सूरह अल अहक़ाफ़ मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 35 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
1. हा मीम.
2. यह किताब अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल हुई है, जो ग़ालिब हिकमत वाला है.
3. और हमने आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इनके दरम्यान है, उसकी हक़ के साथ एक मुक़र्रर वक़्त तक के लिए ही तख़लीक़ की है. और कुफ़्र करने वाले लोगों को जिस चीज़ से ख़बरदार किया जाता है, तो वे उसी नसीहत से मुंह फेर लेते हैं.
4. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या तुमने उन्हें देखा है, जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो. मुझे भी दिखाओ कि उन्होंने ज़मीन में क्या तख़लीक़ किया है या आसमानों की तख़लीक़ में उनकी क्या शिरकत है. तुम मेरे पास इस क़ुरआन से पहले की कोई किताब या पहले के लोगों के इल्म का कोई बाक़ी हिस्सा लेकर आओ. अगर तुम सच्चे हो.
5. और उस शख़्स से बढ़कर कौन गुमराह हो सकता है, जो अल्लाह के सिवा ऐसे सरपरस्तों को पुकारे, जो क़यामत तक उसे उसके सवालों का जवाब ही न दें और उन्हें उसके पुकारने की ख़बर भी न हो.
6. और जब क़यामत के दिन लोग जमा किए जाएंगे, तो वे सरपरस्त उनके दुश्मन हो जाएंगे और उनके पुकारने से ही इनकार कर देंगे.
7. और जब हमारी वाज़ेह आयतें उनके सामने पढ़ी जाती हैं, तो कुफ़्र करने वाले लोग अपने पास आए हक़ के बारे में कहते हैं कि यह सरीह जादू है.
8. क्या वे लोग यह कहते हैं कि इस क़ुरआन को रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ुद ही गढ़ लिया है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगर मैं इसे ख़ुद गढ़ लेता, तो तुम मुझे अल्लाह के अज़ाब से बचाने का कुछ भी इख़्तियार नहीं रखते. और अल्लाह उसे ख़ूब जानता है, जो तल्ख़ बातें तुम क़ुरआन के बारे में करते हो. मेरे और तुम्हारे दरम्यान वही गवाह काफ़ी है. और वह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
9. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं कोई नया रसूल नहीं हूं और मैं ख़ुद नहीं जानता कि मेरे साथ क्या सुलूक किया जाएगा और तुम्हारे साथ क्या बर्ताव होगा. मैं तो सिर्फ़ उस वही की पैरवी करता हूं, जो मेरे पास भेजी जाती है और मैं तो ऐलानिया ख़बरदार करने वाला हूं.
10. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगर यह क़़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से हो और तुमने इससे इनकार कर दिया, तो तुम्हारा क्या अंजाम होगा. और बनी इस्राईल में से एक गवाह भी पहले की आसमानी किताबों से इस जैसी किताब के नाज़िल होने के ज़िक्र पर गवाही दे चुका है और वह इस पर ईमान भी ले आया. इसके बावजूद तुमने तकब्बुर किया, तो तुम्हारे ज़ालिम होने में क्या शक है. बेशक अल्लाह ज़ालिमों की क़ौम को हिदायत नहीं देता.
11. और कुफ़्र करने वाले लोग ईमान वालों से कहते हैं कि अगर यह दीन यानी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और क़ुरआन बेहतर होता, तो ये लोग उसकी तरफ़ हमसे पहले न दौड़ पड़ते यानी हम पहले ईमान ले आता. और जब उन्होंने इससे हिदायत न पाई, तो कहने लगे कि यह एक क़दीमी झूठ है.
12. और इससे पहले मूसा अलैहिस्सलाम की किताब यानी तौरात लोगों के लिए इमाम और रहमत थी. और यह उस किताब की तसदीक़ करती है, जो अरबी ज़बान में है ताकि इसके ज़रिये ज़ुल्म करने वाले लोगों को ख़बरदार करे और मोहसिनों लोगों को ख़ुशख़बरी दे.
13. बेशक जिन लोगों ने कहा कि हमारा परवरदिगार अल्लाह है. फिर वे इस पर क़ायम रहे, तो उन्हें न कुछ ख़ौफ़ होगा और न वे ग़मग़ीन होंगे.
14. ये असहाबे जन्नत हैं, जो हमेशा उसमें रहेंगे. यह उनके आमाल की जज़ा है, जो वे किया करते थे.
