Thursday, August 26, 2021

28 सूरह अल क़सस

सूरह अल क़सस मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 88 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. ता सीन मीम. 
2. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये रौशन किताब की आयतें हैं.
3. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हम तुम्हारे सामने मूसा अलैहिस्सलाम और फ़िरऔन का कुछ वाक़िया हक़ के साथ बयान करते हैं, उस क़ौम के लिए, जो ईमान वाली है.
4. बेशक फ़िरऔन ज़मीन में सरकश व मुतकब्बिर हो गया था और उसने अपने मुल्क के बाशिन्दों को मुख़्तलिफ़ फ़िरक़ों में तक़सीम कर दिया था. उसने उनमें से एक फ़िरक़े बनी इसराईल को बहुत कमज़ोर कर दिया था. वह उनके बेटों को ज़िबह करवा देता और उनकी औरतों को ज़िन्दा छोड़ देता था. बेशक वह भी मुफ़सिदों में से था.
5. और हम यह चाहते थे कि जो लोग ज़मीन में कमज़ोर कर दिए गए हैं उन पर अहसान करें और उन्हें इमाम यानी पेशवा बनाएं और उन्हें मुल्क का वारिस बना दें. 
6. और उन्हें ज़मीन में हुकूमत अता करें और फ़िरऔन और हामान और उनके लश्करों को वे इंक़लाब दिखाएं, जिससे वे डरते थे.
7. और हमने मूसा अलैहिस्सलाम की मां को इल्हाम किया कि तुम उस बच्चे को दूध पिलाओ. फिर जब तुम्हें उसके बारे में कोई ख़ौफ़ महसूस हो, तो उसे दरिया में छोड़ देना और तुम न ख़ौफ़ज़दा होना और न ग़मज़दा होना. बेशक हम उन्हें फिर तुम्हारे पास पहुंचा देंगे और उन्हें अपने रसूलों में शामिल करेंगे. 
8. फिर फ़िरऔन के लोगों ने उन्हें दरिया में से उठा लिया. इसलिए कि वे उनके दुश्मन और ग़म की वजह बनें. बेशक फ़िरऔन और हामान के लश्कर ख़तावार थे. 
9. और फ़िरऔन की बीवी आसिया ने कहा कि यह बच्चा मेरी और तुम्हारी आंखों के लिए ठंडक है. इसे क़त्ल मत करो. शायद यह हमें नफ़ा पहुंचाए या हम इसे बेटा ही बना लें. और उन्हें हक़ीक़त का शऊर नहीं था. 
10. और मूसा अलैहिस्सलाम की मां का दिल बेचैन हो गया. क़रीब था कि बेक़रारी की वजह से वे इस राज़ को ज़ाहिर कर देतीं, अगर हम उनके दिल को तसल्ली न देते, ताकि वे अल्लाह के वादे पर यक़ीन रखने वालों में से रहें. 
11. और मूसा अलैहिस्सलाम की मां ने उनकी बहन कुलसूम से कहा कि तुम उनके बच्चे के पीछे जाओ. फिर वह उन्हें दूर से देखती रही. और उन्हें हक़ीक़त का कोई शऊर नहीं था.
12. और हमने पहले ही से मूसा अलैहिस्सलाम पर दाइयों का दूध पिलाना हराम कर दिया था. इसलिए उनकी बहन कुलसूम ने कहा कि क्या मैं तुम्हें ऐसे घरवालों के बारे में बताऊं, जो तुम्हारे लिए इस बच्चे की परवरिश कर देंगे और वे इसके ख़ैरख़्वाह भी होंगे. 
13. फिर हमने मूसा अलैहिस्सलाम को उनकी मां के पास वापस पहुंचा दिया, ताकि उनकी आंखें ठंडी रहें और वे ग़मगीन न हों. और उन्हें यक़ीन हो जाए कि अल्लाह का वादा बरहक़ है, लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते. 
14. और जब मूसा अलैहिस्सलाम अपनी जवानी को पहुंचे और भरपूर तवाना हो गए, तो हमने उन्हें हिकमत और इल्म से नवाज़ा. और हम मोहसिनों को इसी तरह जज़ा दिया करते हैं.
