Thursday, September 2, 2021

21 सूरह अल अम्बिया

सूरह अल अम्बिया मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 112 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. लोगों के लिए उनके हिसाब का वक़्त क़रीब आ गया है और वे ग़फ़लत में पड़े हक़ से मुंह फेरे हुए हैं.
2. उनके पास उनके परवरदिगार की तरफ़ से जब भी कोई नया ज़िक्र यानी हुक्म आता है, तो वे उसे बेपरवाही से सुनते हैं और फिर खेल तमाशे में लग जाते हैं.
3. उनके दिल ग़ाफ़िल हो चुके हैं और ज़ुल्म करने वाले लोग रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़िलाफ़ आहिस्ता-आहिस्ता सरगोशियां करते हैं कि ये तो सिर्फ़ तुम्हारे जैसे ही बशर हैं. क्या फिर भी तुम उनके जादू के पास जाते हो. हालांकि तुम देख रहे हो. 
4. रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मेरा परवरदिगार उन बातों को ख़ूब जानता है, जो आसमानों और ज़मीन में कही जाती हैं. और वह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
5. बल्कि वे लोग कहने लगे कि यह क़ुरआन परेशान ख़्वाबों का मजमुआ है, बल्कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसे ख़ुद ही गढ़ लिया है, बल्कि वे शायर हैं. फिर अगर वे रसूल सच्चे हैं, तो वे भी हमारे पास कोई निशानी लाएं, जिस तरह पहले के रसूल निशानियों के साथ भेजे गए थे. 
6. उनसे पहले हमने जिन बस्तियों को हलाक किया था, उनमें रहने वाले भी अल्लाह की निशानियों पर ईमान नहीं लाए थे. फिर क्या वे लोग ईमान लाएंगे.  
7. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हमने तुमसे पहले भी मर्दों को रसूल बनाकर भेजा था. हम उनके पास वही भेजते थे. ऐ लोगो ! तुम अहले ज़िक्र यानी आलिमों से दरयाफ़्त कर लिया करो. अगर तुम ख़ुद नहीं जानते हो.
8. और हमने उन रसूलों के जिस्म ऐसे नहीं बनाए थे कि वे खाना न खाते हों और न वे दुनिया में हमेशा रहने वाले थे.
9. फिर हमने उन्हें अपना अज़ाब का वादा सच्चा कर दिखाया. फिर हमने उन रसूलों और जिसे चाहा, उसे निजात बख़्शी और हमने हद से तजावुज़ करने वाले लोगों को हलाक कर दिया.
10. बेशक हमने तुम्हारी तरफ़ ऐसी किताब यानी क़ुरआन नाज़िल किया है, जिसमें तुम्हारे लिए ज़िक्रे ख़ैर है. क्या फिर भी तुम नहीं समझते.
11. और हमने कितनी ही बस्तियों को तबाह व बर्बाद कर दिया, जिनमें रहने वाले ज़ालिम थे. और उनके बाद हमने और क़ौमों को पैदा किया.
12. फिर जब उन लोगों ने हमारे अज़ाब की आहट महसूस की, तो उस वक़्त वे तेज़ी से भागने लगे. 
13. उनसे कहा गया कि तुम लोग भागो नहीं और उन्हीं बस्तियों और घरों में वापस लौट जाओ, जिनमें तुम चैन से रहते थे, ताकि तुमसे कुछ पूछगछ की जाए.
14. वे लोग कहने लगे कि हमारी शामत ! बेशक हम ज़ालिम थे.
15. फिर वे लोग यही दुआ करते रहे, यहां तक कि हमने उन्हें कटी हुई खेती की तरह और बुझी हुई आग की तरह कर दिया.
16. और हमने आसमान और ज़मीन और जो कुछ इनके दरम्यान है, उसकी खेल तमाशे के लिए बेकार तख़लीक़  नहीं की है.
17. अगर हम कोई खेल तमाशा बनाना चाहते, तो हम बना लेते. अगर वाक़ई हमें ऐसा करना होता.