15. और हमने इंसान को अपने वालिदैन के साथ हुस्ने सुलूक करने का हुक्म दिया है. उसकी मां ने उसे पेट में रखने में तकलीफ़ उठाई और तकलीफ़ सहकर ही उसे जनम दिया. उसके पेट में रहने और दूध छोड़ने का वक़्त तीस माह है. यहां तक कि जब वह ख़ूब जवान होता है और चालीस बरस को पहुंच जाता है, तो अल्लाह से अर्ज़ करता है कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तू मुझे तौफ़ीक़ अता कर कि मैं उन नेअमतों का शुक्रगुज़ार रहूं, जो तूने मुझे और मेरे वालिदैन को अता की हैं. और यह भी तौफ़ीक़ दे कि मैं ऐसे नेक काम करूं, जिनसे तू राज़ी हो और मेरे लिए मेरी औलाद में नेकी और ख़ैर रख दे. मैं तेरी तरफ़ रुजू करता हूं और मैं मुसलमानों यानी फ़रमाबरदारों में से हूं.
16. यही वे लोग हैं, जिनके अच्छे आमाल हम क़ुबूल करते हैं और उनकी ख़तायों से दरग़ुज़र करते हैं. ये असहाबे जन्नत हैं. यह वादा बरहक़ है, जो उनसे किया जाता है.
17. और जिसने अपने वालिदैन से कहा कि उफ़ ! तुम मुझे यह वादा देते हो कि मैं दोबारा ज़िन्दा करके क़ब्र से निकाला जाऊंगा. हालांकि मुझसे पहले बहुत सी उम्मतें गुज़र चुकी हैं. अब वे दोनों अल्लाह से फ़रियाद करने लगे. उन्होंने अपने बेटे से कहा कि तू तबाह होगा. अल्लाह पर ईमान ले आ. बेशक अल्लाह का वादा बरहक़ है. इस पर वह कहने लगा कि यह पहले के लोगों की कहानियों के सिवा कुछ नहीं है.
18. यही वे लोग हैं, जिनके बारे में अज़ाब का क़ौल पूरा हो चुका है. ऐसे ही जिन्नों और इंसानों की उनसे पहले बहुत सी उम्मतें गुज़र चुकी हैं. बेशक वे नुक़सान उठाने वाले थे.
19. और लोगों के जैसे आमाल होंगे, उसी के मुताबिक़ जन्नत और दोज़ख़ में उनके दर्जात होंगे, ताकि अल्लाह उन्हें उनके आमाल का पूरा-पूरा बदला दे और उन पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा.
20. और जिस दिन कुफ़्र करने वाले लोग दोज़ख़ के सामने पेश किए जाएंगे, तो उनसे कहा जाएगा कि तुमने अपनी नेअमतें दुनियावी ज़िन्दगी में ही हासिल कर लीं और उनसे ख़ूब फ़ायदा भी उठाया. फिर आज तुम्हें बदले में ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब दिया जाएगा, क्योंकि तुम ज़मीन में नाहक़ तकब्बुर किया करते थे और नाफ़रमानी भी करते थे.
21. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! और तुम आद के भाई हूद अलैहिस्लाम को याद करो, जब उन्होंने अपनी क़ौम को यमन की एक वादी अहक़ाफ़ में ख़बरदार किया था. हालांकि उनसे पहले और उनके बाद भी बहुत से ख़बरदार करने वाले पैग़म्बर गुज़र चुके थे कि अल्लाह के सिवा किसी को मत पुकारो. मुझे ख़ौफ़ है कि कहीं तुम पर बड़े सख़्त दिन का अज़ाब न आ जाए.
22. और वे लोग कहने लगे कि क्या तुम हमारे पास इसलिए आए हो कि हमें हमारे सरपरस्तों से फेर दो. जिस अज़ाब के वादे से तुम हमें डराते हो, उसे ले आओ. अगर तुम सच्चे हो.
23. उन्होंने कहा कि बेशक अज़ाब के वक़्त का इल्म तो सिर्फ़ अल्लाह को है. और मैं तुम्हें वह पैग़ाम पहुंचा रहा हूं, जिसे देकर मुझे भेजा गया है. लेकिन मैं देख रहा हूं कि तुम जाहिल क़ौम हो.
24. फिर जब उन लोगों ने बादलों की तरह अपनी वादियों की तरफ़ उमड़ आ रहे उस अज़ाब को देखा, तो कहने लगे कि यह बादल है, जो हम पर बरस कर रहेगा. बल्कि यह तो वह अज़ाब है, जिसकी तुम जल्दी कर रहे थे. यह आंधी है, जिसमें दर्दनाक अज़ाब है.