15. और मूसा अलैहिस्सलाम उस वक़्त मिस्र शहर में दाख़िल हुए, जब वहां के बाशिन्दे नींद में ग़ाफ़िल थे. फिर उन्होंने देखा कि दो शख़्स आपस में लड़ रहे हैं, जिनमें एक उनकी क़ौम बनी इसराईल का है और दूसरा उनके दुश्मनों यानी क़ौमे फ़िरऔन में से है. फिर उनकी क़ौम के शख़्स ने उनसे उस शख़्स के ख़िलाफ़ मदद मांगी, जो उनके दुश्मनों में से था. फिर मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे मारा, तो उसकी मौत हो गई. और मूसा अलैहिस्सलाम कहने लगे कि यह शैतान का काम था. बेशक वह दुश्मन और सरीह गुमराह करने वाला है.
16. मूसा अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! बेशक मैंने अपनी जान पर ज़़ुल्म किया है. फिर तू मुझे बख़्श दे. बेशक तू बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
17. उन्होंने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! तूने मुझ पर अहसान किया है. अब मैं हरगिज़ गुनाहगारों की मदद नहीं करूंगा.
18. फिर मूसा अलैहिस्सलाम ने इस शहर में ख़ौफ़ज़दा होकर इस इंतज़ार में रात गुज़ारी कि सुबह क्या होगा. फिर अचानक वही शख़्स जिसने कल उनसे मदद मांगी थी, फिर उनसे फ़रियाद कर रहा है. मूसा अलैहिस्सलाम ने उससे कहा कि बेशक तू सरीह गुमराही में मुब्तिला है.
19. फिर जब उन्होंने उसे पकड़ने का इरादा किया, जो उन दोनों का दुश्मन है, तो उसने कहा कि ऐ मूसा अलैहिस्सलाम ! क्या तुम मुझे भी उसी तरह क़त्ल करना चाहते हो, जिस तरह तुमने कल एक शख़्स को क़त्ल कर दिया था. तुम सिर्फ़ यही चाहते हो कि ज़मीन में सरकश बन जाओ और यह नहीं चाहते कि तुम इस्लाह करने वालों में से बनो.
20. और शहर के आख़िरी किनारे से एक शख़्स दौड़ता हुआ आया और कहने लगा कि ऐ मूसा अलैहिस्सलाम ! क़ौमे फ़िरऔन के सरदार तुम्हारे बारे में मशवरा कर रहे हैं कि तुम्हें क़त्ल कर दें, इसलिए तुम यहां से चले जाओ. बेशक मैं तुम्हारे ख़ैरख़्वाहों में से हूं. 
21. फिर मूसा अलैहिस्सलाम ख़ौफ़ज़दा होकर अल्लाह की मदद का इंतज़ार करते हुए वहां से निकल गए. उन्होंने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझे ज़ालिमों की क़ौम से निजात दे.
22. और जब उन्होंने मदयन की तरफ़ रुख़ किया, तो कहने लगे कि उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे सीधा रास्ता दिखाएगा.
23. और जब वे मदयन में पानी के कुओं के पास पहुंचे, तो देखा कि वहां जमा लोगों की एक उम्मत अपने जानवरों को पानी पिला रही है. और उनसे अलग दो लड़कियां अपनी बकरियों को रोके हुए खड़ी हैं. मूसा अलैहिस्सलाम ने पूछा कि तुम इस हाल में क्यों खड़ी हो? वे कहने लगीं कि हम अपनी बकरियों को तब तक पानी नहीं पिला सकतीं, जब तक सब चरवाहे अपने जानवरों को पानी पिलाकर वापस चले न जाएं. हमारे वालिद बहुत ज़ईफ़ हैं.
24. फिर उन्होंने उन दोनों बकरियों को पानी पिला दिया. फिर वे छांव की तरफ़ लौट गए. फिर उन्होंने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! मैं तेरी तरफ़ से नाज़िल हर भलाई का फ़कीर हूं.
25. फिर कुछ वक़्त बाद उनमें से एक लड़की शर्माती हुई मूसा अलैहिस्सलाम के पास आकर कहने लगी कि बेशक मेरे वालिद तुम्हें बुला रहे हैं, ताकि तुम्हें उसकी जज़ा दें, जो तुमने हमारी बकरियों को पानी पिलाया है. फिर जब मूसा अलैहिस्सलाम उनके वालिद शुऐब अलैहिस्सलाम के पास आए और उनसे सारा क़िस्सा बयान किया, तो उन्होंने कहा कि कुछ ख़ौफ़ मत करो, तुमने ज़ालिमों की क़ौम से निजात पा ली.
