Wednesday, August 18, 2021

36 सूरह यासीन

सूरह यासीन मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 83 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. यासीन.
2. क़सम है हिकमत वाले क़ुरआन की.
3. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक तुम रसूलों में से हो.
4. तुम सीधे रास्ते पर क़ायम हो.
5. यह बड़े ग़ालिब मेहरबान अल्लाह का नाज़िल किया हुआ है.
6. ताकि तुम उस क़ौम को अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करो, जिनके बाप दादाओं को तुमसे पहले किसी पैग़म्बर ने ख़बरदार नहीं किया. इसलिए वे हक़ से ग़ाफ़िल हैं. 
7. दरअसल उनमें से बहुत से लोगों पर हमारा क़ौल पूरा हो चुका है कि वे ईमान नहीं लाएंगे.
8. बेशक हमने उनकी गर्दनों में तौक़ डाल दिए हैं, जो उनकी ठुड्डियों तक फंसे हुए हैं. फिर वे सर उठाए हुए हैं, यानी उनकी गर्दनें अकड़ गई हैं.
9. और हमने एक दीवार उनके आगे बना दी है और एक दीवार उनके पीछे बना दी है. फिर हमने उन्हें ढक दिया है. फिर वे कुछ देख नहीं सकते.
10. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और उनके लिए सब बराबर है. तुम उन्हें नसीहत करो या न करो, वे कभी ईमान नहीं लाएंगे.
11. बेशक तुम सिर्फ़ उसी शख़्स को नसीहत कर सकते हो, जो उसकी पैरवी करे और मेहरबान अल्लाह से ग़ायबाना डरे. फिर तुम उसे मग़फ़िरत और बड़े अज्र की खु़शख़बरी दे दो.
12. बेशक हम ही मुर्दों को ज़िन्दा करेंगे. और हम वह सब लिख रहे हैं, जो आमाल वे आगे भेजते हैं और जो उनके असरात पीछे छोड़ जाते हैं. और हमने हर चीज़ को रौशन किताब यानी लौहे महफ़ूज़ में लिखा हुआ है.
13. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम उनके लिए बस्ती इनताकिया के बाशिन्दों की मिसाल बयान करो, जब उनके पास रसूल आए.
14. जब हमने उनके पास पहले दो रसूलों को भेजा, तो उन लोगों ने उन्हें झुठला दिया. फिर हमने एक तीसरे रसूल को उनके पास भेजा. तीनों रसूलों ने कहा कि बेशक हम अल्लाह के भेजे हुए रसूल हैं.
15. वे लोग कहने लगे कि तुम तो महज़ हमारे जैसे ही बशर हो और मेहरबान अल्लाह ने कुछ भी नाज़िल नहीं किया है. तुम सिर्फ़ झूठ बोल रहे हो.
16. रसूलों ने कहा कि हमारा परवरदिगार जानता है कि बेशक हम तुम्हारी तरफ़ भेजे गए हैं. 
17. और हमारी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ वाज़ेह तौर पर अल्लाह का पैग़ाम पहुंचा देने तक ही है. 
18. वे लोग कहने लगे कि हम तुम्हें मनहूस समझते हैं. अगर तुम बाज़ नहीं आए, तो हम तुम्हें संगसार करेंगे और तुम्हें हमसे दर्दनाक अज़ाब पहुंचेगा.
19. रसूलों ने कहा कि तुम्हारी नहूसत तुम्हारे साथ है. क्या यह नहूसत है कि तुम्हें नसीहत की गई, बल्कि तुम लोग हद से गुज़र जाने वाली क़ौम हो.
20. और शहर के परले किनारे से एक शख़्स दौड़ता हुआ आया. वह कहने लगा कि ऐ मेरी क़ौम ! तुम इन रसूलों की पैरवी करो.
21. इनकी पैरवी करो, जो तुमसे कोई अज्र नहीं मांगते और वे हिदायत याफ़्ता हैं. 
