सूरह अल मोमिनून मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 118 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. बेशक ईमान वाले ही कामयाब हो गए.
2. जो लोग अपनी नमाज़ों में आजिज़ी करते हैं.
3. और जो लोग बेहूदा बातों से गुरेज़ करते हैं.
4. और जो लोग ज़कात अदा करते हैं.
5. और जो लोग अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करते हैं.
6. लेकिन अपनी बीवियों और कनीज़ों के पास जाने में बेशक कोई हर्ज नहीं है.
7. फिर जो शख़्स इनके सिवा किसी और का ख़्वाहिशमंद हुआ, तो ऐसे ही लोग हद से तजावुज़ करने वाले हैं.
8. और जो लोग अपनी अमानतों और अपने अहद का लिहाज़ रखते हैं.
9. और जो लोग अपनी नमाज़ों की हिफ़ाज़त करते हैं यानी अपने तमाम फ़राईज़ पूरे करते हैं.
10. यही लोग जन्नत के वारिस हैं.
11. ये लोग जन्नत के सबसे आला बाग़ यानी जन्नतुल फ़िरदौस के वारिस बनेंगे और उसमें हमेशा रहेंगे.
12. और बेशक हमने इंसान की इब्तिदाई तख़लीक़ गीली मिट्टी से की है.
13. फिर हमने उसे नुत्फ़ा बनाकर महफ़ूज़ जगह यानी रहम में रखा.
14. फिर हमने नुत्फ़े को जमा हुआ ख़ून बनाया. फिर हमने उसे गोश्त का लोथड़ा बनाया. फिर हमने उसे हड्डियों में तबदील कर दिया. फिर हमने हड्डियों के ढांचे पर गोश्त चढ़ाकर इंसान की तख़लीक़ की. फिर अल्लाह ने उसमें रूह डालकर उसे एक वजूद बख़्शा. फिर अल्लाह बड़ा बाबरकत बेहतरीन तख़लीक़ करने वाला है.
15. फिर बेशक तुम सबको इसके बाद एक न एक दिन मरना है.
16. फिर बेशक तुम क़यामत के दिन ज़िन्दा करके क़ब्रों से उठाए जाओगे.
17. और बेशक हमने तुम्हारे ऊपर तह ब तह सात आसमान बनाए और हम मख़लूक़ से ग़ाफ़िल नहीं हैं.
18. और हम एक अंदाज़े के मुताबिक़ आसमान से पानी बरसाते हैं. फिर उसे ज़मीन में ठहरा देते हैं. और बेशक हम उसे ले जाने पर भी क़ादिर हैं.
19. फिर हमने उस पानी से तुम्हारे लिए खजूरों और अंगूरों के बाग़ बनाए. उनमें तुम्हारे लिए बहुत से फल व मेवे पैदा होते हैं, जिन्हें तुम खाते हो.
20. और हमने ज़ैतून का शजर उगाया, जो तूरे सीना में कसरत से उगता है. इससे तेल भी निकलता है और वह खाने वालों के लिए सालन भी है.
21. और बेशक तुम्हारे लिए चौपायों में भी इबरत का पहलू है, जो कुछ उनके पेट में है, उसमें से हम तुम्हें दूध पिलाते हैं और तुम्हारे लिए उनमें और भी बहुत से फ़ायदे हैं. और तुम उनमें से कुछ को खाते भी हो.
22. और उन चौपायों और कश्तियों पर तुम सवार भी किए जाते हो.
23. और बेशक हमने नूह अलैहिस्सलाम को उनकी क़ौम के पास पैग़म्बर बनाकर भेजा, तो उन्होंने कहा कि ऐ मेरी क़ौम ! तुम अल्लाह की इबादत किया करो. उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं. क्या तुम लोग अल्लाह से नहीं डरते.
24. तो उनकी क़ौम के कुफ़्र करने वाले सरदार कहने लगे कि ये तुम्हारे जैसे ही बशर हैं. ये तुम पर फ़ज़ीलत और बरतरी क़ायम करना चाहते हैं. और अगर अल्लाह पैग़म्बर भेजना चाहता, तो फ़रिश्तों को नाज़िल करता. हमने ऐसी बात तो पहले अपने बाप दादाओं से कभी नहीं सुनी.
25. ये शख़्स सिवाय इसके कुछ नहीं कि इन्हें जुनून हो गया है. फिर तुम लोग कुछ वक़्त तक उनके अंजाम का इंतज़ार करो.
26. नूह अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मेरी मदद फ़रमा, क्योंकि उन लोगों ने मुझे झुठला दिया है.
27. फिर हमने नूह अलैहिस्सलाम के पास वही भेजी कि तुम हमारी निगरानी में हमारे हुक्म के मुताबिक़ कश्ती बनाओ. फिर जब हमारे अज़ाब का हुक्म आ जाए और तनूर से पानी उबलने लगे, तो तुम कश्ती में हर क़िस्म के जानवरों में से नर व मादा के जोड़े बिठा लेना और अपने घरवालों को भी उसमें सवार कर लेना, सिवाय उन लोगों के जिन पर हमारे अज़ाब का हुक्म सादिर हो चुका है. और उन लोगों के बारे में हमसे कुछ मत कहना, जिन्होंने ज़ुल्म किया है. बेशक वे लोग ग़र्क़ होने वाले हैं.
28. फिर जब तुम अपने साथियों के साथ कश्ती पर इत्मीनान से बैठ जाओ, तो कहना कि अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं, जिसने हमें ज़ालिम क़ौम से निजात दी.
29. और दुआ अर्ज़ करो कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझे बाबरकत मंज़िल पर उतारना और तू बेहतरीन उतारने वाला है.