26. उनमें से एक लड़की ने कहा कि ऐ मेरे अब्बा ! इन्हें मुलाज़िम रख लें. बेशक आप जिन्हें भी मुलाज़िम रखेंगे, उनमें से बेहतरीन वह होगा, जो ताक़तवर व अमानतदार हो.
27. शुऐब अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं चाहता हूं कि अपनी इन दोनों बेटियों में से एक के साथ तुम्हारा इस महर पर निकाह कर दूं कि तुम आठ बरस तक मेरे पास उजरत पर काम करो. फिर अगर तुमने दस बरस पूरे कर दिए, तो तुम्हारा अहसान होगा और मैं तुम पर मशक़्क़त डालना नहीं चाहता. इंशा अल्लाह तुम मुझे स्वालिहीन में से पाओगे.
28. मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि मेरे और आपके दरम्यान यह अहद तय हो गया. दोनों मुद्दतों में से मैं जो भी पूरी कर दूं, यानी मुझे इसका इख़्तियार है. फिर मुझ पर जबर नहीं होगा. और जो कुछ हम कर रहे हैं, अल्लाह उसका निगेहबान है. 
29. फिर जब मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी दस बरस की मुद्दत पूरी कल ली और अपनी बीवी को लेकर चले, तो कोहे तूर की तरफ़ आग दिखाई दी. उन्होंने अपनी बीवी से कहा कि तुम यहीं ठहरो. बेशक मैंने आग देखी है. मुमकिन है कि मैं वहां से कोई ख़बर लाऊं या आग का कोई अंगारा ही ले आऊं, ताकि तुम गर्मी महसूस कर सको. 
30. फिर जब मूसा अलैहिस्सलाम वहां पहुंचे, तो तूर की वादी के दायें किनारे की मुबारक जगह में एक शजर से आवाज़ आई कि ऐ मूसा अलैहिस्सलाम ! बेशक मैं ही अल्लाह हूं और तमाम आलमों का परवरदिगार हूं.
31. और यह कि तुम अपना असा ज़मीन पर डाल दो. फिर जब मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे देखा कि वह ख़ूब लहरा रहा है गोया वह अज़दहा हो, तो वे पीठ फेरकर तेज़ी से चल दिए और पीछे मुड़कर भी नहीं देखा. फिर आवाज़ आई कि ऐ मूसा अलैहिस्सलाम ! सामने आओ और ख़ौफ़ज़दा न हो. बेशक तुम अमान पाने वालों में से हो.
32. अपना हाथ अपने गिरेबान में डालो, वह बग़ैर किसी ऐब के सफ़ेद होकर निकलेगा. और अपने बाजू़ अपने सीने की तरफ़ समेट लो, ताकि ख़ौफ़ जाता रहे. फिर ये दो दलीलें हैं, जो तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से फ़िरऔन और उसके दरबारियों के पास भेजी जा रही हैं. बेशक वह नाफ़रमान क़ौम है. 
33. मूसा अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि ऐ मेरे परवरदिगार ! बेशक मैंने उनमें से एक शख़्स को क़त्ल कर दिया था, तो मैं ख़ौफ़ज़दा हूं कि वे मुझे क़त्ल कर देंगे. 
34. और मेरा भाई हारून ज़बान में मुझसे ज़्यादा फ़सीह है, तो तू उसे मेरे साथ मेरा मददगार बनाकर भेज दे, ताकि वह मेरी तसदीक़ कर सके. मैं इस बात से ख़ौफ़ज़दा हूं कि वे लोग मुझे झुठला देंगे.
35. हमने फ़रमाया कि हम तुम्हारे भाई के साथ तुम्हारे बाज़ू मज़बूत कर देंगे. और तुम दोनों को ग़लबा अता करेंगे. फिर हमारी निशानियों की वजह से फ़िरऔन के लोग तुम तक नहीं पहुंच सकेंगे. तुम दोनों और तुम्हारी पैरवी करने वाले ग़ालिब रहेंगे.
36. फिर जब मूसा अलैहिस्सलाम हमारी वाज़ेह निशानियां लेकर फ़िरऔन के पास आए, तो वे लोग कहने लगे कि यह तो मनगढ़ंत जादू है. और हमने पहले ये बातें अपने बाप दादाओं से कभी नहीं सुनीं.
