सूरह अल हज मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 78 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ इंसानो! अपने परवरदिगार से डरते रहो. बेशक क़यामत का ज़लज़ला बड़ी सख़्त चीज़ है.
2. जिस दिन तुम उसे देखोगे कि हर दूध पिलाने वाली औरत अपने दूध पीते बच्चे को भूल जाएगी और हर हामिला औरत अपना हमल गिरा देगी. और लोग मदहोश नज़र आएंगे. हालांकि वे नशे में नहीं होंगे, लेकिन अल्लाह का अज़ाब इतना सख़्त होगा कि उसकी दहशत से लोग बदहवास हो जाएंगे.
3. और कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अल्लाह के बारे में बग़ैर इल्म के झगड़ते हैं और हर सरकश शैतान की पैरवी करते हैं.
4. जिस शैतान के बारे में लिख दिया गया है कि जो उससे दोस्ती करेगा, तो बेशक वह उसे गुमराह कर देगा और दोज़ख़ के अज़ाब का रास्ता दिखाएगा.
5. ऐ इंसानो ! अगर तुम्हें मरने के बाद दोबारा ज़िन्दा करके उठाए जाने में शक है, तो अपनी तख़लीक़ पर ग़ौर व फ़िक्र करो. बेशक हमने तुम्हारी इब्तिदाई तख़लीक़ मिट्टी से की है. फिर नुत्फ़े से उसके बाद जमे हुए ख़ून से फिर लोथड़े से, जिसमें कोई मुकम्मल हो जाता है और कोई अधूरा ही रह जाता है, ताकि हम तुम्हारे लिए अपनी क़ुदरत को ज़ाहिर कर दें. और हम जिसे चाहते हैं, रहमों में मुक़र्रर मुद्दत तक ठहराये रखते हैं. फिर हम तुम्हें बच्चा बनाकर बाहर ले आते हैं. फिर तुम्हारी परवरिश करते हैं, ताकि तुम जवानी को पहुंच जाओ. फिर तुममें से कुछ लोग जल्दी मर जाते हैं और कुछ लोग ज़ईफ़ी की उम्र तक पहुंच जाते हैं, ताकि वे देख लें कि सबकुछ जानने के बाद भी कुछ नहीं जानते. और तुम बंजर ज़मीन को देखते हो. फिर जब हम पानी बरसा देते हैं, तो वह शादाब होकर लहलहाने और उभरने लगती है. और उसमें हर क़िस्म की ख़ु़शनुमा चीज़ें उगने लगती हैं.
6. यह सबकुछ इसलिए होता है, ताकि तुम जान लो कि अल्लाह ही बरहक़ है और बेशक वही मुर्दों को ज़िन्दा करता है और यक़ीनन वह हर चीज़ पर क़ादिर है.
7. और बेशक क़यामत आने वाली है. इसमें कोई शक नहीं है. और बेशक अल्लाह उन लोगों को दोबारा ज़िन्दा करके उठाएगा, जो क़ब्रों में होंगे.
8. और लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं, जो अल्लाह के बारे में झगड़ते रहते हैं, बगै़र इल्म के और बगै़र हिदायत व दलील के और बगै़र रौशन किताब के, जो आसमान से नाज़िल हुई हो.
9. जो तकब्बुर से अपनी गर्दन मोड़े हुए है, ताकि दूसरों को अल्लाह के रास्ते से भटका दे, तो उसके लिए दुनिया में भी रुसवाई है और क़यामत के दिन भी हम उसे दोज़ख़ की भड़कती हुई आग के अज़ाब का ज़ायक़ा चखाएंगे.
10. उससे कहा जाएगा कि यह उसकी सज़ा है, जो कुछ तेरे हाथ आगे भेज चुके हैं. और बेशक अल्लाह अपने बन्दों पर कोई जु़ल्म नहीं करता.
11. और लोगों में से कोई ऐसा भी होता है, जो दीन के एक किनारे पर रहकर अल्लाह की इबादत करता है. फिर अगर उसे कोई भलाई पहुंचती है, तो वह मुतमईन हो जाता है. और अगर वह किसी आज़माइश में मुब्तिला हुआ, तो वह फ़ौरन कुफ़्र की तरफ़ पलट जाता है. उसने दुनिया में भी नुक़सान उठाया और आख़िरत में भी. यही तो सरीह नुक़सान है.
12. वह शख़्स अल्लाह के सिवा उन्हें पुकारता है, जो न उसे नुक़सान पहुंचा सकते हैं और न कुछ नफ़ा ही पहुंचा सकते हैं. यही तो परले दर्जे की गुमराही है.
13. वह उसे पुकारता है जिसका नुक़सान उसके नफ़े से ज़्यादा क़रीब है. बेशक वह बुरा सरपरस्त और बुरा साथी है.
14. बेशक जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो अल्लाह उन्हें जन्नत के बाग़ों में दाख़िल करेगा, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. बेशक अल्लाह जो चाहता है, वह करता है.
15. जो शख़्स यह गुमान करता है कि अल्लाह अपने महबूब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुनिया और आख़िरत में मदद नहीं करेगा, तो उसे चाहिए कि वह एक रस्सी के ज़रिये आसमान की तरफ़ बढ़े और फिर उस रस्सी को काट दे. फिर देखे कि यह तदबीर उस चीज़ को दूर कर सकती है या नहीं, जो उसे ग़ुस्सा दिला रही है.
16. और इसी तरह हमने इस कु़रआन को वाजे़ह निशानियों की सूरत में नाज़िल किया है. और बेशक अल्लाह जिसे चाहता है, हिदायत देता है.
17. बेशक जो लोग ईमान लाए और जो यहूदी हो गए और सितारा परस्त और नसरानी यानी ईसाई और आतिश परस्त और मुशरिक हो गए, बेशक अल्लाह क़यामत के दिन उन लोगों के दरम्यान फ़ैसला कर देगा. बेशक अल्लाह हर चीज़ का गवाह है.
18. क्या तुमने नहीं देखा कि सारी मख़लूक़ अल्लाह को सजदा करती है, जो आसमानों में है और जो ज़मीन में है और सूरज और चांद और सितारे और पहाड़ और दरख़्त और चौपाये और बहुत से इंसान भी. और बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जिन पर कुफ़्र की वजह से अज़ाब का हुक्म सादिर हो चुका है. और अल्लाह जिसे ज़लील कर दे, तो उसे कोई इज़्ज़त देने वाला नहीं है. बेशक अल्लाह जो चाहता है, वह करता है.