30. बेशक इस वाक़िये में अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं. और बेशक हम आज़माइश लेने वाले हैं.
31. फिर हमने उनके बाद एक और क़ौम समूद को पैदा किया.
32. और हमने उनमें भी उन्हीं में से सालेह अलैहिस्सलाम को रसूल बनाकर भेजा और उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि तुम अल्लाह की इबादत करो. उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं. क्या तुम लोग अल्लाह से नहीं डरते.
33. और उनकी क़ौम के भी वही सरदार, जो कुफ़्र करते थे और आख़िरत की मुलाक़ात को झुठलाते थे और हमने जिन्हें दुनियावी ज़िन्दगी में ऐशो इशरत का सामन दे रखा था, वे कहने लगे कि ये तो तुम्हारे जैसे ही बशर हैं, जो वही चीज़ें खाते हैं, जो चीज़ें तुम खाते हो और वही सब पीते हैं, जो तुम पीते हो.
34. और अगर तुम लोगों ने अपने ही जैसे बशर की इताअत कर ली, तो बेशक तुम नुक़सान में रहोगे.
35. क्या वे सालेह अलैहिस्सलाम तुमसे वादा करता है कि जब तुम मर जाओगे और ख़ाक और बोसीदा हड्डियां हो जाओगे, तो तुम दोबारा ज़िन्दा करके क़ब्रों से निकाले जाओगे.
36. वह बिल्कुल क़यास से बईद बहुत बईद है, जो वादा तुमसे किया जाता है.
37. आख़िरत की ज़िन्दगी कुछ भी नहीं है. हमारी ज़िन्दगी तो सिर्फ़ यही दुनिया है. हमारा मरना और जीना सब यहीं है. और हम दोबारा ज़िन्दा करके नहीं उठाए जाएंगे.
38. ये सालेह अलैहिस्सलाम ऐसे शख़्स हैं, जिन्होंने अल्लाह पर झूठा बोहतान बांधा है और हम उस पर ईमान लाने वाले नहीं हैं.
39. सालेह अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तू मेरी मदद फ़रमा, क्योंकि उन लोगों ने मुझे झुठला दिया है.
40. सालेह अलैहिस्सलाम से कहा गया कि अनक़रीब ही वे लोग नादिम होकर रह जाएंगे.
41. फिर उन लोगों को एक ख़ौफ़नाक आवाज़ ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया और हमने उन्हें कूड़े कर्कट का ढेर बना दिया. फिर ज़ालिम क़ौम अल्लाह की रहमत से दूर व महरूम है.
42. फिर हमने उनके बाद दूसरी क़ौमों को पैदा किया.
43. कोई भी उम्मत अपने मुर्क़रर वक़्त से न आगे बढ़ सकती है और उससे पीछे हट सकती है.
44. फिर हमने लगातार बहुत से रसूल भेजे. जब भी किसी उम्मत के पास उनके रसूल आते, तो वे लोग उन्हें झुठला देते. फिर हम भी उन उम्मतों को एक दूसरे के बाद हलाक करते चले गए. और हमने उन्हें हदीसें यानी अफ़साने बना दिया. उस क़ौम पर अल्लाह की लानत है, जो ईमान नहीं लाती.
45. फिर हमने मूसा अलैहिस्सलाम और उनके भाई हारून अलैहिस्सलाम को अपनी निशानियां और वाज़ेह दलील के साथ भेजा.
46. फ़िरऔन और उसके दरबारियों के पास, तो उन लोगों ने तकब्बुर किया. और वह क़ौम बड़ी सरकश थी.
47. वे लोग कहने लगे कि क्या हम अपने ही जैसे दो आदमियों पर ईमान ले आएं. हालांकि उन दोनों की क़ौम हमें पुकारती है.
48. फिर उन लोगों ने भी मूसा अलैहिस्सलाम और उनके भाई हारून अलैहिस्सलाम को झुठला दिया, तो वे भी हलाक होने वाले लोगों में से हो गए.
49. और बेशक हमने मूसा अलैहिस्सलाम को किताब यानी तौरात अता की थी, ताकि वे लोग हिदायत पाएं.
50. और हमने मरयम अलैहिस्सलाम के बेटे ईसा अलैहिस्सलाम और उनकी मां को अपनी क़ुदरत की निशानी बनाया. और हमने उन्हें एक ऐसी बुलंदी पर पनाह दी, जो एक पुरसकून जगह थी और वहां नहरें, आबशार और चश्मे थे.
51. उनसे कहा गया कि ऐ रसूल ! पाकीज़ा चीज़ें खाओ व पियो और नेक अमल करते रहो. बेशक जो आमाल तुम करते हो, हम उन्हें ख़ूब जानते हैं.
52. और बेशक यह तुम्हारी उम्मत है, एक ही उम्मत है और मैं तुम्हारा परवरदिगार हूं. फिर मुझसे डरा करो.
53. फिर उन लोगों ने अपने दीन में इख़्तिलाफ़ करके उसे फ़िरक़ा-फ़िरक़ा कर दिया. हर फ़रीक़ जो कुछ उसके पास है, उसी में ख़ुश है
54. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उन लोगों को एक मुद्दत के लिए जहालत में ही पड़ा छोड़ दो.
55. क्या वे लोग यह गुमान करते हैं कि हम जो माल और औलाद के ज़रिये उनकी मदद कर रहे हैं.
56. तो हम उनके लिए भलाइयों में जल्दी कर रहे हैं. ऐसा नहीं है, बल्कि उन्हें शऊर ही नहीं हैं.
57. बेशक जो लोग अपने परवरदिगार के ख़ौफ़ से लरज़ते हैं.
58. और जो लोग अपने परवरदिगार की आयतों पर ईमान रखते हैं.
