Tuesday, August 17, 2021

37 सूरह अस साफ़्फ़ात

सूरह अस साफ़्फ़ात मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 182 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. क़सम है क़तार दर क़तार सफ़ बांधने वालों की 
2. फिर बुराइयों पर झिड़कने वालों की
3. फिर ज़िक्रे इलाही की तिलावत करने वालों की 
4. बेशक तुम्हारा माबूद एक ही है. 
5. जो आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इनके दरम्यान है, सबका परवरदिगार है. वह मशरिक़ों का परवरदिगार है.
6. बेशक हमने दुनिया के आसमान को सितारों और सय्यारों की जगमगाहट से आरास्ता किया.
7. और उसे हर सरकश शैतान से महफ़ूज़ रखा.
8. वे शैतान आलमे बाला की तरफ़ कान नहीं लगा सकते और उन पर हर तरफ़ से अंगारे फेंके जाते हैं. 
9. यह उन्हें भगाने के लिए और उनके लिए दाइमी अज़ाब है.
10. लेकिन कोई शैतान फ़रिश्तों की किसी बात को सुन ले, तो दहकता हुआ शोला उसके पीछे लग जाता है.
11. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उनसे दरयाफ़्त करो कि क्या उन्हें पैदा करना ज़्यादा मुश्किल है या उन चीज़ों को, जिन्हें हमने आसमानी कायनात में तख़लीक़ किया है. बेशक हमने इन लोगों को गीली मिट्टी से बनाया है.
12. बल्कि तुम ताज्जुब करते हो और वे लोग मज़ाक़ उड़ाते हैं.
13. और जब उन्हें नसीहत की जाती है, तो वे नसीहत क़ुबूल नहीं करते.
14. और जब वे लोग कोई निशानी देखते हैं, तो उसका मज़ाक़ उड़ाते हैं.
15. और वे लोग कहते हैं कि यह सरीह जादू है.
16. भला जब हम मर जाएंगे और ख़ाक और हड्डियां हो जाएंगे, तो क्या फिर ज़िन्दा करके दोबारा उठाए जाएंगे.
17. और क्या हमारे पिछले बाप दादा भी क़ब्रों से उठाए जाएंगे. 
18. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि हां, और तुम्हें ज़लील भी होना है.
19. फिर वे एक बुलंद आवाज़ होगी और वे सब लोग उठकर देखने लगेंगे.
20. और वे कहेंगे कि हाय हमारी शामत ! यह तो जज़ा का दिन है.
21. उनसे कहा जाएगा कि यह वही फ़ैसले का दिन है, जिसे तुम झुठलाया करते थे.
22. फ़रिश्तों को हुक्म होगा कि उन सब लोगों को जमा करो, जिन्होंने ज़ुल्म किया और उनके साथियों और पैरोकारों और उनके सरपरस्तों को भी, जिन्हें वे पुकारते थे. 
23. अल्लाह के सिवा, फिर उन्हें जहन्नुम का रास्ता दिखाओ.
24. और उन्हें सिरात के पास रोक लो. बेशक उनसे पूछगछ होगी.
25. उनसे कहा जाएगा कि तुम्हें क्या हुआ है कि तुम एक दूसरे की मदद नहीं करते.
26. बल्कि उस दिन वे लोग सर झुकाए खड़े होंगे.
27. और वे लोग एक दूसरे की तरफ़ रुख़ करके आपस में गुफ़्तगू करेंगे.
28. वे लोग कहेंगे कि बेशक तुम ही तो हमारे पास दायीं तरफ़ से आते थे. यानी हमें बहकाते थे. 
29. उन्हें गुमराह करने वाले कहेंगे कि तुम ख़ुद ही अल्लाह पर ईमान लाने वाले नहीं थे.
30. और हमारा तुम पर कुछ ज़ोर नहीं था, बल्कि तुम खु़द ही सरकश क़ौम थे.
31. फिर हम पर हमारे परवरदिगार का अज़ाब का क़ौल पूरा हो गया. अब हम ज़रूर अज़ाब का ज़ायक़ा चखेंगे.
32. फिर हमने तुम्हें गुमराह किया. बेशक हम ख़ुद गुमराह थे.
33. फिर बेशक उस दिन वे सब लोग अज़ाब में शरीक होंगे.
34. बेशक हम गुनाहगारों के साथ ऐसा ही सुलूक किया करते हैं.
35. बेशक वे ऐसे लोग थे, जब उनसे कहा जाता था कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, तो वे तकब्बुर किया करते थे.