19. मोमिन और काफ़िर ये दो फ़रीक़ हैं, जो अपने परवरदिगार के बारे में झगड़ते रहते हैं. फिर जो लोग काफ़िर हो गए, उनके लिए दोज़ख़ की आग के कपड़े काटकर सील दिए गए हैं. उनके सरों पर खौलता हुआ पानी डाला जाएगा.
20. जिसकी गर्मी से उनके पेट के अंदर की चीज़ें और खालें गल जाएंगी.
21. और उन्हें मारने के लिए लोहे के हथौड़े होंगे.
22. जब वे लोग अज़ाब से बचकर भागना चाहेंगे, तो उन्हें वापस लौटा दिया जाएगा और उनसे कहा जाएगा कि आग के अज़ाब का ज़ायक़ा चखो.
23. बेशक जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, अल्लाह उन्हें जन्नत के सदाबहार बाग़ों में दाख़िल करेगा, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. और जन्नत में उन्हें सोने के कंगन और मोतियों के हार पहनाए जाएंगे और वहां उनका लिबास रेशम का होगा.
24. और दुनिया में उन्हें पाकीज़ा क़ौल यानी कलमा ए तौहीद की हिदायत की गई और उन्हें अल्लाह का रास्ता दिखाया गया है, जो सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं.
25. बेशक जो लोग कुफ़्र करते हैं और दूसरों को अल्लाह के रास्ते और मस्जिदे हराम यानी ख़ाना ए काबा से रोकते हैं, जिसे हमने सबके लिए बराबर क़रार दिया है, अगरचे वे मक़ामी हों या बैरूनी सबका हक़ बराबर है. और जो इसमें ज़ुल्म के साथ गुमराह करने का इरादा करेगा, तो हम उसे दर्दनाक अज़ाब का ज़ायक़ा चखाएंगे.
26. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब हमने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के लिए ख़ाना ए काबा की तामीर की जगह मुहैया कर दी और उनसे कहा कि हमारे साथ किसी चीज़ को शरीक न ठहराना और हमारे घर को तवाफ़ करने वालों और क़याम करने वालों और रुकू करने वालों और सजदे करने वालों के लिए पाक साफ़ रखना.
27. और लोगों के दरम्यान हज का ऐलान कर दो कि वे तुम्हारे पास पैदल और दुबले ऊंटों पर सवार होकर दूर दराज़ के रास्तों से चले आएं.
28. ताकि वे दुनिया व आख़िरत के फ़ायदे के लिए हाज़िर हों और चन्द मुक़र्रर दिनों के अंदर अल्लाह का नाम लेकर उन चौपायों को ज़िबह करें, जो अल्लाह ने उन्हें अता किए हैं. फिर तुम लोग क़ुर्बानी का गोश्त खु़द भी खाओ और बदहाल फ़क़ीरों को भी खिलाओ.
29. फिर लोगों को चाहिए कि वे अपनी कशाफ़्त दूर करें और अपनी नज़रें पूरी करें और अल्लाह के क़दीम घर ख़ाना ए काबा का तवाफ़ करें.
30. यही हुक्म है. और जो अल्लाह की हुरमत वाली चीज़ों की ताज़ीम करता है, तो यह उसके पrवरदिगार के यहां उसके लिए बेहतर है. और तुम्हारे लिए तमाम चौपाये हलाल कर दिए गए हैं, सिवाय उन जानवरों के जिनकी तफ़सील तुम्हें पढ़कर सुना दी गई है. लिहाज़ा तुम बुतों की निजासत से बचा करो और झूठी बातों से भी परहेज़ किया करो.
31. तुम सिर्फ़ अल्लाह ही के होकर रहो. उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ. और जो अल्लाह के साथ किसी को शरीक करता है, तो वह ऐसा है जैसे आसमान से गिर पड़े. फिर उसे कोई परिन्दा उचक ले जाए या हवा उसे किसी दूर दराज़ की जगह पर ले जाकर फेंक दे.
32. यही हुक्म है. और जो अल्लाह की निशानियों की ताज़ीम करता है, तो बेशक यह ताज़ीम भी दिलों के तक़वे से ही हासिल होती है.
33. तुम्हारे लिए इन क़ुर्बानी के चौपायों में मुक़र्रर मुद्दत तक बहुत से फ़ायदें हैं. फिर उन्हें क़ुर्बानी के लिए क़दीमी घर ख़ाना ए काबा तक पहुंचना है.
34. और हमने हर उम्मत के लिए क़ुर्बानी मुक़र्रर कर दी है, ताकि वे उन चौपायों को ज़िबह करते वक़्त अल्लाह का नाम लें, जो अल्लाह ने उन्हें अता किए हैं. लिहाज़ा तुम्हारा माबूद माबूदे यकता है. फिर तुम उसी के फ़रमाबरदार बन जाओ. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम आजिज़ी करने वालों को जन्नत की खु़शख़बरी सुना दो.
35. ये वे लोग हैं कि जब उनके सामने अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है, तो उनके दिल सहम जाते हैं और जब उन पर कोई मुसीबत आ जाती है, तो सब्र करते हैं. और पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हैं और हमने जो कुछ उन्हें अता किया है, उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं.
36. और हमने क़ुर्बानी के ऊंट को भी अल्लाह की निशानियों में से क़रार दिया है. इसमें तुम्हारे लिए ख़ैर है. फिर तुम उन्हें क़तार में खड़ा करके अल्लाह का नाम लो. फिर जब वे ज़िबह होकर पहलू के बल ज़मीन पर गिर जाएं, तो उनके गोश्त में से तुम खु़द भी खाओ और सवाल न करने वाले मोहताजों को भी खिलाओ और सवाल करने वाले मोहताजों को भी खिलाओ. इसी तरह हमने उन्हें तुम्हारे ताबे कर दिया है, ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो.
37. अल्लाह को न क़ुर्बानी का गोश्त पहुंचता है और न उसका ख़ून. लेकिन अल्लाह की बारगाह में तुम्हारा तक़वा पहुंचता है. अल्लाह ने चौपायों को इसलिए तुम्हारे क़ाबू में किया है, ताकि तुम उन्हें ज़िबह करते वक़्त अल्लाह की तकबीर कहो, जैसे उसने तुम्हें हिदायत दी है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम मोहसिनों को जन्नत की ख़ु़शख़बरी सुना दो.
