Monday, August 30, 2021

24 सूरह अन नूर

सूरह अन नूर मदीना में नाज़िल हुई और इसकी 64 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. यह एक अज़ीम सूरत है, जिसे हमने नाज़िल किया है. और हमने इसके अहकाम को फ़र्ज़ कर दिया है और हमने इसमें वाज़ेह आयतें नाज़िल की हैं, ताकि तुम ग़ौर व फ़िक्र करो.
2. बदकार औरत और बदकार मर्द की बदकारी साबित हो जाए, तो दोनों में से हर एक को सौ-सौ कोड़े मारो. और अगर तुम अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हो, तो अल्लाह का हुक्म नाफ़िज़ करने में उन पर तरस मत खाओ. और उन दोनों की सज़ा के वक़्त मोमिनों के एक तबक़े को मौजूद रहना चाहिए.
3. बदकार मर्द बदकार या मुशरिक औरत से ही निकाह करेगा और बदकार औरत भी बदकार या मुशरिक मर्द से ही निकाह करेगी. और यह बेहयाई मोमिनों पर हराम है.
4. और जो लोग पाक दामन औरतों पर तोहमत लगाएं. फिर वे चार गवाह पेश न करें, तो उन्हें अस्सी कोड़े मारो. और फिर कभी उनकी गवाही क़ुबूल न करो और ये लोग ख़ुद ही बदकार हैं.
5. लेकिन जिन लोगों ने तोहमत लगाने के बाद तौबा कर ली और अपनी इस्लाह की, तो बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
6. और जो लोग अपनी बीवियों पर तोहमत लगाते हैं और उनके पास ख़ुद के सिवा कोई गवाह नहीं होता है, तो उनकी अपनी गवाही चार गवाहों के बराबर होगी और वे लोग चार मर्तबा अल्लाह की क़सम खाकर गवाही देंगे कि बेशक वे अपने दावे में सच्चे हैं.
7. और पांचवीं मर्तबा यह कहेंगे कि उन पर अल्लाह की लानत हो. अगर वे झूठे हैं.
8. और इसी तरह यह बात उस औरत से भी सज़ा को टाल सकती है. वह चार मर्तबा अल्लाह की क़सम खाकर गवाही दे कि तोहमत लगाने वाला झूठा है.
9. और पांचवीं मर्तबा यह कहेगी कि मुझ पर अल्लाह का ग़ज़ब हो. अगर वह अपने दावे में सच्चा हो.
10. और अगर तुम पर अल्लाह का फ़ज़ल और उसकी रहमत न होती, तो तोहमत लगाने वाले लोगों का बहुत ही बुरा अंजाम होता. और बेशक अल्लाह बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला बड़ा हकीम है.
11. बेशक जिन लोगों ने बोहतान बांधा था, वे भी तुम्हीं में से एक गिरोह था. तुम उसे अपने हक़ में बुरा मत समझो, बल्कि वह तुम्हारे लिए भला हो गया है. और उनमें से हर एक के लिए उतना ही गुनाह है, जितना उसने कमाया है. और उनमें से जिसने बोहतान में सबसे ज़्यादा हिस्सा लिया, उसके लिए बड़ा सख़्त अज़ाब है.
12. ऐसा क्यों नहीं हुआ कि जब तुम लोगों ने उस बोहतान को सुना था, तो मोमिन मर्द और मोमिन औरतें अपनों के बारे में नेक गुमान कर लेते और कहते कि यह सरीह बोहतान है.
13. ऐसा क्यों नहीं हुआ कि वे लोग चार गवाह ले आते. फिर जब वे गवाह नहीं ला सके, तो वे लोग अल्लाह के नज़दीक बिल्कुल झूठे हैं.
14. और अगर तुम लोगों पर दुनिया और आख़िरत में अल्लाह का फ़ज़ल और उसकी रहमत न होती, तो जो चर्चा तुमने की थी, उसकी वजह से तुम किसी बड़े सख़्त अज़ाब में मुब्तिला हो जाते. 