36. और वे लोग कहते थे कि क्या हम एक दीवाने शायर के कहने पर अपने सरपरस्तों को छोड़ दें. 
37. वे शायर नहीं हैं, बल्कि वे तो हक़ लेकर आए हैं और वे पहले के रसूलों की तसदीक़ करते हैं.
38. बेशक तुम लोग दर्दनाक अज़ाब का ज़ायक़ा चखने वाले हो.
39. और तुम्हें सिर्फ़ उसी का बदला दिया जाएगा, जो कुछ तुम किया करते थे.
40. सिवाय अल्लाह के मुख़लिस बन्दों के,
41. यही वे लोग हैं, जिनके लिए जन्नत में रिज़्क़ मुक़र्रर है. 
42 उसमें हर क़िस्म के फल व मेवे होंगे और उनकी इज़्ज़त अफ़ज़ाई की जाएगी.
43. वे नेअमतों वाली जन्नत के बाग़ों में 
44. तख़्तों पर एक दूसरे के सामने बैठे होंगे. 
45. उनके अतराफ़ छलकते हुए पाकीज़ा शर्बत के जाम का दौर चल रहा होगा.
46. साफ़ शफ़्फ़ाफ़ शर्बत पीने वालों को लज़्ज़त देगा. 
47. इस शर्बत को पीने से न नशा होगा और न वे लोग मदहोश होंगे.
48. और उनके पास निगाहें नीची रखने वाली और बड़ी आंखों वाली बीवियां बैठी होंगी.
49. गोया हिफ़ाज़त से रखे गए अंडे हों. 
50. फिर वे लोग एक दूसरे की तरफ़ रुख़ करके गुफ़्तगू करेंगे.
51. उनमें से एक शख़्स कहेगा कि दुनिया में मेरा एक दोस्त था.
52. वह मुझसे कहा करता था कि क्या तुम भी क़यामत की तसदीक़ करने वाले लोगों में से हो.
53. भला जब हम मर जाएंगे और ख़ाक और हड्डियां होकर रह जाएंगे, तो क्या हमें उस हाल में बदला दिया जाएगा. 
54. फिर वह अपने जन्नत के साथियों से कहेगा कि क्या तुम उसे झांक कर देखना चाहते हो.
55. फिर वह झांककर देखेगा, तो उसे जहन्नुम के बीच में पड़ा पाएगा.
56. यह देखकर वह कहेगा कि अल्लाह की क़सम तुम तो मुझे भी तबाह करने वाले थे.
57. और अगर मेरे परवरदिगार की नेअमत यानी करम न होता, तो मैं भी तुम्हारे साथ अज़ाब के लिए हाज़िर किए जाने वाले लोगों में शामिल हो जाता.  
58. अहले जन्नत ख़ुशी से पूछेंगे कि क्या अब हमें मौत नहीं आएगी.
59. अपनी पहली मौत के सिवा, जो हमें दुनिया में आ चुकी है. और अब हम पर कोई अज़ाब भी नहीं होगा.
60. बेशक यह बहुत बड़ी कामयाबी है.
61. ऐसी कामयाबी के लिए अमल करने वालों को अमल करना चाहिए.
62. क्या यह मेहमानी अच्छी है या ज़क़्क़ूम का शजर.
63. बेशक हमने ज़क़्क़ूम के शजर को ज़ालिमों के लिए फ़ितना यानी अज़ाब बनाया है.
64. बेशक यह वह शजर है, जो जहन्नुम की तह में उगता है.
65. इसके फल ऐसे हैं, गोया शैतानों के सर. 
66. फिर बेशक वे दोज़ख़ी इसके फल खाएंगे और इसी से अपने पेट भरेंगे.
67. फिर बेशक उन्हें खू़ब खौलता हुआ पीप मिला पानी पीने के लिए दिया जाएगा.
68. फिर बेशक उन्हें जहन्नुम की तरफ़ लौटाया जाएगा.
69. बेशक उन्होंने अपने बाप दादाओं को गुमराह पाया था.
70. फिर वे लोग भी उन्हीं के नक़्शे क़दम पर दौड़े जा रहे हैं.
71. और उनसे पहले भी बहुत से लोग गुमराह हो चुके हैं.
72. और बेशक उनके पास भी ख़बरदार करने वाले रसूल भेजे गए थे.
73. फिर तुम देखो कि उनका अंजाम कैसा हुआ, जिन्हें ख़बरदार किया गया था. 
74. सिवाय अल्लाह के मुख़लिस बन्दों के.