38. बेशक अल्लाह मोमिनों से शैतान के शर को दूर करता रहता है. बेशक अल्लाह किसी ख़यानत करने वाले नाशुक्रे को पसंद नहीं करता.
39. उन लोगों को जिहाद की इजाज़त दे दी गई है, जिनसे नाहक़ जंग की जा रही है और उन पर ज़ुल्म किए जा रहे हैं. और बेशक अल्लाह उन मज़लूमों की मदद पर क़ादिर है.
40. ये वे लोग हैं, जो अपने घरों से नाहक़ निकाल दिए गए, क्योंकि वे कहते थे कि हमारा परवरदिगार अल्लाह है. और अगर अल्लाह कुछ तबक़ों को दूसरे तबक़ों के ज़रिये नहीं हटाता, तो ख़ानक़ाहें, गिरजे और यहूदियों के इबादत ख़ाने और मजूस के इबादत ख़ाने और मस्जिदें यानी तमाम इबादतगाहें, जिनमें कसरत से अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है, सब ढहाकर वीरान कर दी जातीं. और जो अल्लाह के दीन की मदद करता है, तो बेशक अल्लाह उसकी मदद करता है. बेशक अल्लाह बड़ा क़ूवत वाला बड़ा ग़ालिब है.
41. ये वे लोग हैं कि अगर हम इन्हें ज़मीन में इख़्तेदार दे दें, तो वे नमाज़ का निज़ाम क़ायम करें, और ज़कात की अदायगी का इंतज़ाम करें और अच्छे काम का हुक्म करें और लोगों को बुराई से रोकें. और सब कामों का अंजाम अल्लाह ही के इख़्तियार में है.
42. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर ये काफ़िर तुम्हें झुठलाते हैं, तो कोई ताज्जुब नहीं है. इससे पहले नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम और हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद और सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद ने भी अपने रसूलों को झुठलाया था.
43. और इब्राहीम अलैहिस्सलाम की क़ौम और लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम ने भी अपने रसूलों को झुठलाया था.
44. और मदयन के रहने वाले लोग भी अपने रसूलों को झुठला चुके हैं. और मूसा अलैहिस्सलाम को भी झुठलाया गया है. फिर हम उन सब काफ़िरों को मोहलत देते रहे. फिर हमने उन्हें अज़ाब में गिरफ़्तार कर लिया, तो उन्होंने देख लिया कि हमारा अज़ाब कैसा था.
45. फिर कितनी ही बस्तियां ऐसी हैं, जिन्हें हमने हलाक कर दिया कि उनमें रहने वाले लोग ज़ालिम थे. फिर उन्हें पलट दिया, तो वे अपनी छतों पर ढह गईं. और कितने कुएं बेकार हो गए और कितने ही मज़बूत महल भी उजड़ गए.
46. क्या वे लोग ज़मीन में चले फिरे नहीं कि खंडहरों को देखकर उनके लिए ऐसे दिल हो जाते हैं, जो हक़ को समझ सकते या उनके कान ऐसे हो जाते होते, जिनके ज़रिये हक़ को सुन सकते. बेशक ऐसे लोगों की आंखें अंधी नहीं होतीं, लेकिन दिल अंधे हो जाते हैं, जो सीनों में हैं.
47. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वे लोग तुमसे अज़ाब में जल्दी के तलबगार हैं और अल्लाह हरगिज़ अपने वादे की ख़िलाफ़वर्ज़ी नहीं करेगा. और बेशक क़यामत का एक दिन तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक तुम्हारे शुमार के हिसाब से एक हज़ार बरस के बराबर है.
48. और कितनी बस्तियां ऐसी हैं, जिन्हें हमने मोहलत दी और उनमें रहने वाले ज़ालिम थे. फिर हमने उन्हें अज़ाब में गिरफ़्तार कर लिया. और सबको हमारी तरफ़ ही लौटना है.
49. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ऐ लोगो ! मैं तो सिर्फ़ तुम्हें अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर हूं.
50. फिर जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो उनके लिए मग़फ़िरत और इज़्ज़त का रिज़्क़ है.
51. और जो लोग हमारी आयतों को झुठला कर हमें आजिज़ करने की कोशिश करते हैं, तो वही लोग असहाबे जहन्नुम हैं.
52. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हमने तुमसे पहले कोई ऐसा रसूल या नबी नहीं भेजा कि जब भी उसने अल्लाह का कलाम पढ़ा, तो शैतान ने सुनने वाले लोगों के ज़ेहन में उस कलाम के बारे में वसवसे डाल दिए. फिर शैतान जो वसवसे डालता है, अल्लाह उन्हें मिटा देता है और अपनी आयतों को मुस्तहकम कर देता है. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
53. यह इसलिए होता है, ताकि अल्लाह लोगों के ज़ेहनों में डाले गए शैतान के वसवसों को उनकी आज़माइश का ज़रिया बना दे, जिनके दिलों में कुफ़्र का मर्ज़ है और जिनके दिल सख़्त हैं. और बेशक ज़ालिम बड़ी शदीद मुख़ालिफ़त में मुब्तिला हैं.
54. और यह इसलिए भी होता है, ताकि जिन लोगों को इल्म अता किया गया है, वे जान लें कि बेशक तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल हुई वही बरहक़ है. फिर वे लोग इस पर ईमान ले आएं और फिर उनके दिल अल्लाह की बारगाह में आजिज़ी का इज़हार करें. और बेशक अल्लाह ईमान वालों को सीधे रास्ते की हिदायत देता है.
55. और कुफ़्र करने वाले लोग हमेशा क़ुरआन के हवाले से शक व शुबहा में मुब्तिला रहेंगे, यहां तक कि अचानक उन पर क़यामत आ जाए या सख़्त मनहूस दिन का अज़ाब नाज़िल हो जाए, जिससे निजात का कोई इमकान नहीं.
56. उस दिन सिर्फ़ अल्लाह ही की बादशाहत होगी. वही उनके दरम्यान फ़ैसला करेगा. फिर जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, वे जन्नत के नेअमतों से सराबोर बाग़ों में रहेंगे.
57. और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया, तो उनके लिए ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब होगा.
58. और जिन लोगों ने अल्लाह की राह में अपने वतन से हिजरत की, फिर क़त्ल कर दिए गए या उन्हें मौत आ गई, तो अल्लाह उन्हें यक़ीनन उम्दा रिज़्क़ देगा. और बेशक अल्लाह बेहतरीन रिज़्क़ देने वाला है.
