Saturday, August 21, 2021

33 सूरह अल अहज़ाब

सूरह अल अहज़ाब मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 73 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! तुम अल्लाह से डरते रहो यानी पहले की तरह ही तक़वे पर क़ायम रहो और काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों का कहना मत मानना. बेशक अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
2. और बस उसी की पैरवी करना, जो वही तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम्हारे पास आती है. बेशक तुम जिन कामों को अंजाम दे रहो हो, अल्लाह उससे बाख़बर है.
3. और तुम अल्लाह पर भरोसा करो और कारसाज़ अल्लाह ही काफ़ी है.
4. अल्लाह ने किसी आदमी के सीने में दो दिल नहीं बनाए और न उसने तुम्हारी बीवियों को तुम्हारी मां बनाया, जिनसे तुम जे़हार करते हो यानी उन्हें मां कह देते हो. और न उसने तुम्हारे मुंह बोले बेटों को तुम्हारे हक़ीक़ी बेटे बनाया है. ये सब तुम्हारी मुंह बोली बातें हैं. और अल्लाह हक़ फ़रमाता है और वही सीधा रास्ता दिखाता है.
5. तुम मुंह बोले बेटों को उनके असली वालिद के नाम से पुकारा करो. अल्लाह के नज़दीक यही इंसाफ़ है. फिर अगर तुम्हें उनके असली वालिद के नाम मालूम नहीं हैं, तो वे तुम्हारे दीनी भाई और दोस्त हैं. अगर अनजाने में तुमसे कोई भूल चूक हो जाए, तो उसका तुम पर कोई गुनाह नहीं है, लेकिन जानबूझ कर ग़लती करोगे, तो गुनाह है. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
6. ये नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तो मोमिनों पर उनकी जानों से भी ज़्यादा हक़ रखते हैं और नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवियां उनकी मांयें हैं. और अल्लाह के आईन के मुताबिक़ मोमिन और मुहाजिरों के मुक़ाबले में रिश्तेदार आपस में ज़्यादा हक़दार हैं, सिवाय इसके कि तुम अपने दोस्तों पर अहसान करना चाहो. यह हुक्म किताबे इलाही में लिखा हुआ है. 
7. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और याद करो जब हमने नबी नूह अलैहिस्सलाम और इब्राहीम अलैहिस्सलाम और मूसा अलैहिस्सलाम और मरयम के बेटे ईसा अलैहिस्सलाम से अहद लिया और पुख़्ता अहद लिया. 
8. ताकि अल्लाह सादिक़ों से उनके सच के बारे में दरयाफ़्त करे और उसने काफ़िरों के लिए दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है.
9. ऐ ईमान वालो ! अल्लाह की उन नेअमतों का ज़िक्र करो, जो उसने तुम पर नाज़िल की हैं. जब काफ़िरों का लश्कर तुम पर हमला करने के लिए आया, तो हमने उन पर आंधी भेजी और फ़रिश्तों के ऐसे लश्कर भेजे, जिन्हें तुम देख नहीं सकते. और जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसे देख रहा है.
10. जब वे लोग वादी के ऊपर से मशरिक़ी जानिब से और वादी के नीचे से मग़रिबी जानिब से तुम पर चढ़ गए और ख़ौफ़ से तुम्हारी आंखें पथरा गईं और कलेजे मुंह को आ गए, तो तुम अल्लाह के बारे में मुख़्तलिफ़ गुमान करने लगे. 
11. यहां पर मोमिनों की आज़माइश की गई और उन्हें ख़ूब झिंझोड़ा गया.
12. और जब मुनाफ़िक़ और वे लोग जिनके दिलों में मर्ज़ यानी शक व शुबहा था, कहने लगे कि अल्लाह और उसके रसूल ने हमसे फ़रेब के लिए फ़तह का वादा किया था.