59. और जो लोग अपने परवरदिगार के साथ किसी को शरीक नहीं ठहराते.
60. और जो लोग अल्लाह की राह में उतना देते हैं, जितना वे दे सकते हैं. और फिर भी उनके दिल में ख़ौफ़ रहता है कि उन्हें अपने परवरदिगार की तरफ़ ही लौटना है.
61. यही वे लोग हैं, जो भलाई समेटने में सबक़त करते हैं और नेकी की तरफ़ आगे बढ़ जाते हैं.
62. और हम किसी को उसकी क़ूवत से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं देते. और हमारे पास लोगों के आमाल की किताब है, जो हक़ बताती है और उन पर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा.
63. बल्कि उनके दिल इस क़ुरआन के पैग़ाम से ग़फ़लत में मुब्तिला हैं. और इसके अलावा भी उनके बहुत से बुरे आमाल हैं, जिनसे वे बाज़ नहीं आते.
64. यहां तक कि जब हम उनके ख़ुशहाल लोगों को अज़ाब में गिरफ़्तार करेंगे, तो उस वक़्त वे फ़रियाद करने लगेंगे.
65. उनसे कहा जाएगा कि तुम आज फ़रियाद मत करो. बेशक हमारी तरफ़ से तुम्हारी कोई मदद नहीं की जाएगी.
66. बेशक जब हमारी आयतें तुम्हारे सामने पढ़ी जाती थीं, तो तुम उलटे पांव वापस लौट जाते थे.
67. उससे तकब्बुर करते हुए व अफ़साने कहकर बेहूदगी करते हुए.
68. क्या उन लोगों ने अल्लाह के क़ौल पर ग़ौर नहीं किया या उनके पास कोई ऐसी चीज़ आ गई है, जो पहले उनके बाप दादा के पास नहीं आई थी.
69. या उन लोगों ने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नहीं पहचाना, तो इसलिए इनकार कर रहे हैं.
70. या वे लोग यह कहते हैं कि इन रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जुनून हो गया है. हरगिज़ नहीं, बल्कि वे तो उनके पास हक़ लेकर आए हैं. और उनमें से बहुत से लोग हक़ को पसंद नहीं करते.
71. और अगर हक़ उनकी ख़्वाहिशों की पैरवी करता है, तो आसमानों और ज़मीन और जो कुछ उनके दरम्यान है, सब तबाह व बर्बाद हो जाता, बल्कि हम उनके पास वह क़ुरआन लाए हैं, जिसमें उनके लिए ज़िक्र है. और वे लोग ख़ुद ही ज़िक्र यानी नसीहत से मुंह फेर रहे हैं.
72. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुम उनसे कुछ उजरत चाहते हो. हरगिज़ नहीं. तुम्हारे परवरदिगार का अज्र उससे कहीं बेहतर है. और वह बेहतरीन रिज़्क़ देने वाला है.
73. और बेशक तुम उन्हें सीधे रास्ते की तरफ़ बुलाते हो.
74. और बेशक जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते, वे ज़रूर सीधे रास्ते से हटे हुए हैं.
75. और अगर हम उन पर रहम करें और उनकी तकलीफ़ों को दूर कर दें, तो भी वे अपनी सरकशी पर अड़ जाएं और भटकते फिरें.
76. और बेशक हमने उन्हें अज़ाब में गिरफ़्तार कर लिया. फिर भी उन्होंने अपने परवरदिगार के लिए न आजिज़ी इख़्तियार की और न वे गिड़गिड़ाए.
77. यहां तक कि जब हमने उनके सामने एक सख़्त अज़ाब के दरवाज़े खोल दिए, तो उस वक़्त वे लोग मायूस हो गए.
78. और वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हारे कान और आंखें और दिल बनाए. लेकिन तुम लोग बहुत कम शुक्र अदा करते हो.
79. और वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें ज़मीन में फैला दिया और क़यामत के दिन तुम उसके हुज़ूर में जमा किए जाओगे.
80. और वह अल्लाह ही है, जो ज़िन्दगी बख़्शता है और मौत देता है. और रात दिन का आना जाना भी उसी के इख़्तियार में है. क्या फिर भी तुम नहीं समझते.
81. बल्कि वे लोग भी उसी तरह की बातें करते हैं, जिस तरह पहले के काफ़िर किया करते थे.
82. वे लोग कहते हैं कि जब हम मर जाएंगे और ख़ाक और बोसीदा हड्डियां हो जाएंगे, तो क्या हम दोबारा ज़िन्दा करके उठाए जाएंगे.
83. बेशक हमसे और इससे पहले हमारे बाप दादाओं से भी यही वादा किया जाता रहा है. यह हक़ीक़त नहीं है, बल्कि ये तो पहले के लोगों के अफ़साने हैं.
84. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि यह ज़मीन और इसमें बसने वाली मख़लूक़ किसकी है? अगर तुम लोग कुछ जानते हो.
85. वे लोग फ़ौरन कह देंगे कि सबकुछ अल्लाह ही का है. तुम कह दो कि फिर तुम लोग ग़ौर क्यों नहीं करते.
86. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का मालिक कौन है ?
87. वे लोग फ़ौरन कह देंगे कि सबकुछ अल्लाह ही का है. तुम कह दो कि फिर तुम लोग अल्लाह से क्यों नहीं डरते ?
88. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि वह कौन है, जिसके हाथ में हर चीज़ की बादशाहत है. और वह जिसे चाहता है, पनाह देता है. और उसके अज़ाब से कोई पनाह देने वाला नहीं है. अगर तुम जानते हो.
