Tuesday, August 24, 2021

30 सूरह अर रूम

सूरह अर रूम मक्का मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 60 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. अलिफ़ लाम मीम.
2.  अहले रूम फ़ारस से मग़लूब हो गए.
3. नज़दीक के मुल्क में और वे अपने मग़लूब हो जाने के बाद अनक़रीब ग़ालिब हो जाएंगे.
4. कुछ ही साल में. हर काम अल्लाह ही का है. वे पहले फ़ारस में भी और उसके बाद रूम में भी ग़ालिब होंगे. और उस दिन मोमिन ख़ुश हो जाएंगे.
5. अल्लाह की मदद से. वह जिसकी चाहता है मदद करता है. और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा मेहरबान है.
6. यह अल्लाह का वादा है. अल्लाह वादा ख़िलाफ़ी नहीं करता. लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते.
7. वे लोग सिर्फ़ दुनिया की ज़ाहिरी ज़िन्दगी को ही जानते हैं और आख़िरत से बिल्कुल ग़ाफ़िल हैं.
8. क्या उन्होंने अपने दिल में इतना भी ग़ौर नहीं किया कि अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरम्यान है, उन्हें हक़ के साथ एक मुक़र्रर मुद्दत के लिए ही तख़लीक़ किया है. और बेशक बहुत से लोग अपने परवरदिगार से मिलने से कुफ़्र यानी इनकार करते हैं. 
9. क्या उन लोगों ने ज़मीन में चल फिर कर नहीं देखा कि जो लोग उनसे पहले गुज़र चुके हैं, उनका क्या अंजाम हुआ. वे लोग क़ूवत में उनसे कहीं बढ़कर थे और उन्होंने उनसे ज़्यादा ज़मीन में काश्त की और उसे आबाद किया था. और उनके पास भी रसूल वाज़ेह निशानियां लेकर आए थे. ऐसा नहीं था कि अल्लाह उन पर कोई ज़ुल्म करता, लेकिन वे ख़ुद ही अपनी जानों पर ज़ुल्म करते रहे.
10. फिर जिन लोगों ने बुराई की, उनका अंजाम बहुत ही बुरा हुआ, क्योंकि उन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठलाया और उनका मज़ाक़ उड़ाया था.
11. अल्लाह ही है, जिसने मख़लूक़ को पहली मर्तबा पैदा किया. फिर वही उसे दोबारा पैदा करेगा. फिर तुम्हें उसकी तरफ़ ही लौटना है. 
12. और जिस दिन क़यामत बरपा होगी, तो गुनाहगार लोग मायूस हो जाएंगे.
13. और उनके मनगढ़ंत शरीकों में से कोई भी उनका सिफ़ारिशी नहीं होगा और वे अपने शरीकों को मानने से कुफ़्र यानी इनकार कर देंगे. 
14. और जिस दिन क़यामत बरपा होगी, तो उस दिन लोगों के जुदा-जुदा फ़िरक़े हो जाएंगे.
15. फिर जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, तो वे जन्नत के बाग़ों में ख़ुशहाल होंगे.
16. और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और हमारी आयतों और आख़िरत के मिलने को झुठलाया, तो उन्हें अज़ाब में हाज़िर किया जाएगा. 
17. फिर तुम सुबह व शाम अल्लाह की तस्बीह किया रहो. 
18. और आसमानों और ज़मीन में अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है, यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं. और तुम तस्बीह किया करो तीसरे पहर और दोपहर में भी.
19. वह अल्लाह ही है, जो ज़िन्दा को मुर्दे से निकालता है और मुर्दे को ज़िन्दा से निकालता है. और वही मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा करता है, यानी बंजर ज़मीन को शादाब करता है. इसी तरह तुम क़ब्रों में से निकाले जाओगे.
20. और अल्लाह की क़ुदरत की निशानियों में यह भी है कि उसने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया. फिर तुम आदमी बनकर ज़मीन में फैले हुए हो.
