां पहुंचना चाहते, वह उनके हुक्म से आहिस्ता-आहिस्ता चलती थी.
37. और हर शयातीन यानी जिन्नों को भी उनके ताबे कर दिया, जो इमारतें बनाने वाले और ग़ोता लगाने वाले थे.
38. और ज़ंजीरों में जकड़े हुए जिन्न भी उनके ताबे कर दिए.
39. ऐ सुलेमान अलैहिस्लाम ! यह हमारी बख़्शीश है. फिर चाहे तुम दूसरों पर अहसान करो या अपने ही पास रखो. यह बेहिसाब है. यानी इसका कोई हिसाब नहीं है. 
40. और बेशक उनके लिए हमारी बारगाह में ख़ास क़ुर्ब और उम्दा मक़ाम है.
41. और हमारे बन्दे अय्यूब अलैहिस्लाम का ज़िक्र करो, जब उन्होंने अपने परवरगिार से फ़रियाद की कि मुझे शैतान ने बहुत तकलीफ़ और अज़ाब दे रखा है.
42. उनसे कहा गया कि तुम अपना पांव ज़मीन पर मारो. इससे चश्मा जारी हुआ. नहाने के लिए ठंडा और पीने के लिए मीठा पानी.
43. और हमने उन्हें उनके अहल व अयाल अता किए और उनके साथ उतने ही मज़ीद अता कर दिए. यह हमारी तरफ़ से उनके लिए ख़ास रहमत और अक़्लमंदों के लिए ज़िक्र यानी नसीहत थी.
44. ऐ अय्यूब अलैहिस्सलाम ! और तुम अपने हाथ में तिनकों का मुट्ठा लो और अपनी क़सम पूरी करने के लिए इससे एक बार अपनी बीवी को मारो और अपनी क़सम मत तोड़ो. बेशक हमने उन्हें साबिर पाया. वे बहुत नेक बन्दे थे. बेशक वे अल्लाह की तरफ़ रुजू करने वाले थे.
45. और हमारे बन्दों में इब्राहीम अलैहिस्लाम, इसहाक़ अलैहिस्लाम और याक़ूब अलैहिस्लाम का ज़िक्र करो, जो क़ूवत और बसीरत वाले थे.
46. बेशक हमने उन्हें आख़िरत के घर के ख़ालिस ज़िक्र यानी याद की वजह से मुंतख़िब किया था.
47. और बेशक वे हमारी बारगाह में मुंतख़िब व बरगुज़ीदा और पसंदीदा बन्दों में से थे.
48. और तुम इस्माईल अलैहिस्लाम और अलयसा अलैहिस्लाम और जु़लकिफ़ल अलैहिस्लाम का ज़िक्र करो और वे सब मुंतख़िब बन्दों में से थे. 
49. यह एक ज़िक्र है. और बेशक परहेज़गारों के लिए उम्दा मक़ाम है.
50. जो दाइमी जन्नत के सदाबहार बाग़ हैं, जिनके दरवाज़े उनके लिए खुले हुए होंगे.
51. वे लोग उसमें तकिये लगाए हुए चैन से बैठे होंगे और बहुत से उम्दा फल और मेवे और शर्बत तलब करते रहेंगे.
52. और उनके पास नीची निगाहें रखने वाली हमउम्र बीवियां होंगी.
53. ये वे नेअमतें है, जिनका हिसाब के दिन के लिए तुमसे वादा किया जाता है.
54. बेशक यह हमारा रिज़्क़ है, जो कभी ख़त्म नहीं होगा.
55. ये नेअमतें मोमिनों के लिए हैं. और बेशक सरकशों के लिए बहुत बुरी जगह है.
56. यानी उनके लिए जहन्नुम है, जिसमें वे डाले जाएंगे. फिर वह बहुत बुरी जगह है.
57. ये अज़ाब है. फिर इसे चखो. ये खौलता हुआ पानी और पीप है.
58. और इसी शक्ल में और भी तरह-तरह के अज़ाब हैं. 
59. दोज़ख़ में पहले से मौजूद लोग आपस में कहेंगे कि यह एक और फ़ौज है, जो तुम्हारे साथ दोज़ख़ में चली आ रही है. उनके लिए कोई ख़ुश आमदीद नहीं है. बेशक वे भी दोज़ख़ में डाले जाएंगे.