89. वे लोग फ़ौरन कह देंगे कि सबकुछ अल्लाह ही के इख़्तियार में है. तुम कह दो कि फिर तुम किस जादू के फ़रेब में मुब्तिला हो.
90. बल्कि हम उनके पास हक़ लेकर आए हैं और बेशक वे लोग झूठे हैं.
91. अल्लाह ने किसी को अपनी औलाद नहीं बनाया है और न उसके साथ कोई और सरपरस्त है. अगर ऐसा होता, तो हर सरपरस्त अपनी-अपनी मख़लूक़ को ले जाता. फिर वे एक दूसरे पर बरतरी हासिल करने की फ़िक्र करते. अल्लाह उससे पाक है, जो कुछ वे लोग बयान करते हैं.
92. अल्लाह ग़ैब और ज़ाहिर का जानने वाला है. वह उन सबसे आला है, जिन्हें वे लोग उसका शरीक ठहराते हैं.
93. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम अर्ज़ करो कि ऐ मेरे परवरदिगार ! अगर तू मुझे वह अज़ाब दिखा दे, जिसका तूने उन लोगों से वादा किया जाता है.
94. ऐ मेरे परवरदिगार ! तू मुझे ज़ालिमों की क़ौम में शामिल मत करना.
95. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक हम इस पर ज़रूर क़ादिर हैं कि हम तुम्हें वह अज़ाब दिखा दें, जिसका उन लोगों से वादा करते हैं.
96. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम बुराई को अच्छाई से दूर किया करो. हम उसे ख़ूब जानते हैं, जो कुछ वे लोग बयान करते हैं.
97. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम यह अर्ज़ करो कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मैं शैतान के वसवसों से तेरी पनाह चाहता हूं.
98. ऐ मेरे परवरदिगार ! और मैं इससे भी तेरी पनाह चाहता हूं कि शैतान मेरे पास आएं.
99. यहां तक कि जब उनमें से किसी को मौत आ जाए, तो कहने लगे कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तू मुझे दुनिया में वापस भेज दे.
100. ताकि मैं दुनिया में नेक अमल करूं, जिसे मैं छोड़ आया हूं. उससे कहा जाएगा कि हरगिज़ नहीं. यह वह बात है, जिसे वह कह रहा होगा. और उनके मरने के बाद आलमे बरज़ख़ है, जो उस दिन तक क़ायम रहेगा, जिस दिन वे लोग ज़िन्दा करके क़ब्रों से उठाए जाएंगे.
101. फिर जब सूर फूंका जाएगा, तो उनके दरम्यान उस दिन न रिश्ते बाक़ी रहेंगे और न वे लोग एक दूसरे का हाल पूछ सकेंगे.
102. फिर जिन लोगों के नेकियों के पलड़े भारी होंगे, तो वही लोग कामयाबी पाएंगे.
103. और जिन लोगों के नेकियों के पलड़े हल्के होंगे, तो वही लोग हैं, जिन्होंने ख़ुद अपना नुक़सान किया. वे जहन्नुम में हमेशा रहेंगे.
104. और जहन्नुम की आग उनके चेहरों को झुलसा देगी और वे लोग उसमें दांत निकले यानी बिगड़े चेहरे के साथ पड़े होंगे.
105. उनसे कहा जाएगा कि क्या तुम्हें हमारी आयतें पढ़कर नहीं सुनाई जाती थीं, तो तुम उन्हें झुठलाया करते थे.
106. वे लोग कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हम पर हमारी बदबख़्ती ग़ालिब आ गई थी और हम गुमराह क़ौम थे.
107. ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें इससे निकाल दे. फिर अगर हम दोबारा हम ऐसा करें, तो बेशक हम ज़ालिम हैं.
108. उनसे कहा जाएगा कि अब इसी जहन्नुम में ज़िल्लत के साथ पड़े रहो और हमसे कलाम न करो.
109. बेशक हमारे बन्दों में से एक तबक़ा ऐसा भी था, जो अर्ज़ करता था कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हम ईमान ले आए हैं, तो तू हमें बख़्श दे और हम पर रहम फ़रमा. और तू बेहतरीन रहम करने वाला है.
110. फिर तुम लोगों ने तो उन्हें मज़ाक़ बना लिया था, यहां तक कि उस मज़ाक़ ने तुम्हें हमारे ज़िक्र भी भुला दिया और तुम उनका मज़ाक़ ही उड़ाते रहे.
111. बेशक आज हमने उन्हें उनके सब्र की जज़ा दी है. बेशक वही लोग कामयाब हो गए.
112. उनसे कहा जाएगा कि तुम ज़मीन में बरसों के शुमार से कितने बरस रहे.
113. वे लोग कहेंगे कि हम एक दिन या एक दिन से भी कम ही ठहरे थे. आप शुमार करने वालों से ही दरयाफ़्त कर लें.
114. उनसे कहा जाएगा कि बेशक तुम ज़मीन में बहुत ही कम ठहरे. काश ! तुम जानते.
115. क्या तुमने यह गुमान कर लिया था कि हमने तुम्हें बिना मक़सद के ही पैदा किया है और यह कि तुम हमारी तरफ़ लौटाए नहीं जाओगे.
116. फिर आला तो अल्लाह ही है, जो हक़ीक़ी बादशाह है. उसके सिवा कोई माबूद नहीं. वही अर्शे अज़ीम का परवरदिगार है.
117. और जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे को पुकारता है, उसके पास इस शिर्क की कोई दलील भी नहीं है, तो उसका हिसाब उसके परवरदिगार के पास है. बेशक काफ़िर कामयाबी नहीं पाएंगे.
118. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम अर्ज़ करो कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तू मेरी उम्मत को बख़्श दे और रहम कर और तू बेहतरीन रहम करने वाला है.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. बेशक ईमान वाले ही कामयाब हो गए.