21. और अल्लाह की क़़ुदरत की निशानियों में से यह भी है कि उसने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिन्स के जोड़े बनाए, ताकि तुम चैन से रहो. और तुम्हारे दरम्यान मुहब्बत और रहमत पैदा कर दी. बेशक इसमें उस क़ौम के लिए बहुत सी निशानियां हैं, जो ग़ौर व फ़िक्र करती है.
22. और अल्लाह की क़़ुदरत की निशानियों में आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ भी है और तुम्हारी ज़बानों और रंग का मुख़्तलिफ़ होना भी है. बेशक आलिमों के लिए इसमें बहुत सी निशानियां हैं.
23. और अल्लाह की क़ुदरत की निशानियों में रात और दिन में तुम्हारा सोना और उसका फ़ज़ल यानी रिज़्क़ का तलाश करना भी है. बेशक इसमें उस क़ौम के लिए बहुत सी निशानियां हैं, जो ग़ौर से सुनती है.
24. और अल्लाह की क़़ुदरत की निशानियों में से यह भी है कि वह तुम्हें ख़ौफ़ और उम्मीद दिलाने के लिए बिजली दिखाता है और आसमान से बारिश बरसाता है. फिर उसके ज़रिये मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा यानी बंजर ज़मीन को शादाब करता है. बेशक इसमें उस क़ौम के लिए बहुत सी निशानियां हैं, जो अक़्ल से काम लेती है.
25. और अल्लाह की क़़ुदरत की निशानियों में से यह भी है कि आसमान और ज़मीन उसके हुक्म से क़ायम हैं. फिर जब वह तुम्हें आवाज़ देगा, तो तुम सब ज़मीन में से बाहर निकल आओगे.
26. और जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, सब उसी का है और सब उसी के फ़रमाबरदार हैं.
27. और वह अल्लाह ही है, जो पहली मर्तबा तख़लीक़ करता है. फिर वही दोबारा तख़लीक़ करेगा. और उसके लिए यह बहुत आसान है. और आसमानों और ज़मीन में वही आलीशान है. और वह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
28. उसी अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही एक मिसाल बयान की है. हमने जो कुछ तुम्हें अता किया है, क्या उसमें तुम्हारे ग़ुलाम भी शरीक हैं कि तुम मिल्कियत में सब बराबर हो जाओ. क्या तुम उनसे ऐसा ही ख़ौफ़ रखते हो जैसा तुम्हें अपने घरवालों से होता है? हम अक़्लमंद क़ौम के लिए अपनी निशानियां तफ़सील से बयान करते हैं. यानी अल्लाह का कोई शरीक नहीं है. वही वाहिद है.
29. बल्कि ज़ुल्म करने वाले लोग बग़ैर इल्म के अपनी ख़्वाहिशों की पैरवी करते हैं. फिर अल्लाह जिसे गुमराही में छोड़ दे, तो उसे कौन हिदायत दे सकता है. और उन लोगों का कोई मददगार भी नहीं है. 
30. फिर तुम एक तरफ़ होकर अपना रुख़ दीन पर क़ायम रखो. यह अल्लाह की फ़ितरत है, जिस पर उसने लोगों को पैदा किया है. अल्लाह की तख़लीक़ में कोई तबदीली नहीं होगी. यही सीधा दीन है. लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते.
31. तुम सब उसी अल्लाह की तरफ़ रुजू किए रहो और उसी से डरते रहो और नमाज़ पढ़ते रहो और मुशरिकों में से न हो जाना,
32. उन यहूद और नसारा में से भी न होना, जिन्होंने अपने दीन के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और ख़ुद को फ़िरक़ों में तक़सीम कर लिया. और सब फ़िरक़े उसी से ख़ुश हैं, जो उनके पास है. 
33. और जब लोगों को कोई तकलीफ़ पहुंचती है, तो वे अपने परवरदिगार की तरफ़ रुजू होकर उसे पुकारते हैं. फिर जब वह उन्हें अपनी रहमत का ज़ायक़ा चखा देता है, तो फिर उन्हीं में से कुछ लोग अपने परवरदिगार के साथ शिर्क करने लगते हैं.
