Saturday, August 14, 2021

40 सूरह अल मोमिन या ग़ाफ़िर

सूरह अल मोमिन मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 85 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. हा मीम.
2. यह किताब अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल हुई है, जो बड़ा ग़ालिब, बड़ा साहिबे इल्म है.
3. वह गुनाह बख़्शने वाला है और तौबा क़ुबूल करने वाला है, सख़्त अज़ाब देने वाला भी है. वह बड़ा साहिबे करम है. उसके सिवा कोई माबूद नहीं. सबको उसकी तरफ़ ही लौटना है.
4. अल्लाह की आयतों में कोई झगड़ा नहीं करता, सिवाय उन लोगों के जो कुफ़्र करते हैं. फिर उन लोगों का शहरों में घूमना फिरना तुम्हें धोखे में न डाल दे. 
5. उनसे पहले नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम ने और उनके बाद की उम्मतों ने भी अपने रसूलों को झुठलाया और हर उम्मत ने अपने रसूलों के बारे में इरादा किया कि उन्हें पकड़ लें और बातिल के ज़रिये झगड़ा करें, ताकि हक़ के असर को कम कर दें. फिर हमने उन्हें अज़ाब की गिरफ़्त में ले लिया. फिर हमारा अज़ाब कैसा था.
6. और इसी तरह उन लोगों के बारे में भी तुम्हारे परवरदिगार का कलाम पूरा होकर रहा, जिन्होंने कुफ़्र किया. बेशक वे असहाबे दोज़ख़ हैं.
7. जो फ़रिश्ते अर्श को उठाए हुए हैं और जो उसके अतराफ़ हैं, वे सब अपने परवरदिगार की हम्दो सना की तस्बीह करते रहते हैं और उस पर ईमान रखते हैं और ईमान वालों के लिए मग़फ़िरत की दुआएं मांगते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! तेरी रहमत और तेरा इल्म हर चीज़ का अहाता किए हुए है. फिर जिन लोगों ने तौबा की और तेरे रास्ते की पैरवी की. और तू उन्हें जहन्नुम के अज़ाब से बचा ले.
8. ऐ हमारे परवरदिगार ! और उन लोगों को जन्नत के सदाबहार बाग़ों में दाख़िल कर जिनका तूने उनसे वादा किया है. उनके बाप दादाओं और उनकी बीवियों और उनकी औलाद में से जो लोग नेक हैं, उन्हें भी जन्नत में दाख़िल कर दे. बेशक तू बड़ा ग़ालिब, बड़ा हिकमत वाला है.
9. और उन्हें उनकी ख़ताओं की सज़ा से बचा ले. और जिन्हें तूने उस दिन ख़ताओं की सज़ा से बचा लिया, तो बेशक तूने उन पर बड़ा रहम किया और यह बहुत बड़ी कामयाबी है.
10 . बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उनसे कहा जाएगा कि आज अल्लाह तुमसे उससे कहीं ज़्यादा बेज़ार है, जितना तुम आज ख़ुद से बेज़ार हो रहे हो, क्योंकि जब तुम्हें ईमान की तरफ़ बुलाया जाता था, तो तुम इनकार किया करते थे. 
11. और वे लोग कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! तूने हमें दो बार मौत दी और दो बार ज़िन्दगी बख़्शी. हम अपने गुनाहों का ऐतराफ़ करते हैं, तो क्या अज़ाब से बचने का कोई रास्ता है?
12. उनसे कहा जाएगा कि यह इसलिए है कि जब अल्लाह को तन्हा पुकारा जाता था, तो तुम इनकार कर देते थे और जब उसके साथ किसी को शरीक ठहरा दिया जाता था, तो तुम मान लेते थे. फिर अल्लाह ही का हुक्म है, जो आला और कबीर है.
13. वह अल्लाह ही है, जो तुम्हें अपनी क़ुदरत की निशानियां दिखाता है और तुम्हारे लिए आसमान से रिज़्क़ यानी पानी नाज़िल करता है. और नसीहत सिर्फ़ वही हासिल करता है, जो उसकी तरफ़ रुजू करता है.