75. और बेशक हमसे नूह अलैहिस्सलाम ने फ़रियाद की. हम कितने अच्छे दुआ क़ुबूल करने वाले हैं. 
76. और हमने उन्हें और उनके घरवालों को बड़ी मुसीबत से निजात दी. 
77. और हमने सिर्फ़ उन्हीं की नस्ल को बाक़ी रहने वाला बनाया. 
78. और हमने उनके बाद आने वाले लोगों में उनका ज़िक्रे ख़ैर बाक़ी रखा. 
79. कि तमाम आलमों में सलाम हो नूह अलैहिस्सलाम पर 
80. बेशक हम मोहसिनों को इसी तरह जज़ा दिया करते हैं.
81. बेशक वह हमारे मोमिन बन्दों में से थे.
82. फिर हमने दूसरे लोगों को ग़र्क़ कर दिया.
83. और बेशक उन्हीं की जमात में से इब्राहीम अलैहिस्सलाम भी थे.
84. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! याद करो कि जब वे अपने परवरदिगार की बारगाह में क़ल्बे सलीम यानी सलामती वाले दिल के साथ आए. 
85. जब उन्होंने मुंह बोले वालिद यानी अपनी परवरिश करने वाले अपने चाचा आज़र और अपनी क़ौम से कहा कि तुम किन चीज़ों को पुकारते हो.
86. क्या तुम बोहतान बांधकर अल्लाह के सिवा मनगढ़ंत सरपरस्तों को चाहते हो.
87. फिर तमाम आलमों के परवरदिगार के बारे में तुम्हारा क्या ख़्याल है.
88. फिर इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने एक नज़र सितारों की तरफ़ देखा.
89. फिर उनसे कहा कि मैं बीमार हूं.
90. फिर वे लोग उनसे पीठ फेरकर लौट गए.
91. फिर इब्राहीम अलैहिस्सलाम उनके सरपरस्तों की तरफ़ मुतावज्जे हुए. फिर वे कहने लगे कि क्या तुम खाते नहीं हो.
92. तुम्हें क्या हुआ है कि तुम बोलते नहीं हो.
93. फिर इब्राहीम अलैहिस्सलाम दाहिने हाथ से उन्हें मारने लगे. 
94. फिर वे लोग दौड़ते हुए उनके पास आए. 
95. इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उनसे कहा कि क्या तुम इन बेजान चीज़ों को पुकारते हो, जिन्हें तुम खु़द तराशते हो.
96. हालांकि अल्लाह ने तुम्हारी और तुम्हारे तमाम कामों की तख़लीक़ की है. 
97. वे लोग कहने लगे कि इन्हें जलाने के लिए एक इमारत बनाओ. फिर इन्हें दहकती हुई आग में डाल दो. 
98. फिर उन लोगों ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के ख़िलाफ़ साज़िश करनी चाही, तो हमने उन्हीं को ज़ेर कर दिया. यानी आग को गुलज़ार करके इब्राहीम अलैहिस्सलाम को बचा लिया. 
99. और इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ जाने वाला हूं. बेशक वह मुझे राह दिखाएगा. यानी वह मुल्क शाम की तरफ़ हिजरत करेंगे.
100. फिर अपने मक़ाम पर पहुंचकर इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने दुआ मांगी कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझे स्वालिहीन में से एक नेक औलाद अता फ़रमा.
101. हमने उन्हें एक बड़े नर्म दिल बेटे इस्माईल अलैहिस्सलाम की बशारत दी.
102. फिर जब इस्माईल अलैहिस्सलाम अपने वालिद के साथ दौड़ धूप यानी काम करने के क़ाबिल हो गए, तो इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ मेरे बेटे ! मैंने ख़्वाब में देखा है कि अल्लाह के हुक्म से मैं तुम्हें ज़िबह कर रहा हूं. इस बारे में तुम्हारा क्या ख़्याल है. इस्माईल अलैहिस्सलाम ने कहा कि अब्बा ! आप वह काम फ़ौरन करें, जिसका आपको हुक्म हुआ है. अगर अल्लाह ने चाहा, तो आप मुझे सब्र करने वालों में से पाएंगे.
103. फिर जब दोनों ने अल्लाह का हुक्म मान लिया, तो उन्होंने बेटे को पेशानी के बल लिटा दिया. 
104. और हमने उन्हें आवाज़ देकर कहा कि ऐ इब्राहीम अलैहिस्सलाम !