22. और मुझे क्या हुआ है कि मैं उस अल्लाह की इबादत न करूं, जिसने मुझे पैदा किया है और तुम सबको उसकी तरफ़ ही लौटना है.
23. क्या मैं अल्लाह को छोड़कर ऐसे सरपरस्त बना लूं कि अगर मेहरबान अल्लाह मुझे कोई तकलीफ़ पहुंचानी चाहे, तो न उनकी सिफ़ारिश मेरे कुछ काम आएगी और न वे मुझे बचा सकते हैं.
24. बेशक मैं सरीह गुमराही में मुब्तिला हो जाऊंगा.
25. बेशक मैं तुम्हारे परवरदिगार पर ईमान लाया हूं. फिर तुम मेरी बात सुनो. 
26. (उसे काफ़िरों ने शहीद कर दिया) फिर उससे कहा गया कि जन्नत में दाख़िल हो जाओ. उसने कहा कि काश ! मेरी क़ौम यह जानती.
27. कि मेरे परवरदिगार ने मुझे बख़्श दिया और मुझे इज़्ज़त वालों में शामिल कर दिया.
28. और हमने उसके बाद उसकी क़ौम पर उनकी तबाही के लिए आसमान से कोई लश्कर नाज़िल नहीं किया और न हम नाज़िल करने वाले थे.
29. उनका अज़ाब तो एक सख़्त चीख़ के सिवा कुछ नहीं था. फिर वे उसी वक़्त हलाक होकर कोयले की तरह बुझ गए.
30. अफ़सोस है उन बन्दों पर, जिनके पास ऐसा कोई रसूल नहीं आया है, जिसका उन्होंने मज़ाक़ न उड़ाया हो. 
31. क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने उनसे पहले कितनी ही क़ौमों को हलाक कर दिया कि अब वे लोग उनके पास लौटकर कभी नहीं आएंगे.
32. और बेशक वे सब हमारे सामने हाज़िर किए जाएंगे.
33. और उनके लिए हमारी क़ुदरत की एक निशानी मुर्दा ज़मीन है, जिसे हमने ज़िन्दा किया यानी बंजर ज़मीन को शादाब किया. और उसमें अनाज उगाया, जिसमें से वे लोग खाया करते हैं.
34. और हमने उसमें खजूर और अंगूरों के बाग़ लगाए और हमने उसमें पानी के चश्मे भी जारी कर दिए.
35. ताकि वे लोग उनके फल खाएं और उनके हाथों ने उन्हें नहीं बनाया. फिर भी वे लोग अल्लाह का शुक्र अदा नहीं करते.
36. अल्लाह पाक ज़ात है, जिसने सबके जोड़े बनाए, उनसे भी जिन्हें ज़मीन उगाती है और खु़द उनकी जानों से भी और उन चीज़ों से भी, जिन्हें वे नहीं जानते.
37. और हमारी क़ुदरत की एक निशानी रात भी है. हम उसमें से दिन को खींचकर निकाल लेते हैं, तो अचानक उस वक़्त उन पर अंधेरा छा जाता है.
38. और हमारी क़ुदरत की एक निशानी सूरज भी है, जो अपने मुक़र्रर मरकज़ में चल रहा है. यह बड़े ग़ालिब इल्म वाले अल्लाह की तक़दीर यानी निज़ाम है.
39. और हमने चांद के लिए भी मंज़िलें मुक़र्रर कर दी हैं, यहां तक कि वह घटते-घटते खजूर की पुरानी शाख़ की तरह हो जाता है.
40. और न सूरज चांद की हद में जा सकता है और न रात दिन से पहले आ सकती है. और सब सितारे और सय्यारे अपने-अपने फ़लक यानी अहाते में ही घूम रहे हैं.
41. और उनके लिए हमारी क़ुदरत की एक निशानी यह भी है कि हमने उनके बाप दादाओं को भरी हुई नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती में सवार किया था.