15. जब तुम अपनी ज़बान से चर्चा कर रहे थे और अपने मुंह से वह बात कह रहे थे, जिसका तुम्हें ख़ुद इल्म नहीं था. और तुम उसे मामूली बात समझ रहे थे. हालांकि अल्लाह के नज़दीक वह बहुत बड़ी बात थी.
16. और ऐसा क्यों नहीं हुआ कि जब तुम लोगों ने उस बात को सुना था, तो कह देते कि हमें ऐसी बात कहने का कोई हक़ नहीं है. ऐ हमारे परवरदिगार ! तू पाक है. यह बहुत बड़ा बोहतान है.
17. अल्लाह तुम्हें नसीहत करता है कि अगर तुम मोमिन हो, तो फिर कभी ऐसी बात मत करना.
18. और अल्लाह तुम्हारे लिए आयतों को वाज़ेह तौर पर बयान करता है. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
19. बेशक जो लोग यह चाहते हैं कि मोमिनों में बेहयाई फैले, तो उनके लिए दुनिया और आख़िरत में दर्दनाक अज़ाब है. और अल्लाह सबकुछ जानता है और तुम नहीं जानते.
20. और अगर तुम पर अल्लाह का फ़ज़ल और उसकी रहमत न होती, तो तुम भी तबाह व बर्बाद हो जाते. और अल्लाह बड़ा शफ़क़त वाला बड़ा मेहरबान है.
21. ऐ ईमान वालो ! शैतान के नक़्शे क़दम पर चलते हुए उसकी पैरवी मत चलो. और जो शख़्स शैतान की पैरवी करता है, तो बेशक वह उसे बेहयाई और बुरी कामों का हुक्म देता है. अगर तुम पर अल्लाह का फ़ज़ल और उसकी रहमत न होती, तो तुममें से कोई भी कभी पाकबाज़ नहीं होता. लेकिन अल्लाह जिसे चाहता है, उसे पाक व पाकीज़ा बना देता है. और अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
22. और तुममें से फ़ज़ल और दौलत वाले लोग यह क़सम न खायें कि वे रिश्तेदारों और मिस्कीनों और अल्लाह की राह में हिजरत करने वाले लोगों को कुछ नहीं देंगे. उन्हें चाहिए कि वे उनकी ख़ता मुआफ़ कर दें और उनसे दरगुज़र करें. क्या तुम यह नहीं चाहते हो कि अल्लाह तुम्हारी ख़तायें मुआफ़ करे. और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
23. बेशक जो लोग पाक दामन बेख़बर मोमिन औरतों पर तोहमत लगाते हैं, उन पर दुनिया और आख़िरत में अल्लाह की लानत है और उनके लिए बड़ा सख़्त अज़ाब है.
24. जिस दिन ख़ुद उनकी ज़बानें और उनके हाथ और पांव उनके ख़िलाफ़ गवाही देंगे कि वे लोग क्या करते थे.
25. उस दिन अल्लाह उन्हें उनके आमाल का पूरा-पूरा बदला देगा और वे जान लेंगे कि अल्लाह बरहक़ है और हक़ का ज़ाहिर करने वाला भी है.
26. ख़बीस औरतें ख़बीस मर्दों के लिए और ख़बीस मर्द ख़बीस औरतों के लिए मुनासिब हैं और पाक औरतें पाक मर्दों के लिए और पाक मर्द पाक औरतों के लिए मुनासिब हैं. ये पाकीज़ा लोग बुरे लोगों की तोहमतों से बरी हैं. उनके लिए मग़फ़िरत और इज़्ज़त वाला रिज़्क़ है.
27. ऐ ईमान वालो ! अपने घरों के अलावा किसी के घर में दाख़िल न होना जब तक कि उनसे इजाज़त न ले लो और उन्हें सलाम न कर लो. यह तुम्हारे लिए बेहतर है, ताकि तुम ग़ौर व फ़िक्र करो. 
28. फिर अगर तुम्हें उस घर में कोई न मिले, तो उस वक़्त तक दाख़िल न होना जब तक इजाज़त न मिल जाए. और अगर तुमसे कहा जाए कि वापस चले जाओ, तो वापस लौट जाना. यह तुम्हारे लिए पाकीज़ा बात है. और जो आमाल तुम करते हो, अल्लाह उसे ख़ूब जानता है.    