13. और जब उनमें से एक तबक़ा कहने लगा कि ऐ अहले यसरिब यानी मदीने वालो ! अब तुम्हारे लिए कहीं जगह नहीं है, इसलिए लौट चलो. उनमें से एक फ़रीक़ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इजाज़त मांगते हुए कहने लगा कि हमारे घर बिल्कुल खुले पड़े हैं. हालांकि वे खुले नहीं थे. वे लोग सिर्फ़ भागना चाहते थे.
14. और अगर उन पर मदीने के अतराफ़ से ऐसे ही लश्कर आ जाते और उनसे फ़ितने के लिए कहा जाता, तो वे लोग उसके लिए फ़ौरन तैयार हो जाते और ज़रा भी देर नहीं करते.
15. और बेशक उन्होंने इससे पहले अल्लाह से अहद किया था कि वे पीठ नहीं फेरेंगे. और अल्लाह से अहद की पूछगछ तो होकर ही रहेगी.
16. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगर तुम मौत और क़त्ल किए जाने के ख़ौफ़ से भागे हो, तो यह तुम्हें थोड़ी सी मुद्दत के सिवा कुछ भी फ़ायदा नहीं देगा.
17. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ऐसा कौन है, जो तुम्हें बचा सकता है. अगर अल्लाह तुम्हारे साथ बुरा करना चाहे या तुम पर मेहरबानी करना चाहे. और वे लोग अल्लाह के सिवा न किसी को अपना कारसाज़ पाएंगे और न मददगार.
18. बेशक अल्लाह तुममें से उन लोगों को ख़ूब जानता है, जो दूसरों को जिहाद से रोकते हैं और अपने भाइयों से कहते हैं कि हमारे पास चले आओ और वे खु़द भी लड़ाई में कम ही जाते हैं. 
19. वे लोग तुम्हारे हक़ में बुख़्ल करते हैं. फिर जब वे ख़ौफ़ में होते हैं, तो तुम उन्हें देखोगे कि वे तुम्हारी तरफ़ देख रहे हैं. उनकी आंखें इस तरह घूम रही हैं, जैसे उन पर मौत की बेहोशी छा रही हो. जब ख़ौफ़ जाता रहे, तो वे तुमसे ज़बानदराज़ी करेंगे और माल में बुख़्ल करेंगे. दरअसल वे लोग ईमान लाए ही नहीं थे. अल्लाह ने उनके आमाल बर्बाद कर दिए और अल्लाह के लिए यह बहुत आसान है.
20. वे लोग गुमान करते हैं कि काफ़िरों के लश्कर अभी तक वापस नहीं गए. और अगर कहीं लश्कर दोबारा आ गए, तो वे चाहेंगे कि वे देहातियों में जाकर बस जाएं और तुम्हारी ख़बरें दरयाफ़्त करते रहें. और अगर तुम्हारे साथ हों, तो वे जंग नहीं करेंगे. 
21. ऐ ईमान वालो ! हक़ीक़त में तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेहतरीन मिसाल मौजूद है. हर उस शख़्स के लिए जो अल्लाह और आख़िरत की उम्मीद रखता हो और अल्लाह का ज़िक्र कसरत से करता हो.
22. और जब मोमिनों ने काफ़िरों के लश्कर देखे, तो कहने लगे कि यह वही है, जिसका अल्लाह और उसके रसूल ने वादा किया था. अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बिल्कुल सच कहा था और इससे उनके ईमान और इताअत में मज़ीद इज़ाफ़ा हुआ.
23. मोमिनों में से बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने अल्लाह से किए अपने अहद को पूरा कर दिखाया. उनमें से कुछ लोग ऐसे हैं, जो अपना वक़्त पूरा करके चले गए और उनमें से कुछ ऐसे हैं, जो इंतज़ार कर रहे हैं और उन्होंने अपना क़ौल ज़रा भी तबदील नहीं किया.