18. बल्कि हम हक़ से बातिल को मारते हैं, तो उसका सर कुचल जाता है. फिर उसी वक़्त वह नाबूद हो जाता है. और तुम्हारे लिए उन बातों से तबाही है, जो तुम बयान करते हो.
19. और जो आसमानों और जो ज़मीन में हैं, सब अल्लाह ही की मख़लूक़ है. और जो क़ुर्बे इलाही में रहते हैं, वे न उसकी इबादत का तकब्बुर करते हैं और न उसकी इताअत से थकते हैं.
20. वे रात और दिन अल्लाह ही की तस्बीह किया करते हैं और कभी काहिली नहीं करते.
21. क्या उन काफ़िरों ने ज़मीन की चीज़ों में से ऐसे सरपरस्त बना लिए हैं, जो मुर्दों को ज़िन्दा करके उठा सकते हैं.
22. अगर ज़मीन और आसमान दोनों जगह अल्लाह के सिवा दूसरे सरपरस्त होते, तो वे दोनों कब के तबाह व बर्बाद हो जाते. फिर अर्श का परवरदिगार अल्लाह उन बातों से पाक है, जो वे लोग बयान करते हैं. 
23. अल्लाह से उसकी पूछगछ नहीं की जा सकती, जो कुछ वह करता है. और उन लोगों से हर काम की पूछगछ की जाएगी.
24. क्या काफ़िरों ने अल्लाह के सिवा और सरपरस्त बना लिए हैं? ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अपनी दलील पेश करो. यह किताब यानी क़ुरआन भी मौजूद है, जिसमें मेरे ज़माने के लोगों का ज़िक्र है. वे ज़ुबूर, तौरात और इंजील भी मौजूद हैं, जिनमें मुझसे पहले के लोगों का ज़िक्र था. बल्कि उनमें से बहुत से लोग हक़ को नहीं जानते, इसलिए वे इससे मुंह फेरे हुए हैं.   
 25. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हमने तुमसे पहले ऐसा कोई रसूल नहीं भेजा, जिस पर हमने वही नाज़िल न की हो कि हमारे सिवा कोई माबूद नहीं, इसलिए हमारी ही इबादत किया करो.
26. और वे लोग कहने लगे कि मेहरबान अल्लाह ने फ़रिश्तों को अपनी औलाद बना रखा है. अल्लाह की ज़ात पाक है, बल्कि वे फ़रिश्ते अल्लाह के मुअज़्ज़िज़ बन्दे हैं.
27. वे फ़रिश्ते किसी बात में अल्लाह से सबक़त नहीं करते और वे उसी के हुक्म की तामील करते हैं.
28. अल्लाह उसे ख़ूब जानता है, जो कुछ उनके सामने है और जो कुछ उनके पीछे है. और वे फ़रिश्ते उसकी बारगाह में किसी की शफ़ाअत भी नहीं कर करते, सिवाय उनके जिनसे अल्लाह राज़ी हो. और वे ख़ुद उसके ख़ौफ़ से सहमे रहते हैं.
29. और अगर उनमें से जो कोई यह कह दे कि अल्लाह के सिवा मैं भी माबूद हूं, तो हम उसे जहन्नुम की सज़ा देंगे. हम ज़ालिमों को ऐसे ही सज़ा दिया करते हैं.
30. क्या काफ़िरों ने नहीं देखा कि आसमान और ज़मीन सब आपस में जुड़े हुए थे. फिर हमने उन्हें अलग कर दिया. और हमने हर जानदार शय पानी से बनाई. क्या फिर भी वे लोग ईमान नहीं लाते.
31. और हमने ज़मीन में पहाड़ बना दिए, ताकि वह लोगों को लेकर किसी तरफ़ झुक न जाए. और हमने उसमें कुशादा रास्ते बनाए, ताकि वे हिदायत पाएं. यानी वे अपनी-अपनी मंज़िलों तक पहुंच सकें.
