Friday, August 20, 2021

34 सूरह सबा

सूरह सबा मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 54 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं. जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, सब उसी का है. आख़िरत में भी वही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं. और वह बड़ा हिकमत वाला बड़ा बाख़बर है. 
2. जो कुछ ज़मीन में दाख़िल होता है और जो कुछ इसमें से निकलता है, और जो कुछ आसमान से नाज़िल होता है और जो कुछ उस पर चढ़ता है, वह सब जानता है. और वह बड़ा मेहरबान बड़ा बख़्शने वाला है.
3. और कुफ़्र करने वाले लोग कहते हैं कि क़यामत कभी नहीं आएगी. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्यों नहीं? मुझे अपने परवरदिगार की क़सम है कि वह तुम पर ज़रूर आकर रहेगी. वह ग़ैब का जानने वाला है, जिससे आसमानों और ज़मीन की कोई चीज़ पोशीदा नहीं है. सभी छोटी और बड़ी चीज़ें रौशन किताब यानी लौहे महफ़ूज़ में लिखी हुई हैं.
4. ताकि जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, उन्हें अल्लाह पूरी जज़ा दे. यही वे लोग हैं, जिनके लिए मग़फ़िरत और इज़्ज़त का रिज़्क़ है.
5. और जिन लोगों ने हमारी आयतों को लेकर हमसे मुक़ाबला किया, उनके लिए दर्दनाक अज़ाब की सज़ा है. 
6. और जिन लोगों को इल्म दिया गया है, वे जानते हैं कि जो क़ुरआन तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाज़िल हुआ है, वह बरहक़ है और वह अल्लाह की राह दिखाता है, जो बड़ा ग़ालिब सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं.
7. और कुफ़्र करने वाले लोग कहते हैं कि क्या हम तुम्हें ऐसे शख़्स यानी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बताएं, जो तुमसे बयान करेंगेकि जब तुम मरकर बिल्कुल रेज़ा-रेज़ा हो जाओगे, तो बेशक तुम्हें नई पैदाइश मिलेगी.
8. उस शख़्स यानी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह के बारे में झूठ बोला या उन्हें जुनून है. दरअसल जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते, वे अज़ाब और परले दर्जे की गुमराही में मुब्तिला हैं. 
9. क्या उन्होंने आसमान और ज़मीन की तरफ़ नहीं देखा, जो उनके आगे और उनके पीछे है यानी उन्हें घेरे हुए है. अगर हम चाहें, तो उन्हें ज़मीन में धंसा दें या उन पर आसमान का कोई टुकड़ा ही गिरा दें. इसमें रुजू करने वाले बन्दों के लिए बड़ी निशानी है.
10. और बेशक हमने दाऊद अलैहिस्सलाम को अपनी बारगाह से फ़ज़ल अता किया. हमने पहाड़ों को हुक्म दिया कि ऐ पहाड़ो ! उनके साथ तस्बीह करो और परिन्दों को भी उनके ताबे कर दिया. और उनके लिए लोहे को नरम कर दिया.
11. कि कुशादा ज़िरहें बनाओ और कड़ियों को सही अंदाज़ से जोड़ो. और ऐ आले दाऊद ! तुम सब नेक अमल करते रहो. जो अमल तुम करते हो, हम उन्हें देख रहे हैं.
12. और हमने हवा को सुलेमान अलैहिस्सलाम के ताबे कर दिया, जिसकी सुबह की मसाफ़त एक माह की राह थी और शाम की मसाफ़त भी एक माह की राह थी. हमने उनके लिए पिघले हुए तांबे का चश्मा जारी किया और कुछ जिन्नों को उनके ताबे कर दिया, जो उनके परवरदिगार के हुक्म से उनके सामने काम करते थे. और उनसे कह दिया गया था कि जो हमारे हुक्म से फिरेगा, उसे हम दोज़ख़ की भड़कती हुई आग के अज़ाब का ज़ायक़ा चखाएंगे.
13. सुलेमान अलैहिस्सलाम जो चाहते थे, वे जिन्न उनके लिए बना देते थे, जिनमें महराबों वाली इमारतें यानी मस्जिदें, महल, क़िले और तस्वीरें और बड़े-बड़े लगन जैसे हौज़ें और एक जगह गड़ी हुई लंगरों वाली देग़ें. ऐ आले दाऊद ! हमारा शुक्र अदा करते रहो. और हमारे बन्दों में शुक्रगुज़ार बहुत ही कम हैं.
