Thursday, August 12, 2021

42 सूरह अश शूरा

सूरह अश शूरा मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 53 आयतें हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
1. हा मीम.
2. ऐन सीन क़ाफ़.
3. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इसी तरह वह तुम्हारी तरफ़ और तुमसे पहले के पैग़म्बरों की तरफ़ वही भेजता रहा है, जो अल्लाह बड़ा ग़ालिब बड़ा हिकमत वाला है.
4. जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है, सब उसी अल्लाह का है. और वह बड़ा आला मर्तबा बड़ा अज़ीम है.
5. क़रीब है कि आसमान ऊपर से शिगाफ़्ता हो जाएं. और फ़रिश्ते अपने परवरदिगार की हम्दो सना की तस्बीह करते रहते हैं और ज़मीन में रहने वाले लोगों के लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगते रहते हैं. जान लो कि बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है.
6. और जिन लोगों ने अल्लाह को छोड़कर अपने सरपरस्त बना रखे हैं, उन पर अल्लाह की नज़र है. और तुम उन काफ़िरों के वकील नहीं हो.
7. और उसी तरह हमने तुम्हारी तरफ़ अरबी ज़बान में क़ुरआन की वही की है, ताकि तुम मक्का और इसके अतराफ़ के लोगों को ख़बरदार करो. और उस जमा होने के दिन से भी ख़बरदार करो, जिसके आने में कोई शक नहीं है. उस दिन एक फ़रीक़ जन्नत में होगा और एक फ़रीक़ दोज़ख़ में जाएगा.
8. और अगर अल्लाह चाहता, तो उन सबको एक ही उम्मत में शामिल कर देता, लेकिन वह जिसे चाहता है, उसे अपनी रहमत में दाख़िल कर लेता है. और ज़ालिमों का न कोई सरपरस्त होगा और न कोई मददगार.
9. क्या उन लोगों ने अल्लाह को छोड़कर दूसरे सरपरस्त बना लिए हैं. और अल्लाह ही कारसाज़ है और वही मुर्दों को ज़िन्दा करेगा. और वह हर चीज़ पर क़ादिर है.
10. और तुम लोग जिस चीज़ में इख़्तिलाफ़ करते हो, तो उसका फ़ैसला अल्लाह की तरफ़ से होगा. वही अल्लाह मेरा परवरदिगार है. मैंने उसी पर भरोसा किया है और मैं उसी की तरफ़ रुजू करता हूं.
11. अल्लाह ही आसमानों और ज़मीन को वजूद में लाने वाला है. उसी ने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिन्स के जोड़े बनाए और चौपायों के भी जोड़े बनाए. और वही तुम्हारी नस्ल बढ़ाता है. उस जैसा कोई नहीं है. और वह ख़ूब सुनने वाला ख़ूब देखने वाला है.
12. अल्लाह ही आसमानों और ज़मीन की कुंजियों का मालिक है. वह जिसके लिए चाहता है रिज़्क़ को कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है तंग कर देता है. बेशक वह हर चीज़ का जानने वाला है.
13. उसने तुम्हारे लिए दीन का वही रास्ता मुक़र्रर किया है, जिसका हुक्म उसने नूह अलैहिस्सलाम को दिया था. और जिसकी वही हमने तुम्हारी तरफ़ भेजी है. और जिसका हुक्म हमने इब्राहीम अलैहिस्सलाम और मूसा अलैहिस्सलाम और ईसा अलैहिस्सलाम को दिया था कि दीन पर क़ायम रहो और उसमें तफ़रक़ा यानी फूट मत डालो. जिस तौहीद की तरफ़ तुम मुशरिकों को बुलाते हो, वह उन पर बहुत दुश्वार गुज़रता है. अल्लाह जिसे चाहता है, उसे अपनी बारगाह में मुंतख़िब कर लेता है. और उसे अपनी तरफ़ आने की राह दिखा देता है, जो उसकी तरफ़ दिल से रुजू करता है.
14. और वे लोग इल्म आने के बाद आपसी हसद की वजह से मुतफ़र्रिक़ हो गए. और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से एक मुक़र्रर मुद्दत तक की मोहलत का फ़रमान सादिर न हुआ होता, तो उनके दरम्यान फ़ैसला कर दिया जाता. और बेशक जो लोग उनके बाद अल्लाह की किताब के वारिस बनाए गए थे, वे ख़ुद उसकी निस्बत शक और शुबहा में मुब्तिला हैं.
15. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर तुम लोगों को उसी दीन की तरफ़ बुलाते रहो, जिसका तुम्हें हुक्म दिया गया है और उसी पर क़ायम रहना. और उनकी ख़्वाहिशों की पैरवी मत करना. उनसे कह दो कि जो किताब अल्लाह ने नाज़िल की है, मैं उस पर ईमान रखता हूं. और मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं तुम्हारे दरम्यान अदल व इंसाफ़ करूं. अल्लाह हमारा भी परवरदिगार है और तुम्हारा भी परवरदिगार है. हमारे लिए हमारे आमाल हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे आमाल हैं. हमारे दरम्यान और तुम्हारे दरम्यान कोई हुज्जत नहीं है. अल्लाह क़यामत के दिन हम सबको जमा करेगा. और सबको उसकी तरफ़ ही लौटना है. 
16. और जो लोग ईमान लाने के बाद अल्लाह के दीन के बारे में झगड़ते हैं, उनके परवरदिगार के नज़दीक उनकी हुज्जत यानी दलील बातिल है. उन पर अल्लाह का ग़ज़ब है और उनके लिए सख़्त अज़ाब है.
17. अल्लाह ही है, जिसने हक़ के साथ किताब नाज़िल की और इंसाफ़ का तराज़ू भी नाज़िल किया. और तुम्हें क्या मालूम शायद क़यामत क़रीब ही हो.
18. इस क़यामत के लिए वे लोग जल्दी कर रहे हैं, जो इस पर ईमान भी नहीं रखते. और जो लोग इस पर ईमान रखते हैं, वे इससे डरते हैं और जानते हैं कि क़यामत बरहक़ है. बेशक जो लोग क़यामत के बारे में शक करते हैं, वे परले दर्जे की गुमराही में मुब्तिला हैं.
19. अल्लाह अपने बन्दों के लिए बड़ा लतीफ़ है. वह जिसे चाहता है रिज़्क़ देता है. और वह बड़ा क़ूवत वाला बड़ा ग़ालिब है.
20. जो शख़्स आख़िरत की खेती चाहता है, तो हम उसके लिए उसकी खेती में मज़ीद इज़ाफ़ा कर देते हैं. और जो शख़्स दुनिया की खेती चाहता है, तो हम उसे उसमें से कुछ अता कर देते हैं. फिर उसके लिए आख़िरत में कुछ भी हिस्सा नहीं रहता.
21. क्या उन लोगों के कुछ ऐसे शरीक हैं, जिन्होंने उनके लिए दीन का ऐसा रास्ता मुक़र्रर किया है, जिसका अल्लाह ने हुक्म नहीं दिया था. अगर फ़ैसले का फ़रमान सादिर न होता, तो उनके दरम्यान फ़ैसला कर दिया जाता. और बेशक ज़ालिमों के लिए दर्दनाक अज़ाब है.
22. तुम देखोगे कि ज़ालिम उन आमाल से डर रहे होंगे, जो उन्होंने कमा रखे हैं और वह अज़ाब उन पर वाक़े होकर रहेगा. और जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, वे जन्नत के बाग़ों में होंगे. उनके परवरदिगार की बारगाह में उनके लिए वह सब होगा, जो वे चाहेंगे. यह अल्लाह का बहुत बड़ा फ़ज़ल है.
23. यही वह ईनाम है, जिसकी बशारत अल्लाह अपने उन बन्दों को देता है, जो ईमान लाए और नेक अमल करते रहे. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! तुम कह दो कि मैं इस पर तुमसे कोई अज्र नहीं चाहता, लेकिन अपनी क़राबत व क़ुर्बत से मुहब्बत चाहता हूं. और जो शख़्स अच्छाई करेगा, तो हम उसके लिए उसकी अच्छाई के सवाब में इज़ाफ़ा कर देंगे. बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला, शुक्र क़ुबूल करने वाला है.
24. क्या वे लोग कहते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह पर झूठ गढ़ लिया है. फिर अगर अल्लाह चाहता, तो तुम्हारे दिल पर सब्र की मुहर लगा देता. और अल्लाह बातिल को मिटा देता है और अपने कलाम से हक़ को साबित रखता है. बेशक वह दिलों में पोशीदा राज़ों से भी ख़ूब वाक़िफ़ है.