32. और हमने आसमान को एक महफ़ूज़ छत की तरह बनाया. और वे लोग उसकी निशानियों से मुंह फेरे हुए हैं.
33. और वह अल्लाह ही है, जिसने रात और दिन को बनाया और सूरज और चांद भी बनाए. सब सय्यारे अपने-अपने फ़लक में घूम रहे हैं.
34. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हमने तुमसे पहले भी किसी बशर को दुनिया में हमेशा रहने के लिए नहीं भेजा. फिर अगर तुम विसाल कर जाओगे, तो क्या वे लोग हमेशा रहेंगे.
35. हर जानदार को एक न एक दिन मौत का ज़ायक़ा चखना है. और हम तुम्हें बुरे और भले दोनों ही हालात में मुब्तिला करके आज़माते हैं. और तुम सबको हमारी तरफ़ ही लौटना है. 
36. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब काफ़िर तुम्हें देखते हैं, तो तुम्हारा मज़ाक़ उड़ाते हुए कहते हैं कि क्या यही वे हज़रत हैं, जो तुम्हारे सरपरस्तों को बुरा कहते हैं. और वे लोग ख़ुद मेहरबान अल्लाह के ज़िक्र से कुफ़्र कर रहे हैं.
37. इंसान को फ़ितरतन जल्दबाज़ पैदा किया गया है. हम अनक़रीब ही तुम्हें अपनी क़ुदरत की निशानियां दिखाएंगे. फिर तुम हमसे जल्दी न किया करो. 
38. और वे लोग कहते हैं कि क़यामत का वादा कब पूरा होगा ? अगर तुम सच्चे हो.
39. अगर कुफ़्र करने वाले लोग उस वक़्त को जान लेते, जब वे दोज़ख़ की आग को न अपने चेहरों से हटा सकेंगे और न अपनी पीठ से और न उनकी कोई मदद ही की जाएगी.
40. बल्कि क़यामत उन लोगों पर अचानक आ जाएगी और उन्हें बदहवास कर देगी. फिर वे लोग न उसे रद्द कर सकेंगे और न उन्हें मोहलत ही दी जाएगी.
41. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक तुमसे पहले के रसूलों का भी मज़ाक़ उड़ाया गया है. फिर मज़ाक़ उड़ाने वाले लोगों को उस अज़ाब ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया, जिसका वे मज़ाक़ उड़ाया करते थे. 
42. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मेहरबान अल्लाह के अज़ाब से बचाने के लिए रात और दिन कौन तुम्हारी निगेहबानी कर सकता है, बल्कि वे लोग अपने परवरदिगार के ज़िक्र से मुंह फेरे हुए हैं.
43. क्या हमारे सिवा उनके और भी सरपरस्त हैं, जो उन्हें अज़ाब से बचा सकें. वे तो ख़ुद अपनी भी मदद नहीं सकते और न हमारी तरफ़ से कोई उनका साथ देगा.
44. बल्कि हमने उन्हें और उनके बाप दादाओं को ऐश व इशरत का सामान दिया, यहां तक कि उनकी उम्रें भी दराज़ हो गईं. फिर क्या वे लोग नहीं देखते कि हम ज़मीन को चारों तरफ़ से घटाते चले जा रहे हैं. तो क्या वे ग़ालिब होने वाले हैं.
45. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि बेशक मैं तो सिर्फ़ तुम लोगों को वही के ज़रिये अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करता हूं. और बहरे पुकार को नहीं सुनते, जब भी उन्हें ख़बरदार किया जाता है. 
46. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अगर उन्हें तुम्हारे परवरदिगार के अज़ाब की ज़रा सी लपट भी लग गई, तो वे ज़रूर कहने लगेंगे कि हाय हमारी शामत ! बेशक हम ही ज़ालिम थे.