34. ताकि उस नेअमत की नाशुक्री करें, जो हमने उन्हें अता की है. फिर तुम कुछ वक़्त दुनिया में फ़ायदा उठा लो. फिर अनक़रीब तुम अपने अंजाम को जान लोगे.
35. क्या हमने उन पर कोई ऐसी दलील नाज़िल की है, जो उन्हें अल्लाह के साथ शिर्क करना बताती है. 
36. और जब हम लोगों को अपनी रहमत का ज़ायक़ा चखाते हैं, तो वे उससे ख़ुश हो जाते हैं. और अगर उन्हें उनके ही हाथों हुए बुरे आमाल की वजह से कोई तकलीफ़ पहुंचती है, तो वे फ़ौरन मायूस हो जाते हैं.
37. क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह जिसके लिए चाहता है रिज़्क़ कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है तंग कर देता है. बेशक इसमें उस क़ौम के लिए बहुत सी निशानियां हैं, जो ईमान वाली है. 
38. फिर तुम अपने रिश्तेदारों और मिस्कीनों और मुसाफ़िरों को उनका हक़ देते रहो. यह उन लोगों के हक़ में बेहतर है, जो अल्लाह की ख़ुशनूदी चाहते हैं. और वही लोग कामयाबी पाने वाले हैं.
39. और तुम जो माल ब्याज़ पर देते हो, ताकि वह लोगों के माल में मिलकर बढ़ता रहे, तो वह अल्लाह के नज़दीक नहीं बढ़ेगा. और तुम जो माल अल्लाह की ख़ुशनूदी की चाह में ज़कात व ख़ैरात के तौर पर देते हो, तो वही लोग अपना माल बढ़ाने वाले हैं.
40. अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें पैदा किया. फिर तुम्हें रिज़्क़ दिया. फिर वही तुम्हें मौत देता है और फिर वही तुम्हें दोबारा ज़िन्दगी बख़्शेगा. क्या तुम्हारे मनगढ़ंत शरीकों में से कोई ऐसा है, जो इनमें से कुछ भी कर सके. अल्लाह उन चीज़ों से पाक और आला है, जिन्हें वे उसका शरीक ठहराते हैं. 
41. ख़ुश्की और तरी यानी ज़मीन और पानी में उन गुनाहों की वजह से फ़साद फैल गया, जो लोगों ने अपने हाथों कमाये थे, ताकि अल्लाह उन्हें उनके कुछ आमाल का मज़ा चखा दे कि वे बाज़ आ जाएं. 
42. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि ज़मीन में चल फिर कर देखो कि जो लोग तुमसे पहले गुज़र चुके हैं, उनका क्या अंजाम हुआ. उनमें ज़्यादातर मुशरिक थे. 
43. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम दीन के रास्ते पर अपना रुख़ क़ायम रखो, इससे पहले कि अल्लाह की तरफ़ से वह दिन आ जाए, जिसे कोई रोक नहीं सकता. उस दिन सब लोग जुदा-जुदा हो जाएंगे.
44. जिसने कुफ़्र किया, तो उसके कुफ़्र का वबाल उसी पर होगा और जो नेक अमल कर रहे हैं, तो वे अपनी आरामगाहें पुरसुकून कर रहे हैं.
45. ताकि अल्लाह अपने फ़ज़ल से उन लोगों को नेक यानी अच्छी जज़ा दे, जो ईमान लाए और नेक अमल करते रहे. बेशक वह काफ़िरों को पसंद नहीं करता.
46. और अल्लाह की क़ुदरत की निशानियों में से यह भी है कि वह ख़ुशख़बरी देने वाली हवायें चलाता है, ताकि तुम्हें अपनी रहमत का ज़ायक़ा चखाए और उसके हुक्म से कश्तियां और जहाज़ चलें. और यह इसलिए है कि तुम उसका फ़ज़ल यानी रिज़्क़ तलाश करो और उसके शुक्रगुज़ार रहो.