24. ताकि अल्लाह सादिक़ों को उनकी सच्चाई की जज़ा दे और अगर वह चाहे तो मुनाफ़िक़ों को अज़ाब दे या उनकी तौबा क़बूल करे. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
25. और अल्लाह ने क़ाफिरों को उनके ग़ुस्से के साथ मदीना से वापस लौटा दिया, ताकि वे कोई कामयाबी न पा सकें. और अल्लाह ने मोमिनों को जंग से बचा लिया. और अल्लाह बड़ा क़ूवत वाला बड़ा ग़ालिब है.
26. और बनू क़ुरैज़ा के जिन अहले किताब ने उन काफ़िरों की मदद की थी, अल्लाह ने उन्हें भी उनके क़िलों से नीचे उतार दिया और उनके दिलों में ऐसा रौब डाल दिया कि तुम उनमें से एक फ़रीक़ को क़त्ल करने लगे और एक फ़रीक़ को क़ैदी बनाने लगे. 
27. और अल्लाह ने तुम्हें उनकी ज़मीन और उनके घरों और उनके माल व दौलत और उस ज़मीन का वारिस बना दिया, जिस ज़मीन में तुमने कभी क़दम भी नहीं रखा था. और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
28. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अपनी बीवियों से कह दो कि अगर तुम दुनियावी ज़िन्दगी और उसकी ज़ीनत और आराइश की ख़्वाहिशमंद हो तो आओ, मैं तुम्हें कुछ माल व दौलत दूं और तुम्हें हुस्ने सुलूक के साथ रुख़सत कर दूं.
29. और अगर तुम अल्लाह और उसके रसूल और आख़िरत के घर की ख़्वाहिशमंद हो, तो बेशक अल्लाह ने तुममें से नेक औरतों के लिए बड़ा अज्र रखा हुआ है.
30. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवियो ! तुममें से जो कोई सरीह नाशाइस्ता सुलूक करेगी, तो उसे दोहरा अज़ाब दिया जाएगा और अल्लाह के लिए यह बहुत आसान है.
31. और तुममें से जो अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करेंगी और नेक अमल करती रहेंगी, तो हम उन्हें दोगुना अज्र देंगे. और हमने उनके लिए जन्नत में इज़्ज़त का रिज़्क़ तैयार कर रखा है.
32. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवियो ! तुम आम औरतों की तरह नहीं हो. अगर तुम परहेज़गारी इख़्तियार करना चाहती हो, तो नरम लहजे में बात न किया करो, ताकि जिसके दिल में निफ़ाक़ का मर्ज़ है कहीं वह लालच करने लगे. और तुम हमेशा मारूफ़ बात ही किया करो.  
33. और तुम अपने घरों में रहा करो. पहले की तरह अपना बनाव सिंगार न दिखाती फिरो. और तुम पाबंदी से नमाज़ पढ़ो और ज़कात देती रहो. और अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अहले बैत ! अल्लाह चाहता है कि तुमसे नापाकी दूर करके तुम्हें बिल्कुल पाकीज़ा कर दे. 
34. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवियो ! और तुम्हारे घरों में अल्लाह की जो आयतें पढ़ी जाती हैं और हिकमत की बातें कहीं जाती हैं, तुम उनका ज़िक्र करो यानी उन्हें याद रखो. बेशक अल्लाह बड़ा लतीफ़ है.
35. बेशक मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें, मोमिन मर्द और मोमिन औरतें, फ़रमाबरदार मर्द और फ़रमाबरदार औरतें, सच्चे मर्द और सच्ची औरतें, सब्र करने वाले मर्द और सब्र करने वाली औरतें, आजिज़ी करने वाले मर्द और आजिज़ी करने वाली औरतें, सदक़ा करने वाले मर्द और सदक़ा करने वाली औरतें, रोज़ा रखने वाले मर्द और रोज़ा रखने वाली औरतें, अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करने वाले मर्द और हिफ़ाज़त करने वाली औरतें, कसरत से अल्लाह का ज़िक्र करने वाले मर्द और अल्लाह का ज़िक्र करने वाली औरतें. बेशक इन सबके लिए अल्लाह ने मग़फ़िरत और बड़ा अज्र रखा है.