47. और हम क़यामत के दिन अदल व इंसाफ़ के तराज़ू रख देंगे. फिर किसी पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा. और अगर किसी का अमल राई के दाने के बराबर भी होगा, तो हम उसे हाज़िर कर लेंगे और हम हिसाब करने के लिए काफ़ी हैं.
48. और बेशक हमने मूसा अलैहिस्सलाम और हारून अलैहिस्सलाम को हक़ व बातिल में फ़र्क़ करने वाली किताब यानी तौरात अता की, जो परहेज़गारों के लिए ज़िक्र यानी नसीहत है. 
49. जो लोग अपने परवरदिगार से ग़ायबाना ख़ौफ़ रखते हैं और क़यामत से भी डरते हैं.
50. और यह क़ुरआन एक मुबारक ज़िक्र है, जिसे हमने नाज़िल किया है. फिर क्या तुम इससे इनकार करते हो. 
51. और बेशक हमने पहले से ही इब्राहीम अलैहिस्सलाम को हिदायत अता की थी और हम उनकी हालत को ख़ूब जानते थे.
52. जब उन्होंने मुंह बोले वालिद यानी अपनी परवरिश करने वाले अपने चाचा आज़र और अपनी क़ौम से कहा कि ये मुजस्समे कैसे हैं, जिन्हें पुकारने पर तुम आमादा हो.
53. वे लोग कहने लगे कि हमने अपने बाप दादाओं को इन्हीं मुजस्स्मों को पुकारते हुए पाया है.
54. इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि बेशक तुम और तुम्हारे बाप दादा सरीह गुमराही में मुब्तिला हो.
55. वे लोग कहने लगे कि क्या तुम हमारे पास हक़ लेकर आए हो या तुम यूं ही तमाशा करने वालों में से हो.
56. इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि बल्कि तुम्हारा परवरदिगार आसमानों और ज़मीन का भी परवरदिगार है, जिसने उन सबको पैदा किया है और मैं इसकी गवाही देने वालों में से हूं.
57. इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने दिल में सोचा कि और अल्लाह की क़सम ! मैं तुम्हारे बुतों के साथ ज़रूर कोई तदबीर ज़रूर करूंगा. इसके बाद कि तुम पीठ फेरकर चले जाओ. 
58. फिर इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उन बुतों को तोड़कर रेज़ा-रेज़ा कर दिया, सिवाय उनके बड़े बुत के, ताकि वे लोग उसकी तरफ़ रुजू करें.
59. काफ़िर कहने लगे कि किसने हमारे सरपरस्तों का यह हाल किया है. बेशक वह ज़रूर जालिमों में से है. 
60. कुछ लोग कहने लगे कि हमने एक नौजवान के बारे में सुना है, जो इन्हें बुरा कहता है. उसे इब्राहीम अलैहिस्सलाम कहा जाता है.
61. वे लोग कहने लगे कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम को सबके सामने ले आओ, ताकि वे उन्हें देख लें.
62. जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम आए, तो वे लोग कहने लगे कि ऐ इब्राहीम अलैहिस्सलाम ! क्या तुमने ही हमारे सरपरस्तों का यह हाल किया है. 
63. इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि बल्कि यह काम बड़े बुत ने किया होगा. फिर तुम उन बुतों से ही पूछ लो, अगर वे बोल सकते हैं. 
64. फिर वे लोग दिल में सोचने लगे और ख़ुद से कहने लगे कि बेशक तुम ख़ुद ही ज़ालिम हो.
65. फिर उन लोगों ने अपने सर झुका लिए और कहने लगे कि बेशक तुम जानते हो कि ये बुत बोलते नहीं हैं.
66. इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि फिर क्या तुम लोग अल्लाह के सिवा ऐसी चीज़ों को पुकारते हो, जो न तुम्हें कुछ नफ़ा दे सकती हैं और न तुम्हें कुछ नुक़सान ही पहुंचा सकती हैं.
67. तूफ़्फ़ है तुम पर भी और उन चीज़ों पर भी, जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो. क्या फिर भी तुम नहीं समझते.