14. फिर तुम अल्लाह की ख़ालिस इबादत किया करो, अगरचे काफ़िरों को कितना ही नागवार गुज़रे.
15. अल्लाह दर्जात बुलंद करने वाला अर्श का मालिक है. वह अपने बन्दों में से जिसे चाहता है, अपने हुक्म से रूह यानी वही भेजता है, ताकि वह लोगों को हाज़िर होने वाले दिन यानी क़यामत से ख़बरदार करें.
16. जिस दिन वे सब लोग क़ब्रों से निकलेंगे और उनका कोई भी अमल अल्लाह से पोशीदा नहीं रहेगा. उनसे कहा जाएगा कि आज किसकी बादशाहत है? अल्लाह ही की, जो वाहिद और सब पर ग़ालिब है.
17. आज हर शख़्स को उसके आमाल का बदला दिया जाएगा. आज किसी के साथ कोई ज़़ुल्म नहीं होगा. बेशक अल्लाह अनक़रीब हिसाब लेने वाला है.
18. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम उन लोगों को अनक़रीब आने वाले उस दिन से ख़बरदार करो, जब ग़म से कलेजे मुंह को आएंगे. उस वक़्त ज़ालिमों का न कोई दोस्त होगा और न कोई सिफ़ारिशी, जिसकी बात मानी जाए.
19. वह ख़यानत करने वाली निगाहों को भी जानता है और उन राज़ों को भी, जो दिलों में पोशीदा हैं.
20. और अल्लाह हक़ के साथ फ़ैसला करता है और जिन्हें ये लोग अल्लाह के सिवा पुकारते हैं, वे कुछ भी फ़ैसला नहीं कर सकते. बेशक अल्लाह ही ख़ूब सुनने वाला ख़ूब देखने वाला है.
21. क्या उन्होंने ज़मीन में चल फिर कर नहीं देखा कि उन लोगों का अंजाम कैसा हुआ, जो उनसे पहले थे. हालांकि वे लोग क़ूवत और ज़मीन में अपनी निशानियां यानी यादगार इमारतें वग़ैरह बनाने में भी उनसे कहीं बढ़कर थे. फिर अल्लाह ने उनके गुनाहों के सबब उन्हें गिरफ़्त में ले लिया. और उन्हें अल्लाह के अज़ाब से बचाने वाला कोई नहीं था.
22. यह इसलिए है कि जब उनके पास उनके रसूल वाज़ेह निशानियां लेकर आए, तो उन्होंने कुफ़्र किया. फिर अल्लाह ने उन्हें अज़ाब की गिरफ़्त में ले लिया. बेशक वह बड़ा साहिबे क़ूवत, सख़्त अज़ाब देने वाला है.
23. और बेशक हमने मूसा अलैहिस्सलाम को अपनी निशानियां और रौशन दलील के साथ भेजा था.
24. फ़िरऔन और हामान और क़ारून की तरफ़. फिर वे लोग कहने लगे कि यह जादूगर है, झूठा है.
25. फिर जब मूसा अलैहिस्सलाम हमारी बारगाह से पैग़ामे हक़ लेकर उनके पास आए, तो वे कहने लगे कि जो लोग उनके साथ ईमान लाए हैं, उनके बेटों को क़त्ल कर दो और औरतों को ज़िन्दा छोड़ दो. और काफ़िरों की साज़िशें नाकामी के सिवा कुछ नहीं थीं.
26. और फ़िरऔन ने कहा कि मुझे छोड़ दो, मैं मूसा को क़त्ल कर दूं और उसे चाहिए वे अपने परवरदिगार को बुला ले. मुझे ख़ौफ़ है कि वे तुम्हारे दीन को बदल देगा या ज़मीन यानी मिस्र में फ़साद पैदा कर देगा.
27. और मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं अपने और तुम्हारे परवरदिगार की पनाह लेता हूं हर उस मुताकब्बिर से, जो हिसाब के दिन यानी क़यामत पर ईमान नहीं रखता.