36. और किसी मोमिन मर्द और किसी मोमिन औरत को यह हक़ नहीं है कि जब अल्लाह और उसके रसूल किसी काम का फ़ैसला कर दें या हुक्म दें, तो वे उस काम को करने या न करने का अपना भी कुछ इख़्तियार समझें. जिस शख़्स ने अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नाफ़रमानी की, तो वह सरीह गुमराही में मुब्तिला हो गया.
37. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और याद करो, जब तुम उस शख़्स से कह रहे थे जिसे अल्लाह ने ईनाम अता किया और तुमने भी ईनाम अता किया कि अपनी बीवी ज़ैनब को अपने पास रहने दो और अल्लाह से डरो. और तुम अपने दिल में वह बात पोशीदा रख रहे थे, जिसे अल्लाह ज़ाहिर करने वाला था. और तुम लोगों के तानों से डरते थे. अल्लाह ही इसका ज़्यादा मुस्तहक़ है कि तुम उससे डरो. और जब ज़ैद ने उससे कोई ग़र्ज़ न रखी, तो हमने तुमसे उसका निकाह कर दिया, ताकि मोमिनों के लिए अपने मुंह बोले बेटों की बीवियों से निकाह करने में कोई हर्ज न रहे, जबकि वे उनसे कोई ग़र्ज़ न रखें, यानी उन्हें तलाक़ दे दें. और अल्लाह का हुक्म तो पूरा होकर ही रहता है.
38. और नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर उस काम में कोई हर्ज नहीं, जो अल्लाह ने उनके लिए फ़र्ज़ कर दिया हो. और अल्लाह का यह दस्तूर उन लोगों के बारे में भी रहा, जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं. और अल्लाह का हुक्म तो पूरा हो चुका है.
39. पहले के वे लोग अल्लाह के पैग़ाम पहुंचाते थे और उससे ख़ौफ़ रखते थे और अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते थे. और हिसाब लेने के लिए अल्लाह ही काफ़ी है.
40. ऐ लोगो ! मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम्हारे मर्दों में से किसी के वालिद नहीं हैं, लेकिन वे अल्लाह के रसूलों और नबियों के आख़िर हैं यानी उनके सिलसिले को ख़त्म करने वाले आख़िरी नबी हैं. और अल्लाह हर चीज़ को ख़ूब जानने वाला है.
41. ऐ ईमान वालो ! तुम कसरत से अल्लाह का ज़िक्र किया करो 
42. और सुबह व शाम उसकी तस्बीह करते रहो.
43. अल्लाह ही है, जो तुम पर रहमत भेजता है और उसके फ़रिश्ते भी दुआएं मांगते हैं, ताकि तुम्हें अंधेरों से निकालकर नूर की तरफ़ ले आए. और अल्लाह मोमिनों पर बड़ा मेहरबान है.
44. जिस दिन वे मोमिन अल्लाह से मिलेंगे, तो उनका तोहफ़ा सलाम होगा. और अल्लाह ने उनके लिए बड़ा अज्र तैयार रखा है.
45. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक हमने तुम्हें गवाही देने वाला और बशारत देने वाला और अज़ाब से ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर बनाकर भेजा है. 
46. और अल्लाह के हुक्म से उसकी तरफ़ से बुलाने वाला और आफ़ताब बनाकर भेजा है.
47. और तुम मोमिनों को बशारत दे दो कि उनके लिए अल्लाह की तरफ़ से बड़ा फ़ज़ल है.
48. और तुम काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों का कहना हरगिज़ मत मानना. तुम उनकी दी हुई अज़ीयत का ख़्याल छोड़ दो और अल्लाह पर भरोसा करो. और कारसाज़ अल्लाह ही काफ़ी है.
49. ऐ ईमान वालो ! जब तुम मोमिन औरतों से निकाह करो और फिर तुम उन्हें हाथ लगाने से पहले ही तलाक़ दे दो, तो फिर तुम्हें हक़ नहीं कि उनसे इद्दत पूरी कराओ. फिर तुम उन्हें कुछ माल व दौलत देकर हुस्ने सुलूक के साथ रुख़सत कर दो.
50. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक हमने तुम्हारे लिए तुम्हारी उन बीवियों को हलाल कर दिया है, जिन्हें तुम महर दे चुके हो और तुम्हारी उन लौंडियों को भी जो अल्लाह ने तुम्हें माले ग़नीमत में अता की हैं और तुम्हारे चचा की बेटियां और तुम्हारी फूफियों की बेटियां और तुम्हारे मामू की बेटियां और तुम्हारी ख़ालाओं की बेटियां जो तुम्हारे साथ हिजरत करके आई हैं और वह मोमिन औरत जो ख़ुद को नबी के लिए दे दे और नबी भी उससे निकाह करना चाहते हों. लेकिन ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! यह इजाज़त सिर्फ़ तुम्हारे लिए है और मोमिनों के लिए नहीं है. हमें मालूम है जो कुछ हमने उनकी बीवियों और लौंडियों के बारे में मुक़र्रर किया है. यह इसलिए किया गया, ताकि तुम्हें कोई तंगी न हो. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
51. और इनमें से जिसे चाहो अलग रखो और जिसे चाहो अपने पास रखो. जिसे तुमने अलग कर दिया था, अगर उसे फिर से बुलाना चाहो, तो तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है. ऐसा इसलिए है कि तुम्हारी बीवियों की आंखें ठंडी रहें और उन्हें ग़म न हो. जो कुछ तुम उन्हें दो, उसे लेकर सब ख़ुश रहें. जो कुछ तुम्हारे दिलों में है अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हलीम है.
52. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इनके बाद और औरतें तुम्हारे लिए हलाल नहीं हैं और न यह जायज़ है कि तुम उनकी जगह और बीवियां कर लो अगरचे उनका हुस्न तुम्हें कितना ही अच्छा लगे. लेकिन तुम्हारी लौंडियां इसके बाद भी जायज़ हैं. और अल्लाह हर चीज़ का रक़ीब यानी निगेहबान है.
53. ऐ ईमान वालो ! तुम नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घरों में न जाया करो सिवाय इसके कि तुम्हें खाने के लिए इजाज़त दी जाए और उसके पकने का भी इंतज़ार न करना पड़े. लेकिन जब तुम्हें दावत दी जाए, तो जाओ और जब खाना खा चुको, तो उठकर चले जाओ और बातों में न लगे रहो. इससे नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अज़ीयत होती है, लेकिन वे तुम्हारा लिहाज़ करते हैं. अल्लाह सच्ची बात कहने में शर्म नहीं करता. जब नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवियों से कुछ मांगना हो, तो पर्दे के बाहर से मांगा करो. यह तुम्हारे और उनके दिलों के लिए पाकीज़गी की बात है. तुम्हारे लिए यह जायज़ नहीं है कि अल्लाह के नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनकी बीवियों को अज़ीयत दो और न यह जायज़ है कि उनके बाद उनकी बीवियों से निकाह करो. बेशक यह अल्लाह के नज़दीक बहुत बड़ा गुनाह है.
54. अगरचे तुम किसी चीज़ को ज़ाहिर करो या उसे पोशीदा रखो. बेशक अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है. 
55. औरतों को न अपने बाप दादाओं के सामने आने में कोई गुनाह है और न अपने बेटों के और न अपने भाइयों के और न अपने भतीजों के और न अपने भांजों के और न मुस्लिम औरतों के और न अपनी लौंडियों के सामने आने में कोई गुनाह है. तुम अल्लाह से डरती रहो. बेशक अल्लाह हर चीज़ का गवाह है.
56. बेशक अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दुरूद भेजते रहते हैं. ऐ ईमान वालो ! तुम भी उन पर पर दुरूद और सलाम भेजते रहा करो.
57. बेशक जो लोग अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अज़ीयत देते हैं, अल्लाह उन पर दुनिया और आख़िरत में लानत करता है और उसने उनके लिए ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब तैयार कर रखा है.