2. जो लोग अपनी नमाज़ों में आजिज़ी करते हैं.
3. और जो लोग बेहूदा बातों से गुरेज़ करते हैं.
4. और जो लोग ज़कात अदा करते हैं.
5. और जो लोग अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करते हैं.
6. लेकिन अपनी बीवियों और कनीज़ों के पास जाने में बेशक कोई हर्ज नहीं है.
7. फिर जो शख़्स इनके सिवा किसी और का ख़्वाहिशमंद हुआ, तो ऐसे ही लोग हद से तजावुज़ करने वाले हैं.
8. और जो लोग अपनी अमानतों और अपने अहद का लिहाज़ रखते हैं.
9. और जो लोग अपनी नमाज़ों की हिफ़ाज़त करते हैं यानी अपने तमाम फ़राईज़ पूरे करते हैं.
10. यही लोग जन्नत के वारिस हैं.
11. ये लोग जन्नत के सबसे आला बाग़ यानी जन्नतुल फ़िरदौस के वारिस बनेंगे और उसमें हमेशा रहेंगे.
12. और बेशक हमने इंसान की इब्तिदाई तख़लीक़ गीली मिट्टी से की है.
13. फिर हमने उसे नुत्फ़ा बनाकर महफ़ूज़ जगह यानी रहम में रखा.
14. फिर हमने नुत्फ़े को जमा हुआ ख़ून बनाया. फिर हमने उसे गोश्त का लोथड़ा बनाया. फिर हमने उसे हड्डियों में तबदील कर दिया. फिर हमने हड्डियों के ढांचे पर गोश्त चढ़ाकर इंसान की तख़लीक़ की. फिर अल्लाह ने उसमें रूह डालकर उसे एक वजूद बख़्शा. फिर अल्लाह बड़ा बाबरकत बेहतरीन तख़लीक़ करने वाला है.
15. फिर बेशक तुम सबको इसके बाद एक न एक दिन मरना है.
16. फिर बेशक तुम क़यामत के दिन ज़िन्दा करके क़ब्रों से उठाए जाओगे.
17. और बेशक हमने तुम्हारे ऊपर तह ब तह सात आसमान बनाए और हम मख़लूक़ से ग़ाफ़िल नहीं हैं.
18. और हम एक अंदाज़े के मुताबिक़ आसमान से पानी बरसाते हैं. फिर उसे ज़मीन में ठहरा देते हैं. और बेशक हम उसे ले जाने पर भी क़ादिर हैं.
19. फिर हमने उस पानी से तुम्हारे लिए खजूरों और अंगूरों के बाग़ बनाए. उनमें तुम्हारे लिए बहुत से फल व मेवे पैदा होते हैं, जिन्हें तुम खाते हो.
20. और हमने ज़ैतून का शजर उगाया, जो तूरे सीना में कसरत से उगता है. इससे तेल भी निकलता है और वह खाने वालों के लिए सालन भी है.
21. और बेशक तुम्हारे लिए चौपायों में भी इबरत का पहलू है, जो कुछ उनके पेट में है, उसमें से हम तुम्हें दूध पिलाते हैं और तुम्हारे लिए उनमें और भी बहुत से फ़ायदे हैं. और तुम उनमें से कुछ को खाते भी हो.
22. और उन चौपायों और कश्तियों पर तुम सवार भी किए जाते हो.
23. और बेशक हमने नूह अलैहिस्सलाम को उनकी क़ौम के पास पैग़म्बर बनाकर भेजा, तो उन्होंने कहा कि ऐ मेरी क़ौम ! तुम अल्लाह की इबादत किया करो. उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं. क्या तुम लोग अल्लाह से नहीं डरते.
24. तो उनकी क़ौम के कुफ़्र करने वाले सरदार कहने लगे कि ये तुम्हारे जैसे ही बशर हैं. ये तुम पर फ़ज़ीलत और बरतरी क़ायम करना चाहते हैं. और अगर अल्लाह पैग़म्बर भेजना चाहता, तो फ़रिश्तों को नाज़िल करता. हमने ऐसी बात तो पहले अपने बाप दादाओं से कभी नहीं सुनी.
25. ये शख़्स सिवाय इसके कुछ नहीं कि इन्हें जुनून हो गया है. फिर तुम लोग कुछ वक़्त तक उनके अंजाम का इंतज़ार करो.
26. नूह अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मेरी मदद फ़रमा, क्योंकि उन लोगों ने मुझे झुठला दिया है.
27. फिर हमने नूह अलैहिस्सलाम के पास वही भेजी कि तुम हमारी निगरानी में हमारे हुक्म के मुताबिक़ कश्ती बनाओ. फिर जब हमारे अज़ाब का हुक्म आ जाए और तनूर से पानी उबलने लगे, तो तुम कश्ती में हर क़िस्म के जानवरों में से नर व मादा के जोड़े बिठा लेना और अपने घरवालों को भी उसमें सवार कर लेना, सिवाय उन लोगों के जिन पर हमारे अज़ाब का हुक्म सादिर हो चुका है. और उन लोगों के बारे में हमसे कुछ मत कहना, जिन्होंने ज़ुल्म किया है. बेशक वे लोग ग़र्क़ होने वाले हैं.
28. फिर जब तुम अपने साथियों के साथ कश्ती पर इत्मीनान से बैठ जाओ, तो कहना कि अल्लाह ही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं, जिसने हमें ज़ालिम क़ौम से निजात दी.
29. और दुआ अर्ज़ करो कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझे बाबरकत मंज़िल पर उतारना और तू बेहतरीन उतारने वाला है.
30. बेशक इस वाक़िये में अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं. और बेशक हम आज़माइश लेने वाले हैं.