28. और फ़िरऔन के लोगों में से अपने ईमान को पोशीदा रखने वाले एक मोमिन ने लोगों से कहा कि क्या तुम एक शख़्स को सिर्फ़ इसलिए क़त्ल करना चाहते हो कि वह कहता है कि मेरा परवरदिगार अल्लाह है. और वह तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से वाज़ेह निशानियां लेकर आया है. और अगर वह झूठा होगा, तो उसके झूठ का वबाल उसी पर होगा. और अगर वह सच्चा है, तो जिस अज़ाब से वह तुम्हें ख़बरदार कर रहा है, वह तुम पर ज़रूर आकर रहेगा. बेशक अल्लाह उसे हिदायत नहीं देता, जो हद से गुज़रने वाला झूठा हो.
29. ऐ मेरी क़ौम ! आज तुम्हारी हुकूमत है. सरज़मीन मिस्र में तुम ही इख़्तेदार में हो. फिर हमें अल्लाह के अज़ाब से कौन बचाएगा, अगर वह अज़ाब हम पर आ जाए. फ़िरऔन ने कहा कि मैं तुम्हें सिर्फ़ वही बात समझाता हूं, जिसे मैं ख़़ुद सही समझता हूं और मैं तुम्हें भलाई की राह के सिवा और कोई रास्ता नहीं दिखाता. 
30. और ईमान वाला कहने लगा कि ऐ मेरी क़ौम ! मुझे ख़ौफ़ है कि कहीं तुम पर भी गुज़श्ता उम्मतों की तरह अज़ाब का दिन न आ जाए. 
31. कहीं तुम्हारा भी वही हाल न हो, जो नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम और हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद और सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद और उनके बाद वाले लोगों का हुआ. और अल्लाह अपने बन्दों पर ज़ुल्म करना नहीं चाहता.
32. और ऐ मेरी क़ौम ! मुझे तुम्हारे लिए पुकार के दिन यानी क़यामत के दिन का ख़ौफ़ है.
33. जिस दिन तुम मैदाने हश्र से पीठ फेरकर भागोगे और तुम्हें अल्लाह के अज़ाब से बचाने वाला कोई नहीं होगा. और अल्लाह जिसे गुमराही में छोड़ दे, तो उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं है.
34. और बेशक इससे पहले यूसुफ़ अलैहिस्सलाम भी तुम्हारे पास वाज़ेह निशानियां लेकर आए थे. और तुम उनके बारे में भी शक और शुबहा में मुब्तिला रहे, यहां तक कि जब उन्होंने वफ़ात पाई, तो तुम कहने लगे कि अब अल्लाह उनके बाद कोई रसूल नहीं भेजेगा. इसी तरह अल्लाह उस शख़्स को गुमराही में छोड़ देता है, जो हद से गुज़रने वाला शक करने वाला हो.
35. जो लोग अल्लाह की आयतों को लेकर झगड़ते हैं, बग़ैर किसी दलील के जो उनके पास आई हो. यह झगड़ना अल्लाह और ईमान वालों के नज़दीक सख़्त नापसंदीदा बात है. इसी तरह अल्लाह हर मुताकब्बिर जाबिर के दिल पर मुहर लगा देता है.
36. और फ़िरऔन ने कहा कि ऐ हामान ! तुम मेरे लिए एक ऊंचा महल बनाओ, ताकि में उस पर चढ़कर रास्तों पर पहुंच जाऊं.
37. यानी आसमानों के रास्तों पर. फिर मैं मूसा के अल्लाह को देख सकूं और मैं उसे झूठा ही समझता हूं. और इसी तरह फ़िरऔन को उसके बुरे आमाल आरास्ता करके दिखाए गए और उसे सीधे रास्ते से रोक दिया गया. और फ़िरऔन की साज़िश तबाही के सिवा कुछ नहीं थी.
38. और जो शख़्स ईमान लाया था, वह कहने लगा कि ऐ मेरी क़ौम ! मेरा कहना मानो, मैं तुम्हें ख़ैर और हिदायत का रास्ता दिखाऊंगा.
39. ऐ मेरी क़ौम ! बेशक यह दुनियावी ज़िन्दगी सिर्फ़ चंद दिन का फ़ायदा उठाने के सिवा कुछ भी नहीं और आख़िरत ही दाइमी घर है.
