Sunday, August 22, 2021

32 सूरह अस सजदह

सूरह अस सजदह मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 30 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अलिफ़ लाम मीम.
2. बेशक यह किताब तमाम आलमों के परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल हुई है. 
3. क्या वे लोग यह कहते हैं कि इसे उस रसूल ने ख़ुद ही गढ़ लिया है, बल्कि यह तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से हक़ है, ताकि तुम उस क़ौम को ख़बरदार करो, जिसके पास तुमसे पहले कोई ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर नहीं आया, ताकि वे हिदायत पाएं.
4. अल्लाह ही है, जिसने आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इनके दरम्यान हैं, उसकी छह दिन में तख़लीक़ की. फिर उसने अर्श पर अपना इख़्तेदार क़ायम किया. उसके सिवा तुम्हारा न कोई कारसाज़ है और न कोई शफ़ाअत करने वाला. क्या फिर भी तुम ग़ौर व फ़िक्र नहीं करते.
5. वही अल्लाह आसमान से ज़मीन तक हर काम की तदबीर करता है. फिर वह अमर एक दिन में उसकी तरफ़ चढ़ता है, जिसकी मिक़दार तुम्हारे शुमार में हज़ार बरस होगी.
6. वही अल्लाह ग़ैब और ज़ाहिर का जानने वाला, ग़ालिब व मेहरबान है.
7. वह अल्लाह ही है, जिसने हर चीज़ को बहुत अच्छी तरह बनाया और उसने इंसान की इब्तिदाई तख़लीक़ मिट्टी से की. 
8. फिर उसकी नस्ल निचोड़े हुए हक़ीर पानी से चलाई.
9. फिर उसे दुरुस्त किया और उसमें अपनी तरफ़ से रूह फूंकी और तुम्हारे कान और आंखें और दिल व दिमाग़ बनाए. तुम लोग बहुत ही कम शुक्र अदा करते हो.
10. और वे लोग कहते हैं कि जब हम ज़मीन की ख़ाक में मिल जाएंगे तो क्या फिर से पैदा किए जाएंगे, बल्कि वे लोग अपने परवरदिगार से मिलने से कुफ़्र यानी इनकार करते हैं.
11. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि तुम पर मुक़र्रर मौत का फ़रिश्ता जब तुम्हारी रूहें क़ब्ज़ कर लेगा, तो फिर तुम अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाये जाओगे.   
12. और तुम्हें अफ़सोस होगा अगर तुम देखोगे कि गुनाहगार लोग अपने परवरदिगार के हुज़ूर में अपने सर झुकाए खड़े होंगे और कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हमने देख लिया और हमने सुन लिया. तू हमें दुनिया में वापस भेज दे कि हम नेक अमल करें. बेशक हम यक़ीन करने वाले हैं. 
13. और अगर हम चाहते तो हर शख़्स को ख़ुद ही हिदायत दे देते, लेकिन हमारी तरफ़ से यह क़ौल साबित हो चुका है कि जहन्नुम को काफ़िर जिन्नों और इंसानों से भरेंगे.
14. फिर तुम ज़ायक़ा चखो कि पहले तुमने इस दिन की पेशी को भुला दिया था. बेशक अब हमने तुम्हें भुला दिया है. और उन आमाल के बदले दाइमी अज़ाब का ज़ायक़ा चखो, जो तुम किया करते थे.
15. बेशक हमारी आयतों पर वही लोग ईमान लाते हैं, जिन्हें उन आयतों के ज़रिये नसीहत की जाती है, तो वे फ़ौरन सजदा करते हैं और अपने परवरदिगार की हम्दो सना की तस्बीह करते हैं और तकब्बुर नहीं करते.
16. उनके पहलू उनकी ख़्वाबगाहों यानी बिछौनों से अलग होते हैं और वे ख़ौफ़ और उम्मीद से अपने परवरदिगार की इबादत करते हैं और हमने जो रिज़्क़ उन्हें अता किया है, उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं.
17. फिर यह कोई नहीं जानता कि उनके लिए आंखों की ठंडक पोशीदा रखी गई है. यह उनके नेक आमाल की जज़ा होगी, जो वे किया करते थे.
18. फिर क्या मोमिन उस शख़्स के बराबर हो सकता है, जो नाफ़रमान है. नहीं, ये दोनों बराबर नहीं हो सकते.
19. जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, उनके लिए जन्नत के बाग़ हैं. यह मेहमानी उनके नेक आमाल का सिला है, जो वे किया करते थे.
20. और जिन लोगों ने नाफ़रमानी की, उनका ठिकाना दोज़ख़ है. वे लोग जब भी उसमें से निकलकर भागना चाहेंगे, तो उन्हें फिर से उसी में लौटा दिया जाएगा. उनसे कहा जाएगा कि अब उस दोज़ख़ के अज़ाब का ज़ायक़ा चखो, जिसे तुम झुठलाया करते थे.
21. और हम उन्हें यक़ीनन आख़िरत के बड़े अज़ाब से पहले दुनिया में भी अज़ाब का मज़ा चखाएंगे, ताकि वे कुफ़्र से बाज़ आएं.
22. और उस शख़्स से बढ़कर ज़ालिम कौन हो सकता है, जिसे उसके परवरदिगार की आयतों से नसीहत की जाए. फिर वह उनसे मुंह फेर ले. बेशक हम गुनाहगारों से इंतक़ाम लेकर रहेंगे.
23. और हमने मूसा अलैहिस्सलाम को किताब यानी तौरात अता की थी. फिर तुम उनकी मुलाक़ात की निस्बत शक में मुब्तिला न रहो. और हमने उन्हें बनी इस्राईल के लिए हिदायत बनाया था.
24. और उनमें से हमने कुछ इमाम बना दिए, जो हमारे हुक्म से हिदायत करते रहे. वे सब्र करते थे और वे हमारी आयतों पर यक़ीन रखते थे.   
25. बेशक तुम्हारा परवरदिगार क़यामत के दिन उनके दरम्यान फ़ैसला कर देगा, जिन बातों में वे लोग इख़्तिलाफ़ करते थे.
26. और क्या उन्हें इस बात से हिदायत नहीं मिली कि हमने उनसे पहले कितनी ही उम्मतों को हलाक कर दिया था, जिनके घरों में ये लोग चल फिर रहे हैं. बेशक इसमें बहुत सी निशानियां हैं, तो क्या वे लोग सुनते नहीं हैं.
27. और क्या उन्होंने नहीं देखा कि हम पानी को बंजर ज़मीन की तरफ़ पानी बहा ले जाते हैं. फिर हम उससे खेती करते हैं, जिसे उनके चौपाये भी खाते हैं और वे ख़ुद भी खाते हैं, तो क्या वे लोग देखते नहीं हैं.
28. और वे लोग कहते है कि फ़ैसले का दिन कब आएगा ? अगर तुम लोग सच्चे हो. 
29. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि फ़ैसले के दिन काफ़िरों को उनका ईमान लाना कुछ भी नफ़ा नहीं देगा और न उन्हें इसकी मोहलत ही दी जाएगी.
30. फिर तुम उनसे मुंह फेर लो और इंतज़ार करो. और वे लोग भी मुंतज़िर हैं.

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