31. फिर हमने उनके बाद एक और क़ौम समूद को पैदा किया.
32. और हमने उनमें भी उन्हीं में से सालेह अलैहिस्सलाम को रसूल बनाकर भेजा और उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि तुम अल्लाह की इबादत करो. उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं. क्या तुम लोग अल्लाह से नहीं डरते.
33. और उनकी क़ौम के भी वही सरदार, जो कुफ़्र करते थे और आख़िरत की मुलाक़ात को झुठलाते थे और हमने जिन्हें दुनियावी ज़िन्दगी में ऐशो इशरत का सामन दे रखा था, वे कहने लगे कि ये तो तुम्हारे जैसे ही बशर हैं, जो वही चीज़ें खाते हैं, जो चीज़ें तुम खाते हो और वही सब पीते हैं, जो तुम पीते हो.
34. और अगर तुम लोगों ने अपने ही जैसे बशर की इताअत कर ली, तो बेशक तुम नुक़सान में रहोगे.
35. क्या वे सालेह अलैहिस्सलाम तुमसे वादा करता है कि जब तुम मर जाओगे और ख़ाक और बोसीदा हड्डियां हो जाओगे, तो तुम दोबारा ज़िन्दा करके क़ब्रों से निकाले जाओगे.
36. वह बिल्कुल क़यास से बईद बहुत बईद है, जो वादा तुमसे किया जाता है.
37. आख़िरत की ज़िन्दगी कुछ भी नहीं है. हमारी ज़िन्दगी तो सिर्फ़ यही दुनिया है. हमारा मरना और जीना सब यहीं है. और हम दोबारा ज़िन्दा करके नहीं उठाए जाएंगे.
38. ये सालेह अलैहिस्सलाम ऐसे शख़्स हैं, जिन्होंने अल्लाह पर झूठा बोहतान बांधा है और हम उस पर ईमान लाने वाले नहीं हैं.
39. सालेह अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तू मेरी मदद फ़रमा, क्योंकि उन लोगों ने मुझे झुठला दिया है.
40. सालेह अलैहिस्सलाम से कहा गया कि अनक़रीब ही वे लोग नादिम होकर रह जाएंगे.
41. फिर उन लोगों को एक ख़ौफ़नाक आवाज़ ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया और हमने उन्हें कूड़े कर्कट का ढेर बना दिया. फिर ज़ालिम क़ौम अल्लाह की रहमत से दूर व महरूम है.
42. फिर हमने उनके बाद दूसरी क़ौमों को पैदा किया.
43. कोई भी उम्मत अपने मुर्क़रर वक़्त से न आगे बढ़ सकती है और उससे पीछे हट सकती है.
44. फिर हमने लगातार बहुत से रसूल भेजे. जब भी किसी उम्मत के पास उनके रसूल आते, तो वे लोग उन्हें झुठला देते. फिर हम भी उन उम्मतों को एक दूसरे के बाद हलाक करते चले गए. और हमने उन्हें हदीसें यानी अफ़साने बना दिया. उस क़ौम पर अल्लाह की लानत है, जो ईमान नहीं लाती.
45. फिर हमने मूसा अलैहिस्सलाम और उनके भाई हारून अलैहिस्सलाम को अपनी निशानियां और वाज़ेह दलील के साथ भेजा.
46. फ़िरऔन और उसके दरबारियों के पास, तो उन लोगों ने तकब्बुर किया. और वह क़ौम बड़ी सरकश थी.
47. वे लोग कहने लगे कि क्या हम अपने ही जैसे दो आदमियों पर ईमान ले आएं. हालांकि उन दोनों की क़ौम हमें पुकारती है.
48. फिर उन लोगों ने भी मूसा अलैहिस्सलाम और उनके भाई हारून अलैहिस्सलाम को झुठला दिया, तो वे भी हलाक होने वाले लोगों में से हो गए.
49. और बेशक हमने मूसा अलैहिस्सलाम को किताब यानी तौरात अता की थी, ताकि वे लोग हिदायत पाएं.
50. और हमने मरयम अलैहिस्सलाम के बेटे ईसा अलैहिस्सलाम और उनकी मां को अपनी क़ुदरत की निशानी बनाया. और हमने उन्हें एक ऐसी बुलंदी पर पनाह दी, जो एक पुरसकून जगह थी और वहां नहरें, आबशार और चश्मे थे.
51. उनसे कहा गया कि ऐ रसूल ! पाकीज़ा चीज़ें खाओ व पियो और नेक अमल करते रहो. बेशक जो आमाल तुम करते हो, हम उन्हें ख़ूब जानते हैं.
52. और बेशक यह तुम्हारी उम्मत है, एक ही उम्मत है और मैं तुम्हारा परवरदिगार हूं. फिर मुझसे डरा करो.
53. फिर उन लोगों ने अपने दीन में इख़्तिलाफ़ करके उसे फ़िरक़ा-फ़िरक़ा कर दिया. हर फ़रीक़ जो कुछ उसके पास है, उसी में ख़ुश है
54. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम उन लोगों को एक मुद्दत के लिए जहालत में ही पड़ा छोड़ दो.
55. क्या वे लोग यह गुमान करते हैं कि हम जो माल और औलाद के ज़रिये उनकी मदद कर रहे हैं.
56. तो हम उनके लिए भलाइयों में जल्दी कर रहे हैं. ऐसा नहीं है, बल्कि उन्हें शऊर ही नहीं हैं.
57. बेशक जो लोग अपने परवरदिगार के ख़ौफ़ से लरज़ते हैं.
58. और जो लोग अपने परवरदिगार की आयतों पर ईमान रखते हैं.