40. जिसने बुराई की, तो उसे वैसा ही बदला दिया जाएगा. और जो नेक अमल करेगा चाहे वह मर्द हो या औरत और वह मोमिन भी हो, तो वही लोग जन्नत में दाख़िल होंगे. उन्हें वहां बेहिसाब के रिज़्क़ दिया जाएगा.
41. ऐ मेरी क़ौम ! मुझे क्या हुआ है कि मैं तुम्हें निजात की तरफ़ बुलाता हूं और तुम मुझे दोज़ख़ की तरफ़ बुलाते हो.
42. तुम मुझे बुलाते हो कि मैं अल्लाह के साथ कुफ़्र करूं और उस चीज़ को उसका शरीक बनाऊं, जिसका मुझे कुछ इल्म भी नहीं है. और मैं तुम्हें ग़ालिब बख़्शने वाले अल्लाह की तरफ़ बुलाता हूं.
43. सच यह है कि तुम मुझे जिस चीज़ की तरफ़ बुला रहे हो, वह न तो दुनिया में पुकारने के क़ाबिल है और न आख़िरत में. और बेशक हमें अल्लाह की तरफ़ ही लौटना है और बेशक हद से गुज़रने वाले असहाबे दोज़ख़ हैं.
44. फिर तुम अनक़रीब उसे याद करोगे, जो मैं तुमसे कह रहा हूं. और मैं अपना मामला अल्लाह के सुपुर्द करता हूं. बेशक अल्लाह बन्दों को देखने वाला है.
45. फिर अल्लाह ने उसे उन लोगों की बुराइयों से बचा लिया, जो मकर वे कर रहे थे. और आले फ़िरऔन को बड़े अज़ाब ने घेर लिया.
46. वे लोग क़ब्र में दोज़ख़ की आग के सामने सुबह व शाम पेश किए जाते हैं. और जिस दिन क़यामत बरपा होगी, तो उस वक़्त हुक्म होगा कि आले फ़िरऔन को सख़्त अज़ाब में डाल दो.
47. और जब वे लोग दोज़ख़ में आपस में झगड़ा करेंगे, तो अदना लोग तकब्बुर करने वाले लोगों से कहेंगे कि हम तुम्हारे ताबे थे. क्या तुम दोज़ख़ के अज़ाब का कुछ हिस्सा हमसे दूर कर सकते हो?
48. तकब्बुर करने वाले लोग कहेंगे कि अब हम सब ही दोज़ख़ में पड़े हैं. बेशक अल्लाह बन्दों के दरम्यान फ़ैसला कर चुका है. 
49. और आग में पड़े लोग दोज़ख़ के दरोग़ाओं से दरख़्वास्त करेंगे कि अपने परवरदिगार से दुआ मांगो कि वह किसी दिन तो हमारे अज़ाब को कम कर दे.
50. वे कहेंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम्हारे रसूल निशानियां लेकर नहीं आए थे. वे कहेंगे कि क्यों नहीं, तब दरोग़ा कहेंगे कि तुम ख़़ुद ही दुआ मांगो. उस दिन काफ़िरों की दुआ बेअसर होगी.
51. बेशक हम अपने रसूलों और ईमान वालों की दुनियावी ज़िन्दगी में भी मदद करते हैं और उस दिन भी उनकी मदद करेंगे, जब गवाह खड़े होंगे. 
52. उस दिन ज़ालिमों को उनकी माज़रत कुछ भी नफ़ा नहीं देगी और उनके लिए लानत होगी. और दोज़ख़ उनके लिए बहुत बुरा घर है.
53. और बेशक हमने मूसा अलैहिस्सलाम को किताब यानी तौरात अता की और हमने उनके बाद बनी इस्राईल को उस किताब का वारिस बनाया.
54. जो अक़्लमंदों के लिए हिदायत और ज़िक्र यानी नसीहत है.
55. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम सब्र करो. बेशक अल्लाह का वादा बरहक़ है. और अपनी उम्मत के गुनाहों की बख़्शीश तलब करो और सुबह व शाम अपने परवरदिगार की हम्दो सना की तस्बीह करते रहो.