14. फिर जब हमने सुलेमान अलैहिस्सलाम की मौत का हुक्म सादिर किया, तो जिन्नों को इसकी कोई ख़बर नहीं हुई, सिवाय ज़मीन की दीमक के, जो उनके असा को खाने लगी. फिर जब उनका जिस्म ज़मीन पर आ गया, तो जिन्नों पर ज़ाहिर हो गया कि अगर वे ग़ैब के जानने वाले होते, तो इस ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब में मुब्तिला न रहते.
15. दरहक़ीक़त क़ौमे सबा के लिए उन्हीं की बस्ती में अल्लाह की क़ुदरत की एक बड़ी निशानी थी. वहां दो बाग़ थे. दायीं तरफ़ और बायीं तरफ़. उनसे कहा गया कि तुम अपने परवरदिगार का रिज़्क़ खाओ और उसका शुक्र अदा करो. यहां तुम्हारे लिए पाकीज़ा बस्ती है और आख़िरत में बड़ा बख़्शने वाला परवरदिगार है. 
16. फिर उन लोगों ने मुंह फेर लिया, तो हमने उन पर ज़बरदस्त सैलाब भेज दिया और हमने उनके दोनों बाग़ों के बदले उन्हें ऐसे दो बाग़ दिए, जिनके फल बदमज़ा थे और उनमें कुछ झाड़ियां और थोड़ी सी बेरियां थीं. 
17. ये हमने उन्हें उनके कुफ़्र का बदला दिया. और हम बड़े नाशुक्रों के सिवा किसी को सज़ा नहीं देते.
18. और हमने उनके और उनकी जिन बस्तियों के दरम्यान बरकत अता की थी, वहां चन्द बस्तियां बसाईं. यानी यमन से शाम तक बस्तियां आबाद कर दीं. हमने उनमें आमद और रफ़्त के दरम्यान आराम करने की मंज़िलें मुक़र्रर कर दीं कि लोग उनमें रात और दिन में अमन के साथ बिना ख़ौफ़ के चलें फिरें.
19. फिर वे लोग कहने लगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमारे सफ़र में फ़ासले पैदा कर दे. और उन्होंने खु़द पर ज़ुल्म किया, तो हमने भी उन्हें तबाह करके उनके फ़साने बना दिए और हमने उन्हें टुकड़े-टुकड़े करके बिखेर दिया. बेशक इसमें सब्र और शुक्र करने वाले लोगों के लिए बड़ी निशानियां हैं.
20. और बेशक इबलीस ने उनके बारे में अपना गुमान सच कर दिखाया, तो उन लोगों ने उसकी पैरवी की
सिवाय एक फ़रीक़ के, जो मोमिन थे.
21. और इबलीस का उन लोगों पर कुछ भी ज़ोर नहीं था, लेकिन हम ज़ाहिर करना चाहते थे कि कौन आख़िरत पर यक़ीन रखता है और कौन इसे लेकर शक में मुब्तिला है. और तुम्हारा परवरदिगार हर चीज़ पर निगेहबान है.
22. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, उन्हें बुलाओ. वे न आसमानों में ज़र्रा भर के मालिक हैं और न ज़मीन में. और न उनकी इन दोनों में कोई शिरकत है और न उनमें से कोई अल्लाह का मददगार है.
23. और अल्लाह के हुज़ूर में किसी की सिफ़ारिश कुछ नफ़ा नहीं देगी, सिवाय उसके जिसके लिए वह खु़द इजाज़त दे, यहां तक कि जब उनके दिलों से इज़्तिराब ख़त्म कर दिया जाएगा, तो वे लोग कहेंगे कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या फ़रमाया? फ़रिश्ते जवाब देंगे कि हक़ फ़रमाया. और वह बड़ा आला मर्तबा बड़ा कबीर है.
24. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि भला तुम्हें आसमानों और ज़मीन से कौन रिज़्क़ देता है? तुम ख़ुद कह दो कि अल्लाह देता है. और बेशक मैं या तुम हिदायत पर हैं या सरीह गुमराही में मुब्तिला हैं.
25. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि तुमसे उस गुनाह के बारे में नहीं पूछा जाएगा, जो तुम्हारे गुमान में मुझसे हुआ है और न मुझसे तुम्हारे आमाल के बारे में ही पूछगछ होगी.
26. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि हमारा परवरदिगार क़यामत के दिन हम सबको जमा करेगा. फिर हमारे दरम्यान हक़ के साथ फ़ैसला कर देगा. और वह ख़ूब फ़ैसला करने वाला साहिबे इल्म है.
27. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मुझे भी दिखाओ, जिन्हें तुमने अल्लाह का शरीक ठहराया बनाया है. हरगिज़ कोई शरीक नहीं है, बल्कि अल्लाह ही बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
28. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हमने तुम्हें तमाम लोगों के लिए बशारत देने वाला और अज़ाब से ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर बनाकर भेजा है, लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते.
29. और वे लोग कहते हैं कि क़यामत का या वादा कब पूरा होगा ? अगर तुम सच्चे हो.
30. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि तुम्हारे लिए वादे का दिन मुक़र्रर है. तुम उससे न एक पल पीछे रहोगे और न आगे ही बढ़ सकोगे.
31. और कुफ़्र करने वाले लोग कहते हैं कि हम इस क़ुरआन पर ईमान नहीं लाएंगे और न उन किताबों पर, जो इससे पहले की हैं. और तुम देखोगे कि जब ज़ालिम क़यामत के दिन अपने परवरदिगार के सामने खड़े किए जाएंगे और वे आपस में एक दूसरे पर तोहमत लगा रहे होंगे. कमज़ोर लोग, बड़े मुताकब्बिर लोगों से कहेंगे कि अगर तुम न होते, तो हम भी ज़रूर मोमिन होते.
32. मुताकब्बिर लोग, कमज़ोर लोगों से कहेंगे कि जब तुम्हारे पास अल्लाह की हिदायत आई थी, तो क्या उसके बाद हमने तुम्हें रोका था? बल्कि तुम खु़द ही गुनाहगार थे.
33. और कमज़ोर लोग, मुताकब्बिर लोगों से कहेंगे कि तुम्हारे रात दिन के मकर ने हमें रोका था. तुम हमें अल्लाह से कुफ़्र करने और उसका शरीक ठहराने को कहते थे. जब ये लोग अज़ाब को देख लेंगे, तो दिल ही दिल में बहुत पछताएंगे. हम काफ़िरों की गर्दनों में तौक़ डाल देंगे. जो कुछ ये लोग करते थे, उन्हें उसकी सज़ा दी जाएगी.
34. और हमने किसी बस्ती में कोई ख़बरदार करने वाला ऐसा पैग़म्बर नहीं भेजा, जहां के ख़ुशहाल लोगों ने यह न कहा हो कि तुम्हें जो अहकाम देकर भेजा गया है, हम उससे कुफ़्र करते हैं यानी उससे इनकार करते हैं.
35. और वे लोग कहने लगे कि हमारे पास बहुत सा माल और औलाद है. और हम पर अज़ाब नहीं आएगा. 
36. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मेरा परवरदिगार जिसके लिए चाहता है रिज़्क़ कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है रिज़्क़ तंग कर देता है, लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते हैं.
37. और तुम्हारा माल और औलाद इस क़ाबिल नहीं कि तुम्हें हमारा मुक़र्रिब बना दें, लेकिन जो ईमान लाया और नेक अमल करता रहा, तो ऐसे लोगों के लिए कई गुना जज़ा है और वे जन्नत के बाला ख़ानों में अमन यानी चैन व सुकून से रहेंगे.
38. जो लोग हमारी आयतों को लेकर हमसे मुक़ाबला करते हैं और हमें आजिज़ करने के गुमान में हैं. वे सब लोग अज़ाब में हाज़िर किए जाएंगे.
39. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक मेरा परवरदिगार अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है रिज़्क़ कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है, तंग कर देता है. और जो कुछ तुम लोग अल्लाह की राह में ख़र्च करोगे, वह उसके बदले तुम्हें और ज़्यादा देगा. वह बेहतरीन रिज़्क़ देने वाला है.