37. और मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा कि मेरा परवरदिगार उससे ख़ूब वाक़िफ़ है, जो उसकी बारगाह से हिदायत लेकर आया है और वह उसे भी जानता है, जिसके लिए आख़िरत का बेहतरीन घर है. बेशक ज़ालिम कभी कामयाब नहीं होंगे.
38. और यह सुनकर फ़िरऔन ने कहा कि ऐ मेरे दरबारियो ! मैं तुम्हारे लिए अपने सिवा कोई दूसरा सरपरस्त नहीं जानता. ऐ हामान ! तुम मेरे लिए मिट्टी की ईंटें पकवाओ. फिर मेरे लिए एक बुलंद महल बनवाओ, ताकि मैं उस पर चढ़कर मूसा अलैहिस्सलाम के माबूद को पा सकूं यानी देख लूं. और बेशक मैं उसे झूठ बोलने वालों में गुमान करता हूं.
39. और फ़िरऔन और उसके लश्कर ने ज़मीन में नाहक़ तकब्बुर और सरकशी की. और उन्होंने यह गुमान किया कि वे हमारी तरफ़ नहीं लौटाए जाएंगे.
40. फिर हमने फ़िरऔन और उसके लश्कर को गिरफ़्त में लेकर दरिया में ग़र्क़ कर दिया. फिर ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ज़रा देखो कि ज़ालिमों का कैसा बुरा अंजाम हुआ.
41. और हमने उन्हें दोज़ख़ियों का इमाम यानी पेशवा बना दिया कि वे लोगों को दोज़ख़ की तरफ़ बुलाते हैं. और क़यामत के दिन उन्हें किसी तरह की कोई मदद नहीं दी जाएगी.
42. और हमने दुनिया में भी उनके पीछे लानत लगा दी और क़यामत के दिन भी वे बदहाल लोगों में शामिल होंगे. 
43. और हमने पहले की बहुत सी उम्मतों को हलाक करने के बाद मूसा अलैहिस्सलाम को किताब यानी तौरात अता की, जो लोगों के लिए बसीरत और हिदायत और रहमत थी, ताकि वे ग़ौर व फ़िक्र करें.
44. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और जिस वक़्त हमने मूसा अलैहिस्सलाम के पास अपना रिसालत का हुक्म भेजा था, तो तुम कोहे तूर के मग़रिबी जानिब मौजूद नहीं थे और न तुम उनकी गवाही देने वालों में से थे.
45. लेकिन हमने मूसा अलैहिस्सलाम के बाद बहुत सी क़ौमें पैदा कीं. फिर उन पर एक तवील ज़माना गुज़र गया. और न तुम मूसा अलैहिस्सलाम और शुऐब अलैहिस्सलाम की तरह मदयन में रहने वालों में से थे कि तुम उन्हें हमारी आयतें पढ़कर सुनाते. लेकिन हम ही रसूल बनाकर भेजने वाले हैं.
46. और न तुम उस वक़्त कोहे तूर के किनारे पर मौजूद थे, जब हमने मूसा अलैहिस्सलाम को आवाज़ दी थी. लेकिन यह तुम्हारे परवरदिगार की ख़ास रहमत है कि तुम्हें वही के ज़रिये ये तमाम वाक़ियात बताए जा रहे हैं. इसलिए कि तुम उस क़ौम को अल्लाह के अज़ाब से ख़बरदार करो, जिसके पास तुमसे पहले कोई पैग़म्बर नहीं आया, ताकि वे लोग ग़ौर व फ़िक्र करें.
47. और अगर हम उनके पास कोई रसूल नहीं भेजते, तो जब उनके हाथों हुए बुरे आमाल की वजह से उन पर कोई मुसीबत आती, तो वे कहते कि ऐ हमारे परवरदिगार ! तूने हमारे पास कोई रसूल क्यों नहीं भेजा कि हम तेरी आयतों की पैरवी करते और हम मोमिनों में से हो जाते. 
48. फिर जब हमारी बारगाह से हक़ उनके पास पहुंचा, तो वे कहने लगे कि जैसी निशानियां मूसा अलैहिस्सलाम को अता हुई थीं, वैसी निशानियां इन रसूल यानी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क्यों नहीं दी गईं. क्या उन्होंने उन निशानियों से इनकार नहीं किया था, जो इससे पहले मूसा अलैहिस्सलाम को अता की गई थीं. वे कहने लगे कि ये दोनों यानी क़ुरआन और तौरात जादू हैं, जो एक दूसरे की ताईद करते हैं. बेशक हम सबसे कुफ़्र करते हैं. यानी सबसे इनकार करते हैं. 
49. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि अल्लाह की बारगाह से एक ऐसी किताब ले आओ, जो इन दोनों से ज़्यादा हिदायत वाली हो. मैं भी उसकी पैरवी करूंगा. अगर तुम सच्चे हो.  
50. फिर अगर वे लोग तुम्हारा कहना न मानें, तो जान लेना कि वे सिर्फ़ अपनी ख़्वाहिशों की पैरवी करते हैं. और उससे ज़्यादा गुमराह कौन हो सकता है, जो अल्लाह की हिदायत को छोड़कर अपनी ख़्वाहिशों की पैरवी करे. बेशक अल्लाह ज़ालिमों की क़ौम को हिदायत नहीं देता. 
51. और दरहक़ीक़त हम मुसलसल उन्हें अपने क़ौल यानी अहकाम भेजते रहे, ताकि वे लोग ग़ौर व फ़िक्र करें.
52. जिन लोगों को हमने इससे पहले किताब अता की थी, वे इस क़़ुरआन पर भी ईमान रखते हैं.
53. और जब उनके सामने क़ुरआन पढ़ा जाता है, तो वे कहते हैं कि हम इस पर ईमान लाए. बेशक यह हमारे परवरदिगार की तरफ़ से हक़ है. हम तो पहले ही से इसके मुसलमान यानी फ़रमाबरदार हो चुके थे.
54. यही वे लोग हैं, जिन्हें दोगुना अज्र दिया जाएगा. इसलिए कि उन्होंने सब्र किया और बुराई को अच्छाई से दूर करते हैं. और हमने जो कुछ उन्हें अता किया है, उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं.
55. और जब वे लोग कोई बेहूदा बात सुनते हैं, तो उससे किनारा कर लेते हैं और कहते हैं कि हमारे लिए हमारे आमाल और तुम्हारे लिए तुम्हारे आमाल. तुम पर सलाम हो. हम जाहिलों से उलझना नहीं चाहते.
56. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक तुम जिसे चाहो, उसे ख़ुद हिदायत नहीं दे सकते. लेकिन अल्लाह जिसे चाहता है, तुम्हारे ज़रिये हिदायत देता है. और वह हिदायत पाने वाले लोगों से ख़ूब वाक़िफ़ है.
57. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और मक्का के काफ़िर तुमसे कहते हैं कि अगर हम तुम्हारे साथ हिदायत यानी हक़ की पैरवी करें, तो हम अपनी ज़मीन से उचक लिए जाएंगे. क्या हमने उन्हें अमन वाले हरम यानी मक्का शहर में नहीं बसाया, जहां हमारी तरफ़ से रिज़्क़ के तौर पर हर क़िस्म के फल व मेवे पहुंचाए जाते हैं. लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते.
58. और हमने कितनी ही बस्तियां हलाक कर दीं, जो अपनी ख़ुशहाली पर इतराने लगी थीं. देखो कि ये उनके उजड़े हुए घर हैं, जो उनके बाद फिर कभी आबाद नहीं हुए, सिवाय कुछ घरों के. और हम ही उनके वारिस हैं.
59. और तुम्हारा परवरदिगार किसी भी बस्ती को उस वक़्त तक हलाक नहीं करता, जब तक उनकी किसी बड़ी बस्ती में अपना कोई रसूल न भेज दे, जो उनके सामने हमारी पढ़े. और हम बस्तियों को तब तक हलाक नहीं करते, जब तक वहां के बाशिन्दे ज़ालिम न हों.
60. और जो कुछ तुम लोगों को अता किया गया है, वह तो दुनियावी ज़िन्दगी का थोड़ा सा सामान और उसकी आराइश है. और जो कुछ अल्लाह के पास है, वह उससे कहीं बेहतर और दाइमी है. क्या फिर भी तुम नहीं समझते.
61. फिर क्या वह शख़्स जिससे हमने कोई अच्छा वादा किया हो, फिर वह उसे पाने वाला हो, क्या वह उस शख़्स की तरह हो सकता है, जिसे हमने दुनियावी ज़िन्दगी का सामान दिया है. फिर वे लोग क़यामत के दिन अज़ाब के लिए हमारे सामने हाज़िर किए जाएंगे.