29. तुम्हारे लिए कोई हर्ज नहीं है कि तुम ऐसे मकानों में दाख़िल हो जाओ, जो ग़ैर आबाद हैं और जिनमें तुम्हारा कोई सामान रखा हुआ है. और अल्लाह उसे ख़ूब जानता है, जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम पोशीदा रखते हो.    
30. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ईमान वाले मर्दों से कह दो कि वे अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करें. यह उनके लिए पाकीज़ा बात है. बेशक अल्लाह उन आमाल से बाख़बर है, जो वे लोग किया करते हैं.
31. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और ईमान वाली औरतों से भी कह दो कि वे भी अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी अस्मत की हिफ़ाज़त करें. और अपनी ज़ीनत का इज़हार न करें, सिवाय उसके जो ख़ुद ब ख़ुद ज़ाहिर हो जाए. और सर पर ओढ़े दुपट्टे अपने सीनों पर डाले रहा करें. अपने बनाव सिंगार को किसी पर ज़ाहिर न किया करें सिवाय अपने शौहरों के और अपने बाप दादा और अपने शौहरों के बाप दादा और अपने बेटों और अपने शौहरों के बेटों और अपने भाइयों और अपने भतीजों और अपने भांजों और मुसलमान औरतों और अपने ग़ुलामों और कनीज़ों और ग़र्ज़ न रखने वाले ख़िदमतगार मर्दों और मासूम बच्चों के. और अपने पांव ज़मीन पर इस तरह न रखें कि पांज़ेब की झंकार से सिंगार ज़ाहिर हो जाए. ऐ ईमान वालो ! और तुम सब अल्लाह की बारगाह में तौबा करो, ताकि तुम कामयाबी पाओ.       
32. और तुम अपनी क़ौम की ग़ैर शादीशुदा औरतों और अपने नेक बख़्त ग़ुलामों और कनीज़ों का निकाह करवा दिया करो. अगर वे फ़क़ीर होंगे, तो अल्लाह अपने फ़ज़ल से उन्हें ग़नी कर देगा. और अल्लाह बड़ा वुसअत वाला बड़ा साहिबे इल्म है. 
33. और जिन लोगों को निकाह का मौक़ा मयस्सर नहीं हुआ, तो उन्हें पाक दामिनी इख़्तियार करनी चाहिए, यहां तक कि अल्लाह अपने फ़ज़ल से उन्हें ग़नी कर दे. और तुम्हारे ग़ुलामों और कनीज़ों में से जो मकातिबत यानी कुछ माल कमाकर देने की शर्त पर आज़ाद होना चाहें, तो तुम उन्हें आज़ाद कर दिया करो. अगर तुम उनकी भलाई जानते हो. और तुम ख़ुद भी उन्हें उस माल में से कुछ दे दो, जो तुम्हें अल्लाह ने अता किया है. और तुम दुनियावी ज़िन्दगी का फ़ायदा हासिल करने के लिए अपनी कनीज़ों को बदकारी पर मजबूर न करो, जबकि वे पाक दामन रहना चाहती हैं. और जो उन्हें मजबूर करेगा, तो बेशक अल्लाह उनकी बेबसी के बाद उन्हें बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
34. ऐ ईमान वालो ! और बेशक हमने तुम्हारी तरफ़ वाज़ेह आयतें नाज़िल की हैं और कुछ उन लोगों की मिसालें भी हैं, जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं. और यह परहेज़गारों के लिए नसीहत है.
35. अल्लाह आसमानों और ज़मीन का नूर है. उस नूर की मिसाल ऐसी है जैसे एक ताक़ है, जिसमें एक रौशन चराग़ है और चराग़ एक शीशे की क़ंदील में है. और क़ंदील एक जगमगाते हुए सितारे की मानिन्द है, जिसे ज़ैतून के बाबरकत दरख़्त के तेल से रौशन किया जाए, जो न मशरिक़ की तरफ़ हो और न मग़रिब की तरफ़ हो, बल्कि बीचों बीच हो. उसका तेल ऐसा शफ़्फ़ाफ़ हो कि अगर कोई उसे छुये भी नहीं, तो ऐसा मालूम हो कि वह ख़ुद ही रौशन हो जाएगा. वह नूर पर नूर है. अल्लाह जिसे चाहता है अपने नूर तक पहुंचा देता है. और अल्लाह लोगों की हिदायत के लिए मिसालें बयान करता है. और अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है.