25. यह आंधी अपने परवरदिगार के हुक्म से हर चीज़ को तबाह और बर्बाद कर देती है. फिर वे लोग ऐसे तबाह हुए कि उनके घरों के सिवा कुछ नज़र नहीं आता था. हम गुनाहगार क़ौम को ऐसे ही सज़ा दिया करते हैं.
26. ऐ अहले मक्का ! और बेशक हमने उन लोगों को कुछ चीज़ों में ऐसी ताक़त और सलाहियत दे रखी थी, जो तुम्हें नहीं दी. और हमने उन्हें कान और आंखें और दिल की बेपनाह सलाहियतें दी थीं. इसके बावजूद न उनके कान, न उनकी आंखें और न उनके दिल ही उनके कुछ काम आ सके, क्योंकि वे अल्लाह की आयतों से इनकार करते थे. और उस अज़ाब ने उन्हें हर तरफ़ से घेर लिया, जिसका वे मज़ाक़ उड़ाया करते थे.
27. ऐ अहले मक्का ! और बेशक हमने कितनी ही बस्तियों को हलाक कर दिया, जो तुम्हारे अतराफ़ थीं. और हमने अपनी क़ुदरत की निशानियां बार-बार ज़ाहिर कीं, ताकि वे लोग रुजू करें.
28. फिर उन बुतों ने उनकी मदद क्यों नहीं की, जिनको उन्होंने क़ुर्बे इलाही के लिए अल्लाह के सिवा अपना सरपरस्त बना रखा था. बल्कि वे तो उनके सामने से ग़ायब हो गए. और यह उनका झूठ था और यही वह बोहतान था, जो वे बांधा करते थे.
29. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब हमने जिन्नों की एक जमात को तुम्हारी तरफ़ मुतावज्जे किया, जो क़ुरआन को ग़ौर से सुनते थे. फिर जब वे तुम्हारे पास आए, तो एक दूसरे से कहने लगे कि ख़ामोश रहो. फिर जब पढ़ाई मुकम्मल हो गई, तो वे अपनी क़ौम की तरफ़ वापस चले गए, ताकि उन्हें ख़बरदार करें.
30. उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि बेशक हमने एक ऐसी किताब सुनी है, जो मूसा अलैहिस्सलाम की तौरात के बाद नाज़िल हुई है. वह पहले नाज़िल हुई किताबों की तसदीक़ करती है. और वह हक़ और सीधे रास्ते की तरफ़ हिदायत करने वाली है.
31. ऐ हमारी क़ौम ! अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले यानी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कहना मानो और अल्लाह पर ईमान लाओ. वह तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा और तुम्हें दर्दनाक अज़ाब से पनाह में रखेगा.
32. और जो शख़्स अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले यानी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बात नहीं मानेगा, तो वह ज़मीन में भागकर अल्लाह को आजिज़ नहीं कर सकेगा और अल्लाह के सिवा उसका कोई सरपरस्त नहीं है. वे लोग सरीह गुमराही में मुब्तिला हैं.
33. क्या उन्होंने नहीं देखा कि जिस अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ की और उनके बनाने से वह ज़रा भी नहीं थका. वह इस बात पर भी क़ादिर है कि मुर्दों को दोबारा ज़िन्दा करे. बेशक वह हर चीज़ पर क़ादिर है.
34. और जिस दिन काफ़िर दोज़ख़ की आग के सामने पेश किए जाएंगे, तो उनसे कहा जाएगा- क्या यह अज़ाब बरहक़ नहीं है. वे लोग कहेंगे कि क्यों नहीं, अपने परवरदिगार की क़सम बरहक़ है. तब हुक्म होगा कि फिर इस अज़ाब का ज़ायक़ा चखो. उस कुफ़्र के बदले, जो तुम किया करते थे.
35. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम भी उसी तरह सब्र करो, जैसे दूसरे अज़्म वाले रसूलों ने किया था. और तुम काफ़िरों के लिए अज़ाब की जल्दी मत करो. जिस दिन वे आख़िरत के अज़ाब को देख लेंगे, जिसका उनसे वादा किया जाता है, तो यह गुमान करेंगे कि वे दुनिया में दिन की एक घड़ी भर के सिवा ठहरे ही नहीं थे. फिर तुम उन्हें यह पैग़ाम पहुंचा देना कि सिर्फ़ वही क़ौम हलाक होगी, जो नाफ़रमान है.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
1. हा मीम.
