Monday, August 9, 2021

45 सूरह अल जासियह

सूरह अल जासियह मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 37 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. हा मीम.
2. यह किताब अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल हुई है, जो ग़ालिब हिकमत वाला है.
3. बेशक आसमानों और ज़मीन में मोमिनों के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं.
4. और तुम्हारी अपनी पैदाइश में और उन जानवरों में भी जिन्हें अल्लाह ज़मीन में फैलाता है. इसमें यक़ीन करने वाली क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं.
5. और रात और दिन के आगे पीछे आने जाने में और उस रिज़्क़ में जिसे अल्लाह बारिश के पानी के तौर पर आसमान से नाज़िल करता है. फिर उसके ज़रिये मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा करता है यानी बंजर ज़मीन को शादाब करता है और हवाओं की गर्दिश में भी उस क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं, जो अक़्लमंद है.
6. ये अल्लाह की आयतें हैं, जिन्हें हम तुम्हारे सामने हक़ के साथ बयान कर रहे हैं. फिर अल्लाह और उसकी आयतों के बाद वे लोग किस हदीस पर ईमान लाएंगे.
7. हर झूठे गुनाहगार के लिए तबाही है.
8. जिसके सामने अल्लाह की आयतें पढ़ी जाती हैं और वह उन्हें सुनता है. और फिर वह अपने कुफ़्र पर इसरार करते हुए तकब्बुर करता है, गोया उसने उन्हें सुना ही नहीं. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उसे दर्दनाक अज़ाब की ख़बर दे दो.
9. और जब उसे हमारी आयतों में से किसी चीज़ का इल्म हो जाता है, तो वह उसका मज़ाक़ उड़ाता है. ऐसे लोगों के लिए ज़िल्लत अंगेज़ अज़ाब है.
10. उन लोगों के आगे जहन्नुम है. और उन्होंने दुनिया में जो कुछ कमाया है, उसमें से कुछ भी उनके किसी काम नहीं आएगा और न वे काम आएंगे, जिन्हें उसने अल्लाह के सिवा अपना सरपरस्त बना रखा है. और उनके लिए बड़ा सख़्त अज़ाब है.
11. यह क़ुरआन हिदायत है. और जिन लोगों ने अपने परवरदिगार की आयतों के साथ कुफ़्र किया, उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है.
12. अल्लाह ही है, जिसने समन्दर व दरिया को तुम्हारे क़ाबू में कर दिया, ताकि उसके हुक्म से उसमें जहाज़ व कश्तियां चलें. और तुम उसका फ़ज़ल यानी रिज़्क़ तलाश करो और उसके शुक्रगुज़ार रहो.
13. और अल्लाह ने जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है, सबको तुम्हारे काम में लगा रखा है. बेशक इसमें उस क़ौम के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं, जो ग़ौर व फ़िक्र करती है.
14. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम ईमान वालों से कह दो कि उन लोगों को मुआफ़ कर दो, जो अल्लाह के दिनों की उम्मीद नहीं रखते हैं यानी क़यामत पर यक़ीन नहीं रखते, ताकि वह उस क़ौम को उसकी जज़ा दे, जो वे कमाया करते थे.
15. जो शख़्स नेक अमल करता है, तो वह अपने लिए ही करता है. और जो बुरा  करता है, तो उसका वबाल भी उसी पर है. फिर तुम्हें अपने परवरदिगार की तरफ़ ही लौटना है.
16. और बेशक हमने बनी इस्राईल को किताब यानी तौरात और हुकूमत और नबुवत अता की. और उन्हें बेहतरीन रिज़्क़ दिया और हमने उन्हें तमाम आलमों पर फ़ज़ीलत बख़्शी.
17. और हमने उन्हें अपने अमर की वाज़ेह निशानियां अता कीं. लेकिन इसके बाद जब उनके पास मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इल्म आया, तो उन्होंने महज़ आपसी हसद और अदावत की वजह से इससे इख़्तिलाफ़ किया. बेशक उनका परवरदिगार क़यामत के दिन उनके दरम्यान फ़ैसला कर देगा, जिसे लेकर वे इख़्तिलाफ़ करते हैं.
18. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर हमने तुम्हें शरीअत पर मामूर किया है यानी दीन के सरीह रास्ते पर क़ायम किया है. फिर तुम इसी की पैरवी करो और उनकी ख़्वाहिशों की पैरवी मत करना, जो लोग तुम्हारे और तुम्हारे दीन की अज़मत के बारे में नहीं जानते.
19. बेशक अल्लाह के मुक़ाबले में वे लोग तुम्हारे कुछ भी काम नहीं आएंगे. और बेशक ज़ालिम एक दूसरे के सरपरस्त और दोस्त हुआ करते हैं. और अल्लाह परहेज़गारों का सरपरस्त है.