59. और जो लोग अपने परवरदिगार के साथ किसी को शरीक नहीं ठहराते.
60. और जो लोग अल्लाह की राह में उतना देते हैं, जितना वे दे सकते हैं. और फिर भी उनके दिल में ख़ौफ़ रहता है कि उन्हें अपने परवरदिगार की तरफ़ ही लौटना है.
61. यही वे लोग हैं, जो भलाई समेटने में सबक़त करते हैं और नेकी की तरफ़ आगे बढ़ जाते हैं.
62. और हम किसी को उसकी क़ूवत से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं देते. और हमारे पास लोगों के आमाल की किताब है, जो हक़ बताती है और उन पर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा.
63. बल्कि उनके दिल इस क़ुरआन के पैग़ाम से ग़फ़लत में मुब्तिला हैं. और इसके अलावा भी उनके बहुत से बुरे आमाल हैं, जिनसे वे बाज़ नहीं आते.
64. यहां तक कि जब हम उनके ख़ुशहाल लोगों को अज़ाब में गिरफ़्तार करेंगे, तो उस वक़्त वे फ़रियाद करने लगेंगे.
65. उनसे कहा जाएगा कि तुम आज फ़रियाद मत करो. बेशक हमारी तरफ़ से तुम्हारी कोई मदद नहीं की जाएगी.
66. बेशक जब हमारी आयतें तुम्हारे सामने पढ़ी जाती थीं, तो तुम उलटे पांव वापस लौट जाते थे.
67. उससे तकब्बुर करते हुए व अफ़साने कहकर बेहूदगी करते हुए.
68. क्या उन लोगों ने अल्लाह के क़ौल पर ग़ौर नहीं किया या उनके पास कोई ऐसी चीज़ आ गई है, जो पहले उनके बाप दादा के पास नहीं आई थी.
69. या उन लोगों ने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नहीं पहचाना, तो इसलिए इनकार कर रहे हैं.
70. या वे लोग यह कहते हैं कि इन रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जुनून हो गया है. हरगिज़ नहीं, बल्कि वे तो उनके पास हक़ लेकर आए हैं. और उनमें से बहुत से लोग हक़ को पसंद नहीं करते.
71. और अगर हक़ उनकी ख़्वाहिशों की पैरवी करता है, तो आसमानों और ज़मीन और जो कुछ उनके दरम्यान है, सब तबाह व बर्बाद हो जाता, बल्कि हम उनके पास वह क़ुरआन लाए हैं, जिसमें उनके लिए ज़िक्र है. और वे लोग ख़ुद ही ज़िक्र यानी नसीहत से मुंह फेर रहे हैं.
72. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुम उनसे कुछ उजरत चाहते हो. हरगिज़ नहीं. तुम्हारे परवरदिगार का अज्र उससे कहीं बेहतर है. और वह बेहतरीन रिज़्क़ देने वाला है.
73. और बेशक तुम उन्हें सीधे रास्ते की तरफ़ बुलाते हो.
74. और बेशक जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते, वे ज़रूर सीधे रास्ते से हटे हुए हैं.
75. और अगर हम उन पर रहम करें और उनकी तकलीफ़ों को दूर कर दें, तो भी वे अपनी सरकशी पर अड़ जाएं और भटकते फिरें.
76. और बेशक हमने उन्हें अज़ाब में गिरफ़्तार कर लिया. फिर भी उन्होंने अपने परवरदिगार के लिए न आजिज़ी इख़्तियार की और न वे गिड़गिड़ाए.
77. यहां तक कि जब हमने उनके सामने एक सख़्त अज़ाब के दरवाज़े खोल दिए, तो उस वक़्त वे लोग मायूस हो गए.
78. और वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हारे कान और आंखें और दिल बनाए. लेकिन तुम लोग बहुत कम शुक्र अदा करते हो.
79. और वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें ज़मीन में फैला दिया और क़यामत के दिन तुम उसके हुज़ूर में जमा किए जाओगे.
80. और वह अल्लाह ही है, जो ज़िन्दगी बख़्शता है और मौत देता है. और रात दिन का आना जाना भी उसी के इख़्तियार में है. क्या फिर भी तुम नहीं समझते.
81. बल्कि वे लोग भी उसी तरह की बातें करते हैं, जिस तरह पहले के काफ़िर किया करते थे.
82. वे लोग कहते हैं कि जब हम मर जाएंगे और ख़ाक और बोसीदा हड्डियां हो जाएंगे, तो क्या हम दोबारा ज़िन्दा करके उठाए जाएंगे.
83. बेशक हमसे और इससे पहले हमारे बाप दादाओं से भी यही वादा किया जाता रहा है. यह हक़ीक़त नहीं है, बल्कि ये तो पहले के लोगों के अफ़साने हैं.
84. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि यह ज़मीन और इसमें बसने वाली मख़लूक़ किसकी है? अगर तुम लोग कुछ जानते हो.
85. वे लोग फ़ौरन कह देंगे कि सबकुछ अल्लाह ही का है. तुम कह दो कि फिर तुम लोग ग़ौर क्यों नहीं करते.
86. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का मालिक कौन है ?
87. वे लोग फ़ौरन कह देंगे कि सबकुछ अल्लाह ही का है. तुम कह दो कि फिर तुम लोग अल्लाह से क्यों नहीं डरते ?
88. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि वह कौन है, जिसके हाथ में हर चीज़ की बादशाहत है. और वह जिसे चाहता है, पनाह देता है. और उसके अज़ाब से कोई पनाह देने वाला नहीं है. अगर तुम जानते हो.
89. वे लोग फ़ौरन कह देंगे कि सबकुछ अल्लाह ही के इख़्तियार में है. तुम कह दो कि फिर तुम किस जादू के फ़रेब में मुब्तिला हो.