2. यह किताब अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल हुई है, जो ग़ालिब हिकमत वाला है.
3. और हमने आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इनके दरम्यान है, उसकी हक़ के साथ एक मुक़र्रर वक़्त तक के लिए ही तख़लीक़ की है. और कुफ़्र करने वाले लोगों को जिस चीज़ से ख़बरदार किया जाता है, तो वे उसी नसीहत से मुंह फेर लेते हैं.
4. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि क्या तुमने उन्हें देखा है, जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो. मुझे भी दिखाओ कि उन्होंने ज़मीन में क्या तख़लीक़ किया है या आसमानों की तख़लीक़ में उनकी क्या शिरकत है. तुम मेरे पास इस क़ुरआन से पहले की कोई किताब या पहले के लोगों के इल्म का कोई बाक़ी हिस्सा लेकर आओ. अगर तुम सच्चे हो.
5. और उस शख़्स से बढ़कर कौन गुमराह हो सकता है, जो अल्लाह के सिवा ऐसे सरपरस्तों को पुकारे, जो क़यामत तक उसे उसके सवालों का जवाब ही न दें और उन्हें उसके पुकारने की ख़बर भी न हो.
6. और जब क़यामत के दिन लोग जमा किए जाएंगे, तो वे सरपरस्त उनके दुश्मन हो जाएंगे और उनके पुकारने से ही इनकार कर देंगे.
7. और जब हमारी वाज़ेह आयतें उनके सामने पढ़ी जाती हैं, तो कुफ़्र करने वाले लोग अपने पास आए हक़ के बारे में कहते हैं कि यह सरीह जादू है.
8. क्या वे लोग यह कहते हैं कि इस क़ुरआन को रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ुद ही गढ़ लिया है. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगर मैं इसे ख़ुद गढ़ लेता, तो तुम मुझे अल्लाह के अज़ाब से बचाने का कुछ भी इख़्तियार नहीं रखते. और अल्लाह उसे ख़ूब जानता है, जो तल्ख़ बातें तुम क़ुरआन के बारे में करते हो. मेरे और तुम्हारे दरम्यान वही गवाह काफ़ी है. और वह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
9. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं कोई नया रसूल नहीं हूं और मैं ख़ुद नहीं जानता कि मेरे साथ क्या सुलूक किया जाएगा और तुम्हारे साथ क्या बर्ताव होगा. मैं तो सिर्फ़ उस वही की पैरवी करता हूं, जो मेरे पास भेजी जाती है और मैं तो ऐलानिया ख़बरदार करने वाला हूं.
10. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अगर यह क़़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से हो और तुमने इससे इनकार कर दिया, तो तुम्हारा क्या अंजाम होगा. और बनी इस्राईल में से एक गवाह भी पहले की आसमानी किताबों से इस जैसी किताब के नाज़िल होने के ज़िक्र पर गवाही दे चुका है और वह इस पर ईमान भी ले आया. इसके बावजूद तुमने तकब्बुर किया, तो तुम्हारे ज़ालिम होने में क्या शक है. बेशक अल्लाह ज़ालिमों की क़ौम को हिदायत नहीं देता.
11. और कुफ़्र करने वाले लोग ईमान वालों से कहते हैं कि अगर यह दीन यानी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और क़ुरआन बेहतर होता, तो ये लोग उसकी तरफ़ हमसे पहले न दौड़ पड़ते यानी हम पहले ईमान ले आता. और जब उन्होंने इससे हिदायत न पाई, तो कहने लगे कि यह एक क़दीमी झूठ है.
12. और इससे पहले मूसा अलैहिस्सलाम की किताब यानी तौरात लोगों के लिए इमाम और रहमत थी. और यह उस किताब की तसदीक़ करती है, जो अरबी ज़बान में है ताकि इसके ज़रिये ज़ुल्म करने वाले लोगों को ख़बरदार करे और मोहसिनों लोगों को ख़ुशख़बरी दे.
13. बेशक जिन लोगों ने कहा कि हमारा परवरदिगार अल्लाह है. फिर वे इस पर क़ायम रहे, तो उन्हें न कुछ ख़ौफ़ होगा और न वे ग़मग़ीन होंगे.
14. ये असहाबे जन्नत हैं, जो हमेशा उसमें रहेंगे. यह उनके आमाल की जज़ा है, जो वे किया करते थे.