59. अल्लाह यक़ीनन उन्हें ऐसी जगह दाख़िल करेगा, जिससे वे ख़ुश हो जाएंगे. और बेशक अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हलीम है.
60. यही हुक्म है. और जिसने अपने दुश्मन से उतना ही बदला लिया, जितनी उसे अज़ीयत दी गई थी. फिर दोबारा दुश्मन की तरफ़ से उस पर ज़्यादती की जाए, तो अल्लाह उस मज़लूम की ज़रूर मदद करेगा. बेशक अल्लाह बड़ा मुआफ़ करने वाला बड़ा बख़्शने वाला है.
61. यह इसलिए है कि अल्लाह बड़ा क़ादिर है. वही रात को दिन में दाख़िल करता है और दिन को रात में दाख़िल करता है. और बेशक अल्लाह ख़ूब सुनने वाला ख़ूब देखने वाला है.
62. और यह इसलिए भी है कि अल्लाह ही बरहक़ है. और बेशक काफ़िर अल्लाह के सिवा जिन्हें पुकारते हैं, वे सब बातिल हैं. और यक़ीनन अल्लाह ही आला व सबसे बड़ा है.
63. क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह आसमान से पानी बरसाता है, तो ज़मीन सर सब्ज़ व शादाब हो जाती है. बेशक अल्लाह बड़ा लतीफ़ बड़ा बाख़बर है.
64. जो कुछ आसमानों में और जो कुछ ज़मीन में है, सब उसी का है. और बेशक अल्लाह बेनियाज़ सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं.
65. क्या तुमने नहीं देखा कि जो कुछ ज़मीन में है, सबको अल्लाह ने तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है. और कश्तियों को भी, जो उसके हुक्म से समन्दर व दरिया में चलती हैं. और वही तो आसमान को ज़मीन पर गिरने से रोके हुए है. लेकिन जब उसका हुक्म होगा, तो वह गिर पडे़गा. बेशक अल्लाह लोगों पर शफ़क़त करने वाला निहायत रहम करने वाला है.
66. और वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें ज़िन्दगी बख़्शी. फिर तुम्हें मौत देता है. फिर तुम्हें दोबारा ज़िन्दा करेगा. बेशक इंसान बड़ा ही कुफ़्र करने वाला व नाशुक्रा है.
67. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हमने हर उम्मत के लिए एक तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया है. उन्हें उसी पर चलना है. लिहाज़ा दीन के बारे में लोगों को तुमसे झगड़ा नहीं करना चाहिए. और तुम उन्हें अपने परवरदिगार की तरफ़ बुलाते रहो. बेशक तुम हिदायत के सीधे रास्ते पर क़ायम हो.
68. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर वे लोग तुमसे झगड़ा करें, तो तुम कह दो कि अल्लाह उन आमाल से खू़ब वाक़िफ़ है, जो तुम कर रहे हो.
69. अल्लाह क़यामत के दिन उन तमाम बातों का फ़ैसला कर देगा, जिनमें तुम इख़्तिलाफ़ किया करते हो.
70. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुम नहीं जानते कि बेशक अल्लाह उसे ख़ूब जानता है, जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है. बेशक यह सब किताब यानी लौहे महफ़ूज़ में दर्ज है. बेशक यह सब अल्लाह के लिए बहुत आसान है.
71. और वे लोग अल्लाह के सिवा जिन्हें पुकारते हैं, जिनकी उसने कोई सनद नाज़िल नहीं की और न उन्हें उसका कुछ इल्म है. और क़यामत के दिन ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं होगा.
72. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब हमारी वाज़ेह आयतें उन लोगों के सामने पढ़ी जाती हैं, तो तुम उन काफ़िरों के चेहरों पर नागवारी के आसार देख सकते हो. ऐसा लगता है कि वे उन लोगों पर हमला कर देंगे, जो उन्हें हमारी आयतें पढ़कर सुनाते हैं. तुम कह दो कि क्या मैं तुम्हें इससे भी ज़्यादा बदतर चीज़ से आगाह कर दूं. वह दोज़ख़ की आग है, जिसका अल्लाह ने काफ़िरों से वादा किया है. और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है.
73. ऐ इंसानो ! एक मिसाल बयान की जाती है, इसलिए इसे ग़ौर से सुनो. बेशक जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, वे सब मिलकर भी एक मक्खी तक पैदा नहीं कर सकते. और अगर मक्खी उनसे कुछ छीन कर ले जाए, तो उससे उसे छुड़ा भी नहीं सकते. कितना बेबस है तालिब भी और मतलूब भी.
74. उन काफ़िरों ने अल्लाह की क़द्र नहीं की, जैसी उसकी क़द्र करनी चाहिए थी. बेशक अल्लाह बड़ा क़ूवत वाला बड़ा ग़ालिब है.
75. अल्लाह फ़रिश्तों में से भी और इंसानों में से भी अपने पैग़ाम पहुंचाने के लिए रसूलों को मुंतख़िब कर लेता है. बेशक अल्लाह ख़ूब सुनने वाला ख़ूब देखने वाला है.
76. और अल्लाह उसे ख़ूब जानता है, जो कुछ उनके सामने है और जो कुछ उनके पीछे है. और तमाम काम अल्लाह की तरफ़ ही रुजू होते हैं.
77. ऐ ईमान वालो ! तुम अल्लाह की बारगाह में रुकू करो और सजदे करो और अपने परवरदिगार की इबादत करो और भलाई के काम करो, ताकि तुम कामयाबी पा सको.
78. और अल्लाह की राह में जिहाद करो, जैसा कि उसके जिहाद का हक़ है. यानी ख़ुद की और मुआशरे की बुराइयों से लड़ो और अल्लाह की मख़लूक़ के साथ हुस्ने सुलूक करो. उसने तुम्हें मुंतख़िब किया है और उसने तुम पर दीन में किसी तरह की ज़हमत नहीं दी. यही तुम्हारे बाप इब्राहीम का दीन है. उसी अल्लाह ने तुम्हारा नाम मुसलमान रखा है. इससे पहले की किताबों में भी और क़ुरआन में भी, ताकि ये रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम्हारे गवाह हो जाएं. और तुम पाबंदी से नमाज़ पढ़ा करो और ज़कात देते रहो और अल्लाह के अहकाम को मज़बूती से थामे रहो. और अल्लाह ही तुम्हारा मौला है और वही बेहतरीन मौला और वही बेहतरीन मददगार है.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ऐ इंसानो! अपने परवरदिगार से डरते रहो. बेशक क़यामत का ज़लज़ला बड़ी सख़्त चीज़ है.