36. अल्लाह का यह नूर उन घरों में है, जिन्हें अल्लाह ने बुलंद करने का हुक्म दिया है, जिनमें अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है और सुबह व शाम अल्लाह के नाम की तस्बीह की जाती है. 
37. अल्लाह के इस नूर के हामिल वे लोग हैं, जिन्हें तिजारत और ख़रीद फ़रोख़्त न अल्लाह के ज़िक्र से ग़ाफ़िल करती है और न नमाज़ पढ़ने से और न ज़कात अदा करने से, बल्कि वे लोग उस दिन से ख़ौफ़ रखते हैं, जिसमें  दहशत से दिल और आंखें सब उलट पलट हो जाएंगे.
38. वे लोग इसलिए इबादत करते हैं, ताकि अल्लाह उन्हें उनके आमाल की बेहतरीन जज़ा दे और अपने फ़ज़ल से उन्हें उससे भी ज़्यादा अता करे. और अल्लाह जिसे चाहता है, उसे बेहिसाब रिज़्क़ देता है.
39. और जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उनके आमाल बंजर सहरा में सराब की मानिन्द हैं, जिसे प्यासा पानी समझता है, यहां तक कि जब वह उसके पास आता है, तो कुछ भी नहीं पाता. और इसी तरह आख़िरत में वह अल्लाह को अपने पास मौजूद पाएगा, लेकिन अल्लाह ने उसका पूरा हिसाब दुनिया में चुका दिया था. और अल्लाह बहुत जल्द हिसाब करने वाला है.
40. या काफ़िरों के आमाल उस गहरे समन्दर की तारिकियों की मानिन्द हैं, जिसे लहर ने ढक लिया हो. फिर इसके ऊपर एक और लहर हो. फिर उसके ऊपर तह दर तह बादल भी हों. ऊपर नीचे तारीकी ही तारीकी हो. अगर कोई डूबने वाला अपना हाथ बाहर निकाले, तो तारीकी की वजह से वह किसी को नज़र न आए. और जिसके लिए अल्लाह ने नूर नहीं बनाया, तो उसके लिए कहीं भी नूर नहीं है.
41. क्या तुमने नहीं देखा कि आसमानों और ज़मीन की हर शय अल्लाह ही की तस्बीह करती है. और परिन्दे भी फ़ज़ाओं में पर फैलाए हुए उसी की तस्बीह करते हैं. हर एक अपनी नमाज़ और अपनी तस्बीह का तरीक़ा जानता है. और अल्लाह उन आमाल ख़ूब वाक़िफ़ है, जो वे लोग किया करते हैं.
42. और आसमानों और ज़मीन की बादशाहत अल्लाह ही की है. और सबको अल्लाह की तरफ़ ही लौटना है.
43. क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ही बादलों को पहले आहिस्ता-आहिस्ता चलाता है. फिर उन्हें आपस में मिला देता है. फिर उन्हें तह ब तह बना देता है. फिर तुम देखते हो कि उसके दरम्यान ख़ाली जगहों से बारिश निकलकर बरसती है. और वह उसी आसमान में पहाड़ों की तरह नज़र आने वाले बादलों में से ओले बरसाता है. फिर वह जिन पर चाहता है, ओले बरसाता है. और जिसकी तरफ़ से चाहता है, उन्हें फेर देता है. ऐसा लगता है कि बादलों की बर्क़ यानी बिजली की चमक आंखों की रौशनी उचक ले जाएगी.
44. और अल्लाह ही रात और दिन को बदलता रहता है. और बेशक इसमें बसीरत वालों के लिए बड़ी इबरत है.