42. और हमने उनके लिए इस कश्ती की तरह बहुत सी ऐसी चीज़ें बनाईं, जिन पर वे लोग सवार होते हैं.
43. और अगर हम चाहें तो उन सब लोगों को ग़र्क़ कर दें, फिर न कोई उनकी फ़रियाद सुनने वाला होगा और न उन्हें बचाया जाएगा. 
44. सिवाय हमारी रहमत के और यह एक मुक़र्रर वक़्त तक का फ़ायदा है.
45. और जब उनसे कहा जाता है कि तुम उस अज़ाब से डरो, जो तुम्हारे सामने और तुम्हारे पीछे है, ताकि तुम पर रहम किया जाए.
46. और जब उनके परवरदिगार की निशानियों में से कोई निशानी उनके पास आती है, तो वे लोग उससे मुंह फेर लेते हैं.
47. और जब उनसे कहा जाता है कि तुम उस रिज़्क़ में से कुछ अल्लाह की राह में ख़र्च करो, जो अल्लाह ने तुम्हें दिया है, तो वे ईमान वालों से कहते हैं कि क्या हम उन लोगों को खिलाएं, जिन्हें अगर अल्लाह चाहता, तो ख़ुद ही खिला देता. तुम लोग सरीह गुमराही में मुब्तिला हो.
48. और वे लोग कहते हैं कि क़यामत का यह वादा कब पूरा होगा ? अगर तुम लोग सच्चे हो.
49. वे लोग सिर्फ़ एक सख़्त चीख़ के इंतज़ार में हैं, जो उन्हें अचानक घेर लेगी और वे लोग आपस में झगड़ रहे होंगे.
50. फिर वे लोग न तो वसीयत ही कर पाएंगे और न अपने घरवालों के पास लौट सकेंगे. 
51. और जब सूर फूंका जाएगा, तो वे लोग फ़ौरन क़ब्रों से निकलकर अपने परवरदिगार की तरफ़ दौड़ पड़ेंगे.
52. वे लोग हैरान होकर कहेंगे कि हाय हमारी शामत ! हमें किसने हमारी ख़्वाबगाह से उठाया. यही वह दिन है, जिसका मेहरबान अल्लाह ने तुमसे वादा किया था और रसूलों ने भी इस बारे में सच कहा था.
53. वह सिर्फ़ एक सख़्त चीख़ होगी, तो वे सब लोग हमारे सामने हाज़िर किए जाएंगे.
54. फिर उस दिन किसी शख़्स पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा. और न तुम्हें कोई बदला दिया जाएगा, सिवाय उन आमाल के, जो तुम किया करते थे.
55. बेशक असहाबे जन्नत उस दिन मन पसंद मशग़ले में होंगे. 
56. वे और उनकी बीवियां ठंडी छांव में तकिया लगाए तख़्तों पर चैन से बैठे होंगे.
57. उनके लिए उसमें हर क़िस्म के फल व मेवे और हर वह चीज़ मयस्सर होगी, जो वे चाहेंगे.
58. सलाम हो तुम पर. यह मेहरबान परवरदिगार की तरफ़ से कहा जाएगा. 
59. और ऐ गुनाहगारो ! तुम इनसे अलग हो जाओ.
60. ऐ बनी आदम ! क्या हमने तुम्हारे पास यह हुक्म नहीं भेजा था कि शैतान को मत पुकारो. बेशक वह तुम्हारा सरीह दुश्मन है.
61. और यह कि सिर्फ़ हमारी इबादत किया करो. यही सीधा रास्ता है.
62. और बेशक उसने तुममें से बहुत से लोगों को गुमराह कर दिया. क्या फिर भी तुम नहीं समझते थे.
63. यही वह जहन्नुम है, जिसका तुमसे वादा किया जाता था.
64. आज इसमें दाख़िल हो जाओ, क्योंकि तुम कुफ़्र करते थे.