2. जिस दिन तुम उसे देखोगे कि हर दूध पिलाने वाली औरत अपने दूध पीते बच्चे को भूल जाएगी और हर हामिला औरत अपना हमल गिरा देगी. और लोग मदहोश नज़र आएंगे. हालांकि वे नशे में नहीं होंगे, लेकिन अल्लाह का अज़ाब इतना सख़्त होगा कि उसकी दहशत से लोग बदहवास हो जाएंगे.
3. और कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अल्लाह के बारे में बग़ैर इल्म के झगड़ते हैं और हर सरकश शैतान की पैरवी करते हैं.
4. जिस शैतान के बारे में लिख दिया गया है कि जो उससे दोस्ती करेगा, तो बेशक वह उसे गुमराह कर देगा और दोज़ख़ के अज़ाब का रास्ता दिखाएगा.
5. ऐ इंसानो ! अगर तुम्हें मरने के बाद दोबारा ज़िन्दा करके उठाए जाने में शक है, तो अपनी तख़लीक़ पर ग़ौर व फ़िक्र करो. बेशक हमने तुम्हारी इब्तिदाई तख़लीक़ मिट्टी से की है. फिर नुत्फ़े से उसके बाद जमे हुए ख़ून से फिर लोथड़े से, जिसमें कोई मुकम्मल हो जाता है और कोई अधूरा ही रह जाता है, ताकि हम तुम्हारे लिए अपनी क़ुदरत को ज़ाहिर कर दें. और हम जिसे चाहते हैं, रहमों में मुक़र्रर मुद्दत तक ठहराये रखते हैं. फिर हम तुम्हें बच्चा बनाकर बाहर ले आते हैं. फिर तुम्हारी परवरिश करते हैं, ताकि तुम जवानी को पहुंच जाओ. फिर तुममें से कुछ लोग जल्दी मर जाते हैं और कुछ लोग ज़ईफ़ी की उम्र तक पहुंच जाते हैं, ताकि वे देख लें कि सबकुछ जानने के बाद भी कुछ नहीं जानते. और तुम बंजर ज़मीन को देखते हो. फिर जब हम पानी बरसा देते हैं, तो वह शादाब होकर लहलहाने और उभरने लगती है. और उसमें हर क़िस्म की ख़ु़शनुमा चीज़ें उगने लगती हैं.
6. यह सबकुछ इसलिए होता है, ताकि तुम जान लो कि अल्लाह ही बरहक़ है और बेशक वही मुर्दों को ज़िन्दा करता है और यक़ीनन वह हर चीज़ पर क़ादिर है.
7. और बेशक क़यामत आने वाली है. इसमें कोई शक नहीं है. और बेशक अल्लाह उन लोगों को दोबारा ज़िन्दा करके उठाएगा, जो क़ब्रों में होंगे.
8. और लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं, जो अल्लाह के बारे में झगड़ते रहते हैं, बगै़र इल्म के और बगै़र हिदायत व दलील के और बगै़र रौशन किताब के, जो आसमान से नाज़िल हुई हो.
9. जो तकब्बुर से अपनी गर्दन मोड़े हुए है, ताकि दूसरों को अल्लाह के रास्ते से भटका दे, तो उसके लिए दुनिया में भी रुसवाई है और क़यामत के दिन भी हम उसे दोज़ख़ की भड़कती हुई आग के अज़ाब का ज़ायक़ा चखाएंगे.
10. उससे कहा जाएगा कि यह उसकी सज़ा है, जो कुछ तेरे हाथ आगे भेज चुके हैं. और बेशक अल्लाह अपने बन्दों पर कोई जु़ल्म नहीं करता.
11. और लोगों में से कोई ऐसा भी होता है, जो दीन के एक किनारे पर रहकर अल्लाह की इबादत करता है. फिर अगर उसे कोई भलाई पहुंचती है, तो वह मुतमईन हो जाता है. और अगर वह किसी आज़माइश में मुब्तिला हुआ, तो वह फ़ौरन कुफ़्र की तरफ़ पलट जाता है. उसने दुनिया में भी नुक़सान उठाया और आख़िरत में भी. यही तो सरीह नुक़सान है.
12. वह शख़्स अल्लाह के सिवा उन्हें पुकारता है, जो न उसे नुक़सान पहुंचा सकते हैं और न कुछ नफ़ा ही पहुंचा सकते हैं. यही तो परले दर्जे की गुमराही है.
13. वह उसे पुकारता है जिसका नुक़सान उसके नफ़े से ज़्यादा क़रीब है. बेशक वह बुरा सरपरस्त और बुरा साथी है.
14. बेशक जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो अल्लाह उन्हें जन्नत के बाग़ों में दाख़िल करेगा, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. बेशक अल्लाह जो चाहता है, वह करता है.
15. जो शख़्स यह गुमान करता है कि अल्लाह अपने महबूब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुनिया और आख़िरत में मदद नहीं करेगा, तो उसे चाहिए कि वह एक रस्सी के ज़रिये आसमान की तरफ़ बढ़े और फिर उस रस्सी को काट दे. फिर देखे कि यह तदबीर उस चीज़ को दूर कर सकती है या नहीं, जो उसे ग़ुस्सा दिला रही है.
16. और इसी तरह हमने इस कु़रआन को वाजे़ह निशानियों की सूरत में नाज़िल किया है. और बेशक अल्लाह जिसे चाहता है, हिदायत देता है.
17. बेशक जो लोग ईमान लाए और जो यहूदी हो गए और सितारा परस्त और नसरानी यानी ईसाई और आतिश परस्त और मुशरिक हो गए, बेशक अल्लाह क़यामत के दिन उन लोगों के दरम्यान फ़ैसला कर देगा. बेशक अल्लाह हर चीज़ का गवाह है.
18. क्या तुमने नहीं देखा कि सारी मख़लूक़ अल्लाह को सजदा करती है, जो आसमानों में है और जो ज़मीन में है और सूरज और चांद और सितारे और पहाड़ और दरख़्त और चौपाये और बहुत से इंसान भी. और बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जिन पर कुफ़्र की वजह से अज़ाब का हुक्म सादिर हो चुका है. और अल्लाह जिसे ज़लील कर दे, तो उसे कोई इज़्ज़त देने वाला नहीं है. बेशक अल्लाह जो चाहता है, वह करता है.