90. बल्कि हम उनके पास हक़ लेकर आए हैं और बेशक वे लोग झूठे हैं.
91. अल्लाह ने किसी को अपनी औलाद नहीं बनाया है और न उसके साथ कोई और सरपरस्त है. अगर ऐसा होता, तो हर सरपरस्त अपनी-अपनी मख़लूक़ को ले जाता. फिर वे एक दूसरे पर बरतरी हासिल करने की फ़िक्र करते. अल्लाह उससे पाक है, जो कुछ वे लोग बयान करते हैं.
92. अल्लाह ग़ैब और ज़ाहिर का जानने वाला है. वह उन सबसे आला है, जिन्हें वे लोग उसका शरीक ठहराते हैं.
93. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम अर्ज़ करो कि ऐ मेरे परवरदिगार ! अगर तू मुझे वह अज़ाब दिखा दे, जिसका तूने उन लोगों से वादा किया जाता है.
94. ऐ मेरे परवरदिगार ! तू मुझे ज़ालिमों की क़ौम में शामिल मत करना.
95. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक हम इस पर ज़रूर क़ादिर हैं कि हम तुम्हें वह अज़ाब दिखा दें, जिसका उन लोगों से वादा करते हैं.
96. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम बुराई को अच्छाई से दूर किया करो. हम उसे ख़ूब जानते हैं, जो कुछ वे लोग बयान करते हैं.
97. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम यह अर्ज़ करो कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मैं शैतान के वसवसों से तेरी पनाह चाहता हूं.
98. ऐ मेरे परवरदिगार ! और मैं इससे भी तेरी पनाह चाहता हूं कि शैतान मेरे पास आएं.
99. यहां तक कि जब उनमें से किसी को मौत आ जाए, तो कहने लगे कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तू मुझे दुनिया में वापस भेज दे.
100. ताकि मैं दुनिया में नेक अमल करूं, जिसे मैं छोड़ आया हूं. उससे कहा जाएगा कि हरगिज़ नहीं. यह वह बात है, जिसे वह कह रहा होगा. और उनके मरने के बाद आलमे बरज़ख़ है, जो उस दिन तक क़ायम रहेगा, जिस दिन वे लोग ज़िन्दा करके क़ब्रों से उठाए जाएंगे.
101. फिर जब सूर फूंका जाएगा, तो उनके दरम्यान उस दिन न रिश्ते बाक़ी रहेंगे और न वे लोग एक दूसरे का हाल पूछ सकेंगे.
102. फिर जिन लोगों के नेकियों के पलड़े भारी होंगे, तो वही लोग कामयाबी पाएंगे.
103. और जिन लोगों के नेकियों के पलड़े हल्के होंगे, तो वही लोग हैं, जिन्होंने ख़ुद अपना नुक़सान किया. वे जहन्नुम में हमेशा रहेंगे.
104. और जहन्नुम की आग उनके चेहरों को झुलसा देगी और वे लोग उसमें दांत निकले यानी बिगड़े चेहरे के साथ पड़े होंगे.
105. उनसे कहा जाएगा कि क्या तुम्हें हमारी आयतें पढ़कर नहीं सुनाई जाती थीं, तो तुम उन्हें झुठलाया करते थे.
106. वे लोग कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हम पर हमारी बदबख़्ती ग़ालिब आ गई थी और हम गुमराह क़ौम थे.
107. ऐ हमारे परवरदिगार ! हमें इससे निकाल दे. फिर अगर हम दोबारा हम ऐसा करें, तो बेशक हम ज़ालिम हैं.
108. उनसे कहा जाएगा कि अब इसी जहन्नुम में ज़िल्लत के साथ पड़े रहो और हमसे कलाम न करो.
109. बेशक हमारे बन्दों में से एक तबक़ा ऐसा भी था, जो अर्ज़ करता था कि ऐ हमारे परवरदिगार ! हम ईमान ले आए हैं, तो तू हमें बख़्श दे और हम पर रहम फ़रमा. और तू बेहतरीन रहम करने वाला है.
110. फिर तुम लोगों ने तो उन्हें मज़ाक़ बना लिया था, यहां तक कि उस मज़ाक़ ने तुम्हें हमारे ज़िक्र भी भुला दिया और तुम उनका मज़ाक़ ही उड़ाते रहे.
111. बेशक आज हमने उन्हें उनके सब्र की जज़ा दी है. बेशक वही लोग कामयाब हो गए.
112. उनसे कहा जाएगा कि तुम ज़मीन में बरसों के शुमार से कितने बरस रहे.
113. वे लोग कहेंगे कि हम एक दिन या एक दिन से भी कम ही ठहरे थे. आप शुमार करने वालों से ही दरयाफ़्त कर लें.
114. उनसे कहा जाएगा कि बेशक तुम ज़मीन में बहुत ही कम ठहरे. काश ! तुम जानते.
115. क्या तुमने यह गुमान कर लिया था कि हमने तुम्हें बिना मक़सद के ही पैदा किया है और यह कि तुम हमारी तरफ़ लौटाए नहीं जाओगे.
116. फिर आला तो अल्लाह ही है, जो हक़ीक़ी बादशाह है. उसके सिवा कोई माबूद नहीं. वही अर्शे अज़ीम का परवरदिगार है.
117. और जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे को पुकारता है, उसके पास इस शिर्क की कोई दलील भी नहीं है, तो उसका हिसाब उसके परवरदिगार के पास है. बेशक काफ़िर कामयाबी नहीं पाएंगे.
118. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम अर्ज़ करो कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तू मेरी उम्मत को बख़्श दे और रहम कर और तू बेहतरीन रहम करने वाला है.