68. वे लोग आपस में कहने लगे कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम को जला दो और अपने तबाह व बर्बाद सरपरस्तों की मदद करो. अगर तुम कुछ करने वाले हो.
69. जब उन लोगों ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम को आग में डाल दिया, तो हमने हुक्म दिया कि ऐ आग ! बिल्कुल ठंडी हो जा और इब्राहीम अलैहिस्सलाम के लिए सरापा सलामती बन जा.
70. और उन लोगों ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के साथ फ़रेब का इरादा किया, तो हमने उन्हें बुरी तरह नाकाम करके नुक़सान में डाल दिया.
71. और हमने इब्राहीम अलैहिस्सलाम और लूत अलैहिस्सलाम को ज़ालिमों से निजात देकर इराक़ से सरज़मीन शाम की तरफ़ ले गए, जिसमें हमने आलम वालों के लिए बरकतें रखी हैं. 
72. और हमने इब्राहीम अलैहिस्सलाम को इसहाक़ अलैहिस्सलाम जैसा बेटा और याक़ूब अलैहिस्सलाम जैसा पोता इनायत किया. हमने सबको स्वालिहीन बनाया.
73. और हमने उन सबको इमाम बनाया. वे हमारे हुक्म से हिदायत करते थे. और हमने उनके पास भलाई के काम करने और पाबंदी से नमाज़ पढ़ने और ज़कात अदा करने के अहकाम की वही भेजी थी. और वे सब हमारे इबादत गुज़ार बन्दे थे. 
74. और लूत अलैहिस्सलाम को भी हमने हिकमत और इल्म अता किया था. और हमने उन्हें उस बस्ती से निजात दी, जहां के लोग बदकारियां करते थे. बेशक वह बहुत बुरी व बदकार क़ौम थी.
75. और हमने लूत अलैहिस्सलाम को अपनी रहमत में दाख़िल कर लिया. बेशक वे स्वालिहीन बन्दों में से थे.
76. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और नूह अलैहिस्सलाम को याद करो कि जब इससे पहले उन्होंने हमसे दुआ मांगी, तो हमने उसे क़ुबूल किया. और उन्हें और उनके घरवालों और उनके साथियों को बड़ी तकलीफ़ से निजात दी. 
77. और हमने उस क़ौम के मुक़ाबले में नूह अलैहिस्सलाम की मदद की, जो हमारी आयतों को झुठलाती थी. 
बेशक वह क़ौम भी बहुत बुरी थी. फिर हमने उन सब लोगों को ग़र्क़ कर दिया. 
78. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और दाऊद अलैहिस्सलाम और सुलेमान अलैहिस्सलाम का वाक़िया याद करो कि जब वे दोनों एक खेती के बारे में फ़ैसला कर रहे थे, जिसे रात में एक क़ौम की बकरियां उजाड़ गई थीं. और हम उस फ़ैसले के गवाह थे.
79. फिर हमने सुलेमान अलैहिस्सलाम को फ़ैसला करने का तरीक़ा सिखाया. और हमने उन सबको हिकमत और इल्म अता किया था. और हमने पहाड़ों और परिन्दों को दाऊद अलैहिस्सलाम के ताबे कर दिया था. वे उनके साथ अल्लाह की तस्बीह किया करते थे. और हम ही यह सब करने वाले थे. 
80. और हमने दाऊद अलैहिस्सलाम को जंगी लिबास ज़िरह बनाना सिखाया, ताकि वह जंग में तुम्हें एक दूसरे के वार से बचाए. फिर क्या तुम उसके शुक्रगुज़ार हो. 
81. और हमने तेज़ हवाओं को सुलेमान अलैहिस्सलाम के ताबे कर दिया था. वे उनके हुक्म से सरज़मीन शाम की तरफ़ चला करती थीं, जिसमें हमने बरकतें रखी थीं. और हम हर चीज़ के जानने वाले हैं. 