105. वाक़ई तुमने ख़्वाब को सच कर दिखाया. बेशक हम मोहसिनों को इसी तरह जज़ा दिया करते हैं.
106. बेशक यह बहुत बड़ी सरीह आज़माइश थी.
107. और हमने एक बड़ी कु़र्बानी के साथ इसका फ़िदया दिया. यानी इब्राहीम अलैहिस्सलाम के हाथ से इस्माईल अलैहिस्सलाम की जगह एक मेंढे को ज़िबह करवा दिया.
108. और हमने उनके बाद आने वाले लोगों में उनका ज़िक्रे ख़ैर बाक़ी रखा. 
109. कि सलाम हो इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर 
110. हम मोहसिनों को इसी तरह जज़ा दिया करते हैं.
111. बेशक वे हमारे मोमिन बन्दों में से थे.
112. और हमने इस्माईल अलैहिस्सलाम के बाद इसहाक़ अलैहिस्सलाम की बशारत दी. वे स्वालिहीन में से नबी थे. 
113. और हमने इस्माईल अलैहिस्सलाम और इसहाक़ अलैहिस्सलाम पर बरकतें नाज़िल कीं. और उन दोनों की औलादों में से मोहसिन भी हैं और अपनी जान पर सरीह ज़ुल्म करने वाले ज़ालिम भी हैं.
114. और बेशक हमने मूसा अलैहिस्सलाम और हारून अलैहिस्सलाम पर भी बहुत सी इनायतें कीं.
115. और हमने उन दोनों को और उनकी क़ौम को बड़ी मुसीबत से निजात दी.
116. और हमने उनकी मदद की, तो वही ग़ालिब रहे. 
117. और हमने उन दोनों को रौशन किताब यानी तौरात अता की.
118. और हमने उन दोनों को हिदायत दी और सीधा रास्ता दिखाया.
119. और हमने उनके बाद आने वाले लोगों में उनका ज़िक्रे ख़ैर बाक़ी रखा.
120. सलाम हो मूसा अलैहिस्सलाम और हारून अलैहिस्सलाम पर
121. बेशक हम मोहसिनों को इसी तरह जज़ा दिया करते हैं.
122. बेशक वे दोनों हमारे मोमिन बन्दों में से थे.
123. और बेशक इलियास अलैहिस्सलाम रसूलों में से थे.
124. जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि क्या तुम लोग अल्लाह से नहीं डरते हो.
125. क्या तुम लोग बअल नाम के झूठे सरपरस्त को पुकारते हो और अल्लाह को छोड़ बैठे हो, जो बेहतरीन ख़ालिक़ है.
126. अल्लाह तुम्हारा और तुम्हारे बाप दादाओं का भी परवरदिगार है.
127. फिर इलियास अलैहिस्सलाम की क़ौम बालबेक ने उन्हें झुठला दिया. वे लोग जहन्नुम के अज़ाब में हाज़िर किए जाएंगे.
128. सिवाय अल्लाह के मुख़लिस बन्दों के. यानी वे महफ़ूज़ रहेंगे.
129. और हमने उनके बाद आने वाले लोगों में उनका ज़िक्रे ख़ैर बाक़ी रखा.
130. सलाम हो इलियास अलैहिस्सलाम पर. 
131. बेशक हम मोहसिनों को इसी तरह जज़ा दिया करते हैं.
132. बेशक वे हमारे मोमिन बन्दों में से थे.
133. और बेशक लूत अलैहिस्सलाम रसूलों में से थे.
134. जब हमने उन्हें और उनके घरवालों वालों को निजात दी.
135. सिवाय उस बूढ़ी औरत के, जो पीछे रह जाने वालों में से थी.
136. फिर हमने दूसरे लोगों को हलाक कर दिया.
137. और बेशक तुम लोग मक्का से मुल्क शाम जाते हुए सुबह के वक़्त उनकी बस्तियों के पास से गुज़रते हो. 
138. और रात में भी वहां से गुज़रते हो. क्या फिर भी तुम नहीं समझते.
139. और बेशक यूनुस अलैहिस्सलाम रसूलों में से थे.
140. जब वे भागकर एक भरी हुई कश्ती के पास पहुंचे.
141. फिर अहले कश्ती ने क़ुरआ निकाला, तो उन्हें धकेल दिया गया. यानी जब कश्ती भंवर में फंस गई, तो अहले कश्ती ने क़ुरआ डाला, तो उनका ही नाम निकला. इस पर कश्ती वालों ने उन्हें दरिया में डाल दिया. 