25. और वह अल्लाह ही है, जो अपने बन्दों की तौबा क़ुबूल करता है और उनकी ख़तायों को दरगुज़र कर देता है. वह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है, जो कुछ तुम करते हो.
26. और जो लोग ईमान लाए और नेक अमल करते रहे, अल्लाह अपने फ़ज़ल से उन्हें उनकी चाह से भी ज़्यादा देता है. और काफ़िरों के लिए सख़्त अज़ाब है.
27. और अगर अल्लाह अपने तमाम बन्दों का रिज़्क़ कुशादा कर देता, तो वे ज़रूर ज़मीन में सरकशी करने लगते. लेकिन वह ज़रूरत के अंदाज़े से जितना चाहता है उतना रिज़्क़ नाज़िल करता है. बेशक वह अपने बन्दों से ख़ूब बाख़बर ख़ूब देखने वाला है.
28. और वह अल्लाह ही है, जो लोगों के नाउम्मीद हो जाने के बाद बारिश बरसाता है और अपनी रहमत को फैला देता है. और वह बड़ा कारसाज़ और सज़ावारे हम्दो सना है यानी तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं.
29. और उसकी क़ु़दरत की निशानियों में से आसमानों और ज़मीन की तख़लीक़ करना है और उन चलने वाले जानदारों का पैदा करना भी है, जो उसने इसमें फैला रखे हैं. और वह जब चाहे उन्हें जमा कर लेने पर भी क़ादिर है.
30. और जो मुसीबत भी तुम्हें पहुंचती है, तो वे तुम्हारे अपने ही हाथों की कमाई की वजह से पहुंचती है. 
हालांकि वह बहुत सी ख़ताओं को दरगुज़र कर देता है.
31. और तुम लोग अपनी तदबीरों से ज़मीन में अल्लाह को आजिज़ नहीं कर सकते. और अल्लाह के सिवा तुम्हारा न कोई सरपरस्त है और न मददगार.
32. और उसकी क़ुदरत की निशानियों में से समन्दर में चलने वाले पहाड़ जैसे जहाज़ भी हैं. 
33. अगर अल्लाह चाहे, तो हवा को ठहरा दे और कश्तियां व जहाज़ समन्दर की सतह पर खड़े रह जाएं. बेशक इसमें हर उस शख़्स के लिए अल्लाह की क़ुदरत की बहुत सी निशानियां हैं, जो सब्र और शुक्र करता है.
34. या उनकी कमाई यानी बुरे आमाल की वजह से उन्हें तबाह व बर्बाद कर दे. हालांकि वह बहुत सी ख़ताओं को दरगुज़र कर देता है. 
35. और जो लोग हमारी आयतों को लेकर झगड़ा करते हैं, वे जान लें कि उनके लिए कोई पनाह नहीं है.  
36. ऐ लोगो ! फिर जो कुछ तुम्हें दिया गया है, वह दुनियावी ज़िन्दगी का चन्द दिनों का थोड़ा सा साजो सामान है और जो कुछ अल्लाह के पास है वह कहीं बेहतर और हमेशा रहने वाला है. ये उन लोगों के लिए है, जो ईमान लाए और अपने परवरदिगार पर भरोसा करते हैं.
37. और जो लोग कबीरा गुनाहों और बेहयाई के कामों से परहेज़ करते हैं और जब उन्हें ग़ुस्सा आता है, तो मुआफ़ कर देते हैं.
38. और जो लोग अपने परवरदिगार का हुक्म मानते हैं और नमाज़ पढ़ते हैं और अपने काम बाहमी मशवरे से करते हैं और हमने जो कुछ उन्हें अता किया है, उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं.
39. और वे ऐसे लोग हैं, जब उन पर ज़ुल्म होता है, तो वे अपनी हिफ़ाज़त के लिए मुनासिब तरीक़े से ही बदला लेते हैं.
40. और बुराई का बदला, तो उसी तरह की बुराई है. फिर जिसने मुआफ़ कर दिया और इस्लाह की, तो उसका अज्र अल्लाह के ज़िम्मे है. बेशक वह ज़ालिमों को पसंद नहीं करता.