45. और अल्लाह ही ने हर चलने फिरने वाले जानदार की पानी से तख़लीक़ की. फिर उनमें से कुछ ऐसे हैं, जो अपने पेट के बल चलते हैं. और उनमें से कुछ ऐसे हैं, जो दो पांव पर चलते हैं. और उनमें से कुछ ऐसे हैं, जो चार पांवों पर चलते हैं. अल्लाह जो चाहता है, पैदा करता है. बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है.
46. यक़ीनन हमने ही वाजे़ह आयतें नाज़िल की हैं और अल्लाह जिसे चाहता है, सीधे रास्ते की हिदायत करता है.
47. और वे लोग कहते हैं कि हम अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान लाए हैं और उनकी इताअत करते हैं. फिर उसके बाद उनमें से एक फ़रीक़ अल्लाह के हुक्म से मुंह फेर लेता है. और वे लोग ईमान वाले नहीं हैं.
48. और जब उन लोगों को अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ़ बुलाया जाता है, ताकि उनके दरम्यान फ़ैसला कर दिया जाए, तो उनमें से एक फ़रीक़ मुंह फेर लेता है.
49. और अगर वे लोग हक़ के साथ होते, तो गर्दन झुकाये रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास चले आते.
50. क्या उनके दिलों में कुफ़्र का मर्ज़ है या वह शक में मुब्तिला हैं या उन्हें ख़ौफ़ है कि अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन पर ज़ुल्म करेंगे, बल्कि वे लोग ख़ुद ही ज़ालिम हैं.
51. ईमान वालों का क़ौल तो सिर्फ़ यही होता है कि जब उन्हें अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ़ बुलाया जाता है, ताकि वह उनके दरम्यान फ़ैसला कर दिया जाए, तो वे कहते हैं कि हमने हुक्म सुना और इताअत की. और वही लोग कामयाबी पाने वाले हैं.
52. और जो अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करता है और अल्लाह से डरता है और परहेज़गारी इख़्तियार करता है, तो ऐसे ही लोग कामयाबी पाने वाले हैं. 
53. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और वे लोग अल्लाह की बड़ी क़समें खाते हैं कि अगर तुम उन्हें हुक्म दो, तो वे जिहाद के लिए ज़रूर निकलेंगे. तुम कह दो कि क़समें न खाओ, बल्कि दस्तूर के मुवाफ़िक़ इताअत की दरकार है. और बेशक अल्लाह उन आमाल से बाख़बर है, जो तुम किया करते हो.
54. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अल्लाह की इताअत करो और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो. फिर तुमने इताअत से मुंह फेरा, तो जान लो कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़िम्मे सिर्फ़ वही है, जो उन पर लाज़िम किया गया है. और तुम्हारे ज़िम्मे वह है, जो तुम पर लाज़िम किया गया है. अगर तुम उनकी इताअत करोगे, तो हिदायत हासिल करोगे. और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ अहकाम पहुंचाने तक ही है. 
55. अल्लाह ने लोगों से वादा किया है कि तुममें से जो ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, उन्हें ज़मीन में ख़िलाफ़त अता करेगा, जिस तरह उनसे पहले के लोगों ख़िलाफ़त बख़्शी थी. और उनके लिए उस दीन को ग़ालिब बनाएगा, जिसे उनके लिए पसंद किया है. और वह यक़ीनन उनके ख़ौफ़ को अमन से बदल देगा कि वे सब अल्लाह ही की इबादत करेंगे और किसी चीज़ को उसका शरीक नहीं ठहराएंगे. और इसके बाद भी कोई कुफ़्र करे, तो ऐसे ही लोग ही नाफ़रमान हैं.
56. और तुम पाबंदी से नमाज़ पढ़ो और ज़कात दिया करो और दिल से रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो, ताकि तुम पर रहम किया जाए.
57. और तुम यह गुमान हरगिज़ नहीं करना कि काफ़िर ज़मीन में अल्लाह को आजिज़ कर देंगे. और उनका ठिकाना दोज़ख़ है और वह बहुत बुरा ठिकाना है.