15. और हमने इंसान को अपने वालिदैन के साथ हुस्ने सुलूक करने का हुक्म दिया है. उसकी मां ने उसे पेट में रखने में तकलीफ़ उठाई और तकलीफ़ सहकर ही उसे जनम दिया. उसके पेट में रहने और दूध छोड़ने का वक़्त तीस माह है. यहां तक कि जब वह ख़ूब जवान होता है और चालीस बरस को पहुंच जाता है, तो अल्लाह से अर्ज़ करता है कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तू मुझे तौफ़ीक़ अता कर कि मैं उन नेअमतों का शुक्रगुज़ार रहूं, जो तूने मुझे और मेरे वालिदैन को अता की हैं. और यह भी तौफ़ीक़ दे कि मैं ऐसे नेक काम करूं, जिनसे तू राज़ी हो और मेरे लिए मेरी औलाद में नेकी और ख़ैर रख दे. मैं तेरी तरफ़ रुजू करता हूं और मैं मुसलमानों यानी फ़रमाबरदारों में से हूं.
16. यही वे लोग हैं, जिनके अच्छे आमाल हम क़ुबूल करते हैं और उनकी ख़तायों से दरग़ुज़र करते हैं. ये असहाबे जन्नत हैं. यह वादा बरहक़ है, जो उनसे किया जाता है.
17. और जिसने अपने वालिदैन से कहा कि उफ़ ! तुम मुझे यह वादा देते हो कि मैं दोबारा ज़िन्दा करके क़ब्र से निकाला जाऊंगा. हालांकि मुझसे पहले बहुत सी उम्मतें गुज़र चुकी हैं. अब वे दोनों अल्लाह से फ़रियाद करने लगे. उन्होंने अपने बेटे से कहा कि तू तबाह होगा. अल्लाह पर ईमान ले आ. बेशक अल्लाह का वादा बरहक़ है. इस पर वह कहने लगा कि यह पहले के लोगों की कहानियों के सिवा कुछ नहीं है.
18. यही वे लोग हैं, जिनके बारे में अज़ाब का क़ौल पूरा हो चुका है. ऐसे ही जिन्नों और इंसानों की उनसे पहले बहुत सी उम्मतें गुज़र चुकी हैं. बेशक वे नुक़सान उठाने वाले थे.
19. और लोगों के जैसे आमाल होंगे, उसी के मुताबिक़ जन्नत और दोज़ख़ में उनके दर्जात होंगे, ताकि अल्लाह उन्हें उनके आमाल का पूरा-पूरा बदला दे और उन पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा.
20. और जिस दिन कुफ़्र करने वाले लोग दोज़ख़ के सामने पेश किए जाएंगे, तो उनसे कहा जाएगा कि तुमने अपनी नेअमतें दुनियावी ज़िन्दगी में ही हासिल कर लीं और उनसे ख़ूब फ़ायदा भी उठाया. फिर आज तुम्हें बदले में ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब दिया जाएगा, क्योंकि तुम ज़मीन में नाहक़ तकब्बुर किया करते थे और नाफ़रमानी भी करते थे.
21. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! और तुम आद के भाई हूद अलैहिस्लाम को याद करो, जब उन्होंने अपनी क़ौम को यमन की एक वादी अहक़ाफ़ में ख़बरदार किया था. हालांकि उनसे पहले और उनके बाद भी बहुत से ख़बरदार करने वाले पैग़म्बर गुज़र चुके थे कि अल्लाह के सिवा किसी को मत पुकारो. मुझे ख़ौफ़ है कि कहीं तुम पर बड़े सख़्त दिन का अज़ाब न आ जाए.
22. और वे लोग कहने लगे कि क्या तुम हमारे पास इसलिए आए हो कि हमें हमारे सरपरस्तों से फेर दो. जिस अज़ाब के वादे से तुम हमें डराते हो, उसे ले आओ. अगर तुम सच्चे हो.
23. उन्होंने कहा कि बेशक अज़ाब के वक़्त का इल्म तो सिर्फ़ अल्लाह को है. और मैं तुम्हें वह पैग़ाम पहुंचा रहा हूं, जिसे देकर मुझे भेजा गया है. लेकिन मैं देख रहा हूं कि तुम जाहिल क़ौम हो.
24. फिर जब उन लोगों ने बादलों की तरह अपनी वादियों की तरफ़ उमड़ आ रहे उस अज़ाब को देखा, तो कहने लगे कि यह बादल है, जो हम पर बरस कर रहेगा. बल्कि यह तो वह अज़ाब है, जिसकी तुम जल्दी कर रहे थे. यह आंधी है, जिसमें दर्दनाक अज़ाब है.