62. और जिस दिन अल्लाह मुशरिकों को पुकार कर उनसे फ़रमाएगा कि हमारे वे कहां हैं, जिन्हें तुम हमारा शरीक गुमान करते थे.
63. जिन पर अज़ाब का फ़रमान साबित हो चुका है, वे लोग कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार ! यही वे लोग हैं जिन्हें हमने गुमराह किया था. हमने उन्हें उसी तरह गुमराह किया, जिस तरह हम ख़ुद गुमराह हुए थे. हम उनसे बेज़ार हैं और तेरी तरफ़ मुतावज्जे होते हैं. और वे लोग हमें नहीं पुकारते थे. 
64. और उनसे कहा जाएगा कि तुम अपने मनगढ़ंत शरीकों को बुलाओ. वे लोग उन्हें बुलाएंगे, तो शरीक उन्हें जवाब तक नहीं देंगे और वे लोग अज़ाब को देख लेंगे. काश ! वे लोग हिदायत पा चुके होते.
65. और जिस दिन अल्लाह उन लोगों से पुकार कर उनसे फ़रमाएगा कि तुमने रसूलों को क्या जवाब दिया था.
66. तो उस दिन उनसे कोई जवाब नहीं दिया जाएगा. फिर वे एक दूसरे से सवाल भी नहीं सकेंगे.
67. फिर जिसने तौबा कर ली और ईमान ले आया और नेक अमल करता रहा, तो यक़ीनन वह कामयाबी पाने वालों में से होगा.
68. और तुम्हारा परवरदिगार जो चाहता है, पैदा करता है और जिसे चाहता है मुंतख़िब करता है. और उन्हें इसका कोई इख़्तियार नहीं है. और अल्लाह उनसे पाक और आला है, जिन्हें वे लोग उसका शरीक ठहराते हैं.
69. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम !  और तुम्हारा परवरदिगार उन तमाम बातों से ख़ूब वाक़िफ़ है, जो वे लोग अपने दिलों में पोशीदा रखते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं.
70. और वह अल्लाह ही है, जिसके सिवा कोई माबूद नहीं. दुनिया और आख़िरत में वही सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं. और उसी का हुक्म व फ़रमानरवाई है. और तुम्हें उसकी तरफ़ ही लौटना है.
71. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि भला देखो कि अगर अल्लाह तुम पर क़यामत के दिन तक हमेशा रात ही तारी रखे, तो अल्लाह के सिवा कौन माबूद है, जो तुम्हारे लिए दिन की रौशनी लाए. क्या तुम सुनते नहीं हो.
72. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि भला देखो कि अगर अल्लाह तुम पर क़यामत के दिन तक दिन ही तारी रखे, तो अल्लाह के सिवा कौन माबूद है, जो तुम्हारे लिए रात लाए कि तुम उसमें आराम करो, तो क्या तुम देखते नहीं हो.
73. और अल्लाह ने अपनी रहमत से तुम्हारे लिए रात और दिन बनाए, ताकि तुम रात में आराम करो और दिन में उसका फ़ज़ल यानी रिज़्क़ तलाश करो और तुम उसका शुक्र अदा करते रहो.
74. और जिस दिन अल्लाह उन्हें पुकारकर फ़रमाएगा कि वे कहां हैं, जिन्हें तुम हमारा शरीक गुमान करते थे.
75. और हम हर एक उम्मत से एक गवाह यानी पैग़म्बर सामने लाएंगे. फिर हम मुशरिकों और काफ़िरों से कहेंगे कि तुम अपनी दलील पेश करो. उस वक़्त वे जान लेंगे कि हक़ अल्लाह ही की तरफ़ है और वह सब उनसे ग़ायब हो जाएगा, जो कुछ वे लोग गढ़ा करते थे. 
76. बेशक क़ारून मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम से था. फिर उसने लोगों पर ज़्यादती की. और हमने उसे इस क़दर ख़ज़ाने अता किए थे कि उसकी चाबियां उठाना एक ताक़तवर जमात के लिए दुश्वार होता था. जब एक बार उसकी क़ौम ने उससे कहा कि तू अपनी दौलत पर इतराया मत कर, क्योंकि अल्लाह इतराने वाले लोगों को पसंद नहीं करता.