142. फिर उन्हें एक मछली ने निगल लिया और वे ख़ुद पर मलामत करने लगे.
143. फिर अगर वे अल्लाह की तस्बीह करने वालों में से न होते, 
144. तो वह उस दिन तक मछली के पेट में रहते, जब लोग क़ब्रों से उठाए जाएंगे.
145. फिर हमने हमने उन्हें मछली के पेट से निकालकर एक दरिया के किनारे खुले मैदान में पहुंचा दिया. और वे बीमार थे. 
146. और हमने उन पर साया करने के लिए कद्दू का एक बेलदार शजर उगा दिया. 
147. और हमने उन्हें एक लाख या इससे ज़्यादा लोगों की तरफ़ पैग़म्बर बनाकर भेजा.
148. फिर वे लोग ईमान लाए, तो हमने उन्हें एक मुक़र्रर वक़्त तक फ़ायदा पहुंचाया.
149. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम मक्का के काफ़िरों से दरयाफ़्त करो कि क्या तुम्हारे परवरदिगार के लिए बेटियां और उनके लिए बेटे हैं. 
150. क्या हमने फ़रिश्तों को औरतें बनाया है और वे लोग उस वक़्त मौजूद थे.
151. जान लो कि बेशक वे लोग मनगढ़ंत बातें करते हैं 
152. कि अल्लाह की औलाद है और बेशक वे लोग झूठे हैं.
153. क्या उसने बेटों के मुक़ाबले में बेटियों को पसंद किया है.
154. क्या तुम्हारे पास कोई वाज़ेह दलील है.
155. क्या तुम ज़रा भी ग़ौर नहीं करते. 
156. या तुम्हारे पास कोई सरीह दलील है.
157. फिर तुम अपनी किताब पेश करो. अगर तुम सच्चे हो.
158. और उन्होंने अल्लाह और जिन्नों के दरम्यान भी नस्बी रिश्ता मुक़र्रर कर रखा है. हालांकि जिन्न जानते हैं कि वे अल्लाह के हुज़ूर में पेश किए जाएंगे.
159. अल्लाह उन सब बातों से पाक है, जो वे लोग बयान करते हैं. 
160. सिवाय अल्लाह के मुख़लिस बन्दों के. 
161. फिर तुम और जिन्हें तुम पुकारते हो. 
162. तुम सब मिलकर भी अल्लाह के ख़िलाफ़ किसी को फ़ितने में नहीं डाल सकते. यानी गुमराह नहीं कर सकते.
163. सिवाय उस शख़्स के, जो जहन्नुम में जाने वाला है.
164. और फ़रिश्ते कहते हैं कि हम में से भी हर एक का मक़ाम मालूम है यानी मुक़र्रर है.
165. और बेशक हम ख़ुद सफ़ बांधे खड़े रहते हैं.
166. और बेशक हम अल्लाह की तस्बीह करने वाले हैं.
167. और बेशक वे लोग कहा करते थे
168. कि अगर हमारे पास भी पहले के लोगों का कोई ज़िक्र यानी नसीहत होती, 
169. तो हम भी अल्लाह के मुख़लिस बन्दे होते.
170. फिर अब उन लोगों ने उस क़ुरआन से कुफ़्र किया, तो वे अनक़रीब अपना अंजाम जान लेंगे. 
171. और बेशक हमारा कलाम हमारे भेजे हुए बन्दों यानी रसूलों के हक़ में सादिर हो चुका है.
172. बेशक उनकी मदद की जाएगी.
173. और बेशक हमारा लश्कर ही ग़ालिब रहेगा.
174. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम कुछ वक़्त तक उनसे तवज्जो हटा लो.
175. और उन्हें देखते रहो. फिर वे लोग अनक़रीब अपना अंजाम जान लेंगे.
176. क्या वे लोग हमारे अज़ाब के लिए जल्दी कर रहे हैं.
177. फिर जब अज़ाब उनके आंगन में नाज़िल होगा, तो उनकी सुबह कितनी बुरी होगी, जिन्हें ख़बरदार किया गया था. 
178. और तुम कुछ वक़्त तक तवज्जो हटा लो.
179. और उन्हें देखते रहो. फिर वे लोग अनक़रीब अपना अंजाम जान लेंगे.
180. तुम्हारा परवरदिगार बड़ी अज़मत वाला है. वह उन बातों से पाक है, जो वे लोग बयान करते हैं,
181. और सलाम हो तमाम रसूलों पर
182. अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं, जो तमाम आलमों का परवरदिगार है. 

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