19. मोमिन और काफ़िर ये दो फ़रीक़ हैं, जो अपने परवरदिगार के बारे में झगड़ते रहते हैं. फिर जो लोग काफ़िर हो गए, उनके लिए दोज़ख़ की आग के कपड़े काटकर सील दिए गए हैं. उनके सरों पर खौलता हुआ पानी डाला जाएगा.
20. जिसकी गर्मी से उनके पेट के अंदर की चीज़ें और खालें गल जाएंगी.
21. और उन्हें मारने के लिए लोहे के हथौड़े होंगे.
22. जब वे लोग अज़ाब से बचकर भागना चाहेंगे, तो उन्हें वापस लौटा दिया जाएगा और उनसे कहा जाएगा कि आग के अज़ाब का ज़ायक़ा चखो.
23. बेशक जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, अल्लाह उन्हें जन्नत के सदाबहार बाग़ों में दाख़िल करेगा, जिनके नीचे नहरें बहती हैं. और जन्नत में उन्हें सोने के कंगन और मोतियों के हार पहनाए जाएंगे और वहां उनका लिबास रेशम का होगा.
24. और दुनिया में उन्हें पाकीज़ा क़ौल यानी कलमा ए तौहीद की हिदायत की गई और उन्हें अल्लाह का रास्ता दिखाया गया है, जो सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं.
25. बेशक जो लोग कुफ़्र करते हैं और दूसरों को अल्लाह के रास्ते और मस्जिदे हराम यानी ख़ाना ए काबा से रोकते हैं, जिसे हमने सबके लिए बराबर क़रार दिया है, अगरचे वे मक़ामी हों या बैरूनी सबका हक़ बराबर है. और जो इसमें ज़ुल्म के साथ गुमराह करने का इरादा करेगा, तो हम उसे दर्दनाक अज़ाब का ज़ायक़ा चखाएंगे.
26. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वह वक़्त याद करो कि जब हमने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के लिए ख़ाना ए काबा की तामीर की जगह मुहैया कर दी और उनसे कहा कि हमारे साथ किसी चीज़ को शरीक न ठहराना और हमारे घर को तवाफ़ करने वालों और क़याम करने वालों और रुकू करने वालों और सजदे करने वालों के लिए पाक साफ़ रखना.
27. और लोगों के दरम्यान हज का ऐलान कर दो कि वे तुम्हारे पास पैदल और दुबले ऊंटों पर सवार होकर दूर दराज़ के रास्तों से चले आएं.
28. ताकि वे दुनिया व आख़िरत के फ़ायदे के लिए हाज़िर हों और चन्द मुक़र्रर दिनों के अंदर अल्लाह का नाम लेकर उन चौपायों को ज़िबह करें, जो अल्लाह ने उन्हें अता किए हैं. फिर तुम लोग क़ुर्बानी का गोश्त खु़द भी खाओ और बदहाल फ़क़ीरों को भी खिलाओ.
29. फिर लोगों को चाहिए कि वे अपनी कशाफ़्त दूर करें और अपनी नज़रें पूरी करें और अल्लाह के क़दीम घर ख़ाना ए काबा का तवाफ़ करें.
30. यही हुक्म है. और जो अल्लाह की हुरमत वाली चीज़ों की ताज़ीम करता है, तो यह उसके पrवरदिगार के यहां उसके लिए बेहतर है. और तुम्हारे लिए तमाम चौपाये हलाल कर दिए गए हैं, सिवाय उन जानवरों के जिनकी तफ़सील तुम्हें पढ़कर सुना दी गई है. लिहाज़ा तुम बुतों की निजासत से बचा करो और झूठी बातों से भी परहेज़ किया करो.
31. तुम सिर्फ़ अल्लाह ही के होकर रहो. उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ. और जो अल्लाह के साथ किसी को शरीक करता है, तो वह ऐसा है जैसे आसमान से गिर पड़े. फिर उसे कोई परिन्दा उचक ले जाए या हवा उसे किसी दूर दराज़ की जगह पर ले जाकर फेंक दे.
32. यही हुक्म है. और जो अल्लाह की निशानियों की ताज़ीम करता है, तो बेशक यह ताज़ीम भी दिलों के तक़वे से ही हासिल होती है.
33. तुम्हारे लिए इन क़ुर्बानी के चौपायों में मुक़र्रर मुद्दत तक बहुत से फ़ायदें हैं. फिर उन्हें क़ुर्बानी के लिए क़दीमी घर ख़ाना ए काबा तक पहुंचना है.
34. और हमने हर उम्मत के लिए क़ुर्बानी मुक़र्रर कर दी है, ताकि वे उन चौपायों को ज़िबह करते वक़्त अल्लाह का नाम लें, जो अल्लाह ने उन्हें अता किए हैं. लिहाज़ा तुम्हारा माबूद माबूदे यकता है. फिर तुम उसी के फ़रमाबरदार बन जाओ. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम आजिज़ी करने वालों को जन्नत की खु़शख़बरी सुना दो.
35. ये वे लोग हैं कि जब उनके सामने अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है, तो उनके दिल सहम जाते हैं और जब उन पर कोई मुसीबत आ जाती है, तो सब्र करते हैं. और पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हैं और हमने जो कुछ उन्हें अता किया है, उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं.
36. और हमने क़ुर्बानी के ऊंट को भी अल्लाह की निशानियों में से क़रार दिया है. इसमें तुम्हारे लिए ख़ैर है. फिर तुम उन्हें क़तार में खड़ा करके अल्लाह का नाम लो. फिर जब वे ज़िबह होकर पहलू के बल ज़मीन पर गिर जाएं, तो उनके गोश्त में से तुम खु़द भी खाओ और सवाल न करने वाले मोहताजों को भी खिलाओ और सवाल करने वाले मोहताजों को भी खिलाओ. इसी तरह हमने उन्हें तुम्हारे ताबे कर दिया है, ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो.
37. अल्लाह को न क़ुर्बानी का गोश्त पहुंचता है और न उसका ख़ून. लेकिन अल्लाह की बारगाह में तुम्हारा तक़वा पहुंचता है. अल्लाह ने चौपायों को इसलिए तुम्हारे क़ाबू में किया है, ताकि तुम उन्हें ज़िबह करते वक़्त अल्लाह की तकबीर कहो, जैसे उसने तुम्हें हिदायत दी है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम मोहसिनों को जन्नत की ख़ु़शख़बरी सुना दो.