77. और अल्लाह ने जो कुछ तुझे अता किया है, उसमें आख़िरत के घर की भी जुस्तजू कर. और अपने दुनियावी हिस्से को भी मत भूल. और जिस तरह अल्लाह ने तुझ पर अहसान किया है, उसी तरह तू भी दूसरों पर अहसान कर. और ज़मीन में फ़साद करने की कोशिश मत कर. बेशक अल्लाह मुफ़सिदों को पसंद नहीं करता.
78. क़ारून कहने लगा कि बेशक यह सब मुझे अपने इल्म की वजह से अता किया गया है. क्या वह नहीं जानता कि बेशक अल्लाह ने इससे पहले कितनी ही क़ौमों को हलाक कर दिया, जो क़ू़वत उससे कहीं बढ़ चढ़कर थीं और माल व दौलत जमा करने में उससे आगे थीं. और गुनाहगारों से सज़ा के वक़्त उनके गुनाहों के बारे में पूछताछ नहीं हुआ करती.
79. फिर एक दिन क़ारून अपनी क़ौम के सामने बड़ी आराइश के साथ निकला, तो जो लोग दुनियावी ज़िन्दगी के तलबगार थे, वे कहने लगे कि काश ! हमारे पास भी इतना माल व दौलत होती, जितनी क़ारून को अता हुई है. बेशक क़ारून बड़ा नसीब वाला था. 
80. और जिन लोगों को अल्लाह की बारगाह से इल्म अता किया गया था, वे कहने लगे कि तुम पर अफ़सोस है. जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, उनके लिए अल्लाह का सवाब इससे कहीं बेहतर है. और यह सवाब सब्र करने वाले लोगों के सिवा किसी को अता नहीं किया जाएगा.
81. फिर हमने क़ारून और उसके घर को ज़मीन में धंसा दिया. फिर अल्लाह के सिवा कोई जमात ऐसी नहीं थी, जो उसकी मदद करती और न वह ख़ुद को अज़ाब से बचा सका.
82. और जो लोग सुबह के वक़्त उसके मक़ाम और मरतबे की तमन्ना कर रहे थे, अब वे कहने लगे कि हाय शामत ! अल्लाह अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है रिज़्क़ कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है रिज़्क़ तंग कर देता है. और अगर अल्लाह हम पर अहसान नहीं करता, तो उसकी तरह हमें भी ज़रूर धंसा देता. हाय शामत ! काफ़िर कभी कामयाब नहीं होंगे.
83. यह आख़िरत का वह घर है, जिसे हमने उन लोगों के लिए बनाया है, जो ज़मीन पर न बड़ाई चाहते हैं और न फ़साद चाहते हैं. और आख़िरत का अंजाम परहेज़गारों के हक़ में होगा.
84. जो अच्छाई लेकर आएगा, तो उसके लिए उससे कहीं बेहतर सिला है और जो बुराई लेकर आएगा, तो बुरे अमल करने वालों को उसी की जज़ा दी जाएगी, जो कुछ वे किया करते थे.
85. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बेशक जिस अल्लाह ने तुम पर क़ुरआन फ़र्ज़ किया है, वही तुम्हें उस जगह लौटाएगा, जहां तुम जाना चाहते हो. तुम कह दो कि मेरा परवरदिगार उससे भी ख़ूब वाक़िफ़ है, जो हिदायत पर है और उससे भी जो सरीह गुमराही में मुब्तिला है.
86. और तुम्हें यह उम्मीद नहीं थी कि अल्लाह की तरफ़ से तुम पर किताब नाज़िल की जाएगी. लेकिन यह तुम्हारे परवरदिगार की रहमत है. फिर तुम हरगि़ज़ काफ़िरों के मददगार मत बनना.
87. और जब अल्लाह की आयतें तुम पर नाज़िल कर दी गई हैं, तो इसके बाद काफ़िर तुम्हें तबलीग़े रिसालत से न रोक दें. और तुम अपने परवरदिगार की तरफ़ लोगों को दावत देते रहो और तुम मुशरिकों में से हरगिज़ न होना.
88. और तुम अल्लाह के सिवा किसी दूसरे की इबादत न करो. अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं. उसकी ज़ात के सिवा हर चीज़ फ़ानी है. उसी का हुक्म व फ़रमानरवाई है. और तुम सबको उसकी तरफ़ ही लौटना है.

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