65. आज हम उनके मुंह पर मुहर लगा देंगे और उनके हाथ हमसे बयान कर देंगे और उनके पांव उनके आमाल की गवाही देंगे, जो वे लोग किया करते थे. 
66. और अगर हम चाहते तो उनकी आंखों के निशान तक मिटा देते यानी उन्हें अंधा कर देते. फिर वे लोग रास्ते की तरफ़ दौड़ते रहते. फिर उन्हें कहां दिखाई देता.
67. और अगर हम चाहते तो वे जहां हैं, वहीं उनकी सूरतें बदल देते. फिर वे लोग वहां से न आगे बढ़ सकते और न पीछे लौट पाते.
68. और हम जिसे उम्रदराज़ करते हैं, तो उसे ख़िलक़त में फेर देते हैं. यानी उसे बच्चों की तरह कमज़ोर कर देते हैं. फिर क्या वे लोग इतना भी नहीं समझते.
69. और हमने उन्हें यानी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को शायरी नहीं सिखाई. और न यह उनके शायाने शान है. यह क़ुरआन तो ज़िक्र यानी नसीहत वाली रौशन किताब है.
70. ताकि उस शख़्स को ख़बरदार करे, जो ज़िन्दा हो. और काफ़िरों पर अज़ाब का क़ौल साबित हो जाए. 
71. क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने अपने हाथों से बनाई हुई मख़लूक़ में से उनके लिए चौपाये बनाए. फिर वे उनके मालिक बन बैठे हैं.
72. और हमने उन चौपायों को उनके क़ाबू में कर दिया, फिर उनमें से कुछ पर वे लोग सवारी करते हैं और कुछ को खाते हैं.
73. और उनमें उनके लिए बहुत से फ़ायदे हैं और पीने की चीज़ यानी दूध है. फिर वे लोग शुक्र अदा क्यों नहीं करते.
74. और उन्होंने अल्लाह को छोकर अपने सरपरस्त बना लिए हैं, ताकि उन्हें उनसे कुछ मदद मिल सके. 
75. लेकिन वे उनकी कुछ भी मदद नहीं सकते और क़यामत के दिन ये काफ़िर उन सरपरस्तों के लश्कर के तौर पर हाज़िर किए जाएंगे. 
76. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर उनकी बातें तुम्हें ग़मगीन न कर दें. बेशक हम उससे ख़ूब वाक़िफ़ हैं, जो कुछ वे लोग पोशीदा रखते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं. 
77. क्या इंसान ने यह नहीं देखा कि हमने उसे एक नुत्फे़ से पैदा किया. फिर अचानक वह सरीह झगड़ालू बन गया.
78. और वह हमारे बारे में मिसालें बयान करने लगा और अपनी पैदाइश की हक़ीक़त को भूल गया. वह कहने लगा कि हड्डियों को कौन ज़िन्दा करेगा, जबकि वे बोसीदा हो जाएंगी.
79. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि उन्हें वही अल्लाह ज़िन्दा करेगा, जिसने उन्हें पहली मर्तबा ज़िन्दगी बख़्शी थी और वही हर मख़लूक़ को ख़ूब जानता है. 
80. जिस अल्लाह ने तुम्हारे लिए सब्ज़ दरख़्तों से आग पैदा कर दी, जिससे तुम आग सुलगा लेते हो.
81. और जिस अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ की, क्या वह इस पर क़ादिर नहीं कि उन्हें दोबारा वैसा ही बना दे. और वह बड़ा ख़ालिक बड़ा साहिबे इल्म है.
82. बेशक उस अल्लाह का अमर सिर्फ़ यह है कि जब वह किसी चीज़ को पैदा करना चाहता है, तो फ़रमा देता है कि ‘हो जा’ तो फिर वह ‘हो जाती’ है.    
83. फिर अल्लाह पाक ज़ात है, जिसके हाथ में हर चीज़ की बादशाहत है और तुम्हें उसकी तरफ़ ही लौटना है.

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