38. बेशक अल्लाह मोमिनों से शैतान के शर को दूर करता रहता है. बेशक अल्लाह किसी ख़यानत करने वाले नाशुक्रे को पसंद नहीं करता.
39. उन लोगों को जिहाद की इजाज़त दे दी गई है, जिनसे नाहक़ जंग की जा रही है और उन पर ज़ुल्म किए जा रहे हैं. और बेशक अल्लाह उन मज़लूमों की मदद पर क़ादिर है.
40. ये वे लोग हैं, जो अपने घरों से नाहक़ निकाल दिए गए, क्योंकि वे कहते थे कि हमारा परवरदिगार अल्लाह है. और अगर अल्लाह कुछ तबक़ों को दूसरे तबक़ों के ज़रिये नहीं हटाता, तो ख़ानक़ाहें, गिरजे और यहूदियों के इबादत ख़ाने और मजूस के इबादत ख़ाने और मस्जिदें यानी तमाम इबादतगाहें, जिनमें कसरत से अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है, सब ढहाकर वीरान कर दी जातीं. और जो अल्लाह के दीन की मदद करता है, तो बेशक अल्लाह उसकी मदद करता है. बेशक अल्लाह बड़ा क़ूवत वाला बड़ा ग़ालिब है.
41. ये वे लोग हैं कि अगर हम इन्हें ज़मीन में इख़्तेदार दे दें, तो वे नमाज़ का निज़ाम क़ायम करें, और ज़कात की अदायगी का इंतज़ाम करें और अच्छे काम का हुक्म करें और लोगों को बुराई से रोकें. और सब कामों का अंजाम अल्लाह ही के इख़्तियार में है.
42. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर ये काफ़िर तुम्हें झुठलाते हैं, तो कोई ताज्जुब नहीं है. इससे पहले नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम और हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद और सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद ने भी अपने रसूलों को झुठलाया था.
43. और इब्राहीम अलैहिस्सलाम की क़ौम और लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम ने भी अपने रसूलों को झुठलाया था.
44. और मदयन के रहने वाले लोग भी अपने रसूलों को झुठला चुके हैं. और मूसा अलैहिस्सलाम को भी झुठलाया गया है. फिर हम उन सब काफ़िरों को मोहलत देते रहे. फिर हमने उन्हें अज़ाब में गिरफ़्तार कर लिया, तो उन्होंने देख लिया कि हमारा अज़ाब कैसा था.
45. फिर कितनी ही बस्तियां ऐसी हैं, जिन्हें हमने हलाक कर दिया कि उनमें रहने वाले लोग ज़ालिम थे. फिर उन्हें पलट दिया, तो वे अपनी छतों पर ढह गईं. और कितने कुएं बेकार हो गए और कितने ही मज़बूत महल भी उजड़ गए.
46. क्या वे लोग ज़मीन में चले फिरे नहीं कि खंडहरों को देखकर उनके लिए ऐसे दिल हो जाते हैं, जो हक़ को समझ सकते या उनके कान ऐसे हो जाते होते, जिनके ज़रिये हक़ को सुन सकते. बेशक ऐसे लोगों की आंखें अंधी नहीं होतीं, लेकिन दिल अंधे हो जाते हैं, जो सीनों में हैं.
47. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वे लोग तुमसे अज़ाब में जल्दी के तलबगार हैं और अल्लाह हरगिज़ अपने वादे की ख़िलाफ़वर्ज़ी नहीं करेगा. और बेशक क़यामत का एक दिन तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक तुम्हारे शुमार के हिसाब से एक हज़ार बरस के बराबर है.
48. और कितनी बस्तियां ऐसी हैं, जिन्हें हमने मोहलत दी और उनमें रहने वाले ज़ालिम थे. फिर हमने उन्हें अज़ाब में गिरफ़्तार कर लिया. और सबको हमारी तरफ़ ही लौटना है.
49. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ऐ लोगो ! मैं तो सिर्फ़ तुम्हें अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करने वाला पैग़म्बर हूं.
50. फिर जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो उनके लिए मग़फ़िरत और इज़्ज़त का रिज़्क़ है.
51. और जो लोग हमारी आयतों को झुठला कर हमें आजिज़ करने की कोशिश करते हैं, तो वही लोग असहाबे जहन्नुम हैं.
52. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हमने तुमसे पहले कोई ऐसा रसूल या नबी नहीं भेजा कि जब भी उसने अल्लाह का कलाम पढ़ा, तो शैतान ने सुनने वाले लोगों के ज़ेहन में उस कलाम के बारे में वसवसे डाल दिए. फिर शैतान जो वसवसे डालता है, अल्लाह उन्हें मिटा देता है और अपनी आयतों को मुस्तहकम कर देता है. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
53. यह इसलिए होता है, ताकि अल्लाह लोगों के ज़ेहनों में डाले गए शैतान के वसवसों को उनकी आज़माइश का ज़रिया बना दे, जिनके दिलों में कुफ़्र का मर्ज़ है और जिनके दिल सख़्त हैं. और बेशक ज़ालिम बड़ी शदीद मुख़ालिफ़त में मुब्तिला हैं.
54. और यह इसलिए भी होता है, ताकि जिन लोगों को इल्म अता किया गया है, वे जान लें कि बेशक तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल हुई वही बरहक़ है. फिर वे लोग इस पर ईमान ले आएं और फिर उनके दिल अल्लाह की बारगाह में आजिज़ी का इज़हार करें. और बेशक अल्लाह ईमान वालों को सीधे रास्ते की हिदायत देता है.
55. और कुफ़्र करने वाले लोग हमेशा क़ुरआन के हवाले से शक व शुबहा में मुब्तिला रहेंगे, यहां तक कि अचानक उन पर क़यामत आ जाए या सख़्त मनहूस दिन का अज़ाब नाज़िल हो जाए, जिससे निजात का कोई इमकान नहीं.
56. उस दिन सिर्फ़ अल्लाह ही की बादशाहत होगी. वही उनके दरम्यान फ़ैसला करेगा. फिर जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, वे जन्नत के नेअमतों से सराबोर बाग़ों में रहेंगे.
57. और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया, तो उनके लिए ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब होगा.
58. और जिन लोगों ने अल्लाह की राह में अपने वतन से हिजरत की, फिर क़त्ल कर दिए गए या उन्हें मौत आ गई, तो अल्लाह उन्हें यक़ीनन उम्दा रिज़्क़ देगा. और बेशक अल्लाह बेहतरीन रिज़्क़ देने वाला है.