47. और बेशक हमने तुमसे पहले भी बहुत से रसूल उनकी क़ौमों के पास भेजे, जो वाज़ेह निशानियां लेकर आए. फिर हमने उन झुठलाने वाले गुनाहगारों से इंतक़ाम ले लिया और हम पर मोमिनों की मदद करना लाज़िम था.
48. अल्लाह ही है, जो हवायें चलाता है, तो वे बादलों को उड़ाये-उड़ाये फिरती हैं. फिर वह उन्हें जिस तरह चाहता है आसमान में फैला देता है और उन्हें टुकड़े-टुकड़े या घना कर देता है. फिर तुम देखते हो कि उनके दरम्यान में से बूंदें निकलती हैं. फिर वह उन्हें अपने बन्दों में से जिन पर चाहता है बरसा देता है, तो वे लोग फ़ौरन ख़ुश हो जाते हैं.
49. और अगरचे वे ख़ुद पर बारिश बरसने से पहले मायूस हो रहे थे. 
50. फिर तुम अल्लाह की रहमत की तरफ़ देखो कि वह किस तरह मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा यानी बंजर ज़मीन को शादाब करता है. बेशक वह मुर्दों को ज़िन्दा करने वाला है. और वह हर चीज़ पर क़ादिर है.
51. और अगर हम ऐसी हवायें भेजें, जिससे वे लोग खेती को ज़र्द होता हुआ देख लें, तो उसके बाद वे नाशुक्री करने लगेंगे.
52. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम अपनी आवाज़ न मुर्दों को सुना सकते हो और न बहरों को सुना सकते हो, ख़ासकर जब वे लोग पीठ फेरकर चल दें.
53. और न तुम अंधों को उनकी गुमराही से निकालकर हिदायत के रास्ते पर ला सकते हो. तुम सिर्फ़ उन्हीं लोगों को नसीहतें सुना सकते हो, जो हमारी आयतों पर ईमान लाते हैं. बस वही लोग मुसलमान यानी फ़रमाबरदार हैं.
54. अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें कमज़ोर चीज़ से पैदा किया. फिर उसी ने तुम्हें कमज़ोरी के बाद क़ूवत अता की. फिर उसी ने तुम्हें क़ूवत के बाद कमज़ोरी और बुढ़ापा दिया. वह जो चाहता पैदा करता है. और वह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा क़ुदरत वाला है.
55. और जिस दिन क़यामत बरपा होगी, उस वक़्त गुनाहगार लोग क़समें खाएंगे कि वे दुनिया में एक घड़ी के सिवा ठहरे ही नहीं थे. इसी तरह वे लोग दुनिया में भी फिरे रहे. 
56. और जिन लोगों को इल्म और ईमान से नवाज़ा गया है, वे कहेंगे कि अल्लाह की किताब के मुताबिक़ तुम क़यामत के दिन तक दुनिया में रहे. फिर यह दोबारा ज़िन्दा होकर उठने का ही दिन है, लेकिन तुम जानते ही नहीं थे.
57. फिर उस दिन ज़ुल्म करने वाले लोगों को उनकी माज़रत कोई नफ़ा नहीं देगी और उन्हें अल्लाह को राज़ी करने का मौक़ा भी नहीं दिया जाएगा.
58. और बेशक हमने लोगों के लिए क़ुरआन में हर तरह की मिसाल बयान की है. और अगर तुम उनके सामने कोई सरीह निशानी पेश करो, तो वे लोग कह देंगे कि तुम बिल्कुल झूठे हो. 
59. इसी तरह अल्लाह उनके दिलों पर मुहर लगा देता है, जो हक़ को नहीं जानते.
60. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम सब्र करो. बेशक अल्लाह का वादा बरहक़ है. और वे लोग तुम्हें कमज़ोर न करे दें, जो यक़ीन नहीं रखते. 

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