25. यह आंधी अपने परवरदिगार के हुक्म से हर चीज़ को तबाह और बर्बाद कर देती है. फिर वे लोग ऐसे तबाह हुए कि उनके घरों के सिवा कुछ नज़र नहीं आता था. हम गुनाहगार क़ौम को ऐसे ही सज़ा दिया करते हैं.
26. ऐ अहले मक्का ! और बेशक हमने उन लोगों को कुछ चीज़ों में ऐसी ताक़त और सलाहियत दे रखी थी, जो तुम्हें नहीं दी. और हमने उन्हें कान और आंखें और दिल की बेपनाह सलाहियतें दी थीं. इसके बावजूद न उनके कान, न उनकी आंखें और न उनके दिल ही उनके कुछ काम आ सके, क्योंकि वे अल्लाह की आयतों से इनकार करते थे. और उस अज़ाब ने उन्हें हर तरफ़ से घेर लिया, जिसका वे मज़ाक़ उड़ाया करते थे.
27. ऐ अहले मक्का ! और बेशक हमने कितनी ही बस्तियों को हलाक कर दिया, जो तुम्हारे अतराफ़ थीं. और हमने अपनी क़ुदरत की निशानियां बार-बार ज़ाहिर कीं, ताकि वे लोग रुजू करें.
28. फिर उन बुतों ने उनकी मदद क्यों नहीं की, जिनको उन्होंने क़ुर्बे इलाही के लिए अल्लाह के सिवा अपना सरपरस्त बना रखा था. बल्कि वे तो उनके सामने से ग़ायब हो गए. और यह उनका झूठ था और यही वह बोहतान था, जो वे बांधा करते थे.
29. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जब हमने जिन्नों की एक जमात को तुम्हारी तरफ़ मुतावज्जे किया, जो क़ुरआन को ग़ौर से सुनते थे. फिर जब वे तुम्हारे पास आए, तो एक दूसरे से कहने लगे कि ख़ामोश रहो. फिर जब पढ़ाई मुकम्मल हो गई, तो वे अपनी क़ौम की तरफ़ वापस चले गए, ताकि उन्हें ख़बरदार करें.
30. उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि बेशक हमने एक ऐसी किताब सुनी है, जो मूसा अलैहिस्सलाम की तौरात के बाद नाज़िल हुई है. वह पहले नाज़िल हुई किताबों की तसदीक़ करती है. और वह हक़ और सीधे रास्ते की तरफ़ हिदायत करने वाली है.
31. ऐ हमारी क़ौम ! अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले यानी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कहना मानो और अल्लाह पर ईमान लाओ. वह तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा और तुम्हें दर्दनाक अज़ाब से पनाह में रखेगा.
32. और जो शख़्स अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले यानी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बात नहीं मानेगा, तो वह ज़मीन में भागकर अल्लाह को आजिज़ नहीं कर सकेगा और अल्लाह के सिवा उसका कोई सरपरस्त नहीं है. वे लोग सरीह गुमराही में मुब्तिला हैं.
33. क्या उन्होंने नहीं देखा कि जिस अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ की और उनके बनाने से वह ज़रा भी नहीं थका. वह इस बात पर भी क़ादिर है कि मुर्दों को दोबारा ज़िन्दा करे. बेशक वह हर चीज़ पर क़ादिर है.
34. और जिस दिन काफ़िर दोज़ख़ की आग के सामने पेश किए जाएंगे, तो उनसे कहा जाएगा- क्या यह अज़ाब बरहक़ नहीं है. वे लोग कहेंगे कि क्यों नहीं, अपने परवरदिगार की क़सम बरहक़ है. तब हुक्म होगा कि फिर इस अज़ाब का ज़ायक़ा चखो. उस कुफ़्र के बदले, जो तुम किया करते थे.
35. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम भी उसी तरह सब्र करो, जैसे दूसरे अज़्म वाले रसूलों ने किया था. और तुम काफ़िरों के लिए अज़ाब की जल्दी मत करो. जिस दिन वे आख़िरत के अज़ाब को देख लेंगे, जिसका उनसे वादा किया जाता है, तो यह गुमान करेंगे कि वे दुनिया में दिन की एक घड़ी भर के सिवा ठहरे ही नहीं थे. फिर तुम उन्हें यह पैग़ाम पहुंचा देना कि सिर्फ़ वही क़ौम हलाक होगी, जो नाफ़रमान है.
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