सूरह अल इंफ़ितार मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 19 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. जब आसमान शिगाफ़्ता हो जाएंगे यानी फट जाएंगे.
2. और जब सितारे बिखर जाएंगे.
3. और जब समन्दर और दरिया बह निकलेंगे.
4. और जब क़ब्रें उखाड़ी जाएंगी.
5. तब हर शख़्स जान लेगा कि उसने आगे क्या भेजा था और पीछे क्या छोड़ा था.
6. ऐ इंसान ! तुझे किस चीज़ ने अपने करीम परवरदिगार के बारे में धोखा में रखा?
7. जिसने तुझे पैदा किया, फिर तेरे आज़ा दुरुस्त किए और तुझे ख़ूबसूरत सांचे में ढाला.
8. उसने जिस सूरत में चाहा, तुझे जोड़ दिया.
9. फिर भी तुम जज़ा और सज़ा के दिन को झुठलाते हो.
10. और बेशक तुम पर निगेहबान फ़रिश्ते मुक़र्रर हैं.
11. बहुत मुअज़्ज़िज़ फ़रिश्ते हैं, जो तुम्हारे आमालनामे लिखते हैं.
12. वे सब जानते हैं, जो कुछ तुम करते हो.
13. बेशक नेक लोग नेअमतों वाली जन्नत में होंगे.
14. और बेशक बदकार लोग जहन्नुम में होंगे,
15. वे जज़ा और सज़ा के दिन दोज़ख़ में डाले जाएंगे.
16. और वे लोग उससे छुप नहीं सकेंगे.
17. और क्या तुम जानते हो कि जज़ा और सज़ा का दिन क्या है?
18. फिर क्या तुम जानते हो कि जज़ा और सज़ा का दिन क्या है?
19. यह वह दिन है जब कोई शख़्स किसी के लिए कुछ नहीं कर पाएगा. और उस दिन अल्लाह ही का हुक्म
होगा.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. जब आसमान शिगाफ़्ता हो जाएंगे यानी फट जाएंगे.
2. और जब सितारे बिखर जाएंगे.
3. और जब समन्दर और दरिया बह निकलेंगे.
4. और जब क़ब्रें उखाड़ी जाएंगी.
5. तब हर शख़्स जान लेगा कि उसने आगे क्या भेजा था और पीछे क्या छोड़ा था.
6. ऐ इंसान ! तुझे किस चीज़ ने अपने करीम परवरदिगार के बारे में धोखा में रखा?
7. जिसने तुझे पैदा किया, फिर तेरे आज़ा दुरुस्त किए और तुझे ख़ूबसूरत सांचे में ढाला.
8. उसने जिस सूरत में चाहा, तुझे जोड़ दिया.
9. फिर भी तुम जज़ा और सज़ा के दिन को झुठलाते हो.
10. और बेशक तुम पर निगेहबान फ़रिश्ते मुक़र्रर हैं.
11. बहुत मुअज़्ज़िज़ फ़रिश्ते हैं, जो तुम्हारे आमालनामे लिखते हैं.
12. वे सब जानते हैं, जो कुछ तुम करते हो.
13. बेशक नेक लोग नेअमतों वाली जन्नत में होंगे.
14. और बेशक बदकार लोग जहन्नुम में होंगे,
15. वे जज़ा और सज़ा के दिन दोज़ख़ में डाले जाएंगे.
16. और वे लोग उससे छुप नहीं सकेंगे.
17. और क्या तुम जानते हो कि जज़ा और सज़ा का दिन क्या है?
18. फिर क्या तुम जानते हो कि जज़ा और सज़ा का दिन क्या है?
19. यह वह दिन है जब कोई शख़्स किसी के लिए कुछ नहीं कर पाएगा. और उस दिन अल्लाह ही का हुक्म
होगा.
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