82. और हमने कुछ शैतानों यानी जिन्नों और देवों को भी सुलेमान अलैहिस्सलाम के ताबे कर दिया था, जो उनके लिए समन्दर व दरिया में ग़ोते लगाते थे. और इसके अलावा उनके और काम भी किया करते थे. और हम ही उनकी हिफ़ाज़त करने वाले थे.
83. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और अय्यूब अलैहिस्सलाम का वाक़िया याद करो कि जब उन्होंने अपने परवरदिगार से फ़रियाद की कि मुझे तकलीफ़ हो रही है और तू बेहतरीन रहम करने वाला है. 
84. फिर हमने उनकी दुआ क़ुबूल की और उनकी तकलीफ़ को दूर कर दिया. और उन्हें उनके घरवाले अता कर दिए और उनके साथ उतने ही और भी दे दिए. यह हमारी तरफ़ से ख़ास रहमत और इबादत गुज़ार बन्दों के लिए ज़िक्र यानी नसीहत है. 
85. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और इस्माईल अलैहिस्सलाम और इदरीस अलैहिस्सलाम और ज़लकिफ़ली अलैहिस्सलाम के वाक़ियात याद करो कि वे सब साबिरों में से थे.
86. और हमने उन सबको अपनी रहमत में दाख़िल कर लिया. बेशक वे स्वालिहीन बन्दों में से थे.
87. और ज़वाल ए नून यानी मछली वाले यूनुस अलैहिस्सलाम को याद करो कि जब वह अपनी क़ौम पर ग़ज़बनाक होकर चल दिए. फिर उन्होंने यह गुमान कर लिया कि हम उन पर तंगी नहीं करेंगे, तो हमने उन्हें मछली के पेट में पहुंचा दिया. फिर उन्होंने अंधेरे से घबराकर फ़रियाद की कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तेरे सिवा कोई माबूद नहीं. तेरी ज़ात पाक है. बेशक मैं ही ज़ालिमों में से हूं.
88. फिर हमने उनकी दुआ क़ुबूल कर ली और हमने उन्हें ग़म से निजात दी. और हम मोमिनों को ऐसे ही निजात दिया करते हैं.
89. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और ज़करिया अलैहिस्सलाम को याद करो कि जब उन्होंने अपने परवरदिगार से फ़रियाद की कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझे तन्हा मत छोड़ और तू बेहतरीन वारिस है.
90. फिर हमने उनकी दुआ क़ुबूल कर ली और उन्हें यहया अलैहिस्सलाम सा बेटा अता किया और हमने उनके लिए उनकी बीवी को भी अच्छा कर दिया. बेशक वे सब भलाई के कामों में जल्दी करते थे और हमें उम्मीद और ख़ौफ़ के साथ पुकारते थे और हमारी बारगाह में आजिज़ी किया करते थे.
91. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और उस पाकीज़ा बीबी मरयम अलैहिस्सलाम को याद करो, जिन्होंने अपनी अस्मत की हिफ़ाज़त की, तो हमने उनमें अपनी रूह फूंक दी और उन्हें और उनके बेटे ईसा अलैहिस्सलाम को तमाम आलमों के लिए अपनी क़ुदरत की निशानी बना दिया.
92. बेशक यह तुम्हारी उम्मत है. सब एक ही उम्मत है और मैं तुम्हारा परवरदिगार हूं. फिर तुम मेरी ही इबादत किया करो.
93. और उन अहले किताब ने आपस में इख़्तिलाफ़ करके अपने दीन को टुकड़े-टुकड़े कर दिया. उन सबको हमारी तरफ़ ही लौटना है.
94. फिर जो नेक अमल करेगा और मोमिन भी हो, तो उसकी कोशिश के अज्र से कुफ़्र नहीं किया जाएगा और हम उसके सब आमाल लिखते जाते हैं.
95. और जिस बस्ती को हमने हलाक कर दिया. मुमकिन नहीं कि उसके लोग मरने के बाद हमारे पास लौटकर न आएं.