59. अल्लाह यक़ीनन उन्हें ऐसी जगह दाख़िल करेगा, जिससे वे ख़ुश हो जाएंगे. और बेशक अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हलीम है.
60. यही हुक्म है. और जिसने अपने दुश्मन से उतना ही बदला लिया, जितनी उसे अज़ीयत दी गई थी. फिर दोबारा दुश्मन की तरफ़ से उस पर ज़्यादती की जाए, तो अल्लाह उस मज़लूम की ज़रूर मदद करेगा. बेशक अल्लाह बड़ा मुआफ़ करने वाला बड़ा बख़्शने वाला है.
61. यह इसलिए है कि अल्लाह बड़ा क़ादिर है. वही रात को दिन में दाख़िल करता है और दिन को रात में दाख़िल करता है. और बेशक अल्लाह ख़ूब सुनने वाला ख़ूब देखने वाला है.
62. और यह इसलिए भी है कि अल्लाह ही बरहक़ है. और बेशक काफ़िर अल्लाह के सिवा जिन्हें पुकारते हैं, वे सब बातिल हैं. और यक़ीनन अल्लाह ही आला व सबसे बड़ा है.
63. क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह आसमान से पानी बरसाता है, तो ज़मीन सर सब्ज़ व शादाब हो जाती है. बेशक अल्लाह बड़ा लतीफ़ बड़ा बाख़बर है.
64. जो कुछ आसमानों में और जो कुछ ज़मीन में है, सब उसी का है. और बेशक अल्लाह बेनियाज़ सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं.
65. क्या तुमने नहीं देखा कि जो कुछ ज़मीन में है, सबको अल्लाह ने तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है. और कश्तियों को भी, जो उसके हुक्म से समन्दर व दरिया में चलती हैं. और वही तो आसमान को ज़मीन पर गिरने से रोके हुए है. लेकिन जब उसका हुक्म होगा, तो वह गिर पडे़गा. बेशक अल्लाह लोगों पर शफ़क़त करने वाला निहायत रहम करने वाला है.
66. और वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें ज़िन्दगी बख़्शी. फिर तुम्हें मौत देता है. फिर तुम्हें दोबारा ज़िन्दा करेगा. बेशक इंसान बड़ा ही कुफ़्र करने वाला व नाशुक्रा है.
67. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हमने हर उम्मत के लिए एक तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया है. उन्हें उसी पर चलना है. लिहाज़ा दीन के बारे में लोगों को तुमसे झगड़ा नहीं करना चाहिए. और तुम उन्हें अपने परवरदिगार की तरफ़ बुलाते रहो. बेशक तुम हिदायत के सीधे रास्ते पर क़ायम हो.
68. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर वे लोग तुमसे झगड़ा करें, तो तुम कह दो कि अल्लाह उन आमाल से खू़ब वाक़िफ़ है, जो तुम कर रहे हो.
69. अल्लाह क़यामत के दिन उन तमाम बातों का फ़ैसला कर देगा, जिनमें तुम इख़्तिलाफ़ किया करते हो.
70. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुम नहीं जानते कि बेशक अल्लाह उसे ख़ूब जानता है, जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है. बेशक यह सब किताब यानी लौहे महफ़ूज़ में दर्ज है. बेशक यह सब अल्लाह के लिए बहुत आसान है.
71. और वे लोग अल्लाह के सिवा जिन्हें पुकारते हैं, जिनकी उसने कोई सनद नाज़िल नहीं की और न उन्हें उसका कुछ इल्म है. और क़यामत के दिन ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं होगा.
72. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब हमारी वाज़ेह आयतें उन लोगों के सामने पढ़ी जाती हैं, तो तुम उन काफ़िरों के चेहरों पर नागवारी के आसार देख सकते हो. ऐसा लगता है कि वे उन लोगों पर हमला कर देंगे, जो उन्हें हमारी आयतें पढ़कर सुनाते हैं. तुम कह दो कि क्या मैं तुम्हें इससे भी ज़्यादा बदतर चीज़ से आगाह कर दूं. वह दोज़ख़ की आग है, जिसका अल्लाह ने काफ़िरों से वादा किया है. और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है.
73. ऐ इंसानो ! एक मिसाल बयान की जाती है, इसलिए इसे ग़ौर से सुनो. बेशक जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, वे सब मिलकर भी एक मक्खी तक पैदा नहीं कर सकते. और अगर मक्खी उनसे कुछ छीन कर ले जाए, तो उससे उसे छुड़ा भी नहीं सकते. कितना बेबस है तालिब भी और मतलूब भी.
74. उन काफ़िरों ने अल्लाह की क़द्र नहीं की, जैसी उसकी क़द्र करनी चाहिए थी. बेशक अल्लाह बड़ा क़ूवत वाला बड़ा ग़ालिब है.
75. अल्लाह फ़रिश्तों में से भी और इंसानों में से भी अपने पैग़ाम पहुंचाने के लिए रसूलों को मुंतख़िब कर लेता है. बेशक अल्लाह ख़ूब सुनने वाला ख़ूब देखने वाला है.
76. और अल्लाह उसे ख़ूब जानता है, जो कुछ उनके सामने है और जो कुछ उनके पीछे है. और तमाम काम अल्लाह की तरफ़ ही रुजू होते हैं.
77. ऐ ईमान वालो ! तुम अल्लाह की बारगाह में रुकू करो और सजदे करो और अपने परवरदिगार की इबादत करो और भलाई के काम करो, ताकि तुम कामयाबी पा सको.
78. और अल्लाह की राह में जिहाद करो, जैसा कि उसके जिहाद का हक़ है. यानी ख़ुद की और मुआशरे की बुराइयों से लड़ो और अल्लाह की मख़लूक़ के साथ हुस्ने सुलूक करो. उसने तुम्हें मुंतख़िब किया है और उसने तुम पर दीन में किसी तरह की ज़हमत नहीं दी. यही तुम्हारे बाप इब्राहीम का दीन है. उसी अल्लाह ने तुम्हारा नाम मुसलमान रखा है. इससे पहले की किताबों में भी और क़ुरआन में भी, ताकि ये रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम्हारे गवाह हो जाएं. और तुम पाबंदी से नमाज़ पढ़ा करो और ज़कात देते रहो और अल्लाह के अहकाम को मज़बूती से थामे रहो. और अल्लाह ही तुम्हारा मौला है और वही बेहतरीन मौला और वही बेहतरीन मददगार है.
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