58. जो लोग मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों को बग़ैर किसी ख़ता के अज़ीयत देते हैं, तो उन्होंने बोहतान और सरीह गुनाह का बोझ अपने सर पर रख लिया है.
59. ऐ नबी ए मुकर्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अपनी बीवियों और अपनी साहिबज़ादियों और मोमिनों की औरतों से कह दो कि बाहर निकलते वक़्त अपने ऊपर चादरें डाल लिया करें, ताकि वे पहचान ली जाएं और सताई न जाएं. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
60. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अगर मुनाफ़िक़ और वे लोग जिनके दिलों में मर्ज़ यानी कुफ़्र है और जो लोग मदीने में अफ़वाहें फैलाया करते हैं, वे सब बाज़ नहीं आए, तो हम तुम्हें उन पर ज़रूर मुसल्लत कर देंगे. फिर वे मदीने में तुम्हारे पड़ौस में कुछ दिन भी नहीं ठहर सकेंगे.
61. ये लानत किए हुए लोग जहां कहीं भी मिलें, तो पकड़े जाएं और फिर बुरी तरह क़त्ल कर दिए जाएं.
62. जो लोग पहले गुज़र चुके हैं, उनके बारे में भी अल्लाह का यही दस्तूर रहा है. तुम अल्लाह के दस्तूर में ज़रा भी तबदीली नहीं पाओगे.
63. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! लोग तुमसे क़यामत के बारे में पूछा करते हैं. तुम कह दो कि उसका इल्म सिर्फ़ अल्लाह ही को है. तुम्हें क्या मालूम कि शायद क़यामत क़रीब ही आ गई हो.
64. बेशक अल्लाह ने काफ़िरों पर लानत की है और उनके लिए दोज़ख़ की भड़कती हुई आग तैयार कर रखी है.
65. इसमें वे लोग हमेशा-हमेशा रहेंगे और वे न किसी को अपना सरपरस्त पाएंगे और न मददगार.
66. जिस दिन उनके मुंह दोज़ख़ की आग में लटकाए जाएंगे, तो वे कहेंगे कि काश ! हमने अल्लाह की इताअत की होती और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत की होती.
67. और वे लोग कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! बेशक हमने अपने सरदारों और बड़े लोगों का कहना माना, तो उन्होंने हमें गुमराह कर दिया.
68. वे लोग कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! उन लोगों पर दोगुना अज़ाब नाज़िल कर और उन पर बड़ी लानत कर.
69. ऐ ईमान वालो ! तुम लोग उनके जैसे न हो जाना, जिन्होंने मूसा अलैहिस्सलाम को अज़ीयतें दीं, तो अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम को तोहमतों से बरी कर दिया. और वे अल्लाह के नज़दीक बड़ी इज़्ज़त वाले पैग़म्बर थे.
70. ऐ ईमान वालो ! अल्लाह से डरते रहो और सही और सीधी बात कहा करो.
71. वह अल्लाह तुम्हारे सब आमाल दुरुस्त कर देगा और तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा. जिस शख़्स ने अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत की, तो वह बड़ी कामयाबी हासिल करेगा.
72. बेशक हमने इताअत की अमानत को आसमानों और ज़मीन के सामने पेश किया, तो उन्होंने उसका वज़न उठाने से इनकार कर दिया और उससे डर गए. लेकिन इंसान ने उसे उठा लिया. बेशक इंसान बड़ा ज़ालिम और नादान है. यानी इंसान को गुमान है कि वह अमानत की इताअत कर लेगा, लेकिन वह इताअत की अदायगी में कोताही के अंजाम से बिल्कुल अनजान है.  
73. यह इसलिए है कि अल्लाह मुनाफ़िक़ मर्दों और मुनाफ़िक़ औरतों और मुशरिक मर्दों और मुशरिक औरतों को अज़ाब देगा और मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों की तौबा क़ुबूल करेगा. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.

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