60. आने वाले लोग उनसे कहेंगे कि हम ही क्यों, बल्कि तुम्हीं को ख़ुशी न मिले. तुम्हीं ने यह अज़ाब हमारे सामने पेश किया है. यह बहुत बुरी जगह है.
61. वे लोग कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! जो इसे हमारे सामने लाया है, उसे दोज़ख़ में दोगुना अज़ाब दे. 
62. और वे कहेंगे कि हमें क्या हुआ है कि हम यहां उन लोगों को नहीं देखते, जिन्हें हम दुनिया में बुरे लोगों में शुमार करते थे. 
63. क्या हम उनका नाहक़ मज़ाक़ उड़ाते थे या हमारी आंखें उन्हें पहचानने से चूक गईं.
64. बेशक यह अहले दोज़ख़ का आपस में झगड़ना बरहक़ है.
65. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं तो सिर्फ़ अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करने वाला हूं. और अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, जो वाहिद सब पर ग़ालिब है. 
66. आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इनके दरम्यान है, वह उन सबका परवरदिगार है. वह बड़ा ग़ालिब, बड़ा बख़्शने वाला है.
67. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि वह क़यामत बहुत बड़ी ख़बर है.
68. तुम उससे मुंह फेरे हुए हो.
69. मुझे ख़ुद आलमे बाला में रहने वाले फ़रिश्तों का कोई इल्म नहीं था, जब वे आपस में बहस कर रहे थे.
70. मेरे पास तो अल्लाह की तरफ़ से वही आती है कि मैं ऐलानिया अज़ाब से ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर हूं.
71. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! वह वक़्त याद करो, जब तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रिश्तों से कहा था कि मैं मिट्टी से एक बशर बनाने वाला हूं.
72. फिर जब मैं उसे दुरुस्त कर लूं और उसमें रूह फूंक दूं, तो तुम सब उसकी ताज़ीम के लिए सजदा करते हुए गिर पड़ना.
73. फिर सब फ़रिश्तों ने सजदा किया.
74. सिवाय इबलीस के, उसने तकब्बुर किया और वह काफ़िरों में से हो गया.
75. अल्लाह ने फ़रमाया कि ऐ इबलीस ! तुझे किसने इस आदम को सजदा करने से रोका है, जिसे हमने अपने हाथों से बनाया है. क्या तूने तक़ब्बुर किया या तू बड़े दर्जे वालों में से था.
76. उसने कहा कि मैं इससे बेहतर हूं. तूने मुझे आग से बनाया है और तूने इसे मिट्टी से बनाया है. 
77. अल्लाह ने फ़रमाया कि तू यहां से निकल जा. बेशक तू मरदूद है.
78. और बेशक तुझ पर क़यामत के दिन तक मेरी लानत रहेगी.
79. वह कहने लगा कि ऐ मेरे परवरदिगार ! फिर मुझे उस दिन तक ज़िन्दा रहने की मोहलत अता कर, जिस दिन लोग क़ब्रों से उठाए जाएंगे.
80. अल्लाह ने फ़रमाया कि बेशक तुझे मोहलत दी जाती है.
81. उस दिन तक, जिसका वक़्त मालूम है यानी मुक़र्रर है. 
82. वह कहने लगा कि फिर मुझे तेरी इज़्ज़त की क़सम ! मैं उन सब लोगों को ज़रूर गुमराह करूंगा, 
83. सिवाय तेरे उन बन्दों के, जो मुख़लिस हैं.
84. अल्लाह ने फ़रमाया कि फिर यह हक़ है और हम हक़ ही कहते हैं.
85. हम तुझसे और जो लोग तेरी पैरवी करेंगे उन सबसे जहन्नुम को भर देंगे.
86. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं तुमसे इसका कोई अज्र नहीं चाहता और न मैं तकल्लुफ़ करने वालों में से हूं.
87. यह क़ुरआन तो तमाम आलमों के लिए ज़िक्र यानी नसीहत है.
88. और तुम कुछ ही वक़्त के बाद इसका हाल जान लोगे.

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