56. बेशक जो लोग अल्लाह की आयतों को लेकर झगड़ा करते हैं, बग़ैर किसी दलील के जो उनके पास नहीं आई. उनके दिलों में तकब्बुर के सिवा कुछ भी नहीं है. वे लोग हक़ीक़ी बरतरी तक कभी नहीं पहुंचेंगे. फिर तुम अल्लाह की पनाह मांगते रहो. बेशक वह ख़ूब सुनने वाला, ख़ूब देखने वाला है.
57. बेशक आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ करना, इंसानों को पैदा करने के मुक़ाबले में बहुत बड़ा काम है, लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते.
58. और नाबीना और आंखों वाले लोग बराबर नहीं हो सकते. और इसी तरह ईमान लाने वाले और नेक अमल करने वाले लोग और बदकार भी बराबर नहीं हैं. दरअसल तुम लोग बहुत ही कम ग़ौर व फ़िक्र करते हो.
59. बेशक क़यामत ज़रूर आएगी. इसमें कोई शक नहीं है. लेकिन बहुत से लोग इस पर भी ईमान नहीं रखते.
60. और तुम्हारा परवरदिगार फ़रमाता है कि तुम मुझसे दुआएं मांगो, मैं ज़रूर क़ुबूल करूंगा. बेशक जो लोग हमारी इबादत पर तकब्बुर करते हैं, वे अनक़रीब ही ज़लील और ख़्वार होकर जहन्नुम में डाले जाएंगे.
61. अल्लाह ही है, जिसने तुम्हारे लिए रात बनाई, ताकि तुम उसमें तस्कीन हासिल करो यानी आराम करो और दिन को देखने के लिए रौशन बनाया. बेशक अल्लाह लोगों पर बड़ा फ़ज़ल करने वाला है, लेकिन बहुत से लोग उसका शुक्र अदा नहीं करते.
62. वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है, जो हर चीज़ की तख़लीक़ करने वाला है. उसके सिवा कोई माबूद नहीं. फिर तुम कहां भटक रहे हो?
63. इसी तरह वे लोग भटक रहे हैं, जो अल्लाह की आयतों से इनकार करते थे.
64. अल्लाह ही है, जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को ठहरने की जगह बनाया और आसमान को छत बनाया. उसी ने तुम्हारी सूरतें बनाईं और अच्छी सूरतें बनाईं. उसी ने तुम्हें पाक रिज़्क़ दिया. वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है. फिर वह अल्लाह बड़ा बाबरकत है, जो तमाम आलमों का परवरदिगार है. 
65. वही अल्लाह हमेशा ज़िन्दा रहने वाला है. उसके सिवा कोई माबूद नहीं. उसी की ख़ालिस इबादत किया करो. वही अल्लाह सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं, जो तमाम आलमों का परवरदिगार है.
66. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मुझे इस बात की मनाही कर दी गई है कि जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, मैं भी उन्हें पुकारूं, जबकि मेरे पास मेरे परवरदिगार की बारगाह से वाज़ेह निशानियां आ चुकी हैं. और मुझे हुक्म हुआ है कि मैं तमाम आलमों के परवरदिगार का फ़रमाबरदार रहूं.
67. वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें पहले मिट्टी से पैदा किया, फिर नुत्फ़े से, फिर जमे हुए ख़ून से, फिर तुम्हें बच्चा बनाकर मां के पेट से निकालता है. तुम बच्चे से बढ़ते हुए अपनी जवानी को पहुंचते हो. फिर तुम बूढ़े हो जाते हो. तुममें से कोई पहले ही मर जाता है. इस तरह तुम मौत के मुक़र्रर वक़्त तक पहुंच जाते हो, ताकि तुम उसकी क़ुदरत को समझ सको.
68. वह अल्लाह ही है, जो ज़िन्दगी बख़्शता है और मौत देता है. फिर जब वह कोई काम करना चाहता है, तो फ़रमाता है कि ‘हो जा’ तो वह फ़ौरन ‘हो जाता’ है.
69. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जो अल्लाह की आयतों को लेकर झगड़ा करते हैं. वे कहां भटक रहे हैं.
70. जिन लोगों ने अल्लाह की किताब और उन निशानियों को झुठलाया, जिनके साथ हमने अपने रसूलों को भेजा था. फिर अनक़रीब वे अपना अंजाम जान लेंगे.   