40. और जिस दिन वह अल्लाह सब लोगों को जमा करेगा. फिर फ़रिश्तों से फ़रमाएगा कि क्या ये लोग तुम्हें पुकारा करते थे? 
41. फ़रिश्ते अर्ज़ करेंगे कि तू पाक है. तू ही हमारा कारसाज़ है न कि ये लोग, बल्कि ये लोग जिन्नों को पुकारते थे और इनमें से बहुत से लोग उन्हीं पर ईमान रखते थे.
42. तब अल्लाह फ़रमाएगा कि आज तुममें से कोई भी किसी को नफ़ा या नुक़सान पहुंचाने का इख़्तियार नहीं रखता है. और हम ज़ालिमों से कहेंगे कि दोज़ख़ के अज़ाब के मज़े चखो, जिसे तुम झुठलाया करते थे.
43. और जब उनके सामने हमारी रौशन आयतें पढ़ी जाती हैं, तो वे कहते हैं कि ये रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऐसे शख़्स हैं, जो तुम्हें उनसे तुम्हें रोकना चाहते हैं, जिन्हें तुम्हारे बाप दादा पुकारते थे. और वे यह भी कहते हैं कि क़ुरआन मनगढ़ंत झूठ है. और जब काफ़िरों के पास हक़ आया, तो उसके बारे में कहने लगे कि यह सिर्फ़ सरीह जादू है.
44. और हमने उन अहले मक्का को न आसमानी किताबें अता की थीं, जिन्हें वे लोग पढ़ते हैं और न तुमसे पहले उनके पास कोई ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर भेजा था. 
45. और उनसे पहले के लोगों ने भी पैग़म्बरों को झुठलाया था. और वे लोग अभी उसके दसवें हिस्से को भी नहीं पहुंचे, जो कुछ हमने उनसे पहले के लोगों को अता किया था. फिर उन्होंने भी हमारे रसूलों को झुठलाया, तो हमारा इनकार कैसा इबरतनाक हुआ.
46. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं तुम्हें सिर्फ़ एक बात की नसीहत करता हूं कि तुम अल्लाह के लिए दो-दो मिलकर और तन्हा-तन्हा करके क़याम करो और फिर अच्छी तरह ग़ौर व फ़िक्र करो कि तुम्हारे रफ़ीक़ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कोई जुनून नहीं है, वह तो महज़ तुम्हें एक सख़्त अज़ाब से ख़बरदार करने वाले पैग़म्बर हैं.
47. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैंने तुमसे कोई उजरत चाही हो, तो वह भी तुम्हीं को दे दी. मेरा अज्र सिर्फ़ अल्लाह के ज़िम्मे है. और वह हर चीज़ का गवाह है. 
48. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक मेरा परवरदिगार हक़ नाज़िल करता है. वह ग़ैब का जानने वाला है. 
49. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि हक़ आ चुका है. और बातिल न तो पहली बार कुछ पैदा कर सकता है न वह किसी को दोबारा लौटा सकता है.
50. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगर मैं बहक जाऊं, तो मेरे बहकने का वबाल मुझ पर ही होगा. और अगर मैं हिदायत पर हूं, तो उस वही की वजह से हूं, जो मेरा परवरदिगार मेरी तरफ़ भेजता है. बेशक वह ख़ूब सुनने वाला और बहुत क़रीब है.
51. और अगर तुम देखो कि जब वे लोग घबरा हुए होंगे, तो अज़ाब से बच नहीं सकेंगे और वे क़रीब से ही गिरफ़्त में ले लिए जाएंगे.
52. और उस वक़्त वे लोग कहेंगे कि हम ईमान लाते हैं. लेकिन अब वे लोग ईमान को इतनी दूर से कहां पा सकते हैं.
53. और इससे पहले वे लोग कुफ़्र करते रहे और बिन देखे दूर से ही बातिल गुमान के तीर चलाते रहे.   
54. और अब उनके और उनकी ख़्वाहिशों के दरम्यान पर्दा डाल दिया गया है, जैसा उनसे पहले उनके मिसल के लोगों पर डाला गया था. बेशक वे धोखे में डालने वाले शक और शुबहा में मुब्तिला थे.

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