20. यह क़ुरआन लोगों के लिए बसीरत का मजमुआ है और यक़ीन करने वाली क़ौम के लिए हिदायत और रहमत है.
21. क्या बुरे काम करने वाले लोग यह गुमान करते हैं कि हम उन्हें उन लोगों के बराबर कर देंगे, जो ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, ताकि उनकी ज़िन्दगी और उनकी मौत बराबर हो जाए? वे लोग बहुत ही बुरा दावा करते हैं.
22. और अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन की हक़ के साथ तख़लीक़ की है, ताकि हर शख़्स को उसकी जज़ा दे, जो वह कमाया करता है. और उन पर ज़़ुल्म नहीं किया जाएगा.
23. क्या तुमने उस शख़्स को देखा है, जिसने अपनी ख़्वाहिशों को सरपरस्त बना रखा है. और अल्लाह ने इल्म होने के बावजूद उसे गुमराही में ही छोड़ दिया और उसके कान और दिल पर मुहर लगा दी और उसकी आंखों पर ग़फ़लत का पर्दा डाल दिया? फिर उसे अल्लाह के बाद कौन हिदायत दे सकता है. क्या फिर भी तुम ग़ौर व फ़िक्र नहीं करते.
24. और वे लोग कहते हैं कि हमारी ज़िन्दगी सिर्फ़ इसी दुनिया की ज़िन्दगी है. यहीं हमारा जीना और मरना है. और हमें ज़माने के सिवा कोई हलाक नहीं करता यानी वे अल्लाह और आख़िरत से इनकार करते हैं. और उन्हें इस हक़ीक़त का कुछ भी इल्म नहीं है. वे लोग सिर्फ़ गुमान ही करते हैं.
25. और जब उनके सामने हमारी वाज़ेह आयतें पढ़ी जाती हैं, तो उनके पास इसके सिवा कोई हुज्जत नहीं होती कि हमारे बाप दादाओं को ज़िन्दा करके ले आओ. अगर तुम सच्चे हो.
26. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अल्लाह ही तुम्हें ज़िन्दगी बख़्शता है और फिर वही तुम्हें मौत देता है. फिर वही तुम्हें क़यामत के दिन जमा करेगा, जिसके आने में कोई शक नहीं है. लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते.
27. और आसमानों और ज़मीन की बादशाहत अल्लाह की है. और जिस दिन क़यामत बरपा होगी, उस दिन बातिल लोग नुक़सान में रहेंगे.
28. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और उस वक़्त तुम हर उम्मत को घुटनों के बल बैठा देखोगे. हर उम्मत को बुलाया जाएगा कि वह आकर अपने आमाल की किताब देखे. उनसे कहा जाएगा कि आज तुम्हें उन आमाल की जज़ा दी जाएगी, जो तुम किया करते थे.
29. यह हमारी किताब है, जो तुम्हारे बारे में हक़ बयान कर रही है. बेशक हम वह सब आमाल लिखवाते जाते थे, जो कुछ तुम किया करते थे.
30. फिर जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, उन्हें उनका परवरदिगार अपनी रहमत से जन्नत में दाख़िल करेगा. यही तो वाज़ेह कामयाबी है.
31. और जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उनसे कहा जाएगा कि क्या हमारी आयतें तुम्हारे सामने नहीं पढ़ी जाती थीं. फिर भी तुमने तकब्बुर किया और तुम गुनाहगार क़ौम हो गए.
32. और जब तुमसे कहा जाता था कि अल्लाह का वादा बरहक़ है और क़यामत के आने में कोई शक नहीं है, तो तुम कहते थे कि हम नहीं जानते कि क़यामत क्या है? हम उसे वहम व गुमान के सिवा कुछ नहीं मानते और हम इस पर बिल्कुल भी यक़ीन करने वाले नहीं हैं. 
33. और उस वक़्त वे सब बुराइयां उन पर ज़ाहिर कर दी जाएंगी, जो वे किया करते थे. और वह अज़ाब उन्हें हर तरफ़ से घेर लेगा, जिसका वे मज़ाक़ उड़ाया करते थे. 
34. और उनसे कहा जाएगा कि आज हम तुम्हें उसी तरह भुला देते हैं, जिस तरह तुमने इस दिन की पेशी को भुला दिया था. और तुम्हारा ठिकाना दोज़ख़ है और कोई तुम्हारा मददगार नहीं होगा. 
35. तुम्हारा यह अंजाम इसलिए हुआ है कि तुमने अल्लाह की आयतों का मज़ाक़ बना रखा था और दुनियावी ज़िन्दगी ने तुम्हें धोखे में डाल दिया था. फिर आज न वे लोग उस दोज़ख़ से निकाले जाएंगे और न उन्हें इसका मौक़ा दिया जाएगा कि वे तौबा करके अल्लाह को राज़ी कर सकें.
36. फिर अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं, जो आसमानों और ज़मीन का परवरदिगार है और तमाम आलमों का परवरदिगार है.
37. और आसमानों और ज़मीन में अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं. और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.

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