58. ऐ ईमान वालो ! तुम्हारे ग़ुलामों और कनीज़ों और नाबालिग़ लड़कों को चाहिए कि वे तीन मौक़ों पर तुम्हारे पास आने से पहले इजाज़त ले लिया करें. सुबह फ़ज्र की नमाज़ से पहले और दोपहर के वक़्त जब तुम कपड़े उतार कर आराम करते हो और रात में इशा की नमाज़ के बाद जब तुम अपनी ख़्वाबगाहों में चले जाते हो. ये तीन वक़्त तुम्हारे पर्दे के हैं. इसके बाद तुम्हारे लिए या उनके लिए कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि बाक़ी वक़्त में वे एक दूसरे के पास आते जाते रहते हैं. इसी तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें वाज़ेह तौर पर बयान करता है. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
59. और जब तुम्हारे बच्चे बालिग़ हो जाएं, तो वे भी तुम्हारे पास आने के लिए उसी तरह इजाज़त लिया करें, जिस तरह उनसे पहले बालिग़ आने की इजाज़त ले लिया करते थे. इसी तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें वाज़ेह तौर पर बयान करता है. और अल्लाह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा हिकमत वाला है.
60. और वे ज़ईफ़ औरतें जिन्हें निकाह की ख़्वाहिश नहीं है, अगर वे अपने दुपट्टे सर से उतार दें, तो उसमें कोई हर्ज नहीं है, बशर्ते उनका अपना बनाव सिंगार ज़ाहिर न हो. और अगर वे इससे भी परहेज़ करें, तो उनके लिए बेहतर है. और अल्लाह ख़ूब सुनने वाला बड़ा साहिबे इल्म है.
61. अंधे पर कोई हर्ज नहीं है और न लंगड़े पर कोई हर्ज है. और न बीमार पर कोई हर्ज है और न ख़ुद तुम लोगों पर कोई हर्ज है कि अपने घरों से खाना खाओ या अपने बाप दादा के घरों से या अपनी माओं के घरों से या अपने भाइयों के घरों से या अपनी बहनों के घरों से या अपने चचाओं के घरों से या अपनी फूफियों के घरों से या अपने मामुओं के घरों से या अपनी ख़ालाओं के घरों से या उन घरों से जिनकी कुंजियां तुम्हारे हाथ में हैं या अपने दोस्तों के घरों से खाना लेने में कोई हर्ज नहीं है. तुम पर इसमें कोई हर्ज नहीं कि सब मिलकर खाओ या अलग-अलग खाओ. फिर जब तुम घरों में दाख़िल हो, तो अपने घर वालों को सलाम कहा करो. यह अल्लाह की तरफ़ से एक मुबारक पाकीज़ा दुआ है. इसी तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें वाज़ेह तौर पर बयान करता है, ताकि तुम समझ सको.
62. ईमान वाले तो वही लोग हैं, जो अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान लाए और जब किसी इज्तमाई काम में मसरूफ़ हों, तो उस वक़्त तक कहीं न जाएं जब तक इजाज़त न मिल जाए. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक जो लोग तुमसे हर बात में इजाज़त हासिल करते हैं, वही लोग दिल से अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखते हैं. फिर जब वे लोग किसी काम के लिए तुमसे इजाज़त मांगें, तो तुम जिसे चाहो इजाज़त दे दिया करो. और अल्लाह से उनके लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगो. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
63. ऐ ईमान वालो ! तुम रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस तरह मत बुलाया करो, जिस तरह तुम आपस में एक दूसरे को नाम लेकर बुलाया करते हो. अल्लाह उन लोगों को खू़ब जानता है, तुममें से जो एक दूसरे की आड़ में रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास से खिसक जाते हैं. फिर जो लोग अल्लाह के हुक्म की मुख़ालिफ़त करते हैं, उन्हें इस बात से डरना चाहिए कि उन पर कोई आफ़त आन पडे़ या उन पर कोई दर्दनाक अज़ाब नाज़िल हो जाए. 
64. जान लो कि बेशक जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, सब अल्लाह ही का है. वह तुम्हारे हालात को ख़ूब जानता है. और जिस दिन लोग उसकी तरफ़ लौटाए जाएंगे, वह उन्हें उन आमाल से आगाह कर देगा, जो वे करते रहे हैं. और अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है.

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