96. यहां तक कि जब याजूज और माजूज आज़ाद कर दिए जाएंगे और वे हर बुलंदी से फिसलते हुए आएंगे.
97. और क़यामत का सच्चा वादा क़रीब आ जाएगा, तो फिर कुफ़्र करने वालों की आंखें खुली रह जाएंगी और वे कहने लगेंगे कि हाय हमारी शामत ! हम इससे ग़फ़लत में रहे, बल्कि हम ही ज़ालिम थे.
98. उनसे कहा जाएगा कि ऐ काफ़िरो !  बेशक अल्लाह के सिवा जिन्हें तुम पुकारते हो, वे सब जहन्नुम का ईंधन हैं और तुम सबको उसमें डाला जाएगा.
99. अगर वे सच्चे सरपरस्त होते, तो उन्हें दोज़ख़ में नहीं डाला जाता और वे सब उसमें हमेशा रहेंगे.
100. दोज़ख़ में उन लोगों की चीख़ पुकार होगी और वे किसी की बात भी नहीं सुन सकेंगे.
101. बेशक जिन लोगों के लिए पहले से ही हमारी तरफ़ से अच्छाई मुक़र्रर हो चुकी है, वे सब दोज़ख़ से दूर रखे जाएंगे.
102. वे लोग दोज़ख़ की आहट भी नहीं सुनेंगे और वे अपनी मनचाही नेअमतों में हमेशा चैन व सुकून से रहेंगे.
103. क़यामत की सबसे बड़ी दहशत भी उन्हें ग़मगीन नहीं करेगी और फ़रिश्ते उनका इस्तक़बाल करेंगे और कहेंगे कि यह तुम्हारा ही दिन है, जिसका दुनिया में तुमसे वादा किया जाता था.
104. उस दिन हम आसमानों को इस तरह लपेटेंगे जैसे लिखे हुए काग़ज़ों को लपेट दिया जाता है. जिस तरह हमने कायनात की पहली बार तख़लीक़ की थी, उसी तरह दोबारा तख़लीक़ करेंगे. यह वादा पूरा करना लाज़िमी है और हम इसे ज़रूर पूरा करेंगे. 
105. और बेशक हमने ज़ुबूर में ज़िक्र के बाद लिख दिया था कि आख़िरत की ज़मीन के वारिस सिर्फ़ हमारे स्वालिहीन बन्दे होंगे.
106. बेशक इस क़ुरआन में इबादत गुज़ार क़ौम के लिए अल्लाह के अहकाम हैं.
107. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और हमने तुम्हें तमाम आलमों के लिए सरापा रहमत बनाकर भेजा है.
108. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मेरे पास सिर्फ़ यह वही की जाती है कि तुम्हारा माबूद सिर्फ़ माबूदे यकता है. फिर क्या तुम उसके मुसलमान यानी फ़रमाबरदार हो.
109. फिर अगर वे लोग मुंह फेरें, तो तुम कह दो कि मैंने तुम सबको यकसां तौर पर बराबर ख़बरदार कर दिया है और मैं नहीं जानता कि वह अज़ाब क़रीब है या अभी दूर है, जिसका तुमसे वादा किया जाता है.
110. बेशक अल्लाह उसे भी जानता है, जो बात पुकार कर कही जाती है और वह उससे भी ख़ूब वाक़िफ़ है, जिसे तुम छुपाते हो.
111. और मैं नहीं जानता कि शायद यह अज़ाब में देरी तुम्हारे लिए एक फ़ितना हो और तुम्हें एक मुक़र्रर मुद्दत तक चैन से रहने की मोहलत दी गई हो.
112. हमारे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तू हमारे और काफ़िरों के दरम्यान हक़ के साथ फ़ैसला कर दे. और हमारा परवरदिगार बड़ा मेहरबान है. ऐ काफ़िरो ! उसी से मदद तलब की जाती है उन दिल आज़ार बातों पर, जो तुम बयान करते हो. 

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