41. और यक़ीनन जो शख़्स ख़ुद पर ज़ुल्म होने के बाद बदला ले, तो ऐसे लोगों पर मलामत की कोई राह नहीं है. 
42. बेशक मलामत की राह तो सिर्फ़ उन पर है, जो लोगों पर ज़़ुल्म करते हैं और ज़मीन में नाहक़ सरगोशी व फ़साद फैलाते हैं. ऐसे लोगों के लिए दर्दनाक अज़ाब है.
43. और यक़ीनन जो शख़्स सब्र करे और मुआफ़ कर दे, तो बेशक यह बड़े अज़्म का काम है.
44. और जिसे अल्लाह गुमराही में छोड़ दे, तो उसके बाद उसका कोई सरपरस्त नहीं है. और तुम देखोगे कि ज़ालिम जब अज़ाब को देखेंगे, तो कहेंगे कि क्या दुनिया में वापस जाने का कोई रास्ता है?
45. और तुम देखोगे कि जब वे लोग दोज़ख़ के सामने पेश किए जाएंगे, तो ज़िल्लत से दबे नीची निगाह से देख रहे होंगे और वे ईमान वालों से कहेंगे कि बेशक वही नुक़सान उठाने वाले हैं, जिन्होंने क़यामत के दिन ख़ुद को और अपने घरवालों को नुक़सान में डाल दिया. जान लो कि बेशक ज़ालिम हमेशा अज़ाब में रहेंगे.
46. और उन काफ़िरों के लिए कोई सरपरस्त नहीं होगा, जो अल्लाह के मुक़ाबिल उनकी मदद कर सके. और जिसे अल्लाह गुमराही में छोड़ दे, तो उसके लिए हिदायत की कोई राह नहीं है.
47. तुम लोग अपने परवरदिगार का हुक्म मान लो, इससे पहले कि वह दिन आ जाए, जो अल्लाह की तरफ़ से रद्द होने वाला नहीं है. क्योंकि उस दिन तुम्हें कहीं पनाह नहीं मिलेगी और न तुमसे गुनाहों का इनकार ही हो पाएगा. 
48. फिर अगर वे लोग मुंह फेरें, तो हमने तुम्हें उनका मुहाफ़िज़ बनाकर नहीं भेजा. तुम पर सिर्फ़ अहकाम पहुंचाने की ज़िम्मेदारी है. और बेशक जब हम इंसान को अपनी बारगाह से रहमत का मज़ा चखाते हैं, तो वह उससे ख़ुश हो जाता है. और अगर उसे अपने ही हाथों आगे भेजे बुरे आमाल की वजह से कोई तकलीफ़ पहुंचती है, तो वह सब अहसान भूल जाता है, तो बेशक इंसान बड़ा नाशुक्रा है.
49. आसमानों और ज़मीन की बादशाहत अल्लाह की है. वह जो चाहता है, पैदा करता है. वह जिसे चाहता है बेटियां देता है और जिसे चाहता है बेटे देता है.
50. या उन्हें बेटे और बेटियां दोनों ही अता करता है. वह जिसे चाहता है बांझ बना देता है. बेशक वह बड़ा साहिबे इल्म बड़ा क़ुदरत वाला है.
51. और हर बशर के लिए यह मुमकिन नहीं कि अल्लाह उससे कलाम करे, लेकिन किसी को वही के ज़रिये और पर्दे के पीछे से या कोई फ़रिश्ता भेज दे कि वह उसके हुक्म से वैसा ही करे, जैसा अल्लाह चाहता है. बेशक वह आला मर्तबा बड़ा हिकमत वाला है.
52. और इसी तरह हमने तुम्हारी तरफ़ अपने हुक्म से रूह की वही भेजी यानी क़ुरआन भेजा. और तुम इससे पहले न किताब को जानते थे और न ईमान को जानते थे. लेकिन हमने इसे नूर बनाया है. हम इसके ज़रिये अपने बन्दों में से जिसे चाहते हैं हिदायत देते हैं. ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! और बेशक तुम लोगों को सिराते मुस्तक़ीम की तरफ़ हिदायत देते हो. 
53. यह सिराते मुस्तक़ीम ही उसी अल्लाह का रास्ता है, जो आसमानों और ज़मीन की सब चीज़ों का मालिक है. जान लो कि सब काम अल्लाह की तरफ़ ही रुजू होते हैं.

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