71. जब तौक़ और ज़ंजीरें उनकी गर्दनों में पड़ी होंगी और वे घसीटे जाएंगे
72. खौलते हुए पानी में. फिर दोज़ख़ की आग में डाल दिए जाएंगे.
73. फिर उनसे कहा जाएगा कि वे कहां हैं, जिन्हें तुम शरीक ठहराते थे
74. अल्लाह के सिवा. वे कहेंगे कि वे सब हमसे ग़ायब हो गए, बल्कि हम तो पहले किसी चीज़ को नहीं पुकारते  थे. इस तरह अल्लाह काफ़िरों को गुमराही में ही छोड़ देता है. 
75. यह उसका बदला है कि तुम ज़मीन में नाहक़ ख़ुश होते थे और इसका बदला है कि तुम इतराया करते थे.
76. अब तुम जहन्नुम के दरवाज़ों से उसमें चले जाओ और हमेशा उसी में पड़े रहो. फिर मुताकब्बिरों का बहुत बुरा ठिकाना है.
77. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम सब्र करो. अल्लाह का वादा बरहक़ है. फिर अगर हम तुम्हें उस अज़ाब का कुछ हिस्सा दिखा दें, जिसका हम उनसे वादा करते हैं या हम तुम्हें इससे पहले वफ़ात दे दें, तो दोनों ही हालात में उन्हें हमारी तरफ़ ही लौटना है.
78. और बेशक हमने तुमसे पहले भी बहुत से रसूल भेजे हैं. उनमें से कुछ का हाल हमने तुमसे बयान कर दिया, और उनमें से कुछ का हाल हमने अभी तक तुमसे बयान नहीं किया. और किसी भी रसूल के लिए यह मुमकिन नहीं था कि वह अल्लाह के हुक्म के बग़ैर कोई निशानी लाए. फिर जब अल्लाह का हुक्म आ पहुंचा, तो इंसाफ़ के साथ फ़ैसला कर दिया गया और झुठलाने वाले लोग नुक़सान में रहे.
79. अल्लाह ही है, जिसने तुम्हारे लिए चौपाये बनाए, ताकि उनमें से कुछ पर तुम सवारी करो और उनमें से कुछ को तुम खाते हो.
80. और तुम्हारे लिए उनमें और भी फ़ायदे हैं और इसलिए भी कि कहीं जाने की तुम्हारे दिल में हाजत हो, तो तुम उन पर चढ़कर वहां तक पहुंच जाओ. और तुम उन पर और कश्तियों पर भी सवार होते हो.
81. और वह तुम्हें अपनी कुदरत की निशानियां दिखाता है. फिर तुम अल्लाह की किन-किन निशानियों से इनकार करोगे.
82. क्या वे लोग ज़मीन पर चले फिरे नहीं कि देखते कि उन लोगों का अंजाम कैसा हुआ, जो उनसे पहले थे. जो उनसे तादाद में कहीं ज़्यादा थे और क़ूवत और ज़मीन पर अपनी यादगारें बनाने में भी कहीं बढ़कर थे. और वह उनके कुछ भी काम नहीं आया, जो कुछ उन्होंने कमाया था.  
83. फिर जब रसूल उनके पास वाज़ेह निशानियां लेकर आए, तो वे अपने दुनियावी इल्म के गुमान में इतराने लगे. और उसी हाल में अज़ाब ने उन्हें हर तरफ़ से घेर लिया, जिसका वे मज़ाक़ उड़ाया करते थे.
84. फिर जब उन्होंने हमारा अज़ाब देख लिया, तो कहने लगे कि हम वाहिद अल्लाह पर ईमान लाए और हम उन सबसे इनकार करते हैं, जिन्हें हम उसका शरीक ठहराया करते थे.
85. फिर जब उन्होंने हमारा अज़ाब देख लिया, तो उनका ईमान लाना उनके कुछ भी काम नहीं आया. यह अल्लाह का दस्तूर है, जो उसके बन्दों में पहले से चला आ रहा है. और उस वक़्त काफ़िर नुक़सान में रहे. 

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