Monday, August 2, 2021

52 सूरह अत तूर

अत तूर मक्का में नाज़िल हुई और इसकी49 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. क़सम है कोहे तूर की
2. और क़सम है लिखी हुई किताब की 
3. जो कुशादा सहीफ़ों में है.
4. और क़सम है बैतुल मामूर की यानी फ़रिश्तों से आबाद घर की यानी आसमानी काबा की 
5. और क़सम है बुलंद छत की यानी बुलंद आसमान की 
6. और क़सम है जोश व ख़रोश वाले समन्दर की. 
7. बेशक तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब ज़रूर वाक़े होकर रहेगा.
8. उसे कोई दफ़ा करने वाला नहीं है.
9. जिस दिन आसमान कपकपा कर लरज़ने लगेंगे.
10. और पहाड़ चलने लगेंगे यानी रेज़ा-रेज़ा होकर बादलों की तरह हवा में उड़ने लगेंगे.
11. फिर उस दिन झुठलाने वाले लोगों के लिए तबाही है.
12. जो बातिल में पड़े खेल कर रहे हैं.
13. जिस दिन जहन्नुम की आग की तरफ़ उन्हें धकेला जाएगा.
14. उनसे कहा जाएगा कि यह वही दोज़ख़ है, जिसे तुम झुठलाया करते थे.
15. क्या यह जादू है या तुम्हें नज़र ही नहीं आता.
16. इसमें दाख़िल हो जाओ. फिर तुम सब्र करो या सब्र न करो. तुम्हारे लिए सब बराबर है. बेशक तुम्हें उन्हीं आमाल का बदला दिया जा रहा है, जो तुम किया करते थे.
17. बेशक परहेज़गार लोग जन्नत के बाग़ों और नेअमतों में सुकून से होंगे.
18. वे अपने परवरदिगार की नेअमतें पाकर ख़ुश होंगे. और उनके परवरदिगार ने उन्हें जहन्नुम के अज़ाब से बचा लिया.
19. उनसे कहा जाएगा कि ख़ूब मज़े से खाओ और पियो. यह उन आमाल का सिला है, जो तुम करते थे. 
20. वे सफ़ दर सफ़ बिछे हुए तख़्तों पर तकिये लगाए बैठे होंगे. और बड़ी आंखों वाली हूरों को उनकी ज़ौजियत में दे दिया जाएगा यानी हूरों से उनका निकाह कर दिया जाएगा.
21. जो लोग ईमान लाए और उनकी औलाद ने भी ईमान में उनकी पैरवी की, तो हम उनकी औलाद को भी जन्नत में उनके दर्जे तक पहुंचा देंगे. यानी चाहे उनके आमाल इस दर्जे के न हों, यह उनके बाप दादाओं के नेक आमाल की वजह से होगा. और हम उनके बाप दादाओं के नेक आमाल में से कुछ भी कम नहीं करेंगे. हर शख़्स अपने ही अमल की कमाई में गिरवी है. 
22. और हम उन्हें उससे भी ज़्यादा अता करेंगे, जिस क़िस्म के फल व मेवे और गोश्त वे खाना चाहेंगे,.
23. वहां ये लोग आपस में पाकीज़ा शर्बत के जाम के जाम ले रहे होंगे, जिसमें न बेहूदगी होगी और न गुनाह की कोई बात होगी. 
24. और उनकी ख़िदमत के लिए नौजवान लड़के उनके अतराफ़ होंगे, गोया वे ग़िलाफ़ में छुपाये हुए मोती हैं.
25. और वे एक दूसरे की तरफ़ रुख़ करके आपस में गुफ़्तगू करेंगे.
26. वे कहेंगे कि बेशक हम इससे पहले दुनिया के अपने घर में अल्लाह के अज़ाब से बहुत डरते थे.
27. फिर अल्लाह ने हम पर बड़ा अहसान किया और हमें दोज़ख़ के अज़ाब से बचा लिया.
28. बेशक हम पहले से ही अल्लाह की इबादत किया करते थे. बेशक वह बड़ा मोहसिन बड़ा मेहरबान है.
29. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम नसीहत करते रहो. तुम अपने परवरदिगार के फ़ज़ल से न काहिन हो और न दीवाने हो.
30. क्या काफ़िर कहते हैं कि ये शायर हैं. हम इनके बारे में ज़माने की गर्दिश का इंतज़ार कर रहे हैं.
31. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि तुम भी इंतज़ार करो और मैं भी तुम्हारे साथ इंतज़ार करने वालों में से हूं.
32. क्या उनकी अक़्लें उन्हें यही सिखाती हैं या वह क़ौम ही सरकश है.
33. क्या वे लोग कहते हैं कि इन रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस क़ुरआन को ख़ुद गढ़ लिया है. बल्कि वे ईमान ही नहीं रखते.
34. फिर उन्हें इस क़ुरआन जैसी ही हदीस लानी चाहिए. अगर वे लोग सच्चे हैं.
35. क्या वे लोग किसी के पैदा किए बग़ैर ही पैदा हो गए हैं या वे ख़ुद ही ख़ालिक हैं.
36. क्या उन्होंने आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ की है, बल्कि वे लोग यक़ीन ही नहीं रखते.
37. क्या उनके पास तुम्हारे परवरदिगार के ख़ज़ाने हैं या वे उन पर मुसल्लत किए गए हैं.
38. क्या उनके पास कोई सीढ़ी है, जिस पर चढ़कर आसमान से बातें सुन आते हैं. फिर कोई सुनकर आया है, तो वह सरीह दलील पेश करे.
39. क्या उस अल्लाह के लिए बेटियां हैं और तुम्हारे लिए बेटे हैं.
40. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या तुम उनसे कोई उजरत चाहते हो कि वे लोग तावान के बोझ से दबे जा रहे हैं.
41. क्या उनके पास ग़ैब का इल्म है, जिसे वे लिख लेते हैं.
42. क्या वे लोग कोई चाल चलना चाहते हैं. फिर जिन लोगों ने कुफ़्र किया है, वे ख़ुद अपनी ही चाल में फंसे जा रहे हैं.
43. क्या अल्लाह के सिवा उनका कोई और सरपरस्त है. अल्लाह हर उस चीज़ से पाक है, जिसे वे अल्लाह का शरीक ठहराते हैं.
44. और अगर वे लोग आसमान से कोई टुकड़ा गिरता हुआ देख लें, तो कहेंगे कि यह घना बादल है.
45. ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो, यहां तक वे उस दिन से आ मिलें, जिसमें वे हलाक किए जाएंगे. 
46. जिस दिन न उनकी कोई चाल उनके कुछ काम आएगी और न उन्हें कोई मदद ही मिलेगी.
47. और बेशक ज़ुल्म करने वाले लोगों के लिए इसके अलावा और भी अज़ाब हैं, लेकिन उनमें से बहुत से लोग नहीं जानते.
48. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और तुम अपने परवरदिगार के हुक्म से सब्र करो. बेशक तुम हर वक़्त हमारी नज़रों के सामने रहते हो. जब तुम उठा करो, तो अपने परवरदिगार की हम्दो सना की तस्बीह किया करो.
49. और तुम रात में कुछ वक़्त और सितारों के ग़़ुरूब होने के बाद भी तस्बीह किया करो.

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